जैव विविधता और पर्यावरण
जल और ऊर्जा मांग पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
प्रिलिम्स के लिये:ग्रीनहाउस गैसें, अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी, वायु प्रदूषक, जैव ईंधन, जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल, जैव ऊर्जा, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम, विश्व मौसम विज्ञान संगठन, विलवणीकरण, ड्रिप सिंचाई, आर्द्रभूमि। मेन्स के लिये:जल की कमी और ऊर्जा की मांग पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करना। |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
जलवायु परिवर्तन, जल उपलब्धता और ऊर्जा मांग के बीच परस्पर संबंध सतत् विकास में सबसे महत्त्वपूर्ण चुनौतियों में से एक है।
- एकीकृत संसाधन प्रबंधन के लिये प्रणालीगत समाधान की आवश्यकता है क्योंकि जलवायु परिवर्तन जल और ऊर्जा दोनों को तेज़ी से प्रभावित करता है।
जलवायु परिवर्तन ऊर्जा मांग को कैसे प्रभावित करता है?
- ऊर्जा की बढ़ती मांग: ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के कारण होने वाली ग्लोबल वार्मिंग के कारण विशेष रूप से गर्म क्षेत्रों में एयर कंडीशनर जैसी शीतलन प्रणालियों की मांग बढ़ रही है।
- अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण वर्ष 2050 तक वैश्विक ऊर्जा मांग 25% से 58% तक बढ़ सकती है, जो मुख्य रूप से शीतलन की आवश्यकता से प्रेरित है।
- मौसमी पैटर्न: शीतलन के अलावा, कुछ क्षेत्रों में अत्यधिक तापमान में उतार-चढ़ाव के कारण तापन की मांग में वृद्धि हो सकती है, जिससे वैश्विक स्तर पर असमान ऊर्जा आवश्यकताएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
- बढ़ता तापमान: ग्लोबल वार्मिंग के कारण शीतलन की मांग में वृद्धि से एक फीडबैक लूप का निर्माण होता है: ऊर्जा उत्पादन में वृद्धि (ज्यादातर जीवाश्म ईंधन आधारित) जलवायु परिवर्तन को और तेज़ करती है।
- इससे वायु प्रदूषकों और ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन बढ़ता है।
- ऊर्जा आपूर्ति में व्यवधान: बर्फबारी में कमी और लंबे समय तक सूखे के कारण विद्युत् संयंत्रों और जल विद्युत संयंत्रों के लिये जल की उपलब्धता कम हो जाती है।
- पेट्रोलियम शोधन और जैव ईंधन उत्पादन जैसे उद्योग, जो जल पर बहुत अधिक निर्भर हैं, जल की कमी से प्रभावित हैं।
- ताप प्रभाव: उच्च तापमान से ट्रांसमिशन लाइनों की वहन क्षमता कम हो जाती है।
- गर्मी के कारण वनाग्नि से पारेषण नेटवर्क नष्ट हो जाने से विद्युत आपूर्ति बाधित हो सकती है।
नोट: IEA की रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक ऊर्जा उत्पादन में जीवाश्म ईंधन का योगदान लगभग 80% है।
- जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल का अनुमान है कि जीवाश्म ईंधन 73% ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लिये ज़िम्मेदार हैं।
जलवायु परिवर्तन से जल संसाधन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
- ऊर्जा उत्पादन: विद्युत संयंत्रों को कुशलतापूर्वक संचालित करने के लिये शीतलन हेतु पर्याप्त मात्रा में जल की आवश्यकता होती है लेकिन जल की कमी के कारण इसमें समस्या हो सकती है।
- धारा प्रवाह (मात्रा और समय) में परिवर्तन से जलविद्युत बाँधों पर प्रभाव पड़ता है।
- एक किलोवाट-प्रति घंटा विद्युत के लिये नदियों या झीलों से लगभग 25 गैलन जल प्रवाह की आवश्यकता होती है।
- परिवर्तित वर्षा पैटर्न: ग्लोबल वार्मिंग से प्रेरित सूखा एवं कम वर्षा से पेयजल, सिंचाई तथा ऊर्जा के लिये जल की उपलब्धता पर खतरा बना हुआ है।
- बर्फ पिघलने पर निर्भर क्षेत्रों में बर्फ की मात्रा में कमी से जल आपूर्ति कम हो सकती है।
- जैव ऊर्जा एवं कृषि: जैव ऊर्जा के लिये फसलें उगाने (जैसे कि रेपसीड, सूरजमुखी, सोयाबीन, ताड़ या अरंडी का तेल) से जल संसाधनों पर अतिरिक्त दबाव पड़ सकता है।
- बढ़ते तापमान के कारण सिंचाई की आवश्यकता बढ़ने से ऊर्जा की खपत भी बढ़ जाती है।
- ऊर्जा-गहन जल प्रबंधन: मीठे जल की कमी के कारण खारे जल को पीने योग्य जल में बदलने के साथ भूजल निष्कर्षण के लिये ऊर्जा-गहन विलवणीकरण की आवश्यकता हो सकती है।
नोट: विश्व संसाधन संस्थान के अनुसार, वर्ष 2040 तक 33 देश अत्यधिक जल तनाव का अनुभव करेंगे तथा उनके 80% से अधिक जल संसाधन प्रतिवर्ष समाप्त हो जाएंगे।
- संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम का अनुमान है कि वर्ष 2030 तक सूखे में 30% की वृद्धि (विशेष रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में) होगी।
- विश्व मौसम विज्ञान संगठन की रिपोर्ट के अनुसार पिछले 50 वर्षों में जलवायु संबंधी आपदाओं में पाँच गुना वृद्धि होने से वैश्विक जल तनाव और भी बढ़ गया है।
जलवायु-जल-ऊर्जा के बीच किस प्रकार प्रबंधन किया जा सकता है?
