प्रारंभिक परीक्षा
पुरी के जगन्नाथ मंदिर में रत्न भंडार
- 15 Jul 2024
- 7 min read
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ओडिशा सरकार ने पुरी स्थित 12वीं शताब्दी के जगन्नाथ मंदिर के प्रतिष्ठित रत्न भंडार को 46 वर्षों के बाद खोला है।
जगन्नाथ मंदिर का रत्न भंडार क्या है?
- परिचय:
- रत्न भंडार, खज़ाने का बहुमूल्य संग्रह है, जो जगमोहन (मंदिर का सभा कक्ष) के उत्तर की ओर स्थित है।
- इस मंदिर के रत्न भंडार में भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र तथा देवी सुभद्रा के बहुमूल्य आभूषण संगृहीत हैं जो वर्षों से अनुयायियों एवं पूर्व राजाओं द्वारा उपहार में दिये गए हैं।
- पुरी श्री जगन्नाथ मंदिर अधिनियम, 1952 के अनुसार बनाए गए रिकॉर्ड ऑफ राइट्स में भगवान जगन्नाथ से संबंधित बहुमूल्य आभूषणों तथा विविध शृंगारों की सूची शामिल है।
- इसमें दो कक्ष मौजूद हैं: भीतरी भंडार (आंतरिक कक्ष) व बाह्य भंडार (बाहरी कक्ष), जो पिछले 46 वर्षों से बंद है।
- वर्ष 1978 में अंतिम बार बनाई गई सूची के अनुसार यहाँ के रत्न भंडार में कुल 128.38 किलोग्राम सोना और 221.53 किलोग्राम चाँदी है।
- भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI) इस मंदिर का संरक्षक है और इसके द्वारा वर्ष 2008 में यहाँ के रत्न भंडार का संरचनात्मक निरीक्षण किया था, लेकिन इसने आंतरिक कक्ष में प्रवेश नहीं किया था।
जगन्नाथ मंदिर के संबंध में मुख्य तथ्य क्या हैं?
- पुरी का जगन्नाथ मंदिर राज्य (भारत) में सबसे प्रतिष्ठित हिंदू मंदिरों में से एक है, यह भगवान जगन्नाथ, जिन्हें विष्णु का अवतार माना जाता है, उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की पूजा के लिये समर्पित है।
- इसे "व्हाइट पैगोडा" के रूप में जाना जाता है, यह चार धाम तीर्थयात्रा के चार तीर्थ स्थलों में से एक है।
- यह ओडिशा के स्वर्णिम त्रिभुज का भी हिस्सा है, जिसमें राज्य के तीन प्रमुख पर्यटन स्थल शामिल हैं जो एक त्रिभुज बनाते हैं और एक दूसरे से अच्छी तरह से जुड़े हुए हैं।
- अन्य दो स्थलों में भुवनेश्वर (मंदिरों का शहर) और कोणार्क का सूर्य मंदिर (काला पैगोडा) शामिल हैं।
- इसका निर्माण 12वीं शताब्दी में गंग राजवंश के प्रसिद्ध राजा अनंत वर्मन चोडगंग देव द्वारा किया गया था।
- यह कलिंग वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसमें विशिष्ट घुमावदार मीनारें, जटिल नक्काशी और अलंकृत मूर्तियाँ हैं।
- जगन्नाथ मंदिर के चार द्वार इसकी चारदीवारी के मध्य बिंदुओं पर स्थित हैं तथा चारों दिशाओं की ओर मुख किये हुए हैं। इनका नाम अलग-अलग जानवरों के नाम पर रखा गया है।
द्वार |
दिशा |
मान्यतामोक्ष (जन्म-पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति) प्राप्त करना। |
सिंहद्वार (सिंह द्वार) |
पूर्व |
|
हस्तिद्वार (हाथी द्वार) |
उत्तर |
लक्ष्मी (धन) का प्रतीक |
अश्वद्वार |
दक्षिण |
मनुष्य को काम (वासना) से छुटकारा पाने में सहायता करता है। |
व्याघ्रद्वार |
पश्चिम |
व्यक्ति को उसके धर्म (उचित व्यवहार और सामाजिक व्यवस्था के अंतर्गत आने वाला लौकिक नियम) का स्मरण कराता है। |
- इसे 'यमनिका तीर्थ' भी कहा जाता है जहाँ हिंदू मान्यताओं के अनुसार, भगवान जगन्नाथ की उपस्थिति के कारण पुरी में मृत्यु के देवता 'यम' की शक्ति समाप्त हो गई है।
- संबंधित प्रमुख त्योहार: स्नान यात्रा, नेत्रोत्सव, रथ यात्रा, सायन एकादशी।
ओडिशा शैली (कलिंग वास्तुकला)
- यह नागर शैली की उप-शैली है जिसका विकास कलिंग साम्राज्य में विभिन्न क्षेत्रों में हुआ। इसकी कुछ विशेषताएँ इस प्रकार थीं:
- इसमें बाहरी दीवारों को जटिल नक्काशी से भव्य रूप से सजाया जाता था जबकि अंदर की दीवारों पर कोई नक्काशी नहीं की जाती थी।
- द्वारमंडप में स्तंभों का उपयोग नहीं किया जाता था। छत को सहारा देने के लिये लोहे के गर्डरों का उपयोग किया जाता था।
- ओडिशा शैली में शिखर को रेखा देउल के नाम से जाना जाता था। इनकी छतें प्रायः लंबवत् होती थीं जो अंतिम छोर पर अंदर की ओर वक्रित होती थीं।
और पढ़ें: मंदिर वास्तुकला
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. मुरैना के समीप स्थित चौंसठ योगिनी मंदिर के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं? (a) 1 और 2 उत्तर: (c) प्रश्न. किसके राज्य में ‘कल्याण मंडप’ की रचना मंदिर-निर्माण का एक विशिष्ट अभिलक्षण था? (2019) (a) चालुक्य उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न. शैलकृत स्थापत्य प्रारंभिक भारतीय कला एवं इतिहास के ज्ञान के अति महत्त्वपूर्ण स्रोतों में से एक का प्रतिनिधित्व करता है। विवेचना कीजिये। (2020) |