राज्यों में विधानपरिषदें

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस आलेख में राज्य में विधानपरिषद तथा उसके विभिन्न पक्षों की चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ

मध्य प्रदेश सरकार ने संकेत दिया है कि वह विधानपरिषद के निर्माण की दिशा में कदम उठाने की योजना बना रही है। ध्यातव्य है कि वर्ष 1956 में 7वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा मध्य प्रदेश के लिये विधानपरिषद की स्थापना का प्रावधान किया गया था किंतु अभी तक राष्ट्रपति द्वारा अधिसूचना जारी न किये जाने के कारण मध्य प्रदेश में विधानपरिषद का गठन नहीं हो सका है। भारत के सभी राज्यों में दो सदन अस्तित्व में नहीं हैं। ध्यान देने योग्य है कि वर्तमान में सिर्फ 6 राज्यों में ही विधानपरिषद की व्यवस्था है।

विधानपरिषद का गठन एवं विघटन

  • संविधान का अनुच्छेद 171 किसी राज्य में विधानसभा के अलावा एक विधानपरिषद के गठन का विकल्प भी प्रदान करता है। राज्यसभा की तरह विधानपरिषद के सदस्य सीधे मतदाताओं द्वारा निर्वाचित नहीं होते।
  • यद्यपि संविधान में राज्यों के लिये विधानपरिषद के गठन का विकल्प दिया गया है किंतु राज्यों के संदर्भ में दो सदन का प्रावधान भारतीय संविधान की आधारभूत विशेषता नहीं है। संविधान में निर्दिष्ट है कि विधानपरिषद के गठन का निर्णय राज्यों को स्वयं करना होगा हालाँकि इसके लिये अनुच्छेद 169 के अंतर्गत प्रावधान किया गया है लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि राज्यों को विधानपरिषद का गठन करने कि पूर्ण स्वतंत्रता है।
  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 168 राज्य में विधानमंडल का प्रावधान करता है। अनुच्छेद 169 के अनुसार, किसी राज्य में विधानपरिषद का गठन किया जा सकता है, यदि राज्य की विधानसभा ने इस आशय का संकल्प विधानसभा की कुल सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा तथा उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों की संख्या के कम-से-कम दो-तिहाई बहुमत द्वारा पारित कर दिया है। संसद के दोनों सदन फिर इस आशय का अधिनियम पारित करते हैं। इसके पश्चात् राष्ट्रपति की स्वीकृति भी आवश्यक होती है।
  • हालाँकि इस प्रकार के सशोधन से संविधान में परिवर्तन आता है किंतु इसे अनुच्छेद 368 के अंतर्गत संविधान संशोधन नहीं माना जाता है।

दूसरा सदन क्यों?

  • जिस प्रकार संसद में दो सदन होते हैं, वैसे ही राज्य की इच्छा पर राज्य में भी दो सदन हो सकते हैं।
  • राज्य में दो सदनों के विचार पर संविधान सभा में मतभेद था।
  • इसके पक्ष में तर्क दिया जाता है कि विधानपरिषद के रूप में एक अन्य सदन विधानसभा की कार्रवाइयों पर नियंत्रण रख सकता है।
  • इसके विरोध में तर्क दिया जाता है कि विधानपरिषद का उपयोग विधि निर्माण को विलंबित करने और ऐसे नेताओं को सदन में भेजने के लिये किया जा सकता है जो चुनाव जीतने में सक्षम नहीं हैं।

विधानपरिषद के सदस्य

  • संविधान के अनुच्छेद 171 के अनुसार, विधानपरिषद के सदस्यों की कुल संख्या उस राज्य की विधानसभा के सदस्यों की कुल संख्या के एक-तिहाई से अधिक नहीं होगी, किंतु यह सदस्य संख्या 40 से कम नहीं चाहिये।
  • मध्य प्रदेश में जहाँ विधानसभा सदस्यों की संख्या 230 है, प्रस्तावित विधानपरिषद में अधिकतम 76 सदस्य हो सकते हैं।
  • राज्यसभा सांसद की ही तरह विधानपरिषद सदस्य (MLC) का कार्यकाल भी 6 वर्ष का होता है, जहाँ प्रत्येक दो वर्ष की अवधि पर इसके एक-तिहाई सदस्य कार्यनिवृत्त हो जाते हैं।

