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डेली न्यूज़

  • 29 Dec, 2021
  • 54 min read
कृषि

शहद किसान उत्पादक संगठन: TRIFED

प्रिलिम्स के लिये:

10,000 किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ), ट्राइफेड की मीठी क्रांति, गठन और संवर्द्धन।

मेन्स के लिये:

भारत में मधुमक्खी पालन और संबंधित पहल।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जनजातीय मामलों के मंत्रालय ने TRIFED (भारतीय जनजातीय सहकारी विपणन विकास संघ) के 14 शहद किसान उत्पादक संगठनों (FPO) के साथ-साथ विभिन्न अन्य पहल, जैसे- TRIFED वन धन क्रॉनिकल, लघु वन उत्पादों (एमएफपी) के न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिये MIS पोर्टल लॉन्च किया है। ।

  • ट्राइफेड वन धन क्रॉनिकल देश में आदिवासी उद्यमों को बढ़ावा देने के लिये किये गए कार्यों और वन धन विकास योजना के तहत आदिवासी उद्यमियों की उपलब्धियों का दस्तावेज़ीकरण करता है।
  • लघु वन उत्पादों (एमएफपी) के न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिये एमआईएस पोर्टल, जनजातीय मामलों के मंत्रालय और ट्राइफेड के अधिकृत उपयोगकर्ताओं हेतु तैयार किया गया एक डैशबोर्ड है। इस डैशबोर्ड में खरीद केंद्रों और उनके स्थानों की सूची एवं देश भर में की जा रही एमएफपी की खरीद से संबंधित डेटा वास्तविक समय के आधार पर उपलब्ध है।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • अगले पाँच वर्षों में किसानों के लिये मानकीकृत अर्थव्यवस्था सुनिश्चित करने के लिये वर्ष 2020 में "10,000 किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) का गठन और संवर्द्धन" नामक एक केंद्रीय क्षेत्र की योजना शुरू की गई थी।
      • इस योजना के अंतर्गत चिह्नित संभावित ज़िलों/राज्यों में 100 एफपीओ का गठन कर मधुमक्खी पालन पर विशेष बल दिया गया है।
    • मधुमक्खी पालन गतिविधियों द्वारा किसानों की आय बढ़ाने के प्रयास में "मीठी क्रांति" को इसके प्रचार और विकास के लिये भारत सरकार द्वारा महत्त्वपूर्ण गतिविधियों में से एक के रूप में मान्यता दी गई है।
      • राष्ट्रीय मधुमक्खी पालन और शहद मिशन (एनएचबीएम) के तहत राष्ट्रीय मधुमक्खी बोर्ड (एनबीबी) ने देश में 100 समूहों में शहद के लिये वैज्ञानिक मधुमक्खी पालन मूल्य शृंखला विकसित करने की योजना बनाई गई है।
      • TRIFED को कृषि मंत्रालय द्वारा छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, ओडिशा और गुजरात राज्यों में NAFED (नेशनल एग्रीकल्चरल कोऑपरेटिव मार्केटिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड) और NDDB (नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड) के साथ-साथ 14 शहद FPO के गठन के लिये कार्यान्वयन एजेंसी बनाया गया है। 
  • लाभ:
    • वैज्ञानिक तरीके से मधुमक्खी पालन में कौशल उन्नयन।
    • मधुमक्खी के मोम, प्रोपोलिस, रॉयल जेली, मधुमक्खी का ज़हर आदि जैसे शहद और संबद्ध मधुमक्खी पालन उत्पादों के प्रसंस्करण हेतु अत्याधुनिक अवसंरचनात्मक सुविधाएंँ।
    • गुणवत्ता नियंत्रण प्रयोगशालाओं द्वारा गुणवत्ता उन्नयन।
    • संग्रह, भंडारण, बॉटलिंग और विपणन केंद्रों में सुधार करके बेहतर आपूर्ति शृंखला प्रबंधन।
    • कृषि को आत्मनिर्भर कृषि में बदलने के लिये एफपीओ का प्रचार और गठन इस दिशा में पहला कदम है।
  • मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने के लिये सरकार के अन्य प्रयास:
    • सरकार किसानों की आय को दोगुना करने और आदिवासी उत्थान को सुनिश्चित करने के अपने उद्देश्य के तहत मधुमक्खी पालन को बढ़ावा दे रही है।
    • सरकार द्वारा आत्मानिर्भर अभियान के तहत मधुमक्खी पालन के लिये 500 करोड़ रुपए आवंटित किये गए हैं। 
    • एपिअरी ऑन व्हील्स: यह खादी और ग्रामोद्योग आयोग (KVIC) द्वारा डिज़ाइन की गई एक अनूठी अवधारणा है, जो मधुमक्खी के जीवित कॉलोनियों वाले मधुमक्खी बक्से के आसान रखरखाव और प्रवास को सुनिश्चित करने से संबंधित है।
    • राष्ट्रीय मधुमक्खी बोर्ड द्वारा राष्ट्रीय मधुमक्खी पालन और शहद मिशन (NBHM)  जो कि एक केंद्रीय क्षेत्र की योजना है, के तहत प्रशिक्षण प्रदान करने के लिये चार मॉड्यूल बनाए गए हैं।
      • इसके तहत 30 लाख किसानों को मधुमक्खी पालन का प्रशिक्षण दिया जा रहा है और सरकार द्वारा उन्हें आर्थिक सहायता भी दी जा रही है।
      • इस मिशन के अंतर्गत मिनी मिशन 1, मिनी मिशन 2 और मिनी मिशन 3 शामिल हैं।
    • सरकार ने 'मीठी क्रांति' के हिस्से के रूप में NBHM की शुरुआत की।
      • मधुमक्खी पालन और संबंधित गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिये वर्ष 2016-17 में 'मीठी क्रांति' की शुरुआत की गई थी।

स्रोत: पी.आई.बी.


भारतीय अर्थव्यवस्था

गिग वर्कर्स

प्रिलिम्स के लिये :

गिग इकोनॉमी, कोविड-19 महामारी, वेतन संहिता, 2019, सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020, विभिन्न कॉलर रोज़गार।

मेन्स के लिये :

गिग इकॉनमी: अर्थ, उपयोग, विधान, संबंधित चिंताएँ और आगे की राह।

चर्चा में क्यों?

