अंतरिक्ष क्षेत्र के लिये आसान FDI नीति
प्रिलिम्स के लिये:प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, भारतीय अंतरिक्ष नीति 2023, आदित्य L1, चंद्रयान-3, मार्स ऑर्बिटर मिशन, भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्द्धन और प्राधिकरण केंद्र, FDI से संबंधित हालिया रुझान मेन्स के लिये:अंतरिक्ष क्षेत्र, भारत में FDI निषिद्ध क्षेत्रों से संबंधित FDI- नीति में प्रमुख संशोधन |
स्रोत: पी.आई.बी.
हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अंतरिक्ष उद्योग से संबंधित प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) नीति में संशोधन को मंज़ूरी दी।
- यह विकास भारतीय अंतरिक्ष नीति-2023 के अनुरूप है, जो संवर्द्धित निजी भागीदारी के माध्यम से अंतरिक्ष क्षेत्र में देश के सामर्थ्य का विस्तार करने का प्रयास करती है।
अंतरिक्ष क्षेत्र के लिये FDI नीति में हालिया संशोधन क्या हैं?
- 100% FDI की अनुमति: संशोधित नीति के तहत, अंतरिक्ष क्षेत्र में 100% FDI की अनुमति है, जिसका उद्देश्य संभावित निवेशकों को भारतीय अंतरिक्ष कंपनियों में आकर्षित करना है।
- उदारीकृत प्रवेश मार्ग: विभिन्न अंतरिक्ष गतिविधियों के लिये प्रवेश मार्ग इस प्रकार हैं:
- स्वचालित मार्ग के अंतर्गत 74% तक: उपग्रह-विनिर्माण और प्रचालन, सैटेलाइट डेटा उत्पाद तथा ग्राउंड सेगमेंट तथा यूज़र सेगमेंट।
- 74% के बाद ये गतिविधियाँ सरकारी मार्ग के अंतर्गत आती हैं।
- स्वचालित मार्ग के अंतर्गत 49% तक: प्रक्षेपण यान और संबंधित प्रणालियाँ या उपप्रणालियाँ, अंतरिक्ष यान को प्रक्षेपित करने तथा रिसीव करने के लिये स्पेसपोर्ट का निर्माण।
- 49% के बाद ये गतिविधियाँ सरकारी मार्ग के अंतर्गत आती हैं।
- स्वचालित मार्ग के अंतर्गत 100% तक: उपग्रहों, ग्राउंड सेगमेंट और यूज़र सेगमेंट के लिये घटकों (पार्ट-पुर्ज़ों) तथा प्रणालियों/उप-प्रणालियों का विनिर्माण।
- स्वचालित मार्ग के अंतर्गत 74% तक: उपग्रह-विनिर्माण और प्रचालन, सैटेलाइट डेटा उत्पाद तथा ग्राउंड सेगमेंट तथा यूज़र सेगमेंट।
भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में प्रमुख विकास क्या हैं?
- परिचय:
- वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में भारत की हिस्सेदारी 2-3% (यूएस: 40%, यूके: 7%) है और साथ ही यह भी आशा है कि वर्ष 2030 तक इसकी हिस्सेदारी 10% से अधिक हो जाएगी।
- इसरो, विश्व की छह सबसे बड़ी अंतरिक्ष एजेंसियों में से एक है।
- वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में भारत की हिस्सेदारी 2-3% (यूएस: 40%, यूके: 7%) है और साथ ही यह भी आशा है कि वर्ष 2030 तक इसकी हिस्सेदारी 10% से अधिक हो जाएगी।
- हाल के प्रमुख सफल मिशन:
- प्रक्षेपण यानों में प्रगति:
- अंतर्राष्ट्रीय ग्राहकों के लिये मिशन
- अन्य प्रमुख विकास:
भारतीय अंतरिक्ष नीति, 2023 की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?
- इसरो की भूमिका में परिवर्तन: इसरो परिचालन अंतरिक्ष प्रणालियों के निर्माण से बाहर निकलकर उन्नत प्रौद्योगिकियों में अनुसंधान और विकास पर ध्यान केंद्रित करेगा।
- निजी सहभागिता प्रोत्साहन:
- गैर-सरकारी संस्थाओं (NGE) को स्व-स्वामित्व वाली, खरीदी गई अथवा पट्टे पर ली गई उपग्रह प्रणालियों के माध्यम से राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष आधारित संचार सेवाएँ प्रदान करने की अनुमति है।
- NGE को लॉन्च वाहनों, शटल सहित अंतरिक्ष परिवहन प्रणालियों का निर्माण एवं संचालन करने के साथ-साथ अंतरिक्ष परिवहन के लिये पुनर्प्रयोज्य, पुनर्प्राप्ति योग्य तथा पुनर्विन्यास करने योग्य प्रौद्योगिकियों और प्रणालियों को विकसित करने के लिये प्रोत्साहित किया गया।
- NGE को क्षुद्रग्रह संसाधनों अथवा अंतरिक्ष संसाधनों की व्यावसायिक पुनर्प्राप्ति में संलग्न होने की अनुमति दी गई।
- लागू कानूनों के अनुसार प्राप्त संसाधनों के साथ-साथ स्वामित्व रखने, परिवहन एवं उपयोग करने तथा विक्रय करने का हकदार है।
- उद्योग सहयोग तथा व्यावसायीकरण: भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन और प्राधिकरण केंद्र को स्वायत्त रूप से अंतरिक्ष गतिविधियों को बढ़ावा देने, मार्गदर्शन करने तथा अधिकृत करने का अधिकार प्राप्त है।
- न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड विभिन्न कार्य करता है जिनमें अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों और प्लेटफाॅर्मों का व्यावसायीकरण, अंतरिक्ष घटकों का निर्माण करना, उनकी लीज़िंग अथवा खरीद करना तथा अंतरिक्ष-आधारित सेवाओं का विपणन शामिल है।
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश क्या है?
