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डेली न्यूज़

  • 27 Dec, 2022
  • 68 min read
इन्फोग्राफिक्स

मौद्रिक नीति की मात्रात्मक लिखतें

Quantitative-Instruments-of-Monetary-Policy

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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत की विदेश नीति

प्रिलिम्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC), संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA), अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA), मानवाधिकार आयोग

मेन्स के लिये:

भारत की विदेश नीति की वर्तमान चुनौतियाँ और आगे की राह

चर्चा में क्यों?

भू-राजनीतिक और कूटनीतिक मंच के संदर्भ में वर्ष 2022 विशेष रूप से यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद एक कठिन वर्ष रहा है।

यूक्रेन संकट और भारत:  

  • गुटनिरपेक्षता नीति का पालन: 
    • यूक्रेन युद्ध को लेकर भारत ने "गुटनिरपेक्षता" के अपने संस्करण को परिभाषित किया, साथ ही संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ के बीच बढ़ते ध्रुवीकरण एवं रूस के संदर्भ में संतुलन बनाने की मांग की।
    • एक तरफ भारतीय प्रधानमंत्री ने यह कहकर कि "यह युग युद्ध का नहीं है", रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से युद्ध को लेकर अपनी चिंता स्पष्ट कर दी और दूसरी ओर रूस के साथ बढ़ते सैन्य एवं तेल व्यापार पर पश्चिमी प्रतिबंधों को स्वीकार करने से इनकार कर दिया, साथ ही उन्हें सुविधाजनक बनाने के लिये रुपया आधारित भुगतान तंत्र की मांग की।
  • प्रस्ताव पर वोट देने से इनकार करना: 
    • सबसे महत्त्वपूर्ण रूप से जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (United Nation Security Council- UNSC), संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations General Assembly- UNGA), अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (International Atomic Energy Agency- IAEA), मानवाधिकार आयोग और अन्य बहुपक्षीय मंचों पर एक दर्जन से अधिक प्रस्तावों में आक्रमण एवं मानवीय संकट के लिये रूस की निंदा करने की मांग की गई तो भारत ने मामले से दूर रहने का विकल्प चुना।
      • भारतीय विदेश नीति का दावा है कि भारत की नीति राष्ट्रीय हितों पर निर्धारित की गई थी, भले ही देशों ने भारत से पक्ष लेने की उम्मीद की थी लेकिन भारत की नीतियाँ उन देशों की अपेक्षाओं को पूरा नहीं करती हैं।

विदेश नीति 2022 की अन्य प्रमुख विशेषताएँ:

पड़ोसियों के साथ संबंध:

  • श्रीलंका: 
    • भारत ने अपनी विदेश नीति के तहत श्रीलंका के पतन के दौरान उसे आर्थिक सहायता प्रदान की।
  • बांग्लादेश, भूटान और नेपाल: 
    • भारत की विदेश नीति को बांग्लादेश, भूटान और नेपाल के साथ क्षेत्रीय व्यापार एवं ऊर्जा समझौतों द्वारा चिह्नित किया गया है, जिससे दक्षिण एशियाई ऊर्जा ग्रिड का विकास संभव हो सकेगा। 
  • मध्य एशियाई देश: 
  • अफगानिस्तान और म्याँमार:
    • सरकार ने अफगानिस्तान के तालिबान और म्याँमार में जुंटा जैसे दमनकारी शासनों के लिये बातचीत के रास्ते खुले रखे, काबुल में "तकनीकी मिशन" शुरू किया एवं सीमा सहयोग पर चर्चा करने के लिये विदेश सचिव को म्याँमार भेजा गया।
    • इससे पहले दिसंबर 2022 में म्याँमार में हिंसा को समाप्त करने और राजनीतिक कैदियों को रिहा करने के लिये की गई UNSC वोटिंग में भारत ने भाग नहीं लिया था।
  • ईरान और पाकिस्तान: 
    • ईरान में भी एक कार्यकर्त्ता की हत्या के विरोध में जब हज़ारों लोग सड़कों पर उतरे, भारत ने किसी भी तरह की आलोचना करने से परहेज किया।
    • हालाँकि दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के बीच दिसंबर 2022 में संयुक्त राष्ट्र में एक बड़े शक्ति-परीक्षण के बाद पाकिस्तान के साथ संबंध सामान्य बने हुए हैं।  

LAC-चीन गतिरोध में वृद्धि:

  • चीन के विदेश मंत्री की दिल्ली यात्रा एवं वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर कुछ गतिरोध बिंदुओं पर उसके पीछे हटने के बावजूद तनाव बना रहा और अरुणाचल प्रदेश के यांग्त्से में भारतीय चौकियों पर कब्ज़ा करने के चीनी PLA के असफल प्रयास के साथ इस वर्ष की समाप्ति हुई, यह वर्ष 2023 में चीन के साथ और अधिक हिंसक झड़प होने का संकेत है।
  • संबंधों की कठिन स्थितियों के बावजूद भारत वर्ष 2023 में दो बार जी-20 और SCO शिखर सम्मेलन में चीनी राष्ट्रपति की उपस्थिति में मेज़बानी करने वाला है, इससे गतिरोध समाप्त करने के लिये वार्ता की राह खुलने की संभावना है।

 भारत की विदेश नीति की वर्तमान चुनौतियाँ:

  • पाकिस्तान-चीन सामरिक गठजोड़:
    • आज भारत जिस सबसे विकट खतरे का सामना कर रहा है, वह है पाकिस्तान-चीन सामरिक गठजोड़, जो विवादित सीमाओं पर यथास्थिति को बदलना चाहता है और भारत की सामरिक सुरक्षा को कमज़ोर करना चाहता है।
    • वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर यथास्थिति को बदलने के लिये मई 2020 से चीन की आक्रामक कार्रवाइयों ने चीन-भारत संबंधों को गंभीर नुकसान पहूँचाया है।
  • चीन की विस्तारवादी नीति:
    • दक्षिण एशिया और हिंद महासागर क्षेत्र में चीन के वर्चस्व को संतुलित करने का मुद्दा, भारत के लिये एक और चिंता का विषय है।
    • चीन के बहुप्रतीक्षित बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के तहत यह पाकिस्तान में चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) विकसित कर रहा है (पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में भारतीय क्षेत्र पर), यह चीन-नेपाल आर्थिक गलियारा, चीन-म्यॉमार आर्थिक गलियारा का निर्माण हिंद महासागर के तटवर्ती क्षेत्रों में दोहरे उपयोग के लिये कर रहा है।
  • शक्तिशाली देशो के साथ शक्ति संतुलन:
    • भारत की रणनीतिक स्वायत्तता भारत को उस किसी भी सैन्य गठबंधन या रणनीतिक साझेदारी में शामिल होने से रोकती है जो किसी अन्य देश या देशों के समूह के लिये शत्रुतापूर्ण है।
    • परंपरागत रूप से पश्चिम ने भारत को सोवियत संघ/रूस के करीब माना है। इस धारणा को भारत द्वारा SCO, BRICS और रूस-भारत-चीन (RIC) फोरम में सक्रिय रूप से भाग लेने से बल मिला है।
    • भारत को हठधर्मी चीन को संतुलित करने, पाकिस्तान-चीन हाइब्रिड खतरों से उत्पन्न सुरक्षा दुविधाओं को दूर करने के लिये भारत-प्रशांत क्षेत्र में बाह्य संतुलन पर निर्भर रहना होगा।
    • अमेरिका, जापान, फ्राँस, ब्रिटेन और इंडोनेशिया के साथ मूलभूत समझौतों पर हस्ताक्षर करने वाले QUAD में भारत की भागीदारी को भी इस नज़रिये  से देखा जाना चाहिये। 
  • शरणार्थी संकट: वर्ष 1951 के शरणार्थी सम्मेलन और 1967 प्रोटोकॉल के पक्ष में नहीं होने के बावजूद विश्व में भारत में शरणार्थियों की बहुत बड़ी संख्या निवास करती है।
    • यहाँ चुनौती मानवाधिकारों के संरक्षण और राष्ट्रीय हित में संतुलन बनाने की है। जैसे कि रोहिंग्या संकट मुद्दे पर अभी भी बहुत कुछ किया जाना है, इस स्थिति में भारत को दीर्घकालिक समाधान खोजने की आवश्यकता है।
    • भारत की क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिति को निर्धारित करने में मानवाधिकारों के मुद्दे पर की गई  कार्रवाइयाँ महत्त्वपूर्ण होंगी।

आगे की राह

  • भारत को एक ऐसा वातावरण बनाने के लिये आगे आना चाहिये जो भारत के समावेशी विकास के लिये अनुकूल हो ताकि विकास का लाभ देश के गरीब-से-गरीब व्यक्ति तक पहुँच सके।
    • यह सुनिश्चित करना चाहिये कि वैश्विक मंचों पर भारत की आवाज़ सुनी जाए एवं आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन, निरस्त्रीकरण, वैश्विक शासन की संस्थाओं में सुधार जैसे वैश्विक मुद्दों पर भारत विश्व जनमत को प्रभावित करने में सक्षम हो। 
  • जैसा कि महात्मा गांधी ने कहा है कि सिद्धांतों और नैतिकता के बिना राजनीति विनाशकारी होगी। भारत को बड़े पैमाने पर दुनिया में अपने नैतिक नेतृत्व को पुनः प्राप्त करते हुए एक नैतिक अनुनय के साथ सामूहिक विकास की ओर बढ़ना चाहिये।
  • अतः भारत की विदेश नीति बदलती परिस्थितियों के अनुसार तेज़ी से प्रतिक्रिया करने के लिये सक्रिय, लचीली व व्यावहारिक होनी चाहिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रश्न. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अधिकांश राष्ट्रों के बीच द्विपक्षीय संबंध अन्य राष्ट्रों के हितों की परवाह किये बिना अपने स्वयं के राष्ट्रीय हित को बढ़ावा देने की नीति पर संचालित होते हैं। इससे राष्ट्रों के बीच संघर्ष और तनाव पैदा होता है। नैतिक विचार ऐसे तनावों को हल करने में कैसे मदद कर सकते हैं? विशिष्ट उदाहरणों के साथ चर्चा कीजिये। (2015) 

प्रश्न. भारत-श्रीलंका संबंधों के संदर्भ में चर्चा करें कि घरेलू कारक विदेश नीति को कैसे प्रभावित करते हैं। (2013)

प्रश्न. ‘उत्पीड़ित और उपेक्षित राष्ट्रों के नेता के रूप में भारत की लंबे समय से चली आ रही छवि, उभरती वैश्विक व्यवस्था में इसकी नई भूमिका के कारण गायब हो गई है। ' विस्तृत व्याख्या कीजिये।(2019) 

स्रोत: द हिंदू


कृषि

पुनर्योजी कृषि

प्रिलिम्स के लिये:

पुनर्योजी कृषि, मृदा क्षरण, शून्य-बजट प्राकृतिक खेती, जैविक खेती पर राष्ट्रीय परियोजना।

मेन्स के लिये:

पुनर्योजी कृषि और इसका महत्त्व।

चर्चा में क्यों? 

पुनर्योजी खेती के तरीकों का पालन करने वाले मध्य प्रदेश के किसानों का मानना है कि इससे उनकी लगातार सिंचाई की आवश्यकता कम होती जा रही है तथा पानी और ऊर्जा का संरक्षण हो रहा है।

पुनर्योजी कृषि:

  • पृष्ठभूमि:
    • 1960 के दशक की हरित क्रांति ने भारत को भुखमरी के कगार से उबार लिया लेकिन इस क्रांति ने भारत को दुनिया का सबसे बड़ा भूजल का उपयोग करने वाला देश बना दिया।
    • वर्तमान में भारतीय मृदा में जैविक कार्बन और सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की गंभीर और व्यापक कमी है।
    • संयुक्त राष्ट्र के खाद्य सुरक्षा और पोषण की स्थिति , 2022 के अनुसार, यदि कृषि से देश की 224.5 मिलियन कुपोषित आबादी के लिये खाद्यान उपलब्ध कराना है व देश की  अर्थव्यवस्था को चलाना है, तो उसे प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करने की आवश्यकता है, न कि इसके विरुद्ध जाने की ।
    • दुनिया भर के किसान कार्यकर्त्ता और कृषि अनुसंधान संगठन इस प्रकार के रसायन रहित खेती के तरीके विकसित कर रहे हैं जिसमें प्राकृतिक पद्धति एवं खेती के नए तरीकों जैसे कि फसल रोटेशन व विविधीकरण का उपयोग किया जा सकता है, यह सब  पुनर्योजी कृषि के ही तरीके हैं।
  • पुनर्योजी कृषि के बारे में:
    • पुनर्योजी कृषि एक समग्र कृषि प्रणाली है जो रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों के उपयोग को कम करने, खेतों की जुताई में कमी, पशुधन को एकीकृत करने तथा कवर की गई फसलों का उपयोग करने जैसे तरीकों के माध्यम से मिट्टी के स्वास्थ्य, भोजन की गुणवत्ता, जैवविविधता में सुधार व जल और वायु गुणवत्ता पर केंद्रित है।
    • यह निम्नलिखित सिद्धांतों का पालन करती है:
      • संरक्षण कृषि के माध्यम से मृदा क्षरण को कम-से-कम करना
      • पोषक तत्त्वों को फिर से बेहतर करने और कीटों के जीवन चक्र को बाधित करने के लिये फसलों में विविधता लाना।
      • कवर की गई फसलों का उपयोग कर मिट्टी के आवरण को बनाए रखना।
      • पशुधन को एकीकृत करना जो मृदा में उर्वरता को बढ़ाता है और कार्बन सिंक के स्रोत के रूप में कार्य करता है।

Regenerative-Agriculture

पुनर्योजी कृषि के लाभ:

  • मृदा स्वास्थ्य में सुधार:  
    • यह स्थायी कृषि से एक कदम आगे है, यह न केवल मिट्टी और पानी जैसे संसाधनों को बनाए रखता है बल्कि उन्हें बेहतर बनाए रखने का प्रयास करता है।
      • संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन के अनुसार, स्वस्थ मिट्टी बेहतर जल भंडारण, संचरण, फिल्टरिंग एवं कृषि अपवाह को कम करने में मदद करती है।
  • जल संरक्षण: 
    • स्वस्थ मिट्टी बेहतर जल भंडारण संचरण फिल्टरिंग द्वारा जल-उपयोग दक्षता में सुधार करने में मदद करती है और कृषि अपवाह  को कम करती है।
      • अध्ययनों से पता चला है कि प्रति 0.4 हेक्टेयर मिट्टी के कार्बनिक पदार्थ में 1% की वृद्धि से जल भंडारण क्षमता 75,000 लीटर से अधिक बढ़ जाती है।
  • उर्जा संरक्षण:
    • पुनर्योजी कृषि पद्धतियाँ पंपों जैसे सिंचाई सहायकों द्वारा उपयोग की जाने वाली ऊर्जा का संरक्षण करती हैं।

पुनर्योजी कृषि को बढ़ावा देने के भारतीय प्रयास:

