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भारतीय राजव्यवस्था

आदर्श आचार संहिता

  • 30 Oct 2020
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये

निर्वाचन आयोग, आदर्श आचार संहिता

मेन्स के लिये

आदर्श आचार संहिता का इतिहास और इसके मुख्य प्रावधान, इससे कानूनी तौर पर लागू करने संबंधी मुद्दा

चर्चा में क्यों?

हाल ही में निर्वाचन आयोग ने मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ द्वारा एक महिला राजनेता पर की गई टिप्पणी को आदर्श आचार संहिता (MCC) का उल्लंघन बताते हुए उन्हें चुनाव प्रचार के दौरान ऐसे शब्दों का प्रयोग न करने की सलाह दी है।

प्रमुख बिंदु

आदर्श आचार संहिता (MCC)

  • आदर्श आचार संहिता (MCC) निर्वाचन आयोग द्वारा चुनाव से पूर्व राजनीतिक दलों और उनके उम्मीदवारों के विनियमन तथा स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने हेतु जारी दिशा-निर्देशों का एक समूह है।
  • आदर्श आचार संहिता (MCC) भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 के अनुरूप है, जिसके तहत निर्वाचन आयोग (EC) को संसद तथा राज्य विधानसभाओं में स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनावों की निगरानी और संचालन करने की शक्ति दी गई है।
  • नियमों के मुताबिक, आदर्श आचार संहिता उस तारीख से लागू हो जाती है जब निर्वाचन आयोग द्वारा चुनाव की घोषणा की जाती है और यह चुनाव परिणाम घोषित होने की तारीख तक लागू रहती है। 

आदर्श आचार संहिता का विकास

  • आदर्श आचार संहिता की शुरुआत सर्वप्रथम वर्ष 1960 में केरल विधानसभा चुनाव के दौरान हुई थी, जब राज्य प्रशासन ने राजनीतिक दलों और उनके उम्मीदवारों के लिये एक ‘आचार संहिता' तैयार की थी। केरल प्रशासन द्वारा तैयार की गई इस संहिता में चुनावी सभाओं, भाषणों और नारों आदि के बारे में राजनीतिक दलों को निर्देश दिये गए थे।
  • इसके पश्चात् वर्ष 1962 के लोकसभा चुनाव में निर्वाचन आयोग (EC) ने सभी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों और राज्य सरकारों को फीडबैक के लिये आचार संहिता का एक प्रारूप भेजा, जिसके बाद से देश भर के सभी राजनीतिक दलों द्वारा इसका पालन किया जा रहा है।
  • वर्ष 1979 में निर्वाचन आयोग ने सत्ताधारी दल को चुनाव के दौरान अनुचित लाभ प्राप्त करने से रोकने के लिये आदर्श आचार संहिता में सत्तारुढ़ दल से संबंधित दिशा-निर्देश शामिल कर दिये। इसके बाद वर्ष 1991 में आदर्श आचार संहिता को और अधिक सख्ती से लागू करने का निर्णय लिया गया। 
  • वर्ष 2013 में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्वाचन आयोग को आदर्श आचार संहिता (MCC) में चुनावी घोषणापत्र से संबंधित दिशा-निर्देश शामिल करने का आदेश दिया, जिसे वर्ष 2014 में शामिल कर लिया गया।

