भारतीय अर्थव्यवस्था
इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल के संबंध में पर्यावरणीय चिंताएँ
प्रिलिम्स के लिये:इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल (EBP) कार्यक्रम, नेट ज़ीरो 2070, 3जी इथेनॉल उत्पादन, प्रधानमंत्री JI-VAN योजना मेन्स के लिये:जैव ईंधन का पर्यावरणीय प्रभाव, सतत् विकास और इथेनॉल उत्पादन |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल कार्यक्रम का आंध्र प्रदेश में व्यापक स्तर पर विरोध हो रहा है।
- पर्यावरणविद् और किसानों द्वारा इथेनॉल कारखानों से होने वाले पर्यावरण प्रदूषण एवं अत्यधिक जल उपभोग पर चिंता जताई जा रही है।
इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल कार्यक्रम क्या है?
- परिचय: EBP कार्यक्रम वर्ष 2001 में पायलट परियोजनाओं के साथ शुरू हुआ था। इसे वर्ष 2003 में पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय द्वारा 5% इथेनॉल (C₂H₅OH) मिश्रण के साथ लॉन्च किया गया था और वर्ष 2019 तक इसे पूरे देश में (अंडमान एवं निकोबार, लक्षद्वीप को छोड़कर) विस्तारित किया गया, जिसमें 10% तक इथेनॉल मिश्रण की अनुमति दी गई।
- EBP कार्यक्रम के तहत वर्ष 2025-26 तक पेट्रोल में 20% इथेनॉल मिश्रण का लक्ष्य रखा गया है। राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति-2018 के तहत यह लक्ष्य वर्ष 2030 तक निर्धारित था)। वर्ष 2024 तक इथेनॉल का मिश्रण प्रतिशत 15% था।
- उद्देश्य: EBP का लक्ष्य कार्बन उत्सर्जन, ईंधन आयात को कम करना और किसानों की आय बढ़ाना है।
- भारत के ऊर्जा विविधीकरण का समर्थन करना, वैश्विक तेल आपूर्ति व्यवधानों के प्रति लचीलापन बढ़ाना।
- पेरिस समझौते के तहत भारत को नेट ज़ीरो 2070 प्रतिबद्धता हासिल करने में सहायता करना।
- ईबीपी कार्यक्रम "वेस्ट टू वेल्थ" दृष्टिकोण का अनुसरण करता है तथा स्वच्छ भारत मिशन (SBM) और मेक इन इंडिया को समर्थन देता है।
- प्रमुख उपलब्धियाँ: सितंबर, 2024 तक इथेनॉल उत्पादन क्षमता लगभग 1,600 करोड़ लीटर तक पहुँच गई।
- कच्चे तेल के आयात में कटौती करके EBP कार्यक्रम से 1,06,072 करोड़ रुपए की विदेशी मुद्रा की बचत हुई।
- EBP ने CO2 उत्सर्जन में 544 लाख मीट्रिक टन की कमी की है और 181 लाख मीट्रिक टन कच्चे तेल को प्रतिस्थापित किया है।
- इस कार्यक्रम का महत्त्वपूर्ण आर्थिक प्रभाव पड़ा, तेल विपणन कंपनियों ने डिस्टिलरों को 1,45,930 करोड़ रुपए तथा किसानों को 87,558 करोड़ रुपए वितरित किये।
- कच्चे तेल के आयात में कटौती करके EBP कार्यक्रम से 1,06,072 करोड़ रुपए की विदेशी मुद्रा की बचत हुई।
नोट: इथेनॉल एक जैव ईंधन है जो मुख्य रूप से "प्रथम पीढ़ी" (1G) स्रोतों जैसे कि गन्ने का गुड़, जूस, गेहूँ और चावल से उत्पादित होता है, जबकि "द्वितीय पीढ़ी" (2G) स्रोतों में चावल का भूसा, गेहूँ का भूसा, खोई और मकई का चारा जैसे कृषि अवशेष शामिल हैं।
EBP के संबंध में पर्यावरण संबंधी चिंताएँ क्या हैं?
- प्रदूषण बनाम उत्सर्जन में कमी: वर्ष 2025 तक 20% इथेनॉल मिश्रण लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये लगभग 1,000 करोड़ लीटर इथेनॉल की आवश्यकता होगी, जिसका उत्पादन बढ़ाकर 1,700 करोड़ लीटर करने की योजना है। उत्पादन में वृद्धि से उत्सर्जन बढ़ सकता है, जिससे वायु, जल और मृदा की गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है।
- जल की कमी: इथेनॉल उत्पादन में अत्यधिक जल की आवश्यकता होती है, जिसके अंतर्गत अनाज आधारित कारखानों को प्रति लीटर इथेनॉल हेतु 8 से 12 लीटर जल की आवश्यकता होती है। गन्ना और मोलैसेज आधारित उत्पादन से उच्च जल खपत, वनोन्मूलन और औद्योगिक अपशिष्ट बढ़ता है।
- आसवनशालाओं से विनेसे नामक प्रदूषण-युक्त अपशिष्ट जल उत्पन्न होता है, जो यदि अनुपचारित रहा तो जलाशयों को दूषित कर सकता है तथा ऑक्सीजन का क्षरण कर सकता है।
- कृष्णा जैसी नदियों के समीप स्थित कारखानों से कृषि और पेय जल का अन्य दिशा में परिवर्तन हो रहा है। किसानों को जल संसाधनों के समाप्त होने का डर है, जिससे फसल उत्पादन प्रभावित होगा।
- औद्योगिक प्रदूषण: इथेनॉल डिस्टिलरीज़ अपनी उच्च प्रदूषण क्षमता के कारण उद्योगों की "लाल श्रेणी" (प्रदूषण सूचकांक कोर 60 और उससे अधिक) के अंतर्गत आती हैं।
- एसीटैल्डिहाइड, फॉर्मेल्डिहाइड और एक्रोलीन जैसे संकटजनक रसायन उत्सर्जित होते हैं, जिससे श्वसन संबंधी बीमारियों और कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।
- आंध्र प्रदेश में, कई इथेनॉल कारखानों को सार्वजनिक सुनवाई या उचित उत्सर्जन आकलन के बिना ही पर्यावरणीय स्वीकृति प्राप्त है, जो प्रायः मानव बस्तियों के पास स्थित होती हैं।
आगे की राह:
- 3G इथेनॉल को बढ़ावा देना: प्रधानमंत्री जीवन वन योजना के तहत 3G इथेनॉल उत्पादन (अपशिष्ट जल, सीवेज या समुद्री जल से शैवाल द्वारा उत्पादित) को बढ़ाने से खाद्य फसलों के स्थान पर सूक्ष्म शैवाल का उपयोग करके पर्यावरणीय प्रभाव को कम किया जा सकता है, जिससे खाद्य या मीठे जल के संसाधनों पर दबाव डाले बिना 1G और 2G विधियों के लिये एक स्थायी विकल्प उपलब्ध हो सकता है।
- पर्यावरण विनियमन: अनिवार्य प्रदूषण नियंत्रण उपायों (जैसे अपशिष्ट उपचार संयंत्र ) को लागू करना और सामुदायिक चिंताओं को दूर करने के लिये पर्यावरणीय मंजूरी के लिये सार्वजनिक सुनवाई को बहाल करना।
- इथेनॉल संयंत्रों द्वारा भूजल के स्थान पर पुनर्नवीनीकृत या उपचारित अपशिष्ट जल का उपयोग किया जाना अनिवार्य किया जाना चाहिये।
- हरित प्रौद्योगिकियों को प्रोत्साहित करना: पवन ऊर्जा संवर्द्धन और वायु शोधन इकाई (WAYU) जैसे प्रदूषण नियंत्रण उपकरणों के लिये सब्सिडी प्रदान करना, जिससे इथेनॉल निर्माताओं के लिये इसे अधिक किफायती बनाया जा सके।
- निम्न उत्सर्जन वाले इथेनॉल उत्पादन में अनुसंधान और विकास (R&D) पर्यावरणीय क्षति को कम करने में मदद कर सकता है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: इथेनॉल उत्पादन को जीवाश्म ईंधन के लिये एक पर्यावरण-अनुकूल विकल्प के रूप में देखा जाता है। भारत में इथेनॉल उत्पादन से जुड़ी पर्यावरणीय चुनौतियों की आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रश्न. नीचे चार ऊर्जा फसलों के नाम दिये गए हैं। इनमें से किसकी खेती इथेनॉल के लिये की जा सकती है? (2010) (a) जट्रोफा उत्तर: (b) प्रश्न. भारत की जैव ईंधन की राष्ट्रीय नीति के अनुसार, जैव ईंधन के उत्पादन के लिये निम्नलिखित में से किनका उपयोग कच्चे माल के रूप में किया जा सकता है? (2020)
नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2, 5 और 6 उत्तर: (a) |


शासन व्यवस्था
इंटरनेट शटडाउन
प्रिलिम्स के लिये:इंटरनेट शटडाउन, अनुच्छेद 21, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, अनुच्छेद 19 मेन्स के लिये:भारत में इंटरनेट शासन और डिजिटल अधिकार, राष्ट्रीय सुरक्षा बनाम डिजिटल स्वतंत्रता |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
डिजिटल अधिकार समूह 'एक्सेस नाउ' की वर्ष 2024 की रिपोर्ट में वैश्विक इंटरनेट शटडाउन की रिकॉर्ड-उच्च संख्या पर प्रकाश डाला गया, जिसमें म्यांमार 85 शटडाउन मामलों के साथ सूची में सबसे ऊपर है और इसके बाद भारत का स्थान है।
इंटरनेट शटडाउन के संबंध में इस रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?
- भारत: भारत में कुल इंटरनेट शटडाउन की 84% घटनाएँ (कुल शटडाउन की 28%) हुईं।
- भारत में सबसे अधिक (21 बार) इंटरनेट शटडाउन की घटनाएँ मणिपुर में दर्ज की गईं, इसके बाद हरियाणा तथा जम्मू-कश्मीर का स्थान रहा।
- कुल मिलाकर, वर्ष 2024 में 16 राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों में इंटरनेट शटडाउन के मामले देखे गए।
- शटडाउन के मुख्य कारण: भारत में शटडाउन मुख्य रूप से विरोध प्रदर्शन (41 उदाहरण), सांप्रदायिक हिंसा (23 उदाहरण) और परीक्षा-संबंधी सुरक्षा उपायों (5 उदाहरण) से संबंधित थे।
- स्थानीय संघर्षों और प्रशासनिक निर्णयों के कारण अतिरिक्त शटडाउन लागू किये गये।
- अधिकारी अक्सर सांप्रदायिक हिंसा, दंगों और सोशल मीडिया के माध्यम से गलत सूचना फैलने से रोकने के लिये शटडाउन को आवश्यक बताते हैं।
- वैश्विक: वर्ष 2024 में विश्व में कुल 296 इंटरनेट शटडाउन दर्ज किये गए, जो अब तक का सबसे अधिक है।
- म्याँमार (85), भारत और पाकिस्तान (21) में वर्ष 2024 में दर्ज सभी शटडाउन का 64% से अधिक हिस्सा होगा।
भारत में इंटरनेट शटडाउन के लिये कानूनी प्रावधान:
- दूरसंचार नियम: भारत में इंटरनेट शटडाउन दूरसंचार अधिनियम, 2023 के तहत जारी दूरसंचार (सेवाओं का अस्थायी निलंबन) नियम, 2024 द्वारा शासित होते हैं।
- ये नियम दूरसंचार निलंबन नियम, 2017 का स्थान लेंगे तथा इंटरनेट सहित दूरसंचार सेवाओं के निलंबन की प्रक्रिया को विनियमित करेंगे।
- शटडाउन आदेश जारी करने का प्राधिकार: केंद्रीय गृह सचिव (राष्ट्रीय स्तर के शटडाउन के लिये) और राज्य गृह सचिव (राज्य स्तर के शटडाउन के लिये)।
- अपरिहार्य परिस्थितियों में, संयुक्त सचिव स्तर का अधिकारी (विधिवत प्राधिकृत) आदेश जारी कर सकता है, लेकिन इसकी पुष्टि 24 घंटे के भीतर होनी चाहिये, अन्यथा यह आदेश समाप्त हो जाएगा।
- न्यायिक प्रावधान: अनुराधा भसीन बनाम भारत संघ के 2020 के मामले में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने घोषणा की कि अनिश्चितकालीन इंटरनेट शटडाउन गैरकानूनी है और ऐसे प्रतिबंधों को आनुपातिकता एवं आवश्यक मानकों का पालन करना चाहिये।
- हालाँकि, कई शटडाउन आदेशों में उचित दस्तावेज़ीकरण और औचित्य का अभाव है।
इंटरनेट शटडाउन के संबंध में क्या चिंताएँ हैं?