विधानपरिषद का चुनाव

  • विधानपरिषद के एक-तिहाई सदस्य राज्य के विधानसभा सदस्यों द्वारा चुने जाते हैं; अन्य एक-तिहाई सदस्य एक विशेष निर्वाचक-मंडल द्वारा निर्वाचित होते हैं जिसमें नगरपालिकाओं, ज़िला बोर्डों और अन्य स्थानीय प्राधिकारों के सदस्य शामिल होते हैं; इसके अतिरिक्त, सदस्यों के बारहवें भाग का निर्वाचन शिक्षकों के निर्वाचक-मंडल द्वारा और एक अन्य बारहवें भाग का निर्वाचन पंजीकृत स्नातकों के निर्वाचक-मंडल द्वारा किया जाता है।
  • शेष सदस्यों को विभिन्न क्षेत्रों में विशिष्ट सेवाओं के लिये राज्यपाल द्वारा मनोनीत किया जाता है।

विधानसभा की तुलना में विधानपरिषद

  • साधारण विधेयक को दोनों सदनों में पुरःस्थापित किया जा सकता है लेकिन असहमति की स्थिति में विधानसभा प्रभावी होती है। विधानपरिषद किसी भी साधारण विधेयक को अधिकतम चार माह तक ही रोक सकती है।
  • मुख्यमंत्री तथा मंत्रियों का चयन किसी भी सदन से किया जा सकता है। यदि विधानपरिषद के सदस्य को मुख्यमंत्री या मंत्री बनाया जाता है तब भी वह विधानसभा के प्रति ही उत्तरदायी होगा।
  • वित्त विधेयक को सिर्फ विधानसभा में पुरःस्थापित किया जा सकता है। विधानपरिषद न ही इसको अस्वीकृत कर सकती है और न ही 14 दिन से अधिक समय तक रोक सकती है। 14 दिनों के पश्चात् विधेयक को परिषद से स्वतः ही पारित मान लिया जाएगा।
  • भारत में राष्ट्रपति के निर्वाचन तथा राज्यसभा में राज्यों से जाने वाले प्रतिनिधियों के निर्वाचन में विधानपरिषद भाग नहीं ले सकती, साथ ही संविधान संशोधन विधेयक में परिषद प्रभावी रूप में कुछ नहीं कर सकती।
  • विधानपरिषद का अस्तित्त्व विधानसभा पर निर्भर है। विधानसभा की सिफारिश के पश्चात् संसद विधानपरिषद को समाप्त कर सकती है।

राज्यसभा की तुलना में विधानपरिषद

  • विधानपरिषद की विधायी शक्ति सीमित है। राज्यसभा के पास गैर-वित्तीय विधानों को आकार देने की पर्याप्त शक्तियाँ मौजूद हैं, लेकिन विधानपरिषद के पास ऐसा करने के लिये संवैधानिक शक्तियों का अभाव है।
  • विधानसभा, विधानपरिषद द्वारा विधि निर्माण पर दिये गए सुझावों/संशोधनों का अध्यारोहण (ओवरराइड) कर सकती है।
  • राज्यसभा सदस्यों के विपरीत विधानपरिषद के सदस्य राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के लिये चुनाव में मतदान नहीं कर सकते।
  • राज्यसभा का सभापति उपराष्ट्रपति होता है; विधानपरिषद का सभापति परिषद के ही किसी सदस्य को चुना जाता है।
  • राज्यसभा में राज्य का प्रतिनिधित्त्व होता है तथा यह केंद्र के अनावश्यक हस्तक्षेप से राज्यों के हितों की रक्षा करती है और संघवाद को बढ़ावा देती है। इस तरह यह विधानपरिषद कि तरह केवल साधारण इकाई अथवा सलाहकारी इकाई भर नहीं है।
  • परिषद का गठन विषमांगी है। इसके सदस्य विभिन्न रूपों से निर्वाचित होते हैं तथा इसमें नामित सदस्यों की संख्या अपेक्षाकृत अधिक होती है। विधानपरिषद का गठन ही इसको कमज़ोर बनाता है तथा राज्यसभा के समान पुनरीक्षण इकाई के रूप में इसकी उपयोगिता को कम करता है। दूसरी ओर राज्यसभा के गठन का आधार समान है। इसके सदस्य प्रमुख रूप से राज्यों के विधानसभा सदस्यों से निर्वाचित होते हैं, केवल 12 सदस्य ही राष्ट्रपति द्वारा नामित किये जाते हैं।
  • परिषद को प्रदान किया गया दर्जा एक प्रकार से लोकतंत्र के दर्शन के अनुरूप ही है। जहाँ परिषद विधानसभा के अनुसार कार्य करती है क्योंकि विधानसभा के सदस्यों का निर्वाचन प्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा होता है। विधानपरिषद की स्थिति ब्रिटिश मॉडल के समान है। ब्रिटेन में हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स जिसे उच्च सदन कहा जाता है, हाउस ऑफ़ कॉमन्स अर्थात् निचले सदन का विरोध नहीं करता है। ब्रिटेन में हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स केवल विलंबनकारी चैंबर के रूप में मौजूद है।

