भारतीय राजव्यवस्था
CBI के नियमित अन्वेषण के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय की चेतावनी
- 30 Sep 2024
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प्रारंभिक परीक्षा के लिये:उच्च न्यायालय (HC), सर्वोच्च न्यायालय, केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI), दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना (DSPE) अधिनियम, भ्रष्टाचार निवारण पर संथानम समिति, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम मुख्य परीक्षा के लिये:CBI से संबंधित मुद्दे और सिफारिशें, संघ और राज्यों के बीच शक्तियों के विभाजन से संबंधित मुद्दे और राज्यों में केंद्रीय एजेंसियों का उपयोग |
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य पुलिस के अंतर्गत चल रही जाँच को CBI को हस्तांतरित करने के लिये पर्याप्त तर्क न देने हेतु कलकत्ता उच्च न्यायालय की आलोचना की है तथा इस बात पर बल दिया है कि ऐसे निर्णय नियमित न होकर विशिष्ट, बाध्यकारी कारणों पर आधारित होने चाहिये।
राज्य में CBI के उपयोग के संबंध में क्या नियम हैं?
- पृष्ठभूमि: हाल ही में कलकत्ता उच्च न्यायालय ने गोरखालैंड प्रादेशिक प्रशासन (GTA) क्षेत्र से संबंधित भर्ती में कथित अनियमितताओं के संदर्भ में CBI जाँच के आदेश दिये, जिसे पश्चिम बंगाल सरकार ने चुनौती दी थी।
- सर्वोच्च न्यायालय का आदेश: सर्वोच्च न्यायालय ने कुछ कारणों के आधार पर इस मामले के संदर्भ में CBI जाँच से संबंधित कलकत्ता उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द कर दिया।
- असाधारण परिस्थितियाँ: CBI जाँच का आदेश केवल असाधारण परिस्थितियों में ही दिया जाना चाहिये, जहाँ स्पष्ट साक्ष्य हों कि राज्य पुलिस निष्पक्ष जाँच नहीं कर सकती है।
- न्यायिक संयम: न्यायालय ने न्यायिक संयम के महत्त्व को रेखांकित करते हुए कहा कि उच्च न्यायालयों को CBI को जाँच हस्तांतरित करने के लिये स्पष्ट कारण बताने चाहिये।
- CBI के उपयोग के संबंध में संबंधित निर्णय:
- CBI बनाम राजेश गांधी केस, 1997: सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि मामले CBI को तभी सौंपे जाने चाहिये जब स्थानीय पुलिस की जाँच असंतोषजनक हो।
- इसके अलावा आरोपी यह निर्णय नहीं ले सकता कि एजेंसी मामले की जाँच करेगी या नहीं।
- विनीत नारायण बनाम भारत संघ मामला, 1997: सर्वोच्च न्यायालय ने भ्रष्टाचार और CBI की जवाबदेही पर फैसला सुनाया। इसे जैन हवाला कांड मामला भी कहा जाता है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार द्वारा जारी वर्ष 1969 के "सिंगल डायरेक्टिव" को अमान्य कर दिया, जिसमें CBI द्वारा मामला शुरू करने और दर्ज करने की प्रक्रिया का उल्लेख किया गया था।
- न्यायालय के फैसले से जाँच एजेंसियों की स्वतंत्रता मज़बूत हुई तथा सुनिश्चित हुआ कि वे राजनीतिक हस्तक्षेप के बिना कार्य कर सकें इसके साथ ही उच्च-स्तरीय भ्रष्टाचार मामलों से निपटने में जवाबदेही और पारदर्शिता के लिये दिशानिर्देश दिये गए।
- CBI बनाम डॉ. आरआर किशोर मामला, 2023: सर्वोच्च न्यायालय ने घोषित किया कि DSPE अधिनियम की धारा 6A, वर्ष 2003 में शामिल किये जाने की तारीख से असंवैधानिक और शून्य है।
- यह निर्णय किसी विधि को असंवैधानिक घोषित करने के पूर्वव्यापी प्रभाव से संबंधित है।
- CPIO CBI बनाम संजीव चतुर्वेदी केस, 2024: दिल्ली उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि CBI को सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम की धारा 24 से पूरी तरह छूट प्राप्त नहीं है।
- न्यायालय ने कहा कि CBI को "संवेदनशील जाँच" को छोड़कर भ्रष्टाचार और मानवाधिकार उल्लंघन से संबंधित जानकारी के बारे में बताना होगा।
- CBI बनाम राजेश गांधी केस, 1997: सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि मामले CBI को तभी सौंपे जाने चाहिये जब स्थानीय पुलिस की जाँच असंतोषजनक हो।
भारत में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) किस प्रकार कार्य करता है?
