इंदौर शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 11 नवंबर से शुरू   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


भारतीय राजनीति

हिंद महासागर आयोग

  • 07 Mar 2020
  • 7 min read

प्रीलिम्स के लिये:

हिंद महासागर आयोग, हिंद महासागर में प्रमुख द्वीप और सैन्य बेस

मेन्स के लिये:

हिंद महासागर की भू-राजनीति

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘हिंद महासागर आयोग ’ (Indian Ocean Commision) की सेशल्स में हुई मंत्रिपरिषदीय बैठक में भारत ‘पर्यवेक्षक’ के रूप में इस आयोग में शामिल हुआ।

हिंद महासागर आयोग :

  • हिंद महासागर आयोग एक अंतर-सरकारी संगठन है जो दक्षिण-पश्चिमी हिंद महासागर क्षेत्र में बेहतर सागरीय-अभिशासन (Maritime Governance) की दिशा में कार्य करता है तथा यह आयोग पश्चिमी हिंद महासागर के द्वीपीय राष्ट्रों को सामूहिक रूप से कार्य करने हेतु मंच प्रदान करता है।
  • वर्तमान में हिंद महासागर आयोग में कोमोरोस, मेडागास्कर, मॉरीशस, रियूनियन (फ्राँस के नियंत्रण में) और सेशल्स शामिल हैं।

Seychelles

  • वर्तमान में भारत के अलावा इस आयोग के चार पर्यवेक्षक- चीन, यूरोपीय यूनियन, माल्टा तथा इंटरनेशनल ऑर्गनाइज़ेशन ऑफ ला फ्रांसोफोनी (International Organisation of La Francophonie- OIF) हैं।

पश्चिमी हिंद महासागर:

  • पश्चिमी हिंद महासागर (The Western Indian Ocean- WIO) हिंद महासागर का एक रणनीतिक क्षेत्र है जो अफ्रीका के दक्षिण-पूर्वी तट को न केवल हिंद महासागर से अपितु अन्य महत्त्वपूर्ण महासागारों से भी जोड़ता है।
  • यह क्षेत्र हिंद महासागर के प्रमुख चोकपाॅईंट्स (Chokepoints) में से एक मोजाम्बिक चैनल के पास अवस्थित है, जहाँ कोमोरोस मोजाम्बिक चैनल के उत्तरी मुहाने पर तथा मेडागास्कर चैनल के पश्चिम सीमा पर अवस्थित है।
  • यद्यपि स्वेज नहर के निर्माण के बाद इस चैनल का महत्त्व कम हो गया था लेकिन होर्मुज़ जलसंधि जो बड़े व्यावसायिक जहाज़ों (विशेष रूप से तेल टैंकरों के लिये) का प्रमुख मार्ग है, ने इस चैनल के महत्त्व को पुनः बढ़ा दिया है।

चैनल (Channel):

  • यह जल के दो बड़े क्षेत्रों, विशेष रूप से दो सागरों को जोड़ता है, परंतु इसके जल क्षेत्र की चौड़ाई जलसंधि (Strait) की तुलना में अधिक तथा वेग कम होता है।

मोजाम्बिक चैनल:

  • मोजाम्बिक चैनल का विस्तार लगभग 12°N अक्षांश से मेडागास्कर के दक्षिणी सिरे पर 25°S अक्षांश तक है।
  • मोजाम्बिक चैनल पूरी तरह से पड़ोसी देशों (मोजाम्बिक, मेडागास्कर, कोमोरोस, तंजानिया और फ्राँस शासित द्वीप) के ‘अनन्य आर्थिक क्षेत्र’ (Exclusive Economic Zone- EEZ) में शामिल है।

भारत के लिये महत्त्व:

  • भारत ने इस संगठन में शामिल होने का निर्णय इसकी बहुआयामी महत्ता को ध्यान में रखकर किया है। इससे भारत की पश्चिमी हिंद महासागर के इस प्रमुख क्षेत्रीय आयोग में आधिकारिक पहुँच सुनिश्चित होगी।
  • यह आयोग पश्चिमी हिंद महासागर के द्वीपों के साथ भारत की कनेक्टिविटी को बढ़ावा देगा।
  • भारत वर्तमान में हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपनी स्थिति को मज़बूत कर रहा है, ऐसे में ये द्वीपीय राष्ट्र भारत-प्रशांत क्षेत्र में भारत की रणनीतिक पहुँच के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
  • यह कदम फ्राँस के साथ संबंधों में प्रगाढ़ता लाएगा क्योंकि फ्राँस की पश्चिमी हिंद महासागर में मज़बूत उपस्थिति है।
  • यह भारत की ‘सागर पहल’; क्षेत्र में सभी के लिये सुरक्षा और विकास ( SAGAR- Security And Growth for All in the Region) नीति को और मज़बूत करता है।
  • यह कदम पूर्वी अफ्रीका के साथ सुरक्षा सहयोग में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

भारत के लिये चुनौतियाँ:

  • चीन ने पूर्वी अफ्रीकी देश जिबूती में सैन्य केंद्र, ग्वादर (पाकिस्तान) और हम्बनटोटा (श्रीलंका) में बंदरगाह के निर्माण के साथ इस क्षेत्र में व्यापक उपस्थिति दर्ज कराई है, ऐसे में हिंद महासागर में चीन के दखल के बाद इस क्षेत्र की राजनीतिक व सामरिक तस्वीर पूरी तरह बदल गई है।
  • हिंद महासागर के चोक पॉइंट्स दुनिया में सामरिक दृष्टि से काफी महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं, जिनमें होर्मुज़, मलक्का और बाब अल-मन्देब जलसंधि प्रमुख हैं। ऐसे में बाहरी शक्तियों की उपस्थिति भारत की ऊर्जा सुरक्षा को प्रभावित कर सकती है।
  • यह क्षेत्र सिर्फ व्यापार के लिये ही महत्त्वपूर्ण नहीं है, बल्कि वर्तमान में दुनिया के आधे से अधिक सशस्त्र संघर्ष इसी क्षेत्र में देखे जा रहे हैं। ऐसे में यह क्षेत्र न केवल भारत के लिये भू-राजनीतिक दृष्टि से बल्कि भू-सामरिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण हो जाता है।

हिंद महासागर में विभिन्न देशों की उपस्थिति:

Countries

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में कई ऐसी चुनौतियाँ हैं जो प्रत्यक्ष रूप से भारत के हित को प्रभावित कर सकती हैं। ऐसे में सबसे पहले भारत को अपनी आर्थिक, सामरिक और भू-राजनीतिक शक्तियों का विस्तार करना चाहिये। इस क्षेत्र में चीन और अन्य सुरक्षा चिंताओं से निपटना किसी अकेले देश के लिये संभव नहीं है। अत: भारत को सार्क, बिम्सटेक और आसियान के साथ मिलकर क्षेत्रीय एकता का निर्माण करना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2