- अधिकारों का उल्लंघन: यह अनुच्छेद अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19) को प्रतिबंधित करता है तथा अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) के तहत मान्यता प्राप्त इंटरनेट तक पहुँच के अधिकार को सीमित करता है।
- निगरानी का अभाव: दूरसंचार अधिनियम 2023 में औपनिवेशिक युग के टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 के प्रावधानों को बरकरार रखा गया है, जो शटडाउन की अनुमति देता है।
- सख्त स्वतंत्र निरीक्षण तंत्र का अभाव है, जिसके कारण मनमाने ढंग से कार्यान्वयन होता है।
- आर्थिक और सामाजिक व्यवधान: भारत को वर्ष 2023 में इंटरनेट शटडाउन के कारण तीसरा सबसे बड़ा आर्थिक नुकसान हुआ, जिसकी कुल लागत 255.2 मिलियन अमरीकी डॉलर तक पहुँच गई।
- लंबे समय तक बंद रहने के कारण व्यवसायों, छात्रों और डिजिटल सेवा प्रदाताओं को काफी नुकसान उठाना पड़ता है।
- लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं पर प्रभाव: डिजिटल संचार पर प्रतिबंध प्रेस की स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक भागीदारी को बाधित करते हैं।
- विरोध-प्रवण क्षेत्रों में बंद नागरिकों को असहमति के अपने अधिकार का प्रयोग करने से रोकता है।
- शासन पर प्रभाव: आलोचकों का दावा है कि बार-बार इंटरनेट बंद होना, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), डिजिटल शासन और तकनीकी प्रगति में वैश्विक नेता बनने की भारत की महत्त्वाकांक्षाओं के विपरीत है।
आगे की राह
- निरीक्षण: शटडाउन आदेशों की समीक्षा के लिये संसदीय जाँच या एक स्वतंत्र निरीक्षण निकाय की स्थापना की जानी चाहिये।
- वैकल्पिक उपाय: पूर्ण शटडाउन के बजाय, अधिकारी लक्षित सामग्री हटाने, तथ्य-जाँच तंत्र और सोशल मीडिया अनुवीक्षण का उपयोग कर सकते हैं।
- डिजिटल जोखिम प्रबंधन पर विधि प्रवर्तन प्रशिक्षण से कठोर प्रतिबंध के बिना खतरों को कम करने में सहायता मिल सकती है।
- अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाएँ: संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) मनमाना रूप से इंटरनेट बंद करने का विरोध करती है और इसके अनुसार पूर्णतः इंटरनेट शटडाउन मानवाधिकारों का उल्लंघन है तथा वर्ष 2030 तक सार्वभौमिक इंटरनेट पहुँच को मानवाधिकार बनाने का आग्रह करती है।
- यूरोपियन यूनियन और अमेरिका ब्लैकआउट के बजाय सामग्री मॉडरेशन नीतियों और साइबर सुरक्षा साधनों का उपयोग करते हैं।
- जन जागरूकता और समर्थन: नागरिक समाज समूहों को डिजिटल अधिकारों के बारे में लोगों को और अधिक जागरूक करना चाहिये और विधिक सुधारों के लिये प्रयास करना चाहिये।
