स्वतंत्र भारत के महत्त्वपूर्ण निर्णय: भाग II

वर्ष 1950 में भारत का संविधान लागू होने के पश्चात् यह भारत के लोकतंत्र की आधारशिला रहा है। इसके अधिनियमन के बाद इसमें कई संशोधन हुए हैं।

  • सर्वोच्च न्यायालय संविधान का अंतिम व्याख्याकार है और अपनी रचनात्मक एवं नवीन व्याख्या से हमारे संवैधानिक अधिकारों व मौलिक स्वतंत्रता का रक्षक रहा है।
  • इन निर्णयों को न केवल मिसाल के रूप में सराहा जाना चाहिये, बल्कि सर्वोपरि महत्त्व के मुद्दों पर कानून निर्धारित करने के रूप में भी देखा जाना चाहिये, यानी एक ऐसा कानून जो देश में सभी अदालतों और अधिकारियों के लिये बाध्यकारी है।

ए.के. गोपालन बनाम मद्रास राज्य (वर्ष 1950)

  • मुख्य विषय: ए.के. गोपालन बनाम मद्रास राज्य (वर्ष 1950) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय संविधान के भाग III के तहत मौलिक अधिकारों की व्याख्या की।
  • इस मामले में यह माना गया कि अनुच्छेद 21 के तहत सुरक्षा केवल मनमानी कार्यकारी कार्रवाई के खिलाफ उपलब्ध है, न कि मनमानी विधायी कार्रवाई से।
  • इसका मतलब है कि राज्य कानून के आधार पर किसी व्यक्ति को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार से वंचित कर सकता है।
  • यह अनुच्छेद 21 में 'कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया' की अभिव्यक्ति के कारण है, जो अमेरिकी संविधान में निहित 'कानून की उचित प्रक्रिया' की अभिव्यक्ति से अलग है।
  • इसलिये किसी कानून की वैधता, जिसने एक प्रक्रिया निर्धारित की है, पर इस आधार पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है कि कानून अतर्किक, अनुचित या अन्यायपूर्ण है।
  • दूसरे, सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि 'व्यक्तिगत स्वतंत्रता' का अर्थ केवल व्यक्ति या व्यक्ति के शरीर से संबंधित स्वतंत्रता है।

शंकरी प्रसाद बनाम भारत संघ (वर्ष 1951)

  • मुख्य विषय: इस मामले में पहले संशोधन अधिनियम (वर्ष 1951) की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई थी।
  • सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि अनुच्छेद 368 के तहत संविधान में संशोधन करने की संसद की शक्ति में मौलिक अधिकारों में संशोधन करने की शक्ति भी शामिल है।
  • अनुच्छेद 13 में 'कानून' शब्द में केवल सामान्य कानून शामिल हैं, न कि संवैधानिक संशोधन अधिनियम (संविधान कानून)।
  • इसलिये संसद संवैधानिक संशोधन अधिनियम बनाकर किसी भी मौलिक अधिकार को कम कर सकती है या छीन सकती है और ऐसा कानून अनुच्छेद 13 के तहत शून्य नहीं होगा।

बेरुबारी यूनियन केस (वर्ष 1960)

  • मुख्य विषय: मामले में इस मुद्दे को सुलझाया गया था कि प्रस्तावना संविधान का हिस्सा है या नहीं।
  • सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, बेरुबारी संघ मामले (वर्ष 1960) में प्रस्तावना संविधान में कई प्रावधानों के पीछे सामान्य उद्देश्यों को दर्शाती है और इस प्रकार संविधान निर्माताओं के दिमाग की कुंजी है।
  • इसके अलावा जहाँ किसी लेख में प्रयुक्त शब्द अस्पष्ट है या उसके एक से अधिक अर्थ निकलते हैं तो ऐसी स्थिति में व्याख्या में कुछ सहायता प्रस्तावना में निहित उद्देश्यों से ली जा सकती है।
  • प्रस्तावना के महत्त्व की इस मान्यता के बावजूद सर्वोच्च न्यायालय ने विशेष रूप से यह राय दी कि प्रस्तावना संविधान का हिस्सा नहीं है।
  •  इसलिये यह न्यायालय में प्रवर्तनीय नहीं है।

गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य (वर्ष 1967)