- परिचय: प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign Direct Investment- FDI) का आशय किसी विदेशी इकाई द्वारा दूसरे देश में किसी व्यवसाय अथवा निगम में किये गए निवेश से है।
- FDI इक्विटी (सामान्य शेयर) उपकरणों के रूप में हो सकता है अथवा यह किसी व्यवसाय में स्वामित्व हिस्सेदारी के नियंत्रण के रूप में हो सकता है।
- भारत में FDI:
- गैर भारतीय निवासी द्वारा भारत में किये गए निवेश को FDI कहा जाता है। यह निम्नलिखित रूप में हो सकता है:
- एक असूचीबद्ध भारतीय कंपनी में निवेश।
- किसी सूचीबद्ध भारतीय कंपनी की पोस्ट-इश्यू पेड-अप इक्विटी पूंजी के 10% अथवा उससे अधिक में निवेश।
- वित्त वर्ष 2022-23 में भारत में कुल FDI अंतर्वाह 70.97 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा।
- भारतीय रिज़र्व बैंक के अनुसार वर्ष 2022-23 में भारत की FDI में सबसे अधिक योगदान संयुक्त राज्य अमेरिका का था।
- संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद सबसे अधिक निवेश मॉरीशस, यूनाइटेड किंगडम और सिंगापुर का था।
- इसके अतिरिक्त वर्ष 2022-23 के दौरान भारत में FDI का बाज़ार मूल्य रुपए के संदर्भ में 6.9% बढ़ गया जिसका मुख्य कारण गैर-सूचीबद्ध कंपनियों में FDI में हुई वृद्धि थी।
- गैर भारतीय निवासी द्वारा भारत में किये गए निवेश को FDI कहा जाता है। यह निम्नलिखित रूप में हो सकता है:
- भारत में FDI हेतु मार्ग:
- स्वचालित मार्ग/व्यवस्था: स्वचालित मार्ग के तहत अनिवासी निवेशक अथवा भारतीय कंपनी में निवेश के लिये भारत सरकार से किसी अनुमोदन की आवश्यकता नहीं होती है।
- सरकारी मार्ग: इसके अंतर्गत निवेश से पहले भारत सरकार से मंज़ूरी प्राप्त करना आवश्यक होता है।
- इस मार्ग के तहत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के प्रस्तावों पर संबंधित प्रशासनिक मंत्रालय/विभाग द्वारा विचार किया जाता है।
- भारत में FDI निषिद्ध क्षेत्र:
- द्यूत और सट्टेबाज़ी
- चिट फंड
- निधि कंपनी
- अंतरणीय विकास अधिकार (TDR) में व्यापार
- रियल एस्टेट बिज़नेस
- तंबाकू उत्पादों का विनिर्माण
- निजी क्षेत्र के निवेश के लिये खुले नहीं क्षेत्र: इसमें परमाणु ऊर्जा और रेलवे परिचालन (समेकित FDI नीति के तहत अनुमत गतिविधियों को छोड़कर) शामिल हैं।
- लॉटरी व्यवसाय: इसमें सरकारी या निजी लॉटरी और ऑनलाइन लॉटरी शामिल हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2021)
उपर्युक्त में से किसे/किन्हें विदेशी प्रत्यक्ष निवेश में सम्मिलित किया जा सकता है/किये जा सकते हैं? (a) 1, 2 और 3 उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. भारत का अपना अंतरिक्ष स्टेशन बनाने की क्या योजना है और इससे हमारे अंतरिक्ष कार्यक्रम को क्या लाभ होगा? (2019) प्रश्न. अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियों पर चर्चा कीजिये। इस तकनीक के अनुप्रयोग ने भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में किस प्रकार सहायता की? (2016) |
INDUS-X शिखर सम्मेलन 2024
प्रिलिम्स के लिये:रक्षा उत्कृष्टता हेतु नवाचार (iDEX), इंडो-पैसिफिक क्षेत्र, क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजीज (iCET), INDUS-X शिखर सम्मेलन, युद्ध अभ्यास, वज्र प्रहार, मालाबार, कोप इंडिया, रेड फ्लैग, रिम ऑफ द पैसिफिक (RIMPAC) मेन्स के लिये:भारत और अमेरिका के बीच सहयोग, भारत के हितों पर देशों की नीतियों और राजनीति का प्रभाव |
स्रोत: पी. आई. बी.
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका के रक्षा विभाग (Department of Defense- DoD) और भारतीय रक्षा मंत्रालय (Ministry of Defense- MoD) ने नई दिल्ली, भारत में दूसरे भारत-अमेरिका रक्षा त्वरण पारिस्थितिकी तंत्र (India-US Defense Acceleration Ecosystem- INDUS-X) शिखर सम्मेलन में भाग लिया।
- शिखर सम्मेलन का आयोजन संयुक्त रूप से इनोवेशन फॉर डिफेंस एक्सीलेंस (iDEX), MoD और DoD द्वारा किया गया था तथा अमेरिका-भारत व्यापार परिषद (US-India Business Council- USIBC) एवं सोसाइटी ऑफ इंडिया डिफेंस मैन्युफैक्चरर्स (SIDM) द्वारा समन्वयित किया गया था।
दूसरे INDUS-X शिखर सम्मेलन की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
- इंडो-पैसिफिक सुरक्षा पर फोकस:
- शिखर सम्मेलन में स्वतंत्र और खुले हिंद-प्रशांत क्षेत्र को सुनिश्चित करने में प्रमुख साझेदार के रूप में भारत तथा अमेरिका की महत्त्वपूर्ण भूमिका पर ज़ोर दिया गया।
- चर्चाएँ उन्नत सैन्य क्षमताओं के सह-उत्पादन, रक्षा आपूर्ति शृंखलाओं को मज़बूत करने और साझा सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिये अंतर-संचालनीयता बढ़ाने पर केंद्रित थी।
- नवाचार और सहयोग को बढ़ावा देना:
- भारतीय और अमेरिकी उद्योगों के बीच सहयोगात्मक प्रयासों के माध्यम से रक्षा प्रौद्योगिकियों में नवाचार को बढ़ावा देने पर ज़ोर दिया गया।
- शिखर सम्मेलन ने रक्षा क्षेत्र में स्टार्टअप और सूक्ष्म, लघु तथा मध्यम उद्यमों को स्थापित खिलाड़ियों के साथ जुड़ने, ज्ञान के आदान-प्रदान एवं साझेदारी की सुविधा के लिये एक मंच प्रदान किया।