कोविड-19 महामारी के बाद गिग रोज़गार विशेष रूप से साझा सेवाओं और लॉजिस्टिक्स सेगमेंट में मांग में वृद्धि देखी गई है, जिससे रोज़गार की खोज के लिये प्लेटफार्मों में इससे संबंधित गतिविधियों में तेज़ी आई है।

प्रमुख बिंदु

  • गिग अर्थव्यवस्था के बारे में:
  • गिग इकॉनमी एक मुक्त बाज़ार प्रणाली है जिसमें अस्थायी अनुबंध होता है और संगठन अल्पकालिक जुड़ाव के लिये स्वतंत्र श्रमिकों के साथ अनुबंध करते हैं।
  • बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत के गिग वर्कफोर्स में सॉफ्टवेयर, साझा सेवाओं और पेशेवर सेवाओं जैसे उद्योगों में कार्यरत 1.5 मिलियन कर्मचारी शामिल हैं।
  • भारत में अनुमानित 56% नए रोज़गार गिग इकॉनमी कंपनियों द्वारा ब्लू-कॉलर और व्हाइट-कॉलर वर्कफोर्स दोनों के लिये उत्पन्न किये जा रहे हैं। 

विभिन्न कॉलर वर्कर:

  • ब्लू-कॉलर वर्कर: इसमें मज़दूर वर्ग शारीरिक श्रम के माध्यम से आय अर्जन करता है।
  • व्हाइट-कॉलर वर्कर: यह एक वेतनभोगी पेशेवर है, जो आमतौर पर कार्यालय के प्रबंधन का कार्य करता करता है।
  • गोल्ड-कॉलर वर्कर: इस प्रकार के वर्कर का उपयोग अत्यधिक कुशल ज्ञान वाले लोगों को संदर्भित करने हेतु किया जाता है जो कंपनी के लिये अत्यधिक मूल्यवान होते हैं। उदाहरण: वकील, डॉक्टर, शोध वैज्ञानिक आदि।
  • ग्रे-कॉलर वर्कर: यह व्हाइट या ब्लू-कॉलर के रूप में वर्गीकृत नहीं किये गए नियोजित लोगों को संदर्भित करता है।
    • हालाँकि ग्रे-कॉलर का प्रयोग उन लोगों का वर्णन करने के लिये भी किया जाता है जो सेवानिवृत्ति की आयु से परे काम करते हैं। उदाहरण: अग्निशामक, पुलिस अधिकारी, स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर, सुरक्षा गार्ड आदि।
  • ग्रीन-कॉलर वर्कर: ये ऐसे वर्कर हैं जो अर्थव्यवस्था के पर्यावरणीय क्षेत्रों में कार्यरत हैं।
    • उदाहरण: वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों जैसे- सौर पैनल, ग्रीनपीस, वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर आदि में काम करने वाले वर्कर।
  • पिंक-कॉलर वर्कर: यह एक ऐसा रोज़गार है जिसे पारंपरिक रूप से महिलाओं का काम माना जाता है और अक्सर कम वेतन मिलता है।
  • स्कारलेट-कॉलर वर्कर: यह एक ऐसा शब्द है जिसका इस्तेमाल अक्सर पोर्नोग्राफी उद्योग में काम करने वाले लोगों, विशेष रूप से इंटरनेट पोर्नोग्राफी के क्षेत्र में महिला उद्यमियों को संदर्भित करने के लिये किया जाता है।
  • रेड-कॉलर वर्कर: सभी प्रकार के सरकारी कर्मचारी।
  • ओपन-कॉलर वर्कर: यह एक ऐसा वर्कर है जो घर से खासकर इंटरनेट के ज़रिये काम करता है।
  • गिग इकॉनमी की घातीय वृद्धि का कारण:
    • डिजिटल युग में वर्कर्स को एक निश्चित स्थान पर बैठने की आवश्यकता नहीं है - काम कहीं से भी किया जा सकता है, इसलिये नियोक्ता किसी परियोजना के लिये उपलब्ध सर्वोत्तम प्रतिभा का चयन स्थान से परे कार्य कर सकते हैं।
    • ऐसा लगता है कि नई पीढ़ी का कॅरियर के प्रति काफी अलग रवैया है। वे ऐसा कॅरियर बनाने के बजाय सामान्य ज़रूरतों हेतु काम करना चाहते हैं।
    • बढ़ता प्रवास और सुप्राप्य कौशल प्रशिक्षण।
  • संबद्ध चुनौतियाँ:
    • अनियमित प्रकृति: गिग इकॉनमी बड़े पैमाने पर अनियमित रूप से विकसित होती है, इसलिये श्रमिकों की नौकरी की सुरक्षा बहुत कम होती है और बहुत सीमित लाभ प्राप्त होते हैं।
      • हालाँकि कुछ लोगों का तर्क है कि श्रमिकों को कोई सामाजिक सुरक्षा, बीमा आदि नहीं मिलने के संबंध में भारत में गिग इकॉनमी भारत के अनौपचारिक श्रम का विस्तार है, जो लंबे समय से प्रचलित है और अनियंत्रित बनी हुई है।
    • कौशल की आवश्यकता: एक वर्कर्स को पर्याप्त रूप से कुशल होने की आवश्यकता होती है। जब तक कोई व्यक्ति अत्यंत प्रतिभाशाली नहीं होगा, उसकी सौदेबाज़ी की शक्ति अनिवार्य रूप से सीमित होगी।
      • जबकि कंपनियाँ नियमित रूप से कर्मचारियों को प्रशिक्षित करने में निवेश करती हैं, एक गिग-इकॉनमी वर्कर्स को अपनी लागत पर अपने कौशल को अपग्रेड करना होगा।
    • मांग-पूर्ति असंतुलन: स्थायी नौकरियों की तुलना में अब पहले से ही कई अधिक संभावित ऑनलाइन स्वतंत्र या फ्रीलांस कर्मचारी हैं और विशेषज्ञों का मानना है कि मांग एवं पूर्ति के बीच यह असंतुलन समय के साथ और अधिक बढ़ जाएगा, जिसके कारण समय के साथ मज़दूरी में कमी आएगी।
  • गिग अर्थव्यवस्था पर महामारी का प्रभाव:
    • कोविड-19 के कारण व्यवसाय बाधित हो गए और लोग आय के स्रोत की तलाश में थे। इससे महामारी के कारण ‘गिग वर्कर्स’ की मांग में तेज़ी देखने को मिली।
      • उदाहरण के लिये अगस्त 2020 में सोशल मीडिया कंपनी गूगल ने नौकरी चाहने वालों को ऑन-डिमांड व्यवसायों, खुदरा और आतिथ्य जैसे उद्योगों में अवसरों से जोड़ने के लिये ‘Kormo Jobs’ नाम से एक एप लॉन्च करने की घोषणा की।
    • हालाँकि जैसा कि पिछले कुछ वर्षों में ‘गिग श्रमिकों’ की संख्या बढ़ी है, विशेष रूप से उपभोक्ता इंटरनेट कंपनियों जैसे- ज़ोमैटो, स्विगी, उबर, ओला, अर्बन कंपनी आदि के साथ श्रमिकों की आय में गिरावट दर्ज की गई है।
    • संविदात्मक श्रम पारिस्थितिकी तंत्र पर इसके दो महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़े हैं:
      • सर्वप्रथम इसने ऑन-डिमांड स्टाफिंग की बढ़ती आवश्यकता को पूरा करने के लिये नए व्यवसाय मॉडल विकसित किये हैं।
      • साथ ही इसने एक बार फिर ऐसी श्रम संहिताओं की आवश्यकताओं पर प्रकाश डाला है, जो गिग श्रमिकों को परिभाषित करती हैं और उनके लिये एक सार्वभौमिक न्यूनतम मज़दूरी निर्धारित करती हैं।

