नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 9 दिसंबर से शुरू:   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-जापान संबंध

  • 03 May 2021
  • 12 min read

यह एडिटोरियल दिनांक 29/04/2021 को 'द हिंदू' में प्रकाशित लेख "The Rising Sun in India-Japan Relation" पर आधारित है। इसमें भारत-जापान संबंधों पर चर्चा की गई है।

हाल ही में जापान के प्रधानमंत्री योशिहिदे सुगा एवं अमेरिका के राष्ट्रपति के मध्य द्विपक्षीय वार्ता संपन्न हुई। दोनों देशों के नेताओं ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र के मुद्दे पर व्यापक चर्चा की।

इस बैठक की पृष्ठभूमि दक्षिण और पूर्वी-चीन सागर के साथ-साथ ताइवान स्ट्रेट के क्षेत्रीय विवादों में चीन के आक्रामक दृष्टिकोण को संबोधित करने की आवश्यकता है।

इसके अलावा क्वाड सम्मेलन सफलतापूर्वक आयोजित होने के पश्चात् दोनों दलों ने क्वाड के लिये संयुक्त राज्य अमेरिका, भारत, ऑस्ट्रेलिया और जापान के चार देशों के समूह के लिये अपना निरंतर समर्थन व्यक्त किया।

ज्ञातव्य है कि कोविड-19 महामारी के दौरान यदि स्थिति सही रही तो जापानी प्रधानमंत्री भारत का दौरा करने की योजना बना रहे हैं। अमेरिका के साथ उनका व्यवहार इसका एक पूर्वावलोकन है कि भारत जापान से क्या उम्मीद रखता है।

हिंद-प्रशांत क्षेत्र का रणनीतिक महत्त्व

  • हिंद-प्रशांत क्षेत्र हाल के वर्षों में भू-राजनीतिक रूप से विश्व की विभिन्न शक्तियों के मध्य कूटनीतिक एवं संघर्ष का नया मंच बन चुका है।
  • साथ ही यह क्षेत्र अपनी अवस्थिति के कारण और भी महत्त्वपूर्ण हो गया है।
  • वर्तमान में विश्व व्यापार की 75 प्रतिशत वस्तुओं का आयात-निर्यात इसी क्षेत्र से होता है तथा हिंद-प्रशांत क्षेत्र से जुड़े हुए बंदरगाह विश्व के सर्वाधिक व्यस्त बंदरगाहों में शामिल हैं।
  • वैश्विक GDP के 60 प्रतिशत का योगदान इसी क्षेत्र से होता है। यह क्षेत्र ऊर्जा व्यापार (पेट्रोलियम उत्पाद) को लेकर उपभोक्ता और उत्पादक दोनों राष्ट्रों के लिये संवेदनशील बना रहता है।
  • विदित है कि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में कुल 38 देश शामिल हैं।
  • जानकार मानते हैं कि इस क्षेत्र में उपभोक्ताओं को लाभ पहुँचाने वाले एवं क्षेत्रीय व्यापार एवं निवेश के अवसर पैदा करने हेतु सभी आवश्यक घटक मौजूद हैं।
  • हाल की कुछ घटनाएँ इस क्षेत्र में ज़ोर पकड़ रही भू-आर्थिक प्रतिस्पर्द्धा की तरफ संकेत देती हैं, जिसमें दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाएँ, बढ़ता सैन्य खर्च और नौसैनिक क्षमताएँ, प्राकृतिक संसाधनों को लेकर गलाकाट प्रतिस्पर्द्धा शामिल है।
  • इस प्रकार देखें तो वैश्विक सुरक्षा और नई विश्व व्यवस्था की कुंजी हिंद-प्रशांत क्षेत्र के हाथ में ही है।
  • इसके अंतर्गत एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र दक्षिण चीन सागर आता है। यहाँ आसियान के देश तथा चीन के मध्य लगातार विवाद चलता रहता है। दूसरा महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है- मलक्का का जलडमरूमध्य। इंडोनेशिया के पास स्थित यह जलडमरूमध्य रणनीतिक तथा व्यापारिक दृष्टि से बेहद महत्त्वपूर्ण है।

