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शासन व्यवस्था

वन धन उत्पादक कंपनियाँ

  • 16 Aug 2021
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये:

वन धन कार्यक्रम, आकांक्षी ज़िले, प्रधानमंत्री वन धन योजना, भारतीय जनजातीय सहकारी विपणन विकास महासंघ

मेन्स के लिये: 

वन धन उत्पादक कंपनियाँ स्थापित करने का आदिवासी समुदाय पर प्रभाव

चर्चा में क्यों?

जनजातीय मामलों के मंत्रालय ने वन धन कार्यक्रम के तहत आकांक्षी ज़िलों को प्राथमिकता के साथ अगले पाँच वर्षों में सभी 27 राज्यों में 200 'वन धन' उत्पादक कंपनियाँ स्थापित करने की योजना बनाई है।

  • आकांक्षी ज़िले भारत के वे ज़िले हैं जो खराब सामाजिक-आर्थिक संकेतकों से प्रभावित हैं। ‘ट्रांसफॉर्मेशन ऑफ एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट्स प्रोग्राम’ (TADP) को केंद्रीय स्तर पर नीति आयोग द्वारा क्रियान्वित किया जा रहा है।

प्रमुख बिंदु

वन धन कार्यक्रम:

  • परिचय: यह जनजातीय स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) का गठन करने और उन्हें जनजातीय उत्पादक कंपनियों में मज़बूत करने हेतु बाज़ार से जुड़ा एक आदिवासी उद्यमिता विकास कार्यक्रम है।
    • यह पहल वन धन यानी वन धन का उपयोग करके आदिवासियों के लिये आजीविका सृजन को लक्षित करती है।
  • लॉन्च: इस योजना को 2018 में प्रधानमंत्री वन धन योजना (PMVDY) के रूप में लॉन्च किया गया था।
  • कार्यान्वयन: इसे ट्राइबल कोऑपरेटिव मार्केटिंग डेवलपमेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (TRIFED) द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।
  • लक्ष्य:
    • प्रत्येक चरण में इसे उन्नत करने और जनजातीय ज्ञान को एक व्यवहार्य आर्थिक गतिविधि में परिवर्तित करने के लिये प्रौद्योगिकी और आईटी को जोड़कर आदिवासियों के पारंपरिक ज्ञान और कौशल की जानकारी देना।
    • उन क्षेत्रों में जहाँ ये अभी भी प्रचलित हैं, बाज़ार को मज़बूती प्रदान करने के लिये एक व्यवहार्य पैमाने के माध्यम से आदिवासियों की सामूहिक ताकत को बढ़ावा देना और उसका लाभ उठाना।
    • मुख्य रूप से आदिवासी ज़िलों में आदिवासी समुदाय के स्वामित्व वाले लघु वन उत्पाद (एमएफपी) केंद्रित बहुउद्देश्यीय वन धन विकास केंद्र स्थापित करने का प्रस्ताव है।

भारतीय जनजातीय सहकारी विपणन विकास महासंघ (TRIFED):

  • ट्राइफेड राष्ट्रीय स्तर का एक शीर्ष संगठन है जो जनजातीय मामलों के मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में कार्य करता है।
  • ट्राइफेड का उद्देश्य जनजातीय लोगों को ज्ञान, उपकरण और सूचना के साथ सशक्त बनाना है ताकि वे अपने संचालन को अधिक व्यवस्थित और वैज्ञानिक तरीके से कर सकें।
  • यह जनजातीय उत्पादकों के आधार के विस्तार हेतु राज्यों/ज़िलों/गांँवों में सोर्सिंग स्तर पर नए कारीगरों और उत्पादों की पहचान करने के लिये जनजातीय कारीगर मेलों (Tribal Artisan Melas- TAMs) का आयोजन करता है।
  • यह  न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के माध्यम से लघु वनोत्पाद  (MFP) के विपणन के लिये तंत्र और MFP हेतु मूल्य शृंखला के विकास हेतु जनजातीय पारिस्थितिकी तंत्र से भी जुड़ा  है।
  • ट्राइफेड जनजातीय आजीविका कार्यक्रम के साथ कौशल विकास और सूक्ष्म उद्यमिता कार्यक्रम का भी विस्तार कर रहा है।

जनजातीय आजीविका कार्यक्रम

  • वन अधिकार अधिनियम, 2006: इसने जनजातीय समुदायों को पर्याप्त स्वामित्व अधिकार दिये  हैं। यह इस मायने में एक पथप्रदर्शक अधिनियम है कि पहली बार इसने न केवल पारंपरिक वनवासियों को वन भूमि के वैध मालिकों के रूप में मान्यता दी, बल्कि उनके संरक्षण हेतु भी जवाबदेह बनाया।
  • पेसा ‘पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) विधेयक, 1996: यह ग्राम पंचायत को वन उपज और जनजातियों के मुद्दों के समाधान  हेतु स्वामित्व और अधिकार प्रदान करता है।
  • जनजातियों की शिक्षा: जनजातीय समुदायों के बच्चों की शिक्षा के लिये आदिवासी बहुल प्रखंडों में कई बालिका छात्रावास और आश्रम स्थापित किये गए हैं।              
  • वनबंधु कल्याण योजना: यह भारत की जनजातीय आबादी के समग्र विकास और कल्याण हेतु केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई योजना है।
    • इस योजना में देश की जनजातीय आबादी को अन्य सामाजिक समूहों के बराबर लाने और उन्हें राष्ट्र की समग्र प्रगति में शामिल करने का प्रस्ताव है।
    • सरकार का उद्देश्य मानव विकास सूचकांकों में अवसंरचनात्मक अंतरालों और कमियों को दूर करके आदिवासियों का समग्र विकास करना है। 
  • जनजातीय हस्तशिल्प: वनों के घटते क्षेत्रफल के कारण आदिवासियों के लिये रोज़गार के अवसर कम होते जा रहे हैं।
    • ट्राइफेड द्वारा ट्राइब्स इंडिया की स्थापना की गई है, जो शोरूम की एक शृंखला है, जहांँ जनजातीय वस्त्र, आदिवासी आभूषण जैसे हस्तशिल्प की कई श्रेणियों का विपणन किया जा रहा है।
    • ट्राइफेड जनजातियों के क्षमता निर्माण हेतु भी कार्य कर रहा है।

स्रोत: पी. आई.बी   

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