  • मुख्य विषय: इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि संसद किसी भी मौलिक अधिकार को छीन या कम नहीं कर सकती है।
  • कोर्ट ने कहा कि निर्देशक सिद्धांतों के कार्यान्वयन के लिये मौलिक अधिकारों में संशोधन नहीं किया जा सकता है।
  •  गोलकनाथ मामले (वर्ष 1967) में 24वें संशोधन अधिनियम (वर्ष 1971) और 25वें संशोधन अधिनियम (वर्ष 1971) को लागू करके संसद ने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त की।
  • 24वें संशोधन अधिनियम ने घोषणा की कि संसद के पास संवैधानिक संशोधन अधिनियमों को लागू करके किसी भी मौलिक अधिकार को कम करने या छीनने की शक्ति है।
  • 25वें संशोधन अधिनियम में एक नया अनुच्छेद 31C सम्मिलित किया गया जिसमें निम्नलिखित दो प्रावधान शामिल थे:
    • अनुच्छेद 39 (B) और (C) में निर्दिष्ट समाजवादी निर्देशक सिद्धांतों को लागू करने का प्रयास करने वाला कोई भी कानून अनुच्छेद 14, अनुच्छेद 19, या अनुच्छेद 31 द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के आधार पर शून्य नहीं होगा।
    • ऐसी नीति को प्रभावी करने की घोषणा वाले किसी कानून पर किसी भी अदालत में इस आधार पर सवाल नहीं उठाया जाएगा कि वह ऐसी नीति को प्रभावी नहीं बनाता है।

इंदिरा नेहरू गांधी बनाम राज नारायण मामला (वर्ष 1975)

  • मुख्य विषय: संविधान की मूल संरचना के सिद्धांत की फिर से पुष्टि की गई और इस  मामले (वर्ष 1975) में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा लागू किया गया।
  • इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने 39वें संशोधन अधिनियम (वर्ष 1975) के एक प्रावधान को अमान्य कर दिया, जिसने प्रधानमंत्री और लोकसभा अध्यक्ष से जुड़े चुनावी विवादों को सभी अदालतों के अधिकार क्षेत्र से बाहर रखा।
  • अदालत के अनुसार. यह प्रावधान संसद की संशोधन शक्ति से परे था क्योंकि इसने संविधान के मूल ढाँचे को प्रभावित किया था।
  • संसद ने 42वें संशोधन अधिनियम (वर्ष 1976) को अधिनियमित करके 'बुनियादी संरचना' के न्यायिक रूप से नवोन्मेषी सिद्धांत पर प्रतिक्रिया व्यक्त की।
  •  इस अधिनियम ने अनुच्छेद 368 में संशोधन किया और घोषित किया कि संसद की विधायी शक्ति पर कोई सीमा नहीं है और किसी भी मौलिक अधिकार के उल्लंघन सहित किसी भी आधार पर किसी भी अदालत में किसी भी संशोधन पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है।

मिनर्वा मिल्स बनाम भारत संघ (वर्ष 1980)

  • मुख्य विषय: सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि संसद संविधान के किसी भी हिस्से में संशोधन कर सकती है लेकिन वह संविधान के "मूल ढाँचे" को नहीं बदल सकती है।
  • मिनर्वा मिल्स मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि 'भारतीय संविधान मौलिक अधिकारों और निर्देशक सिद्धांतों के बीच संतुलन के आधार पर स्थापित है।
  • वे एक साथ सामाजिक क्रांति के प्रति प्रतिबद्धता के मूल का गठन करते हैं।
  • निर्देशक तत्त्वों द्वारा निर्धारित लक्ष्यों को मौलिक अधिकारों द्वारा प्रदत्त साधनों को समाप्त किये बिना प्राप्त किया जाना है।
  • इसलिये वर्तमान स्थिति यह है कि मौलिक अधिकारों को निर्देशक सिद्धांतों पर सर्वोच्चता प्राप्त है।
  • फिर भी इसका मतलब यह नहीं है कि निर्देशक सिद्धांतों को लागू नहीं किया जा सकता है।
  • संसद निर्देशक सिद्धांतों को लागू करने के लिये मौलिक अधिकारों में संशोधन कर सकती है, जब तक कि वह संशोधन संविधान के मूल ढाँचे को नुकसान नहीं पहुँचाता है।

एम.सी. मेहता बनाम भारत संघ (वर्ष 1986)

  • मुख्य विषय: इस निर्णय को हमारे देश में पर्यावरण कानून के क्षेत्र में प्रमुख निर्णयों में से एक माना जाता है। निर्णय ने विभिन्न नई स्थितियों, कानूनों और मौलिक अधिकारों की व्याख्या की।
  • सुप्रीम कोर्ट ने एम.सी. मेहता बनाम भारत संघ 1987 मामले में नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिये सख्त दायित्व सिद्धांत को अपर्याप्त पाया और इसे पूर्ण दायित्व सिद्धांत के साथ बदल दिया।
  • यह फैसला वर्ष 1986 में दिल्ली के ओलियम गैस रिसाव मामले में आया था।
  • इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 51-A (G) के तहत मौलिक कर्तव्य के एक भाग के रूप में देश के सभी शैक्षणिक संस्थानों में प्राकृतिक पर्यावरण के संरक्षण और सुधार पाठ्यक्रम की अनिवार्य शिक्षा की शुरुआत की।