- जल-कुशल प्रौद्योगिकियाँ: विद्युत संयंत्रों में शुष्क शीतलन प्रणालियों के माध्यम से जल की खपत को 90% तक कम किया जा सकता है।
- शुष्क कूलर में ठंडक हेतु जल के बजाय वायु का उपयोग होता है।
- क्षेत्रीय ऊर्जा रणनीति: उच्च-रिज़ॉल्यूशन मॉडल के माध्यम से स्थानीय संसाधन बाधाओं की पहचान करने एवं क्षेत्रीय ऊर्जा-आर्थिक रणनीतियों को विकसित करने के लिये फसल, जल एवं आर्थिक डेटा को एकीकृत किये जाने से स्थानीय स्तर की विशिष्ट आवश्यकताओं की पूर्ति होती है।
- ऊर्जा-कुशल जल प्रबंधन:
- पारंपरिक उपचार: पारंपरिक जल उपचार और जल-बचत तकनीकों जैसे कम जल-तीव्रता/लो वाटर इंटेंसिटी (विलवणीकरण के विपरीत) विकल्पों को प्राथमिकता देकर ऊर्जा और जल आवश्यकताओं के बीच संतुलन बनाने में मदद मिल सकती है।
- जल-कुशल पद्धतियाँ: ड्रिप सिंचाई और अपशिष्ट जल उपचार जैसी कुशल सिंचाई प्रणालियाँ ऊर्जा की खपत और जल की बर्बादी को कम कर सकती हैं।
- जल पुनर्चक्रण: औद्योगिक और ग्रे-वाटर के पुनर्चक्रण से उद्योग और कृषि में मीठे पानी की मांग को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
- नवीकरणीय ऊर्जा में वृद्धि करना: सौर और पवन जैसी विकेंद्रीकृत प्रणालियाँ न्यूनतम जल का उपयोग करती हैं (जीवाश्म ईंधन द्वारा प्रयुक्त जल का 1% से भी कम), जिससे प्रतिस्पर्द्धा कम होती है और सतत् ऊर्जा को बढ़ावा मिलता है।
- प्रकृति-आधारित समाधान (NBS): आर्द्रभूमि, वन और जलग्रहण क्षेत्रों जैसे पारिस्थितिक तंत्रों को बहाल करने से जल सुरक्षा बढ़ती है तथा कृत्रिम जल प्रबंधन प्रणालियों से जुड़ी ऊर्जा मांग कम होती है।
- क्षमता निर्माण: सतत् ऊर्जा और जल प्रणालियों को विकसित करने, कार्यान्वित करने और प्रबंधित करने की क्षमता का निर्माण दीर्घकालिक सफलता की कुंजी है।
निष्कर्ष:
जलवायु-जल-ऊर्जा सहसंबंध जटिल चुनौतियाँ प्रस्तुत करता है जिनके लिये एकीकृत समाधान की आवश्यकता होती है। जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिये जल-कुशल प्रौद्योगिकियों, नवीकरणीय ऊर्जा और सतत् प्रबंधन प्रथाओं को प्राथमिकता देना आवश्यक है। प्रकृति-आधारित समाधान और क्षमता निर्माण सहित प्रभावी रणनीतियाँ संसाधन प्रबंधन में दीर्घकालिक स्थिरता और अनुकूलता प्राप्त करने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: जलवायु परिवर्तन, जल उपलब्धता और ऊर्जा मांग के बीच अंतर्संबंधों पर चर्चा कीजिये। एकीकृत संसाधन प्रबंधन इन चुनौतियों का समाधान कैसे कर सकता है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न 1. निम्नलिखित प्राचीन नगरों में से कौन-सा बाँधों की एक श्रृंखला बनाकर और जलाशयों को जोड़कर उनमें जल प्रवाहित करके जल संचयन और प्रबंधन की विस्तृत प्रणाली हेतु प्रसिद्ध है? (वर्ष 2021) (a) धोलावीरा उत्तर: (a) प्रश्न 2. 'वाटर क्रेडिट' (WaterCredit) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (वर्ष 2021)
उपर्युक्त कथनों में से कौन से सही हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न 1 जल संरक्षण और जल सुरक्षा के लिये भारत सरकार द्वारा शुरू किये गए जल शक्ति अभियान की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं? (वर्ष 2020) प्रश्न 2. घटते जल-परिदृश्य को देखते हुए जल भंडारण और सिंचाई प्रणाली में सुधार के उपाय सुझाएँ ताकि इसका विवेकपूर्ण उपयोग किया जा सके। (वर्ष 2020) |
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
डीप स्टेट और इसके प्रभाव
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, विभिन्न देशों में सरकारों को अस्थिर करने के लिये एक कथित अंतर्राष्ट्रीय डीप स्टेट (अत्यंत शक्तिशाली देश) से संबंधित विवाद देखने मिला हैं।
डीप स्टेट क्या है?
