जैव विविधता और पर्यावरण
अंडमान एवं निकोबार दीप समूह का सतत् विकास
- 05 Jun 2021
- 15 min read
यह एडिटोरियल दिनांक 03/06/2021 को 'द हिंदुस्तान टाइम्स' में प्रकाशित लेख “Developing the sister islands of Indian Ocean” पर आधारित है। इसमें अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह के महत्त्व, सतत् विकास एवं भारत के समुद्री शक्ति बनने में इनकी भूमिका पर चर्चा की गई है।
संदर्भ
अंडमान और निकोबार द्वीप समूह (Andaman and Nicobar Islands- ANI), जिसे 'BAY Islands' के नाम से जाना जाता है, समुद्री और पारिस्थितिकी दृष्टिकोण से भारत के लिये बहुत महत्त्व रखता है। ANI भारत के विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र का लगभग 30% भाग प्रदान करता है।
- ANI एक समृद्ध जैव विविधता का क्षेत्र होने के अलावा, कई आदिवासीयों एवं विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूहों का भी घर है, जिनमें से कुछ विलुप्त होने के कगार पर हैं।
- पिछले कुछ वर्षों में इन द्वीप समूहों के लिये आर्थिक उद्देश्यों के साथ-साथ अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के सैन्यीकरण के लिये काफी परियोजनाएॅं प्रस्तावित की गई हैं।
- भारत को एक समुद्री शक्ति बनाने के लिये इन द्वीपों में जितनी क्षमता है उतना ही इन द्वीपों का पारिस्थितिक महत्त्व भी है; इसे कम करने नही आंका जाना चाहिये। अतः इन द्वीपों का संतुलित विकास योजना ही अंतिम समाधान है।
अंडमान और निकोबार द्वीप समूह (Andaman and Nicobar Islands- ANI)
- ANI की प्राचीनतम जनजातियाॅं: अंडमान और निकोबार द्वीप समूह पाॅंच PVTG (Particularly Vulnerable Tribe Group) का घर है, जिसमें ग्रेट अंडमानी, जारवा, ओंग्स, शोम्पेन और नॉर्थ सेंटेनलीज़ शामिल हैं। ग्रेट निकोबारी एक अनुसूचित जनजाति है।
- अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की जनजातियों की जनसंख्या में पिछले कुछ वर्षों में तेज़ी से गिरावट आई है।
- ANI का महत्त्व: अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और फ्रांस जैसे भारत के प्रमुख समुद्री साझेदार अंडमान और निकोबार के रणनीतिक महत्त्व को स्वीकार करते हैं।
- ये द्वीप न केवल भारत को एक प्रमुख समुद्री शक्ति मानते हैं, बल्कि हिंद महासागर क्षेत्र की सामरिक और सैन्य गतिशीलता को आकार देने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
- ANI के समान द्वीप क्षेत्र: फ्रांस का ला रीयूनियन द्वीप ANI के समान है और रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण समुद्री क्षेत्र दक्षिण-पश्चिम हिंद महासागर में स्थित है।
- हिंद महासागर में ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के भी द्वीप स्थित हैं, जो क्रमशः कोकोस (कीलिंग) द्वीपों और डियागो गार्सिया हैं।
- हालाॅंकि, डियागो गार्सिया की संप्रभुता मॉरीशस द्वारा विवादित है, जिसने संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के प्रस्ताव के माध्यम से समर्थन प्राप्त किया है।
- ANI और रीयूनियन द्वीप हिंद महासागर में रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण द्वीप समूहों की शृंखला का हिस्सा हैं।
वर्तमान में ANI के विकास हेतु योजनाएॅं
- जापान की विदेशों में विकास हेतु सहायता: मार्च 2021 में पहली बार जापान की सरकार ने अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में विकास परियोजनाओं के लिये लगभग ₹265 करोड़ की अनुदान राशि को मंजूरी दी।
- यह द्वीपों के लिये जापान की पहली विदेशी विकास सहायता (Overseas Development Assistance- ODA) पहल है।
