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12 Dec 2023
सामान्य अध्ययन पेपर 2
राजव्यवस्था
दिवस 20
प्रश्न.1 संवैधानिक अधिकारों के कार्यान्वयन में नागरिक समाज संगठन (CSOs) क्या भूमिका निभा सकते हैं? (250 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- नागरिक समाज संगठनों (CSOs) का संक्षिप्त परिचय देते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- उन तरीकों पर चर्चा कीजिये जिनसे CSOs संवैधानिक अधिकारों के प्रभावी कार्यान्वयन में योगदान कर सकते हैं।
- उचित निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
नागरिक समाज संगठन (CSOs) ऐसे गैर-सरकारी और गैर-लाभकारी संगठन हैं जिनका गठन तथा संचालन आम नागरिकों द्वारा किया जाता है। CSOs लोगों के अधिकारों के संरक्षण एवं प्रचार के लिये प्रमुख हितधारकों के रूप में कार्य करके संवैधानिक अधिकारों के कार्यान्वयन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
मुख्य भाग:
संवैधानिक अधिकारों के प्रभावी कार्यान्वयन में CSOs कई तरीकों से योगदान करते हैं:
- नेतृत्व और जागरूकता: CSOs लोगों के बीच संवैधानिक अधिकारों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये कार्य करते हैं। ये समुदायों को उनके अधिकारों एवं ज़िम्मेदारियों के बारे में शिक्षित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं तथा यह सुनिश्चित करते हैं कि नागरिकों को उनके अधिकारों का दावा करने के लिये जागरूक और सशक्त बनाया जाए।
- उदाहरण: ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क (HRLN) भारत में एक CSOs है जो लोगों को उनके संवैधानिक अधिकारों के बारे में शिक्षित करने हेतु कानूनी साक्षरता शिविर, कार्यशालाएँ और सेमिनार आयोजित करता है।
- निगरानी और रिपोर्टिंग: CSOs संवैधानिक अधिकारों के साथ सरकार के अनुपालन की सक्रिय रूप से निगरानी करते हैं। ये प्रहरी के रूप में कार्य करते हुए उन नीतियों एवं कार्यों का मूल्यांकन करते हैं जिनसे नागरिक अधिकारों का उल्लंघन हो सकता है। CSOs नागरिक अधिकारों के उल्लंघनों की रिपोर्ट कर सकते हैं, संबंधित साक्ष्य प्रदान कर सकते हैं और इस संदर्भ में सुधारात्मक उपायों की वकालत कर सकते हैं।
- उदाहरण: राष्ट्रमंडल मानवाधिकार पहल (CHRI) एक CSOs है जो भारत सहित राष्ट्रमंडल देशों में मानवाधिकार की स्थिति पर नज़र रखता है। CHRI मानवाधिकार उल्लंघनों को प्रदर्शित करने और इसके संबंध में समाधान सुझाने के लिये रिपोर्ट, नीति विवरण तथा प्रेस विज्ञप्ति प्रकाशित करता है।
- नीति वकालत: CSOs नीति निर्धारण और विधायी प्रक्रियाओं को प्रभावित करने के लिये नागरिक अधिकारों के वकालत प्रयासों में संलग्न रहते हैं। चर्चाओं और परामर्शों में भाग लेकर ये संवैधानिक सिद्धांतों के अनुरूप कानूनों तथा नीतियों को आकार दे सकते हैं।
- उदाहरण: सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च (CPR) एक CSOs है जो शासन, शहरीकरण, पर्यावरण और अंतरराष्ट्रीय संबंधों जैसे विभिन्न विषयों पर नीति अनुसंधान एवं विश्लेषण में संलग्न रहता है।
- क्षमता निर्माण: CSOs अक्सर अपने संवैधानिक अधिकारों का प्रभावी ढंग से उपयोग करने के लिये समुदायों और व्यक्तियों की क्षमता निर्माण हेतु कार्य करते हैं। इसमें लोगों को उनके अधिकारों को समझने, उनकी रक्षा करने तथा उनकी वकालत करने के लिये सशक्त बनाने में प्रशिक्षण कार्यक्रम, कार्यशालाएँ एवं शैक्षिक पहलें महत्त्वपूर्ण भूमिकाएँ निभा सकती हैं।
- उदाहरण: एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) एक CSOs है जो भारत में लोकतंत्र तथा शासन में सुधार हेतु कार्य करता है। ADR मतदाता शिक्षा और जागरूकता अभियान चलाता है, चुनाव पर्यवेक्षकों एवं स्वयंसेवकों को प्रशिक्षित करता है तथा चुनावी उम्मीदवारों, राजनीतिक दलों व उनके अभियान से संबंधित वित्त पर जानकारी एकत्र करने के साथ-साथ उनका विश्लेषण भी करता है।
- सार्वजनिक लामबंदी: CSOs संवैधानिक अधिकारों हेतु लोगों का समर्थन जुटाने के साथ नागरिक अधिकारों से संबंधित मुद्दों पर ध्यान आकर्षित करने और सकारात्मक बदलाव के क्रम में दबाव बनाने हेतु अभियान तथा विरोध प्रदर्शन कर सकते हैं। इन अधिकारों की सुरक्षा हेतु सरकारों को जवाबदेह बनाने के लिये सार्वजनिक एकजुटता शक्तिशाली उपकरण है।
- उदाहरण: राईट टू फूड कैम्पेन एक CSOs है जो भारत में संवैधानिक अधिकार के रूप में भोजन के अधिकार की मांग करने के लिये लोगों को संगठित करता है। यह मनरेगा, ICDS और PDS जैसी खाद्य सुरक्षा योजनाओं के कार्यान्वयन की मांग के लिये रैलियाँ, मार्च तथा भूख हड़ताल में संलग्न होता है।
- अंतरराष्ट्रीय वकालत: कुछ CSOs अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकारों की वकालत में संलग्न होते हैं और मानवाधिकारों के उल्लंघन को उजागर करने के लिये अंतरराष्ट्रीय प्लेटफॉर्म का लाभ उठाते हैं। इससे संवैधानिक अधिकारों को बनाए रखने के लिये सरकारों पर भरी पड़ सकता है।
- उदाहरण: एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया एक CSOs है जो भारत और विश्व भर में मानवाधिकारों की रक्षा के साथ इन्हें बढ़ावा देने के लिये कार्य करता है। यह न्यायेतर हत्याओं, यातना, मृत्युदंड, महिलाओं के खिलाफ हिंसा एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे मुद्दों पर अभियान चलाता है।
- सरकारी संस्थानों के साथ सहयोग: CSOs संवैधानिक अधिकारों के कार्यान्वयन को मज़बूत करने के लिये सरकारी एजेंसियों एवं संस्थानों के साथ सहयोग कर सकते हैं। एक साथ कार्य करके CSOs और सरकारी निकाय मानव अधिकारों की रक्षा करने के साथ इन्हें बढ़ावा देने हेतु प्रभावी रणनीति तथा नीतियाँ विकसित कर सकते हैं।
- उदाहरण: नेशनल केम्पेन फॉर दलित ह्यूमन राइट्स (NCDHR) एक CSOs है जो भारत में दलितों के खिलाफ होने वाले जातिगत भेदभाव तथा हिंसा को समाप्त करने के लिये कार्य करता है।
निष्कर्ष:
नागरिक समाज संगठन सकारात्मक परिवर्तन के समर्थक, परीक्षक, शिक्षक और सुविधाप्रदाता के रूप में कार्य करके नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों के कार्यान्वयन में बहुआयामी तथा महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उनकी भागीदारी यह सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण है कि संवैधानिक अधिकारों की मान्यता को केवल कागज़ी कार्यवाही तक सीमित न रखा जाए, बल्कि इन्हें व्यवहार में भी प्रभावी ढंग से लागू और संरक्षित किया जाए।