जैव विविधता और पर्यावरण
एनर्जी कॉम्पैक्ट
प्रिलिम्स के लिये:एनर्जी कॉम्पैक्ट्स, पेरिस समझौते, यूएन-एनर्जी, डिकेड ऑफ एक्शन मेन्स के लिये:एनर्जी कॉम्पैक्ट्स की आवश्यकता, NTPC एनर्जी कॉम्पैक्ट लक्ष्य |
चर्चा में क्यों?
नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन (NTPC) लिमिटेड भारत में ऊर्जा क्षेत्र में पहली ऊर्जा कंपनी बन गई है, जिसने ऊर्जा पर संयुक्त राष्ट्र उच्च स्तरीय वार्ता (High-level Dialogue on Energy- HLDE) के हिस्से के रूप में अपने ऊर्जा कॉम्पैक्ट लक्ष्यों को घोषित किया है।
- संयुक्त राष्ट्र, सतत् विकास के लिये 2030 एजेंडा के ऊर्जा संबंधी लक्ष्यों और इन लक्ष्यों के कार्यान्वयन को बढ़ावा देने हेतु सितंबर, 2021 में एक उच्च स्तरीय वार्ता (HLD) आयोजित करने के लिये तैयार है।
- NTPC भारत की सबसे बड़ी विद्युत उत्पादन कंपनी है जो विद्युत मंत्रालय के अधीन है।
प्रमुख बिंदु:
एनर्जी कॉम्पैक्ट्स (प्रतिबद्धताओं और कार्यों के एकीकरण और संयोजन हेतु एक मंच):
- एनर्जी कॉम्पैक्ट्स को यूएन-एनर्जी (UN-Energy) द्वारा संगठित किया जा रहा है और मौजूदा दशक की कार्रवाई के दौरान इसे संगठित एवं अपडेट किया जाना जारी रहेगा।
- ये स्पष्ट, अंतर्निहित कार्रवाइयों के साथ चल रही या नई प्रतिबद्धताएं हैं जो SDG7 के तीन मुख्य लक्ष्यों में से एक या अधिक को आगे बढ़ाएगी।
- SDG7 वर्ष 2030 तक "सभी के लिये सस्ती, विश्वसनीय, टिकाऊ और आधुनिक ऊर्जा" का आह्वान करता है।
- SDG 7 तीन के मुख्य लक्ष्य: ऊर्जा तक पहुँच, नवीकरणीय ऊर्जा, ऊर्जा दक्षता।
- ये सदस्य राज्यों और गैर-राज्य अभिनेताओं, जैसे- कंपनियों, क्षेत्रीय/स्थानीय सरकारों, गैर- सरकारी संगठनों और अन्य स्वैच्छिक प्रतिबद्धताएँ हैं।
- चूँकि सस्ती, स्वच्छ ऊर्जा अन्य सभी SDG और पेरिस समझौते के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये एक पूर्वापेक्षा है, इसलिये एनर्जी कॉम्पेक्ट में परिभाषित कार्यों को SDG एक्सेलेरेशन एक्शन के रूप में माने जाने वाले राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान से सीधे जोड़ा जा सकता है।
एनर्जी कॉम्पैक्ट्स (EC) और राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDCs) के बीच अंतर:
- NDCs सदस्य राज्यों की राष्ट्रीय जलवायु महत्त्वाकांक्षाओं और लक्ष्यों को संबोधित करते हैं जो पेरिस समझौते के तहत कानूनी रूप से आवश्यक हैं और ये संपूर्ण रूप से अर्थव्यवस्था के माध्यम से देश के उत्सर्जन प्रोफाइल पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
- वहीं दूसरी ओर ‘एनर्जी कॉम्पैक्ट्स’ के तहत विशेषतः ऊर्जा प्रणाली और SDG7 पर केंद्रित विभिन्न प्रकार की स्वैच्छिक प्रतिबद्धताएँ, कार्य, पहल और भागीदारी शामिल हैं।
- ये SDG7 लक्ष्यों को कवर करते हैं और इसमें वे लक्ष्य भी शामिल हैं, जो किसी देश के NDCs में परिलक्षित नहीं होते हैं।
- ‘एनर्जी कॉम्पैक्ट्स’ SDG7 से संबंधित सभी हितधारकों के लिये खुला हुआ है, जिसमें व्यवसाय, संगठन और उप-राष्ट्रीय प्राधिकरण शामिल हैं तथा वार्षिक तौर पर प्रतिबद्धताओं को लेकर प्रगति को ट्रैक करने हेतु तंत्र भी शामिल है।
एनर्जी कॉम्पैक्ट्स (EC) की आवश्यकता:
- विश्व स्तर पर ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (GHG) में ऊर्जा क्षेत्र का सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान है, जो औद्योगीकरण की समान प्रवृत्ति को जारी रखे हुए है।
- मौजूदा स्थिति
- 789 मिलियन लोगों तक बिजली की पहुँच नहीं है (वर्ष 2018)।
- 2.8 बिलियन लोगों के पास स्वच्छ खाना पकाने की सुविधा नहीं है (वर्ष 2018)।
- कुल अंतिम ऊर्जा खपत का 17% हिस्सा नवीकरणीय ऊर्जा से आता है (वर्ष 2017)।
- 1.7% ऊर्जा दक्षता सुधार दर (वर्ष 2017)।
NTPC एनर्जी कॉम्पैक्ट लक्ष्य:
- इसने वर्ष 2032 तक 60 GW नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता स्थापित करने का लक्ष्य रखा है। इसका लक्ष्य 2032 तक शुद्ध ऊर्जा तीव्रता में 10% की कमी करना है।
- एनटीपीसी ने घोषणा की है कि वह वर्ष 2025 तक स्वच्छ ऊर्जा अनुसंधान की सुविधा और ऊर्जा मूल्य शृंखला में स्थिरता को बढ़ावा देने के लिये कम-से-कम 2 अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन/समूह बनाएगी।
यूएन-एनर्जी
- यूएन-एनर्जी की स्थापना ‘यूएन सिस्टम चीफ एक्जीक्यूटिव्स बोर्ड फॉर कोऑर्डिनेशन’ (CEB) द्वारा 2004 में ऊर्जा के क्षेत्र में अंतर-एजेंसी सहयोग हेतु संयुक्त राष्ट्र के तंत्र के रूप में की गई थी।
- यह SDG7 और पेरिस जलवायु एजेंडा एवं व्यापक SDG एजेंडा के परस्पर संबंधित लक्ष्यों को प्राप्त करने में देशों का समर्थन करता है।
डिकेड ऑफ एक्शन
- सितंबर 2019 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने महत्त्वाकांक्षी, सार्वभौमिक और समावेशी 2030 एजेंडा के प्रयासों में तेज़ी लाकर सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) को पूरा करने के लिये वर्ष 2021-2030 को ‘डिकेड ऑफ एक्शन’ के रूप में घोषित किया था।
स्रोत: पी.आई.बी.