एस.आर. बोम्मई बनाम भारत संघ (वर्ष 1994)

  • मुख्य विषय: इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्धारित किया कि संविधान संघीय है और संघवाद इसके 'मूल ढाँचे' में शामिल है।
  • इस मामले में गौर किया गया कि हमारे संविधान की योजना के तहत राज्यों की तुलना में केंद्र को अधिक शक्ति प्रदान की जाती है, इसका मतलब यह नहीं है कि राज्य केवल केंद्र के उपांग हैं।
  • राज्यों का एक स्वतंत्र संवैधानिक अस्तित्व है।  वे केंद्र के मातहत या एजेंट नहीं हैं। उन्हें आवंटित क्षेत्र के भीतर राज्य सर्वोच्च है।
  • तथ्य यह है कि आपात स्थिति के दौरान और कुछ अन्य घटनाओं में केंद्र द्वारा उनकी शक्तियों को ओवरराइड या कम किया जाता है, यह संविधान की आवश्यक संघीय विशेषता के लिये विनाशकारी नहीं है।
  • इस तरह के मामले अपवाद हैं और अपवाद कोई नियम नहीं होता है। बता दें कि भारतीय संविधान में संघवाद प्रशासनिक सुविधा का मामला नहीं है, बल्कि सिद्धांतों में से एक है। यह ज़मीनी हकीकत को देखते हुए अपनाई गई प्रक्रिया का परिणाम है।

शायरा बानो बनाम भारत संघ और अन्य  (वर्ष 2017)

  • मुख्य विषय: इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि तत्काल तीन तलाक या तलाक-ए-बिद्दत असंवैधानिक और अवैध है।
  • सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू करने के लिये सरकार मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) विधेयक, 2017 लेकर आई।
  • विधेयक लोकसभा द्वारा पारित किया गया था, लेकिन यह राज्यसभा में लंबित है।
  • अध्यादेश सरकार द्वारा राज्यसभा में प्रस्तुत मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक, 2017 के संशोधित संस्करण को प्रभावी बनाता है।

और पढ़ें: स्वतंत्र भारत के महत्त्वपूर्ण निर्णय: भाग 1 

मुख्य परीक्षा हेतु प्रश्न

प्रश्न. 'संवैधानिक नैतिकता' संविधान में ही निहित है और इसके आवश्यक पहलुओं पर आधारित है। प्रासंगिक न्यायिक निर्णयों की सहायता से 'संवैधानिक नैतिकता' के सिद्धांत की व्याख्या कीजिये।
प्रश्न. तलाक एक दीवानी मामला है और तीन तलाक को एक आपराधिक मामला बनाना आपराधिक न्यायशास्त्र के विपरीत है। टिप्पणी कीजिये।
प्रश्न. "संविधान की आधारभूत संरचना" का सिद्धांत क्या है?  संविधानवाद की भावना को मज़बूत करने में इसके विकास और महत्त्व पर चर्चा करें।  (250 शब्द)


प्रारंभिक परीक्षा हेतु प्रश्न

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन सा मामला संसद की संविधान के संशोधन की शक्ति से संबंधित नहीं है?

  1.  शंकरी प्रसाद मामला
  2.  सज्जन सिंह मामला
  3.  एस.आर. बोम्मई मामला
  4.  गोलकनाथ मामला

 नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही विकल्प का चयन कीजिये।

(A) केवल 1 और 2
(B) केवल 3
(C) केवल 2
(D) केवल 3 और 4

प्रश्न. हाल ही में चर्चा में रहा शायरा बानो बनाम भारत संघ का मामला किससे संबंधित है?

(A) मुस्लिम महिला को अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने का अधिकार
(B) बहुविवाह पर प्रतिबंध
(C) महिला जननांग विकृति पर प्रतिबंध
(D) तत्काल ट्रिपल 'तलाक' (तलाक) को अवैध बनाने से

प्रश्न. भारत की प्रस्तावना के संबंध में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

  1. इसे बेरुबारी संघ मामले में संविधान के एक भाग के रूप में रखा गया था।
  2. यह संविधान के मूल ढाँचे का एक हिस्सा है।
  3. यह शक्ति का स्रोत नहीं है और न ही सीमाओं का स्रोत है।

 उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(A) केवल 1 और 2
(B) केवल 2
(C) केवल 3
(D) 1, 2 और 3