- ANI एक समुद्री और स्टार्टअप हब के रूप में: अगस्त, 2020 में प्रधान मंत्री ने घोषणा की थी कि अंडमान और निकोबार द्वीप समूह को "समुद्री और स्टार्टअप हब" के रूप में विकसित किया जाएगा।
- प्रभावी परियोजनाओं के लिये इस द्वीपसमूह के 12 द्वीपों का चयन किया गया है। इस क्षेत्र में समुद्र आधारित, जैविक एवं नारियल आधारित उत्पादों के व्यापार को बढ़ावा देने पर जोर दिया जाएगा।
- ग्रेट निकोबार के लिये नीति आयोग की परियोजना: ग्रेट निकोबार निकोबार द्वीपसमूह का सबसे दक्षिणी द्वीप है।
- नीति आयोग द्वारा जारी प्रस्ताव में एक अंतरराष्ट्रीय कंटेनर ट्रांस-शिपमेंट टर्मिनल, एक ग्रीनफील्ड अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, एक बिजली संयंत्र और एक टाउनशिप परिसर शामिल है, जो 166 वर्ग किमी में फैला है।
- लिटिल अंडमान के लिये नीति आयोग का प्रस्ताव: इस योजना में एक नया ग्रीनफील्ड तटीय शहर बनाना शामिल है, जिसे एक मुक्त व्यापार क्षेत्र के रूप में विकसित किया जाएगा तथा यह सिंगापुर और हांगकांग के तर्ज़ पर विकसित किया जाएगा
ANI से जुड़े मुद्दे
- कनेक्टिविटी की कमी: इस द्वीप समूह, विशेष रूप से लिटिल अंडमान द्वीप, का भारतीय मुख्य भूमि एवं वैश्विक शहरों के साथ बहुत कम संपर्क है।
- भौगोलिक अस्थिरता: द्वीप के समूह अत्यधिक भूकंप सक्रिय क्षेत्र में स्थित हैं।
- वर्ष 2004 के भूकंप और उसके साथ आई सुनामी ने द्वीप श्रृंखला के बड़े हिस्से को तबाह कर दिया।
- निकोबार और कार निकोबार (सबसे उत्तरी निकोबार द्वीप) ने अपनी आबादी का लगभग पाॅंचवां हिस्सा एवं अपने मैंग्रोव का लगभग 90% खो दिया।
- घटती जनसंख्या: वर्ष 1901 की तुलना में वर्ष 2011 में ग्रेट अंडमानी, ओन्गे, जरावा और नॉर्थ सेंटेनलीज़ जैसे मूल समुदायों की जनसंख्या 1,999 से गिरकर 550 हो गई है।
- पारिस्थितिकी रूप से सुभेद्य लिटिल अंडमान द्वीप में बड़े पैमाने पर परियोजनाओं, महामारी और अपंगता की समस्या के कारण ओन्गे जनजाति लगभग विलुप्त हो रही है।
- लिटिल अंडमान के लिये नीति आयोग द्वारा प्रस्तावित विकासात्मक परियोजना में आरक्षित वन का 32% डी-रिज़र्व करना एवं जनजाति हेतु आरक्षित वन के 31% वन को गैर-अधिसूचित करना शामिल है, जिससे जनजातीय समूहों की बस्तियों को खतरे में डाल दिया है।
- ब्लू इकोनॉमी के पहलू: हिंद महासागर में द्वीप राष्ट्रों के सामने आने वाले प्राथमिक मुद्दे में से एक ब्लू इकोनॉमी का मुद्दा है।
- सतत् विकास, अवैध मछली पकड़ने, आपदा प्रबंधन, जलवायु संकट, नवीकरणीय ऊर्जा और अपशिष्ट प्रबंधन जैसे मुद्दे पर्यटन के साथ-साथ द्वीपों के विशिष्ट पारिस्थितिक तंत्र को भी प्रभावित करते हैं।
- विकास और जैव विविधता: पर्यटन और व्यापार को बढ़ावा देने के लिये ANI में कई बुनियादी ढाॅंचा परियोजनाओं का प्रस्तावित किया गया है।
- हालाॅंकि यह द्वीपों को काफी हद तक प्रभावित कर सकते हैं, इससे जैव विविधता का नुकसान भी होगा और वहाॅं की जनजातियों पर लोगों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
- तटीय विनियमन क्षेत्र (Coastal Regulation Zone-CRZ) समिति ने इस शर्त पर ढाॅंचागत परियोजनाओं के लिये मंजूरी दी कि सभी बड़े, मध्यम और छोटे पेड़ों को गिनकर भू-रेखांकित किया जाएगा एवं उन्हें काटा नहीं जाएगा।
- हालाॅंकि, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह एकीकृत विकास निगम (Andaman and Nicobar Islands Integrated Development Corporation-ANIIDCO) उपर्युक्त धारा में संशोधन की मांग कर रहा है ताकि जरूरत पड़ने पर पेड़ों को काटा जा सके।
आगे की राह