जैव विविधता और पर्यावरण
पायरोस्ट्रिया लालजी: अंडमान में नई प्रजाति
प्रीलिम्स के लिये:अंडमान और निकोबार, अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ, भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण मेन्स के लिये:महत्त्वपूर्ण नहीं |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में कॉफी फेमली (Coffee Family) के वर्ग से संबंधित एक नई प्रजाति पाइरोस्ट्रिया लालजी (Pyrostria laljii) अंडमान द्वीप समूह में खोजी गई है।
- रिविना अंडमानेंसिस (Rivina Andamanensis) नामक पोकेवीड (Pokeweed ) की एक नई प्रजाति की भी खोज की गई।
- अंडमान और निकोबार (Andaman and Nicobar) 572 द्वीपों का समूह है जो भारत में पौधों की विविधता के मामले में समृद्ध और अद्वितीय स्थान है।
प्रमुख बिंदु
पाइरोस्ट्रिया लालजी के बारे में:
- भारत में जीनस पायरोस्ट्रिया का यह पहला पौधा रिकॉर्ड किया गया है जिसकी लंबाई 15 मीटर है।
- जीनस पाइरोस्ट्रिया से संबंधित पौधे आमतौर पर मेडागास्कर में पाए जाते हैं लेकिन हाल ही में खोजी गई प्रजाति विज्ञान के लिये नई है।
- भारत में जीनस पायरोस्ट्रिया नहीं पाया जाता है बल्कि रुबियासी फैमिली की कई प्रजातियांँ भारत में सामान्यतः पाई जाती हैं।
- रुबियासी फैमिली के सिनकोना, कॉफी, एडिना, हैमेलिया, इक्सोरा, गैलियम, गार्डेनिया, मुसेंडा, रूबिया तथा मोरिंडा पौधों का उच्च आर्थिक मूल्य है।
- भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण द्वारा अंडमान और निकोबार क्षेत्रीय केंद्र के संयुक्त निदेशक लाल जी सिंह के नाम पर इस नई प्रजाति को पायरोस्ट्रिया लालजी नाम दिया गया है।
- पाइरोस्ट्रिया लालजी को अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (International Union for Conservation of Nature’s- IUCN) की रेड लिस्ट में ‘गंभीर संकटग्रस्त’ (Critically Endangered) की सूची में शामिल किया गया है।
विशेषताएँ
- इसमें ट्रंक (Trunk) पर एक सफेद कोटिंग के साथ एक लंबा तना है और क्यूनेट बेस के साथ आयताकार-अंडाकार पत्तियाँ हैं।
- 8 से 12 फूलों के साथ एक छतरीदार पुष्पक्रम इस पेड़ की अन्य विशेषता है जो इसे अन्य प्रजातियों से अलग बनाता है।
भारत में मौजूदगी
- इसकी सूचना सर्वप्रथम दक्षिण अंडमान के वंदूर जंगल से मिली थी। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के अन्य स्थान जहाँ पेड़ स्थित हो सकते हैं, वे हैं जरावा रिज़र्व फॉरेस्ट के पास तिरूर जंगल और चिड़िया टापू (मुंडा पहाड़) जंगल।
रिविना अंडमानेंसिस
- रिविना अंडमानेंसिस नामक पोकेवीड की एक और नई प्रजाति की भी खोज की गई। यह जड़ी-बूटियों तथा झाड़ीदार पौधों के साथ उगने वाले बड़े पेड़ों, छायांकित एवं चट्टानी क्षेत्रों में पाया गया।
- पोकेवीड (फाइटोलैक्का अमेरिकाना), जिसे पोकेबेरी, पोक या अमेरिकन पोकेवीड भी कहा जाता है, एक तेज़ महक वाला पौधा है, जिसमें हॉर्सरैडिश जैसी एक ज़हरीली जड़ होती है।
- यह मूलतः पूर्वी उत्तरी अमेरिका के गीले या रेतीले क्षेत्रों में पाया जाता है। इसमें शराब, कैंडी, कपड़ा और कागज को रंगने के लिये इस्तेमाल किया जाने वाला लाल रंग होता है।
- अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह में पोकेवीड परिवार पेटीवेरियासी की इस नई प्रजाति की यह खोज द्वीपों की वनस्पति प्रणाली में एक और प्रजाति को जोड़ती है।
भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण
परिचय:
- यह देश के जंगली पौधों के संसाधनों पर टैक्सोनॉमिक और फ्लोरिस्टिक अध्ययन करने के लिये पर्यावरण एवं वन मंत्रालय (MoEFCC) के तहत एक शीर्ष अनुसंधान संगठन है।
- इसकी स्थापना वर्ष 1890 में देश जंगली पौधों के संसाधनों की खोज एवं आर्थिक गुणों के साथ पौधों की प्रजातियों की पहचान करने के उद्देश्य से की गई थी।
- इसके नौ क्षेत्रीय वृत्त देश के विभिन्न क्षेत्रों में स्थित हैं। हालाँकि इसका मुख्यालय कोलकाता, पश्चिम बंगाल में स्थित है।
कार्य:
- सामान्य और संरक्षित क्षेत्रों में पादप विविधता की खोज, सूची व प्रलेखन, विशेष रूप से हॉटस्पॉट तथा नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र।
- राष्ट्रीय, राज्य और ज़िला फ्लोरा का प्रकाशन।
- संकटग्रस्त और लाल सूची वाली प्रजातियों की पहचान तथा संरक्षण की आवश्यकता वाले समृद्ध क्षेत्रों की प्रजातियाँ।
- वनस्पति उद्यानों में गंभीर रूप से संकटग्रस्त प्रजातियों का एक्स-सीटू संरक्षण।
- पौधों से जुड़े पारंपरिक ज्ञान (एथनो-बॉटनी) का सर्वेक्षण और प्रलेखन।
- भारतीय पौधों का राष्ट्रीय डेटाबेस विकसित करना, जिसमें हर्बेरियम और जीवित नमूने, वनस्पति चित्र आदि शामिल हैं।
स्रोत: द हिंदू
सामाजिक न्याय
दिव्यांग व्यक्तियों के लिये पदोन्नति में आरक्षण का अधिकार
प्रिलिम्स के लियेसुगम्य भारत अभियान, दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम 2016, दिव्यांगजन अधिकारों संबंधी अन्य संवैधानिक प्रावधान मेन्स के लियेदिव्यांगजनों के लिये पदोन्नति में आरक्षण की आवश्यकता और महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने स्वीकार किया है कि शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्तियों को पदोन्नति में भी आरक्षण का अधिकार है।