आदर्श आचार संहिता के प्रावधान

  • सामान्य आचरण: राजनीतिक दलों की आलोचना केवल उनकी नीतियों, कार्यक्रमों, पिछले रिकॉर्ड और कार्य तक सीमित होनी चाहिये। जातिगत और सांप्रदायिक भावनाओं को आहत करने, असत्यापित रिपोर्टों के आधार पर उम्मीदवारों की आलोचना करने, मतदाताओं को रिश्वत देने या डराने और किसी के विचारों का विरोध करते हुए उसके घर के बाहर प्रदर्शन या धरना देने जैसी गतिविधियाँ पूर्णतः निषिद्ध हैं।
  • सभा: सभी राजनीतिक दलों को अपनी किसी भी बैठक का आयोजन करने से पहले स्थानीय प्रशासन और पुलिस को बैठक के स्थान और समय के बारे में सूचित करना चाहिये ताकि बैठक के दौरान पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित की जा सके।
  • जुलूस: यदि दो या दो से अधिक दल या उम्मीदवार एक ही मार्ग से जुलूस निकालने की योजना बनाते हैं, तो किसी भी तरह के टकराव से बचने के लिये आयोजकों को पहले ही एक-दूसरे से संपर्क कर लेना चाहिये। इस तरह के जुलूस के दौरान किसी भी राजनीतिक दल के नेता के पुतले नहीं जलाए जाने चाहिये।
  • मतदान: मतदान केंद्रों पर सभी दलों के कार्यकर्त्ताओं को उपयुक्त बैज या पहचान पत्र दिया जाना चाहिये। मतदाताओं को चुनावी दल के नेताओं द्वारा दी जाने वाली पर्ची सादे (सफेद) कागज़ पर होगी और इसमें कोई प्रतीक चिह्न, उम्मीदवार का नाम या पार्टी का नाम नहीं होगा।
  • पोलिंग बूथ: केवल मतदाताओं और चुनाव आयोग द्वारा जारी वैध प्रमाणपत्र वाले लोगों को ही मतदान केंद्रों में प्रवेश करने की अनुमति दी जाएगी।
  • प्रेक्षक (Observer): निर्वाचन आयोग द्वारा प्रेक्षकों (Observer) की नियुक्ति की जाएगी, जिसके पास कोई भी उम्मीदवार चुनाव के संचालन के बारे में समस्याओं की रिपोर्ट कर सकता है।
  • सत्तारुढ़ दल: चुनाव आयोग ने आदर्श आचार संहिता (MCC) में वर्ष 1979 में सत्तारुढ़ दल के आचरण को विनियमित करने हेतु कुछ प्रतिबंध लागू किये थे।
    • मंत्रियों द्वारा आधिकारिक यात्राओं का प्रयोग चुनावी कार्यों के लिये नहीं किया जा सकता है, साथ ही चुनावी कार्यों के लिये आधिकारिक मशीनरी का उपयोग भी नहीं किया जाना चाहिये।
    • सत्तारुढ़ दल को सरकारी खजाने से विज्ञापन देने या प्रचार के लिये आधिकारिक जन माध्यमों का इस्तेमाल करने से बचना चाहिये।
    • मंत्रियों और राजनीतिक पदों पर बैठे अन्य लोगों को आदर्श आचार संहिता लागू होने के बाद किसी भी तरह की वित्तीय अनुदान की घोषणा नहीं करनी चाहिये या सड़कों के निर्माण, पेयजल की व्यवस्था आदि का वादा भी नहीं करना चाहिये।
    • अन्य दलों को सार्वजनिक स्थानों का उपयोग करने की अनुमति दी जानी चाहिये।
  • चुनावी घोषणापत्र: राजनीतिक दलों को ऐसे वादे करने से बचना चाहिये, जो मतदाताओं पर अनुचित प्रभाव डालते हैं।

आदर्श आचार संहिता का कानूनी प्रवर्तन

  • यद्यपि आदर्श आचार संहिता को कानूनी तौर पर लागू नहीं किया गया है, यानी आचार संहिता का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को कानूनी तौर पर सज़ा नहीं दी जा सकती है, किंतु इसके कुछ प्रावधानों को भारतीय दंड संहिता, 1860, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 आदि के माध्यम से लागू किया जा सकता है।
  • गौरतलब है कि वर्ष 2013 में कार्मिक, लोक शिकायत, कानून और न्याय संबंधी स्थायी समिति ने आदर्श आचार संहिता (MCC) को कानूनी रूप से बाध्यकारी बनाने की सिफारिश करते हुए इसे जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 का हिस्सा बनाए जाने की बात कही थी।
  • हालाँकि निर्वाचन आयोग स्वयं आदर्श आचार संहिता (MCC) को कानूनी रूप से लागू करने के पक्ष में नहीं है। निर्वाचन आयोग का तर्क है कि चुनाव पूरा कराने की अवधि अपेक्षाकृत काफी कम होती है और न्यायिक कार्यवाही में ज़्यादा समय लगता है, इसलिये व्यावहारिक तौर पर आदर्श आचार संहिता को कानूनी रूप से लागू करना, संभव नहीं है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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