- परिचय: यह सरकारी, कॉर्पोरेट और गैर-सरकारी अभिजात वर्ग के एक गुप्त नेटवर्क को संदर्भित करता है, जो अपार शक्ति का प्रयोग कर नीति-निर्माण को नियंत्रित करते हैं, निर्वाचित राजनेताओं को कमज़ोर तथा आम लोगों के हितों को विफल करते हैं।
- विदेशी सरकारें अपने हितों के आधार पर कुछ देशों में लोकतंत्र, मानवाधिकारों और उदारवादी मूल्यों को बढ़ावा देने का प्रयास करती हैं।
- पृष्ठभूमि: इसका नाम तुर्की शब्द "डेरिन डेवलेट (derin devlet)" से लिया गया है, जिसका अंग्रेज़ी में शाब्दिक अर्थ "डीप स्टेट" होता है। तुर्की में, इसका मतलब लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार पर हावी होने वाले गैर-निर्वाचित तत्त्वों से है।
- पाकिस्तान में "डीप स्टेट" से तात्पर्य शक्तिशाली सैन्य नेताओं द्वारा नियंत्रित सरकार से है।
- ‘डीप स्टेट’ की कार्यप्रणाली:
- शासन परिवर्तन: स्टीफन किन्ज़र की पुस्तक, ओवरथ्रो (Overthrow), ने कई महाद्वीपों पर अमेरिका द्वारा किये गए "सेंचुरी ऑफ रशीम (century of regime change)" मिशनों का वृत्तांत लिखा है। उदाहरण के लिये, बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार को हटाने के लिये अमेरिकी डीप स्टेट को दोषी ठहराया जा रहा है।
- थिंक टैंक: थिंक टैंक, NGO और पक्षपाती मीडिया का उपयोग सरकारों द्वारा समर्थित राजनीतिक परिवर्तनों के लिये परिस्थितियाँ विकसित करने हेतु किया जाता है। उदाहरण के लिये, जॉर्जिया (2003), यूक्रेन (2004) और किर्गिज़स्तान (2005) में रंगीन क्रांतियाँ (Colour Revolutions)।
- पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने विदेशी शक्तियों पर अपनी सरकार गिराने का आरोप लगाया है।
- निहत्थे सार्वजनिक विद्रोहों को रंगीन क्रांतियों द्वारा संगठित किया गया जिसका लक्ष्य एक राज्य का शासन समाप्त तथा उसे बदनाम करना था।
- संघर्ष और युद्ध: लॉकहीड मार्टिन, रेथॉन, बोइंग और नॉर्थ्रॉप ग्रुम्मन जैसी रक्षा कंपनियाँ हथियारों, गोला-बारूद और सैन्य प्रौद्योगिकी की आपूर्ति से काफी लाभान्वित होती हैं।
- व्यवसाय अपने हित में काम करते हैं और अपने हथियारों की मांग बढ़ाने के लिये युद्ध का समर्थन करते हैं। उदाहरण के लिये यूक्रेन में संघर्ष के परिणामस्वरूप हथियारों की यूक्रेन की मांग।
- आर्थिक प्रभाव: इच्छुक देशों में बाज़ार पहुँच और व्यापार-अनुकूल विनियमन को बढ़ावा देना। उदाहरण के लिये-
- हालाँकि, इससे अपेक्षित परिणाम नहीं मिले और परिणामतः शॉक थेरेपी अपनानी पड़ी।
- शॉक थेरेपी एक आर्थिक सिद्धांत है जो कहता है कि राष्ट्रीय आर्थिक नीति में अचानक, नाटकीय परिवर्तन एक राज्य-नियंत्रित अर्थव्यवस्था को मुक्त-बाज़ार अर्थव्यवस्था में परिवर्तित कर सकता है।
- विश्व व्यापार संगठन व्यापार वार्ता में देशों पर अपने कृषि बाज़ार आयातित उत्पादों के लिये खोलने का दबाव डालना।
- सोवियत संघ के पतन के बाद, पूर्व सोवियत राज्य और लैटिन अमेरिकी साम्यवादी देश राज्य-संचालित अर्थव्यवस्थाओं से मुक्त-बाज़ार अर्थव्यवस्था में स्थानांतरित हो गए।
- निगरानी: एडवर्ड स्नोडेन ने खुलासा किया कि अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी (NSA) एशिया और अफ्रीका जैसे विकासशील देशों में निगरानी करती है।
- मीडिया और आख्यान: पश्चिमी मीडिया की रिपोर्टें भारत में कुछ मुद्दों (जैसे, धार्मिक असहिष्णुता, कश्मीर) को गलत तरीके से प्रस्तुत करती हैं ताकि मानवाधिकारों पर सरकार पर दबाव बनाया जा सके।
- एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भारत सरकार पर धार्मिक अल्पसंख्यकों के विरुद्ध भेदभावपूर्ण कानून अपनाने का आरोप लगाया।
- साइबर प्रभाव: गूगल और फेसबुक जैसी प्रभावशाली बाज़ार प्रभुत्व वाली कंपनियों ने डेटा गोपनीयता और कराधान पर देशों के नियमों को प्रभावित किया।
- नागरिक समाज आंदोलन: मानव अधिकारों या जलवायु परिवर्तन के नाम पर भारत की कोयला और ऊर्जा परियोजनाओं के खिलाफ ग्रीनपीस इंडिया जैसे नागरिक समाज समूहों को वित्त पोषित करना, किसानों के आंदोलन में उनकी कथित भागीदारी।
- खुफिया ब्यूरो की एक रिपोर्ट में ग्रीनपीस जैसे "विदेशी वित्तपोषित" NGO पर सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि पर 2-3% तक नकारात्मक प्रभाव डालने का आरोप लगाया गया है।
- अंतर्राष्ट्रीय छवि को नुकसान पहुँचाना: निहित स्वार्थ वाले देश भारतीय मूल के लोगों को फिल्मों में खलनायकों की भूमिकाओं में पेश करते हैं, ताकि उनकी छवि खराब की जा सके।
- देश अन्य देशों के खिलाफ निराधार आरोप भी लगाते हैं। उदाहरण के लिये, कनाडा ने खालिस्तानी आतंकवादियों की हत्या में भारत की भूमिका का आरोप लगाया।
भारत पर डीप स्टेट का आरोप
- पुलित्जर पुरस्कार विजेता पत्रकार स्टीव कोल ने कहा कि भारत में एक प्रकार का डीप स्टेट है, जिसमें खुफिया एजेंसियों या सेना के बजाय मुख्य रूप से भारतीय विदेश सेवा शामिल है।
- पत्रकार जोसी जोसेफ ने अपनी पुस्तक द साइलेंट कूप: ए हिस्ट्री ऑफ इंडियाज डीप स्टेट में तर्क दिया है कि "राज्य के भीतर एक राज्य" है जो समाज के कमज़ोर वर्गों के खिलाफ पक्षपात करता है।
- उन्होंने राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (NIA) को भी उन एजेंसियों में शामिल किया है जो कथित तौर पर डीप स्टेट चला रही हैं।
- हालाँकि, सरकार ने ऐसे आरोपों को खारिज कर दिया है क्योंकि वह पंचशील सिद्धांतों और वसुधैव कुटुंबकम (विश्व एक परिवार है) में विश्वास करती है।
डीप स्टेट किस प्रकार देशों को प्रभावित करता है?