- एक दिव्यांग व्यक्ति तब भी पदोन्नति के लिये आरक्षण का लाभ प्राप्त कर सकता है, जब उसे सामान्य वर्ग में भर्ती किया गया हो या अक्षमता की स्थिति रोज़गार प्राप्त करने के बाद उत्पन्न हुई हो।
प्रमुख बिंदु
मामले के विषय में
- यह मामला ‘दिव्यांग व्यक्ति (समान अवसर, अधिकारों का संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995’ के तहत प्रस्तुत एक दावे पर आधारित है।
- इस अधिनियम को दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम 2016 के साथ प्रतिस्थापित किया गया है।
- केरल प्रशासनिक न्यायाधिकरण ने आवेदक की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि सरकार द्वारा 1995 के अधिनियम की धारा 32 के तहत केरल राज्य में भर्ती के नियम, सामान्य नियम और इससे संबंधी आदेशों में पदोन्नति में किसी भी आरक्षण का प्रावधान नहीं किया गया है।
- केरल उच्च न्यायालय ने केरल प्रशासनिक न्यायाधिकरण के फैसले को रद्द कर दिया था।
निर्णय का महत्त्व
- वर्ष 1995 का अधिनियम पदोन्नति में आरक्षण के अधिकार को मान्यता देता है।
- वर्ष 1995 के अधिनियम की धारा 32 के अनुसार, आरक्षण के लिये पदों की पहचान नियुक्ति हेतु एक पूर्वापेक्षा है; लेकिन पदों की पहचान करने से इनकार करके नियुक्ति के लिये मना नहीं किया जा सकता है।
- भर्ती नियमों में आरक्षण के प्रावधान की अनुपस्थिति किसी दिव्यांग व्यक्ति के अधिकार को समाप्त नहीं करती है, क्योंकि दिव्यांग व्यक्ति को यह अधिकार कानून से प्राप्त होता है।
- दिव्यांग व्यक्ति (PwD) को पदोन्नति के लिये आरक्षण दिया जा सकता है, भले ही वह व्यक्ति मूल रूप से PwD कोटे में नियुक्त न हुआ हो।
- इसके अलावा दिव्यांग व्यक्तियों को समान अवसर प्रदान करने का दायित्त्व भर्ती के समय उन्हें आरक्षण देने के साथ समाप्त नहीं होता है।
- विधायी जनादेश दिव्यांग व्यक्तियों को पदोन्नति समेत संपूर्ण कॅॅरियर में प्रगति के लिये समान अवसर प्रदान करता है।
- इस प्रकार यदि दिव्यांग व्यक्तियों को पदोन्नति से वंचित किया जाता है और यदि ऐसा आरक्षण सेवा में शामिल होने के प्रारंभिक चरण तक ही सीमित है तो यह विधायी जनादेश की उपेक्षा होगी ।
- यदि आरक्षण की व्यवस्था नहीं की जाती है तो इसके परिणामस्वरूप दिव्यांग व्यक्ति एक निश्चित पद तक सीमित हो जाएंगे और उनमें मानसिक तनाव बढ़ेगा।
दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016
- यह अधिनियम ‘विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय’ (United National Convention on the Rights of Persons with Disabilities- UNCRPD) के दायित्वों को पूरा करता है, जिस पर भारत ने भी हस्ताक्षर किये हैं।
- इस अधिनियम में विकलांगता को एक विकसित और गतिशील अवधारणा के आधार पर परिभाषित किया गया है:
- अपंगता के मौजूदा प्रकारों को 7 से बढ़ाकर 21 कर दिया गया है।
- इस अधिनियम में मानसिक बीमारी, ऑटिज़्म, स्पेक्ट्रम विकार, सेरेब्रल पाल्सी, मस्कुलर डिस्ट्रॉफी, पुरानी न्यूरोलॉजिकल स्थितियांँ, बोलने और भाषा की विकलांगता, थैलेसीमिया, हीमोफिलिया, सिकल सेल रोग, बहरापर, अंधापन, एसिड अटैक से पीड़ित व्यक्ति तथा पार्किंसंस रोग सहित कई विकलांगताएंँ शामिल हैं, जिन्हें पूर्व अधिनियम में काफी हद तक नज़रअंदाज कर दिया गया था।
- इसके अलावा सरकार को किसी विशेष प्रकार की विकलांगता को अन्य श्रेणी में अधिसूचित करने का अधिकार दिया गया है।
- यह अधिनियम दिव्यांग लोगों हेतु सरकारी नौकरियों में आरक्षण की सीमा को 3%-4% और उच्च शिक्षा संस्थानों में 3%-5% तक बढ़ाता है।
- इस अधिनियम में बेंचमार्क विकलांगता (Benchmark-Disability) से पीड़ित 6 से 18 वर्ष तक के बच्चों के लिये निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था की गई है।
- सरकारी वित्तपोषित शैक्षिक संस्थानों और सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त संस्थानों को दिव्यांग बच्चों को समावेशी शिक्षा प्रदान करनी होगी।
- सुगम्य भारत अभियान (Accessible India Campaign) को मज़बूती प्रदान करने एवं निर्धारित समय-सीमा में सार्वजनिक इमारतों (सरकारी और निजी दोनों) में दिव्यांगजनों की पहुँच सुनिश्चित करने पर बल दिया गया है।
- दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों के लिये मुख्य आयुक्त और राज्य आयुक्त नियामक निकायों के रूप में कार्य करेंगे तथा शिकायत निवारण एजेंसियांँ, अधिनियम के कार्यान्वयन की निगरानी करेंगी।
- दिव्यांगजनों को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिये ‘राष्ट्रीय और राज्य निधि’ (National and State Fund) का निर्माण किया जाएगा।
भारत में दिव्यांगजनों हेतु संवैधानिक ढांँचा:
- राज्य के नीति निदेशक तत्त्वों (DPSP) के अनुच्छेद 41 में कहा गया है कि राज्य अपनी आर्थिक क्षमता एवं विकास की सीमा के भीतर काम, शिक्षा और बेरोज़गारी, वृद्धावस्था, बीमारी तथा अक्षमता के मामलों में सार्वजनिक सहायता के अधिकार को सुरक्षित करने हेतु प्रभावी प्रावधान करेगा।
