भारतीय राजव्यवस्था
विशेष श्रेणी का दर्जा
- 28 Nov 2023
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प्रिलिम्स के लिये:विशेष श्रेणी का दर्जा, बिहार जाति-आधारित सर्वेक्षण, 2022, योजना आयोग, अनुच्छेद 370, केंद्र प्रायोजित योजना मेन्स के लिये:विशेष श्रेणी का दर्जा, विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप तथा उनकी रूपरेखा और कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में बिहार कैबिनेट ने बिहार को विशेष श्रेणी का दर्जा (SCS) देने की मांग करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया है।
- यह मांग "बिहार जाति-आधारित सर्वेक्षण, 2022" के निष्कर्षों की पृष्ठभूमि में उठी है, जिसमें पता चला है कि बिहार की लगभग एक-तिहाई आबादी निर्धनता में जीवन यापन कर रही है।
विशेष श्रेणी का दर्जा क्या है?
- परिचय:
- SCS भौगोलिक तथा सामाजिक-आर्थिक नुकसान का सामना करने वाले राज्यों के विकास में सहायता के लिये केंद्र द्वारा निर्धारित एक वर्गीकरण है।
- संविधान SCS के लिये कोई प्रावधान नहीं करता है तथा यह वर्गीकरण बाद में वर्ष 1969 में पाँचवें वित्त आयोग की सिफारिशों के आधार पर किया गया था।
- पहली बार वर्ष 1969 में जम्मू-कश्मीर, असम तथा नगालैंड को यह दर्जा प्रदान किया गया था।
- पूर्व में योजना आयोग की राष्ट्रीय विकास परिषद द्वारा योजना के तहत सहायता के लिये SCS प्रदान किया गया था।
- असम, नगालैंड, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, सिक्किम, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, मिज़ोरम, उत्तराखंड और तेलंगाना सहित 11 राज्यों को विशेष श्रेणी का दर्जा दिया गया।
- भारत के सबसे नए राज्य तेलंगाना को यह दर्जा दिया गया क्योंकि इसे दूसरे राज्य आंध्र प्रदेश से अलग कर गठित किया गया था।
- SCS, विशेष दर्जे से भिन्न है जो कि उन्नत विधायी तथा राजनीतिक अधिकार प्रदान करता है, जबकि SCS केवल आर्थिक एवं वित्तीय पहलुओं से संबंधित है।
- उदाहरण के लिये अनुच्छेद 370 के निरस्त होने से पहले जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा प्राप्त था।
- निर्धारक (गाडगिल सिफारिश पर आधारित):
- पहाड़ी इलाका
- कम जनसंख्या घनत्व और/या जनजातीय जनसंख्या का बड़ा हिस्सा
- पड़ोसी देशों के साथ सीमाओं पर सामरिक स्थिति
- आर्थिक तथा आधारभूत संरचना में पिछड़ापन
- राज्य के वित्त की अव्यवहार्य प्रकृति
- लाभ:
- अतीत में SCS राज्यों को गाडगिल-मुखर्जी फॉर्मूले द्वारा निर्धारित लगभग 30% केंद्रीय सहायता मिलती थी।
- हालाँकि 14वें और 15वें वित्त आयोग (Finance Commissions- FC) की सिफारिशों तथा योजना आयोग के विघटन के बाद SCS राज्यों को यह सहायता सभी राज्यों के लिये वितरण पूल फंड (Divisible Pool Funds) के बड़े हस्तांतरण में शामिल कर दी गई है (जो कि 15वें वित्त आयोग में 32% से 41% तक बढ़ गई है)।
- केंद्र विशेष श्रेणी दर्जा प्राप्त राज्यों को केंद्र-प्रायोजित योजना में आवश्यक धनराशि का 90% का भुगतान करता है, जबकि अन्य राज्यों के मामले में यह 60% या 75% है, जबकि शेष धनराशि राज्य सरकारों द्वारा प्रदान की जाती है।
- एक वित्तीय वर्ष में खर्च नहीं किया गया धन आगामी सत्र के लिये संरक्षित कर लिया जाता है और समाप्त नहीं होता है।
- इन राज्यों को उत्पाद शुल्क एवं सीमा शुल्क, आयकर एवं कॉर्पोरेट कर में महत्त्वपूर्ण रियायतें प्रदान की जाती हैं।
- केंद्र के सकल बजट का 30% विशेष श्रेणी के राज्यों को जाता है।
- अतीत में SCS राज्यों को गाडगिल-मुखर्जी फॉर्मूले द्वारा निर्धारित लगभग 30% केंद्रीय सहायता मिलती थी।
बिहार क्यों मांग रहा है विशेष राज्य का दर्जा (SCS)?
