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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

नया क्वाड

  • 22 Oct 2021
  • 5 min read

प्रिलिम्स के लिये 

अब्राहम एकॉर्ड, क्वाड पहल

मेन्स के लिये 

विभिन्न क्षेत्रीय मुद्दों के प्रति भारत का दृष्टिकोण

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत, अमेरिका, इज़रायल और संयुक्त अरब अमीरात के विदेश मंत्रियों ने एक वर्चुअल बैठक में हिस्सा लिया। यह बैठक पश्चिम एशियाई भू-राजनीति में बदलाव और मध्य पूर्व में एक अन्य क्वाड जैसे समूह के गठन की एक मज़बूत अभिव्यक्ति है।

  • इस नए समूह में भारत की भागीदारी उसकी विदेश नीति में बदलाव को दर्शाती है।

प्रमुख बिंदु

  • नए समूहीकरण हेतु उत्तरदायी कारक:
    • अब्राहम समझौता: अब्राहम एकॉर्ड के माध्यम से इज़रायल और संयुक्त अरब अमीरात के बीच औपचारिक राजनयिक संबंधों की बहाली के बाद नया समूह संभव है।
    • तुर्की के क्षेत्रीय प्रभुत्व से मुकाबला करना: इस्लामिक जगत के नेतृत्त्व हेतु तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तईप एर्दोगन के मुखर दावों के बीच इस नए क्वाड को भारत, संयुक्त अरब अमीरात और इज़राइल के बीच हितों के अभिसरण का परिणाम कहा जा सकता है।
    • एशिया के लिये अमेरिका की महत्त्वपूर्ण भूमिका: चीन के प्रभुत्त्व से निपटने हेतु अमेरिका स्पष्ट रूप से मध्य पूर्व में अपने पदचिह्न को कम करने और एशिया में अपनी उपस्थिति बढ़ाने का प्रयास कर रहा है।
      • चीन की बढ़ती मुखरता को रोकने के लिये अमेरिका ने अपनी 'एशिया नीति' के तहत क्वाड पहल और इंडो पैसिफिक नैरेटिव आदि को लॉन्च किया है।
  • भारत के लिये महत्त्व
    • एक क्षेत्रीय दृष्टिकोण की ओर बदलाव: चार देशों की बैठक से पता चलता है कि भारत अब अलग-अलग क्षेत्रों में द्विपक्षीय संबंधों की बजाय एक एकीकृत क्षेत्रीय नीति की ओर अलग-अलग बढ़ने के लिये तैयार है।
    • पश्चिम की ओर भारत का झुकाव: जिस तरह से ‘इंडो-पैसिफिक’ ने पूर्व में भारत के दृष्टिकोण में बदलाव किया है, उसी प्रकार ‘ग्रेटर मिडिल ईस्ट’ की धारणा पश्चिम में विस्तारित पड़ोसी देशों  के साथ भारत के जुड़ाव को एक बड़ा प्रोत्साहन प्रदान कर सकती है।
    • पाकिस्तान का मुकाबला करना: इसके अलावा नया समूह तुर्की के साथ पाकिस्तान के बढ़ते संरेखण और अरब की खाड़ी में अपने पारंपरिक रूप से मज़बूत समर्थकों- संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब से अलग होने से भी प्रेरित है।
    • गहराते संबंध: पिछले कुछ वर्षों में भारत ने नए समूह में सभी देशों के साथ जीवंत द्विपक्षीय संबंध बनाए हैं।
      • यह अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ क्वाड का सदस्य है, जिनकी पूर्वी एशिया में समान चिंताएँ और साझा हित हैं।
      • इज़राइल भारत के शीर्ष रक्षा आपूर्तिकर्त्ताओं में से एक है।
      • UAE, भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण है और लाखों भारतीय कामगारों की मेज़बानी करता है।

Middle-East

आगे की राह

  • टू अर्ली टू कॉल: हालाँकि इस तरह के समूह के रणनीतिक महत्त्व के बारे में बात करना जल्दबाजी होगी, लेकिन ऐसे कई क्षेत्र हैं जहाँ यह अपने संबंधों को गहरा कर सकता है, जैसे- व्यापार, ऊर्जा संबंध, जलवायु परिवर्तन से लड़ना और समुद्री सुरक्षा को बढ़ाना।
  • क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्विता से दूरी बनाए रखना: भारत को सावधान रहना चाहिये कि वह पश्चिम एशिया में चल रहे संघर्षों में न फंस जाए, जो बढ़ती क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्विता के बीच और तीव्र हो सकते हैं।
  • ईरान के साथ जुड़ाव: अफगानिस्तान से अमेरिका की वापसी के बाद भारत महाद्वीपीय एशिया में गहरी असुरक्षा का सामना कर रहा है।
    • इसलिये भारत के सामने चुनौती ईरान के साथ स्वस्थ संबंध बनाए रखने की है, जबकि वह यूएस-इज़रायल-यूएई ब्लॉक के साथ एक मज़बूत क्षेत्रीय साझेदारी का निर्माण करना चाहता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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