- राज्य का विषय: विकलांगों और बेरोज़गारों को राहत' (Relief Of The Disabled and Unemployable’ ) का विषय संविधान की सातवीं अनुसूची की राज्य सूची में निर्दिष्ट है।
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य उद्योग उन्नयन योजना
प्रिलिम्स के लिये:प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य उद्योग उन्नयन योजना, एक ज़िला एक उत्पाद मेन्स के लिये:भारत खाद्य प्रसंस्करण उद्योग |
चर्चा में क्यों?
आत्मनिर्भर भारत अभियान के अंतर्गत शुरू की गई ‘प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य उद्योग उन्नयन योजना’ (Pradhan Mantri Formalisation of Micro food processing Enterprises- PMFME) ने 29 जून, 2021 एक वर्ष पूरे किये।
- PMFME योजना वर्तमान 35 राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों में कार्यान्वित की जा रही है।
प्रमुख बिंदु
नोडल मंत्रालय:
- खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय (Ministry of Food Processing Industries- MoFPI)।
विशेषताएँ:
- एक ज़िला एक उत्पाद (ODOP) दृष्टिकोण
- राज्य मौजूदा समूहों और कच्चे माल की उपलब्धता को ध्यान में रखते हुए ज़िलों के लिये खाद्य उत्पादों की पहचान करेंगे।
- ODOP एक खराब होने वाली उपज आधारित या अनाज आधारित या एक क्षेत्र में व्यापक रूप से उत्पादित खाद्य पदार्थ जैसे- आम, आलू, अचार, बाजरा आधारित उत्पाद, मत्स्य पालन, मुर्गी पालन, आदि हो सकते हैं।
- फोकस के अन्य क्षेत्र:
- वेस्ट टू वेल्थ उत्पाद, लघु वन उत्पाद और आकांक्षी ज़िले।
- क्षमता निर्माण तथा अनुसंधान: इकाइयों के प्रशिक्षण, उत्पाद विकास, उपयुक्त पैकेजिंग और सूक्ष्म इकाइयों के लिये मशीनरी का समर्थन करने हेतु राज्य स्तरीय तकनीकी संस्थानों के साथ-साथ MoFPI के अंतर्गत आने वाले शैक्षणिक एवं अनुसंधान संस्थानों को सहायता प्रदान की जाएगी।
- वित्तीय सहायता:
- व्यक्तिगत सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों का उन्नयन: अपनी इकाइयों को अपग्रेड करने की इच्छा रखने वाली मौजूदा व्यक्तिगत सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण इकाइयाँ पात्र परियोजना लागत के 35% पर अधिकतम 10 लाख रुपए प्रति यूनिट के साथ क्रेडिट-लिंक्ड कैपिटल सब्सिडी का लाभ उठा सकती हैं।
- SHG को प्रारंभिक पूंजी: कार्यशील पूंजी और छोटे उपकरणों की खरीद के लिये प्रति स्वयं सहायता समूह (Self Help Group-SHG) सदस्य को 40,000 रुपए का प्रारंभिक वित्तपोषण प्रदान किया जाएगा।
समयावधि: वर्ष 2020-21 से 2024-25 तक पाँच वर्षों की अवधि में।
वित्तपोषण:
- 10,000 करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ यह एक केंद्र प्रायोजित योजना है।
- इस योजना के तहत होने वाले व्यय को केंद्र और राज्य सरकारों के बीच 60:40 के अनुपात में, उत्तर पूर्वी तथा हिमालयी राज्यों के बीच 90:10 के अनुपात में, विधायिका वाले केंद्रशासित प्रदेशों के साथ 60:40 के अनुपात में तथा अन्य केंद्रशासित प्रदेशों के मामले 100% केंद्र सरकार द्वारा साझा किया जाता है।
आवश्यकता:
- असंगठित खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र जिसमें लगभग 25 लाख इकाइयाँ शामिल हैं, खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में 74 प्रतिशत रोज़गार उपलब्ध कराता है।
- असंगठित खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र के समक्ष कई चुनौतियाँ विद्यमान हैं जो उनके प्रदर्शन और विकास को सीमित करती हैं। इन चुनौतियों में आधुनिक प्रौद्योगिकी और उपकरणों तक पहुँच की कमी; संस्थागत प्रशिक्षण का अभाव; संस्थागत ऋण तक पहुँच की कमी; उत्पादों की खराब गुणवत्ता; जागरूकता की कमी; ब्रांडिंग और विपणन कौशल की कमी शामिल हैं।
भारतीय खाद्य उद्योग की स्थिति:
- भारतीय खाद्य और किराना बाज़ार विश्व का छठा सबसे बड़ा बाज़ार है, खुदरा बिक्री में इसका योगदान 70% है।
- देश के कुल खाद्य बाज़ार में भारतीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग की हिस्सेदारी 32% है, जो भारत के सबसे बड़े उद्योगों में से एक है और उत्पादन, खपत, निर्यात तथा अपेक्षित वृद्धि के मामले में पाँचवें स्थान पर है।
- यह विनिर्माण और कृषि में सकल मूल्य वर्धित (GVA) में क्रमशः लगभग 8.80 और 8.39%, भारत के निर्यात में 13% और कुल औद्योगिक निवेश में 6% का योगदान देता है।
खाद्य प्रसंस्करण से संबंधित अन्य योजनाएँ:
- खाद्य प्रसंस्करण उद्योग हेतु उत्पादन लिंक्ड प्रोत्साहन योजना (PLISFPI): घरेलू इकाइयों में निर्मित उत्पादों से बिक्री में वृद्धि पर कंपनियों को प्रोत्साहन देना।
- मेगा फूड पार्क योजना: मेगा फूड पार्क क्लस्टर आधारित दृष्टिकोण के माध्यम से मज़बूत फॉरवर्ड और बैकवर्ड लिंकेज के साथ खेत से बाज़ार तक मूल्य शृंखला के साथ खाद्य प्रसंस्करण के लिये आधुनिक बुनियादी सुविधाओं का निर्माण करते हैं।
स्रोत: पी.आई.बी.