- राजनैतिक परोपकार: विशाल वित्तीय संसाधनों वाले लोग ओपन सोसाइटी फाउंडेशन (OSF) जैसे गैर सरकारी संगठनों का उपयोग दिखावा के रूप में करते हैं और "ओपन सोसाइटी" की वकालत करते हैं, जिसका अर्थ है शासन परिवर्तन के लिये प्रयास करना।
- उन्होंने भारत, रूस, चीन, इज़रायल और हंगरी जैसे देशों की खुलेआम आलोचना की तथा उनके नेताओं पर अधिनायकवादी शासन की अवधारणा को बढ़ावा देने का आरोप लगाया।
- शैक्षिक पहल: कई गैर सरकारी संगठन छात्रवृत्ति और फेलोशिप प्रदान करते हैं जो यह सुनिश्चित करते हैं कि प्रभावशाली पदों पर बैठे लोग - नौकरशाह, पत्रकार और नीति निर्माता आर्थिक विकास को बाधित करने के लिये छद्म पर्यावरण सक्रियता जैसे उनके उद्देश्यों के प्रति सहानुभूति रखते हैं।
- घरेलू राजनीति में हस्तक्षेप: किसी देश की आंतरिक नीतियों (विशेष रूप से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, धार्मिक अधिकारों एवं शासन के संबंध में सत्ता-विरोधी भावना) तथा आलोचना को अक्सर निहित स्वार्थ वाले गैर-सरकारी संगठनों द्वारा बढ़ावा दिया जाता है।
- आर्थिक प्रभाव: डीप स्टेट द्वारा आर्थिक नीतियों को भी प्रभावित किया जाता है। ये प्रमुख वित्तीय घटनाओं में शामिल होते हैं, जैसे बैंक ऑफ इंग्लैंड का विखंडन एवं एशियाई वित्तीय संकट में योगदान।
- हिंडनबर्ग रिसर्च ने विकासशील देशों (भारत और चीन) में व्यवसायों पर बड़े पैमाने पर अकाउंटिंग धोखाधड़ी, स्टॉक मूल्य में हेरफेर तथा भारत के स्टॉक मार्केट को अस्थिर करने के लिये टैक्स हेवन का फायदा उठाने का आरोप लगाया है। उदाहरण के लिये, अडानी समूह के खिलाफ आरोप।
- हिंडनबर्ग को शॉर्ट-सेलिंग (एक ऐसी रणनीति जिसमें फर्म लाभ कमाने के लिये किसी कंपनी के स्टॉक मूल्य में गिरावट की भविष्यवाणी करते हुए लाभ कमाने के लिये कारोबार करती है) में भी संलग्न पाया गया।
आगे की राह
- कठोर विनियमन: भारत को विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम (FCRA) के माध्यम से विदेशी वित्तपोषित गैर सरकारी संगठनों पर निगरानी कड़ी करने एवं कड़े विनियमन लागू करने की आवश्यकता है।
- गैर-लाभकारी संगठनों (NPO) को भी अपने भुगतान खातों को लेखापरीक्षित खातों के साथ सरकार के साथ साझा करना चाहिये।
- राष्ट्रीय सुरक्षा जागरूकता: थिंक टैंक, मीडिया एवं नागरिक समाज आंदोलनों के माध्यम से घरेलू राजनीति को प्रभावित करने के विदेशी प्रयासों का मुकाबला करने के लिये राष्ट्रीय स्तर पर सुरक्षा जागरूकता को बढ़ावा देना चाहिये।
- NSA अजीत डोभाल ने भारत के रक्षा बलों के मनोबल की रक्षा के साथ राष्ट्रीय स्तर पर अखंडता को बनाए रखने के लिये सोशल मीडिया के संतुलित दृष्टिकोण पर बल दिया।
- स्वदेशी थिंक टैंक: भारत को राष्ट्रीय हितों को बढ़ावा देने एवं बाहरी संस्थाओं को एकाधिकार करने से रोकने के लिये स्वदेशी थिंक टैंक एवं मीडिया प्लेटफॉर्म विकसित करने चाहिये।
- राजनयिक समन्वय: भारत को सहयोगियों का एक नेटवर्क बनाने एवं अपने राजनीतिक परिदृश्य को अस्थिर करने वाले प्रयासों से बचने के लिये समान विचारधारा वाले देशों एवं संगठनों के साथ राजनयिक संबंधों को मज़बूत करना चाहिये।
- डेटा संप्रभुता: भारत की साइबर सुरक्षा को मज़बूत करना एवं इसके डिजिटल आयामों को नियंत्रित करना विदेशी प्रभाव को कम करने (विशेष रूप से गूगल और फेसबुक जैसी तकनीकी दिग्गज कंपनियों के संदर्भ में) के लिये महत्त्वपूर्ण है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: 'डीप स्टेट' की अवधारणा राजनीतिक एवं आर्थिक परिदृश्य को किस प्रकार प्रभावित करती है? ऐसे प्रभावों का मुकाबला करने के लिये देश कौन सी रणनीति अपना सकते हैं, चर्चा कीजिये। |
मेन्सप्रश्न: क्या सिविल सोसाइटी एवं गैर-सरकारी संगठन आम नागरिक को लाभ पहुँचाने के लिये सार्वजनिक सेवा वितरण का कोई वैकल्पिक मॉडल प्रस्तुत कर सकते हैं? इस वैकल्पिक मॉडल की चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। (2021) |
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत-ऑस्ट्रेलिया आर्थिक सहयोग एवं व्यापार समझौता
प्रिलिम्स के लिये:भारत-ऑस्ट्रेलिया आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौता, सर्वाधिक पसंदीदा राष्ट्र' (MFN) का दर्जा, दोहरा कराधान, क्वाड, द्विपक्षीय निवेश संधि मेन्स के लिये:भारत-ऑस्ट्रेलिया द्विपक्षीय संबंध एवं आर्थिक सहयोग, भारत की व्यापार नीति और अंतर्राष्ट्रीय समझौते |
स्रोत: पी.आई.बी
चर्चा में क्यों?
भारत-ऑस्ट्रेलिया आर्थिक सहयोग एवं व्यापार समझौते (Ind-Aus ECTA) के दो वर्ष पूरे हो गए हैं, यह वर्ष द्विपक्षीय व्यापार और आर्थिक सहयोग में उल्लेखनीय वृद्धि के वर्ष रहे हैं।
- दोनों देश इस सफलता को सुदृढ़ सहयोग और महत्वाकांक्षी लक्ष्यों के साथ आगे बढ़ाने के पक्ष में हैं, जिसमें वर्ष 2030 तक व्यापार को 100 बिलियन ऑस्ट्रेलियाई डॉलर तक पहुँचाना भी शामिल है।
Ind-Aus ECTA क्या है?
