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डेली न्यूज़

  • 25 Nov, 2023
  • 44 min read
एथिक्स

भौतिकवाद

प्रिलिम्स के लिये:

भौतिकवाद, लोकायत, चार्वाक, भौतिकवाद, और जड़वाद, अस्तित्व की भौतिक प्रकृति, डेमोक्रिटस और एपिकुरस का परमाणुवाद

मेन्स के लिये:

भौतिकवाद, भारत और विश्व के नैतिक विचारकों और दार्शनिकों का योगदान

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

भौतिकवाद, जो प्राचीन उत्पत्ति से जुड़ा है, एक सुसंगत ढाँचा प्रदान करता है जो अस्तित्व के आधार के रूप में पदार्थ पर केंद्रित है।

भौतिकवाद क्या है?

  • परिचय:
    • भौतिकवाद का दावा है कि सारा अस्तित्व (Existence) पदार्थ से उत्पन्न होता है और मूल रूप से पदार्थ से बना है।
    • यह गैर-भौतिक संस्थाओं के अस्तित्व का खंडन करता है, अन्य सभी घटनाओं, यहाँ तक ​​कि बुद्धि को अंतर्निहित प्राकृतिक कानूनों का पालन करते हुए पदार्थ के परिवर्तन या उत्पाद के रूप में मानता है।
  • ऐतिहासिक संदर्भ:
    • भौतिकवाद की जड़ें दुनिया भर के प्राचीन दर्शनों में हैं। भारत में इसे अन्य नामों के अलावा लोकायत (Lokāyata), चार्वाक (Chárváka), भौतिकवाद (Bhautikvad) और जड़वाद (Jadavāda) में अभिव्यक्ति मिली।
      • लोकायत, जिसका अर्थ है लोगों का दर्शन, सांसारिकता और सहज भौतिकवाद पर ज़ोर देता है। लोकायत के प्रणेता बृहस्पति, अजिता और जाबालि जैसे दार्शनिक थे
      • चार्वाक सुखवाद पर प्रकाश डालता है, यह विश्वास कि आनंद जीवन में सबसे महत्त्वपूर्ण चीज़ है।
      • भौतिकवाद अस्तित्व की भौतिक या भौतिक प्रकृति पर केंद्रित है।
      • जड़वाद अस्तित्व की भौतिक जड़ों की तलाश करने के भौतिकवादियों के झुकाव को दर्शाता है।
    • प्रारंभिक यूनानी दार्शनिकों ने भी विशेष रूप से डेमोक्रिटस और एपिकुरस के परमाणुवाद के माध्यम से ब्रह्मांड के लिये भौतिकवादी स्पष्टीकरण का अनुसरण किया।
    • विभिन्न संस्कृतियों में विभिन्न नाम भौतिकवादी दर्शन को दर्शाते हैं।
  • विचार का विकास:
    • प्राचीन भौतिकवादियों ने चार शास्त्रीय तत्त्वों (महाभूतों) पर विचार किया तथा 'स्वभाव' अथवा स्व-निर्माण के माध्यम से वास्तविकता की विविधता को समझाया।
      • चार मूलभूत तत्त्व अग्नि (Fire), अप् (Water), वायु (Wind) तथा पृथ्वी (Earth) माने गए।
    • उन्होंने दैवीय विधान को अस्वीकार कर दिया तथा एकल दृश्यमान/प्रत्यक्ष वास्तविकता से परे किसी भी संसार के अस्तित्व से इनकार किया, जिसका अर्थ है कि वे घटनाओं या ब्रह्मांड की नियति को निर्देशित करने वाली उच्च शक्ति में विश्वास नहीं करते थे।
    • उन्होंने एकमात्र वास्तविकता के रूप में अनुभवजन्य वास्तविकता के महत्त्व पर ज़ोर देते हुए प्रत्यक्ष रूप से अवलोकित अथवा अनुभव किये जा सकने वाले संसार से परे किसी भी अन्य संसार के अस्तित्व को खारिज़ किया।
  • भौतिकवाद की नैतिकता:
    • कथित तौर पर भोगी जीवनशैली को बढ़ावा देने के लिये भौतिकवाद की नैतिकता को आलोचना का सामना करना पड़ा, जैसा कि संस्कृत की उक्ति "यावत् जीवेत् सुखं जीवेत्" में परिलक्षित होता है, जिसका अर्थ है "जब तक आप जीवित हैं, सुख से जिएँ"
    • भौतिकवाद ने किसी भी सदाचार अथवा नैतिक सिद्धांतों को स्वीकार नहीं किया जो धार्मिक अथवा आध्यात्मिक सिद्धांतों से प्राप्त हुए थे।
    • भौतिकवाद ने नैतिकता के अस्तित्व से इनकार नहीं किया अपितु तर्क दिया कि नैतिकता मानवीय तर्क तथा अनुभव पर आधारित होनी चाहिये एवं नैतिकता का लक्ष्य स्वयं व दूसरों के लिये आनंद को अधिकतम करना एवं पीड़ा को कम करना होना चाहिये।

भौतिकवाद का दार्शनिक महत्त्व क्या है?