शासन व्यवस्था
गैर-लाभकारी अस्पताल मॉडल अध्ययन: नीति आयोग
प्रिलिम्स के लिये:गैर-लाभकारी अस्पताल मेन्स के लिये:गैर-लाभकारी अस्पताल मॉडल |
चर्चा में क्यों:
हाल ही में नीति आयोग ने देश में गैर-लाभकारी अस्पताल मॉडल (Not-for-Profit Hospital Model) पर एक व्यापक अध्ययन जारी किया।
- यह इस तरह के संस्थानों से जुड़ी सही सूचना की कमी को दूर करने और इस क्षेत्र में मज़बूत नीति निर्माण में मदद करने की दिशा में उठाया गया एक कदम है।
नीति आयोग
- यह भारत सरकार का एक सार्वजनिक नीति थिंक टैंक है, जिसे बॉटम-अप दृष्टिकोण (Bottom-Up Approach) का उपयोग करके आर्थिक नीति-निर्माण प्रक्रिया में भारत की राज्य सरकारों की भागीदारी को बढ़ावा देकर सहकारी संघवाद के साथ सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के उद्देश्य से स्थापित किया गया है।
- इसे योजना आयोग के स्थान पर स्थापित किया गया है। प्रधानमंत्री इसका पदेन अध्यक्ष होता है।
प्रमुख बिंदु:
मुख्य विश्लेषण:
- कम शुल्क (Low Charge):
- अधिकांश गैर-लाभकारी अस्पताल लाभकारी अस्पतालों की तुलना में कम शुल्क लेते हैं।
- ग्रामीण समुदाय आधारित अस्पतालों में शुल्क कम होता है, जबकि ग्रामीण सहकारी अस्पतालों में शुल्क की दरें सरकारी अस्पतालों के समान हैं।
- मनोनयन:
- अधिकांश गैर-लाभकारी अस्पताल राज्य या केंद्र सरकार की स्वास्थ्य देखभाल योजनाओं के साथ सूचीबद्ध हैं।
- व्यय:
- गैर-लाभकारी अस्पताल नैदानिक देखभाल की कम लागत और परिचालन व्यय को कम करने के लिये विभिन्न साधनों (Levers) का उपयोग करते हैं।
- अग्रलिखित साधनों का उपयोग किया जाता है- कार्यबल की मल्टीटास्किंग, आंतरिक स्तर पर बेड, डेंटल चेयर, आदि जैसे उपकरणों का निर्माण।
- गैर-लाभकारी अस्पतालों की परिचालन लागत लाभकारी अस्पतालों की तुलना में कम होती है।
- गैर-लाभकारी अस्पताल नैदानिक देखभाल की कम लागत और परिचालन व्यय को कम करने के लिये विभिन्न साधनों (Levers) का उपयोग करते हैं।
- गुणवत्ता:
- गैर-लाभकारी अस्पतालों की सभी श्रेणियों में गुणवत्तापूर्ण देखभाल पर विशेष ध्यान दिया जाता है, क्योंकि उनमें से अधिकांश के पास अपनी सेवाओं के लिये किसी-न-किसी प्रकार की मान्यता है।
चुनौतियाँ:
- भर्ती:
- अधिकांश अस्पतालों में डॉक्टरों और कर्मचारियों को भर्ती करना और उन्हें सेवा में बनाए रखना मुश्किल होता है।
- प्रतिपूर्ति:
- विलंबित प्रतिपूर्ति और काफी समय से लंबित राशि के कारण उनके नकदी प्रवाह में बाधा पैदा हो रही है और इसका असर उनके संचालन पर पड़ रहा है।
- वित्तपोषण:
- इनमें से कई अस्पताल परोपकार और पूंजीगत व्यय घटकों के लिये अनुदान के रूप में बाहरी वित्तपोषण पर निर्भर हैं, जैसे कि ढाँचागत विस्तार, नई तकनीक की खरीद तथा उन्नत उपकरण।
- अनुपालन बोझ:
- कुछ अस्पतालों (विशेष रूप से दूरदराज़ के क्षेत्रों में स्थित) में ब्लड बैंक, क्लिनिकल एस्टैब्लिशमेंट एक्ट (Clinical Establishments Act) 2010, प्री-कॉन्सेप्शन एंड प्री-नेटल डायग्नोस्टिक टेक्निक्स (Pre-Conception and Pre-natal Diagnostic Techniques) 1994 के संचालन और गुणवत्ता मानकों के उच्च अनुपालन हेतु स्टाफ की आवश्यकता दर्ज की गई।
सुझाव:
- नीतिगत हस्तक्षेप:
- इन अस्पतालों की पहचान करने के लिये लघु और दीर्घकालिक नीतिगत हस्तक्षेप जैसे मानदंड विकसित करना, इन्हें एक प्रदर्शन सूचकांक के माध्यम से रैंकिंग करना आदि।
- कर राहत:
- इन अस्पतालों को बढ़ावा देने के लिये सरकार को चाहिये कि इन अस्पतालों के डोनेशन और सदस्यता शुल्क पर टैक्स छूट बढ़ा दी जाए.
- इनकी विशेषज्ञता का उपयोग करना:
- यह लोक कल्याण की भावना के लिये शीर्ष अस्पतालों को बढ़ावा देना और दूरस्थ क्षेत्रों में सीमित वित्त के साथ मानव संसाधनों के प्रबंधन में इन अस्पतालों की विशेषज्ञता का उपयोग करने की आवश्यकता पर भी प्रकाश डालता है।
गैर-लाभकारी अस्पताल
परिचय
- निजी अस्पतालों को बड़े पैमाने पर लाभकारी अस्पतालों और गैर-लाभकारी अस्पतालों में बाँटा गया है।
- गैर-लाभकारी अस्पतालों में देखभाल की समग्र लागत लाभकारी अस्पतालों की तुलना में लगभग एक-चौथाई कम है।
- लाभ के लिये कार्यरत अस्पताल में रोगियों का 55.3 प्रतिशत हिस्सा है, जबकि देश में गैर-लाभकारी अस्पतालों में केवल 2.7% रोगी हैं।
- रोगियों की सेवा से एकत्र धन से गैर-लाभकारी अस्पताल अपने मालिकों को लाभान्वित नहीं करते हैं। इन अस्पतालों के मालिक अक्सर धर्मार्थ संगठन या गैर-लाभकारी निगम होते हैं।
- इन अस्पतालों में सेवा के लिये शुल्क आमतौर पर लाभकारी अस्पतालों की तुलना में कम होता है और शुल्क से होने वाली आय को अस्पताल में पुनर्निवेश किया जाता है।
- ये अस्पताल भारत में स्वास्थ्य सेवा की अनुपलब्धता और दुर्गमता की चुनौतियों का एक संभावित उपाय हैं।
महत्त्व
- इन अस्पतालों की बुनियादी अवसंरचना, सेवाओं और शुल्कों से देश की वंचित आबादी को ज़रूरतों को पूरा किया जाता है।
- गैर-लाभकारी अस्पताल न केवल उपचारात्मक बल्कि निवारक स्वास्थ्य सेवा भी प्रदान करते हैं।
- यह स्वास्थ्य सेवा को सामाजिक सुधार, सामुदायिक जुड़ाव और शिक्षा से जोड़ता है। यह लाभ की चिंता किये बिना लोगों को लागत प्रभावी स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने हेतु सरकारी संसाधनों और अनुदानों का उपयोग करता है।
- हालाँकि पिछले कुछ वर्षों में इस क्षेत्र पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया गया है।
स्वास्थ्य क्षेत्र में हालिया पहलें
स्रोत: पी.आई.बी.
सामाजिक न्याय
प्रवासी कामगारों के लिये ONORC प्रणाली पर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला
प्रिलिम्स के लियेवन नेशन-वन राशन कार्ड, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय, ग्लोबल हंगर इंडेक्स मेन्स के लियेवन नेशन-वन राशन कार्ड (ONORC) प्रणाली की भूमिका एवं संबंधित मुद्दे ( उद्देश्य, लाभ, प्रौद्योगिकी उपयोग, पहुँच आदि) |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों (UT) को 31 जुलाई, 2021 तक वन नेशन-वन राशन कार्ड (ONORC) प्रणाली को लागू करने का निर्देश दिया।
- यह योजना राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) के तहत आने वाले प्रवासी मज़दूरों को देश के किसी भी हिस्से में अपने राशन कार्ड से किसी भी उचित मूल्य की दुकान से राशन प्राप्त करने की अनुमति देती है।
प्रमुख बिंदु
- भोजन का अधिकार :
- संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के मौलिक अधिकार की व्याख्या मानवीय गरिमा के साथ जीने का अधिकार, भोजन का अधिकार और अन्य बुनियादी आवश्यकताओं को शामिल करने के लिये की जा सकती है।
- प्रवासियों का महत्त्व :
- असंगठित क्षेत्रों (राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) 2017-2018 के आँकड़े के अनुसार) में लगभग 38 करोड़ कर्मचारी कार्यरत हैं।
- इन असंगठित श्रमिकों के पास रोज़गार का कोई स्थायी स्रोत नहीं था और वे अपने घर से दूर विभिन्न स्थानों पर छोटी अवधि के व्यवसायों में लगे हुए थे।
- विभिन्न परियोजनाओं, उद्योगों में लगे इन मज़दूरों का योगदान देश के आर्थिक विकास में काफी वृद्धि करता है।
- डेटाबेस:
- प्रवासी श्रमिकों के पंजीकरण और पहचान हेतु 45.39 करोड़ रुपए के लागत वाले असंगठित श्रमिकों के राष्ट्रीय डेटाबेस (NDUW) पोर्टल का काम पूरा नहीं होने पर श्रम मंत्रालय की आलोचना की गई।
- कोर्ट ने मंत्रालय को 2018 में NDUW मॉड्यूल को अंतिम रूप देने का आदेश दिया था।
- राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के अंतर-राज्य प्रवासी कामगार (रोज़गार और सेवा की शर्तों का विनियमन) अधिनियम, 1979 के तहत सभी प्रतिष्ठानों और लाइसेंस ठेकेदारों को पंजीकृत करने तथा यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि वे अधिकारियों को उनके साथ कार्यरत श्रमिकों का पूरा विवरण प्रदान करें।
- प्रवासी श्रमिकों के पंजीकरण और पहचान हेतु 45.39 करोड़ रुपए के लागत वाले असंगठित श्रमिकों के राष्ट्रीय डेटाबेस (NDUW) पोर्टल का काम पूरा नहीं होने पर श्रम मंत्रालय की आलोचना की गई।