- परिचय: भारत-ऑस्ट्रेलिया ECTA भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच एक ऐतिहासिक व्यापार समझौता है, जिस पर अप्रैल 2022 में हस्ताक्षर किये गए तथा नवंबर 2022 में दोनों देशों द्वारा इसकी पुष्टि की गई।
- इस समझौते का उद्देश्य दोनों देशों के बीच टैरिफ में कमी, सेवाओं के आदान-प्रदान को बढ़ावा देने तथा निवेश प्रवाह को बढ़ाकर गहन आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा देने के साथ व्यापार संबंधों को बढ़ाना है।
- भारत-ऑस्ट्रेलिया ECTA की मुख्य विशेषताएँ:
- टैरिफ में कटौती: इस समझौते से ऑस्ट्रेलियाई व्यवसायों को भारत में 85% से अधिक वस्तुओं पर टैरिफ-मुक्त निर्यात की अनुमति मिली तथा जनवरी 2026 तक यह आँकड़ा बढ़कर 90% हो जाएगा।
- इसके विपरीत यहाँ भारत से होने वाला 96% आयात अब टैरिफ-मुक्त है तथा वर्ष 2026 तक यह आँकड़ा बढ़कर 100% हो जाएगा।
- इस टैरिफ उदारीकरण से दोनों देशों को लाभ मिलने का अनुमान है क्योंकि इससे सस्ता कच्चा माल उपलब्ध होने एवं वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा मिलने के साथ उपभोक्ताओं के लिये वस्तुओं की कीमते कम हो सकेंगी।
- प्रमुख बाज़ारों तक पहुँच: ECTA से ऑस्ट्रेलिया के तेज़ी से बढ़ते बाज़ार में भारत की अधिमान्य बाज़ार पहुँच सुनिश्चित होगी।
- ऑस्ट्रेलिया के लिये यह समझौता भारत के श्रम-प्रधान क्षेत्रों में अवसर प्रदान करता है जिनमें रत्न एवं आभूषण, वस्त्र, चमड़ा, फर्नीचर, खाद्य तथा कृषि शामिल हैं।
- सेवाएँ: इस समझौते के तहत सेवाओं के 135 उप-क्षेत्रों से संबंधित प्रतिबद्धताएँ शामिल हैं जिससे व्यावसायिक सेवाएँ, संचार, निर्माण तथा इंजीनियरिंग जैसे उद्योगों को लाभ होगा।
- भारत के योगदान में 103 उप-क्षेत्रों में आस्ट्रेलिया के लिये बाज़ार पहुँच तथा 31 उप-क्षेत्रों में सर्वाधिक पसंदीदा राष्ट्र (MFN) का दर्जा शामिल है।
- फार्मास्युटिकल और IT लाभ: इस समझौते से दवाओं की स्वीकृति में तेजी आएगी और IT क्षेत्र में दोहरे कराधान की समाप्ति होगी, जिससे भारत की IT कंपनियों को प्रतिस्पर्द्धात्मक बढ़त मिलेगी और लाखों की बचत होगी।
- रोज़गार सृजन और कौशल विनिमय: ECTA से भारत में 1 मिलियन रोज़गार सृजित होने की उम्मीद है, जिसमें भारतीय योग शिक्षकों, रसोइयों और अध्ययन के बाद कार्य वीज़ा के माध्यम से 100,000 छात्रों को लाभ मिलेगा। इससे दोनों देशों में कौशल विनिमय और रोज़गार के अवसरों को बढ़ावा मिलता है।
- भू-राजनीतिक महत्त्व: ECTA भारत-ऑस्ट्रेलिया संबंधों को मज़बूत करता है, क्वाड, इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क फॉर प्रॉसपेरिटी (IPEF) और सप्लाई चेन रेज़ीलियेंस इनिशिएटिव (SCRI) जैसे रणनीतिक समूहों में सहयोग को गहरा करता है, आर्थिक और भू-राजनीतिक हितों को संरेखित करता है।
- टैरिफ में कटौती: इस समझौते से ऑस्ट्रेलियाई व्यवसायों को भारत में 85% से अधिक वस्तुओं पर टैरिफ-मुक्त निर्यात की अनुमति मिली तथा जनवरी 2026 तक यह आँकड़ा बढ़कर 90% हो जाएगा।
भारत-ऑस्ट्रेलिया ECTA के अंतर्गत द्विपक्षीय व्यापार किस प्रकार विकसित हुआ है?
- व्यापार में वृद्धि: समझौते के लागू होने के बाद से द्विपक्षीय व्यापार दोगुने से भी अधिक हो गया है। वर्ष 2020-21 में 12.2 बिलियन अमरीकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2022-23 में 26 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गया।
- व्यापार की गति मज़बूत बनी हुई है तथा ऑस्ट्रेलिया को भारत का निर्यात 14% बढ़ रहा है।
- वर्ष 2024 के पहले आठ महीनों में कुल द्विपक्षीय व्यापार 16.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया, जो एक मज़बूत व्यापार साझेदारी को दर्शाता है।
- निर्यात और आयात उपयोगिता: दोनों देशों के बीच तरजीही आयात डेटा विनिमय वर्ष 2023 में शुरू हुआ, जो प्रभावी कार्यान्वयन को दर्शाता है।
- निर्यात उपयोगिता 79% है, जबकि आयात उपयोगिता थोड़ा अधिक 84% है।
- क्षेत्रीय विकास: वस्त्र, रसायन और कृषि जैसे प्रमुख क्षेत्रों को इस समझौते से काफी लाभ हुआ है।
- निर्यात में विविधता आई है, तथा हीरे-जड़ित स्वर्ण और टर्बोजेट जैसे नए उत्पादों को प्रमुखता मिल रही है।
- कच्चा माल: भारत द्वारा धातु अयस्कों, कपास और लकड़ी जैसे कच्चे माल के आयात ने इसके उद्योगों को बढ़ावा दिया है, जो व्यापार साझेदारी की पूरक प्रकृति को उज़ागर करता है।
भारत-ऑस्ट्रेलिया आर्थिक संबंधों के भविष्य का विजन क्या है?