- भारतीय और अमेरिकी उद्योगों के बीच सहयोगात्मक प्रयासों के माध्यम से रक्षा प्रौद्योगिकियों में नवाचार को बढ़ावा देने पर ज़ोर दिया गया।
- भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच रक्षा साझेदारी:
- शिखर सम्मेलन में भारत और अमेरिका के बीच मज़बूत रक्षा साझेदारी पर प्रकाश डाला गया, जिसमें रक्षा सहित प्रमुख क्षेत्रों में नवाचार को बढ़ावा देने के उद्देश्य से क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजीज़ (iCET) जैसी पहल का हवाला दिया गया।
- तकनीकी नवाचार पर ज़ोर:
- शिखर सम्मेलन ने अमेरिका-भारत रणनीतिक साझेदारी के व्यापक संदर्भ में रक्षा में तकनीकी नवाचार की महत्त्वपूर्ण भूमिका पर ज़ोर दिया, जिससे सीमाओं के पार रक्षा उद्योगों के लिये सामूहिक प्रगति को बढ़ावा मिला।
- संयुक्त IMPACT चुनौतियाँ:
- शिखर सम्मेलन ने संयुक्त IMPACT चुनौतियों (Joint IMPACT Challenges) की शुरुआत को रेखांकित किया, जिसका लक्ष्य रक्षा और एयरोस्पेस सह-विकास एवं सह-उत्पादन को सहयोगात्मक रूप से आगे बढ़ाना है, जिसमें अग्रणी समाधानों में स्टार्टअप शामिल हैं।
रक्षा उत्कृष्टता के लिये नवाचार:
- वर्ष 2018 में लॉन्च की गई iDEX रक्षा मंत्रालय की प्रमुख योजना है। इसे डिफेंस इनोवेशन ऑर्गनाइजेशन (DIO) द्वारा वित्त पोषित और प्रबंधित किया जाता है जिसे कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 8 के तहत 'गैर-लाभकारी' कंपनी के रूप में स्थापित किया गया है।
- iDEX का उद्देश्य रक्षा और एयरोस्पेस क्षेत्र में नवाचार एवं प्रौद्योगिकी विकास को बढ़ावा देना है।
- यह भारतीय रक्षा और एयरोस्पेस आवश्यकताओं के लिये भविष्य में प्रयोगात्मक क्षमता के साथ अनुसंधान एवं विकास परियोजनाओं को पूरा करने के लिये अनुदान, धन और अन्य सहायता प्रदान करता है।
- यह वर्तमान में लगभग 400+ स्टार्टअप और MSME के साथ मुख्य रूप से कार्यरत है। रक्षा पारिस्थितिकी तंत्र में गेम-चेंजर के रूप में पहचाने जाने वाले iDEX को रक्षा क्षेत्र में नवाचार के लिये PM पुरस्कार मिला है।
यूएस-इंडिया बिज़नेस काउंसिल:
- इसका उद्देश्य भारत व अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा देना, दीर्घकालिक वाणिज्यिक साझेदारी, रोज़गार सृजन और वैश्विक आर्थिक विकास के लिये उद्योग तथा सरकार को जोड़ना है।
भारतीय रक्षा निर्माता सोसायटी:
- SIDM भारत का अग्रणी रक्षा उद्योग संघ है, जो नीतिगत सुधारों का समर्थन कर सरकार और सशस्त्र बलों के साथ सहयोग की सुविधा प्रदान करता है।
भारत-अमेरिका रक्षा सहयोग में प्रमुख विकास क्या हैं?
- फ्रेमवर्क और साझेदारी नवीकरण:
- भारत-अमेरिका रक्षा सहयोग की नींव "भारत-अमेरिका रक्षा सहयोग के लिये नए फ्रेमवर्क" में निहित है, जिसे वर्ष 2015 में एक दशक के लिये नवीनीकृत किया गया था।
- वर्ष 2016 में, साझेदारी को प्रमुख रक्षा साझेदारी (Major Defence Partnership- MDP) में अपग्रेड किया गया था।
- जुलाई 2018 को अमेरिकी वाणिज्य विभाग के रणनीतिक व्यापार प्राधिकरण लाइसेंस अपवाद के तहत भारत को टियर-1 दर्जा में पदोन्नत किया गया।
- संस्थागत संवाद तंत्र:
- 2+2 मंत्रिस्तरीय संवाद, जिसमें दोनों देशों के विदेश और रक्षा मंत्री अपने अमेरिकी समकक्षों के साथ शामिल होते हैं, राजनीतिक, सैन्य एवं रणनीतिक मुद्दों को हल करने के लिये शीर्ष मंच के रूप में कार्य करता है।
- भारत-अमेरिका, 2+2 मंत्रिस्तरीय वार्ता का 5वाँ संस्करण नवंबर 2023 को नई दिल्ली में हुआ।
- रक्षा नीति समूह (DPG):
- रक्षा सचिव तथा अवर रक्षा सचिव (नीति) के नेतृत्व में DPG, रक्षा संवादों एवं तंत्रों की व्यापक समीक्षा की सुविधा प्रदान करता है।
- 17वाँ DPG मई 2023 में वाशिंगटन डी.सी. में आयोजित की गई।
- रक्षा सचिव तथा अवर रक्षा सचिव (नीति) के नेतृत्व में DPG, रक्षा संवादों एवं तंत्रों की व्यापक समीक्षा की सुविधा प्रदान करता है।
- रक्षा खरीद एवं प्लेटफॉर्म:
- अमेरिका से रक्षा खरीद में वृद्धि हो रही है, जो लगभग 20 बिलियन अमेरिकी डॉलर है।
- भारत द्वारा उपयोग किये जाने वाले प्रमुख अमेरिकी मूल के प्लेटफॉर्मों में अपाचे, चिनूक, MH60R हेलीकॉप्टर तथा P8I विमान शामिल हैं।
- हाल ही में अमेरिकी विदेश विभाग ने भारत को 31 MQ-9B स्काई गार्डियन की संभावित विदेशी सैन्य बिक्री को मंज़ूरी दी है।
- महत्त्वपूर्ण रक्षा समझौते:
- महत्त्वपूर्ण समझौतों में लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट (LEMOA,2016), ‘संचार संगतता और सुरक्षा समझौता’ (COMCASA,2018), इंडस्ट्रियल सिक्योरिटी एग्रीमेंट (2019), मूल विनिमय और सहयोग समझौता (BECA,2020) तथा मेमोरेंडम ऑफ इंटेंट फॉर डिफेंस इनोवेशन कोऑपरेशन (2018) शामिल हैं।
- सैन्य आदान-प्रदान:
- उच्च स्तरीय यात्राएँ, अभ्यास, प्रशिक्षण पाठ्यक्रम तथा सेवा-विशिष्ट द्विपक्षीय तंत्र एवं सैन्य आदान-प्रदान की सुविधा प्रदान करते हैं।
- भारत अमेरिका के साथ बढ़ती संख्या में सैन्य अभ्यासों में भाग लेता है, जिनमें युद्धाभ्यास, वज्र प्रहार, मालाबार, कोप इंडिया एवं टाइगर ट्रायम्फ शामिल हैं।
- रेड फ्लैग, रिम ऑफ द पैसिफिक (रिमपैक), कटलैस एक्सप्रेस, सी ड्रैगन तथा मिलान जैसे बहुपक्षीय अभ्यासों में भागीदारी से सहयोग और अधिक मज़बूत होते हैं।
- INS सतपुड़ा अगस्त 2022 में आज़ादी का अमृत महोत्सव के भाग के रूप में अमेरिकी मुख्य भूमि का दौरा करने वाला पहला भारतीय नौ-सैनिक जहाज़ है।
- भारत अप्रैल 2022 में बहरीन स्थित बहुपक्षीय संयुक्त समुद्री बल (CMF) में एसोसिएट पार्टनर के रूप में शामिल हुआ।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारत ने निम्नलिखित में से किससे बराक एंटी-मिसाइल रक्षा प्रणाली खरीदी? (2008) (a) इज़रायल उत्तर: (a) प्रश्न. हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका ने ‘ऑस्ट्रेलिया समूह’ तथा ‘वासेनार व्यवस्था’ के नाम से ज्ञात बहुपक्षीय निर्यात नियंत्रण व्यवस्थाओं में भारत को सदस्य बनाए जाने का समर्थन करने का निर्णय लिया है। इन दोनों व्यवस्थाओं के बीच क्या अंतर है? (2011)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न. भारत-रूस रक्षा समझौतों की तुलना में भारत-अमेरिका रक्षा समझौतों की क्या महत्ता है? हिंद-प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में स्थायित्व के संदर्भ में चर्चा कीजिये। (2020) प्रश्न. 'भारत और यूनाइटेड स्टेट्स के बीच संबंधों में खटास के प्रवेश का कारण वाशिंगटन का अपनी वैश्विक रणनीति में अभी तक भी भारत के लिये किसी ऐसे स्थान की खोज़ करने में विफलता है, जो भारत के आत्म-समादर तथा महत्त्वाकांक्षा को संतुष्ट कर सके।' उपयुक्त उदाहरणों के साथ स्पष्ट कीजिये। (2019) |
रायसीना डायलॉग 2024
प्रिलिम्स के लिये:रायसीना डायलॉग, ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन (ORF), चतुरंग: संघर्ष, प्रतियोगिता, सहयोग, निर्माण मेन्स के लिये:रायसीना डायलॉग, विकसित और विकासशील देशों की नीतियों और राजनीति का भारत के हितों पर प्रभाव |
स्रोत: इकॉनोमिक टाइम्स
चर्चा में क्यों?
हाल ही में रायसीना डायलॉग (Raisina Dialogue) का 9वाँ संस्करण नई दिल्ली में आयोजित किया गया जिसमें लगभग 115 देशों के 2,500 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया।
- ग्रीस के प्रधानमंत्री क्यारीकोस मित्सो-ताकिस उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए।
रायसीना डायलॉग क्या है?
- परिचय:
- रायसीना डायलॉग भू-राजनीति और भू-अर्थशास्त्र पर आयोजित किया जाने वाला एक एक वार्षिक सम्मेलन है जिसका उद्देश्य विश्व के सम्मुख सबसे चुनौतीपूर्ण मुद्दों का समाधान करना है। इसकी प्रेरणा शांगरी-ला डायलॉग से ली गई थी।
- यह भारत की "आसूचना कूटनीति" का एक घटक है जो प्रत्यक्ष रूप से प्रदर्शित नहीं होता है किंतु राजनयिक पृष्ठभूमि और सशस्त्र बलों के साथ-साथ राष्ट्रीय सुरक्षा ढाँचे में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- यह सम्मेलन नई दिल्ली में आयोजित किया जाता है और इसमें राजनीतिक, व्यावसायिक, मीडिया तथा नागरिक समाज पृष्ठभूमि के लोग भाग लेते हैं।
- इस वार्ता को एक बहु-हितधारक, अंतर-क्षेत्रीय चर्चा के रूप में संरचित किया गया है जिसमें राज्य के प्रमुख, कैबिनेट मंत्री और स्थानीय सरकारी अधिकारी के साथ-साथ निजी क्षेत्र, मीडिया तथा शिक्षा जगत के विचारक शामिल होते हैं।
- दिल्ली स्थित थिंक टैंक ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन (ORF), विदेश मंत्रालय के साथ साझेदारी में सम्मेलन की मेज़बानी करता है।
- रायसीना डायलॉग भू-राजनीति और भू-अर्थशास्त्र पर आयोजित किया जाने वाला एक एक वार्षिक सम्मेलन है जिसका उद्देश्य विश्व के सम्मुख सबसे चुनौतीपूर्ण मुद्दों का समाधान करना है। इसकी प्रेरणा शांगरी-ला डायलॉग से ली गई थी।
- वर्ष 2024 थीम और विषयगत स्तंभ:
- चतुरंग: संघर्ष, प्रतियोगिता, सहयोग, निर्माण।
- प्रतिभागियों ने छह "विषयगत स्तंभों" पर एक-दूसरे से संवाद की। इसमें शामिल हैं:
- टेक फ्रंटियर्स: विनियम और वास्तविकताएँ
- ग्रह के साथ शांति: निवेश और नवप्रवर्तन
- युद्ध और शांति: शस्त्रागार और विषमताएँ
- उपनिवेशवाद से मुक्ति बहुपक्षवाद: संस्थाएँ और समावेशन
- वर्ष 2030 के बाद का एजेंडा: लोग और प्रगति
- लोकतंत्र की रक्षा: समाज और संप्रभुता।
- दुनिया भर में इसी तरह के संवाद:
- म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन (MSC): जर्मनी के म्यूनिख में प्रतिवर्ष आयोजित होने वाला MSC अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा नीति पर चर्चा के लिये सबसे प्रमुख मंचों में से एक है।
- शांगरी-ला डायलॉग: इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ (IISS) द्वारा आयोजित और सिंगापुर में प्रतिवर्ष आयोजित होने वाला शांगरी-ला डायलॉग एशिया-प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा मुद्दों पर केंद्रित है।
- ओस्लो स्वतंत्रता मंच: यह मानवाधिकार, लोकतंत्र और स्वतंत्रता पर केंद्रित एक वार्षिक सम्मेलन है। यह विश्व स्तर पर मानवाधिकारों को आगे बढ़ाने के लिये विचारों और रणनीतियों को साझा करने हेतु कार्यकर्त्ताओं, पत्रकारों तथा नीति निर्माताओं को एक साथ लाता है।
रायसीना संवाद 2024 की प्रमुख बिंदु क्या हैं?
- भू-राजनीतिक बदलाव:
- प्रतिभागियों ने संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, रूस और यूरोपीय देशों जैसे प्रमुख खिलाड़ियों के बीच विकसित हो रही शक्ति गतिशीलता सहित चल रहे भू-राजनीतिक बदलावों पर चर्चा की।
- नई चुनौतियों और अवसरों के उद्भव के साथ, चर्चा इस बात पर केंद्रित रही कि राष्ट्र अपनी रणनीतियों तथा गठबंधनों को कैसे अपना रहे हैं।
- भारत ब्रिजिंग पावर की ओर:
- भारत के विदेश मंत्री ने भारत को एक "ब्रिजिंग पावर" कहा और कहा कि लोगों ने देश को अपेक्षाकृत निष्पक्ष देखा है साथ ही "विश्वमित्र" या दुनिया के मित्र की भूमिका निभा रहा है।
- भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा:
- ग्रीक के प्रधानमंत्री ने भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे जैसी कनेक्टिविटी परियोजनाओं के महत्त्व के बारे में चर्चा की।
- बाल्टिक-नॉर्डिक फोरम:
- मध्य तथा पूर्वी यूरोप के मंत्रिस्तरीय दल जिसमें बाल्टिक-नॉर्डिक फोरम के सभी मंत्री शामिल थे, ने सरकार के लिये एक नई राजनयिक पहुँच को सक्षम बनाया।
- प्राय: यूरोप के कम महत्त्व वाले लेकिन आर्थिक रूप से प्रतिस्पर्द्धी क्षेत्र के साथ व्यापार एवं निवेश समझौते स्थापित करना इस प्रयास का लक्ष्य है।
- मध्य तथा पूर्वी यूरोप के मंत्रिस्तरीय दल जिसमें बाल्टिक-नॉर्डिक फोरम के सभी मंत्री शामिल थे, ने सरकार के लिये एक नई राजनयिक पहुँच को सक्षम बनाया।
- विश्वव्यापी संघर्ष:
- वार्ता का अधिकांश भाग वैश्विक संघर्षों पर केंद्रित रहा। यूरोपीय गणमान्य व्यक्तियों की अधिक उपस्थिति ने यूक्रेन में रूसी युद्ध को सुर्खियों में ला दिया।
- सैन्य एवं नौ-सैनिक रणनीति पर पैनल ने आक्रामक चीन को संभालने की आवश्यकता पर ध्यान केंद्रित किया, जिसमें "ग्रे वॉरफेयर" पर चर्चा भी शामिल थी।
- यूरोपीय मंत्रियों ने भारत से आग्रह किया कि वह रूस के साथ व्यापार और संबंधों पर पुनर्विचार करे तथा 24 फरवरी को यूक्रेन पर रूसी आक्रमण की दूसरी वर्षगाँठ से पहले यूक्रेन की संप्रभुता के मामले पर ज़ोर दे।
- विशेष रूप से उन्होंने भारत से यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की के अनुरोध पर स्विट्ज़रलैंड में शीघ्र ही आयोजित होने वाले "शांति सम्मेलन" में शामिल होने का आग्रह किया।
- क्षेत्रीय सुरक्षा संबंधी चिंताएँ:
- सम्मेलन में विभिन्न क्षेत्रीय सुरक्षा चिंताओं को संबोधित किया गया, जिसमें भारत-प्रशांत, मध्य-पूर्व तथा पूर्वी यूरोप जैसे क्षेत्रों में तनाव भी शामिल है।
- प्रतिभागियों ने संघर्ष समाधान, शांति-निर्माण प्रयासों तथा क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्विता के प्रबंधन की रणनीतियों पर चर्चा की।
- प्रौद्योगिकी एवं नवाचार:
- भू-राजनीति तथा वैश्विक शासन को आकार देने में प्रौद्योगिकी एवं नवाचार की भूमिका एक महत्त्वपूर्ण विषय रही होगी।
- संवाद में साइबर सुरक्षा, डिजिटल परिवर्तन, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, राष्ट्रीय सुरक्षा और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर उनके प्रभाव जैसे विषयों को शामिल किया गया है।
ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन
- यह नई दिल्ली में स्थित एक स्वतंत्र थिंक टैंक है जिसके तीन केंद्र- मुंबई, चेन्नई और कोलकाता में हैं।
- इसका उद्देश्य एक निष्पक्ष और न्यायसंगत जगत में एक सुदृढ़ एवं समृद्ध भारत के निर्माण की दिशा में नीतिगत सोच का नेतृत्व तथा सहायता करना है जो भारत के लिये विकल्पों को खोजने व सूचित करने में मदद करता है। यह भारतीय आह्वान और विचारों को वैश्विक संवाद को आयाम देने वाले मंचों तक लाता है।
- यह विश्व भर में सरकारों, व्यावसायिक समुदायों, शिक्षा जगत और नागरिक समाज में विविध निर्णय निर्माताओं को गैर-पक्षपातपूर्ण, स्वतंत्र, अच्छी तरह से शोधित विश्लेषण तथा इनपुट प्रदान करता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:Q.1 निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2020) अंतर्राष्ट्रीय समझौता/संगठन विषय
उपर्युक्त युग्मों में से कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (c) |
भारत में मसालों का इतिहास
प्रिलिम्स के लियें:भारत में मसालों का इतिहास, सिंधु घाटी सभ्यता, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी, अंतर्राष्ट्रीय मानकीकरण संगठन (ISO)। मेन्स के लियें:भारत में मसालों का इतिहास, भारत में मसाला उत्पादन, मसाला क्षेत्र में की गई पहल। |
स्रोत: द डेली गार्जियन
चर्चा में क्यों?
भारत में मसालों का इतिहास सांस्कृतिक आदान-प्रदान, आर्थिक समृद्धि के साथ-साथ वैश्विक पाककला परिदृश्य में भारतीय स्वादों के एकीकरण की एक आकर्षक यात्रा को दर्शाता है।
भारतीय मसालों का इतिहास क्या है?
- प्राचीन उत्पत्ति:
- भारत में मसालों के उपयोग के साक्ष्य प्राचीन काल से प्राप्त किये जा सकते हैं, जिसके प्रमाण सिंधु घाटी सभ्यता से भी मिलते हैं।
- इन प्रारंभिक सभ्यताओं में भी मसालों का उपयोग पाककला एवं औषधीय प्रयोजनों के लिये किया जाता था।
- व्यापारिक मार्ग:
- सिल्क रोड सहित प्राचीन व्यापार मार्गों पर भारत की रणनीतिक स्थिति ने अन्य सभ्यताओं के साथ मसालों के आदान-प्रदान को भी सुविधाजनक बनाया।
- भारत की आर्थिक समृद्धि में योगदान देने वाले काली मिर्च, इलायची तथा दालचीनी जैसे मसालों की अत्यधिक मांग थी।
- आयुर्वेदिक प्रभाव:
- मसाले सदियों से पारंपरिक भारतीय चिकित्सा, आयुर्वेद का अभिन्न अंग रहे हैं। ऐसा माना जाता था कि कई मसालों में औषधीय गुण होते हैं और साथ ही उनका उपयोग विभिन्न बीमारियों के उपचार के लिये किया जाता था।
- अरब एवं फारस के प्रभाव:
- मध्य काल के दौरान अरब एवं फारस व्यापारियों ने पश्चिम में भारतीय मसालों के प्रसार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- मसाले का व्यापार में वृद्धि हुई साथ ही मसाले यूरोप में विलासिता की वस्तु बन गए।
- यूरोपीय मसाला व्यापार:
- 15वीं शताब्दी में यूरोपीय शक्तियों, विशेष रूप से पुर्तगाली, डच तथा बाद में ब्रिटिश लोगों ने भारत के मसाला उत्पादक क्षेत्रों तक प्रत्यक्ष पहुँच की मांग की।
- परिणामस्वरूप, अन्वेषण के युग को आगे बढ़ाते हुए समुद्री व्यापार मार्गों की खोज की गई और साथ ही उन्हें स्थापित भी किया गया।
- औपनिवेशिक नियंत्रण:
- यूरोपीय औपनिवेशिक शक्तियों का उद्देश्य मसाला व्यापार को नियंत्रित करना था, जिससे भारत में व्यापारिक चौकियों और उपनिवेशों की स्थापना हुई। मसाला उत्पादक क्षेत्रों, विशेषकर केरल में प्रभुत्व के लिये पुर्तगाली, डच और ब्रिटिशों के बीच तीव्र प्रतिस्पर्द्धा थी।
- ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का एकाधिकार:
- ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने औपनिवेशिक काल के दौरान मसाला व्यापार पर एकाधिकार स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- उन्होंने मसाला उत्पादन, वितरण और व्यापार मार्गों को नियंत्रित किया, जिससे स्थानीय मसाला किसानों की आजीविका प्रभावित हुई।
- मसाला बागान:
- अंग्रेज़ों ने भारत में, विशेष रूप से केरल और कर्नाटक जैसे क्षेत्रों में, निर्यात के लिये काली मिर्च, इलायची व दालचीनी जैसे मसालों पर ध्यान केंद्रित करते हुए, बड़े पैमाने पर मसाला बागान शुरू किये।
- स्वतंत्रता के बाद पुनरुत्थान:
- वर्ष 1947 में स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद, भारत वैश्विक मसाला बाज़ार में एक अग्रणी बना रहा। सरकारी नीतियों ने मसालों की खेती को समर्थन दिया और भारत विभिन्न मसालों का एक महत्त्वपूर्ण निर्यातक बना रहा।
- विविध मसाला उत्पादन:
- आज, भारत अपनी विविध जलवायु और भूगोल के कारण विभिन्न प्रकार के मसालों के उत्पादन के लिये जाना जाता है। काली मिर्च, इलायची, दालचीनी, लौंग, हल्दी, जीरा और धनिया जैसे मसालों की कृषि देश के विभिन्न क्षेत्रों में की जाती है।
- वैश्विक प्रभाव:
- भारतीय मसालों ने न केवल देश की पाक परंपराओं को आयाम दिया है बल्कि वैश्विक व्यंजनों पर भी महत्त्वपूर्ण प्रभाव छोड़ा है। भारतीय मसालों का उपयोग अंतर्राष्ट्रीय पाक पद्धति में भी व्यापक है, जो पाक प्रथाओं के वैश्वीकरण में योगदान देता है।
भारतीय मसाला बाज़ार का परिदृश्य क्या है?
- उत्पादन:
- भारत विश्व का सबसे बड़ा मसाला उत्पादक है। यह मसालों का सबसे बड़ा उपभोक्ता और निर्यातक भी है।
- पिछले कुछ वर्षों में विभिन्न मसालों का उत्पादन तेज़ी से बढ़ा है।
- वर्ष 2021-22 में उत्पादन 10.87 मिलियन टन रहा। वर्ष 2022-23 के दौरान, भारत से मसालों का निर्यात वर्ष 2021-22 में 3.46 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 3.73 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया।
- वर्ष 2021-22 के दौरान भारत से निर्यात किया जाने वाला एकमात्र सबसे बड़ा मसाला मिर्च था, इसके बाद मसाला तेल और ओलेरोसिन, पुदीना उत्पाद, जीरा तथा हल्दी थे।
- निर्यात:
- भारत मसालों और मसाला वस्तुओं का सबसे बड़ा निर्यातक है। वर्ष 2022-23 के दौरान देश ने 3.73 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के मसालों का निर्यात किया।
- भारत ने 1.53 मिलियन टन मसालों का निर्यात किया। वर्ष 2017-18 से वर्ष 2021-22 तक भारत से कुल निर्यात मात्रा 10.47% की CAGR से बढ़ी।
- किस्में:
- भारत अंतर्राष्ट्रीय मानकीकरण संगठन (International Organization for Standardization- ISO) द्वारा सूचीबद्ध 109 मसाले की किस्मों में से लगभग 75 का उत्पादन करता है।
- सबसे अधिक उत्पादन और निर्यात किये जाने वाले मसालों में काली मिर्च, इलायची, मिर्च, अदरक, हल्दी, धनिया, जीरा, अजवाइन, सौंफ, मेथी, लहसुन, जायफल तथा जावित्री, करी पाउडर, मसाला तेल एवं ओलियोरेसिन शामिल हैं। उक्त मसालों में से मिर्च, जीरा, हल्दी, अदरक और धनिया का कुल उत्पादन में लगभग 76% का योगदान है।
- भारत में शीर्ष मसाला उत्पादक राज्य मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, महाराष्ट्र, असम, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और केरल हैं।
मसालों के उत्पादन को प्रोत्साहन देने हेतु सरकार की क्या पहल है?
- मसालों का निर्यात विकास और संवर्धन:
- भारतीय मसाला बोर्ड की इस पहल का उद्देश्य मसाला निर्यातक को उच्च तकनीक प्रसंस्करण प्रौद्योगिकियों को अपनाने और उद्योग के विकास के लिये मौजूदा प्रौद्योगिकी को उन्नत करने तथा आयातक देशों के बदलते खाद्य सुरक्षा मानकों को पूरा करने में सहायता प्रदान करना है।
- भारतीय मसाला बोर्ड की स्थापना भारतीय मसालों के विकास और वैश्विक प्रचार के लिये की गई है।
- यह भारत के मसाला निर्यातकों और विदेशों में आयातकों के बीच एक कड़ी के रूप में कार्य करता है। बोर्ड के प्रमुख कार्यों में मसालों की गुणवत्ता का प्रचार, रखरखाव और निगरानी, उत्पादकों को वित्तीय तथा सामग्री सहायता, बुनियादी ढाँचे की सुविधा एवं संबद्ध क्षेत्र में अनुसंधान करना शामिल है।
- स्पाइस पार्क:
- मसाला बोर्ड ने प्रमुख उत्पादन/बाज़ार केंद्रों में आठ फसल-विशिष्ट स्पाइस पार्क का शुभारंभ किया है जिनका उद्देश्य किसानों को उनकी उपज के लिये बेहतर मूल्य प्राप्ति और व्यापक पहुँच की सुविधा प्रदान करना है।
- इन पार्क का उद्देश्य मसालों और मसाला उत्पादों की कृषि, कटाई के बाद, प्रसंस्करण, मूल्यवर्द्धन, पैकेजिंग तथा भंडारण के लिये एक एकीकृत संचालन करना है।
- स्पाइस कॉम्प्लेक्स सिक्किम:
- मसाला बोर्ड ने सिक्किम में स्पाइस कॉम्प्लेक्स स्थापित करने के लिये राज्य के सेल को एक परियोजना प्रस्ताव प्रस्तुत किया, जिसमें राज्य में किसानों और अन्य हितधारकों की मदद के लिये मसालों में सामान्य प्रसंस्करण तथा मूल्य संवर्द्धन की सुविधा एवं प्रदर्शन हेतु वित्तीय सहायता मांगी गई।
- मसालों और पाक जड़ी-बूटियों पर कोडेक्स समिति (CCSCH):
- CCSCH कोडेक्स एलिमेंटेरियस कमीशन की एक सहायक संस्था है, जो खाद्य और कृषि संगठन (FAO) तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की एक संयुक्त पहल है।
- कोडेक्स एलिमेंटेरियस आयोग खाद्य व्यापार की सुरक्षा, गुणवत्ता और निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय खाद्य मानक स्थापित करने के लिये ज़िम्मेदार है। भारत वर्ष 1964 से इसका सदस्य है।
- CCSCH कोडेक्स एलिमेंटेरियस कमीशन की एक सहायक संस्था है, जो खाद्य और कृषि संगठन (FAO) तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की एक संयुक्त पहल है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न.1 18वीं शताब्दी के मध्य में इंग्लिश ईस्ट इंडिया कंपनी के द्वारा बंगाल से निर्यातित प्रमुख पण्यपदार्थ (स्टेपल कमोडिटीज़) क्या थे: (2018) (a) अपरिष्कृत कपास, तिलहन और अफीम उत्तर: (d) प्रश्न. 2 केसर मसाला बनाने में पौधे के निम्नलिखित में से किस भाग का उपयोग किया जाता है? (2009) (a) पत्ता उत्तर: (d)
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वन संरक्षण अधिनियम 2023 पर सर्वोच्च न्यायालय का अंतरिम आदेश
प्रिलिम्स के लिये:सर्वोच्च न्यायालय, 1996 टी.एन. गोदावर्मन थिरुमुलपाद मामला, वन संरक्षण अधिनियम 2023, भारतीय वन अधिनियम, 1927, डीम्ड वन, वन भूमि में अनुमत गतिविधियाँ, भारत राज्य वन रिपोर्ट 2021 मेन्स के लिये:वन (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2023 के प्रमुख प्रावधान, भारत में वनों की अलग-अलग परिभाषाओं के संबंध में चिंता। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को संशोधित वन संरक्षण अधिनियम 2023 को चुनौती देने वाली याचिका पर अंतिम निर्णय आने तक वर्ष 1996 टी. एन. गोदावर्मन थिरुमुलपाद मामले के अनुसार "वन" की व्यापक व्याख्या को बनाए रखने का निर्देश दिया है।
वन संरक्षण अधिनियम, 1980 क्या है?
- परिचय: 1980 का वन संरक्षण अधिनियम वन-संबंधी कानूनों को सुव्यवस्थित करने, वनों की कटाई को विनियमित करने, वन उत्पादों के परिवहन की निगरानी करने और लकड़ी तथा अन्य वन उपज पर शुल्क लगाने के लिये अधिनियमित किया गया था।
- इस अधिनियम के प्रावधानों के तहत, गैर-वन उद्देश्यों के लिये वन भूमि के डायवर्ज़न हेतु केंद्र सरकार की पूर्व मंज़ूरी आवश्यक है।
- यह मुख्य रूप से भारतीय वन अधिनियम, 1927 या 1980 से राज्य रिकॉर्ड द्वारा मान्यता प्राप्त वन भूमि पर लागू होता है।
- इस अधिनियम के प्रावधानों के तहत, गैर-वन उद्देश्यों के लिये वन भूमि के डायवर्ज़न हेतु केंद्र सरकार की पूर्व मंज़ूरी आवश्यक है।
- सर्वोच्च न्यायालय का स्पष्टीकरण: सर्वोच्च न्यायालय के वर्ष 1996 के गोदावर्मन फैसले में वर्गीकरण या स्वामित्व की परवाह किये बिना वनों की सुरक्षा अनिवार्य कर दी गई।
- इसने वनों या वन जैसे इलाकों की अवधारणा पेश की, जो वनों से मिलते-जुलते क्षेत्रों का ज़िक्र करते हैं, लेकिन सरकारी या राजस्व रिकॉर्ड में आधिकारिक तौर पर वर्गीकृत नहीं हैं।
- वनों की भिन्न-भिन्न परिभाषाओं के संबंध में चिंता: भारत में राज्य सर्वेक्षणों एवं विशेषज्ञ, रिपोर्टों के आधार पर 'वनों' की अलग-अलग व्याख्या करते हैं, जिससे विविध परिभाषाएँ सामने आती हैं।
- उदाहरण के लिये, छत्तीसगढ़ तथा मध्य प्रदेश अपनी परिभाषाएँ आकार, वृक्षों के घनत्व एवं प्राकृतिक वृद्धि पर आधारित होते हैं, जबकि गोवा वन प्रजातियों के आच्छादन पर निर्भर करता है।
- अलग-अलग परिभाषाओं के कारण डीम्ड वन का अनुमान भारत के आधिकारिक वन क्षेत्र के 1% से 28% तक भिन्न है।
- वन संरक्षण अधिनियम में हालिया संशोधन:
- हाल ही में जुलाई-अगस्त 2023 में पारित वन (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2023 का उद्देश्य स्पष्टता लाना और डीम्ड वनों से जुड़ी चिंताओं का समाधान करना है।
- इस अधिनियम में वन भूमि के क्षेत्र को परिभाषित करने, कुछ श्रेणियों की भूमि को इसके प्रावधानों से छूट देने पर ध्यान केंद्रित किया।
- हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय का अंतरिम निर्देश केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में लागू किये गए संशोधन से अप्रभावित, वन प्रशासन के लिये पारंपरिक दृष्टिकोण को बनाए रखता है।
- साथ ही, सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि किसी भी सरकार या प्राधिकरण द्वारा चिड़ियाघर अथवा सफारी के निर्माण हेतु न्यायालय से अंतिम मंज़ूरी लेनी होगी।
- हाल ही में जुलाई-अगस्त 2023 में पारित वन (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2023 का उद्देश्य स्पष्टता लाना और डीम्ड वनों से जुड़ी चिंताओं का समाधान करना है।
वन (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2023 के प्रमुख प्रावधान क्या हैं?
- अधिनियम के क्षेत्र में भूमि: यह अपने अधिकार क्षेत्र में भूमि की दो श्रेणियों को परिभाषित करता है:
- भूमि को भारतीय वन अधिनियम अथवा किसी अन्य कानून के तहत वन घोषित किया गया या 25 अक्टूबर 1980 के बाद वन के रूप में अधिसूचित किया गया।
- 12 दिसंबर 1996 से पूर्व की भूमि को वन से गैर-वन उपयोग में परिवर्तित किया गया।
- अधिनियम से प्राप्त छूट: इसमें सड़कों एवं रेलवे के साथ संपर्क करने के उद्देश्यों के लिये 0.10 हेक्टेयर तक वन भूमि तथा सुरक्षा से संबंधित बुनियादी ढाँचे के लिये 10 हेक्टेयर तक वन भूमि और साथ ही सार्वजनिक उपयोगिता परियोजनाओं हेतु वामपंथी उग्रवाद प्रभावित ज़िलों में 5 हेक्टेयर तक वन भूमि की अनुमति शामिल है।
- इसके अतिरिक्त अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं, वास्तविक नियंत्रण रेखा और नियंत्रण रेखा के 100 किलोमीटर के भीतर राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित रणनीतिक परियोजनाओं को भी छूट प्रदान की गई है।
- वन भूमि में अनुमत गतिविधियाँ: इसमें संरक्षण, प्रबंधन और विकास के प्रयास शामिल हैं, जिसमें चिड़ियाघर, इकोटूरिज्म सुविधाएँ, सिल्वीकल्चरल संचालन तथा निर्दिष्ट सर्वेक्षण जैसी अतिरिक्त गतिविधियों को गैर-वन उद्देश्यों के रूप में वर्गीकृत करने से छूट प्रदान की गई है।
- वन भूमि का समनुदेशन/पट्टा: यह किसी भी इकाई को वन भूमि के समनुदेशन अथवा आवंटन के लिये केंद्र सरकार से पूर्व अनुमोदन प्राप्त करने की शर्त में विस्तार करता है जिससे निजी संस्थाओं की भागीदारी बढ़ सकती है।
- इसके अतिरिक्त यह केंद्र सरकार को उक्त कार्यों को नियंत्रित करने वाले नियम और शर्तें निर्धारित करने का अधिकार देता है।
भारत में वन क्षेत्रफल की वर्तमान स्थिति क्या है?
- भारत वन स्थिति रिपोर्ट, 2021 के अनुसार भारत में कुल वन और वृक्ष आवरण का देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र में 24.62% का योगदान है।
- विशेष रूप से, कुल वनावरण देश के भौगोलिक क्षेत्र का 21.71% है, जबकि वृक्ष आवरण 2.91% है।
- मध्य प्रदेश में देश में सबसे बड़ा वन क्षेत्र (क्षेत्रफल के संदर्भ में) है, इसके बाद अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा और महाराष्ट्र हैं।
- कुल भौगोलिक क्षेत्र के प्रतिशत के रूप में वनावरण के मामले में, शीर्ष पाँच राज्य मिज़ोरम, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मणिपुर और नगालैंड हैं।
- वन क्षेत्र में सकारात्मक परिवर्तन वाले राज्यों में आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा, कर्नाटक और झारखंड शामिल हैं।
- नकारात्मक परिवर्तन वाले राज्यों में अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, नगालैंड, मिज़ोरम और मेघालय शामिल हैं।
- संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन की वैश्विक वन संसाधन मूल्यांकन 2020 रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2010 और वर्ष 2020 के दौरान औसत वार्षिक वन क्षेत्र में निवल लाभ के मामले में भारत विश्व में तीसरे स्थान पर है।
- इसके अलावा, विश्व के आधे से अधिक (54%) वन केवल पाँच देशों में हैं: रूसी संघ, ब्राज़ील, कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) मेन्स:"भारत में आधुनिक कानून की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पर्यावरणीय समस्याओं का संविधानीकरण है।" सुसंगत वाद विधियों की सहायता से इस कथन की विवेचना कीजिये। (2022) |