- आर्थिक असमानताएँ:
- बिहार को औद्योगिक विकास की कमी और सीमित निवेश अवसरों सहित गंभीर आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
- राज्य के विभाजन के परिणामस्वरूप उद्योगों को झारखंड में स्थानांतरित कर दिया गया, जिससे बिहार में रोज़गार और आर्थिक विकास के मुद्दे बढ़ गए।
- प्राकृतिक आपदाएँ:
- राज्य, उत्तरी क्षेत्र में बाढ़ और दक्षिणी भाग में गंभीर सूखे जैसी प्राकृतिक आपदाओं से जूझ रहा है।
- बार-बार आने वाली आपदाएँ कृषि गतिविधियों को बाधित करती हैं, जिससे आजीविका और आर्थिक स्थिरता प्रभावित होती है।
- बुनियादी ढाँचे की कमी:
- बुनियादी ढाँचा, विशेषकर सिंचाई सुविधाओं और जल आपूर्ति के मामले में अपर्याप्त बना हुआ है।
- सिंचाई के लिये पर्याप्त संसाधनों का अभाव कृषि उत्पादकता को प्रभावित करता है, जो आबादी के एक बड़े हिस्से के लिये आजीविका का प्राथमिक स्रोत है।
- गरीबी और सामाजिक विकास:
- बिहार में गरीबी दर उच्च है, यहाँ बड़ी संख्या में परिवार गरीबी रेखा से नीचे रहते हैं।
- लगभग 54,000 रुपए प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद के साथ बिहार लगातार सबसे गरीब राज्यों में से एक रहा है। बिहार में लगभग 94 लाख गरीब परिवार हैं और SCS देने से सरकार को अगले 5 वर्षों में विभिन्न कल्याण उपायों के लिये आवश्यक लगभग 2.5 लाख करोड़ रुपए प्राप्त करने में मदद मिलेगी।
- विकास के लिये वित्तपोषण:
- SCS की मांग का उद्देश्य केंद्र सरकार से पर्याप्त वित्तीय सहायता प्राप्त करना है, जिससे बिहार को विकास परियोजनाओं के लिये आवश्यक धन प्राप्त करने और लंबे समय से चली आ रही सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों का समाधान करने में सहायता मिलेगी।
क्या बिहार SCS के अनुदान हेतु मानदंड पूरा करता है?
- यद्यपि बिहार SCS अनुदान के अधिकांश मानदंडों को पूरा करता है, लेकिन यह पहाड़ी इलाकों और भौगोलिक रूप से विषम क्षेत्रों की आवश्यकता को पूरा नहीं करता है, जिसे बुनियादी ढाँचे के विकास में कठिनाई का प्राथमिक कारण माना जाता है।
- वर्ष 2013 में केंद्र द्वारा गठित रघुराम राजन समिति ने बिहार को ‘अल्प विकसित श्रेणी’ में रखा और SCS के बजाय ‘बहु-आयामी सूचकांक’ पर आधारित एक नई पद्धति का सुझाव दिया, जिस पर राज्य के सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन को दूर करने के लिये पुनः विचार किया जा सकता है।
क्या अन्य राज्य भी SCS चाहते हैं?
- वर्ष 2014 में अपने विभाजन के बाद आंध्र प्रदेश ने हैदराबाद के तेलंगाना में जाने के कारण राजस्व हानि के आधार पर SCS अनुदान मांगा है।
- इसके अतिरिक्त ओडिशा भी चक्रवात जैसी प्राकृतिक आपदाओं और एक बड़ी जनजातीय आबादी (लगभग 22%) के प्रति अपनी संवेदनशीलता को उजागर करते हुए SCS के लिये अनुरोध कर रहा है।
- फिर भी केंद्र सरकार ने 14वीं FC रिपोर्ट का हवाला देते हुए उनके अनुरोधों को लगातार खारिज़ कर दिया है, जिसमें केंद्र को सिफारिश की गई थी कि किसी भी राज्य को SCS नहीं दिया जाना चाहिये।
विशेष श्रेणी दर्जे (SCS) से संबंधित चिंताएँ क्या हैं?
- संसाधनों का आवंटन:
- SCS देने में राज्य को अतिरिक्त वित्तीय सहायता प्रदान करना शामिल है, जो केंद्र सरकार के संसाधनों पर दबाव डाल सकता है। विभिन्न राज्यों के बीच धन के आवंटन को संतुलित करना महत्त्वपूर्ण हो जाता है और SCS देने से गैर-विशेष श्रेणी दर्जा राज्यों के बीच असमानता या असंतोष उत्पन्न हो सकता है।
- केंद्रीय सहायता पर निर्भरता:
- SCS वाले राज्य अक्सर केंद्रीय सहायता पर अत्यधिक निर्भर हो जाते हैं। यह संभावित रूप से आत्मनिर्भरता और स्वतंत्र आर्थिक विकास रणनीतियों के प्रयासों को हतोत्साहित कर सकता है।
- कार्यान्वयन चुनौतियाँ:
- SCS के अनुदान के बाद भी प्रशासनिक अक्षमताओं, भ्रष्टाचार या उचित योजना की कमी के कारण धनराशि के प्रभावी उपयोग जैसी चुनौतियाँ आवंटित धनराशि का उपयोग इच्छित उद्देश्यों के लिये करने में बाधक बन सकती हैं।
आगे की राह
- निष्पक्षता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिये SCS देने के मानदंडों पर पुनः विचार करने और उन्हें परिष्कृत करने की आवश्यकता है। सामाजिक-आर्थिक संकेतकों, बुनियादी ढाँचे के विकास और अन्य प्रासंगिक कारकों के आधार पर पात्रता के मापदंडों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करना।
- राज्यों को व्यापक विकास योजनाएँ बनाने के लिये प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है जिसमें सतत् विकास, रोज़गार सृजन, बुनियादी ढाँचे का विकास और मानव पूंजी विकास पर ध्यान केंद्रित करना शामिल है। SCS को समग्र विकास के लिये व्यापक रणनीति का हिस्सा बनाना चाहिये।
- ऐसी नीतियाँ लागू करना जो आत्मनिर्भरता और आर्थिक विविधीकरण को बढ़ावा देकर केंद्रीय सहायता पर राज्यों की निर्भरता को धीरे-धीरे कम करें। राज्यों को अपना राजस्व उत्पन्न करने के लिये प्रोत्साहित करना।