विधानपरिषद की आलोचना

विधानसभा की तुलना में विधानपरिषद की स्थिति काफी कमज़ोर है। विधानपरिषद की शक्तिविहीन और प्रभावहीन भूमिका के कारण विशेषज्ञों द्वारा इस सदन की आलोचना की जाती रही है। आलोचक इसको द्वितीयक चैंबर, सफेद हाथी, खर्चीला सदन आदि की संज्ञा देते हैं। परिषद को ऐसे लोगों की शरणस्थली के रूप में देखा जाता है जो विधानसभा के समान निर्वाचन द्वारा चुनकर नहीं आ सकते। यह ऐसे व्यक्तियों की जिनकी सार्वजनिक स्थिति कमज़ोर होती है, लोगों के बीच लोकप्रिय नहीं होते हैं तथा जनता द्वारा नकार दिये गए लोगों को सरकार में शामिल करने अर्थात् मुख्यमंत्री या मंत्री बनाने हेतु इस सदन का उपयोग किया जाता है।

विधानपरिषद की उपयोगिता

यह तथ्य सही है की विधानसभा को परिषद कि तुलना में अधिक अधिकार प्राप्त हैं फिर भी कुछ मामलों में इसकी उपयोगिता है, जोकि निम्नलिखित है-

  • यह विधानसभा द्वारा जल्दबाज़ी और असावधानी में बनाए गए गलत विधानों का पुनरीक्षण करती है।
  • ध्यातव्य है कि राज्यपाल द्वारा इसकी कुल सदस्य संख्या का 1/6 प्रतिशत नामित किया जाता है। इस प्रकार से ऐसे लोग जो विभिन्न हित समूहों से संबंधित हैं तथा अपने-अपने क्षेत्रों के विशेषज्ञ हैं लेकिन विभिन्न कारणों से निर्वाचन प्रक्रिया का सामना करने में सक्षम नहीं है, को परिषद प्रतिनिधित्त्व का अवसर प्रदान करती है।

विधानपरिषद वाले राज्य

  • वर्तमान में छह राज्यों में विधानपरिषद अस्तित्व में हैं।
  • जम्मू-कश्मीर में भी इसके द्वि-भाजन (जम्मू-कश्मीर और लद्दाख केंद्रशासित प्रदेश) के पूर्व विधानपरिषद मौजूद थी।
  • तमिलनाडु की तत्कालीन सरकार ने विधानपरिषद गठित करने के लिये एक अधिनियम पारित किया था, लेकिन 2010 में सत्ता में आई नई सरकार ने इसे वापस ले लिया।
  • वर्ष 1958 में गठित आंध्र प्रदेश विधानपरिषद को वर्ष 1985 में समाप्त कर दिया गया था। वर्ष 2007 में इसका पुनर्गठन किया गया।
  • ओडिशा विधानसभा ने हाल ही में एक विधानपरिषद के गठन के लिये संकल्प पारित किया है।
  • राजस्थान और असम में विधानपरिषद के गठन के प्रस्ताव संसद में लंबित हैं।

निष्कर्ष

भारत में केंद्र के स्तर पर द्वि-सदनात्मक व्यवस्था की गई है। किंतु राज्य के स्तर पर एक सदन के दर्शन को अपनाया गया है। भारत में राज्यों के भौगोलिक आकार तथा जनसंख्या को लेकर अत्यधिक विविधता विद्यमान है। इसको ध्यान में रखकर राज्य के संदर्भ में दो सदनों की वैकल्पिक व्यवस्था का भी प्रावधान किया गया है। वर्तमान में उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र जैसे 6 बड़े राज्यों में ही द्वि-सदनात्मक व्यवस्था मौजूद है। हाल में मध्य प्रदेश ने विधानपरिषद के गठन की इच्छा व्यक्त की है। उपरोक्त अध्ययन से यह बात स्पष्ट होती है कि राज्य में परिषद की भूमिका सीमित है। ऐसे में वे राज्य जिनकी आबादी अधिक है तथा जहाँ ऐसे समूह उपस्थित है और जिनको विधानसभा के माध्यम से उचित प्रतिनिधित्त्व प्राप्त नहीं हो पा रहा है, में परिषद अच्छी भूमिका निभा सकती है। ध्यातव्य है कि परिषद की उपयोगिता सीमित है तथा यह अधिक खर्चीली व्यवस्था भी है, इसलिये ऐसे राज्यों को ही परिषद के गठन पर विचार करना चाहिये जो इसके अतिरिक्त भार को वहन करने की क्षमता रखते हों।

प्रश्न: वर्तमान में भारत के केवल 6 राज्यों में ही विधानपरिषद मौजूद है। क्या विधानपरिषद सिर्फ एक विलंबनकारी निकाय है? चर्चा कीजिये।