  • भौतिकवाद एक व्यापक विश्व दृष्टिकोण प्रदान करता है जो अनुभवजन्य अवलोकन और अस्तित्व को नियंत्रित करने वाले प्राकृतिक कानूनों पर ज़ोर देता है।
  • यह धार्मिक हठधर्मिता को चुनौती देता है और मूर्त, अवलोकन योग्य घटनाओं के आधार पर वास्तविकता की आलोचनात्मक विश्लेषण को प्रोत्साहित करता है।
  • इसने सामाजिक मानदंडों और परंपराओं को चुनौती देते हुए विचार की स्वतंत्रता का समर्थन किया।
  • समय के साथ प्रमुख दर्शन में बदलाव के बावजूद भौतिकवादी विचार कायम हैं और समकालीन वैज्ञानिक जाँच को आकार दे रहे हैं, विशेषकर वास्तविकता की मौलिक प्रकृति को समझने में।
  •  इसका प्रभाव संस्कृतियों और युगों तक फैला हुआ है, जो ब्रह्मांड की तर्कसंगत खोज को प्रोत्साहित करता है और अनुभवजन्य अवलोकन तथा समझ के पक्ष में अलौकिक व्याख्याओं को खारिज़ करता है।

सामाजिक न्याय

चाइल्ड पोर्नोग्राफी

प्रिलिम्स के लिये:

चाइल्ड पोर्नोग्राफी, बाल दुर्व्यवहार, बाल यौन शोषण सामग्री (CSAM), राष्ट्रीय अपराध रिपोर्ट ब्यूरो (NCRB), यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012, बाल दुर्व्यवहार रोकथाम और जाँच इकाई, किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2021

मेन्स के लिये:

चाइल्ड पोर्नोग्राफी, कमज़ोर वर्गों की सुरक्षा और बेहतरी के लिये गठित तंत्र, कानून, संस्थाएँ एवं निकाय

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में यूरोपीय संघ के सांसदों ने ऑनलाइन चाइल्ड पोर्नोग्राफी/बाल अश्लीलता चित्रण की पहचान करने और उसे हटाने के लिये अल्फाबेट की Google, मेटा और अन्य ऑनलाइन सेवाओं की आवश्यकता वाले नियमों का मसौदा तैयार करने पर सहमति व्यक्त की, जिसमें कहा गया कि इससे एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन प्रभावित नहीं होगा।

  • वर्ष 2022 में यूरोपीय आयोग द्वारा प्रस्तावित बाल यौन शोषण सामग्री (CSAM) पर मसौदा नियम, ऑनलाइन सुरक्षा उपायों के समर्थक और निगरानी के विषय में चिंतित गोपनीयता कार्यकर्त्ताओं के बीच विवाद का विषय रहा है।
  • यूरोपीय आयोग ने तकनीकी कंपनियों द्वारा स्वैच्छिक पहचान और रिपोर्टिंग सिस्टम की अपर्याप्तता को संबोधित करते हुए CSAM की पहचान करने तथा उसे हटाने के लिये ऑनलाइन सेवाओं की आवश्यकता वाले नियमों का प्रस्ताव रखा।

चाइल्ड पोर्नोग्राफी/बाल अश्लीलता चित्रण क्या है?

  • परिचय:
    • चाइल्ड पोर्नोग्राफी से तात्पर्य स्पष्टतः नाबालिगों से जुड़ी यौन सामग्री के निर्माण, वितरण या परिग्रह से है। भारत और विश्व स्तर पर यह गंभीर प्रभाव वाला एक जघन्य अपराध है, जो बच्चों के यौन शोषण और उनसे दुर्व्यवहार जारी रखता है।
    • ऑनलाइन चाइल्ड पोर्नोग्राफी डिजिटल शोषण की अभिव्यक्ति है, जो डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से नाबालिगों से जुड़ी स्पष्ट यौन सामग्री के उत्पादन, वितरण या परिग्रह को संदर्भित करती है।
    • यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2019 चाइल्ड पोर्नोग्राफी को स्पष्ट तौर पर किसी बच्चे से जुड़े यौन आचरण के किसी भी दृश्य चित्रण के रूप में परिभाषित करता है जिसमें फोटोग्राफ, वीडियो, डिजिटल या कंप्यूटर से उत्पन्न छवियाँ शामिल होती हैं जो वास्तविक बच्चे से अप्रभेद्य हैं। 
  • भारतीय परिदृश्य:
    • चाइल्ड पोर्नोग्राफी के मामलों में बढ़ोतरी भारत में ऑनलाइन बाल यौन शोषण की गंभीर स्थिति को दर्शाती है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Records Bureau-NCRB) 2021 की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020 में चाइल्ड पोर्नोग्राफी के 738 मामले थे जो वर्ष 2021 में बढ़कर 969 हो गए थे।   
  • प्रभाव:
    • मनोवैज्ञानिक प्रभाव: पोर्न बच्चों पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव डालता है। यह अवसाद, क्रोध तथा चिंता से संबंधित है। इससे मानसिक पीड़ा हो सकती है। इसका प्रभाव बच्चों के दैनिक कामकाज़, उनकी जैविक क्रियाओं (Biological Clock), कार्य एवं सामाजिक संबंधों पर भी पड़ता है।
    • कामुकता पर प्रभाव: इसे नियमित रूप से देखा जाना यौन संतुष्टि और यौन उत्तेजना की भावना उत्पन्न करता है, जिससे वास्तविक जीवन में भी समान कृत्य करने की इच्छा उत्पन्न होती है।
    • यौन व्यसन: कुछ विशेषज्ञों के अनुसार, पोर्नोग्राफी एक व्यसन की भाँति की तरह है। यह मस्तिष्क पर वैसा ही प्रभाव उत्पन्न करता है जैसा नियमित रूप से नशीली दवाओं अथवा शराब के सेवन से होता है।
    • व्याहारिक प्रभाव: किशोरों में पोर्नोग्राफी का उपयोग, खासकर पुरुषों के मामले में, लैंगिक रूढ़िवादिता में मज़बूत विश्वास से जुड़ा है। जो पुरुष किशोर अक्सर पोर्नोग्राफी देखते हैं, उनके द्वारा महिलाओं को सेक्स ऑब्जेक्ट के रूप में देखे जाने की अधिक संभावना होती है।
      • महिलाओं के खिलाफ यौन उत्पीड़न और हिंसा को प्रोत्साहित करने वाले विचारों को पोर्नोग्राफी द्वारा प्रबलित किया जा सकता है।