- NFSA के तहत लाभार्थियों का पुनर्निर्धारण:
- केंद्र सरकार राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 की धारा 9 के तहत राज्य के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के तहत कवर किये जाने वाले व्यक्तियों की कुल संख्या को फिर से निर्धारित करने के लिये प्रयास कर सकती है।
‘वन नेशन-वन राशन कार्ड’ प्रणाली
पृष्ठभूमि
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA), 2013 के तहत लगभग 81 करोड़ लाभार्थी किसी भी उचित मूल्य की दुकान (FPS) से सब्सिडी वाले खाद्यान्न प्राप्त करने के हकदार हैं, जिसमें 3 रुपए किलो चावल, 2 रुपए किलो गेहूँ और 1 रुपए किलो मोटा अनाज शामिल है।
- हालाँकि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के लाभार्थी अपने PDS (सार्वजनिक वितरण प्रणाली) के लाभों को कसी विशिष्ट उचित मूल्य की दुकान के अधिकार क्षेत्र से बाहर ले जाने में सक्षम नहीं थे।
- ‘वन नेशन-वन राशन कार्ड’ प्रणाली की शुरुआत करने का उद्देश्य सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधार करना है, जो ऐतिहासिक रूप से किसी विशिष्ट अधिकार क्षेत्र से बाहर लाभ प्रदान करने में सक्षम रही है।
लॉन्च
- ‘वन नेशन-वन राशन कार्ड’ प्रणाली को अगस्त 2019 में लॉन्च किया गया था।
उद्देश्य
- ‘वन नेशन-वन राशन कार्ड’ योजना का उद्देश्य प्रवासी श्रमिकों और उनके परिवार के सदस्यों को NFSA के तहत देश में किसी भी उचित मूल्य की दुकान से रियायती राशन खरीदने में सक्षम बनाना है।
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली में इस सुधार को बढ़ावा देने के लिये केंद्र सरकार ने राज्यों को प्रोत्साहन प्रदान किया है और इसे बीते वर्ष कोविड-19 महामारी के दौरान राज्यों द्वारा अतिरिक्त उधार लेने के लिये एक पूर्व शर्त के रूप में भी प्रस्तुत किया गया था।
प्रौद्योगिकी का उपयोग:
- ‘वन नेशन-वन राशन कार्ड’ योजना ऐसी तकनीक पर आधारित है जिसमें लाभार्थियों के राशन कार्ड, आधार संख्या और इलेक्ट्रॉनिक पॉइंट ऑफ सेल (ePoS) का विवरण शामिल है। यह प्रणाली उचित मूल्य की दुकानों पर ePoS उपकरणों पर बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण के माध्यम से लाभार्थी की पहचान करती है।
- यह प्रणाली दो पोर्टलों के समर्थन से चलती है- ‘सार्वजनिक वितरण प्रणाली का एकीकृत प्रबंधन’ (IM-PDS) पोर्टल और ‘अन्न वितरण’ पोर्टल।
- यद्यपि ‘अन्न वितरण’ पोर्टल राज्य के भीतर यानी इंटर-डिस्ट्रिक्ट और इंट्रा-डिस्ट्रिक्ट लेनदेन का रिकॉर्ड रखता है, जबकि ‘सार्वजनिक वितरण प्रणाली का एकीकृत प्रबंधन’ पोर्टल अंतर-राज्यीय लेनदेन को रिकॉर्ड करता है।
ONORC कवरेज:
- अब तक 32 राज्य और केंद्रशासित प्रदेश ONORC में शामिल हो चुके हैं, जिसमें लगभग 69 करोड़ NFSA लाभार्थियों को शामिल किया गया है।
- चार राज्यों- असम, छत्तीसगढ़, दिल्ली और पश्चिम बंगाल को अभी इस योजना में शामिल करना शेष हैं।
- जबकि 32 राज्यों में अंतर-राज्यीय राशन कार्ड पोर्टेबिलिटी (Inter-State Ration Card Portability) की सुविधा उपलब्ध है, ऐसे लेनदेन की संख्या अंतर-ज़िला (Intra-District ) और इंट्रा-डिस्ट्रिक्ट (Inter-District) लेनदेन की तुलना में बहुत कम है।
लाभ:
- ONORC के तहत एक राज्य के लाभार्थी अपने हिस्से का राशन दूसरे राज्यों में प्राप्त कर सकते हैं जहांँ मूल रूप से राशन कार्ड जारी किया गया था।
- ONORC लाभार्थियों को अपनी पसंद के डीलर को चुनने का अवसर भी देगा।
- यह महिलाओं और अन्य वंचित समूहों के लिये विशेष रूप से फायदेमंद साबित होगा, यह देखते हुए कि कैसे सामाजिक पहचान (जाति, वर्ग और लिंग) तथा अन्य प्रासंगिक कारक (शक्ति संबंधों सहित) PDS तक पहुंँचने में एक मज़बूत पृष्ठभूमि प्रदान करते हैं।
- इससे सतत् विकास लक्ष्य-2 (वर्ष 2030 तक भूख खत्म करना) के तहत निर्धारित लक्ष्य को हासिल करने में मदद मिलेगी। इसके अलावा यह भारत में भूख की खराब स्थिति को भी चिह्नित करेगा जैसा कि ग्लोबल हंगर इंडेक्स (Global Hunger Index) में दिखाया गया है, जिसमें भारत को 107 देशों में 94वाँ स्थान दिया गया है।
स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
ज़ेन गार्डन - काइज़न अकादमी
प्रिलिम्स के लिये:ज़ेन गार्डन- काइज़न अकादमी, भारत-जापान के बीच रक्षा अभ्यास, जापान-ऑस्ट्रेलिया-भारत-अमेरिका चतुर्भुज सहयोग मेन्स के लिये:भारत-जापान संबंध |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय प्रधानमंत्री ने गुजरात के अहमदाबाद मैनेजमेंट एसोसिएशन (AMA) में एक जापानी 'ज़ेन गार्डन - काइज़न अकादमी' (Zen Garden- Kaizen Academy) का उद्घाटन किया।