  • जैविक खेती पर राष्ट्रीय परियोजना:
    • जैविक खेती पर राष्ट्रीय परियोजना 2004 से चल रही प्रणाली देश का सबसे बड़ा प्रयोग है यह ICAR-इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मिंग सिस्टम रिसर्च मेरठ द्वारा संचालित है।
  • धान गहनता प्रणाली:
    • एक विधि जिसमें बीजों को व्यापक दूरी पर रखा जाता है और पैदावार में सुधार के लिये जैविक खाद का उपयोग किया जाता है।
  • शून्य बजट प्राकृतिक खेती:
    • इसे सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती के नाम से भी जाना जाता है इसमें फसल को  गाय के गोबर, मूत्र, फलों सहित अन्य चीज़ों से बने खाद का उपयोग कर उगाने पर ज़ोर दिया जाता है।
  • समाज प्रगति सहयोग:
    • यह एक ज़मीनी स्तर का संगठन है जो कृषि कीटों को नियंत्रित करने के लिये प्राकृतिक तरीकों को बढ़ावा देता है जैसे- फसल अवशेषों की खाद और पुनर्चक्रण, खेत की खाद का उपयोग, मवेशियों के मूत्र और टैंक की गाद का उपयोग ने भी इस दिशा में प्रयास किये हैं।
      • समाज प्रगति सहयोग ने बचाए गए जल को मापने के लिये वर्ष 2016-18 में मध्य प्रदेश के चार ज़िलों और महाराष्ट्र के एक ज़िले में 2,000 हेक्टेयर से अधिक भूमि पर 1,000 किसानों के साथ फील्ड परीक्षण किया है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रश्न. पर्माकल्चर कृषि पारंपरिक रासायनिक कृषि से कैसे अलग है? ( 2021)

  1. पर्माकल्चर कृषि मोनोकल्चर प्रथाओं को हतोत्साहित करती है लेकिन पारंपरिक रासायनिक खेती में मोनोकल्चर प्रथाएँ प्रमुख हैं। 
  2. पारंपरिक रासायनिक कृषि से मृदा की लवणता में वृद्धि हो सकती है लेकिन पर्माकल्चर कृषि में ऐसी घटना नहीं देखी जाती है। 
  3. अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों में पारंपरिक रासायनिक कृषि आसानी से संभव है लेकिन ऐसे क्षेत्रों में पर्माकल्चर कृषि इतनी आसानी से संभव नहीं है। 
  4. पर्माकल्चर कृषि में मल्चिंग का अभ्यास बहुत महत्त्वपूर्ण है लेकिन पारंपरिक रासायनिक कृषि में ऐसा ज़रूरी नहीं है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये।

 (a) केवल 1 और 3
 (b) केवल 1, 2 और 4
 (c) केवल 4
 (d) केवल 2 और 3

उत्तर: (b)

व्याख्या:

  • पर्माकल्चर भूमि का सर्वोत्तम उपयोग करने का एक प्रयास है ताकि भविष्य में आने वाली पीढ़ियाँ जीवन निर्वाह के लिये उत्पादक तरीकों से भूमि का उपयोग करना जारी रख सकें। पर्माकल्चर तीन नैतिकताओं पर निर्भर करता है- पृथ्वी की देखभाल, लोगों की देखभाल और उचित भागीदारी। यह जैविक खेती, कृषि वानिकी, एकीकृत खेती, सतत् विकास और अनुप्रयुक्त पारिस्थितिकी सहित कई विधियों पर निर्भर है।
  • रासायनिक खेती को उस प्रथा के रूप में परिभाषित किया जाता है जहाँ कीटनाशकों, शाकनाशियों, कवकनाशियों और उर्वरकों जैसे रसायनों का उपयोग कृषि में कीटों एवं बीमारी को नियंत्रित करने या विकास को नियंत्रित एवं बढ़ावा देने के लिये किया जाता है।
  • पर्माकल्चर पूरी तरह से एकीकृत डिज़ाइन प्रणाली है जो प्रकृति पर आधारित है। पर्माकल्चर खेती बहुफसली और एकीकृत कृषि प्रणालियों को बढ़ावा देती है, जबकि सिंचाई, रासायनिक उर्वरक एवं कटाई के तरीकों जैसे- फसल विशिष्ट तरीकों के उपयोग के कारण रासायनिक खेती मोनोकल्चर फसल हेतु अधिक उपयुक्त है। अत: कथन 1 सही है।
  • रासायनिक खेती रासायनिक उर्वरकों के उपयोग के कारण समय के साथ मृदा को कम उपजाऊ बनाती है, जिससे मृदा की लवणता जैसी गंभीर समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं लेकिन पर्माकल्चर खेती में ऐसी समस्याएँ नहीं देखी जाती हैं क्योंकि यह जैविक खादों पर निर्भर है। अत: कथन 2 सही है।
  • पर्माकल्चर अवधारणा में अच्छी तरह से डिज़ाइन की गई प्रणालियाँ शामिल हैं जो अपशिष्ट का उत्पादन नहीं करती हैं और इनके अनुपालन की कोशिश करती हैं। पर्माकल्चर शुष्क जलवायु जैसी स्थानीय परिस्थितियों को ध्यान में रखने की कोशिश करता है, जो टिकाऊ उत्पादन सुनिश्चित करने के लिये एक उपयुक्त प्रणाली विकसित करने में मदद करता है। रासायनिक खेती के मामले में रासायनिक उर्वरकों और सिंचाई के अत्यधिक उपयोग से मृदा समय के साथ कम उपजाऊ हो जाती है, इस प्रकार अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों में इसका अभ्यास सीमित हो जाता है। पारंपरिक रासायनिक खेती अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों के लिये उपयुक्त नहीं है। अतः 3 कथन सही नहीं है।
  • मल्चिंग एक लंबे समय से स्थापित बागवानी अभ्यास है जिसमें पौधों के चारों ओर ज़मीन पर सामग्री की एक परत फैलाना शामिल है ताकि उनकी जड़ों को गर्मी, ठंड या सूखे से बचाया जा सके या फलों को साफ रखा जा सके। ढकने के लिये उपयोग की जाने वाली सामग्री को 'मल्च' कहा जाता है। मल्चिंग सामान्यतः व्यावसायिक रूप से महत्त्वपूर्ण फसलों, फलों के पेड़, सब्जियाँ, फूल, नर्सरी के पौधे आदि की खेती करते समय की जाती है।
  • मल्चिंग अधिकतम दक्षता को बढ़ावा देने के लिये पर्माकल्चर खेती का एक महत्त्वपूर्ण घटक है। जबकि पारंपरिक रासायनिक खेती इसके लिये आवश्यक नहीं मानी जाती है। अत: कथन 4 सही है।

अतः विकल्प (b) सही है।


प्रश्न. कृषि उत्पादन को बनाए रखने में एकीकृत कृषि प्रणाली (IFS) कहाँ तक सहायक है? (मुख्य परीक्षा, 2019)

प्रश्न. एकीकृत कृषि प्रणाली क्या है? यह भारत में छोटे और सीमांत किसानों के लिये किस प्रकार सहायक है? (मुख्य परीक्षा, 2022)

स्रोत: डाउन टू अर्थ


भारतीय अर्थव्यवस्था

मंदी और यील्ड वक्र

प्रिलिम्स के लिये:

मंदी, यील्ड वक्र

मेन्स के लिये:

वृद्धि और विकास

चर्चा में क्यों?

जैसे-जैसे नए साल के आगमन का समय नज़दीक आ रहा है दुनिया की कई प्रमुख शीर्ष अर्थव्यवस्थाएँ, विशेष रूप से सबसे बड़ी और प्रभावशाली संयुक्त राज्य अमेरिका की अर्थव्यस्था मंदी का सामना कर रही है।

  • संयुक्त राज्य अमेरिका के ट्रेज़री यील्ड (अर्थव्यस्था के संदर्भ में उत्पादन के घटकों के आपूर्तिकर्त्ताओं को वापस मिलने वाला धन यील्ड/लब्धि/प्रतिफल कहलाता है।) का कम होना एक महत्त्वपूर्ण संकेतक है कि अमेरिका मंदी की ओर बढ़ रहा है।

मंदी:

  • मंदी में सामान्यतः रोज़गार और समग्र मांग में कमी के साथ कम-से-कम दो लगातार तिमाहियों के लिये अनुबंधित अर्थव्यवस्था में समग्र उत्पादन शामिल होता है।
  • यूएस नेशनल ब्यूरो ऑफ इकोनॉमिक रिसर्च (NBER) अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, प्रसार और अवधि के आकलन के आधार पर यह निर्धारित करता है कि अर्थव्यवस्था मंदी में है या नहीं।
    • कभी-कभी अवधि दीर्घकालिक नहीं हो सकती है लेकिन गिरावट बहुत गंभीर हो सकती है क्योंकि ऐसा कोविड-19 महामारी के मद्देनज़र हुआ है।
    • इसकी गंभीरता एवं प्रसार अपेक्षाकृत कम हो सकता है लेकिन मंदी लंबे समय तक रह सकती है जैसा कि आर्थिक संकट के मद्देनज़र यूनाइटेड किंगडम में अपेक्षित है।

संयुक्त राज्य अमेरिका का ट्रेज़री: 

  • किसी भी अर्थव्यवस्था में सबसे सुरक्षित ऋण वे होते हैं जो सरकारों को दिये जाते हैं, ऐसी संस्थाएँ जो हमेशा बनी रहेंगी और जो सामान्यतः अपने ऋण पर चूक नहीं करती हैं।
  • सरकारों को धन उधार लेने की आवश्यकता होती है क्योंकि अक्सर उनका कर राजस्व उनके सभी खर्चों को पूरा करने के लिये पर्याप्त नहीं होता है।
  • जिस साधन द्वारा सरकार बाज़ार से उधार लेती है उसे सरकारी बॉण्ड कहा जाता है।
  • भारत में उन्हें जी-सेक कहा जाता है, ब्रिटेन में उन्हें गिल्ट कहा जाता है और अमेरिका में उन्हें ट्रेज़री कहा जाता है।

राजकोष की लब्धि/यील्ड:

  • बैंक ऋण जिसकी एक परिवर्तनीय ब्याज दर होती है, के विपरीत एक सरकारी बॉण्ड में एक निश्चित "कूपन" भुगतान होता है।
  • नतीजतन, अमेरिकी सरकार 100 अमेरिकी डॉलर के अंकित मूल्य और 5 अमेरिकी डॉलर के कूपन भुगतान के साथ 10 साल के बॉण्ड को "फ्लोट" कर सकती है। इसका मतलब यह है कि यदि आप इस बॉण्ड को खरीदते हैं और अमेरिकी सरकार को 100 अमेरिकी डॉलर उधार देते हैं, तो आपको अगले दस वर्षों के लिये प्रतिवर्ष 5 अमेरिकी डॉलर, साथ ही दस वर्षों के अंत में 100 अमेरिकी डॉलर की पूरी राशि प्राप्त होगी।
  • लेकिन यदि किसी कारण से किसी ने इस बाॅण्ड को किसी अन्य निवेशक को बेच दिया, तो जिस कीमत पर बाॅण्ड बेचा जाता है, उसके आधार पर यील्ड बदल जाएगी। यदि कीमत में वृद्धि होती है और बाॅण्ड को USD 110 में बेचा जाता है, तो यील्ड कम हो जाएगा क्योंकि वार्षिक रिटर्न (USD5) समान रहता है और यदि कीमत गिरती है, तो यील्ड बढ़ जाएगा। 

यील्ड वक्र: 

  • सरकारें 1 महीने से 30 वर्ष तक की अवधि के लिये उधार लेती हैं।  
  • आमतौर पर लंबी अवधि के लिये यील्ड अधिक होता है क्योंकि इसमें धन लंबे समय तक के लिये उधार दिया जाता है।
  • यदि बाॅण्ड के अलग-अलग कार्यकाल के लिये यील्ड को मापा जाता है, तो यह ऊपर की ओर ढाल वाला वक्र प्रदान करेगा।
  • बाज़ार में उपलब्ध धन और अपेक्षित समग्र आर्थिक गतिविधियों के आधार पर वक्र सपाट या सीधा हो सकता है। जब निवेशक अर्थव्यवस्था के बारे में उत्साहित महसूस करते हैं, तो वे दीर्घकालिक बाॅण्ड से पैसा निकालते हैं और इसे शेयर बाज़ारों जैसे अल्पकालिक ज़ोखिम वाली परिसंपत्तियों में निवेश करते हैं। जैसे-जैसे दीर्घकालिक बाॅण्ड की कीमतें गिरती हैं, उनका यील्ड बढ़ता है और यील्ड वक्र बढ़ता जाता है।

Yield-curves

यील्ड व्युत्क्रमण (Yield inversion):

  • यील्ड व्युत्क्रम तब होता है जब कम अवधि के बाॅण्ड के लिये यील्ड लंबी अवधि के बाॅण्ड पर यील्ड की तुलना में अधिक होता है। यदि निवेशकों को संदेह है कि अर्थव्यवस्था संकट की ओर बढ़ रही है, तो वे अल्पकालिक ज़ोखिम वाली परिसंपत्तियों (जैसे शेयर बाज़ार) से पैसा निकालेंगे और इसे दीर्घकालिक बाॅण्ड में निवेश करेंगे। इससे दीर्घकालिक बाॅण्ड की कीमतें बढ़ जाती हैं और उनका यील्ड घट जाता है। यह प्रक्रिया पहले सपाट और अंततः यील्ड व्युत्क्रमण की स्थिति होती है। 
  • यील्ड व्युत्क्रम लंबे समय से अमेरिका में मंदी का एक विश्वसनीय अनुमान प्रदान कर रहा है तथा अमेरिकी कोष में पिछले कुछ समय से यील्ड व्युत्क्रमण देखा जा रहा है।
  • 10 वर्ष और 3 महीने के ट्रेज़री की यील्ड्स का प्रसार नकारात्मक देखा जा रहा है।

Yield-Spread

भारत के लिये इसका महत्त्व:

  • ब्याज दरें बढ़ने से रुपए के मुकाबले अमेरिकी डॉलर और भी मज़बूत हो सकता है। परिणामस्वरूप भारतीय आयात महँगा हो जाएगा तथा यह घरेलू मुद्रास्फीति को बढ़ा सकता है।
  • अमेरिका के उच्च यील्ड से भारत में आने वाले निवेशों से आयात- निर्यात में कुछ पुनर्संतुलन की स्थिति देखी जा सकती है
  • कमज़ोर रुपए के कारण भारतीय निर्यात को लाभ हो सकता है लेकिन मंदी भारतीय निर्यात की मांग को कम कर देगी।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रश्न. आर्थिक मंदी के समय निम्नलिखित में से कौन-सा कदम उठाए जाने की सबसे अधिक संभावना है?

(a) कर की दरों में कटौती के साथ-साथ ब्याज़ दर में वृद्धि करना
(b) सार्वजनिक परियोजनाओं पर व्यय में वृद्धि करना
(c) कर की दरों में वृद्धि के साथ-साथ ब्याज़ दर में कमी करना
(d) सार्वजनिक परियोजनाओं पर व्यय में कमी करना  

उत्तर: (b)  

व्याख्या: 

  • आर्थिक मंदी एक मैक्रोइकोनॉमिक शब्द है जो लंबे समय तक आर्थिक गतिविधियों में मंदी या बड़े पैमाने पर संकुचन को संदर्भित करता है, या यह कहा जा सकता है कि जब मंदी का दौर काफी लंबे समय तक बना रहता है, तो इसे मंदी कहा जाता है।
  • आर्थिक मंदी से निपटने के लिये अर्थव्यवस्था में मुद्रा की आपूर्ति बढ़ानी होगी। अर्थव्यवस्था में मुद्रा आपूर्ति को बढ़ावा देने के विभिन्न तरीके हैं:
    • विस्तारवादी मौद्रिक नीति: इससे बाज़ार में धन की आपूर्ति बढ़ेगी। बैंकों और वित्तीय संस्थानों के पासआसान ब्याज़ दरों के साथ उधार देने के लिये अधिक धन होगा। यह उधारकर्त्ताओं को धन उधार लेने के लिये आकर्षित करेगा जिससे आर्थिक गतिविधियों जैसे- व्यय, निवेश, उत्पादन, खपत आदि में वृद्धि होगी।
    • सार्वजनिक परियोजनाओं पर उच्च व्यय: सार्वजनिक परियोजनाओं पर व्यय में वृद्धि से धन की आपूर्ति में वृद्धि होगी, यह देश को आर्थिक मंदी से बाहर निकालने में सहायक होगा।
  • कर की दरों में कटौती से अर्थव्यवस्था में मुद्रा की आपूर्ति में वृद्धि होगी हालाँकि उच्च ब्याज दर से धन की आपूर्ति कम होगी बैंक उच्च ब्याज दरों पर ऋण देंगे व इससे कम उधारी होगी।
  • ब्याज दर में कमी से अर्थव्यवस्था में धन की आपूर्ति में वृद्धि होगी, आर्थिक मंदी से निपटने में मदद मिलेगी, हालाँकि कर दरों में वृद्धि इस दिशा में सहायक नहीं होगी क्योंकि इससे लोगों का खर्च कम होगा।
  • सार्वजनिक परियोजनाओं पर व्यय में कमी से अर्थव्यवस्था में मुद्रा आपूर्ति में कमी आएगी। अतः  विकल्प (b) सही उत्तर है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 


शासन व्यवस्था

AVGC प्रमोशन टास्क फोर्स रिपोर्ट

प्रिलिम्स के लिये:

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, AVGC, राष्ट्रीय शिक्षा नीति, अटल टिंकरिंग लैब्स

मेन्स के लिये:

AVGC सेक्टर और संबंधित चुनौतियाँ 

चर्चा में क्यों?

सरकार ने AVGC क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिये एक एनिमेशन, विज़ुअल इफेक्ट्स, गेमिंग और कॉमिक्स (AVGC) प्रमोशन टास्क फोर्स का गठन किया है

मुख्य सिफारिशें: 

  • वैश्विक पहुँच के लिये घरेलू उद्योग का विकास:
    • AVGC क्षेत्र के एकीकृत प्रचार और विकास के लिये बजट परिव्यय के साथ एक राष्ट्रीय AVGC-XR (विस्तारित वास्तविकता) मिशन बनाया जाएगा।
    • भारत और दुनिया के लिये भारत में सामग्री निर्माण पर विशेष ध्यान देने के साथ 'क्रिएट इन इंडिया' अभियान का शुभारंभ किया गया।
    • भारत को AVGC के लिये वैश्विक केंद्र बनाने के लक्ष्य सहित प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI), सह-उत्पादन संधियों और नवाचार पर ध्यान देने व गेमिंग एक्सपो के साथ-साथ एक अंतर्राष्ट्रीय AVGC मंच स्थापित करना चाहिये।
    • AVGC सेक्टर में स्किलिंग, शिक्षा, विकास और रिसर्च एंड इनोवेशन हेतु अंतर्राष्ट्रीय बिंदु बनने के लिये AVGC सेक्टर का एक राष्ट्रीय उत्कृष्टता केंद्र (COE) स्थापित करना।
  • जनसांख्यिकीय लाभाँश का एहसास करने के लिये पारिस्थितिकी तंत्र का विकास करना:
    • राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) का लाभ स्कूल स्तर पर AVGC पाठ्यक्रम सामग्री के साथ रचनात्मक सोच विकसित करने के लिये मूलभूत कौशल का निर्माण करना और कॅरियर विकल्प के रूप में AVGC के बारे में जागरूकता पैदा करना। 
    • स्नातक और स्नातकोत्तर डिग्री के लिये विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) द्वारा मान्यता प्राप्त पाठ्यक्रम का भी सुझाव दिया गया है।  
    • गैर-मेट्रो शहरों और पूर्वोत्तर राज्यों के छात्रों के लिये रोज़गार के अवसर तथा उनकी क्षमताओं का दोहन सुनिश्चित करने के लिये उद्योग की भागीदारी बढ़ाना। 
    • अटल टिंकरिंग लैब्स की तर्ज पर शैक्षणिक संस्थानों में AVGC एक्सेलेरेटर्स और इनोवेशन हब की स्थापना की गई है।
  • भारतीय AVGC उद्योग हेतु प्रौद्योगिकी और वित्तीय व्यवहार्यता बढ़ाना: 
    • MSME, स्टार्ट-अप और संस्थानों के लिये सदस्यता-आधारित मूल्य निर्धारण मॉडल को बढ़ावा देकर AVGC तकनीकों का लोकतंत्रीकरण करना।
    • अनुसंधान एवं विकास और IP निर्माण के लिये प्रोत्साहन योजनाओं के माध्यम से AVGC प्रौद्योगिकियों को भारत में निर्मित करना। AVGC हार्डवेयर निर्माताओं को प्रोत्साहित करने के लिये PLI योजना का मूल्यांकन करना।
    • AVGC क्षेत्र में ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस अर्थात् कर लाभ, आयात शुल्क, डकैती पर अंकुश लगाना आदि।
    • अनुसंधान एवं विकास और स्थानीय IP निर्माण की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिये AVGC उद्यमियों को तकनीकी, वित्तीय और बाज़ार पहुँच सहायता प्रदान करने हेतु स्टार्ट-अप इंडिया का लाभ उठाना।
  • समावेशी विकास के माध्यम से भारत की सॉफ्ट पावर को बढ़ाना: 
    • विश्व स्तर पर भारतीय संस्कृति और विरासत को बढ़ावा देने के लिये भारत भर से घरेलू सामग्री निर्माण के लिये एक समर्पित उत्पादन कोष स्थापित करना।
    • प्रसारकों द्वारा उच्च गुणवत्ता वाली स्वदेशी सामग्री के लिये आरक्षण का मूल्यांकन करना चाहिये।
    • समावेशी भारत के लिये भारत के टीयर 2 और 3 कस्बों एवं गाँवों में युवाओं के लिये कौशल विकास तथा उद्योग पहुँच को लक्षित करना।
    • AVGC क्षेत्र में महिला उद्यमियों के लिये विशेष प्रोत्साहन सुनिश्चित करना।
    • डिजिटल दुनिया में बाल अधिकार संरक्षण सुनिश्चित करने के लिये ढाँचा स्थापित करना। 

भारत के AVGC सेक्टर की स्थिति: 

  • भारत में AVGC क्षेत्र ने हाल के दिनों में अभूतपूर्व विकास दर देखी है, कई वैश्विक अभिकर्त्ता सेवाओं की अपतटीय डिलीवरी का लाभ उठाने के लिये भारतीय प्रतिभा क्षेत्र में प्रवेश कर रहे हैं।
  • इसके अलावा मीडिया और मनोरंजन (Media and Entertainment- M&E) उद्योग के वर्ष 2026 तक 8.8% CAGR से बढ़ने की उम्मीद है।
  • विशेषज्ञों के अनुसार, मीडिया और मनोरंजन उद्योग के तहत AVGC क्षेत्र अगले दशक में 14-16% की वृद्धि कर सकता है।  
  • भारत AVGC क्षेत्र में उच्चस्तरीय, कौशल-आधारित गतिविधियों के लिये एक प्राथमिक गंतव्य के रूप में उभर रहा है।  
  • भारत सरकार ने ऑडियो-विज़ुअल सेवाओं को 12 चैंपियन सेवा क्षेत्रों में से एक के रूप में नामित किया है और निरंतर विकास को बढ़ावा देने के उद्देश्य से प्रमुख नीतिगत उपायों की घोषणा की है।
  • AVGC क्षेत्र मीडिया और मनोरंजन क्षेत्र का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है, जो भारतीय अर्थव्यवस्था के एक महत्त्वपूर्ण विकास इंजन के रूप में उभर रहा है।

AVGC क्षेत्र संबंधी चुनौतियाँ:

  • प्रामाणिक डेटा का अभाव:
    • AVGC क्षेत्र के लिये रोज़गार, उद्योग का आकार, शिक्षा आदि जैसे डेटा की अनुपलब्धता संस्थाओं के लिये निर्णय लेना कठिन बना देती है।
  • शिक्षा और रोज़गार क्षेत्र में कौशल अंतराल:
    • देश के भीतर AVGC पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण के लिये एनिमेटर्स, डेवलपर्स, डिजाइनर्स, स्थानीय विशेषज्ञों, उत्पाद प्रबंधकों आदि जैसी विभिन्न भूमिकाओं हेतु विशेष कौशल वाले कार्यबल की आवश्यकता होती है।
    • वर्तमान में स्कूल और विश्वविद्यालय स्तर पर शिक्षा प्रणाली में AVGC पर केंद्रित एक समर्पित पाठ्यक्रम नहीं है। 
  • अवसंरचना बाधाएँ:
    • पर्याप्त प्रशिक्षण अवसंरचना के अभाव में छात्रों को दिये जा रहे प्रशिक्षण की गुणवत्ता में गिरावट आई है, जिससे AVGC उद्योग के लिये आउटपुट और मानव संसाधनों की गुणवत्ता प्रभावित हुई है।
  • अनुसंधान विकास पर कम ध्यान:
    • AVGC-XR क्षेत्र के लिये अनुसंधान से संबंधित वातावरण विकसित करने की भी आवश्यकता है, ताकि इस पर पर्याप्त ध्यान दिया जा सके।
  • AVGC अकादमिक संदर्भ बिंदु की अनुपस्थिति:
    • इंजीनियरिंग, डिज़ाइन, प्रबंधन, पैकेजिंग आदि जैसे अन्य क्षेत्रों के विपरीत AVGC क्षेत्र के लिये भारत में कोई शीर्ष संस्थान नहीं है।
  • निधि का अभाव: 
    • वर्तमान में AVGC क्षेत्र के प्रचार के लिये कोई समर्पित निधि उपलब्ध नहीं है जो भारत में क्षेत्र के विकास हेतु एक बाधा के रूप में कार्य करता है।
  •  विश्व स्तर पर लोकप्रिय भारतीय आईपी की कमी: 
    • AVGC क्षेत्र को सामान्य रूप से मूल भारतीय बौद्धिक संपदा की कमी का सामना करना पड़ा है क्योंकि इस क्षेत्र में अधिकांश कार्य बाहरी स्रोत से किये जाते हैं।
    • एनीमेशन उद्योग में अन्य देशों की सेवाओं का प्रभुत्त्व है और इस प्रकार स्थानीय IP में वृद्धि करने हेतु अतिरिक्त रियायतों के साथ स्थानीय उत्पादन को प्रोत्साहित करना आवश्यक है

आगे की राह 

  • समग्र शैक्षणिक पाठ्यक्रम की आवश्यकता: 
    • भारत में विभिन्न संस्थानों द्वारा पेश किये जाने वाले अधिकांश AVGC संबंधित कार्यक्रम शैक्षणिक प्रकृति के हैं। इस प्रकार प्रासंगिक उद्योग कार्यक्रमों की पेशकश करने वाले एक समग्र पाठ्यक्रम को विकसित करने की आवश्यकता है।
  • अनुसंधान और विकास को प्रोत्साहन:
    • संपूर्ण AVGC सेक्टर को चलाने में अनुसंधान और विकास बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसलिये इस क्षेत्र के लिये केंद्रित हस्तक्षेप किये जाने की आवश्यकता है।
  • भारत के स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र को जानने की आवश्यकता: 
    • इच्छुक उद्यमी न केवल विभिन्न रोज़गार के अवसर पैदा करते हैं बल्कि उद्योग के आर्थिक विकास को भी बढ़ावा देते हैं।
    • नए आविष्कार भारतीय AVGC उद्योग को अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप तेज़ गति से बढ़ने में सक्षम बनाएंगे।

स्रोत: पी.आई.बी.


सामाजिक न्याय

विमुक्त, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू जनजातियाँ

प्रिलिम्स के लिये:

विमुक्त, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू जनजातियाँ, संबंधित आयोग एवं समितियाँ, विमुक्त, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू जनजातियों  (DWBDNC) के लिये विकास और कल्याण बोर्ड, DNT के लिये योजनाएँ।

मेन्स के लिये:

अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से संबंधित मुद्दे, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, भारत में विमुक्त, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू जनजातियों की स्थिति।

चर्चा में क्यों?

सामाजिक न्याय और अधिकारिता पर संसदीय पैनल ने सरकार से SC/ST/OBC सूची के तहत विमुक्त, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू जनजातियों के वर्गीकरण के कार्य में तेज़ी लाने को कहा है क्योंकि इसमें देरी से इन समुदायों की समस्याएँ बढ़ेंगी और वे कल्याणकारी योजनाओं से वंचित रह जाएंगे।

विमुक्त, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू जनजातियाँ:

 ये ऐसे समुदाय हैं जो सबसे सुभेद्य और वंचित हैं।

  • विमुक्त ऐसे समुदाय हैं जिन्हें ब्रिटिश शासन के दौरान वर्ष 1871 के आपराधिक जनजाति अधिनियम से शुरू होने वाली कानूनों की एक शृंखला के तहत 'जन्मजात अपराधी' के रूप में 'अधिसूचित' किया गया था।
    • इन अधिनियमों को स्वतंत्र भारत सरकार द्वारा वर्ष 1952 में निरस्त कर दिया गया और इन समुदायों को ‘विमुक्त’ कर दिया गया था।
  • इनमें से कुछ समुदाय जिन्हें विमुक्त के रूप में सूचीबद्ध किया गया था, वे भी खानाबदोश थे।
    • खानाबदोश और अर्द्ध-घुमंतू समुदायों को उन लोगों के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो हर समय एक ही स्थान पर रहने के बजाय एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हैं। 
  • ऐतिहासिक रूप से घुमंतू और विमुक्त जनजातियों की कभी भी निजी भूमि या घर के स्वामित्व तक पहुँच नहीं थी।
  • अधिकांश विमुक्त समुदाय, अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) श्रेणियों में वितरित हैं, जबकि कुछ विमुक्त समुदाय SC, ST या OBC श्रेणियों में से किसी में भी शामिल नहीं हैं। 
  • आज़ादी के बाद गठित कई आयोगों और समितियों ने इन समुदायों की समस्याओं का उल्लेख किया है।
    • इनमें संयुक्त प्रांत (अब उत्तर प्रदेश) में गठित आपराधिक जनजाति जाँच समिति, 1947 भी शामिल है।
    • वर्ष 1949 की अनंतशयनम आयंगर समिति (इसी समिति की रिपोर्ट के आधार पर आपराधिक जनजाति अधिनियम को निरस्त किया गया था)।
    • काका कालेलकर आयोग (जिसे पहला ओबीसी आयोग भी कहा जाता है) का गठन वर्ष 1953 में किया गया था।
    • वर्ष 1980 में गठित बीपी मंडल आयोग ने भी इस मुद्दे पर कुछ सिफारिशें की थीं।
    • संविधान के कामकाज़ की समीक्षा हेतु राष्ट्रीय आयोग (NCRWC) ने भी माना था कि विमुक्त समुदायों को अपराध प्रवण के रूप में गलत तरीके से कलंकित किया गया है और कानून-व्यवस्था एवं सामान्य समाज के प्रतिनिधियों द्वारा शोषण के अधीन किया गया है।
      • NCRWC की स्थापना न्यायमूर्ति एम.एन. वेंकटचलैया की अध्यक्षता में हुई थी।
  • एक अनुमान के अनुसार, दक्षिण एशिया में विश्व की सबसे बड़ी यायावर/खानाबदोश आबादी (Nomadic Population) निवास करती है।
    • भारत में लगभग 10% आबादी विमुक्त और खानाबदोश है।
    • जबकि विमुक्त जनजातियों की संख्या लगभग 150 है, खानाबदोश जनजातियों की जनसंख्या में लगभग 500 विभिन्न समुदाय शामिल हैं।

खानाबदोश/घुमंतू जनजातियों के समक्ष चुनौतियाँ:

  • बुनियादी अवसंरचना सुविधाओं का अभाव: इन समुदायों के सदस्यों के पास पेयजल, आश्रय और स्वच्छता आदि संबंधी बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हैं। इसके अलावा ये स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा जैसी सुविधाओं से वंचित हैं।
  • स्थानीय प्रशासन का दुर्व्यवहार: विमुक्‍त, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू समुदायों के संबंध में प्रचलित गलत और अपराधिक धारणाओं के कारण आज भी उन्हें स्थानीय प्रशासन और पुलिस द्वारा प्रताड़ित किया जाता है।
  • सामाजिक सुरक्षा कवर का अभाव: चूँकि इन समुदायों के लोग प्रायः यात्रा पर रहते हैं, इसलिये इनका कोई स्थायी ठिकाना नहीं होता है। नतीजतन उनके पास सामाजिक सुरक्षा कवर का अभाव होता है और उन्हें राशन कार्ड, आधार कार्ड आदि भी नहीं जारी किया जाता है। 
  • इन समुदायों के बीच जाति वर्गीकरण बहुत स्पष्ट नहीं है, कुछ राज्यों में इन समुदायों को अनुसूचित जाति में शामिल किया जाता है, जबकि कुछ अन्य राज्यों में उन्हें अन्य पिछड़े वर्ग (OBC) के तहत शामिल किया जाता है।
    • इन समुदायों के अधिकांश लोगों के पास जाति प्रमाण पत्र नहीं होता और इसलिये वे सरकारी कल्याण कार्यक्रमों का लाभ नहीं उठा पाते हैं। 

विमुक्‍त, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू समुदायों से संबंधित योजनाएँ:

  • DNT के लिये डॉ. अंबेडकर प्री-मैट्रिक और पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति:
    • यह केंद्र प्रायोजित योजना वर्ष 2014-15 में विमुक्‍त, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू जनजाति (DNT) के उन छात्रों के कल्याण हेतु शुरू की गई थी, जो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति या अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) श्रेणी के अंतर्गत नहीं आते हैं।
    • यह योजना विमुक्‍त, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू समुदायों के बच्चों विशेषकर बालिकाओं के बीच शिक्षा के प्रसार में सहायक है।
  • DNT बालकों और बालिकाओं हेतु छात्रावासों के निर्माण संबंधी नानाजी देशमुख योजना: 
    • वर्ष 2014-15 में शुरू की गई यह केंद्र प्रायोजित योजना, राज्य सरकारों/ केंद्रशासित प्रदेशों/केंद्रीय विश्वविद्यालयों के माध्यम से लागू की गई है।
    • योजना का उद्देश्य अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति या अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) श्रेणी के अंतर्गत न आने वाले DNT छात्रों को छात्रावास की सुविधा प्रदान कर उन्हें उच्च शिक्षा प्राप्त करने में सक्षम बनाना है। 
  • DNT के आर्थिक सशक्तीकरण के लिये योजना:  
    • इसका उद्देश्य मुफ्त प्रतियोगी परीक्षा कोचिंग, स्वास्थ्य बीमा, आवास सहायता और आजीविका पहल प्रदान करना है।
    • यह वर्ष 2021-22 से अगले पाँच वर्षों में 200 करोड़ रुपए का खर्च सुनिश्चित करेगा।
    • गैर-अधिसूचित, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू जनजातियों (DWBDNC) के लिये विकास और कल्याण बोर्ड को इस योजना के कार्यान्वयन का काम सौंपा गया है।
  • DWBDNC: 
    • कल्याण कार्यक्रमों को लागू करने के उद्देश्य से सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के तत्त्वावधान में सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के तहत DWBDNC की स्थापना की गई थी।
    • DWBDNC का गठन 21 फरवरी, 2019 को भीकू रामजी इदते की अध्यक्षता में किया गया था।

स्रोत: द हिंदू 


शासन व्यवस्था

सामाजिक न्याय और अधिकारिता विभाग वर्षांत समीक्षा 2022

प्रिलिम्स के लिये:

सामाजिक न्याय और अधिकारिता विभाग द्वारा की गई पहल

मेन्स के लिये:

सामाजिक न्याय और अधिकारिता विभाग की वर्षांत समीक्षा, विभाग की पहल और उपलब्धियाँ

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में वर्ष 2022 के लिये सामाजिक न्याय और अधिकारिता विभाग की वर्षांत समीक्षा जारी की गई।

विभाग की प्रमुख उपलब्धियाँ:

  • आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों (EWS) के लिये आरक्षण:
  • नशा मुक्त भारत अभियान (NMBA):
    • NMBA को सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा वर्ष 2020 में लॉन्च किया गया था और पहले व्यापक राष्ट्रीय सर्वेक्षण के निष्कर्षों एवं नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB) से प्राप्त इनपुट के आधार पर 372 सबसे कमज़ोर ज़िलों में लागू किया गया है।
    • इसका उद्देश्य जनता तक पहुँच और उच्च शैक्षणिक संस्थानों, विश्वविद्यालय परिसरों तथा स्कूलों पर ध्यान केंद्रित करने, आश्रित आबादी तक पहुँचने एवं पहचान करने पर ध्यान केंद्रित करने के साथ मादक द्रव्यों के उपयोग के बारे में जागरूकता फैलाना है।
    • उपलब्धियाँ:
      • 3 करोड़ से अधिक युवाओं और 2 करोड़ से अधिक महिलाओं सहित 9.3 करोड़ लोगों को मादक द्रव्यों के सेवन के बारे में जागरूक किया गया है।
      • NCC युवाओं तथा अन्य हितधारकों के साथ जुड़ने एवं उन्हें शामिल करने के लिये 'नशे से आज़ादी- एक राष्ट्रीय युवा और छात्र संवाद' कार्यक्रम  'नया भारत, नशा मुक्त भारत', ‘NMBA द्वारा NCC के साथ संवाद' जैसे कार्यक्रमों का नियमित आयोजन किया जाता है।
      • नशीली दवाओं की मांग में कमी हेतु राष्ट्रीय कार्ययोजना (NAPDDR) एक ऐसी योजना है जिसके तहत राज्य सरकारों को वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। 
      • यह केंद्र और राज्य सरकारों एवं गैर-सरकारी संगठनों के सहयोगात्मक प्रयासों के माध्यम से नशा मुक्ति निवारक शिक्षा, जागरूकता पैदा करने, नशीली दवाओं पर निर्भर व्यक्तियों की पहचान करने, परामर्श, उपचार और पुनर्वास व सेवा प्रदाताओं के प्रशिक्षण तथा क्षमता निर्माण पर केंद्रित है।
  • अनुसूचित जाति के लिये प्री और पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति: 
    • राष्ट्रीय प्रवासी छात्रवृत्ति योजना: 
      • सामाजिक न्याय और अधिकारिता विभाग (DoSJE) अनुसूचित जातियों, विमुक्त घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू जनजातियों, भूमिहीन खेतिहर मज़दूरों तथा पारंपरिक कारीगर श्रेणी से संबंधित कम आय वाले छात्रों को विदेश में अध्ययन करके उच्च शिक्षा प्राप्त करने की सुविधा प्रदान करता है।
      • यह योजना चयनित उम्मीदवारों को विदेशों में स्नातकोत्तर स्तर के पाठ्यक्रम और अध्ययन के किसी भी क्षेत्र में वहाँ की सरकार अथवा उस देश के एक अधिकृत निकाय द्वारा मान्यता प्राप्त संस्थानों/विश्वविद्यालयों में पीएचडी करने हेतु वित्तीय सहायता प्रदान करती है। 
      • वर्ष 2021-22 से NOS के तहत सीटों की संख्या 100 से बढ़ाकर 125 कर दी गई है।
    • अनुसूचित जाति के छात्रों के लिये राष्ट्रीय फैलोशिप (NFSC): 
      • योजना का उद्देश्य अनुसूचित जातियों के छात्रों को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) द्वारा मान्यता प्राप्त भारतीय विश्वविद्यालयों/संस्थाओं/कॉलेजों में विज्ञान, मानविकी और सामाजिक विज्ञान विषयों में एमफिल, पीएचडी जैसे  उच्च अध्ययन प्राप्त करने हेतु वित्तीय सहायता के रूप में फैलोशिप प्रदान करना है।
  • प्रधानमंत्री अनुसूचित जाति अभ्युदय योजना (PM AJAY): 
    • इसे तीन पूर्ववर्ती योजनाओं के विलय के बाद तैयार किया गया है, ये हैं: 
      • प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना (PMAGY)
      • अनुसूचित जाति उपयोजना के लिये विशेष केंद्रीय सहायता (SCA से SCSP)
      • बाबू जगजीवन राम छात्रवास योजना (BJRCY)
    • विकास: 
      • अनुदान सहायता घटक (पूर्ववर्ती SCA से SCSP):  
        • लाभार्थी/परिवार के लिये वित्तीय सहायता को 10,000/- रुपए से बढ़ाकर 50,000/- रुपए कर दिया गया, जो परिसंपत्ति लागत का 50 प्रतिशत है।
        • इसके लिये एक वेब आधारित पोर्टल का विकास किया गया है जिसका कार्य वार्षिक कार्ययोजना प्रस्तुत करना, मूल्यांकन, अनुमोदन और निगरानी करना है।
  • राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग वित्त और विकास निगम (NBCFDC): 
    • NBCFDC को 1992 में कंपनी अधिनियम 1956 की धारा 25 (अब कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 8) के तहत एक कंपनी के रूप में शामिल किया गया था जिसका उद्देश्य  अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लाभ के लिये आर्थिक और विकासात्मक गतिविधियों को बढ़ावा देने था|
    • उपलब्धियाँ:
      • वर्ष 2022 (जनवरी-नवंबर 2022) के दौरान NBCFDC ने 1.2 लाख से अधिक लाभार्थियों को 418 करोड़ रूपए आवंटित किये गए|
  • डॉ. अंबेडकर फाउंडेशन (DAF): 
    • DAF ने सिविल सेवा परीक्षा (CSE) हेतु अनुसूचित जाति के छात्रों की कोचिंग के लिये एक नई योजना डॉ. अंबेडकर सेंटर ऑफ एक्सीलेंस (DACE) शुरू की है, जिसे पूरे देश के 30 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में लागू किया गया है।
    • डॉ. अंबेडकर चिकित्सा योजना को 173 लाभार्थियों के साथ सफलतापूर्वक लागू किया गया।
    • अंतर्जातीय विवाहों के माध्यम से सामाजिक एकता के लिये डॉ. अंबेडकर योजना से 218 लाभार्थी लाभान्वित हुए। 
  • लक्षित क्षेत्रों के हाईस्‍कूल में पढ़ने वाले छात्रों के लिये आवासीय शिक्षा की योजना “श्रेष्ठ”: 
    • सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय "अनुसूचित जातियों के लिये काम करने वाले स्वैच्छिक एवं अन्य संगठनों हेतु सहायता अनुदान" की केंद्रीय क्षेत्र योजना को लागू करता है, जिसके तहत अनुसूचित जाति के छात्रों को शिक्षा क्षेत्र से संबंधित गैर-सरकारी संगठनों को वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
    • क्योंकि (SHRESHTA) मोड- I के तहत एक नया घटक योजना में जोड़ा गया है, जिसके तहत हर साल देश में एक निर्दिष्ट संख्या में मेधावी अनुसूचित जाति के छात्रों को गुणवत्तापूर्ण आवासीय शिक्षा के लिये राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (NTA) द्वारा आयोजित एक राष्ट्रव्यापी प्रवेश परीक्षा के माध्यम से उच्च श्रेणी के आवासीय हाईस्कूलों हेतु चुना जाएगा। 
  • प्रधानमंत्री दक्षता और कुशल संपन्न हितग्राही (पीएम दक्ष/PM DAKSH) योजना: 
    • पीएम दक्ष योजना के तहत SJE विभाग के अंतर्गत निगमों (NSFDC, NBCFDC और NSKFDC) के माध्यम से SC, OBCs, EBCs, DNTs, कचरा बीनने वालों, सफाई कर्मचारियों सहित वंचित व्यक्तियों को कौशल प्रदान किया जाता है।
    • इसके तहत NSFDC का लक्ष्य वर्ष 2022-23 के दौरान 20,600 लोगों को कौशल प्रशिक्षण प्रदान करना है।
    • उपलब्धियाँ:
      • वर्ष 2022 के दौरान NBCFDC ने 19553 प्रशिक्षुओं के लिये कौशल विकास प्रशिक्षण कार्यक्रमों को मंज़ूरी दी है।
  • यंत्रीकृत स्वच्छता पारिस्थितिकी तंत्र के लिये राष्ट्रीय कार्रवाई (National Action for Mechanised Sanitation Ecosystem- NAMASTE): 
    • नमस्ते/NAMASTE की उपलब्धियाँ: 
      • विभिन्न कौशल विकास प्रशिक्षण कार्यक्रमों के तहत 3944 मैला ढोने वालों/आश्रितों को शामिल करना।
      • RPL/अपस्किलिंग प्रशिक्षण कार्यक्रम के तहत 8396 सफाई कर्मचारियों को शामिल किया गया।
      • सामान्य स्वरोज़गार कार्यक्रम के लिये 445 मैला ढोने वालों/आश्रितों को 8.17 करोड़ रुपए की सहायता प्रदान की गई।
  • ट्रांसजेंडर: 
    • आयुष्मान भारत योजना के साथ अभिसरण में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को व्यापक चिकित्सा पैकेज प्रदान करने के लिये वर्ष 2022 में राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए हैं।
    • इस व्यापक पैकेज में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिये संक्रमण संबंधी स्वास्थ्य देखभाल के सभी पहलुओं को शामिल किया जाएगा। यह हार्मोन थेरेपी, जेंडर रीअसाइनमेंट सर्जरी के लिये कवरेज भी प्रदान करेगा (संपूर्ण नहीं), जिसमें ऑपरेशन के बाद की औपचारिकताएँ शामिल हैं, इसमें सभी निजी और सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ उठाया जा सकता है।  

स्रोत: पी.आई.बी.


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