- व्यापक आर्थिक सहयोग समझौता (CECA): ECTA की सफलता के आधार पर, भारत-ऑस्ट्रेलिया व्यापक आर्थिक सहयोग समझौता (CECA) अब प्रगति पर है।
- 10 औपचारिक दौरों और कई अंतर-सत्रीय चर्चाओं के साथ, CECA का लक्ष्य व्यापार संबंधों को और भी आगे बढ़ाना है।
- व्यापार लक्ष्य: दोनों देशों ने वर्ष 2030 तक व्यापार को 100 बिलियन ऑस्ट्रेलियाई डॉलर तक बढ़ाने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है। यह लक्ष्य द्विपक्षीय व्यापार संबंधों को गहरा करने और आपसी समृद्धि को बढ़ावा देने के लिये साझा प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
- वैश्विक आर्थिक प्रभाव: गहन आर्थिक एकीकरण पर ध्यान केंद्रित करते हुए, भारत और ऑस्ट्रेलिया अपनी साझेदारी को मज़बूत बनाने तथा अधिक लचीली, गतिशील वैश्विक अर्थव्यवस्था में योगदान देने के लिये तत्पर हैं।
भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच अन्य व्यापार समझौते
- दोहरा कराधान परिहार समझौता (डीटीएए): दोनों देशों में अर्जित आय पर दोहरे कराधान को रोकने, कर बोझ को कम करने और सुचारू व्यापार संचालन की सुविधा प्रदान करने के लिये 1991 में लागू किया गया।
- द्विपक्षीय निवेश संधि (BIT): वर्ष 1994 की द्विपक्षीय निवेश संधि को भारत द्वारा वर्ष 2017 में समाप्त कर दिया गया था। दोनों देश द्विपक्षीय निवेशों की सुरक्षा और बढ़ावा देने के लिये एक नई निवेश संधि की खोज कर रहे हैं।
- क्षेत्र-विशिष्ट समझौते: शिक्षा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, रक्षा और कृषि जैसे क्षेत्रों में कई समझौता ज्ञापन मौजूद हैं, जो सहयोग और ज्ञान के आदान-प्रदान को बढ़ावा देंगे।
भारत-ऑस्ट्रेलिया व्यापार में चुनौतियाँ क्या हैं?
- निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता: अन्य बाज़ारों के साथ एक दूसरे के पूरक व्यापारिक प्रोफाइल के बावजूद, ऑस्ट्रेलिया की तुलना में भारत की प्रतिस्पर्द्धात्मकता अभी भी कम है।
- अन्य बाज़ारों पर ध्यान: भारत सऊदी अरब, कुवैत और श्रीलंका जैसे बाज़ारों में बेहतर प्रदर्शन करता है, लेकिन ऑस्ट्रेलिया जैसे दूर स्थित पूर्वी बाज़ारों में इसका प्रदर्शन निराशाजनक है।
- गैर-टैरिफ बाधाएँ (NTB)- ऑस्ट्रेलिया में भारत के समक्ष आने वाली NTB में से 32% सैनिटरी और फाइटो-सैनिटरी (SPS) उपायों से उत्पन्न होती हैं, जो विशेष रूप से कृषि उपज को प्रभावित करती हैं।
- विश्व व्यापार संगठन (WTO) का SPS समझौता यह गारंटी देता है कि खाद्य पदार्थों में हानिकारक पदार्थ या रोगाणु नहीं होंगे, तथा WTO सदस्यों के बीच किये गए उत्पाद के व्यापार से कीट और बीमारियाँ नहीं फैलेगी।
- व्यापक FTA का अभाव: वर्तमान समझौते सरकारी खरीद, डिजिटल व्यापार और उत्पत्ति के नियमों जैसे मुद्दों को पूरी तरह से संबोधित नहीं करते हैं, जिससे व्यापार ढाँचे में अंतराल बना रहता है।
- ऑस्ट्रेलिया में वर्ष 2025 में होने वाले आगामी संघीय चुनावों ने व्यापक आर्थिक सहयोग समझौते (CECA) पर प्रगति को धीमा कर दिया है, जिससे व्यापार चुनौतियों के समाधान में देरी हो रही है।
आगे की राह:
- साझेदारी का लाभ उठाना: व्यापार लचीलापन बढ़ाने के लिये क्वाड जैसे रणनीतिक ढाँचों के माध्यम से सहयोग को गहरा करना। एकल-स्रोत बाज़ारों पर निर्भरता कम करने के लिये आपूर्ति शृंखला विविधीकरण पर समन्वय स्थापित करना।
- CECA को अंतिम रूप देना: अधिक मज़बूत और समावेशी व्यापार ढाँचे के लिये सरकारी खरीद, डिजिटल व्यापार, उत्पत्ति के नियमों और बौद्धिक संपदा में अंतराल को दूर करने के लिये CECA वार्ता में तेज़ी लाना।
- निवेश को प्रोत्साहित करना: निवेश की सुरक्षा और नवाचार को बढ़ावा देने के लिये एक नई द्विपक्षीय निवेश संधि (BIT) को अंतिम रूप प्रदान करना।
- पारस्परिक मान्यता समझौतों के माध्यम से SPS उपायों पर ध्यान देकर गैर-टैरिफ बाधाओं (NTB) से निपटना और निर्यात के लिये अनुपालन को सरल बनाना।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: भारत-ऑस्ट्रेलिया संबंधों को बढ़ाने में भारत-ऑस्ट्रेलिया आर्थिक सहयोग एवं व्यापार समझौता की भूमिका का आकलन कीजिये। यह समझौता भारत की रणनीतिक और आर्थिक प्राथमिकताओं के साथ किस प्रकार संरेखित है? चर्चा कीजिये |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा,विगत वर्ष के प्रश्न:प्रिलिम्सप्रश्न. निम्नलिखित देशों पर विचार कीजिये:(2018)
उपर्युक्त में से कौन आसियान (ASEAN) के 'मुक्त-व्यापार भागीदारों' में शामिल हैं? (A) 1, 2, 4 और 5 उत्तर: C व्याख्या:
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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
पेगासस स्पाइवेयर एवं इसकी निगरानी संबंधी चिंताएँ
प्रिलिम्स के लिये:पेगासस स्पाइवेयर, स्पाइवेयर, ज़ीरो-डे वल्नरेबिलिटी, फिशिंग, RTI, भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम 1885, भारतीय टेलीग्राफ नियम 2007, IT अधिनियम 2000, इंटरसेप्शन नियम 2009, निजता का अधिकार, अनुच्छेद 21, केएस पुट्टास्वामी केस 2017, वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार, संसदीय निरीक्षण, अनुच्छेद 32 और 226, सर्वोच्च न्यायालय, डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम 2023, एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन। मेन्स के लिये:स्पाइवेयर एवं निजता संबंधी चिंताएँ, साइबर हमले। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
पेगासस स्पाइवेयर द्वारा निगरानी किये जाने से इसके दुरुपयोग को लेकर भारत सहित विश्व भर में विवाद को जन्म मिला है, जिससे निजता एवं मूल अधिकारों से संबंधित गंभीर चिंताएँ पैदा हुई हैं।
- हाल ही में एक अमेरिकी कोर्ट ने फैसला सुनाया कि पेगासस स्पाइवेयर ने भारत के 300 उपयोगकर्त्ताओं सहित 1,400 व्हाट्सएप उपयोगकर्त्ताओं की निगरानी करके कंप्यूटर धोखाधड़ी एवं दुरुपयोग अधिनियम, 1986 का उल्लंघन किया है।
पेगासस स्पाइवेयर क्या है?
