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जैव विविधता और पर्यावरण

नगर निगमों के ठोस अपशिष्ट का सतत् प्रसंस्करण

  • 24 Oct 2020
  • 12 min read

प्रिलिम्स के लिये:

ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम-2016, वर्मी कम्पोस्ट 

मेन्स के लिये:

नगर निगमों के ठोस अपशिष्ट का सतत प्रसंस्करण

चर्चा में क्यों?

लगातार बढ़ती जनसंख्या और शहरीकरण की तीव्र गति के साथ देश को अपशिष्ट प्रबंधन की एक बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। कचरे की मात्रा वर्ष 2030 तक वर्तमान 62 मिलियन टन से बढ़कर लगभग 150 मिलियन टन होने का अनुमान है।

भारत में नगरपालिका से उत्पन्न ठोस अपशिष्ट:

  • अध्ययनों से पता चलता है कि भारत में नगरपालिका से उत्पन्न ठोस अपशिष्ट में ज़्यादातर कार्बनिक कचरे का अंश (> 50%) होता है।

अपशिष्ट कचरे का अवैज्ञानिक निपटान:

  • जैविक कचरे के अवैज्ञानिक निपटान से ग्रीनहाउस गैस के साथ-साथ हवा में अन्य प्रदूषक पैदा होते हैं।
  • म्युनिसिपल अपशिष्ट (MSW) का अप्रभावी प्रसंस्करण भी कई बीमारियों का मूल कारण है क्योंकि डंप लैंडफिल, पैथोजेन, बैक्टीरिया एवं वायरस के लिये संदूषण हब (Contamination Hubs) में बदल जाते हैं।
    • इसके अलावा ऐसे क्षेत्र मीथेन गैस उत्‍सर्जन का भी बड़ा स्रोत बनते हैं। विशेषकर कम्पोस्ट बनाने की प्रक्रिया में यह गैस काफी उत्‍सर्जित होती है और कंपोस्टिंग से उद्यमियों को कोई खास आर्थिक लाभ भी नहीं मिलता है। 
    • बारिश के मौसम में अत्यधिक नमी की उपस्थिति के कारण कम्पोस्ट का प्रबंधन मुश्किल हो जाता है।
  • वर्तमान परिदृश्य में कचरे की मिश्रित प्रकृति, कृषि उत्‍पादों में भारी धातुओं के मिश्रण को आसान बनाती है।

वैज्ञानिक तरीके से ठोस अपशिष्ट प्रबंधन:

  • ठोस अपशिष्ट उपचार और निपटान उपयोगी प्लाज़्मा आर्क गैसीकरण प्रक्रिया (Plasma Arc Gasification Process): 
    • यह प्रक्रिया इको-फ्रेंडली सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट के लिये एक विकल्प है जिसमें बड़ी मात्रा में 95% तक की कटौती संभव है।
    • प्लाज़्मा गैसीकरण प्रक्रिया में प्लाज्मा रिएक्टर के अंदर उच्च तापमान प्लाज़्मा आर्क (3000°C से ऊपर) उत्पन्न करने के लिये विद्युत का उपयोग किया जाता है जो कचरे को सिनगैस (Syngas) में परिवर्तित करता है। उत्पादित सिनगैस विद्युत के उत्पादन के लिये गैस इंजन में उपयोग की जाती है।

सिनगैस (Syngas):

  • संश्लेषण गैस (Synthesis Gas) को संक्षिप्त रूप में सिनगैस कहा जाता है।
  • सिनगैस हाइड्रोजन, कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) और कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) का मिश्रण है।
  • इसका उपयोग ईंधन, फार्मास्यूटिकल्स, प्लास्टिक और उर्वरक उत्पादन जैसे कई अनुप्रयोगों में किया जाता है।
  • इस प्रक्रिया से प्राप्त अवशिष्ट राख को सीमेंट के साथ मिश्रित किया जा सकता है जिसका उपयोग ईंटों के रूप में विनिर्माण कार्यों में किया जा सकता है। इस प्रकार 'अपशिष्ट से धन' के सृजन में मदद मिलती है।

