शासन व्यवस्था
क्रॉसपैथी
प्रिलिम्स के लिये:होम्योपैथी, भारतीय चिकित्सा संघ, भारतीय चिकित्सा परिषद, भारत का सर्वोच्च न्यायालय, विश्व स्वास्थ्य संगठन, ई-संजीवनी मेन्स के लिये:क्रॉसपैथी, स्वास्थ्य सेवा व्यवसायों का विनियमन, ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच, चिकित्सा लापरवाही और उत्तरदायित्व |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
महाराष्ट्र FDA के निर्देश (जिसमें फार्माकोलॉजी प्रमाण-पत्र वाले होम्योपैथिक चिकित्सकों को एलोपैथिक दवाइयाँ लिखने की अनुमति दी गई है) से "क्रॉसपैथी" के बारे में चिंताएँ उत्पन्न हुई हैं।
- इस निर्णय की भारतीय चिकित्सा संघ (IMA) ने आलोचना की है, जिसके द्वारा चेतावनी दी गई है कि इससे "क्रॉसपैथी" उत्पन्न हो सकती है और मरीजों को नुकसान हो सकता है।
क्रॉसपैथी क्या है?
- क्रॉसपैथी: क्रॉसपैथी का तात्पर्य स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों द्वारा अपनी विशेषज्ञता के मान्यता प्राप्त दायरे से बाहर दवा लिखने या अभ्यास करने से है।
- विशेष रूप से, इसमें वैकल्पिक चिकित्सा प्रणालियों (जैसे आयुर्वेद, योग और प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी (आयुष) ) के चिकित्सक शामिल होते हैं, जो आमतौर पर एलोपैथिक (आधुनिक) चिकित्सा के लिये आरक्षित उपचार निर्धारित करते हैं।
- चिंताएँ: इस पद्धति की अक्सर आलोचना की जाती है, क्योंकि इससे गलत निदान, अनुचित उपचार और रोगी की सुरक्षा को खतरा हो सकता है, क्योंकि ये चिकित्सक आधुनिक चिकित्सा की विधियों एवं प्रथाओं में पूरी तरह से प्रशिक्षित नहीं होते हैं।
- विनियम और कानूनी मिसालें:
- MCI आचार संहिता 2002 : भारतीय चिकित्सा परिषद (MCI) ने भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम, 1956 के तहत भारतीय चिकित्सा परिषद (व्यावसायिक आचरण, शिष्टाचार और नैतिकता) विनियम, 2002 की स्थापना की, जो अयोग्य व्यक्तियों को गर्भपात जैसी चिकित्सा प्रक्रियाओं का संचालन करने या चिकित्सा क्षमता प्रमाण पत्र जारी करने से प्रतिबंधित करता है।
- इसमें यह भी प्रावधान है कि योग्य चिकित्सक चिकित्सा कार्यों के लिये गैर-योग्य कर्मियों को नियुक्त नहीं कर सकते।
- सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय: वर्ष 1996 के एक ऐतिहासिक मामले, पूनम वर्मा बनाम अश्विन पटेल में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक होम्योपैथ को एलोपैथिक दवाएँ लिखने में लापरवाही के लिये उत्तरदायी ठहराया, जिसके कारण रोगी की मृत्यु हो गई।
- न्यायालय ने फैसला दिया कि क्रॉस-सिस्टम प्रैक्टिस चिकित्सा लापरवाही का मामला है।
- बाद के निर्णयों में इसे बरकरार रखा गया है, जिसमें कहा गया है कि क्रॉसपैथी केवल तभी स्वीकार्य है जब संबंधित राज्य सरकार द्वारा स्पष्ट रूप से अधिकृत किया गया हो।
- MCI आचार संहिता 2002 : भारतीय चिकित्सा परिषद (MCI) ने भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम, 1956 के तहत भारतीय चिकित्सा परिषद (व्यावसायिक आचरण, शिष्टाचार और नैतिकता) विनियम, 2002 की स्थापना की, जो अयोग्य व्यक्तियों को गर्भपात जैसी चिकित्सा प्रक्रियाओं का संचालन करने या चिकित्सा क्षमता प्रमाण पत्र जारी करने से प्रतिबंधित करता है।
क्रॉसपैथी को बढ़ावा देने के क्या कारण हैं?
- विशेषज्ञों की कमी: भारत की स्वास्थ्य गतिशीलता 2022-23 पर एक रिपोर्ट में ग्रामीण क्षेत्रों में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (CHC) में विशेषज्ञ डॉक्टरों की 80% कमी पर प्रकाश डाला गया है, जहाँ केवल 4,413 विशेषज्ञ डॉक्टर उपलब्ध हैं, जबकि 21,964 की आवश्यकता है।
- सरकार विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सा पेशेवरों की कमी को दूर करने के लिये आयुष डॉक्टरों को बढ़ावा दे रही है।
- स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच का विस्तार: जून 2022 तक, भारत में 13 लाख से अधिक एलोपैथिक डॉक्टर और 5.5 लाख से अधिक आयुष चिकित्सक थे।
- भारत का डॉक्टर-जनसंख्या अनुपात 1:836 है, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मानक 1:1000 से अधिक है, लेकिन अधिकांश डॉक्टर शहरी क्षेत्रों में केंद्रित हैं, जिससे ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच सीमित हो जाती है।
- क्रॉसपैथी उन दूरदराज के क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा की पहुँच में सुधार करती है जहाँ एलोपैथिक डॉक्टरों की कमी है, तथा यह ग्रामीण मरीजों के लिये किफायती विकल्प उपलब्ध कराती है जो विशेषज्ञों या शहरी सुविधाओं तक नहीं पहुँच पाते हैं।
- खराब कार्य परिस्थितियों और कम पारिश्रमिक MBBS डॉक्टरों को ग्रामीण क्षेत्रों में नौकरी करने से प्रतिबंधित करते हैं।
भारत में क्रॉसपैथी के संबंध में क्या चिंताएँ हैं?
- IMA की चिंताएँ: IMA ने महाराष्ट्र FDA के नवीनतम निर्देश की आलोचना करते हुए तर्क दिया कि राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) अधिनियम, 2019 आयुष डॉक्टरों को एलोपैथी का अभ्यास करने के लिये अधिकृत नहीं करता है।
- महाराष्ट्र का निर्णय राष्ट्रीय नीतियों के विपरीत है, क्योंकि केंद्रीय होम्योपैथी परिषद भी होम्योपैथों को एलोपैथी पद्धति से उपचार करने की अनुमति नहीं देती है।
- IMA का कहना है कि इस तरह की प्रथाएँ मरीजों की सुरक्षा के लिये हानिकारक होंगी तथा इससे लापरवाही या कदाचार की संभावना बढ़ सकती है।
- IMA का तर्क है कि यह "क्रॉसपैथी" को बढ़ावा देता है, तथा चिकित्सा योग्यताओं और विशेषज्ञताओं की अखंडता को कमज़ोर करता है।
- देखभाल की गुणवत्ता: इससे स्वास्थ्य सेवा के मानक से समझौता होता है, क्योंकि आयुष चिकित्सकों के पास आधुनिक चिकित्सा में औपचारिक प्रशिक्षण का अभाव है।
- अस्पताल की कार्यप्रणाली: यह निर्देश आयुष डॉक्टरों को एलोपैथिक भूमिकाओं में नियुक्त करने को प्रोत्साहित करता है, जो चिकित्सा नैतिकता का उल्लंघन है और बैचलर ऑफ मेडिसिन और बैचलर ऑफ सर्जरी (MBBS) या आधुनिक चिकित्सा डॉक्टरों के लिये रोज़गार के अवसरों को कम करने में योगदान देता है।
भारतीय चिकित्सा संघ (IMA)
- वर्ष 1928 में स्थापित IMA भारत में डॉक्टरों के लिये सबसे बड़ा स्वैच्छिक संगठन है, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य, चिकित्सा शिक्षा में सुधार और चिकित्सा पेशे की गरिमा की रक्षा पर केंद्रित है।
- IMA का मुख्यालय नई दिल्ली में है, जो स्वास्थ्य नीतियों को आकार देने और राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों के आयोजन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
आगे की राह
- GP प्रणाली को मज़बूत करना: वैकल्पिक चिकित्सा चिकित्सकों को एकीकृत करने के बजाय, ग्रामीण क्षेत्रों में प्रोत्साहन और कार्य स्थितियों में सुधार करके, वंचित क्षेत्रों में MBBS डॉक्टरों को आकर्षित करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।
- मध्य-स्तरीय स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के लिये विशेषज्ञ प्रशिक्षण अनिवार्य करके भारत की जनरल प्रैक्टिस (GP) प्रणाली को मज़बूत करना।