पोर्नोग्राफी से निपटने में क्या चुनौतियाँ हैं?

  • उच्च वर्ग के बच्चों की तुलना में निम्न वर्ग के बच्चों में पोर्नोग्राफी का प्रभाव अलग होता है। कोई भी एकल दृष्टिकोण समस्या को प्रभावी ढंग से हल में सक्षम नहीं होगा।
  • भारत में सेक्स को नकारात्मक (कुछ ऐसा जिसे छिपाया जाना चाहिये) रूप में देखा जाता है। सेक्स के संबंध में कोई स्वस्थ पारिवारिक संवाद नहीं होता है। इससे बच्चा बाहर से सीखता है और उसे पोर्नोग्राफी की लत लग जाती है।
  • एजेंसियों के लिये चाइल्ड पोर्नोग्राफी की गतिविधियों का पता लगाना और उन पर प्रभावी ढंग से निगरानी रखना बहुत मुश्किल है।
  • नियमित रूप से वेबसाइट्स और अमेजॅन प्राइम, नेटफ्लिक्स, हॉटस्टार इत्यादि जैसी OTT (ओवर द टॉप) सेवाओं पर अश्लील सामग्री की उपलब्धता से गैर-अश्लील तथा अश्लील सामग्री के बीच अंतर करना मुश्किल हो जाता है।

बच्चों के साथ अश्लीलता और शोषण को रोकने के लिये भारत की क्या पहलें हैं?

आगे की राह

  • चाइल्ड पोर्न पर तत्काल प्रतिबंध लगाए जाने की आवश्यकता है।
  • उदाहरण के लिये सामान्यतः किसी बच्चे का पहली बार पोर्न से संपर्क आकस्मिक होता है। इंटरनेट पर अन्य चीज़ों को ब्राउज़ करते समय विज्ञापन के रूप में, सरकार को इस तरह के आकस्मिक जोखिम को रोकने के लिये तकनीकी समाधान खोजने का प्रयास करना चाहिये।
  • जागरूकता के साथ यौन शिक्षा बहुत ज़रूरी है, इसलिये स्कूलों में इसे अनिवार्य किया जाना चाहिये। माता-पिता और शिक्षकों को आधुनिक प्रौद्योगिकी में बच्चों के साथ व्यवहार करने में कुशल होना चाहिये।

जैव विविधता और पर्यावरण

अंटार्कटिक ओज़ोन छिद्र

प्रिलिम्स के लिये:

अंटार्कटिक ओज़ोन छिद्र, मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल, ओज़ोन क्षरण, पराबैंगनी (UV) विकिरण, क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFC)

मेन्स के लिये:

अंटार्कटिक ओज़ोन छिद्र, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण

स्रोत: डाउन टू अर्थ 

चर्चा में क्यों?

नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन के अनुसार, विगत चार वर्षों में अंटार्कटिक ओज़ोन छिद्र का आकार बड़े पैमाने पर बढ़ गया है।

अध्ययन के प्रमुख बिंदु क्या हैं?

  • ओज़ोन क्षरण:
    • अंटार्कटिक ओज़ोन छिद्र का निरंतर विस्तार हो रहा है तथा हाल के वर्षों में इसकी परत में विरलन हुआ है, जो वर्ष 2000 के दशक के बाद से देखी गई अपेक्षित पुनर्प्राप्ति प्रवृत्ति के विपरीत है।
    • छिद्र के केंद्र में ओज़ोन की सांद्रता गंभीर रूप से कम हो गई है, जो ओज़ोन परत के गंभीर रूप से पतले होने का संकेत देती है।
      • मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल में उल्लिखित प्रयासों के बावजूद ओज़ोन छिद्र के मूल में ओज़ोन की सांद्रता वर्ष 2004 से वर्ष 2022 तक 26% कम हो गई है, जिसका उद्देश्य ओज़ोन परत का क्षरण करने वाले मानव-जनित रसायनों को कम करना था।
  • ध्रुवीय भँवर के प्रभाव: 
    • अंटार्कटिक ओज़ोन छिद्र ध्रुवीय भँवर के भीतर मौजूद है, समताप मंडल में एक गोलाकार हवा का पैटर्न जो शीत ऋतु के दौरान बनता है और वसंत ऋतु तक बना रहता है।
    • इस भंवर के भीतर मेसोस्फीयर (समतापमंडल के ऊपर वायुमंडलीय परत) से अंटार्कटिक हवा बहाव समतापमंडल में होता है। हवा अतिक्रमणकारी प्राकृतिक रासायनिक पदार्थ (उदाहरण के लिये नाइट्रोजन डाइऑक्साइड) लाती है जो अक्तूबर में ओज़ोन प्रक्रिया को प्रभावित करती है।
  • ओज़ोन रिक्तीकरण को प्रभावित करने वाले कारक:
    • तापमान, हवा के पैटर्न, वनाग्नि और ज्वालामुखी विस्फोटों से निकलने वाले एरोसोल तथा सौर चक्र में परिवर्तन जैसी मौसम संबंधी स्थितियों की भूमिका ने अंटार्कटिक ओज़ोन छिद्र के आकार एवं व्यवहार को प्रभावित किया।
  • सिफारिश:
    • समतापमंडल से हवा के अवतरण और ओज़ोन प्रक्रिया पर इसके विशिष्ट प्रभावों को समझने के लिये और अधिक शोध की आवश्यकता है।
    • इन तंत्रों की जाँच से अंटार्कटिक ओज़ोन छिद्र के भविष्य के व्यवहार पर प्रकाश पड़ने की संभावना है।

ओज़ोन छिद्र क्या है?

  • परिचय:
    • ओज़ोन छिद्र ओज़ोन परत की अत्यधिक कमी को संदर्भित करता है- पृथ्वी के समताप मंडल में एक क्षेत्र जिसमें ओज़ोन अणुओं की उच्च सांद्रता होती है।
    • इस परत में ओज़ोन अणु (O3) पृथ्वी को सूर्य से हानिकारक पराबैंगनी (UV) विकिरण से बचाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
    • ओज़ोन परत की कमी के कारण ओज़ोन सांद्रता में अत्यधिक कमी वाले क्षेत्र का निर्माण होता है, जो प्राय:अंटार्कटिक के ऊपर देखा जाता है।
    • यह घटना मुख्यतः दक्षिणी गोलार्द्ध के वसंत महीनों (अगस्त से अक्तूबर) के दौरान होती है, हालाँकि यह वैश्विक कारकों से भी प्रभावित हो सकती है।
  • ओज़ोन छिद्र के कारण:
    • यह कमी मानव-जनित रसायनों के कारण होती है जिन्हें ओज़ोन-घटने वाले पदार्थ (ODS) के रूप में जाना जाता है, जिसमें क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFCs), हैलोन, कार्बन टेट्राक्लोराइड और मिथाइल क्लोरोफॉर्म शामिल हैं।
    • ये पदार्थ एक बार वायुमंडल में छोड़े जाने के बाद समताप मंडल में बढ़ जाते हैं, जहाँ वे सूर्य की पराबैंगनी विकिरण के कारण टूट जाते हैं, जिससे क्लोरीन तथा ब्रोमीन परमाणु निकलते हैं जो ओज़ोन अणुओं को नष्ट कर देते हैं।
      • अंटार्कटिक ओज़ोन छिद्र इस घटना का सबसे प्रसिद्ध और गंभीर उदाहरण है। इसकी विशेषता ओज़ोन स्तर में अत्यधिक कमी है, जिससे हानिकारक UV विकिरण की बढ़ी हुई मात्रा पृथ्वी की सतह तक पहुँचती है।
  • प्रभाव:
    • बढ़ी हुई UV विकिरण की मात्रा मनुष्यों के लिये स्वास्थ्य जोखिम पैदा करती है, जिसमें त्वचा कैंसर, मोतियाबिंद और कमज़ोर प्रतिरक्षा प्रणाली की उच्च दर शामिल है।
    • UV विकिरण विभिन्न जीवों और पारिस्थितिक तंत्रों को नुकसान पहुँचा सकता है। ओज़ोन रिक्तीकरण अप्रत्यक्ष रूप से जलवायु परिवर्तन को प्रभावित कर सकता है। ओज़ोन रिक्तीकरण के कारण समतापमंडल में परिवर्तन, वायुमंडलीय परिसंचरण पैटर्न को प्रभावित कर सकता है, जो संभावित रूप से कुछ क्षेत्रों में मौसम और जलवायु को प्रभावित कर सकता है।

ओज़ोन क्षरण को रोकने के लिये वैश्विक पहलें क्या हैं?

  • ओज़ोन परत के संरक्षण के लिये वर्ष 1985 का वियना कन्वेंशन एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता था जिसमें संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों ने समतापमंडलीय ओज़ोन परत को होने वाले नुकसान को रोकने के मूलभूत महत्त्व को मान्यता दी।
  • ओज़ोन परत को नुकसान पहुँचाने वाले पदार्थों पर वर्ष 1987 के मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल और इसके बाद के संशोधनों पर मानवजनित (ODS) तथा कुछ हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFC) की खपत एवं उत्पादन को नियंत्रित करने के लिये बातचीत की गई।
    • ओज़ोन क्षरणकारी पदार्थों, मुख्य रूप से क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFC) के उपयोग को नियंत्रित करने के लिये वर्ष 1987 में 197 पक्षों द्वारा प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किये गए थे। मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल कई औद्योगिक क्षेत्रों में पदार्थों, पहले हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन (HCFC) और फिर HFC, के प्रतिस्थापन के विकास से संबंधित है।
    • जबकि HFC का समतापमंडलीय ओज़ोन पर केवल मामूली प्रभाव पड़ता है, कुछ HFC शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैसें (GHG) हैं।
  • मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल में  किगाली संशोधन, 2016 को अपनाने से कुछ HFC के उत्पादन और खपत में कमी आएगी तथा अनुमानित वैश्विक वृद्धि एवं संबंधित जलवायु परिवर्तन से बचा जा सकेगा।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा एक, ओज़ोन का अवक्षय करने वाले पदार्थों के प्रयोग पर नियंत्रण और उन्हें चरणबद्ध रूप से प्रयोग से बाहर करने के मुद्दे से संबंद्ध है? (2015)

(a) ब्रेटन वुड्स सम्मेलन
(b) मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल
(c) क्योटो प्रोटोकॉल
(d) नागोया प्रोटोकॉल

उत्तर: (b) 

व्याख्या: 

  • ब्रेटन वुड्स सम्मेलन को आधिकारिक तौर पर संयुक्त राष्ट्र मौद्रिक और वित्तीय सम्मेलन (United Nations Monetary and Financial Conference) के रूप में जाना जाता है। वर्ष 1944 तक 44 देशों के प्रतिनिधि इस सम्मलेन में शामिल हुए थे। इसका तात्कालिक उद्देश्य द्वितीय विश्वयुद्ध एवं विश्वव्यापी संकट से जूझ रहे देशों की मदद करना था।
    • सम्मेलन की दो प्रमुख उपलब्धियाँ- अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और अंतर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक (IBRD) की स्थापना थीं।
  • मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल ओज़ोन को कम करने वाले पदार्थों के उपयोग को समाप्त करके पृथ्वी की ओज़ोन परत की रक्षा के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण समझौता है। 15 सितंबर, 1987 को अपनाया गया यह प्रोटोकॉल अब तक की एकमात्र संयुक्त राष्ट्र संधि है जिसे पृथ्वी पर संयुक्त राष्ट्र के सभी 197 सदस्य देशों द्वारा अनुमोदित किया गया है।
  • क्योटो प्रोटोकॉल UNFCCC से जुड़ा एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है, जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बाध्यकारी GHG (ग्रीनहाउस गैस) उत्सर्जन में कमी के लक्ष्य निर्धारित करके पार्टियों के लिये प्रतिबद्धता सुनिश्चित करता है।
    • क्योटो प्रोटोकॉल 11 दिसंबर, 1997 को क्योटो, जापान में अपनाया गया और 16 फरवरी, 2005 से प्रभाव में आया।
    • प्रोटोकॉल के कार्यान्वयन के लिये विस्तृत नियमों को वर्ष 2001 में मराकेश (Marrakesh), मोरक्को में CoP-7 के रूप में अपनाया गया था और इसे मराकेश समझौते के रूप में संदर्भित किया गया था।
    • भारत ने क्योटो प्रोटोकॉल की दूसरी प्रतिबद्धता अवधि (2008-2012) की पुष्टि की है, जो देशों के लिये ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को रोकने हेतु प्रतिबद्धता तय करती है और जलवायु कार्रवाई पर अपने रुख की पुष्टि करती है।
  • आनुवंशिक संसाधनों तक पहुँच पर नागोया प्रोटोकॉल और उनके उपयोग से उत्पन्न होने वाले लाभों का उचित एवं न्यायसंगत साझाकरण जैविक विविधता पर कन्वेंशन के तीन उद्देश्यों में से एक के प्रभावी कार्यान्वयन हेतु पारदर्शी कानूनी ढाँचा प्रदान करता है। साथ ही जैवविविधता के सतत् उपयोग को बढ़ावा देने, आनुवंशिक संसाधनों के उपयोग से होने वाले लाभों के उचित तथा न्यायसंगत बँटवारे का प्रावधान करता है। भारत ने वर्ष 2011 में इस प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किये।
  • अतः विकल्प (b) सही है।

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

दूसरा CII इंडिया नॉर्डिक-बाल्टिक बिज़नेस कॉन्क्लेव 2023

प्रिलिम्स के लिये:

दूसरा CII इंडिया नॉर्डिक-बाल्टिक बिज़नेस कॉन्क्लेव 2023, नॉर्डिक बाल्टिक आठ (NB8), वैश्विक आपूर्ति शृंखला लचीलेपन को बढ़ाने के लिये ब्लू इकॉनमी, नवीकरणीय ऊर्जा, G20 के माध्यम से ग्लोबल साउथ, भारतीय उद्योग परिसंघ 

मेन्स के लिये:

दूसरा CII इंडिया नॉर्डिक-बाल्टिक बिज़नेस कॉन्क्लेव 2023, द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह और भारत से जुड़े समझौते और/या भारत के हितों को प्रभावित करने वाले समझौते

स्रोत: पी.आई.बी.

चर्चा में क्यों?

हाल ही में दूसरा भारतीय उद्योग परिसंघ (Confederation of Indian Industries- CII) भारत नॉर्डिक-बाल्टिक बिज़नेस कॉन्क्लेव 2023 नई दिल्ली में आयोजित किया गया था, जिसका उद्देश्य भारत और नॉर्डिक-बाल्टिक आठ (Nordic Baltic Eight- NB8) देशों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना था, जो नवाचार तथा प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में प्रगति के लिये जाने जाते हैं।

नॉर्डिक बाल्टिक आठ (NB8) क्या है?

  • NB8 एक क्षेत्रीय सहयोग प्रारूप है जो नॉर्डिक देशों और बाल्टिक राज्यों को एक साथ लाता है।
    • इसमें पाँच नॉर्डिक देश शामिल हैं: डेनमार्क, फिनलैंड, आइसलैंड, नॉर्वे और स्वीडन, साथ ही तीन बाल्टिक राज्य: एस्टोनिया, लातविया और लिथुआनिया।
  • समूह ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक संबंधों को साझा करता है, राजनीतिक, आर्थिक, व्यापार, सुरक्षा तथा संस्कृति सहित विभिन्न क्षेत्रों में सहभागिता और सहयोग को बढ़ावा देता है।
  • जबकि नॉर्डिक देश उत्तरी यूरोप में स्थित हैं और शासन, सामाजिक प्रणालियों तथा मूल्यों में समानताएँ साझा करते हैं, बाल्टिक राज्य उत्तरपूर्वी यूरोप में स्थित हैं एवं उनकी अद्वितीय ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और भू-राजनीतिक स्थिति है।

कॉन्क्लेव की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • खाद्य प्रसंस्करण एवं स्थिरता: 
    • चर्चाएँ मुख्य रूप से भारत और नॉर्डिक-बाल्टिक देशों के बीच अनुभवों, नवाचारों तथा सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करके खाद्य प्रणालियों को स्थिरता की दिशा के परिवर्तन पर केंद्रित थीं।
    • सहयोग का उद्देश्य आर्थिक, सामाजिक तथा पर्यावरणीय आयामों को शामिल करते हुए समग्र दृष्टिकोण के साथ वैश्विक चुनौतियों का समाधान करना है।
  • ब्लू इकॉनमी एवं समुद्री सहयोग: 
    • वैश्विक आपूर्ति शृंखला लचीलेपन को बढ़ाने, टिकाऊ समुद्री प्रथाओं को बढ़ावा देने, नवाचार को प्रोत्साहित करने एवं भारत और नॉर्डिक-बाल्टिक देशों के बीच अधिक समुद्री सहयोग को बढ़ावा देने के लिये ब्लू इकॉनमी के कुशल प्रबंधन पर ज़ोर दिया गया।
  • नवीकरणीय ऊर्जा एकीकरण: 
    • विचार-विमर्श नवीकरणीय ऊर्जा एकीकरण, संसाधनों की पहचान, नीति समर्थन, ऊर्जा भंडारण और उन्नत प्रौद्योगिकी पहल के लिये भारत के दबाव पर केंद्रित था।
    • इसका उद्देश्य स्वच्छ ऊर्जा से संबंधित प्रौद्योगिकियों की पहचान करने और उन्हें लागू करने में नवीन नॉर्डिक-बाल्टिक अर्थव्यवस्थाओं से समर्थन प्राप्त करना था।
  • उद्योग 5.0 में संक्रमण: 
    • सहयोग चर्चा विनिर्माण क्षेत्र में उत्पादकता एवं दक्षता बढ़ाने के लिये AI (कृत्रिम बुद्धिमत्ता), IoT तथा स्मार्ट विनिर्माण जैसी उन्नत तकनीकों का लाभ उठाने पर केंद्रित है।
    • इसका उद्देश्य यह पता लगाना था कि भारत और नॉर्डिक-बाल्टिक देशों के बीच सहयोग वर्ष 2047 तक भारत के विकसित राष्ट्र बनने के लक्ष्य में कैसे योगदान दे सकता है।
  • जलवायु कार्रवाई के लिये हरित वित्तपोषण: 
    • कॉन्क्लेव ने हरित और टिकाऊ परिवर्तन में जलवायु वित्त के महत्त्व पर प्रकाश डाला। चर्चा का उद्देश्य जलवायु कार्रवाई को आगे बढ़ाने में भारत और नॉर्डिक-बाल्टिक देशों के बीच अधिक सहयोग को बढ़ावा देने, वित्तपोषण एवं निवेश को बढ़ावा देने के लिये रणनीतियों और समाधानों की खोज करना था।
  • सूचना प्रौद्योगिकी और AI सहयोग: 
    • जटिल सामाजिक चुनौतियों से निपटने के लिये IT और AI का लाभ उठाने में भारत एवं नॉर्डिक-बाल्टिक देशों के बीच सहयोग के संभावित क्षेत्रों की खोज पर ज़ोर दिया गया। समावेशी AI और IT विकास को सक्षम करने के लिये कौशल विकास पहल पर भी चर्चा की गई।
  • लचीली आपूर्ति शृंखला और रसद:
    • चर्चाएँ भारत की लॉजिस्टिक्स नीति के अनुरूप कुशल और लचीली आपूर्ति शृंखला बनाने की आवश्यकता के इर्द-गिर्द घूमती रहीं। सम्मेलन का उद्देश्य यह पता लगाना था कि भारत और नॉर्डिक-बाल्टिक देश तकनीकी प्रगति करके वैश्विक मूल्य शृंखला को मज़बूत करने के लिये कैसे सहयोग कर सकते हैं।

भारत और नॉर्डिक-बाल्टिक देशों के बीच आर्थिक संबंध कैसे रहे हैं?

  • व्यापार और निवेश:
    • नॉर्डिक देशों से प्राप्त संचयी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) आपसी निवेश हितों को प्रदर्शित करते हुए एक महत्त्वपूर्ण आँकड़े तक पहुँच गया है।
      • NB 8 देशों के साथ भारत का संयुक्त वस्तु व्यापार वर्तमान में लगभग 7.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर है और वर्ष 2000 से वर्ष 2023 तक नॉर्डिक देशों से प्राप्त संचयी FDI 4.69 बिलियन अमेरिकी डॉलर है।
    • इसके अलावा भारत में 700 से अधिक नॉर्डिक कंपनियों और नॉर्डिक-बाल्टिक क्षेत्र में करीब 150 भारतीय कंपनियों की उपस्थिति द्विपक्षीय निवेश तथा व्यापार साझेदारी को दर्शाती है।
  • द्विपक्षीय सहयोग:
    • विभिन्न क्षेत्रों में विशिष्ट सहयोग और साझेदारियाँ स्थापित की गई है।
    • उदाहरणों में फिनलैंड के साथ संयुक्त साझेदारी, डेनमार्क के साथ जल समाधान, पवन ऊर्जा और कृषि पर ध्यान केंद्रित करने वाली हरित रणनीतिक साझेदारी तथा भू-तापीय ऊर्जा के दोहन में आइसलैंड के साथ संयुक्त परियोजनाएँ शामिल हैं।
  • क्षेत्रीय सहभागिता:
    • नवीकरणीय ऊर्जा, खाद्य प्रसंस्करण, रसद, IT, AI, समुद्री सहयोग तथा नीली अर्थव्यवस्था पहल जैसे क्षेत्रों में सहयोग को संयुक्त प्रयासों एवं निवेश के संभावित क्षेत्रों के रूप में पहचाना गया है।
    • नॉर्डिक-बाल्टिक देशों की तकनीकी विशेषज्ञता के साथ भारत के महत्त्वाकांक्षी नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों के संयोजन हेतु सहयोग के अवसर प्रदान करता है।
  • अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी तथा ध्रुवीय अनुसंधान:
    • आर्कटिक तथा अंटार्कटिक क्षेत्रों में संयुक्त अनुसंधान परियोजनाओं एवं अवसरों पर चर्चा के साथ अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी, भू-स्थानिक क्षेत्रों तथा ध्रुवीय और जलवायु अनुसंधान में सहयोग की संभावना है।
  • वैश्विक सहभागिता तथा भागीदारी:
    • भारत तथा नॉर्डिक-बाल्टिक देश दोनों सक्रिय रूप से वैश्विक साझेदारियों में संलग्न हैं, जैसे G20 के माध्यम से ग्लोबल साउथ के साथ भारत की भागीदारी, जो सतत् विकास के लिये समाधान खोजने में सहयोग के अवसर प्रदान करती है।
    • इसके अतिरिक्त विशेष रूप से अफ्रीका में संयुक्त विकास परियोजनाओं में साझेदारी, उनके सामूहिक वैश्विक पदचिह्न के विस्तार की क्षमता को दर्शाती है।

आगे की राह

  • व्यापारिक वस्तुओं तथा सेवाओं की सीमा में विविधता लाकर द्विपक्षीय व्यापार का विस्तार करने की आवश्यकता है। नवीकरणीय ऊर्जा, प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य सेवा, कृषि एवं विनिर्माण जैसे क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने से पारस्परिक विकास को बढ़ावा मिल सकता है। व्यापार बाधाओं को कम करना तथा बाज़ार पहुँच बढ़ाना महत्त्वपूर्ण होगा।
  • भारत तथा नॉर्डिक-बाल्टिक देशों के बीच निवेश को प्रोत्साहित एवं सुविधाजनक बनाना। परस्पर हित के क्षेत्रों में संयुक्त उद्यम, सहयोग एवं प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को बढ़ावा देना।
  • अनुकूल नीतियों, नियामक ढाँचे तथा व्यापार करने में सुगमता के माध्यम से निवेश के लिये अनुकूल तंत्र सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

चीन-अमेरिका के बीच संबंधों का बदलता परिदृश्य

प्रिलिम्स के लिये:

चीन-अमेरिका संबंधों की बदलती गतिशीलता, एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग (APEC), AI (कृत्रिम बुद्धिमत्ता), स्वच्छ ऊर्जा, विश्व व्यापार संगठन (WTO), दक्षिण चीन सागर, मानवाधिकार

मेन्स के लिये:

चीन-अमेरिका संबंधों की बदलती गतिशीलता, द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह तथा भारत से जुड़े समझौते अथवा भारत के हितों पर प्रभाव

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में चीन और अमेरिका ने अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग (APEC) शिखर सम्मेलन के मौके पर एक द्विपक्षीय बैठक की है, जिससे चीन-अमेरिका संबंधों में बदलती गतिशीलता के बारे में भारत की चिंता बढ़ गई है।

  • हाल के दशकों में चीन-अमेरिका संबंधों में महत्त्वपूर्ण बदलाव और जटिलताएँ प्रदर्शित हुई हैं, जो वर्तमान में सहयोग, प्रतिस्पर्द्धा तथा तनाव के मिश्रण को दर्शाती हैं।

बैठक की मुख्य बातें क्या हैं?