- डिजिटल साक्षरता अभियान से, शटडाउन की आवश्यकता के बिना, गलत सूचनाओं के प्रसारण की रोकथाम करने में मदद मिल सकती है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. बारंबार इंटरनेट प्रतिबंध से भारत में लोकतांत्रिक भागीदारी, प्रेस की स्वतंत्रता और असहमति का अधिकार किस प्रकार प्रभावित होता है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्स:प्रश्न. आप ‘वाक् और अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य’ संकल्पना से क्या समझते हैं? क्या इसकी परिधि में घृणा वाक् भी आता है? भारत में फिल्में अभिव्यक्ति के अन्य रूपों से तनिक भिन्न स्तर पर क्यों हैं? चर्चा कीजिये। (2014) |


शासन व्यवस्था
परिसीमन और दक्षिणी राज्यों की चिंताएँ
प्रिलिम्स के लिये:परिसीमन प्रक्रिया, लोकसभा, विधान सभा, मुख्य चुनाव आयुक्त, विशेष दर्जा, वित्त आयोग। मेन्स के लिये:परिसीमन की मुख्य विशेषताएँ। आगामी परिसीमन के संबंध में दक्षिणी राज्यों की संबंधित चिंताएँ और आगे की राह। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय गृह मंत्री ने आश्वासन दिया कि आगामी परिसीमन प्रक्रिया से दक्षिणी राज्यों को कोई नुकसान नहीं होगा तथा सीटों में वृद्धि होने पर उन्हें उचित हिस्सा दिया जायेगा।
परिसीमन क्या है?
- परिसीमन: परिसीमन का तात्पर्य लोक सभा और विधान सभाओं के लिये प्रत्येक राज्य में सीटों की संख्या और प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं के पुनर्निर्धारण की प्रक्रिया से है।
- यह 'परिसीमन प्रक्रिया' संसद के एक अधिनियम के तहत स्थापित 'परिसीमन आयोग' द्वारा संचालित की जाती है।
- परिसीमन आयोग: यह एक उच्चस्तरीय तीन सदस्यीय निकाय है, जिसके आदेश कानूनी रूप से बाध्यकारी हैं तथा किसी भी न्यायालय के समक्ष उन पर प्रश्न नहीं उठाया जा सकता।
- इसमें सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय के दो न्यायाधीश शामिल होते हैं, जिनमें से एक को केंद्र सरकार द्वारा अध्यक्ष नियुक्त किया जाता है, तथा मुख्य चुनाव आयुक्त पदेन सदस्य होते हैं।
- इसके आदेश लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में प्रस्तुत किये जाते हैं, लेकिन उन्हें संशोधित नहीं किया जा सकता।
- इन्हें सिविल न्यायालय की शक्तियाँ प्राप्त हैं ।
- फरवरी 2024 तक इसे चार बार अर्थात् 1952, 1963, 1973 और 2002 में स्थापित किया जा चुका है।
- परिसीमन के तर्क: प्रत्येक राज्य में प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र का पुनर्निर्धारण इस प्रकार किया जाता है कि प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र की जनसंख्या और आवंटित सीटों की संख्या पूरे राज्य में समान हो।
- इससे विभिन्न राज्यों के बीच तथा एक ही राज्य के निर्वाचन क्षेत्रों में समान प्रतिनिधित्व सुनिश्चित होता है।
- संवैधानिक प्रावधान:
- अनुच्छेद 82: इसमें प्रत्येक जनगणना की समाप्ति पर लोक सभा में राज्यों के लिये सीटों के पुनः समायोजन तथा प्रत्येक राज्य को प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजित करने का प्रावधान है।
- अनुच्छेद 170: इसमें विधान सभाओं की संरचना के बारे में प्रावधान किया गया है।