नई तकनीक:

  • सीएसआईआर-केंद्रीय यांत्रिक अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान’ (CSIR- Central Mechanical Engineering Research Institute or CSIR-CMERI) द्वारा विकसित ‘म्युनिसिपल अपशिष्ट’ (MSW) प्रसंस्करण सुविधा’ ने न केवल ठोस कचरे के विकेंद्रीकरण को कम करने में मदद की है बल्कि सूखे पत्तों, सूखी घास जैसे बहुतायत से उपलब्ध निरर्थक वस्तुओं से मूल्य वर्द्धित उत्पाद बनाने में भी मदद की है। 
  • केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा निर्धारित ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम (SWM), 2016 के बाद वैज्ञानिक तरीके से ठोस कचरे के निपटान के लिये ‘म्युनिसिपल अपशिष्ट (MSW) प्रसंस्करण सुविधा’ विकसित की गई है।
  • CSIR-CMERI का प्राथमिक फोकस ‘उन्नत पृथक्करण तकनीक’ (Advanced Segregation Techniques) के माध्यम से सामान्य परिवारों को कचरा पृथक्करण की ज़िम्मेदारियों से मुक्त करना है।
    • मशीनीकृत ‘उन्नत पृथक्करण प्रणाली’ ठोस अपशिष्ट से मेटैलिक वेस्ट (मेटल बॉडी, मेटल कंटेनर आदि), बायोडिग्रेडेबल वेस्ट (खाद्य पदार्थ, सब्जियाँ, फल, घास आदि), नॉन-बायोडिग्रेडेबल (प्लास्टिक, पैकेजिंग मटीरियल, पाउच, बोतलें आदि) और अक्रिय अपशिष्ट (काँच, पत्थर आदि) को अलग करती है।
  • कचरे के जैव-अपघटनीय घटक को अवायवीय वातावरण (Anaerobic Environment) में जैव-गैसीकरण के रूप में विघटित किया जाता है। इस प्रक्रिया में जैविक पदार्थों के रुपांतरण के माध्यम से बायोगैस को मुक्त किया जाता है।
    • खाना पकाने के उद्देश्य से बायोगैस का उपयोग ईंधन के रूप में किया जा सकता है। 
    • विद्युत उत्पादन के लिये बायोगैस का उपयोग गैस इंजन में भी किया जा सकता है।
  • केंचुओं के माध्यम से बायोगैस संयंत्र के अवशिष्ट घोल को एक प्राकृतिक प्रक्रिया के माध्यम से कम्पोस्ट में परिवर्तित किया जाता है जिसे वर्मी-कम्पोस्टिंग (Vermi-Composting) के रूप में जाना जाता है। 
    • जैविक खेती में वर्मी-कम्पोस्ट का उपयोग किया जाता है।
  • बायोमास अपशिष्ट निपटान (Biomass Waste Disposal):
    • बायोमास अपशिष्ट जैसे- सूखी पत्तियाँ, मृत शाखाएँ, सूखी घास आदि के निपटान हेतु इन्हें उपयुक्त आकार के छोटे-छोटे टुकड़ों में परिवर्तित करके बायोगैस डाइजेस्टर (Biogas Digester) के घोल में मिलाकर किया जाता है।
      • परिणामस्वरूप इस मिश्रण से प्राप्त ब्रीकेट (Briquette) का उपयोग खाना पकाने के लिये ईंधन के रूप में किया जाता है।
      • इन ब्रिकेट्स का उपयोग गैसीफायर में सिनगैस के उत्पादन के लिये भी किया जा रहा है।
  • पॉलिमर अपशिष्ट निपटान (Polymer Waste Disposal):
    • प्लास्टिक, सैनिटरी अपशिष्ट आदि से बने पॉलिमर कचरे को दो मुख्य प्रक्रियाओं यानी पायरोलिसिस (Pyrolysis) और प्लाज़्मा गैसीकरण (Plasma Gasification) के माध्यम से निपटाया जा रहा है।
      • पाइरोलिसिस प्रक्रिया में उपयुक्त उत्प्रेरक की उपस्थिति में अवायवीय वातावरण में पॉलिमर अपशिष्ट को 400-600°C के तापमान पर गर्म किया जाता है।
      • पॉलिमर अपशिष्ट से वाष्पशील पदार्थ हीटिंग के परिणामस्वरूप निकलता है जो संघनित होने पर पायरोलिसिस तेल (Pyrolysis Oil) के रूप में प्राप्त होता  है।
      • शुद्धिकरण के बाद गैर-संघटित सिनगैस और क्रूड पायरोलिसिस तेल का पुनः उपयोग हीटिंग उद्देश्यों के लिये किया जाता है। इस प्रक्रिया में भारी तेल और गैस का इस्‍तेमाल किये जाने से आत्मनिर्भरता की स्थिति प्राप्त करने में मदद मिली है।
        • ईंट के उत्पादन के लिये ठोस अपशिष्टों को चार (Char) के रूप में बायोगैस घोल के साथ मिश्रित किया जाता है।
    • प्लाज़्मा गैसीफिकेशन प्रक्रिया भी पर्यावरण अनुकूल है और इसमें ठोस अपशिष्‍टों का निस्‍तारण होता है तथा ज़हरीले डॉयोक्‍सीन और फ्यूरान जैसे तत्त्व भी नहीं बनते हैं।
  • सैनिटरी अपशिष्ट निपटान (Sanitary Waste Disposal):
    • सैनिटरी वस्तुएँ जिनमें मास्क, सैनिटरी नैपकिन, डायपर आदि शामिल हैं, उच्च तापमान प्लाज़्मा (High Temperature Plasma) का उपयोग करते हैं।
    • यूवी-सी लाइट्स (UV-C Lights) और हॉट-एयर कन्वेंशन विधियों (Hot-Air Convection Methods) के माध्यम से COVID-19 चेन को तोड़ने में मदद करने के लिये MSW सुविधा विशेष कीटाणुशोधन क्षमताओं से लैस है।

