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जैव विविधता और पर्यावरण

वर्ष 2020 से बीएस-6 मानदंडों का कार्यान्वयन

  • 28 May 2019
  • 7 min read

भूमिका

सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने चौपहिया वाहनों की श्रेणी को कवर करने के लिये ऑटोमोबाइल क्षेत्र के बीएस-6 (भारत स्टैंडर्ड-6) मानकों को लागू करने का निर्णय लिया है, जबकि वर्तमान समय में बीएस-4 मानकों का कार्यान्वयन चल रहा है। ऑटो ईंधन नीति के द्वारा पहले से निर्धारित रोडमैप के अनुसार बीएस-5 मानकों को लागू करना था, जिनका कार्यान्वयन 1 अप्रैल, 2022 से तथा बीएस-6 मानकों का कार्यान्वयन 1 अप्रैल, 2024 से होना था। किंतु बीएस-5 मानकों को लागू न करके बीएस-6 मानकों के कार्यान्वयन की समय-सीमा में परिवर्तन कर 1 अप्रैल, 2020 से लागू करने का फैसला लिया गया है।

भारत की तुलना में चीन

  • भारत की तरह प्रदूषण की भयावह समस्या का सामना कर रहे चीन ने राजधानी बीजिंग में प्रदूषण के खतरों को कम करने के लिये नए उत्सर्जन मानक अपनाने का मसौदा तैयार कर लिया है। यह छठे चरण का उत्सर्जन मानक होगा, जिसे 1 दिसंबर, 2017 से लागू करने की योजना है। बीजिंग पर्यावरणीय सुरक्षा ब्यूरो ने जिस नए उत्सर्जन मानक को अपनाने का फैसला किया है, उसे विश्व के सबसे सख्त उत्सर्जन मानकों में से एक माना जा रहा है।
  • इसमें हल्के वाहन, भारी वाहन और भारी मोटर को भी शामिल किया गया है। छठे चरण के उत्सर्जन मानकों के अनुसार, हल्के वाहनों को 40 प्रतिशत तक और भारी वाहनों को 50 प्रतिशत तक उत्सर्जन में कटौती करनी होगी। अनुमान है कि 2022 तक चीन में वाहनों द्वारा उत्सर्जित प्रदूषकों में 30 प्रतिशत तक की कटौती की जाएगी।

राष्ट्रीय ऑटो ईंधन नीति (National Auto Fuel Policy)

  • वाहनों से होने वाले प्रदूषण को कम करने के लिये सरकार को ऐसी नीति बनानी होगी, जिसमें प्रदूषण को दिल्ली और देश के अन्य हिस्सों के लिये समान जोखिम करार दिया जाए, तभी देश भर से पुराने वाहनों को हटाया जा सकेगा। इसके अलावा, भारत में फिलहाल कोई वाहन स्क्रैपिंग नीति नहीं है, हालाँकि वाहन ईंधन नीति में इसका प्रस्ताव है। स्क्रैपिंग नीति के तहत सरकार पुराने वाहनों को बेहतर उत्सर्जन मानकों वाले आधुनिक वाहनों से बदलने को प्रोत्साहित करती है।
  • 2003 में माशेलकर ऑटो ईंधन समिति ने ऑटो ईंधन नीति की हर पाँच वर्षों में समीक्षा करने के लिये कहा था, फिर भी 2012 तक नई ऑटो ईंधन नीति समीक्षा समिति का गठन नहीं किया गया। जनवरी 2013 में ऑटो ईंधन नीति समिति का गठन किया गया। समिति ने सभी प्रकार के सड़क वाहनों के लिये कई दीर्घावधि नीतियाँ बनाईं और वर्ष 2025 के लिये सुधारों की अनुशंसा की। ये अनुशंसाएँ भारत में ईंधन की खपत और दीर्घावधि ईंधन उत्सर्जन को कम करने के लिये एक आरंभिक बिंदु साबित हो सकती हैं।

पूर्व समितियाँ

  • अप्रैल 2014 में किरीट पारिख की अध्यक्षता में बनी समेकित विकास हेतु न्यून-कार्बन रणनीति पर विशेषज्ञ समूह ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि शहरी केंद्र को किसी भी शहरी परिवहन योजना के एक एकीकृत हिस्से के रूप में गैर मोटरीकृत परिवहन का प्रयोग करने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये। कार्बन के कम होने से न केवल देश में पर्यावरण बेहतर होगा बल्कि इसके वृहद् सामाजिक लाभ होंगे।
  • इसके साथ ही पैदल यात्रियों को मोटर वाहन चालकों की तरह ही उस सड़क पर चलने का अधिकार मिलना चाहिये। पैदल-पथ और साइकिल के लिये पर्याप्त चौड़ाई के साथ स्थान प्रदान किया जाना चाहिये फिर चाहे मोटरीकृत वाहनों के लिये जगह कम क्यों न हो जाए।
  • वर्ष 2014 में राकेश मोहन की अध्यक्षता में बनी राष्ट्रीय परिवहन विकास नीति पर उच्च समिति ने अपनी रिपोर्ट में ऊर्जा और पर्यावरण मुद्दों पर कई महत्त्वपूर्ण अनुशंसाएँ कीं:
  • वाहनों से होने वाले उत्सर्जन और ईंधन गुणवत्ता मानकों को स्थापित करने के लिये उत्तरदायी एक राष्ट्रीय वाहन प्रदूषण और ईंधन प्राधिकरण की स्थापना की जानी चाहिये।
  • भारत को प्रयोग के तौर पर वाहनों के उत्सर्जन प्रदर्शन, सुरक्षा, सड़कों की महत्ता को सुनिश्चित करने के लिये सुदृढ़ निरीक्षण और प्रमाणपत्र प्रदान करने हेतु उचित व्यवस्था करने की आवश्यकता है।

फंड का इस्तेमाल

  • वैश्विक उदाहरणों को ध्यान में रखकर समर्पित, व्यप्तगत न होने वाले (Non-lapsable) शहरी परिवहन फंड का गठन देश, राज्य और शहरों के स्तर पर करना चाहिये। पूंजीगत आवश्यकताओं की पूर्ति करने के स्थान पर परिचालनात्मक चरण के दौरान कुछ प्रणालियों को भी समर्थन के लिये प्रयोग किया जा सकता है। इस फंड को नीचे दिये गए सुझावों के अनुसार प्रयोग किया जा सकता है-
  • पूरे देश में पेट्रोल पर ₹2 का हरित प्रभार (Green Fee) लगाया जाए। इसके पीछे तर्क यह है कि पेट्रोल का प्रयोग केवल निजी वाहनों के लिये होता है।
  • एक हरित कर (Green Tax) भी वर्तमान वैयक्तिक वाहनों पर सालाना आधार पर बीमित वाहनों के 4 प्रतिशत के रूप में कार और दोपहिया वाहनों के लिये लिया जा सकता है।

निष्कर्ष

अतः यह कहा जा सकता है कि वाहन स्क्रैपिंग नीति के मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय मॉडल को भारत की विशिष्ट सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों के अनुसार समायोजित करना होगा, जिसमें उद्योगों की चिंता और मांगों का निपटान उचित ढंग से हो। इसका उद्देश्य लोगों को उनके पुराने वाहन स्क्रैप के तौर पर बेचने के लिये प्रोत्साहित करना है।

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