- संबंधित संशोधन: जनसंख्या आधारित सीट आवंटन से उच्च जनसंख्या वृद्धि वाले राज्यों को लाभ मिलता है, इसलिये असंतुलन को रोकने और जनसंख्या नियंत्रण प्रयासों को पारितोषिक करने के लिये संशोधन किये गए।
- 42वाँ संशोधन अधिनियम, 1976: इसके माध्यम से लोकसभा सीट आवंटन और निर्वाचन क्षेत्र विभाजन को वर्ष 2000 की अवधि तक वर्ष 1971 के स्तर पर स्थिर कर दिया गया।
- 84वाँ संशोधन अधिनियम, 2001: पुनः समायोजन पर रोक लगाने के उद्देश्य से इसमें वर्ष 2026 तक आगामी 25 वर्षों के लिये विस्तार कर दिया गया।
- 87वाँ संशोधन अधिनियम, 2003: इसके अंतर्गत सीटों अथवा निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या में परिवर्तन किये बिना 2001 की जनगणना के आधार पर परिसीमन की अनुमति दी गई।
- न्यायिक समीक्षा: किशोरचंद्र छगनलाल राठौड़ केस, 2024 में सर्वोच्च न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि परिसीमन आयोग के आदेश की समीक्षा की जा सकती है यदि यह स्पष्ट रूप से मनमाना है और इससे संवैधानिक मूल्यों का उल्लंघन होता है।
नोट: अनुच्छेद 329 के अंतर्गत निर्वाचन संबंधी मामलों (परिसीमन अथवा सीट आवंटन) में न्यायालयों के हस्तक्षेप का वर्जन किया गया है।
- 31वाँ संशोधन अधिनियम, 1973: 60 लाख से कम जनसंख्या वाले राज्यों को जनसंख्या आधारित परिसीमन प्रक्रिया से अपवर्जित रखा गया।
आगामी परिसीमन को लेकर दक्षिणी राज्य चिंतित क्यों हैं?
- प्रतिनिधित्व खोने का भय: यदि परिसीमन केवल जनसंख्या के आधार पर किया गया तो उत्तरी राज्यों की तुलना में दक्षिणी राज्यों की कम जनसंख्या के कारण दक्षिणी राज्यों में लोकसभा की सीटें कम हो सकती हैं।
- उदाहरण के लिये, केरल में सीटों की संख्या में 0% की वृद्धि, तमिलनाडु में केवल 26% की वृद्धि, लेकिन मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश दोनों के लिये सीटों की संख्या में 79% की वृद्धि होगी।
- गेरीमैंडरिंग/जेरीमैंडरिंग: दक्षिणी राज्य गेरीमैंडरिंग के बारे में चिंतित हैं, जो किसी पार्टी या समूह को अनुचित रूप से लाभ पहुँचाने के लिये चुनावी सीमाओं में हेरफेर करने की एक प्रथा है, जो निष्पक्ष प्रतिनिधित्व को विकृत करती है।
- उदाहरण के लिये, नेपाल के नए संविधान (2015) के तहत, नेपाल के तराई क्षेत्र, जिसमें 50% आबादी है, को पहाड़ी क्षेत्रों की तुलना में कम सीटें मिलीं, क्योंकि निर्वाचन क्षेत्र का सीमांकन जनसंख्या की तुलना में भूगोल पर आधारित था, जिससे पहाड़ी अभिजात वर्ग को लाभ हुआ।
- संघवाद के लिये खतरा: परिसीमन से दक्षिणी राज्यों पर राजकोषीय बोझ बढ़ सकता है क्योंकि उत्तर के लिये अधिक सीटों का मतलब प्रति प्रतिनिधि उच्च केंद्रीय आवंटन हो सकता है।
- उत्तरी राज्यों की तुलना में दक्षिणी राज्यों का कम राजनीतिक प्रतिनिधित्व उन पर ऐसी नीतियों को स्वीकार करने के लिये दबाव डाल सकता है जिन्हें वे अनुचित मानते हैं।
- सुशासन को हतोत्साहित करना: दक्षिणी राज्यों के जनसंख्या नियंत्रण प्रयासों के कारण परिसीमन में सीटें कम हो सकती हैं, जिससे उच्च प्रजनन क्षमता वाले राज्यों को अनुचित लाभ होगा और सुशासन को हतोत्साहित किया जा सकता है।