अमेरिका-जापान वार्ता के मुख्य बिंदु:

  • शिखर वार्ता में दोनों पक्षों ने अपनी संधि,जो पूर्वी-एशिया में लंबे समय तक स्थिरता का स्रोत रही, की पुष्टि की और विवादित सेनकाकू द्वीप और ताइवान जैसे प्रमुख क्षेत्रीय मुद्दों पर साथ खड़े होने का वादा किया। 
  • इसके अलावा संघर्ष की बदलती हुई प्रकृति को देखते हुए दोनों पक्षों ने साइबर सुरक्षा एवं अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में सहयोग के माध्यम से इन क्षेत्रों में चीन की विस्तृत शक्तियों का मुकाबला करना स्वीकार किया है। 5G और क्वांटम कंप्यूटिंग जैसी नई प्रौद्योगिकियों के विकास पर हावी होने की चीनी महत्त्वाकांक्षाओं पर भी चर्चा हुई।
  • नई उभरती हुई प्रौद्योगिकियों में $1.4 ट्रिलियन का निवेश करने की चीन की हालिया घोषणा को देखते हुए दोनों पक्षों ने ‘कंपटेटिव एंड रीज़िलिंसस पार्टनरशिप (Competitiveness and Resilience Partnership- CoRe) की घोषणा करके इस अंतर को पाटने का संकल्प लिया।
  • दोनों पक्षों ने आर्थिक क्षेत्र में चीन की नीतियों, जैसे- बौद्धिक संपदा अधिकारों का उल्लंघन, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, औद्योगिक सब्सिडी देकर व्यापार संतुलन को विकृत करना इत्यादि से मुकाबला करने के लिये ट्रंप-युग की नीतियों को ही जारी रखने का संकेत दिया है। दोनों देशों ने स्वतंत्र और मुक्त हिंद-प्रशांत क्षेत्र के अपने विज़न को भी दोहराया, जो विधि के शासन, नेविगेशन की स्वतंत्रता, लोकतांत्रिक मानदंडों और विवादों को निपटाने के लिये शांतिपूर्ण साधनों के प्रयोग का सम्मान करता है

भारत जापान की आगामी वार्ता में संभावित बिंदु

भारत-जापान शिखर वार्ता

  • चीन का प्रतिसंतुलन: वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं शिंजो आबे ने सुरक्षा के क्षेत्र में चीन के खिलाफ संतुलन की नीति की शुरुआत की थी। नए प्रधानमंत्री से इसे आगे बढ़ाने की उम्मीद की जा सकती है।
  • फ्रंटियर टेक्नोलॉजीज़ में सहयोग: शिंजो आबे के शासन काल के दौरान भारत और जापान ने डिजिटल अनुसंधान और नवाचार के क्षेत्र में साझेदारी की थी। इसके तहत कृत्रिम बौद्धिकता (Artificial Intelligence), 5G, इंटरनेट ऑफ थिंग्स (Internet of Things- IoT) और अंतरिक्ष अनुसंधान के लिये प्रौद्योगिकियों पर कार्य किया जाता रहा है। 
  • आर्थिक सहयोग: दोनों देशों के एजेंडे में आर्थिक संबंधों को मज़बूत करना और बुनियादी ढाँचा विकास में प्राथमिकता सूची में शीर्ष पर रहने की संभावना है।
    • जापान द्वारा 'मेक इन इंडिया' जैसी प्रमुख विनिर्माण पहल हेतु समर्थन की पुष्टि करने की संभावना है।
    • इसके अलावा भारत वर्तमान में पूर्वोत्तर एवं अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण कनेक्टिविटी परियोजनाओं में बुनियादी ढाँचे के निवेश को निरंतर बनाए रखने की कोशिश में रहेगा।
  • बहुपक्षवाद का विकास: दोनों देशों अपनी वार्ता में तीसरे महत्त्वपूर्ण देशों एवं बहुपक्षीय निकायों के लिये एक संयुक्त रणनीति विकसित करने पर ध्यान देंगे।
    • बीते कुछ वर्षों में नई दिल्ली और टोक्यो ने ईरान और अफ्रीका में बुनियादी ढाँचे के निर्माण के लिये सहयोग किया है। म्यांमार और श्रीलंका को महत्त्वपूर्ण सहायता प्रदान की है तथा दक्षिण-पूर्व एशियाई क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने के लिये दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्रों की नीति का समर्थन किया है। 
  • स्वतंत्र और मुक्त हिंद-प्रशांत क्षेत्र की कल्पना को बढ़ावा देना: भारत एवं जापान की आगामी कोई भी वार्ता सुरक्षा रणनीति के तहत क्वाड में साथ बढ़ने एवं एक स्वतंत्र और मुक्त हिंद-प्रशांत क्षेत्र हेतु समर्थन के बिना पूरी नहीं होगी

