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शासन व्यवस्था

प्रवासी मज़दूरों के उत्थान में सरकारी योजनाओं की असफलता

  • 22 Apr 2020
  • 8 min read

प्रीलिम्स के लिये:

असंगठित क्षेत्र, प्रवासी श्रमिक

मेन्स के लिये:

अप्रवासी मज़दूरों से जुड़ी समस्याएँ, असंगठित क्षेत्र से संबंधित सरकार की योजनाएँ  

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में देश में COVID-19 के संक्रमण को रोकने के लिये लागू लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मज़दूरों की समस्याओं को देखकर भविष्य में इस वर्ग को ऐसी चुनौतियों से बचाने के लिये एक बेहतर विधिक प्रणाली की आवश्यकता महसूस हुई है।

मुख्य बिंदु:   

  • 25 मार्च, 2020 को देश में COVID-19 के प्रसार को रोकने के लिये लागू लॉकडाउन के बाद देश के कई हिस्सों में प्रवासी मज़दूरों की समस्याओं में दिन-प्रतिदिन वृद्धि हुई है।
  • इस दौरान मज़दूरों को रोज़गार, आश्रय, भोजन आदि समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
  • इस दौरान देश के कई हिस्सों में सरकारी व्यवस्था इन मज़दूरों की समस्या का समाधान करने में उतनी सफल नहीं रही है।
  • इससे पहले भी देश में प्रवासी मज़दूरों की समस्याओं के समाधान करने के लिये कई कानून जैसे-’ अंतर्राज्यीय प्रवासी श्रमिक अधिनियम, 1979 (Inter-State Migrant Workmen Act- ISMW), 1979’, और  ‘असंगठित श्रमिक सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, {The Unorganised Workers’ Social Security (UWSS) Act}, 2008’ बनाए गए, परंतु कई कारणों से ये अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में असफल रहे हैं।   

अंतर्राज्यीय प्रवासी श्रमिक अधिनियम, 1979:   

  • प्रवासी मज़दूरों की समस्याओं के समाधान के लिये बने कानूनी प्रावधानों में से एक वर्ष 1979 में लागू ‘अंतर्राज्यीय प्रवासी श्रमिक अधिनियम,  1979’  है।  
  • ISMW अधिनियम के अनुसार, अंतर्राज्यीय प्रवासी मज़दूर वह व्यक्ति है जो किसी ठेकेदार (Contractor)  द्वारा या ठेकेदार के माध्यम से भर्ती किया गया हो।
  • साथ ही यह अधिनियम केवल उन संस्थानों पर लागू होता है जहाँ पाँच या इससे अधिक प्रवासी कर्मचारी कार्यरत हों।
    • गौरतलब है कि, देश के असंगठित क्षेत्र में कार्यरत अधिकांश प्रवासी मज़दूर किसी पंजीकृत ठेकेदार के माध्यम से नहीं भर्ती किये जाते ऐसे में प्रवासी मज़दूरों की एक बड़ी आबादी इस अधिनियम का लाभ प्राप्त करने से वंचित रह जाती है।
    • इसके अतिरिक्त यह अधिनियम 5 से कम प्रवासी कर्मचारियों वाले संस्थानों पर लागू नहीं होता अतः यह अधिनियम ऐसे संस्थानों में कार्यरत प्रवासी मज़दूरों की सहायता करने में असफल रहा है।     

प्रवासी मज़दूरों के हितों की रक्षा के लिये अन्य कानूनी प्रावधान:

  • प्रवासी मज़दूरों को सामाजिक सुरक्षा एवं अन्य लाभ प्रदान करने के लिये वर्ष 2008 में ‘असंगठित श्रमिक सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, 2008’ लागू किया गया था।  
  • इस अधिनियम में असंगठित मज़दूर की परिभाषा के तहत घर पर रहकर कार्य करने वाले लोग, स्वरोज़गार से जुड़े लोग और असंगठित क्षेत्र से जुड़े दिहाड़ी मज़दूरों को शामिल किया गया है।  
  • इसके अतिरिक्त भारत सरकार ने हाल के वर्षों में सामाजिक सुरक्षा से जुड़ी कई योजनाओं को लागू किया है।
    • असंगठित क्षेत्रों के कर्मचारियों को वृद्धावस्था में संरक्षण प्रदान करने के लिये प्रधानमंत्री श्रम योगी मान-धन योजना (Pradhan Mantri Shram Yogi Maan-dhan Yojana)।
    • राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली के तहत अटल पेंशन योजना। 
    • आसान शर्तों पर इंश्योरेंस उपलब्ध कराने के लिये ‘प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना’ (Pradhan Mantri Jeevan Jyoti Bima Yojana- PMJJBY)।   
    • दुर्घटना बीमा के लिये प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना (Pradhan Mantri Suraksha Bima Yojana) आदि।
  • UWSS अधिनियम के तहत दो महत्त्वपूर्ण व्यवस्थाएँ दी गई हैं: 
    1. असंगठित क्षेत्र के कर्मचारियों का पंजीकरण 
    2. हर कर्मचारी के लिये अलग पहचान संख्या वाला एक स्मार्ट पहचान पत्र 
  • आँकड़ों से पता चलता है कि सरकार के कई प्रयासों के बावज़ूद भी ये योजनायें अपने अपेक्षित लक्ष्य प्राप्त करने में उतनी सफल नहीं रही हैं।

सरकारी योजनाओं की असफलता के कारण:   

  • सरकार द्वारा लागू अधिकांश योजनाओं में कई योजनाएँ असंगठित क्षेत्र में कार्यरत एक बड़े श्रमिक वर्ग तक पहुँचने में असफल रही हैं।
  • असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों और इस क्षेत्र के रोज़गार के संबंध में एक व्यापक केंद्रीय डेटा के अभाव में सरकारें मज़दूरों की समस्याओं का आकलन करने में असफल रही हैं।
  • सरकार की कई योजनाएँ नागरिकों को उनके राज्यों में ही उपलब्ध होती हैं ऐसे में प्रवासी मज़दूरों को इन योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता है।
  • असंगठित क्षेत्रों में कार्य करने वाले मज़दूरों को अधिकांशतः सरकार की योजनाओं की जानकारी नहीं होती है, ऐसे में जागरूकता और परामर्श के अभाव में बहुत से पात्र लोग भी योजनाओं का लाभ नहीं उठा पाते।

समाधान:

  • वर्तमान आवश्यकताओं के आधार पर सक्रिय अधिनियमों में आवश्यक परिवर्तन किये जाने चाहिये। 
  • कर्मचारियों को आधार कार्ड से जुड़े यूनीक वर्कर्स आइडेंटीफिकेशन नंबर (Unique Worker’s Identification No.) प्रदान कर कई समस्याओं का समाधान किया जा सकता है।
  • प्रवासी मज़दूरों के लिये देश के हर राज्य में  मनरेगा, उज्ज्वला, सार्वजनिक वितरण प्रणाली जैसी योजनाओं को उपलब्ध कराने की व्यवस्था की जानी चाहिये।
  • प्रवासी मज़दूरों के गृह राज्य, आयु, कार्य करने की क्षमता के आधार पर एक विस्तृत डेटाबेस स्थापित किया जाना चाहिये।
  • राज्यों के बीच प्रवासी मज़दूरों से जुड़े विवादों के समाधान हेतु संविधान के अनुच्छेद-263 के तहत स्थापित ‘अंतर्राज्यीय परिषद्’ (The Inter-State Council-ISC) की सहायता ली जा सकती है। 

स्रोत: द हिंदू  

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