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भारतीय राजव्यवस्था

आईटी एक्ट की धारा 66ए

  • 13 Jul 2021
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये:

ई-कॉमर्स, सर्वोच्च न्यायालय

मेन्स के लिये: 

धारा 66A से संबंधित मुद्दे, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000

चर्चा में क्यों? 

सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, (Information Technology Act), 2000 की धारा 66A के इस्तेमाल पर केंद्र को नोटिस जारी किया है, जिसे कई वर्ष पहले खत्म कर दिया गया था।

  • वर्ष 2015 में न्यायालय ने श्रेया सिंघल मामले में दिये गए अपने निर्णय में आईटी एक्ट के प्रावधानों को असंवैधानिक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन करार दिया।
  • आईटी अधिनियम, 2000 इलेक्ट्रॉनिक संचार के माध्यम से लेन-देन को कानूनी मान्यता प्रदान करता है, जिसे ई-कॉमर्स (e-commerce) भी कहा जाता है। यह अधिनियम साइबर अपराध के विभिन्न रूपों पर जुर्माना/दंड भी आरोपित करता है।

प्रमुख बिंदु: 

धारा 66A के बारे में:

  • इसने पुलिस को इस संदर्भ में गिरफ्तारी करने का अधिकार दिया कि पुलिसकर्मी अपने  विवेक से ‘आक्रामक’ या ‘खतरनाक’ या बाधा, असुविधा आदि को परिभाषित कर सकते हैं।
  • इसमे कंप्यूटर या किसी अन्य संचार उपकरण जैसे- मोबाइल फोन या टैबलेट के माध्यम से संदेश भेजने पर सज़ा को निर्धारित किया है जिसमें दोषी को अधिकतम तीन वर्ष की जेल हो सकती है।

धारा 66A से संबंधित मुद्दे:

  • अपरिभाषित कार्यों  के आधार पर:
    • न्यायालय ने देखा कि धारा 66A की कमज़ोरी इस तथ्य में निहित है कि इसमें  अपरिभाषित कार्यों को अपराध का आधार बनाया गया था: जैसे कि "असुविधा, खतरा, बाधा और अपमान" (Inconvenience, Danger, Obstruction and Insult)। ये सभी संविधान के अनुच्छेद 19 जो कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी प्रदान करता है, के अपवादों की श्रेणी में नहीं आते हैं। 
  • विषयपरक प्रकृति:
    • न्यायालय ने यह भी देखा कि चुनौती यह पहचान करने में थी कि रेखा कहाँ खीची जाए। परंपरागत रूप से इसे उकसाने पर खींचा गया है, जबकि बाधा और अपमान जैसे शब्द व्यक्तिपरक हैं।
  • कोई प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपाय नहीं:
    • इसके अतरिक्त अदालत ने पाया था कि धारा 66A में समान उद्देश्य वाले कानून के अन्य वर्गों की तरह प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपाय नहीं थे जैसे- कार्रवाई करने से पहले केंद्र की सहमति प्राप्त करने की आवश्यकता।
      • स्थानीय अधिकारी स्वायत्त रूप से अपने राजनीतिक गुरुओं की मर्जी से आगे बढ़ सकते थे।
    • न्यायालय ने दो अन्य प्रावधानों यथा-आईटी अधिनियम की धारा 69ए और 79 को रद्द नहीं किया तथा कहा कि ये कुछ प्रतिबंधों के साथ लागू रह सकते हैं।
      • धारा 69ए किसी भी कंप्यूटर संसाधन के माध्यम से किसी भी जानकारी की सार्वजनिक पहुँच को अवरुद्ध करने के लिये निर्देश जारी करने की शक्ति प्रदान करती है और धारा 79 कुछ मामलों में मध्यस्थ के दायित्व से छूट प्रदान करती है।
  • मौलिक अधिकारों के विरुद्ध:
    • धारा 66A संविधान के अनुच्छेद 19 (भाषण की स्वतंत्रता) और 21 (जीवन का अधिकार) दोनों के विपरीत थी।
      • सूचना का अधिकार भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) द्वारा प्रदान किये गए भाषण और अभिव्यक्ति के अधिकार के अंतर्गत आता है।

आगे की राह

  • एक ऐसी प्रणाली से आगे बढ़ने की सख्त आवश्यकता है जहाँ न्यायिक निर्णयों के विषय में संचार ईमानदार अधिकारियों की पहल की दया पर हो, एक ