कृषि
खाद्य प्रसंस्करण से कृषकों की आय में बढ़ोतरी होगी?
- 26 Apr 2018
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संदर्भ
पिछले महीने महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र के एक किसान प्रेम सिंह चव्हाण ने थोक मूल्यों में आई गिरावट के बाद टमाटर और फूलगोभी की अपनी पूरी तरह से तैयार फसल को खेत में ही नष्ट कर दिया। इन फसलों के थोक मूल्यों में आई गिरावट के बाद फसल का इतना भी मूल्य प्राप्त नहीं होता कि उन्हें निकटतम बाज़ार में लाने व ले-जाने की लागत तक हासिल हो सके। इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर व्यापक स्तर पर देखा और साझा किया गया। वीडियो में नाराज़ और असहाय चव्हाण फूलगोभी को फेंकते और टमाटर के पौधों को उखाड़ते दिखाई दे रहा है।
- समाचार पत्र मिंट द्वारा किसान प्रेम सिंह से हुई बातचीत में यही बात सामने आई कि खेती के भरोसे जीवन यापन करना और अपने पूरे परिवार की आवश्यकताओं की पूर्ति कर पाना अब आसान काम नहीं रह गया है। ऐसी स्थिति में यदि प्रेम सिंह जैसे किसान अपनी फसलों को मंडी में न्यूनतम लागत पर बेचने की बजाय किसी कांट्रेक्टर (फूड प्रोसेसिंग संबंधी) को बेचते हैं तो यह उनके लिये अधिक फायदेमंद एवं संतोषजनक होगा।
पूरे देश के किसानों की यही हालत है
- यह कहानी केवल प्रेम सिंह की नहीं है बल्कि यह देश के लाखों किसानों की है। पिछले कुछ वर्षों से हम देख रहे हैं कि भले ही वो चाहे कर्नाटक में टमाटर के किसान हों या उत्तर प्रदेश के आलू उत्पादक अथवा मध्य प्रदेश के प्याज उत्पादक सभी की यही कहानी है।
- उचित मूल्य के अभाव में ये अन्नदाता अपनी मेहनत से सींची फसल को सड़क के किनारे फेंक रहा है। अक्सर देखने को मिलता है कि या तो फसलों को खेतों में ही छोड़ दिया जाता है या फिर उनमें आग लगा दी जाती है, नहीं तो उन्हें विरोध स्वरूप सड़क के किनारे फेंक दिया जाता है।
- कृषि उत्पादन में बढ़ती बागवानी फसलों की हिस्सेदारी का ही परिणाम है जो वर्ष 2017-18 में देश में खाद्यान्न उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। इस समयावधि में 30 मिलियन टन खाद्यान्न का उत्पादन किया गया। स्पष्ट है कि देश का पेट भरने वाले अन्नदाता को फसलों के आवर्ती मूल्य में आने वाले उतार-चढ़ाव से सुरक्षित रखा जाना चाहिये।
- इस स्थिति में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र एक अहम् भूमिका का निर्वाह करता है। यह क्षेत्र मूल्य वृद्धि के माध्यम से किसानों को उनके परिश्रम की बेहतर कीमतें प्राप्त करने में एक मह्त्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय द्वारा प्रदत्त जानकारी के अनुसार, वर्तमान समय में भारतीय कृषि उत्पादन का लगभग दसवां हिस्सा संसाधित हो रहा है और मंत्रालय का उद्देश्य इसे वर्तमान स्तर से तीन गुना बढ़ाने का है।
खाद्य प्रसंस्करण क्या है?
- खाद्य प्रसंस्करण उद्योग का तात्पर्य ऐसी गतिविधियों से है जिसमें प्राथमिक कृषि उत्पादों का प्रसंस्करण कर उनका मूल्यवर्धन किया जाता है। उदाहरण के लिये डेयरी उत्पाद, दूध, फल तथा सब्ज़ियों का प्रसंस्करण, पैकेट बंद भोजन तथा पेय पदार्थ खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के अंतर्गत आते हैं।
खाद्य प्रसंस्करण का महत्त्व
- दूध, मांस, समुद्री खाद्य पदार्थों में से हानिकारक कीटाणुओं को समाप्त कर, उनमें अन्य पोषक तत्त्व मिलाकर खाने योग्य बनाने के लिये।
- खाद्य पदार्थों की उत्तरजीविता को बढ़ाने के लिये।
- किसानों का अतिरिक्त लाभ सुनिश्चित करने के लिये।
- नई आर्थिक क्रियाओं को बढ़ावा देने के लिये।
- रोज़गार के नए अवसर सृजित करने हेतु।
- पोषण स्तर में सुधार करना।
- खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना।
- कृषि में विविधता को बढ़ावा देना।
- निर्यात आय को बढ़ावा देना।
भारत की स्थिति
- भारत बहुत बड़ी मात्रा में विदेशों से खाद्य प्रसंस्कृत उत्पाद आयात करता है। वर्तमान में देश में लगभग 370 अरब डॉलर मूल्य के खाद्य पदार्थों की खपत होती है। वर्ष 2025 तक यह आँकड़ा 1 ट्रिलियन डॉलर के स्तर पर पहुँच जाने की संभावना है।
- यह एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें व्यापक स्तर पर कारोबारी निवेश की संभावनाएँ हैं। भारत की संपूर्ण खाद्य मूल्य श्रृंखला में व्यापक अवसर उपलब्ध हैं, जिनमें फसल कटाई के उपरांत सुविधाएँ, लॉजिस्टिक्स, कोल्ड स्टोरेज चेन श्रृंखला और विनिर्माण शामिल हैं।
- खाद्य प्रसंस्करण उद्योग का विस्तार किया जाए तो इसमें रोज़गार की अपार संभावनाएँ मौजूद हैं। महिलाओं के लिये भी इस क्षेत्र में अपार संभावनाएँ हैं, विशेषकर देश के ग्रामीण क्षेत्रों में छोटी खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना करके महिलाओं के लिये सूक्ष्म-उद्यमियों के रूप में उभरने की व्यापक संभावनाएँ हैं।
- खाद्य प्रसंस्करण उद्योग विभिन्न आवश्यक सूचनाओं के ज़रिये किसानों की मदद कर सकता है और खेती करने के बेहतर तरीके भी बता सकता है, ताकि उद्योगों को उच्च गुणवत्ता वाले कच्चे माल सुलभ हों और किसानों को उनकी उपज का वाजिब मूल्य मिल सके।
राष्ट्रीय खाद्य प्रसंस्करण नीति
- इस नीति के अंतर्गत भारत के राष्ट्रीय खाद्य ग्रिड (India’s NATIONAL FOOD GRID) और राष्ट्रीय शीत श्रृंखला ग्रिड (NATIONAL COLD CHAIN GRID) के निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा तथा इसके साथ-साथ देश भर में कोने-कोने में खुदरा बाज़ार तैयार किये जाएंगे।
इसके लाभ क्या-क्या होंगे?
- इस योजना के क्रियान्वयन से राज्यों/केंद्र-शासित प्रदेशों को राज्यों और खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र विकास की कृषि योजनाओं के बीच सामंजस्य स्थापित करने में मदद मिलेगी। इससे कृषि उत्पादकता में वृद्धि होगी जिससे किसानों की आय में भी बढ़ोत्तरी होगी।
- बुनियादी ढाँचे/संस्थागत अंतर को दूर करने के ज़रिये इससे कुशल आपूर्ति श्रृखंला सुनिश्चित करने में भी मदद मिलेगी।
गठन
- कृषि और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री की अध्यक्षता में राष्ट्रीय खाद्य प्रसंस्करण विकास परिषद का गठन किया गया है जिसमें राज्य सरकारों, उद्योग संघ तथा भारत सरकार के संबंधित विभाग शामिल हैं। यह परिषद खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय की एनएमएफपी सहित सभी योजनाओं को दिशा-निर्देश प्रदान करेगी।
उद्देश्य
- एनएमएफपी का मुख्य उद्देश्य मंत्रालय की योजनाओं के कार्यान्वयन को विकेंद्रीकृत करना है जिससे राज्य सरकारों तथा केंद्र-शासित प्रदेश की भी इसमें भागीदारी हो सकेगी।
- खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय की योजनाओं के लाभार्थियों को भी राज्य सरकारों के साथ संबंध बनाने में आसानी होगी।
शीत श्रृंखला और प्रसंस्करण इकाइयों की वास्तविक स्थिति
- शीत श्रृंखला और प्रसंस्करण इकाइयों में बुनियादी ढाँचे के अंतराल से कृषि उपज का एक बड़ा हिस्सा बर्बाद भी होता है।
- लुधियाना के सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्ट हार्वेस्ट इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी (Central Institute of Post-Harvest Engineering and Technology) द्वारा 2015 के एक अध्ययन में यह जानकारी प्रदत्त की गई कि भारत में फलों और सब्ज़ियों के संदर्भ में पोस्ट हार्वेस्ट नुकसान तकरीबन 31,500 करोड़ रुपए रहा।
- इस अध्ययन के अनुसार, उपभोक्ता तक पहुँचने से पहले लगभग 7 से 12% सब्ज़ी उत्पादन बर्बाद हो गया।
- कोल्ड चेन इंफ्रास्ट्रक्चर में अंतराल के आकलन के लिये एनसीसीडी (National Centre for Cold Chain Development - NCCD) द्वारा 2015 में शुरू किये गए एक अध्ययन से पता चलता है कि भारत में फल और सब्ज़ियों के भंडारण के लिये 32 मिलियन टन की स्टोरेज क्षमता निर्मित की गई है, जो 35 मीटर की आवश्यक क्षमता के करीब है, तथापि इस उपज के उपभोक्ताओं तक पहुँचाने में काफी अंतराल आता है।
- अध्ययन से पता चला है कि उत्पाद को उपभोक्ताओं तक पहुँचाए जाने से पहले किसानों को अपने खेतों के समीप तकरीबन 70,000 पैक हाउस (Pack houses) और 9,000 से अधिक रिपेनिंग चैम्बर्स (Ripening chambers) की आवश्यकता है। हालाँकि, वास्तविक रूप में केवल 249 पैक हाउस और 812 रिपेनिंग चैम्बर्स ही मौजूद हैं।
- रिपोर्ट में पाया गया कि ऐसी उपज के लिये जो जल्द ही नष्ट हो जाती है (जैसे – फल और सब्जी) के परिवहन के लिये लगभग 62,000 रेफर या रेफ्रिजेरेटेड वाहनों की आवश्यकता है, जबकि वास्तविक रूप में केवल 9, 000 वाहन ही उपलब्ध हैं।
- इस समस्या का समाधान करने के लिये 2017 में केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना को 6,000 करोड़ रुपए के वित्तीय परिव्यय (चार साल के लिये) के साथ लॉन्च किया था।
प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना
2016 से 2020 की अवधि के लिये खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय द्वारा एक नई केंद्रीय क्षेत्रक योजना ‘संपदा’ (SAMPADA) स्कीम फॉर एग्रो-मरीन प्रोसेसिंग एंड डेवलपमेंट ऑफ एग्रो प्रोसेसिंग क्लस्टर्स के अंतर्गत अन्य योजनाओं को पुनर्संरचित करने का प्रयास किया गया है। विशेषताएँ-
- इस योजना का उद्देश्य कृषि को पूरक बनाना, संसाधनों का आधुनिकीकरण और कृषि उत्पादों के नुकसान को कम करना है।
- यह खाद्य संसाधन मंत्रालय द्वारा चलाई जा रही अन्य योजनाओं के लिये एक ‘अंब्रेला स्कीम’ है।
- मेगा फूड पार्क योजना का उद्देश्य देश में कृषि प्रसंस्करण इकाइयों हेतु आधारभूत संरचना उपलब्ध कराना, डेयरी, मत्स्यन आदि कृषि उत्पादों का मूल्य संवर्द्धन सुनिश्चित करना है।
- इसमें शामिल शीत श्रृंखला और मूल्य संवर्द्धन योजना, परिरक्षण एवं आधारभूत संरचना सुविधाओं की स्थापना में वित्तीय सहायता के माध्यम से बागवानी एवं गैर-बागवानी कृषि उत्पाद की कटाई उपरांत हानि को रोकना है।
- खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय के मुताबिक, इस योजना का उद्देश्य 31,400 करोड़ रुपए से अधिक निवेश अर्जित करना, लगभग एक ट्रिलियन रुपए से अधिक के धन से कृषि उपज को समर्थन प्रदान करना, करीबन 20 मिलियन किसानों को बेहतर कीमतें उपलब्ध कराना तथा 2019-20 तक आधे मिलियन से अधिक रोज़गार के अवसरों का सृजन करना है।
- हालाँकि, कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि भारत के सांस्कृतिक क्रियाकलापों और भू-जलवायवीय स्थितियां यह स्पष्ट करती हैं कि इस देश का उपभोक्ता कब क्या खा सकता है (अर्थात् प्रत्येक मौसम के हिसाब से यहाँ भोजन की आदतें बदलती रहती हैं), जो कि खाद्य प्रसंस्करण उद्योग की वृद्धि को सीमित करने का काम करती हैं।
- भारत में, पश्चिमी देशों के विपरीत 99% ताज़ा कृषि उत्पादों का उपभोग किया जाता है। इसलिये भारत में प्रसंस्करण उद्योग वैसी स्थिति हासिल नहीं कर सकता है जैसी कि पश्चिमी देशों में है। पश्चिमी देशों में सर्दियों का मौसम काफी लंबे समय तक बना रहता है, यही कारण है कि इन्हें अपनी खाद्य आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिये गहन प्रसंस्करण उद्योग की ज़रूरत है।
- वर्षभर किसान विभिन्न प्रकार की सब्ज़ियाँ उत्पादित करते हैं। भारत की जलवायु विविधता के कारण मौसमी सब्ज़ियों का उत्पादन उष्ण मैदानों से होते हुए ठंडे प्रदेशों तक पहुँच जाता है। यही कारण है कि खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में भारी मात्रा में निवेश करने के लिये सरकार पर किसी तरह की कोई अनिवार्य आर्थिक बाध्यता नहीं है।
शीतश्रृंखला, मूल्यवृद्धि तथा परिरक्षण अवसंरचना स्कीम
- इस स्कीम का उद्देश्य खेत से लेकर उपभोक्ता तक सतत् एकीकृत शीतश्रृंखला एवं परिरक्षण अवसंरचना सुविधाएँ उपलब्ध कराना है।
- इनमें उत्पादन स्थलों पर प्री-शीतलन सुविधाएँ, रीफर वैनें, चल शीतलन यूनिटें तथा बागवानी, जैविक उत्पाद, समुद्री उत्पाद, डेयरी, माँस और पॉल्ट्री के लिये प्रसंस्करण/बहु-पद्धति प्रसंस्करण/संग्रहण केंद्रों जैसी अवसंरचना सुविधाओं से सज्जित मूल्यवृद्धि केंद्र शामिल हैं।
- व्यक्ति, उद्यमी समूह, सहकारी समितियाँ, स्व-सहायता समूह (एसएचजीज), कृषक उत्पादन संगठन (एफपीओज), गैर-सरकारी संगठन, केंद्र/राज्य सरकार के सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम जो शीतश्रृंखला समाधानों में व्यापारिक रुचि रखते हैं, स्कीम के अंतर्गत एकीकृत शीतश्रृंखला एवं परिरक्षण अवसंरचना की स्थापना करने के पात्र हैं, साथ ही ये अनुदान राशि का भी लाभ उठा सकते हैं।
- आपको बता दें कि कोल्ड चेन में निवेश को बढ़ावा देने की दृष्टि से वित्त मंत्रालय द्वारा इंफ्रास्ट्रक्चर श्रेणी के तहत कोल्ड चेन को कवर किया गया है।
बाधाएँ एवं समाधान
- उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि भारत में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के अंतर्गत देश की खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने, रोज़गार के अवसरों का सृजन करने, समावेशी विकास सुनिश्चित करने तथा अर्थव्यवस्था में प्रमुख भूमिका निभा पाने की पर्याप्त क्षमताएँ विद्यमान हैं।
- इसके बावजूद ऐसे बहुत से बिंदु हैं जिनके संबंध में गंभीरता से विचार किये जाने की आवश्यकता है, ताकि इस उद्योग की सफलता के मार्ग में आने वाली बाधाओं का निवारण करते हुए देश की आर्थिक संवृद्धि में इसका सुदृढ़ स्थान सुनिश्चित किया जा सके।
- भारत में इस क्षेत्र की सबसे बड़ी समस्या आवश्यक बुनियादी अवसंरचनाओं का अभाव है। भारत में न तो राष्ट्रीय राजमार्गों और न ही डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर की स्थिति इतनी अधिक सशक्त है कि देश के प्रत्येक हिस्से में मौजूद किसान को स्टोर मालिकों से संबद्ध किया जा सके।
- इसके अतिरिक्त उत्पादन की तुलना में देश में शीत भंडारों एवं वेयर हाउसों की संख्या एवं क्षमता भी अपर्याप्त है।
- ध्यातव्य है कि वर्तमान में यह उद्योग विभिन्न राज्य स्तरीय एवं केंद्रीय कानूनों के माध्यम से शासित होता है, जिससे भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है। यदि इसके लिये किसी एक निश्चित निकाय या प्राधिकरण की नियुक्ति की जाती है तो अधिक बेहतर तरीके से इस उद्योग का प्रबंधन किया जा सकता है।
- इसके अलावा न तो भारत में पश्चिमी देशों की भांति खाद्य पदार्थों की जाँच हेतु आधुनिक तकनीक से सुसज्जित प्रयोगशालाएँ मौजूद हैं और न ही यहाँ उपलब्ध जाँच मानकों में एकरूपता ही है। ऐसी स्थिति में निश्चित रूप से विरोधाभास की स्थिति उत्पन्न होती है जिसके कारण न केवल उपभोक्ता बल्कि किसान के मन में भी भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है।
- साथ ही भारत में खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र में आवश्यक अनुसंधान एवं विकास की पर्याप्त कमी नज़र आती है, जिसके कारण इस उद्योग में न तो नवाचार ही हो पाता है और न ही जागरूकता का वातावरण तैयार हो पाता है।
निष्कर्ष
स्पष्ट रूप से यदि इन सभी बाधाओं का निवारण करते हुए आगे की राह प्रशस्त की जाती है तो पश्चिमी देशों की भाँति भारत में भी खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को एक रोज़गार उत्पन्न करने वाले, किसानों की आय में वृद्धि करने वाले, उपभोक्ताओं को ज़रूरत के उत्पाद समय पर उपलब्ध कराने वाले तथा देश की खाद्यान्न संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने वाले महत्त्वपूर्ण घटक के रूप में सूचीबद्ध किया जाने लगेगा। अत्यंत संभावनाशील उद्योग के रूप में यह क्षेत्र न केवल कृषि क्षेत्र के विकास में सहायक होगा बल्कि, पोषण की दृष्टि से भी लाभकारी साबित होगा।
इस विषय में अतिरिक्त जानकारी के लिये पढ़ें :
⇒ खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग की पहल एंव उपलब्धियाँ
⇒ राष्ट्रीय खाद्य प्रसंस्करण नीति
⇒ खाद्य और कृषि आधारित प्रसंस्करण इकाई और कोल्ड चेन बुनियादी ढाँचा