गिग इकॉनमी के लिये श्रम संहिता:

  • मौजूदा कानून:
    • मज़दूरी संहिता, 2019 गिग श्रमिकों (संगठित और असंगठित क्षेत्रों सहित) के लिये  सार्वभौमिक न्यूनतम मज़दूरी और न्यूनतम मज़दूरी का प्रावधान करती है।
    • सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 गिग श्रमिकों को एक नई व्यावसायिक श्रेणी के रूप में मान्यता देती है।
      • यह गिग वर्कर को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित करता है, जो पारंपरिक नियोक्ता-कर्मचारी संबंधों के बाहर काम करता है या कार्य व्यवस्था में भाग लेता है और ऐसी गतिविधियों से कमाई करता है।
  • सुरक्षा संहिता से संबद्ध मुद्दे:
    • लाभ की कोई गारंटी नहीं: सामाजिक सुरक्षा संहिता विधेयक, 2020 में प्लेटफाॅर्म  वर्कर्स अब मातृत्व लाभ, जीवन और विकलांगता कवर, वृद्धावस्था सुरक्षा, भविष्य निधि, रोज़गार दुर्घटना लाभ आदि जैसे लाभों के लिये पात्र हैं।
      • हालाँकि इस पात्रता का यह अर्थ नहीं है कि लाभ की गारंटी दी गई है।
      • कोई भी प्रावधान सुरक्षित लाभ प्रदान नहीं करता है, जिसका अर्थ है कि केंद्र सरकार समय-समय पर कल्याणकारी योजनाएँ बना सकती है, जो व्यक्तिगत और कार्य सुरक्षा के इन पहलुओं को कवर करती हैं, लेकिन उनकी गारंटी नहीं देती है।
    • कोई निश्चित उत्तरदायित्व नहीं: संहिता के तहत बुनियादी कल्याण उपायों से संबंधित प्रावधानों को केंद्र सरकार, प्लेटफॉर्म एग्रीगेटर्स और श्रमिकों की संयुक्त ज़िम्मेदारी के रूप में परिभाषित किया गया है।
      • हालाँकि इसमें यह नहीं बताया गया है कि कौन सा हितधारक कितना कल्याण प्रदान करने हेतु उत्तरदायी है।

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आगे की राह

  • स्पष्टता की आवश्यकता: स्पष्टीकरण के माध्यम से यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि प्लेटफॉर्म के काम की गुणवत्ता से समझौता किये बिना श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा उपाय प्रदान किया जाए।
  • संयुक्त जवाबदेही: गिग इकॉनमी में काम की विविधता की सामाजिक-कानूनी स्वीकृति की आवश्यकता है और सामाजिक सेवाओं के वितरण के लिये राज्य और संबंधित कंपनियों को संयुक्त जवाबदेही का श्रेय देने की आवश्यकता है।
  • समेकित प्रयास: कल्याणकारी सेवाएँ प्रदान करने में परिचालन संबंधी चुनौतियों को कम करने हेतु राज्य, कंपनियों और श्रमिकों द्वारा एक त्रिपक्षीय प्रयास महत्त्वपूर्ण है।

 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


कृषि

पशुधन संचालन का संयंत्र आधारित संचालन में परिवर्तन

प्रीलिम्स के लिये:

पशुधन खेती, संयंत्र आधारित संचालन।

मेन्स के लिये:

संयंत्र आधारित संचालन का महत्त्व और इस संक्रमण को बढ़ावा देने के लिये क्या करने की आवश्यकता है।

चर्चा में क्यों?