- परिचय:
- CBI की स्थापना गृह मंत्रालय के एक संकल्प द्वारा की गई थी और बाद में इसे कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय में स्थानांतरित कर दिया गया, जो वर्तमान में एक संलग्न कार्यालय के रूप में कार्य कर रहा है।
- इसकी स्थापना की सिफारिश भ्रष्टाचार निवारण पर गठित संथानम समिति ने की थी।
- CBI, दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना (DSPE ) अधिनियम, 1946 के तहत कार्य करता है।
- यह न तो संवैधानिक और न ही वैधानिक निकाय है।
- यह रिश्वतखोरी, सरकारी भ्रष्टाचार, केंद्रीय कानूनों के उल्लंघन, बहु-राज्य संगठित अपराध और बहु-एजेंसी या अंतर्राष्ट्रीय मामलों से संबंधित मामलों की जाँच करता है।
- CBI के निदेशक की नियुक्ति केंद्र सरकार द्वारा तीन सदस्यीय समिति की सिफारिशों पर की जाती है जिसमें प्रधानमंत्री (अध्यक्ष), लोकसभा में विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) या CJI द्वारा नामित सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश शामिल होते हैं।
- CBI की कार्यप्रणाली:
- पूर्व अनुमति का प्रावधान: CBI को केंद्र सरकार और उसके अधिकारियों में संयुक्त सचिव एवं उससे ऊपर के रैंक के अधिकारियों द्वारा किये गए किसी अपराध का परीक्षण या जाँच करने से पहले केंद्र सरकार की पूर्व स्वीकृति प्राप्त करने की आवश्यकता होती है।
- हालाँकि वर्ष 2014 के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से इस आवश्यकता को अवैध घोषित कर दिया गया, जिसमें कहा गया कि DSPE अधिनियम की धारा 6A (जो इन अधिकारियों को भ्रष्टाचार के मामलों में प्रारंभिक जाँच से बचाती है) अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है।
- पूर्व अनुमति का प्रावधान: CBI को केंद्र सरकार और उसके अधिकारियों में संयुक्त सचिव एवं उससे ऊपर के रैंक के अधिकारियों द्वारा किये गए किसी अपराध का परीक्षण या जाँच करने से पहले केंद्र सरकार की पूर्व स्वीकृति प्राप्त करने की आवश्यकता होती है।
- सहमति सिद्धांत: CBI के लिये राज्य सरकार की सहमति विशिष्ट या "सामान्य" मामले में हो सकती है।
- जब कोई राज्य, संबंधित अधिनियम की धारा 6 के तहत सामान्य सहमति प्रदान करता है तो CBI को राज्य में जाँच के क्रम में हर बार नई मंजूरी लेने की आवश्यकता नहीं होती है।
- हालाँकि यदि सामान्य सहमति रद्द कर दी जाती है तो CBI को प्रत्येक जाँच के लिये संबंधित राज्य सरकार से विशिष्ट सहमति प्राप्त करने की आवश्यकता होती है।
- विशिष्ट सहमति के बिना CBI अधिकारियों को उस राज्य में कार्य करते समय पुलिस कर्मियों के समान शक्तियाँ प्राप्त नहीं होतीं हैं।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: Q. केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) हाल के दिनों में विश्वसनीयता और विश्वास के संकट का सामना क्यों कर रहा है? इस संकट के कारणों एवं परिणामों का विश्लेषण करते हुए CBI के प्रति लोगों के विश्वास और प्रतिष्ठा को बढ़ाने हेतु उपाय बताइये। |
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UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारतीय न्यायपालिका के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (c) प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)
उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) मेन्सप्रश्न. एक राज्य-विशेष के अंदर प्रथम सूचना रिपोर्ट दायर करने तथा जाँच करने के केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सी. बी. आई.) के क्षेत्राधिकार पर कई राज्य प्रश्न उठा रहे हैं। हालाँकि सी. बी. आई. जाँच के लिये राज्यों द्वारा दी गई सहमति को रोके रखने की शक्ति आत्यंतिक नहीं है। भारत के संघीय ढाँचे के विशेष संदर्भ में विवेचना कीजिये। (2021) |