- इससे अच्छी नीतियों की आलोचना होती है और यह प्रतिकूल भी साबित हो सकता है। उदाहरण के लिये, कुछ राजनेताओं ने बड़े परिवारों के लिये प्रोत्साहन पर विचार किया।
- उत्तर-दक्षिण विभाजन: राजनीतिक और आर्थिक असंतुलन की भावना अधिक स्वायत्तता या विशेष दर्जे की मांग को बढ़ावा दे सकती है, जिससे राष्ट्रीय एकता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है और उत्तर-दक्षिण विभाजन गहरा सकता है ।
- संसाधनों का असमान आवंटन: उत्तरी राज्यों को अधिक संसदीय प्रभाव के कारण अधिक केंद्रीय निधियाँ और कल्याणकारी योजनाएँ प्राप्त हो सकती हैं, जबकि दक्षिणी राज्यों को बेहतर प्रशासन के बावजूद कम संसाधनों का जोखिम उठाना पड़ सकता है।
- वित्त आयोग (FC) राज्यों को धन आवंटित करने के लिये जनसंख्या को एक मानदंड के रूप में उपयोग करता है, जो दक्षिणी राज्यों के लिये नुकसानदेह हो सकता है।
- क्षेत्रीय दलों का कमजोर होना: कई लोगों को डर है कि परिसीमन से उत्तरी क्षेत्र में मज़बूत आधार वाले दलों को लाभ हो सकता है जिससे राजनीतिक गतिशीलता में बदलाव आने के साथ दक्षिणी क्षेत्रीय दल कमज़ोर हो सकते हैं।
आगे की राह
- संतुलित प्रतिनिधित्व: यह सुनिश्चित करना कि किसी भी राज्य की मौजूदा हिस्सेदारी में कमी न हो, इसके लिये एक भारित सूत्र का उपयोग करना चाहिये जिसमें निष्पक्ष प्रतिनिधित्व के क्रम में जनसंख्या, विकास सूचकांक, आर्थिक योगदान तथा शासन की गुणवत्ता को ध्यान में रखा जाए।
- संसाधन आवंटन में समानता: दक्षिणी राज्यों को वित्तीय नुकसान से बचाने के लिये वित्त आयोग के हस्तांतरण फार्मूले को संशोधित करने के साथ संतुलित नीति निर्माण के क्रम में अंतर-राज्यीय परिषदों को मज़बूत करना चाहिये।
- आम सहमति बनाना: परिसीमन संबंधी चिंताओं को दूर करने के क्रम में एक संवैधानिक समीक्षा पैनल की स्थापना करना तथा क्षेत्रीय असंतोष को रोकने हेतु जनसंख्या के आकार से परे प्रतिनिधित्व कारकों के बारे में जागरूकता बढ़ाना आवश्यक है।
- द्विसदनीय व्यवस्था को सुदृढ़ बनाना: लोकसभा में सीटों में आने वाली कमी की भरपाई के लिये राज्यसभा में दक्षिणी राज्यों को अधिक प्रतिनिधित्व प्रदान करना चाहिये।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: आगामी परिसीमन प्रक्रिया के संबंध में दक्षिणी राज्यों की चिंताओं का समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिये तथा राष्ट्रीय एकता बनाए रखते हुए निष्पक्ष प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के उपाय बताइये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रश्न. परिसीमन आयोग के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2012)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (c) प्रश्न: भारत सरकार ने दिसंबर 2023 तक कितने परिसीमन आयोग गठित किये हैं? (2024) (a) एक उत्तर: (D) |