नई तकनीकी के लाभ:

  • परिवहन लॉजिस्टिक्स से संबंधित खर्च में कमी आएगी।
  • जीवाश्म ईंधन के उपयोग को कम करके कार्बन डाइऑक्‍साइड उत्सर्जन में कमी आएगी। 
  • अपशिष्ट प्रसंस्करण उत्पादों  से विनिर्माण क्षमता को बढ़ावा मिलेगा। 
  • रोज़गार के अवसरों को विकसित करने के अलावा एक ज़ीरो-लैंडफिल और एक ज़ीरो वेस्ट सिटी का सपना साकार हो सकता है। 
  • यह तकनीक हरित ऊर्जा के क्षेत्र में भारत को फिर से आत्‍मनिर्भर बनाने में मदद करेगी। 

निपटान उपयोगी प्लाज़्मा आर्क गैसीकरण प्रक्रिया की सीमाएँ:

  • हालाँकि यह तकनीक आर्थिक रूप से व्यवहार्य नहीं है क्योंकि इस तकनीक के प्रयोग में अपशिष्ट उपचार के लिये ऊर्जा की बहुत अधिक आवश्यकता होती है। 
    • छोटे संयंत्रों (<100 मीट्रिक टन क्षमता) के लिये संसाधित अपशिष्ट क्षमता लगभग 1.5 kWh/kg
    • 100 मीट्रिक टन क्षमता से अधिक कचरा अपशिष्ट संयंत्रों के लिये संसाधित अपशिष्ट क्षमता लगभग 1.2 kWh/kg

  • इसके अलावा इलेक्ट्रोड की खपत (~500 मिलीग्राम/किग्रा अपशिष्ट संसाधित) की उच्च दर खर्च में वृद्धि करती है जो प्रक्रिया को महँगा बनाती है।  

स्रोत: पीआईबी 

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