प्रमुख बिंदु:
परिचय:
- यह AMA में जापान सूचना एवं अध्ययन केंद्र और भारत-जापान मैत्री संघ (IJFA), गुजरात का एक संयुक्त प्रयास है। यह ह्योगो इंटरनेशनल एसोसिएशन (HIA) जापान द्वारा समर्थित है।
- इसमें पारंपरिक जापानी अवयव जैसे- रेड ब्रिज गुज़ेई, शोजी इंटीरियर, ग्लोरी ऑफ तोरी, एक 3-डी आर्ट म्यूरल, फ्यूजन चबुतारो, ताकी वॉटरफॉल, सुकुबाई बेसिन और किमोनो स्क्रॉल हैं।
- यह भारत में जापान की कार्य संस्कृति का प्रचार करेगा और जापान तथा भारत के बीच व्यापार संबंधों को बढ़ाएगा।
- ज़ेन, महायान बौद्ध धर्म का एक जापानी स्कूल है जो अनुष्ठान पूजा या शास्त्रों के अध्ययन के बजाय ध्यान और अंतर्ज्ञान के मूल्यों पर बल देता है। जापान में ज़ेन का आशय भारत में ध्यान के समान है।
- काइज़ेन का तात्पर्य 'बेहतरी के लिये परिवर्तन' या 'निरंतर सुधार' से है। काइज़ेन एक जापानी व्यापार दर्शन है जो सभी कर्मचारियों को शामिल करते हुए कार्य वातावरण को अधिक कुशल बनाकर उत्पादकता में धीरे-धीरे सुधार करने पर केंद्रित है।
भारत-जापान मित्रता:
- भारत और जापान के प्रधानमंत्रियों के बीच हाल की टेलीफोनिक बातचीत के मुख्य हाइलाइटस:
- महामारी के कारण उत्पन्न चुनौतियों को दूर करने के लिये लचीला, विविध और भरोसेमंद आपूर्ति शृंखला बनाने, महत्त्वपूर्ण सामग्रियों एवं प्रौद्योगिकियों की विश्वसनीय आपूर्ति सुनिश्चित करने तथा विनिर्माण व कौशल विकास में नई साझेदारी विकसित करने के लिये मिलकर कार्य करने की आवश्यकता है।
- एक स्वतंत्र और खुले हिंद-प्रशांत की धारणा को साकार करने की दिशा में जापान-ऑस्ट्रेलिया-भारत-अमेरिका चतुर्भुज सहयोग सहित जापान-भारत द्विपक्षीय और बहुपक्षीय सहयोग के महत्त्व की पुष्टि की गई।
- पूर्वोत्तर राज्य में 5जी, पनडुब्बी केबल, औद्योगिक प्रतिस्पर्द्धा को मज़बूत करने और विकास परियोजनाओं जैसे क्षेत्रों में संभावित सहयोग की आवश्यकता है।
- भारत और जापान के मध्य अन्य हालिया सहयोगात्मक पहल:
- हाल ही में भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया ने भारत-प्रशांत क्षेत्र में चीन के प्रभुत्व को प्रतिसंतुलित करने हेतु औपचारिक रूप से सप्लाई चेन रेज़ीलिएंस इनीशिएटिव (Supply Chain Resilience Initiative- SCRI) की शुरुआत की है।
- जापान ने अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में एक परियोजना सहित भारत में कई प्रमुख बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं हेतु कुल 233 बिलियन येन के ऋण और अनुदान को अंतिम मंज़ूरी दे दी है।
- वर्ष 2020 में भारत और जापान के मध्य एक रसद समझौते पर हस्ताक्षर किये गए जो दोनों पक्षों के सशस्त्र बलों को सेवाओं एवं आपूर्ति में सहयोग करने की अनुमति प्रदान करता है। इस समझौते को अधिग्रहण और क्रॉस-सर्विसिंग समझौते (Acquisition and Cross-Servicing Agreement- ACSA) के रूप में जाना जाता है।
- वर्ष 2014 में भारत और जापान ने अपने संबंधों को 'विशेष रणनीतिक एवं वैश्विक साझेदारी' के साथ मज़बूत किया।
- अगस्त 2011 में लागू हुआ भारत-जापान व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता (India-Japan Comprehensive Economic Partnership Agreement- CEPA) वस्तुओं, सेवाओं, व्यक्तियों की आवाजाही, निवेश, बौद्धिक संपदा अधिकार, कस्टम प्रक्रियाओं और अन्य व्यापार संबंधी मुद्दों को कवर करता है।
- रक्षा अभ्यास :
- भारत और जापान के रक्षा बलों के बीच विभिन्न द्विपक्षीय अभ्यासों का आयोजन किया जाता है, जिसमें JIMEX (नौसेना), SHINYUU मैत्री (वायु सेना) और धर्म गार्जियन (थल सेना) आदि शामिल हैं। दोनों देश संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ मालाबार अभ्यास (नौसेना अभ्यास) में भी भाग लेते हैं।
आगे की राह
- जापान से सहायता लेने के अतिरिक्त भारत को यह भी विचार करना होगा कि भारतीय घटक जापान तक कैसे पहुँच सकते हैं और उन्हें जापान में लाभांश कैसे दिया जा सकता है, साथ ही आत्मनिर्भर भारत की धारणा को भी बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
- भारत को कोविड के बाद के संबंधों के मामले को भी देखने की ज़रूरत है, उसे दुनिया के अन्य हिस्सों के साथ अच्छे संबंध सुनिश्चित करना चाहिये ताकि नुकसान से उभर सके और समुद्री क्षेत्रों में चीनी प्रभाव को नियंत्रित कर सके।
- जापान की मदद से भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।