  • सहभागिता के नए क्षेत्र:
    • शिखर सम्मेलन में अमेरिका-चीन सहयोग के उभरते क्षेत्रों पर चर्चा हुई, विशेष रूप से कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) को विनियमित करने में, जो वैश्विक AI नियमों और तकनीकी प्रगति पर गहरा प्रभाव डाल सकता है।
  • ऊर्जा पर समझौता:
    • अमेरिका और चीन ने स्वच्छ ऊर्जा को तेज़ी से बढ़ाने, जीवाश्म ईंधन को विस्थापित करने और ग्रह को गर्म करने वाले उत्सर्जन को कम करने के लिये एक समझौते की घोषणा की।
      • कुल मिलाकर वे विश्व की ग्रीनहाउस गैसों का 38% हिस्सा हैं।
    • देश "कोयला, तेल और गैस उत्पादन के प्रतिस्थापन में तेज़ी लाने" के इरादे से "वर्ष 2030 तक वैश्विक स्तर पर नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करने के प्रयासों को आगे बढ़ाने" पर सहमत हुए।

हाल के वर्षों में चीन-अमेरिका संबंध कैसे रहे हैं?

  • हाल के वर्षों में अमेरिका ने अधिक टकरावपूर्ण रुख अपनाया, व्यापार युद्ध शुरू किया, चीनी तकनीकी कंपनियों को निशाना बनाया और चीन के क्षेत्रीय दावों को चुनौती दी। मानवाधिकार संबंधी चिंताओं ने चीन और हॉन्गकॉन्ग के बीच तनाव को बढ़ा दिया है, खासकर शिनजियांग के संदर्भ में।
  • जलवायु परिवर्तन जैसे वैश्विक मुद्दों पर सहयोग की मांग करते हुए अमेरिका ने विभिन्न मोर्चों, विशेषकर व्यापार, प्रौद्योगिकी और मानवाधिकारों पर सख्त रुख बनाए रखा है।

अमेरिका-चीन संबंधों में बदलाव पर भारत की चिंताएँ क्या हैं?

  • संभावित G-2 गतिशीलता:
    • भारत एशिया में एक प्रमुख चीन-अमेरिकी सहयोग (जिसे 'G-2' कहा जाता है) के उद्भव को लेकर सतर्क रहता है, जो अन्य वैश्विक शक्तियों को दरकिनार कर सकता है, जिससे भारत के सामरिक हित प्रभावित हो सकते हैं।
  • AI विनियमन में अमेरिका-चीन की भागीदारी:
    • भारत अमेरिका-चीन सहभागिता के नए क्षेत्रों, विशेषकर कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) को विनियमित करने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।
    • इस क्षेत्र में दोनों देशों के बीच संभावित समझ वैश्विक AI विनियमों तथा तकनीकी प्रगति को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकती है, जिसका भारत के तकनीकी परिदृश्य पर प्रभाव पड़ सकता है।
  • चीन के साथ अमेरिका के व्यापारिक संबंध:
    • अमेरिकी कारोबारी नेताओं को पुनः चीन में आकर्षित करने के चीन के प्रयास भारत के लिये चिंता बढ़ाते हैं। यदि यह सफल हुआ तो पश्चिमी पूंजी के लिये भारत के आकर्षण को कमज़ोर कर सकता है, जिससे आर्थिक सहभागिता एवं निवेश प्रभावित हो सकते हैं।
    • भारत यह मानकर संतुष्ट नहीं हो सकता कि 'चीन विकल्प' अब पश्चिमी व्यवसायों के लिये व्यवहार्य नहीं है।
    • पश्चिमी पूंजी के लिये भारत के प्रयास को बनाए रखना आवश्यक है, जिसके लिये पश्चिमी आर्थिक हितों के साथ अधिक उत्पादक रूप से जुड़ने के निरंतर प्रयासों की आवश्यकता है।
  • इंडो-पैसिफिक डायनेमिक्स और ताइवान मुद्दा:
    • क्षेत्रीय सुरक्षा चर्चाओं, विशेषकर ताइवान जैसे संवेदनशील मुद्दों पर पर्याप्त सफलताओं की कमी चिंता का विषय है।
    • भारत हिंद-प्रशांत पर अमेरिका-चीन वार्ता को करीब से देखता है और क्षेत्रीय स्थिरता एवं सुरक्षा गतिशीलता पर इसके निहितार्थ को समझता है।

आगे की राह

  • भारत को विशेष रूप से अमेरिका, चीन और रूस के बीच शक्ति संबंधों में बदलाव का लगातार आकलन करना चाहिये।
  • भारत का ध्यान अमेरिका के साथ अपने संबंधों को मज़बूत करने, रूस के साथ अपने दीर्घकालिक संबंधों को बनाए रखने और चीन के साथ कठिन संबंधों को प्रबंधित करने के लिये नई संभावनाओं का लाभ उठाने पर होना चाहिये।
  • भारत के आगे की राह में एक संतुलित और सक्रिय दृष्टिकोण शामिल है, जिसमें अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करते हुए तथा वैश्विक स्थिरता एवं प्रगति में सकारात्मक योगदान देते हुए बदलती विश्व व्यवस्था को नेविगेट करने के लिये वैश्विक साझेदारी, आर्थिक विकास, रणनीतिक पैंतरेबाज़ी व मजबूत कूटनीति का लाभ उठाया जा सकता है।

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