दुनिया भर में कृषि क्रांति हो रही है जहाँ पशुधन संचालन संयंत्र आधारित संचालन में परिवर्तित हो रहे हैं और सुरक्षित एवं बेहतर वेतन वाले रोज़गार का सृजन कर रहे हैं।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • पशुपालन:
      • यह केवल उनके मांस और उत्पादों (दूध, अंडे, चमड़ा, आदि) को प्राप्त करने के उद्देश्य से घरेलू, पशुधन का प्रबंधन और प्रजनन है।
      • इसे आर्थिक गतिविधि के रूप में भी वर्णित किया जा सकता है जिसमें मानव उपभोग के लिये घरेलू पशुओं को पालना और मांस, दूध, ऊन, फर, शहद आदि प्राप्त करना शामिल है।
    • पशुपालन-खेती से संबंधित मुद्दे:
      • पशुपालन ने कई किसानों को खराब काम करने की स्थिति, कम आय, बाज़ार की ताकतों के लिये उच्च भेद्यता और अत्यधिक तनाव जैसे कुचक्रों में फँसाया है।
    • संयंत्र आधारित संचालन के लिये संक्रमण:
      • संयंत्र आधारित ऑपरेशंस (कृषि में सिर्फ संक्रमण) का विचार उत्पादन और उपभोग के आधार पर खाद्य प्रणालियों के पुनर्गठन के लिये रूपरेखा को संदर्भित करता है जो स्थिरता, डीकार्बोनाइज़ेशन और मानव, वित्तीय तथा  पर्यावरणीय संसाधनों के उचित उपयोग को प्राथमिकता देता है।
      • केवल संक्रमण कृषि तकनीकों और प्रथाओं का पक्ष लेते हैं जो औद्योगिक कृषि की मानक प्लेबुक के तहत नहीं आते हैं, जो जानवरों, कृषक समुदायों और पर्यावरण को नुकसान पहुँचाते हुए प्राकृतिक दुनिया से लाभ प्राप्त करते हैं।
      • अक्सर सामान्य दावे के विपरीत पौधों से भरपूर आहार लेने से समान खाद्य वितरण और पोषण सुरक्षा में सुधार करने में मदद मिल सकती है। केवल मानव उपयोग के लिये फसल उगाने से उपलब्ध खाद्य कैलोरी में 70% तक की वृद्धि हो सकती है, जिससे अतिरिक्त चार अरब लोगों को लाभ हो सकता है।
  • संक्रमण का महत्त्व:
    • स्वस्थ और सुरक्षित कार्य प्रदाता:
      • औद्योगीकृत पशुधन उत्पादन एक खतरनाक व्यवसाय है जो मानव स्वास्थ्य और मनोवैज्ञानिक कल्याण के लिये एक गंभीर खतरा है।
      • चोटों, बीमारी और आघात का प्रभाव व्यक्तिगत कार्यकर्त्ता को प्रभावित करता है तथा उन परिवारों एवं समुदायों पर विनाशकारी प्रभाव डालता है जो इससे  प्रभावित होते हैं।\
      • उदाहरण: हर साल बर्ड फ्लू और स्वाइन फ्लू जैसे नए प्रकारों का उभरना मानव स्वास्थ्य के लिये एक बड़ा खतरा है।
    • जलवायु के अनुकूल खाद्य प्रणालियाँ:
      • औद्योगीकृत पशुधन उत्पादन से दूर संक्रमण किसानों को जलवायु और उसी भूमि की रक्षा करने का अधिकार देता है जिस पर वे काम करते हैं।
      • यदि उत्पादन बेरोकटोक जारी रहा तो वर्ष 2050 तक पशुधन क्षेत्र 1.5 डिग्री सेल्सियस उत्सर्जन बजट का 81% तक होने का अनुमान है।
      • पशुधन उत्पादन जलवायु परिवर्तन को बढ़ाता है लेकिन वैश्विक तापमान में वृद्धि पशुधन उत्पादन के लिये समान रूप से हानिकारक है, जो किसानों की आजीविका के लिये एक बड़ा खतरा है।
        • इसके अलावा जलवायु परिवर्तन पशुधन रोगों के उद्भव को बढ़ाता है, पशु प्रजनन को कम करता है और जैव विविधता के नुकसान को बढ़ाता है।
    • रोज़गार-सृजन की बड़ी क्षमता:
      • अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार, पर्यावरण और सामाजिक रूप से स्थायी अर्थव्यवस्थाओं में परिवर्तन से रोज़गार सृजन, बेहतर रोज़गार सृजन, सामाजिक न्याय में वृद्धि तथा गरीबी कम हो सकती है।
        • यह अनुमान लगाया गया है कि एक ऊर्जा संक्रमण परिवर्तन 24-25 मिलियन रोज़गार का सृजन करेगा, जो वर्ष 2030 तक 6 या 7 मिलियन रोज़गार खोने से कहीं अधिक है। इसी तरह के लाभ पशुधन संक्रमण के माध्यम से देखे जाएंगे।
  • संबंधित उदाहरण:
    • डेनमार्क ने हाल ही में वर्ष 2030 तक 70% ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने की अपनी महत्त्वाकांक्षा के एक हिस्से के रूप में वर्ष 2030 तक कृषि उत्सर्जन को आधा करने के लिये एक बाध्यकारी निर्णय की घोषणा की है।
      • सरकार पौधों पर आधारित खाद्य पदार्थों का उत्पादन करने वाले किसानों को पाँच वर्ष के लिये 90 मिलियन अमेरिकी डॉलर उपलब्ध कराएगी और पौधों पर आधारित भोजन के लिये संक्रमण का समर्थन करने हेतु वर्ष 2030 तक 11.7 मिलियन अमेरिकी डॉलर का वार्षिक कोष बनाने के लिये प्रतिबद्ध है।
  • चुनौतियाँ: 
    • प्रौद्योगिकी की पहुँच और खेती में निवेश की कमी, उत्सर्जन में कमी हेतु संक्रमण के लाभों के बारे में जागरूकता, खाद्य क्षेत्र के भीतर विविधीकरण के लिये संस्थागत समर्थन, नुकसान के लिये मुआवज़े के भुगतान और गारंटीकृत आय धाराओं आदि में कमी के साथ-साथ युवा कृषि से भी दूर होते जा रहे हैं।
    • इसके अलावा किसानों, विशेष रूप से ग्रामीण छोटे धारकों हेतु स्थायी और पुनर्योजी कृषि पद्धतियों को अपनाने के लिये वित्तीय प्रोत्साहन की कमी है क्योंकि वे संबंधित लागतों और ज़ोखिमों को स्वयं वहन नहीं कर सकते हैं।
  • भारत में पशुधन की स्थिति:
    • भारत दुनिया का सबसे अधिक पशुधन वाला देश है।
    • 20वीं पशुधन गणना-2018 के अनुसार देश में कुल पशुधन आबादी 535.78 मिलियन है, जिसमें पशुधन गणना- 2012 की तुलना में 4.6% की वृद्धि हुई है।
    • आर्थिक सर्वेक्षण-2021 के अनुसार, कुल कृषि और संबद्ध क्षेत्र में पशुधन का योगदान वर्ष 2014-15 में सकल मूल्य वर्द्धित (स्थिर कीमतों पर) का 24.32 प्रतिशत था जो वर्ष 2018-19 में  बढ़कर 28.63% हो गया है।
  • भारत में संयंत्र आधारित संचालन:
    • प्लांट-आधारित मीट या स्मार्ट प्रोटीन अगली पीढ़ी के खाद्य नवाचार हैं जो पूरी तरह से स्वाद, गंध और तीखेपन में जानवरों के मांस जैसे होते हैं, जबकि यह पूरी तरह से पौधों की सामग्री से बने होते हैं।
      •  क्रूरता मुक्त और अधिक पर्यावरण के अनुकूल बहुत से भारतीयों द्वारा मांस का सेवन किया जाता है।
    • हाल ही में आईआईटी दिल्ली के वैज्ञानिकों की एक टीम ने संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) एक्सेलेरेटर लैब इंडिया द्वारा "पौधे आधारित नकली अंडे" के नवाचार के लिये आयोजित एक नवाचार प्रतियोगिता (इनोवेट 4 एसडीजी) जीती है।

आगे की राह

  • विज्ञान और सामाजिक आर्थिक डेटा स्पष्ट रूप से इंगित करता है कि हमेशा की तरह व्यवसाय अब एक विकल्प नहीं है। एक न्यायपूर्ण पशुधन संक्रमण को सक्षम करने के लिये सभी स्तरों पर महत्त्वाकांक्षी राजनीतिक कार्रवाई की आवश्यकता है।
  • इसके अलावा उत्सर्जन रिसाव को रोकने और अधिक टिकाऊ खाद्य उत्पादन तथा खपत हेतु एक समग्र संक्रमण को सक्षम करने के लिये इस तरह के उपायों को पौधों पर आधारित खाद्य खपत बढ़ाने के उद्देश्य से नीतियों का पूरक होना चाहिये।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


शासन व्यवस्था

कचरा मुक्त शहरों का स्टार रेटिंग प्रोटोकॉल

प्रिलिम्स के लिये:

स्वच्छ भारत मिशन, स्वच्छ सर्वेक्षण, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, कचरा मुक्त शहर।

मेन्स के लिये:

भारत में स्वच्छता और इसका महत्त्व, स्टार रेटिंग प्रोटोकॉल, कचरा।

चर्चा में क्यों?

