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भारतीय राजव्यवस्था

पेसा अधिनियम, कार्यान्वयन एवं सुधार

  • 04 Aug 2020
  • 11 min read

पेसा का पूरा नाम ‘पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) विधेयक (The Provisions on the Panchyats Extension to the Scheduled Areas Bill) है। भूरिया समिति की सिफारिशों के आधार पर यह सहमति बनी कि अनुसूचित क्षेत्रों के लिए एक केंद्रीय कानून बनाना ठीक रहेगा, जिसके दायरे में राज्य विधानमंडल अपने-अपने कानून बना सकें। इसी दृष्टिकोण से दिसंबर, 1996 में संसद में विधेयक प्रस्तुत किया गया। दिसंबर, 1996 में ही यह दोनों सदनों से पारित हो गया तथा 24 दिसंबर को राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त कर लागू हो गया

  • इसका मूल उद्देश्य यह था कि केंद्रीय कानून में जनजातियों की स्वायत्तता के बिंदु स्पष्ट कर दिये जाएं जिनका उल्लंघन करने की शक्ति राज्यों के पास न हो।
  • वर्तमान में 10 राज्यों (आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, झारखंड, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा और राजस्थान) में यह अधिनियम लागू होता है।
  • इसका अन्य उद्देश्य जनजातीय जनसंख्या को स्वशासन प्रदान करना, पारंपरिक परिपाटियों की सुसंगता में उपयुक्त प्रशासनिक ढाँचा विकसित करना तथा ग्राम सभा को सभी गतिविधियों का केंद्र बनाना भी है।

विशेषताएँ एवं अधिनियम के प्रावधान

  • इस अधिनियम की मुख्य विशेषता यह है कि इसमें जनजातीय समाजों की ग्राम सभाओं को अत्यधिक ताकत दी गई है।
  • प्रत्येक गाँव में एक ग्राम सभा होगी जिसमें वे सभी व्यक्ति शामिल होंगे जिनका नाम ग्राम स्तर पर पंचायत के लिये तैयार की गई मतदाता सूची में शामिल है।
  • प्रत्येक ग्राम सभा सामाजिक एवं आर्थिक विकास के कार्यक्रमों एवं परियोजनाओं को स्वीकृति देगी, इसके पहले कि वे ग्राम स्तरीय पंचायत द्वारा कार्यान्वयन के लिए हाथ में लिये जायें।
  • इस अधिनियम द्वारा संविधान के भाग 9 के पंचायतों से जुड़े प्रावधानों को ज़रूरी संशोधनों के साथ अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तारित करने का लक्ष्य है।
  • गरीबी उन्मूलन और अन्य कार्यक्रमों के लिये लाभार्थियों को चिन्हित करने तथा चयन के लिये भी ग्राम सभा ही उत्तरदायी होगी। पंचायतों को ग्राम सभा में इसआशय का प्रमाणपत्र लेना होगा कि उन्होंने इन कार्यक्रमों व योजनाओं के संबंध में धन का उचित उपयोग किया है।
  • संविधान के भाग 9 के अंतर्गत जिन समुदायों के संबंध में आरक्षण के प्रावधान हैं उन्हें अनुसूचित क्षेत्रों में प्रत्येक पंचायत में उनकी जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण दिया जाएगा। साथ ही यह शर्त भी है कि अनुसूचित जनजातियों का आरक्षण कुल स्थानों के 50% से कम नहीं होगा तथा पंचायतों के सभी स्तरों पर अध्यक्षों के पद अनुसूचित जनजाति के लिये आरक्षित रहेंगे।
  • मध्यवर्ती तथा ज़िला स्तर की पंचायतों में राज्य सरकार उन अनुसूचित जनजातियों के प्रतिनिधियों को भी मनोनीत कर सकेगी जिनका उन पंचायतों में कोई प्रतिनिधित्व नहीं है, किंतु ऐसे मनोनीत प्रतिनिधियों की संख्या चुने जाने वाले कुल प्रतिनिधियों की संख्या के 10% से अधिक नहीं होनी चाहिये ।
  • अनुसूचित क्षेत्रों में लघु जल निकायों की योजना बनाने तथा उसका प्रबंधन करने का कार्य उपयुक्त स्तर की पंचायतों को सौंपा जाएगा।
  • अनुसूचित क्षेत्रों में गौण खनिजों के लिये लाइसेंस या खनन पट्टा देने के लिये ग्राम सभा पंचायत के उचित स्तर की सिफारिशों को अनिवार्य बनाया जाएगा।
  • अनुसूचित क्षेत्रों में बोली (Auction) द्वारा गौण खनिजों के दोहन की प्रक्रिया में रियायत देने के लिये ग्राम सभा या पंचायत की पूर्व सिफारिश लेना अनिवार्य होगा।
  • राज्य विधानमंडल प्रयास करेंगे कि अनुसूचित क्षेत्रों में ज़िला स्तर पर पंचायतों के लिये वैसा ही प्रशासनिक ढाँचा बनाया जाए जैसा कि संविधान की छठी अनुसूची में वर्णित जनजातीय क्षेत्रों पर लागू होता है।
  • अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायतों को स्वशासन की संस्थाओं के तौर पर कार्य करने के लायक बनाने के लिये अपेक्षित शक्तियाँ और अधिकार देते हुए राज्यों के विधानमंडल यह सुनिश्चित करेंगे कि ग्रामसभा और पंचायतों को निश्चित रूप से शक्तियाँ प्रदान की गई हों, जो निम्नलिखित हैं-
    • किसी भी मादक पदार्थ की बिक्री या उपभोग को प्रतिबंधित या नियमित या सीमित करने की शक्ति।
    • गौण वन उत्पादों का स्वामित्व।
    • अनुसूचित क्षेत्रों में भूमि के हस्तांतरण को रोकने की शक्ति और किसी अनुसूचित जनजाति की अवैध रूप से हस्तांतरित की गई भूमि को वापस लेने के लिये उचित कार्यवाही करने की शक्ति।
    • गाँवों के बाज़ारों के प्रबंधन की शक्ति, चाहे वे किसी भी नाम से प्रयोग में हो।
    • अनुसूचित जनजातियों को धन उधार दिये जाने की प्रक्रिया को नियंत्रित करने की शक्ति।
    • आदिवासी उप-योजनाओं सहित स्थानीय योजनाओं तथा उनके लिये निर्धारित संसाधनों पर नियंत्रण रखने की शक्ति।
  • राज्य विधान के अंतर्गत ऐसी व्यवस्था होगी जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि उच्च स्तर की पंचायतें निचले स्तर की किसी पंचायत या ग्राम सभा के अधिकारों का हनन अथवा उपयोग न करे।
  • अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायत से संबंधित किसी कानून का कोई प्रावधान यदि इस अधिनियम के संगति में है तो वह राष्ट्रपति द्वारा इस अधिनियम की स्वीकृति प्राप्त होने की तिथि के एक वर्ष की समाप्ति के बाद लागू होने से रह जाएगा।
  • हालाँकि उक्त तिथि के तत्काल पहले अस्तित्व में रही सभी पंचायतें अपने कार्यकाल की समाप्ति तक चलती रहेंगी बशर्ते कि उन्हें राज्य विधायिका द्वारा पहले ही भंग न कर दिया जाए।