क्वाड:

  • चतुर्भुज सुरक्षा संवाद’ (QUAD- Quadrilateral Security Dialogue) अर्थात् क्वाड भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के बीच अनौपचारिक रणनीतिक वार्ता मंच है। 
  • यह 'मुक्त, खुले और समृद्ध' भारत-प्रशांत क्षेत्र को सुनिश्चित करने और उसके समर्थन के लिये इन देशों को एक साथ लाता है।
  • क्वाड की अवधारणा औपचारिक रूप से सबसे पहले वर्ष 2007 में जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंज़ो आबे द्वारा प्रस्तुत की गई थी, हालाँकि चीन के दबाव में ऑस्ट्रेलिया के पीछे हटने के कारण इसे आगे नहीं बढ़ाया जा सका।
  • शिंज़ो आबे द्वारा वर्ष 2012 में हिंद महासागर से प्रशांत महासागर तक समुद्री सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और अमेरिका को शामिल करते हुए एक ‘डेमोक्रेटिक सिक्योरिटी डायमंड’ (Democratic Security Diamond) स्थापित करने का विचार प्रस्तुत किया गया।
  • ‘क्वाड’ समूह की स्थापना नवंबर, 2017 में हिंद-प्रशांत क्षेत्र को किसी बाहरी शक्ति (विशेषकर चीन) के प्रभाव से मुक्त रखने हेतु नई रणनीति बनाने के लिये हुई।

आगे की राह

  • डेटा स्थानीयकरण के मुद्दों को हल करना: भारत और जापान को डेटा स्थानीयकरण के मुद्दे पर भारत की असहमति एवं बुडापेस्ट कन्वेंशन जैसे वैश्विक साइबर सुरक्षा समझौतों के प्रति असहमति के बिंदुओं को हल करने का प्रयास करना चाहिये।
  • आर्थिक मोर्चे पर सुधार: हालाॅंकि जापान ने पिछले दो दशकों में भारतीय अर्थव्यवस्था में लगभग 34 बिलियन डॉलर का निवेश किया है; फिर भी जापान भारत का 12वाँ सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है एवं भारत-चीन द्विपक्षीय व्यापार मूल्य के पाँचवें हिस्से के बराबर है। अतः दोनों पक्षों को आर्थिक मोर्चे पर सहयोग बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिये। 

निष्कर्ष

शिंजो आबे ने अपनी पुस्तक "Utsukushii Kuni E" (टुवर्ड्स ए ब्यूटीफुल कंट्री) में आशा व्यक्त की है कि "यदि 10 वर्षों में जापान-भारत के संबंध जापान-यू.एस. एवं जापान-चीन संबंधों से आगे बढ़ जाए तो यह कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी।"

अतः 'न्यू इंडिया' के पास यह मानने की पर्याप्त वजह है कि जापान और भारत दोनों मिलकर विकास के बेहतर परिणामों के लिये प्रयासरत रहेंगे।

अभ्यास प्रश्न: यदि 10 वर्षों में जापान-भारत के संबंध जापान-यू.एस. और जापान-चीन संबंधों से आगे बढ़ जाए तो यह कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी। चर्चा कीजिये।

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow