मुख्य निर्वाचन आयुक्त
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राष्ट्रपति ने चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा को मुख्य निर्वाचन आयुक्त (Chief Election Commissioner- CEC) नियुक्त किया।
- उन्होंने सुनील अरोड़ा का स्थान लिया है।
प्रमुख बिंदु
भारत निर्वाचन आयोग के बारे में:
- भारत निर्वाचन आयोग (Election Commission of India- ECI) भारत में संघ और राज्य चुनाव प्रक्रियाओं के संचालन के लिये एक स्वायत्त संवैधानिक प्राधिकरण (Constitutional Authority) है।
- इसकी स्थापना 25 जनवरी, 1950 को संविधान के अनुसार की गई थी (जिसे राष्ट्रीय मतदाता दिवस के रूप में मनाया जाता है)। आयोग का सचिवालय नई दिल्ली में स्थित है।
- यह भारत में लोकसभा, राज्यसभा और राज्य विधानसभाओं, देश के राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति के चुनावों का संचालन करता है।
- इसका राज्यों में पंचायतों और नगरपालिकाओं के चुनावों से कोई संबंध नहीं है। भारत का संविधान में इसके लिये एक अलग राज्य निर्वाचन आयोग (State Election Commission) का प्रावधान है।
संवैधानिक प्रावधान:
- भारतीय संविधान का भाग XV (अनुच्छेद 324-329): यह चुनावों से संबंधित हैं, और यह इनसे संबंधित मामलों के लिये एक अलग आयोग की स्थापना करता है।
- अनुच्छेद 324: निर्वाचन आयोग में चुनावों के संदर्भ में निहित दायित्व हैं- अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण।
- अनुच्छेद 325: धर्म, जाति या लिंग के आधार पर किसी भी व्यक्ति विशेष को मतदाता सूची में शामिल न करने और इनके आधार पर मतदान के लिये अयोग्य नहीं ठहराने का प्रावधान।
- अनुच्छेद 326: लोकसभा एवं प्रत्येक राज्य की विधानसभा के लिये निर्वाचन वयस्क मताधिकार के आधार पर होगा।
- अनुच्छेद 327: विधायिका द्वारा चुनाव के संबंध में संसद में कानून बनाने की शक्ति।
- अनुच्छेद 328: किसी राज्य के विधानमंडल को उनके चुनाव के लिये कानून बनाने की शक्ति।
- अनुच्छेद 329: निर्वाचन संबंधी मामलों में न्यायालयों के हस्तक्षेप का वर्जन।
ECI की संरचना:
- निर्वाचन आयोग में मूलतः केवल एक चुनाव आयुक्त का प्रावधान था, लेकिन राष्ट्रपति की एक अधिसूचना के ज़रिये 16 अक्तूबर, 1989 को इसे तीन सदस्यीय बना दिया गया।
- इसके बाद कुछ समय के लिये इसे एक सदस्यीय आयोग बना दिया गया और 1 अक्तूबर, 1993 को इसका तीन सदस्यीय आयोग वाला स्वरूप फिर से बहाल कर दिया गया। तब से निर्वाचन आयोग में एक मुख्य चुनाव आयुक्त और दो चुनाव आयुक्त होते हैं।
- मुख्य निर्वाचन अधिकारी IAS रैंक का अधिकारी होता है।
आयुक्तों की नियुक्ति और कार्यकाल:
- मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
- इनका कार्यकाल 6 वर्ष या 65 वर्ष की आयु (दोनों में से जो भी पहले हो) तक होता है।
- इन्हें भारत के सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court- SC) के न्यायाधीशों के समकक्ष दर्जा प्राप्त होता है और समान वेतन एवं भत्ते मिलते हैं।
निष्कासन:
- वे कभी भी इस्तीफा दे सकते हैं या उन्हें उनके कार्यकाल की समाप्ति से पहले भी हटाया जा सकता है।
- मुख्य चुनाव आयुक्त को संसद द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया के समान ही पद से हटाया जा सकता है।
निष्कासन की प्रक्रिया
- उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों, मुख्य चुनाव आयुक्त, नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (Comptroller and Auditor General- CAG) को दुर्व्यवहार या पद के दुरुपयोग का आरोप सिद्ध होने पर या अक्षमता के आधार पर संसद द्वारा अपनाए गए प्रस्ताव के माध्यम से ही पद से हटाया जा सकता है।
- निष्कासन के लिये दो-तिहाई सदस्यों के विशेष बहुमत की आवश्यकता होती है और इसके लिये सदन के कुल सदस्यों का 50 प्रतिशत से अधिक मतदान होना चाहिये।
- न्यायाधीशों, CAG, CEC को हटाने के लिये संविधान में 'महाभियोग' शब्द का उपयोग नहीं किया गया है।
- ‘महाभियोग’ शब्द का प्रयोग केवल राष्ट्रपति को हटाने के लिये किया जाता है जिसके लिये संसद के दोनों सदनों में उपस्थित सदस्यों की कुल संख्या के दो-तिहाई सदस्यों के विशेष बहुमत की आवश्यकता होती है और यह प्रक्रिया किसी अन्य मामले में नहीं अपनाई जाती।
सीमा:
- संविधान ने निर्वाचन आयोग के सदस्यों की योग्यता (कानूनी, शैक्षिक, प्रशासनिक या न्यायिक) निर्धारित नहीं की है।
- संविधान ने चुनाव आयोग के सदस्यों का कार्यकाल निर्दिष्ट नहीं किया है।
- संविधान ने सेवानिवृत्त चुनाव आयुक्तों को सरकार द्वारा किसी और नियुक्ति से वंचित नहीं किया है।
ECI की शक्तियाँ और कार्य:
- प्रशासनिक:
- संसद के परिसीमन आयोग अधिनियम के आधार पर पूरे देश में निर्वाचन क्षेत्र की सीमाओं का निर्धारण करना।
- समय-समय पर मतदाता सूची तैयार करना और सभी पात्र मतदाताओं का पंजीकरण करना।
- राजनीतिक दलों को मान्यता देने और उन्हें चुनाव चिन्ह आवंटित करने के लिये।
- यह राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के लिये चुनाव में ‘आदर्श आचार संहिता’ जारी करता है, ताकि कोई अनुचित कार्य न करे या सत्ता में मौजूद लोगों द्वारा शक्तियों का दुरुपयोग न किया जाए।
- सलाहकार क्षेत्राधिकार और अर्द्ध-न्यायिक कार्य:
- निर्वाचन के बाद अयोग्य ठहराए जाने के मामले में आयोग के पास संसद और राज्य विधानसभाओं के सदस्यों की बैठक हेतु सलाहकार क्षेत्राधिकार भी है।
- ऐसे सभी मामलों में आयोग की राय राष्ट्रपति के लिये बाध्यकारी है, किंतु ऐसे मामले पर राज्यपाल अपनी राय दे सकता है।
- आयोग के पास किसी उम्मीदवार को अयोग्य घोषित करने की शक्ति है, जो समय के भीतर और कानून द्वारा निर्धारित तरीके से अपने चुनावी खर्चों का लेखा-जोखा करने में विफल रहा है।