- संतुलित विकास: इसमें कोई शक नही है कि ANI का सैन्यीकरण, बुनियादी ढाॅंचे एवं विकासात्मक परियोजनाओं से भारत की रणनीतिक और समुद्री क्षमताओं में बढ़ोतरी होगी, लेकिन इस तरह के विकास को जैव विविधता हॉटस्पॉट (ANI) के निर्मम शोषण की कीमत पर नहीं आनी चाहिये।
- ANI का सतत् विकास: अपनी आर्थिक, पारिस्थितिक और पर्यावरणीय बाधाओं एवं जनजातियों की रक्षा के कानूनों को ध्यान में रखते हुए, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह को अपनी आर्थिक और सैन्य क्षमता को अधिकतम करने के लिये पहले स्थायी रूप से विकसित करना होगा।
- एक स्थायी द्वीप का फ्रेमवर्क न केवल ANI के लिये महत्त्वपूर्ण है, बल्कि हिंद महासागर के अन्य द्वीप राष्ट्रों के लिये भी महत्त्वपूर्ण होगा।
- सिस्टर द्वीप (Sister Islands): रीयूनियन उपर्युक्त चार द्वीप क्षेत्रों में सबसे विकसित द्वीप क्षेत्र है, जो आर्थिक ज़रूरतों के साथ-साथ हिंद महासागर में फ्रांस की सैन्य प्राथमिकताओं के लिये भी उपयुक्त है।
- "सिस्टर सिटीज़" के विचार से "सिस्टर आइलैंड्स" की रूपरेखा तैयार की जा सकती है।
- भारत और फ्रांस को हिंद महासागर में द्वीप विकास के लिये एक स्थायी मॉडल की नींव बनाने के उद्देश्य से सिस्टर द्वीपों की अवधारणा विकसित करने में अंडमान और रीयूनियन के अपने द्वीप क्षेत्रों का उपयोग करने के प्रयास का नेतृत्व करना चाहिये।
- सिस्टर शहरों की तरह, एक सिस्टर आइलैंड अवधारणा भारत और फ्रांस को द्वीप विकास के लिये एक स्थायी ढांचे को सह-विकसित करने की अनुमति देगी।
- हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की विकास योजनाएॅं: यदि भारत को हिंद महासागर में क्षमता निर्माण में पहल एवं समुद्री परियोजनाओं में निवेश करना है तो विकास के लिये एक द्वीप मॉडल पर शोध और निर्माण करने की आवश्यकता है। इस तरह का दृष्टिकोण हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारतीय नेतृत्व वाली पहल के लिये एक नया अवसर भी पैदा करता है।
- जैसा कि भारत और इसके सहयोगी राष्ट्रों के मध्य समान हितों को प्राप्त करने के लिये हिंद-प्रशांत में पहुॅंच और प्रभाव के लिये प्रतिस्पर्द्धा हैं, अतः भारत को रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण द्वीप राष्ट्रों की क्षेत्रीय चिंताओं और चुनौतियों से जुड़ने और उन्हें संबोधित करने की आवश्यकता है।
- IOC की भूमिका: हिंद महासागर आयोग (Indian Ocean Commission- IOC) हिंद महासागर में एकमात्र द्वीप संचालित संगठन है। यह पश्चिमी हिंद महासागर के द्वीपों से जुड़े मुद्दों पर चर्चा कृत है। फ्रांस ने हाल ही में IOC के अध्यक्ष के रूप में पदभार संभाला है। भारत वर्ष 2020 में औपचारिक रूप से एक पर्यवेक्षक के रूप में इस संगठन में शामिल हुआ।
- यह दोनों देशों को एक द्वीप-केंद्रित विकास मॉडल का नेतृत्व करने का अवसर प्रदान करता है।
- भारत हिंद महासागर के साथ-साथ प्रशांत महासागर में फ्रांस के द्वीपीय अनुभवों से भी सीख ले सकता है।
निष्कर्ष
भारत हिंद महासागर में अपने लाभों को बनाए रखना चाहता है, अतः भारत को इस क्षेत्र में चुनौतियों के समाधान हेतु अपने द्वीपीय क्षेत्रों एवं गैर- पारंपरिक सुरक्षा क्षेत्रों का रुख करना चाहिये। अंडमान और रीयूनियन द्वीप ऐसा करने के लिये एक बेहतर प्रारंभिक बिंदु प्रदान करते हैं।
अभ्यास प्रश्न: भारत के लिये विभिन्न क्षेत्रों में अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह की उपयोगिता को देखते हुए इस द्वीप समूह के परिस्थितिकी तंत्र एवं आर्थिक महत्त्व के मध्य सामंजस्य बिठाने की आवश्यकता है। इस कार्य हेतु भारत के प्रमुख समुद्री भागीदार, जिनके हित परस्पर समान हैं, उनसे सहयोग लिया जा सकता है साथ ही, पारस्परिक लाभ भी उठाया जा सकता है।