सुशासन दिवस की पूर्व संध्या पर आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय (MoHUA) ने 'कचरा मुक्त शहरों का स्टार रेटिंग प्रोटोकॉल- टूलकिट 2022' लॉन्च किया।

  • यह कचरा प्रबंधन का सबसे महत्त्वपूर्ण शासकीय उपकरण है- कचरा मुक्त शहरों के लिये स्टार रेटिंग प्रोटोकॉल।
  • संशोधित प्रोटोकॉल में प्रमाणन के लिये आवेदन करने की पूरी प्रक्रिया को सरल और पूरी तरह से डिजिटल, पेपरलेस बनाया गया है।
  • सूचना, शिक्षा और संचार (आईईसी), क्षमता निर्माण, अपशिष्ट उप-उत्पादों की बिक्री के राजस्व से संबंधित नए घटकों को शहरों की अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों को मज़बूत करने एवं एक स्वच्छ पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण हेतु प्रोत्साहित करने के लिये जोड़ा गया है।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • MoHUA द्वारा ‘स्टार रेटिंग प्रोटोकॉल’ वर्ष 2018 में शुरू किया गया था ताकि शहरों को कचरा मुक्त स्थिति प्राप्त करने के लिये एक तंत्र को संस्थागत रूप दिया जा सके और शहरों को स्थायी स्वच्छता संबंधी उच्च क्षमता प्राप्त करने के लिये प्रेरित किया जा सके।
    • कचरा मुक्त शहरों के लिये हाल ही में संपन्न प्रमाणन अभ्यास में लगभग 50% यूएलबी (शहरी स्थानीय निकाय- 2,238 शहर) ने प्रमाणन अभ्यास में भाग लिया, जिनमें से कुल 299 शहरों को प्रमाणित किया गया है।
      • 9 शहरों को 5-स्टार, 143 शहरों को 3-स्टार और 147 शहरों को 1-स्टार का दर्जा दिया गया है।
      • अक्तूबर 2021 में स्वच्छ भारत मिशन-शहरी 2.0 को "कचरा मुक्त शहर" (GFC) बनाने के लिये लॉन्च किया गया था, जिससे भारत को समग्र स्वच्छता और अपशिष्ट प्रबंधन के एक पारिस्थितिकी तंत्र की ओर विकास के एक नए प्रक्षेपवक्र पर रखा गया।
    • यह उन विभिन्न पहलों में से एक है जिसका उद्देश्य स्वच्छ भारत मिशन-शहरी को एक सफल परियोजना बनाना है।
  • मानदंड:
    • यह 12 मापदंडों पर आधारित है जो एक स्मार्ट फ्रेमवर्क का पालन करते हैं- जैसे एकल मीट्रिक, मापने योग्य, प्राप्त करने योग्य, कठोर सत्यापन तंत्र और परिणाम लक्षित।
      • स्टार रेटिंग की स्थिति को इस तरह से डिज़ाइन किया गया है कि शहर धीरे-धीरे एक मॉडल (7-स्टार) शहर में विकसित हो सकें, जिसमें उनकी समग्र स्वच्छता में प्रगतिशील सुधार हो।
    • यह एक व्यापक ढाँचा है जो ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के 23 विभिन्न घटकों में शहरों का आकलन करता है और प्राप्त कुल अंकों के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है।

प्रक्रिया:

  • स्टार रेटिंग एक निश्चित स्टार रेटिंग प्राप्त करने हेतु स्व-मूल्यांकन (Self-Assessment) और स्व-सत्यापन (Self-Verification) पर आधारित है। यह स्व-घोषणा (Self-Declaration) की पारदर्शी प्रणाली हेतु नागरिक समूहों की भागीदारी भी सुनिश्चित करती है।
  • इसके अलावा स्व-घोषणा को MoHUA द्वारा नियुक्त एक तृतीय स्वतंत्र पक्ष एजेंसी के माध्यम से सत्यापित किया जाता है।

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  • महत्त्व:
    • स्वच्छ सर्वेक्षण सरकार द्वारा किया जाने वाला वार्षिक शहरी स्वच्छता सर्वेक्षण है।
    • स्टार रेटिंग प्रोटोकॉल के तहत शहरों का प्रदर्शन महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह स्वच्छ सर्वेक्षण में उनके अंतिम मूल्यांकन में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है।
    • यह ढांँचे में परिभाषित पूर्वापेक्षाओं के एक सेट (Set of Prerequisites) के माध्यम से स्वच्छता के कुछ न्यूनतम मानकों को भी सुनिश्चित करता है।
    • चूंकि रेटिंग का निर्धारण शहर के स्तर पर किया जाता है, इससे प्रक्रिया को लागू करना आसान हो जाता है और शहरों को उनकी समग्र स्वच्छता में सुधार करने में मदद मिलती है।
    • रेटिंग प्रोटोकॉल एक परिणाम आधारित उपकरण है जो MoHUA और अन्य हितधारकों को इस एकल रेटिंग के आधार पर शहरों का मूल्यांकन करने में मदद करता है।

भारत में कचरा

  • भारत विश्व में सर्वाधिक कचरा उत्पन्न करता है (जनवरी 2020 तक प्रतिदिन 147,613 मीट्रिक टन (एमटी) ठोस कचरा उत्पन्न), जो कि चीन से भी अधिक है लेकिन वर्तमान में भारत और चीन दोनों द्वारा उत्पन्न प्रति व्यक्ति कचरा विकसित देशों द्वारा उत्पन्न कचरे का एक छोटा सा ही अंश है।
    • भारतीय शहरों में प्रति व्यक्ति अपशिष्ट उत्पादन प्रतिदिन 200 ग्राम से 600 ग्राम तक होता है। नगरपालिका द्वारा लगभग 75-80% कचरा ही एकत्र किया जाता है और इस कचरे का केवल 22-28% ही संसाधित और उपचारित होता है।
    • यह अनुमान है कि वर्ष 2050 तक भारत का कचरा उत्पादन दोगुना हो जाएगा, जबकि चीन के अपशिष्ट उत्पादन में बहुत धीमी वृद्धि होगी। 
  • संबंधित पहलें:

स्रोत: पी.आई.बी 


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

परमाणु पनडुब्बी गठबंधन: AUKUS

प्रिलिम्स के लिये:

AUKUS, क्वाड, नाटो, साउथ चाइना सी, परमाणु पनडुब्बी।

मेन्स के लिये:

इंडो-पैसिफिक और क्वाड पर AUKUS का प्रभाव, भारत के लिये इसके निहितार्थ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और ब्रिटेन ने संवेदनशील ‘नौसेना परमाणु प्रणोदन सूचना’ के आदान-प्रदान की अनुमति देने वाले एक समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं।

  • बीते दिनों प्रशांत क्षेत्र, जहाँ चीन-अमेरिका प्रतिद्वंद्विता बढ़ रही है, में सामरिक तनाव का सामना करने हेतु तीनों देशों ने रक्षा गठबंधन, ‘ऑकस’ का गठन किया था, जिसके बाद सार्वजनिक रूप से हस्ताक्षरित होने वाली प्रौद्योगिकी पर यह पहला समझौता है।
  • ‘ऑकस’ सौदे के तहत ऑस्ट्रेलिया आठ अत्याधुनिक, परमाणु-संचालित लेकिन पारंपरिक रूप से सशस्त्र पनडुब्बियों को प्राप्त करेगा।

प्रमुख बिंदु

  • ऑकस:
    • सितंबर 2021 में अमेरिका ने ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिका (AUKUS) के बीच इंडो-पैसिफिक के लिये एक नई त्रिपक्षीय सुरक्षा साझेदारी की घोषणा की थी।
    • इस व्यवस्था का प्रमुख उद्देश्य ऑस्ट्रेलिया हेतु अमेरिकी परमाणु पनडुब्बी प्रौद्योगिकी का साझाकरण सुनिश्चित करना है।
    • इसका इंडो-पैसिफिक उन्मुखीकरण इसे दक्षिण चीन सागर में चीन की मुखर कार्रवाइयों के खिलाफ एक प्रमुख गठबंधन बनाता है।
    • इसमें तीन देशों के बीच बैठकों और वार्ताओं के साथ-साथ उभरती प्रौद्योगिकियों (जैसे- कृत्रिम बुद्धिमत्ता, क्वांटम प्रौद्योगिकियों और अंडरसी क्षमताओं) में सहयोग का एक नया फ्रेमवर्क शामिल होगा।
    • हिंद-प्रशांत क्षेत्र/क्वाड पर प्रभाव:
      • इस बात की चिंता है कि ‘ऑकस’ (AUKUS) अमेरिका-यूरोपीय संघ संबंधों और उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (NATO) पर गहरा प्रभाव डाल सकता है और इंडो-पैसिफिक में अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन को कमज़ोर कर सकता है।
        • नाटो की स्थापना 4 अप्रैल, 1949 की उत्तरी अटलांटिक संधि (जिसे वाशिंगटन संधि भी कहा जाता है) द्वारा संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा और कई पश्चिमी यूरोपीय देशों द्वारा सोवियत संघ के खिलाफ सामूहिक सुरक्षा प्रदान करने के लिये की गई थी।
        • नाटो के प्राथमिक लक्ष्य अपने सदस्यों की सामूहिक रक्षा और उत्तरी अटलांटिक क्षेत्र में लोकतांत्रिक शांति बनाए रखना है। 
      • फ्राॅंस ने संयुक्त राष्ट्र में ऑस्ट्रेलिया, फ्राॅंस और भारत के विदेश मंत्रियों की एक निर्धारित बैठक रद्द कर दी थी।
        • पिछले कुछ वर्षों में उभरते हिंद-प्रशांत परिदृश्य में त्रिपक्षीय एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व बन गया है लेकिन बैठक का रद्द होना त्रिपक्षीय जुड़ाव के लिये एक झटका है।
      • यह स्पष्ट नहीं है कि क्वाड और AUKUS एक-दूसरे को सुदृढ़ करेंगे या परस्पर अनन्य रहेंगे।
        • कुछ मान्यताएँ हैं कि "एंग्लोस्फीयर नेशन" - जो यूनाइटेड किंगडम के साथ साझा सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंध साझा करते हैं - एक दूसरे में अधिक विश्वास को प्रेरित करते हैं।
        • क्वाड भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान का एक समूह है जिसका उद्देश्य हिंद-प्रशांत क्षेत्र में लोकतांत्रिक राष्ट्रों के हितों की रक्षा करना और वैश्विक चुनौतियों का समाधान करना है।
    • भारत के लिये निहितार्थ:
      • भारत ने कहा है कि नई साझेदारी न तो क्वाड के लिये प्रासंगिक है और न ही इसका उसके कामकाज पर कोई प्रभाव पड़ेगा।
      • AUKUS के प्रति उदासीनता के बावजूद भारत AUKUS व्यवस्था से द्वितीयक लाभ प्राप्त कर सकता है, जिसमें तीन उन्नत राष्ट्र हैं, जो दुनिया में सबसे परिष्कृत सैन्य शक्ति के साथ चीन के तेज़ी से मुखर रवैये के आलोक में एक स्वतंत्र हिंद-प्रशांत का समर्थन करने के लिये एक साथ आ रहे हैं। यह कुछ हद तक चीन का प्रतिरोध कर सकता है।
        • साथ ही चीन द्वारा 'घेरने' के संबंध में भारत की चिंताओं को AUKUS द्वारा आंशिक रूप से कम किया जा सकता है।
      • बुनियादी ढाँचा विकास परियोजनाओं और उपस्थिति के मामले में चीन ने भारत के पड़ोस में बड़े पैमाने पर पैठ बनाई है।
      • आशंका है कि इस सौदे से अंततः पूर्वी हिंद महासागर में परमाणु हमला करने वाली पनडुब्बियों (SSN/सबमर्सिबल शिप न्यूक्लियर) की भीड़ लग सकती है, जिससे भारत की क्षेत्रीय श्रेष्ठता खत्म हो जाएगी।

    Defence-Pack

    आगे की राह

    • भारत को द्विपक्षीय वार्ताओ में अतिशयोक्तिपूर्ण, अस्पष्ट, वास्तविकता के प्रति सावधान रहना चाहिये। जबकि भारत-अमेरिका संबंधों का मज़बूत होना भारतीयों के लिये लाभदायक होगा।
      • "भारत को एक महान शक्ति बनाने के लिये" अमेरिका ने मदद का प्रस्ताव और घोषणाएँ की कि "दुनिया के दो महान लोकतंत्रों में दुनिया की दो सबसे बड़ी सेनाएँ भी होनी चाहिये" 
    • हमें स्टील्थ फाइटर्स, जेट इंजन एडवांस्ड रडार और पनडुब्बियों के साथ-साथ एयरक्राफ्ट-कैरियर्स के लिये न्यूक्लियर प्रोपल्शन सहित कई अन्य चीज़ो की "जानकारी" के अलावा ऑस्ट्रेलिया को दी जाने वाली सभी तकनीकों की आवश्यकता है।
    •  एक छोटे देश लक्ज़मबर्ग से लेकर उभरते पोलैंड तक हर यूरोपीय देश के पास यूरोप को देने के लिये कुछ-न-कुछ है जो भारत के अंतर्राष्ट्रीय संबंधों का एक संपन्न केंद्र बन गया है।
      • पिछले कुछ वर्षों में फ्राँस के साथ भारत की सामरिक भागीदारी में तेज़ी आई है।
    • भारत-प्रशांत की सुरक्षा में साझा हितों और मौजूदा झगड़े तथा इस बड़े लक्ष्य को कमज़ोर करने के खतरों के बारे में फ्राँस, ऑस्ट्रेलिया, यूके और यूएस को जानकारी प्रदान करना है।

    स्रोत: द हिंदू


    जैव विविधता और पर्यावरण

    फ्लेक्स फ्यूल व्हीकल्स (FFV)

    प्रिलिम्स के लिये:

    फ्लेक्स फ्यूल व्हीकल (Flex Fuel Vehicles- FFV), फ्लेक्स फ्यूल स्ट्रांग हाइब्रिड इलेक्ट्रिक व्हीकल (FFV-SHEV), बीएस-6 मानदंड, उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना।

    मेन्स के लिये:

    फ्लेक्स फ्यूल व्हीकल्स का महत्त्व और इसका उपयोग, विकास का हरित मॉडल।

    चर्चा में क्यों? 

    हाल ही में  सरकार द्वारा भारत में ऑटोमोबाइल निर्माताओं को समयबद्ध तरीके से बीएस-6 मानदंडों का अनुपालन करने वाले फ्लेक्स फ्यूल व्हीकल (Flex Fuel Vehicles- FFV) और फ्लेक्स फ्यूल स्ट्रॉन्ग हाइब्रिड इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (Flex Fuel Strong Hybrid Electric Vehicles-FFV-SHEV) का निर्माण शुरू करने का आह्वान किया है।

    प्रमुख बिंदु 

    • FFV और  FFV-SHEV के बारे में:
      • फ्लेक्स फ्यूल व्हीकल (FFV): इनमें ऐसे इंजन लगे होते हैं जो फ्लेक्सिबल फ्यूल (पेट्रोल और इथेनॉल का संयोजन, जिसमें 100% तक इथेनॉल शामिल हो सकता है।) पर चलने में सक्षम होते हैं।
      • फ्लेक्स फ्यूल स्ट्रॉन्ग हाइब्रिड इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (FFV-SHEV): जब FFV को मज़बूत हाइब्रिड इलेक्ट्रिक तकनीक के साथ एकीकृत किया जाता है, तो इसे FFV-SHEV कहा जाता है।
        • पूर्ण हाइब्रिड व्हीकल्स/वाहनों (Full Hybrid Vehicles) के लिये स्ट्रॉन्ग हाइब्रिड एक और शब्द है, जिसमें पूरी तरह से इलेक्ट्रिक या पेट्रोल मोड पर चलने की क्षमता होती है। 
        • इसके विपरीत माइल्ड हाइब्रिड (Mild Hybrids) विशुद्ध रूप से इनमें से किसी एक मोड पर नहीं चल सकते हैं और द्वितीयक मोड का उपयोग केवल प्रणोदन के मुख्य मोड के पूरक के रूप में करते हैं।
      • FFVs की शुरुआत में तेज़ी लाने हेतु उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना (PLI) में फ्लेक्स ईंधन के ऑटोमोबाइल और ऑटो घटकों को शामिल किया गया है।
    • पहल का महत्त्व:
      • आयात बिल में कमी: नीति से पेट्रोलियम उत्पादों की मांग में कमी आने की उम्मीद है।
        • भारत वर्तमान में अपनी पेट्रोलियम आवश्यकता का 80% से अधिक आयात करता है, और यह देश से धन के सबसे बड़े बहिर्वाह में से एक का भी प्रतिनिधित्त्व करता है।
      • किसानों को लाभ: ईंधन के रूप में इथेनॉल या मेथनॉल के व्यापक उपयोग का उद्देश्य किसानों के लिये एक अतिरिक्त राजस्व धारा बनाना है।
        • इससे किसानों को सीधा लाभ मिलेगा और किसान की आय दोगुनी करने में मदद मिलेगी।
      • आत्मनिर्भर भारत को बढ़ावा: यह प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भर भारत के दृष्टिकोण और परिवहन ईंधन के रूप में इथेनॉल को बढ़ावा देने की सरकार की नीति के अनुरूप है।
      • ग्रीनहाउस गैस को कम करना और जलवायु परिवर्तन से निपटना: इस कदम से वाहनों से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में भारी कमी आएगी।
        • इस प्रकार वर्ष 2030 तक कुल अनुमानित कार्बन उत्सर्जन को एक बिलियन टन कम करने के लिये COP26 में की गई अपनी प्रतिबद्धता का पालन करने में भारत की मदद करना।
    • संबंधित पहलें:

    6_Things

    बीएस-VI ईंधन मानदंड:  

    • भारत स्टेज (BS) मोटर वाहनों से वायु प्रदूषकों के उत्पादन को नियंत्रित करने के लिये भारत सरकार द्वारा स्थापित उत्सर्जन मानक है।
    • भारत सीधे BS-IV से BS-VI मानदंडों में स्थानांतरित हो गया। BS-VI वाहनों में स्विच वर्ष 2022 में होना था, लेकिन खराब हवा की स्थिति को देखते हुए इस कदम को चार वर्ष आगे बढ़ा दिया गया था।
    • BS-VI ईंधन में पार्टिकुलेट मैटर 2.5 की मात्रा 20 से 40 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर तक होती है जबकि BS-IV ईंधन में यह 120 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर तक होती है।
    • BS-VI ईंधन मौजूदा BS-IV स्तरों से सल्फर की मात्रा को 5 गुना कम कर देगा। इसमें बीएस-IV में 50 पीपीएम के मुकाबले 10 पीपीएम सल्फर है।
      • ईंधन में सल्फर सूक्ष्म कणों के उत्सर्जन में योगदान देता है। ईंधन में उच्च सल्फर सामग्री भी ऑटोमोबाइल इंजन के क्षरण और घिसाव का कारण बनती है।
    • BS-VI ईंधन के साथ प्रत्येक किलोमीटर पर एक कार 80% कम पार्टिकुलेट मैटर और लगभग 70% कम नाइट्रोजन ऑक्साइड उत्सर्जित करेगी।
    • BS-VI ईंधन की तुलना में BS-VI ईंधन में वायु प्रदूषक बहुत कम होते हैं।
    • BS-VI मानदंड ईंधन के अधूरे दहन के कारण उत्पन्न होने वाले उत्सर्जन में कुछ हानिकारक हाइड्रोकार्बन के स्तर को कम करने का भी प्रयास करते हैं।

    स्रोत: पी.आई.बी.


    भारतीय अर्थव्यवस्था

    उपभोक्ता संरक्षण (प्रत्यक्ष बिक्री) नियम, 2021

    प्रिलिम्स के लिये:

    उपभोक्ता संरक्षण (प्रत्यक्ष बिक्री) नियम, 2021, कंपनी अधिनियम, सीमित देयता भागीदारी अधिनियम, 2008 के प्रावधान

    मेन्स के लिये:

    उपभोक्ता संरक्षण (डायरेक्ट सेलिंग) नियम के प्रावधान, उपभोक्ता अधिकारों की रक्षा में उपभोक्ता संरक्षण (डायरेक्ट सेलिंग) नियम, 2021 की भूमिका

    चर्चा में क्यों?

    हाल ही में केंद्र सरकार ने प्रत्यक्ष बिक्री उद्योग के लिये उपभोक्ता संरक्षण (प्रत्यक्ष बिक्री) नियम, 2021 को अधिसूचित किया है।

    • यह पिरामिड योजनाओं के प्रचार और धन संचलन योजनाओं में भागीदारी को प्रतिबंधित करता है।
    • इसे उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए अधिसूचित किया गया है।
    • इससे पहले सरकार ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के तहत उपभोक्ता संरक्षण (ई-कॉमर्स) नियम, 2020 के प्रावधानों को अधिसूचित और प्रभावी किया था।

    प्रमुख बिंदु

    • परिचय:
      • ये नियम "उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा" करने के लिये प्रत्यक्ष बिक्री संस्थाओं तथा उनके प्रत्यक्ष विक्रेताओं दोनों के कर्तव्यों और दायित्वों को निर्धारित करते हैं।
      • मौजूदा डायरेक्ट सेलिंग कंपनियों को यह सुनिश्चित करना होगा कि वे 90 दिनों के भीतर नियमों का पालन करें।
      • हालाँकि प्रत्यक्ष विक्रेताओं के साथ-साथ बिक्री के लिये ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म का उपयोग करने वाली प्रत्यक्ष बिक्री संस्थाएँ उपभोक्ता संरक्षण (ई-कॉमर्स) नियम, 2020 की आवश्यकताओं का पालन करेंगी।
    • नियमों की प्रयोज्यता- यह निम्नलिखित पर लागू होगा:
      • प्रत्यक्ष बिक्री के माध्यम से खरीदे या बेचे जाने वाले सभी सामान और सेवाएँ।
      • प्रत्यक्ष बिक्री के सभी मॉडल, भारत में उपभोक्ताओं को वस्तुओं और सेवाओं की पेशकश करने वाली सभी प्रत्यक्ष बिक्री संस्थाएँ।
      • प्रत्यक्ष बिक्री के सभी मॉडलों में सभी प्रकार के अनुचित व्यापार व्यवहार।
      • प्रत्यक्ष बिक्री वाली संस्थाओं के लिये जो भारत में स्थापित नहीं हैं, लेकिन भारत में उपभोक्ताओं को सामान या सेवाएँ प्रदान करती हैं।
    • नए नियमों के प्रमुख प्रावधान:
      • गतिविधियों की निगरानी के लिये तंत्र:
        • इसने राज्य सरकारों को प्रत्यक्ष विक्रेताओं और प्रत्यक्ष बिक्री संस्थाओं की गतिविधियों की निगरानी या निगरानी के लिये एक तंत्र स्थापित करने हेतु निर्देशित किया।
      • शिकायत निवारण तंत्र:
        • डायरेक्ट सेलिंग कंपनियों को पर्याप्त शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करने की आवश्यकता होगी।
          • ऐसी वस्तुओं या सेवाओं की प्रामाणिकता से संबंधित किसी भी कार्रवाई में प्रत्यक्ष बिक्री संस्थाओं को दायित्त्व वहन करना होगा।
          • प्रत्येक प्रत्यक्ष बिक्री इकाई को एक नोडल अधिकारी नियुक्त करना होगा जो अधिनियम और नियमों के प्रावधानों के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिये ज़िम्मेदार होगा।
      • उपभोक्ताओं को खरीदारी के लिये उत्प्रेरित न करना: 
        • प्रत्यक्ष बिक्री कंपनियाँ या उनके प्रत्यक्ष विक्रेता उपभोक्ताओं को इस आधार पर खरीदारी करने के लिये उत्प्रेरित नहीं कर सकती हैं कि वे संभावित ग्राहकों को समान खरीदने के लिये प्रत्यक्ष विक्रेताओं को संदर्भित करके कीमत को कम या वसूल कर सकते हैं।
      • प्रत्यक्ष बिक्री संस्थाओं पर दायित्व:
        • अधिनियमों के तहत निगमन:
          • कंपनी अधिनियम 2013 के तहत निगमन या यदि एक साझेदारी फर्म है, तो साझेदारी अधिनियम, 1932 के तहत पंजीकृत हो, या यदि एक सीमित देयता भागीदारी है, तो सीमित देयता भागीदारी अधिनियम, 2008 के तहत पंजीकृत हो।
        • भौतिक रूप से उपस्थित हो:
          • भारत के भीतर एक पंजीकृत कार्यालय के रूप भौतिक उपस्थिति होनी आवश्यक है।
        • स्व-घोषणा:
          • संस्थाओं को इस बात की स्व-घोषणा करनी होगी कि डायरेक्ट सेलिंग एंटिटी ने डायरेक्ट सेलिंग नियमों के प्रावधानों का पालन किया है और किसी पिरामिड योजना या मनी सर्कुलेशन योजना में शामिल नहीं है।
    • महत्त्व:
      • ये नए नियम बाज़ार में स्पष्टता लाएंगे और प्रत्यक्ष बिक्री उद्योग को प्रोत्साहन देंगे, जो पहले से ही 70 लाख से अधिक भारतीयों को आजीविका प्रदान कर रहा है, जिसमें 50% से अधिक महिलाएँ हैं।

    उपभोक्ता संरक्षण (ई-कॉमर्स) नियम, 2020

    • परिचय:
      • उपभोक्ता संरक्षण (ई-कॉमर्स) नियम, 2020 अनिवार्य है, सलाहकारी नहीं।
    • प्रयोज्यता:
      • ये नियम सभी ई-कॉमर्स खुदरा विक्रेताओं पर लागू होते हैं, जो भारतीय उपभोक्ताओं को सामान और सेवाएँ प्रदान करते हैं, चाहे वे भारत में पंजीकृत हों अथवा विदेश में।
    • नोडल अधिकारी:
      • ई-कॉमर्स संस्थाओं को अधिनियम या नियमों के प्रावधानों का अनुपालन सुनिश्चित करने हेतु भारत में एक नोडल अधिकारी की नियुक्ति करने की आवश्यकता है।
    • कीमत और एक्सपायरी तिथि:
      • ई-कॉमर्स विक्रेताओं को बिक्री के लिये दी जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं की कुल कीमत प्रदर्शित करनी होगी, जिसमें अन्य शुल्कों के साथ कुल शुल्क का ब्रेकअप भी शामिल होगा।
      • इसके अलावा वस्तु की एक्सपायरी तिथि का भी स्पष्ट तौर पर उल्लेख किया जाना चाहिये।

    स्रोत: पी.आई.बी 


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