- परिचय:
- पेगासस स्पाइवेयर को NSO ग्रुप (जो वर्ष 2010 में स्थापित एक इज़रायली साइबर सुरक्षा फर्म है) द्वारा विकसित किया गया है। यह डेटा पर नज़र रखने, बातचीत रिकॉर्ड करने, फोटो कैप्चर करने एवं ऐप डेटा तक पहुँचने के लिये iOS एवं एंड्रॉइड डिवाइस को हैक करने में सक्षम है।
- स्पाइवेयर एक दुर्भावनापूर्ण सॉफ्टवेयर है जिससे उपयोगकर्त्ता की सहमति के बिना गुप्त रूप से डिवाइस पर नज़र रखने के साथ जानकारी एकत्र की जाती है।
- विशेषताएँ:
- उन्नत उपयोग: इसके तहत iOS डिवाइसों को दूरस्थ रूप से जेलब्रेक करने के लिये ज़ीरो-डे वल्नरेबिलिटी का उपयोग किया जाता है जबकि एंड्रॉइड संस्करण डिवाइसों की निगरानी के लिये फ्रामारूट जैसे सॉफ्टवेयर का उपयोग किया जाता है।
- ज़ीरो-डे वल्नरेबिलिटी इस सॉफ्टवेयर में एक गुप्त सिक्योरिटी फ्ला है जिसके लिये कोई डिफेंस या पैच उपलब्ध नहीं है।
- रूटिंग का आशय किसी डिवाइस को अनलॉक या जेलब्रेक करने की प्रक्रिया है जैसे कि स्मार्टफोन या टैबलेट, ताकि इस पर नियंत्रण प्राप्त किया जा सके।
- इनविज़िबिलिटी: इसका कार्य गोपनीय है तथा फिशिंग लिंक पर क्लिक करने के बाद ब्राउज़र बंद होने के अलावा इसका कोई भी स्पष्ट संकेत दिखाई नहीं देता है।
- उन्नत उपयोग: इसके तहत iOS डिवाइसों को दूरस्थ रूप से जेलब्रेक करने के लिये ज़ीरो-डे वल्नरेबिलिटी का उपयोग किया जाता है जबकि एंड्रॉइड संस्करण डिवाइसों की निगरानी के लिये फ्रामारूट जैसे सॉफ्टवेयर का उपयोग किया जाता है।
- पेगासस क्लाइंट और संबंधित विवाद:
- NSO समूह के अनुसार, पेगासस का उपयोग विश्व भर की सरकारों तक ही सीमित है।
- पेगासस विवादास्पद है क्योंकि इसका उद्देश्य आतंकवाद एवं अपराध को रोकने के बजाय सरकारों द्वारा पत्रकारों, विपक्षी नेताओं, कार्यकर्त्ताओं एवं आलोचकों की जासूसी के लिये किया जा सकता है।
भारत में पेगासस का उपयोग कैसे किया गया?
- पेगासस परियोजना: एक वैश्विक सहयोगी जाँच में बताया गया कि इज़रायली NSO समूह द्वारा विकसित पेगासस स्पाइवेयर का उपयोग करके 300 से अधिक सत्यापित भारतीय मोबाइल नंबरों को लक्षित किया गया था।
- इसमें मंत्रियों, विपक्षी नेताओं, पत्रकारों, वकीलों, व्यापारियों, वैज्ञानिकों, मानवाधिकार कार्यकर्त्ताओं और सरकारी अधिकारियों को निशाना बनाया गया था।
- एमनेस्टी इंटरनेशनल रिसर्च: एमनेस्टी इंटरनेशनल की सिक्योरिटी लैब द्वारा पुष्टि की गई कि पेगासस का इस्तेमाल 37 फोन को निशाना बनाने के लिये किया गया था, जिनमें से 10 भारतीयों के थे।
- भीमा कोरेगाँव मामला: वर्ष 2019 में, पेगासस का कथित तौर पर भीमा कोरेगाँव मामले और महाराष्ट्र तथा छत्तीसगढ़ में दलित अधिकार आंदोलनों से जुड़े वकीलों एवं कार्यकर्त्ताओं के खिलाफ इस्तेमाल किया गया था।
- RTI प्रतिक्रिया: केंद्र सरकार ने वर्ष 2013 में एक RTI अनुरोध के जवाब में प्रत्येक महीने 7,500 से 9,000 टेलीफोन इंटरसेप्शन वारंट जारी करने का खुलासा किया।
- हालाँकि, अब ऐसी सूचना के लिये RTI अनुरोधों को राष्ट्रीय सुरक्षा और व्यक्तियों की शारीरिक सुरक्षा को खतरा बताते हुए अस्वीकार कर दिया जाता है।
- व्हाट्सएप के आरोप: व्हाट्सएप ने आरोप लगाया कि अप्रैल, 2018 और मई, 2020 के बीच, NSO ग्रुप द्वारा "हेवन (Heaven)", "ईडन (Eden)" और "इराइज्ड (Erised)" नामक इंस्टॉलेशन वैक्टर (प्रवेश बिंदु) विकसित करने के लिये अपने सोर्स कोड को रिवर्स-इंजीनियरिंग और डीकंपाइल किया गया था, ये सभी "हमिंगबर्ड (Hummingbird)" नामक एक परिष्कृत हैकिंग सूट का हिस्सा थे, जिसे NSO ग्रुप ने अपने सरकारी ग्राहकों को बेचा था।
निगरानी और डेटा संरक्षण के लिये भारत का कानूनी ढाँचा क्या है?