अधिनियम से जुड़ी समस्याएँ

  • पेसा के अंतर्गत प्रत्येक गाँव में एक ग्राम सभा का प्रावधान किया गया है, जबकि कई स्थितियों में एक ग्राम पंचायत एक से अधिक ग्राम सभाओं द्वारा चुनी जाती है। ऐसी स्थिति में समस्या यह आती है कि अगर पंचायत के किसी निर्णय पर अलग-अलग ग्राम सभाओं की पृथक राय दो तो अंतिम निर्णय कैसे होगा।
  • लघु वन उत्पादों को लेकर ग्राम सभाओं के अधिकार संबंधी व्याख्या पर भी विवाद है। प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा यह व्यवस्था की गई है कि कोई ग्राम सभा उतने ही वन क्षेत्र के उत्पादों पर अपने अधिकार का दावा कर सकती है जो उसकी राजस्व सीमाओं के भीतर आता है।
  • यह अधिनियम सिर्फ उन क्षेत्रों पर लागू होता है जिन्हें 5वीं अनुसूची के तहत क्षेत्र माना गया है। ऐसे क्षेत्र जिनमें जनजातियों की काफी संख्या है किंतु वे अनुसूचित क्षेत्र नहीं है, इस कानून का लाभ नहीं उठा पाते।
  • कानून के पालन में राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी, नक्सलवाद जैसी समस्याओं की बाधाएँ, भू-हस्तांतरण के नियमों में स्पष्टता न होना भी समस्याएँ हैं।

पेसा अधिनियम में संशोधन का प्रस्ताव

  • पेसा अधिनियम के क्रियान्वयन में आई समस्याओं को देखते हुए भारत सरकार ने वर्ष 2013 में उसमें संशोधन करने के लिये एक विधेयक तैयार किया था जो अभी पारित नहीं हो सका है।
  • यह संशोधन विधेयक अपनी प्रकृति में काफी प्रगतिशील है जिसमें कई उपबंध किये गए थे, जैसे-
    • अधिग्रहण या पुनर्वास से जुड़े उक्त मामलों के लिये ग्रामसभा या पंचायत की ‘जानकारीपूर्ण सहमति’ ली जाएगी।
    • संशोधन विधेयक में पुनर्वास के साथ ‘धारणीय आजीविका’ शब्दावली का प्रयोग किया गया है।
    • पेसा संशोधन विधेयक में गौण खनिजों के साथ-साथ महत्त्वपूर्ण खनिजों को भी शामिल कर लिया गया है।
    • पेसा संशोधन विधेयक में यह व्यवस्था भी की गई है कि केंद्र सरकार इस अधिनियम तथा इसके तहत बनाए गए नियमों के प्रभावी क्रियान्वयन के लिये राज्य सरकारों को सामान्य तथा विशेष निर्देश जारी कर सकेगी।

अन्य सुझाव

  • एक मज़बूत शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करने की आवश्यकता है ताकि नागरिकों की आवश्यकता के अनुरूप इस अधिनियम को लागू किया जा सके
  • ग्राम सभा और पंचायतों में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने पर विशेष ध्यान दिया जाएगा।
  • अनुसूचित क्षेत्रों वालों राज्यों के लिये पेसा के अंतर्गत विकास संबंधी योजना बनाते समय पंचायती राज मंत्रालय और जनजातीय कार्य मंत्रालय को मिलकर कार्य करने की आवश्यकता है।
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