- आयुष और एलोपैथी का विनियमन: सरकार को आयुष चिकित्सकों के लिये एलोपैथिक डॉक्टरों के साथ काम करने हेतु एक विनियमित ढाँचा बनाना चाहिये, जिसमें उनकी भूमिका स्पष्ट रूप से परिभाषित हो।
- उन्हें चिकित्सा नियामक निकायों की देखरेख में एलोपैथिक दवाओं को सुरक्षित रूप से निर्धारित करने के लिये आधुनिक चिकित्सा, विशेषकर फार्माकोलॉजी में अतिरिक्त प्रशिक्षण प्राप्त करना होगा।
- टेलीमेडिसिन को बढ़ावा देना: टेलीमेडिसिन (ई-संजीवनी) सुरक्षा से समझौता किये बिना प्रौद्योगिकी के माध्यम से गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा प्रदान करके ग्रामीण रोगियों और शहरी विशेषज्ञों के बीच अंतर को कम कर सकती है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: क्रॉसपैथी को परिभाषित कीजिये और रोगी सुरक्षा पर इसके प्रभाव की व्याख्या कीजिये। भारत में क्रॉस-सिस्टम चिकित्सा को नियंत्रित करने वाले कानूनी उदाहरणों और विनियमों पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्सप्रश्न. भैषजिक कंपनियों के द्वारा आयुर्विज्ञान के पारंपरिक ज्ञान को पेटेंट कराने से भारत सरकार किस प्रकार रक्षा कर रही है? (2019) (2019) |
शासन व्यवस्था
‘एक राष्ट्र, एक समय’
मेन्स के लिये:CSIR- राष्ट्रीय भौतिक विज्ञान, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, भारतीय मानक समय, वैश्विक प्रक्षेपण प्रणाली, ग्रीनविच मीन टाइम, एटॉमिक क्लॉक, Navik, नाविक, नेटवर्क टाइम रिकॉर्ड मेन्स के लिये:विधिक माप विज्ञान (MST) नियम, 2025, आत्मनिर्भर सहयोग सहयोग की भूमिका, आधार संरचना और डिजिटल अर्थव्यवस्था, एक राष्ट्र एक समय |
स्रोत: BS
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला (NPL) और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के सहयोग से उपभोक्ता मामले विभाग, भारत सरकार द्वारा तैयार विधिक माप विज्ञान (भारतीय मानक समय (IST)) नियम, 2025 का उद्देश्य सभी क्षेत्रों में भारतीय मानक समय (IST) के उपयोग को मानकीकृत और अनिवार्य बनाना तथा "एक राष्ट्र, एक समय" के दृष्टिकोण को सुदृढ़ करना है।
- सिद्धांत का उद्देश्य सभी क्षेत्रों में भारतीय मानक समय को मानकीकृत और अनिवार्य बनाना, साथ ही "एक राष्ट्र, एक समय" के दृष्टिकोण को समझना है।
विधिक माप विज्ञान (MST) नियम, 2025 की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
- IST को अनिवार्य रूप से अपनाना: CSIR-NPL द्वारा स्थापित IST, भारत में अनिवार्य कानूनी रूप से प्राप्त समय मानक होगा, जो "एक राष्ट्र, एक समय" को निर्दिष्ट करता है।
- जब तक सरकार द्वारा स्पष्ट रूप से अधिकृत न किया जाए, विदेशी समय संदर्भों - जैसे ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (GPS) समय का उपयोग निषिद्ध होगा।
- महत्त्वपूर्ण घटकों का समन्वय: सभी सरकारी बैंकों, वित्तीय शेयरधारकों, वित्तीय संस्थानों और डिजिटल परामर्शदाताओं को अपने समूह को IST के साथ समन्वयित करना होगा।
- संस्थागत संरचना: संरचना की निगरानी अवधिक स्टॉक एक्सचेंज के माध्यम से की जाएगी और संरचना न करने पर जुर्माना लगाया जाएगा।
- विशेष प्रावधान: वैकल्पिक समय संदर्भों का उपयोग सरकार के पूर्व अनुमोदन के साथ नौवहन अनुप्रयोगों, खगोल विज्ञान और वैज्ञानिक अनुसंधान में किया जा सकता है।
- ये नियम सामरिक और राष्ट्रीय सुरक्षा अनुप्रयोगों के लिये लचीलापन प्रदान करते हैं।
भारतीय मानक समय
- भारतीय मानक समय (IST) 82.5 डिग्री देशांतर पर आधारित है, जो उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर से होकर गुज़रता है।
- यह ग्रीनविच मीन टाइम (GMT) से 5 घंटे 30 मिनट आगे है, जिसे वर्तमान में यूनिवर्सल कोऑर्डिनेटेड टाइम (UTC) कहते हैं।
- IST की स्थापना वर्ष 1906 में ब्रिटिश काल के तीन क्षेत्रीय टाइम ज़ोन (बॉम्बे, कलकत्ता और मद्रास समय) को प्रतिस्थापित कर की गई थी।
एक राष्ट्र, एक समय क्या है?
- परिचय: 'एक राष्ट्र, एक समय' का उद्देश्य सभी सरकारी, औद्योगिक, तकनीकी और सामाजिक संस्थानों के लिये एक एकीकृत और सुव्यवस्थित समय-निर्माण संरचना स्थापित करना है।
- सरकार ने काल प्रसार में माइक्रोसेकंड स्तर की सटीकता लाने के उद्देश्य से भारत के विभिन्न क्षेत्रों में पाँच विधिक मापविज्ञान प्रयोगशालाएँ स्थापित किये जाने की योजना बनाई है।
- आत्मनिर्भर टाइम-कीपिंग की आवश्यकता: भारत की परमाणु सुरक्षा और साइबर सुरक्षा जोखिम का जन्म होता है। 1999 के कारगिल के दौरान, इस पोर्टफोलियो ने दुश्मनों के आकलन पर भारत की क्षमता को खतरनाक युद्ध में डाल दिया।
- भारत इस संदर्भ में GPS उपग्रहों (अमेरिका द्वारा नियंत्रित) पर निर्भर है जिससे इसकी राष्ट्रीय सुरक्षा और साइबर सुरक्षा को खतरा हो सकता है। 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान, इस निर्भरता के कारण ही दुश्मन के ठिकानों पर सटीक निशाना लगाने की भारत की क्षमता प्रभावित हुई थी।
- इस दृष्टि से आत्मनिर्भर प्रणाली की सहायता से भारत की निर्भरता कम होगी और महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे की सुरक्षा सुनिश्चित होगी।
- प्रकार्य: NPL, भारतीय नक्षत्र के साथ नेविगेशन (Navigation with Indian Constellation- NavIC) के माध्यम से तुल्यकालित, सटीक समय प्रदान करने हेतु परमाणु घड़ियों के उपयोग पर आधारित होगा।
- NPL की उन्नत परमाणु घड़ियाँ, जिनमें लाखों वर्षों में केवल एक सेकंड का अंतराल (परिशुद्धता स्तर) आता है, IST के लिये संदर्भ की भूमिका निभाएंगी।
- नेटवर्क टाइम प्रोटोकॉल (NTP) और प्रिसिजन टाइम प्रोटोकॉल (PTP) जैसे सिंक्रोनाइज़ेशन प्रोटोकॉल को सरकारी संस्थानों और सार्वजनिक संगठनों द्वारा अपनाया जाएगा।
- लाभ: 5G, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, नेविगेशन और पावर ग्रिड सिंक्रोनाइज़ेशन जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्र उच्च परिशुद्धता के साथ संचालन करेंगे।
- वित्तीय लेन-देन अधिक धोखाधड़ी-रोधी हो जाएँगे और विनियामक अनुपालन अधिक सटीक होगा।
- डिजिटल उपकरणों और संचार नेटवर्क को तुल्यकालित किया जाएगा, जिससे परिचालन दक्षता और उपभोक्ता सेवाओं में सुधार होगा।
- भारत के डिजिटल बुनियादी ढाँचे को मज़बूती मिलने से यह वैश्विक तकनीकी निवेश के लिये एक आकर्षक केंद्र बनेगा।
- अंतर्राष्ट्रीय विमानन और दूरसंचार मानकों जैसी सर्वोत्तम प्रथाओं के साथ समन्वय बढ़ेगा।
CSIR- राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला
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एक राष्ट्र एक समय को लागू करने में क्या चुनौतियाँ हैं?
- दूरसंचार और ISP द्वारा अपनाना: इंटरनेट सेवा प्रदाता (ISP) और दूरसंचार ऑपरेटर विदेशी समय स्रोतों पर निर्भर होते हैं, IST को अनिवार्य रूप से अपनाने के लिये तकनीकी उन्नयन, नियामक प्रवर्तन एवं एक केंद्रीकृत निगरानी प्राधिकरण की आवश्यकता होती है।
- वैश्विक एकीकरण: अंतर्राष्ट्रीय व्यापार एवं वित्तीय बाज़ारों में लगे व्यवसायों को वैश्विक समय मानकों (UTC, GMT आदि) के साथ समन्वय की आवश्यकता होती है।
- निर्बाध संक्रमण एवं दोहरे अनुपालन के लिये तंत्र स्थापित किये जाने की आवश्यकता है।
- अवसंरचना विकास: सीमित कनेक्टिविटी वाले क्षेत्रों सहित पूरे देश में निर्बाध समय समन्वय सुनिश्चित करने के क्रम में दूरदराज़ के क्षेत्रों में मौजूदा नेटवर्क तथा प्रणालियों के साथ एकीकरण में तार्किक एवं तकनीकी बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है।
- साइबर सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: समय समन्वयन प्रणालियाँ साइबर हमलों के लिये संभावित लक्ष्य हैं। सुरक्षित एन्क्रिप्शन और वैकल्पिक समय प्रसार विधियों की आवश्यकता है।
आगे की राह
- साइबर सुरक्षा उपाय: साइबर हमलों से समय समन्वयन प्रणालियों की सुरक्षा के लिये मज़बूत एन्क्रिप्शन विधियों को लागू करना।
- संभावित व्यवधानों के प्रति लचीलापन सुनिश्चित करने के लिये समय प्रसार हेतु बैकअप प्रणालियाँ विकसित करना।
- पर्यवेक्षक प्राधिकारी: सभी क्षेत्रों में IST समन्वय के कार्य और घटक की व्याख्या के लिये एक समर्पित केंद्र अधिकृत पर्यवेक्षण प्राधिकारी की स्थापना करना।
- जागरूकता को बढ़ावा देना: निर्बाध अंतर्राष्ट्रीय एकीकरण के लिये वैश्विक मानकीकरण निकायों के साथ सहयोग करते हुए, उद्योगों, वित्तीय संस्थानों और सार्वजनिक सेवाओं को IST समन्वयन लाभों के बारे में शिक्षित करना।
- अनुसंधान एवं विकास: समय-निर्धारण प्रौद्योगिकियों और प्रोटोकॉल में निरंतर सुधार के लिये अनुसंधान एवं विकास में निवेश करना, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि भारत सटीक समय-निर्धारण में अग्रणी बना रहे।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: विश्लेषण कीजिये कि भारत की एक राष्ट्र एक समय समन्वय प्रणाली राष्ट्रीय सुरक्षा और रक्षा तैयारियों को किस प्रकार बढ़ा सकती है। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित देशों में से किस एक के पास अपनी उपग्रह मार्गनिर्देशन (नैविगेशन) प्रणाली है? (2023) (a) ऑस्ट्रेलिया उत्तर: (d)
अतः विकल्प (d) सही है। प्रश्न. भारतीय क्षेत्रीय-संचालन उपग्रह प्रणाली (इंडियन रीजनल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम/IRNSS) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. भारतीय प्रादेशिक नौपरिवहन उपग्रह प्रणाली (आई.आर.एन.एस.एस.) की आवश्यकता क्यों है? यह नौपरिवहन में किस प्रकार सहायक है? (2018) |
शासन व्यवस्था
लेटरल एंट्री योजना से संबंधित चुनौतियाँ
प्रिलिम्स के लिये:लेटरल एंट्री स्कीम (LES), संघ लोक सेवा आयोग (UPSC), अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC), अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST), नीति आयोग, द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC)। मेन्स के लिये:नौकरशाही में लेटरल एंट्री का मुद्दा, इसके निहितार्थ और आगे की राह। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
निजी क्षेत्र के पेशेवरों को अनुबंध पर वरिष्ठ नौकरशाही में शामिल होने में सक्षम बनाने वाली लेटरल एंट्री योजना (LES), विधिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से विवाद का मुद्दा बनी हुई है।
- इसके तहत वर्ष 2019 से अब तक 63 नियुक्तियाँ की जा चुकी हैं लेकिन वैधानिक ढाँचे की कमी और हाशिये पर स्थित समुदायों के आरक्षण को लेकर चिंताएँ बनी हुई हैं।
नोट: इससे संबंधित कानूनी विवाद फरवरी 2020 में शुरू हुआ जब IFS अधिकारी संजीव चतुर्वेदी ने विधिक एवं प्रक्रियात्मक जटिलता का हवाला देते हुए नैनीताल केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (CAT) के समक्ष लेटरल एंट्री स्कीम को चुनौती दी।
लेटरल एंट्री योजना से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?
- संवैधानिक वैधता: इसे संविधान के अनुच्छेद 309 के साथ विरोधाभासी बताते हुए चुनौती दी गई थी, जो उपयुक्त विधायिका (संसद, राज्य विधानसभा) को लोक सेवकों की भर्ती और सेवा की शर्तों को विनियमित करने वाले कानून बनाने का अधिकार देता है।
- इसके अलावा, भर्ती में आरक्षण को समाप्त करना सामाजिक न्याय और संवैधानिक आदेशों को कमज़ोर करता है।
- लघु कार्यकाल: लेटरल एंट्री के लिये 3 वर्ष का कार्यकाल प्रभावी शासन अनुकूलन और जवाबदेही के लिये बहुत छोटा माना जाता है।
- आनंद का सिद्धांत और सामूहिक भर्ती: सरकार अनुच्छेद 310 के तहत LES को उचित ठहराती है, जो राष्ट्रपति को विशेषज्ञों की नियुक्ति करने की अनुमति देता है। आलोचकों का तर्क है कि यह वरिष्ठ, अस्थायी पदों पर बड़े पैमाने पर भर्ती के लिये नहीं है।
- अधिकारियों की कमी का हवाला देते हुए, इसकी आवश्यकता पर सवाल उठाया गया है, क्योंकि प्रत्येक रिक्ति के लिये 18 पैनलबद्ध अधिकारी हैं।
- हितों का टकराव: चिंताओं में निजी क्षेत्र के पेशेवरों द्वारा सरकारी नीतियों को प्रभावित करने की संभावित पूर्वाग्रहता तथा पृष्ठभूमि जाँच और सतर्कता मंजूरी जैसी सख्त जाँच का अभाव शामिल है।
- नौकरशाही मनोबल संबंधी चिंताएँ: लेटरल एंट्री की संख्या में वृद्धि से व्यावसायिक नौकरशाहों के मनोबल पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। वे लेटरल एंट्री का विरोध कर सकते हैं, उन्हें बाहरी व्यक्ति के रूप में देख सकते हैं और पदानुक्रम और व्यवधान की चिंताओं के कारण संभावित रूप से शत्रुता को बढ़ावा दे सकते हैं।
लेटरल एंट्री स्कीम (LES) से संबंधित मुख्य बिंदु क्या हैं?
- LES: वर्ष 2018 में शुरू की गई LES एक भर्ती प्रक्रिया है जो निजी क्षेत्र के पेशेवरों को सामान्य प्रतियोगी परीक्षाओं को दरकिनार करते हुए सीधे मध्य-स्तर या वरिष्ठ सरकारी पदों पर नियुक्त करने की अनुमति प्रदान करती है ।
- उन्हें संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) द्वारा 3 वर्ष के अनुबंध पर नियुक्त किया जाता है, जिसकी अवधि अधिकतम 5 वर्ष तक बढ़ाई जा सकती है।
- आरक्षण प्रावधान: लेटरल एंट्री को "एकल पद" माना जाता है, इसलिये इन्हें SC, ST, OBC और EWS श्रेणियों के लिये आरक्षण प्रणाली के कोटा के अधीन नहीं रखा गया है।
- भर्ती: वर्ष 2018 से अब तक 63 लेटरल प्रवेशकों की नियुक्ति की गई है, जिनमें से 57 अगस्त, 2023 तक सेवारत होंगे।
- आरक्षण अधिकारों को लेकर प्रतिरोध के कारण, UPSC ने अगस्त, 2024 में LEC के तहत 45 वरिष्ठ पदों पर भर्ती रोक दी।
सिविल सेवाओं में लेटरल एंट्री के क्या लाभ हैं?
- विशिष्ट विशेषज्ञता: लेटरल एंट्री प्रौद्योगिकी, प्रबंधन और वित्त जैसे क्षेत्रों में विशेषज्ञों की भर्ती को सक्षम बनाता है, जिससे ज्ञान संबंधी अंतराल को संबोधित किया जाता है, जिसकी पूर्ति सामान्य सिविल सेवक द्वारा नहीं की जा सकती है।
- कुशल संचालन: लेटरल एंट्री से लगभग 1500 IAS अधिकारियों की कमी को दूर करने और सरकारी एजेंसियों के कुशल संचालन में मदद मिल सकती है।
- कार्य संस्कृति में सुधार: पार्श्व प्रवेशकर्त्ता लालफीताशाही से दूर होकर अधिक गतिशील, परिणाम-उन्मुख शासन की ओर बदलाव को बढ़ावा देते हुए नौकरशाही निष्क्रियता में सुधार लाने में मदद कर सकते हैं।
- समावेशी शासन: पार्श्व प्रवेश से निजी क्षेत्र और गैर-लाभकारी संस्थाओं सहित हितधारकों की अधिक भागीदारी संभव होती है, जिससे सहभागी शासन और बहु-अभिनेता सहयोग में वृद्धि होती है।
आगे की राह
- दोहरी प्रवेश प्रणाली: भारतीय रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर डी. सुब्बाराव ने एक दोहरी प्रवेश प्रणाली का सुझाव दिया था, जिसमें 25 से 30 वर्षीय आयु वर्ग के लिये परंपरागत भर्ती तथा संबद्ध क्षेत्र के विशेषज्ञों की नियुक्ति किये जाने के उद्देश्य से 37 से 42 वर्षीय आयु वर्ग के लिये मध्य-करियर पार्श्व प्रवेश की व्यवस्था थी।
- युवा, गतिशील प्रतिभा युक्त व्यक्तियों को आकर्षित करने हेतु संयुक्त सचिव पदों के लिये आयु सीमा में छूट दिये जाने का सुझाव दिया गया था।
- पार्श्व प्रवेशकर्त्ताओं के लिये प्रशिक्षण: निजी क्षेत्र से सरकारी भूमिकाओं में पार्श्व प्रवेशकर्त्ताओं के संक्रमण को सरल बनाने के उद्देश्य से व्यापक प्रशिक्षण प्रदान करने हेतु समर्पित प्रशासनिक विश्वविद्यालय की स्थापना की जानी चाहिये।
- निजी क्षेत्र का अनुभव: IAS और IPS अधिकारियों को निजी क्षेत्र में अनुभव प्राप्त करने की अनुमति देने से शासन में प्रतिस्पर्द्धा, नवाचार और क्षेत्रीय विशेषज्ञता बढ़ सकती है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. सरकार की लोक सेवाओं में लेटरल एंट्री की योजना क्या है? इसके गुणागुण और निहितार्थ क्या हैं? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. "आर्थिक प्रदर्शन के लिये संस्थागत गुणवत्ता एक निर्णायक चालक है"। इस संदर्भ में लोकतंत्र को सुदृढ़ करने के लिये सिविल सेवा में सुधारों के सुझाव दीजिये। (2020) |
सामाजिक न्याय
भारत में सर्पदंश और प्रतिजीवविष
प्रिलिम्स के लिये:सर्पदंश विष, भारतीय कोबरा, सामान्य क्रेट, रसेल वाइपर, सॉ-स्केल्ड वाइपर, उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग मेन्स के लिये:भारत में सर्पदंश से संबंधित चुनौतियाँ, प्रतिजीवविष का उत्पादन, चुनौतियाँ और भारत में इसकी उपलब्धता |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
विश्व में सर्प के डसने (सर्पदंश) से प्रतिवर्ष लगभग 58,000 व्यक्तियों की मृत्यु होती है जिसमें से लगभग 50% मौतें भारत में होती हैं।
- प्रतिजीवविष अथवा प्रतिदंशविष (Antivenoms) का सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता होने के बावजूद, देरी से पहुँच, अनुपयुक्त ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा और बुनियादी ढाँचे के अभाव जैसी चुनौतियाँ सर्पदंश के प्रभावी उपचार में बाधा उत्पन्न करती हैं।
सर्पदंश के संबंध में मुख्य तथ्य क्या हैं?
- वैश्विक परिदृश्य:
- विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, वैश्विक स्तर पर सर्प के डसने की घटनाएँ प्रतिवर्ष 5.4 मिलियन हैं, जिनमें से 1.8 से 2.7 मिलियन मामले विष के संपर्क में आने के कारण होते हैं।
- सर्प के डसने से प्रतिवर्ष लगभग 81,410 से 137,880 लोगों की मृत्यु होती है तथा इससे भी अधिक लोग सर्प के डसने के कारण अंग-विच्छेदन तथा स्थायी दिव्यांगता से पीड़ित होते हैं।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सर्पदंश (सर्प के डसने से होने वाला ज़हर) को उच्च प्राथमिकता वाली उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग के रूप में वर्गीकृत किया है।
- भारत:
- विषैले सर्पों की विविधता: भारत में सर्प की 300 से अधिक प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिनमें से 60 से अधिक विषैली हैं।
- भारत में सर्पदंश से होने वाली अधिकांश मौतों के लिये बिग फोर (भारतीय कोबरा, कॉमन क्रेट, रसेल वाइपर और सॉ-स्केल्ड वाइपर) ज़िम्मेदार हैं।
- सर्पदंश से मृत्यु दर और विकलांगता: एक अध्ययन का अनुमान है कि वर्ष 2001 से वर्ष 2014 के बीच भारत में सर्पदंश के कारण लगभग 1.2 मिलियन मौतें हुईं और 3.6 मिलियन लोग स्थायी विकलांगता के शिकार हुए।
- 250 भारतीयों में से एक को 70 वर्ष की आयु से पहले सर्पदंश से मरने का खतरा रहता है।
- असुरक्षित आबादी: ग्रामीण समुदाय, विशेषकर कृषि श्रमिक, विशेष रूप से मानसून के दौरान अधिक जोखिम में रहते हैं, क्योंकि अपर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल के कारण स्थिति और भी खराब हो जाती है।
- शहरी जोखिम: तेज़ी से हो रहे शहरीकरण, खराब अपशिष्ट प्रबंधन और शहरी बाढ़ के कारण साँप-मानव संपर्क में वृद्धि हुई है, जिससे शहरों में भी जोखिम बढ़ गया है।
- विषैले सर्पों की विविधता: भारत में सर्प की 300 से अधिक प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिनमें से 60 से अधिक विषैली हैं।
प्रतिजीवविष (Antivenoms) क्या हैं?
- साँप का जहर: यह विषाक्त प्रोटीन का एक शक्तिशाली मिश्रण है जो मानव शरीर को गंभीर क्षति पहुँचाता है।
- हेमोटॉक्सिन रक्त कोशिकाओं को नष्ट करते हैं और थक्के बनने में बाधा डालते हैं।
- न्यूरोटॉक्सिन तंत्रिका संकेतों को अवरुद्ध कर देते हैं और पक्षाघात कर देते हैं।
- साइटोटॉक्सिन दंश स्थल पर ऊतक को घोल देते हैं।
- प्रतिजीवविष (Antivenoms): प्रतिजीवविष (Antivenoms) या एंटीवेनिन जीवन रक्षक दवाएँ हैं जिनका उपयोग साँप के काटने के उपचार के लिये किया जाता है।
- प्रतिजीवविष (Antivenoms) जहर के विषाक्त पदार्थों को बांधकर, उन्हें निष्क्रिय कर देते हैं, तथा शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को समय के साथ उन्हें सुरक्षित रूप से समाप्त करने में सहायता करते हैं।
- भारत में बहुसंयोजी प्रतिजीवविष (पॉलीवेलेंट एंटीवेनम) "बिग फोर" के विष से बनाये जाते हैं, लेकिन किंग कोबरा और पिट वाइपर जैसी अन्य विषैली प्रजातियों को इसमें शामिल नहीं किया जाता।
- प्रतिजीवविष (Antivenoms) का उत्पादन:
- प्रतिजीवविष (Antivenoms) उत्पादन में साँपों से जहर निकालना, एंटीबॉडी बनाने के लिये घोड़ों या भेड़ों जैसे जानवरों को प्रतिरक्षित करना, और फिर प्रतिजीवविष तैयार करने के लिये जानवर के रक्त से इन एंटीबॉडी को निकालना और शुद्ध करना शामिल है।
- भारत में उत्पादन:
- कई कंपनियाँ विष-निरोधक दवाओं का निर्माण करती हैं। तमिलनाडु की इरुला जनजाति विष-निरोधक दवाएँ बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है (लगभग 80% विष की आपूर्ति करती हैं)।
नोट:
- भारत में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की विभिन्न अनुसूचियों के अंतर्गत सांपों को संरक्षित किया गया है, साथ ही भारत में विषैली प्रजातियों को पकड़ना, मारना या उनका दूध का उपयोग करना प्रतिबंधित है।
- मुख्य वन्यजीव वार्डन लिखित अनुमोदन के साथ, जीवन रक्षक दवाओं के लिये सांप का विष निकालने सहित जंगली जानवरों के शिकार के लिये परमिट दे सकते हैं।
- हालाँकि, अनुसूची I के पशुओं के लिये केंद्र सरकार की पूर्व अनुमति आवश्यक है।
भारत में प्रतिविष (Antivenom)तक पहुँच के समक्ष चुनौतियाँ:
- भौगोलिक बाधाएँ: दूरदराज के स्थानों पर प्रतिविष युक्त चिकित्सा संस्थानों तक पहुंच की कमी के कारण समय पर उपचार में बाधा आती है।
- सांस्कृतिक और सामाजिक कारक: ग्रामीण क्षेत्रों में अंधविश्वास और पारंपरिक प्रथाओं पर निर्भरता के कारण अक्सर चिकित्सा देखभाल में देरी होती है, जिससे गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
- आर्थिक बाधाएँ: विषरोधी दवाओं की उच्च उत्पादन लागत के कारण, विशेष रूप से आर्थिक रूप से वंचित समुदायों के लिये, उनकी पहुंच सीमित हो जाती है।
- तार्किक मुद्दे: ग्रामीण क्षेत्रों में अपर्याप्त शीत भण्डारण और अपर्याप्त बुनियादी ढांचे के परिणामस्वरूप एंटीवेनम की गुणवत्ता में गिरावट आती है, जिससे इसकी प्रभावकारिता कम हो जाती है।
प्रतिविष में उभरते समाधान और नवाचार क्या हैं?
- सर्पदंश से होने वाले विष के नियंत्रण एवं रोकथाम के लिये राष्ट्रीय कार्य योजना (NAP-SE): NAP-SE का लक्ष्य वर्ष 2030 तक सर्पदंश से होने वाली मृत्यु और दिव्यांगजनों की संख्या को कम करना है ।
- सिंथेटिक एंटीवेनम: पुनः संयोजक DNA प्रौद्योगिकी और AI-डिज़ाइन किये गए प्रोटीन, जैसा कि वर्ष 2024 के नोबेल पुरस्कार विजेता डेविड बेकर की टीम द्वारा प्रदर्शित किया गया है, पारंपरिक प्रतिविष के लिये अधिक सुरक्षित और प्रभावी विकल्प प्रदान करते हैं।
- क्षेत्र-विशिष्ट एंटीवेनम: IISc बेंगलुरु के शोधकर्त्ता विशिष्ट साँप प्रजातियों एवं क्षेत्रीय विष विविधताओं के अनुरूप एंटीवेनम विकसित कर रहे हैं।
- त्वरित निदान उपकरण: पोर्टेबल विष-पहचान किट के साथ विष-निरोधक दवाओं को समय पर देने से रोगी के परिणामों में सुधार हो सकता है।
- सार्वजनिक शिक्षा अभियान: सर्पदंश की रोकथाम एवं समय पर चिकित्सा हस्तक्षेप के बारे में जागरूकता बढ़ाने से मृत्यु दर में काफी कमी आ सकती है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत में सर्पदंश से होने वाली उच्च मृत्यु दर में योगदान देने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये तथा मृत्यु दर को कम करने के उपाय बताइये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं? (a) केवल 1 और 3 उत्तर: (d) प्रश्न. किंग कोबरा एकमात्र ऐसा साँप है जो अपना घोंसला खुद बनाता है। यह अपना घोंसला क्यों बनाता है? (2010) (A) यह साँपों को खाता है तथा इसका घोंसला अन्य साँपों को आकर्षित करने में मदद करता है। उत्तर: C प्रश्न. निम्नलिखित में से किस सर्प का आहार मुख्यतः अन्य सर्प होते हैं? (2008) (a) करैत उत्तर: (d) |