- दूरसंचार अधिनियम, 2023: दूरसंचार अधिनियम, 2023 की धारा 20(2) केंद्र या राज्यों को सार्वजनिक आपात स्थितियों, आपदाओं या सार्वजनिक सुरक्षा के दौरान दूरसंचार सेवाओं या नेटवर्क का अस्थायी रूप से नियंत्रण लेने का अधिकार प्रदान करती है।
- हालाँकि, भारतीय टेलीग्राफ नियम, 2007 के नियम 419(ए) में वैध संचार अवरोधन के लिये सरकारी प्राधिकरण की आवश्यकता है।
- सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) अधिनियम, 2000: सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 69 और इंटरसेप्शन नियम, 2009 सरकार को कंप्यूटर संसाधन के माध्यम से किसी भी सूचना की निगरानी, अवरोधन या डिक्रिप्ट करने की अनुमति प्रदान करते हैं।
- डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण (DPDP) अधिनियम, 2023: DPDP अधिनियम, 2023 एक व्यापक गोपनीयता और डेटा संरक्षण कानून है जिसमें सहमति (Consent), वैध उपयोग (Legitimate Uses), उल्लंघन, डेटा न्यासीय (Data Fiduciary) और प्रोसेसर रिस्पान्सबिलिटी और अपने डेटा पर व्यक्तियों के अधिकारों से संबंधित प्रावधान शामिल हैं।
भारत में निगरानी से संबंधित क्या चुनौतियाँ हैं?
- मौलिक अधिकारों पर प्रभाव: निगरानी प्रत्यक्ष रूप से संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत निजता के अधिकार का उल्लंघन करती है, जैसा कि के.एस पुट्टस्वामी केस, 2017 में चर्चा की गई है।
- नागरिकों की गतिविधियों पर नज़र रखने के लिये निगरानी प्रणालियों का अस्तित्व ही अनुच्छेद 19(1)(A) के तहत मुक्त भाषण को हतोत्साहित करता है।
- अनुच्छेद 19(1)(A) के अनुसार, सभी नागरिकों को वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार होगा, जिसे कुछ शर्तों के तहत सीमित किया जा सकता है, हालाँकि आमतौर पर इसे भारत की संप्रभुता, अखंडता या सार्वजनिक व्यवस्था को प्रभावित करने के आधार पर अस्वीकार कर दिया जाता है।
- पारदर्शिता का अभाव: संसदीय या न्यायिक नियंत्रण न होने के कारण निगरानी गुप्त रूप से की जाती है।
- कार्यपालिका के पास असंगत शक्ति है, जो संविधान में निहित शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत को कमज़ोर करती है।
- न्यायालय में जाने में असमर्थता: निगरानी के शिकार व्यक्ति न्यायालय में जाने या अपनी शिकायत दर्ज कराने में सक्षम नहीं होते, क्योंकि उन्हें स्वयं ऐसी निगरानी के बारे में जानकारी नहीं होती।
- इससे अनुच्छेद 32 और 226 कमजोर होते हैं जो नागरिकों को अपने मौलिक और अन्य अधिकारों के प्रवर्तन के लिये उपाय तलाशने का अधिकार देते हैं।
- कार्यपालिका का अतिक्रमण: संवैधानिक पदाधिकारियों, जैसे कि सर्वोच्च न्यायालय के वर्तमान न्यायाधीशों, की निगरानी की रिपोर्ट, कार्यपालिका के अतिक्रमण के विरुद्ध सुरक्षा उपायों के अभाव को उज़ागर करती है।
- स्वतंत्र अभिव्यक्ति का दमन: निगरानी का भय खुली चर्चा, रचनात्मकता और असहमति को रोकता है, जो एक जीवंत लोकतंत्र के लिये आवश्यक हैं।
आगे की राह
- न्यायिक निगरानी: निगरानी गतिविधियों के लिये न्यायिक निगरानी शुरू करना महत्त्वपूर्ण है। न्यायालयों को यह समीक्षा करने का अधिकार दिया जाना चाहिये कि क्या निगरानी आवश्यक, आनुपातिक और संवैधानिक अधिकारों के अनुरूप है।
- सामूहिक निगरानी को रोकना: एक आनुपातिकता परीक्षण शुरू किया जाना चाहिये, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि निगरानी का उपयोग केवल तभी किया जाए जब बिल्कुल आवश्यक हो और कम आक्रामक विकल्प समाप्त हो जाएं।
- स्पाइवेयर के उपयोग को सीमित करना: वैश्विक स्तर पर, साइबर सुरक्षा और पेगासस जैसे स्पाइवेयर निर्यात के दुरुपयोग को रोकने के लिये सख्त दिशा-निर्देशों की आवश्यकता है। उपयोगकर्त्ताओं के डेटा को अनधिकृत निगरानी से बचाने के लिये एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन और अन्य सुरक्षा प्रोटोकॉल को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: भारत में निगरानी कानूनों पर चर्चा कीजिये। पेगासस जैसी आधुनिक निगरानी तकनीकों द्वारा उत्पन्न चुनौतियों का समाधान करने के लिये किन सुधारों की आवश्यकता है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स प्रश्न. भारत में, किसी व्यक्ति के साइबर बीमा कराने पर, निधि की हानि की भरपाई एवं अन्य लाभों के अतिरिक्त निम्नलिखित में से कौन-कौन से लाभ दिये जाते हैं? (2020)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2 और 4 उत्तर: (b) प्रश्न. भारत में साइबर सुरक्षा घटनाओं पर रिपोर्ट करना निम्नलिखित में से किसके/किनके लिये विधितः अधिदेशात्मक है? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (d) मेन्सप्रश्न. साइबर सुरक्षा के विभिन्न तत्त्व क्या हैं? साइबर सुरक्षा की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए समीक्षा कीजिये कि भारत ने किस हद तक व्यापक राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा रणनीति सफलतापूर्वक विकसित की है। (2022) |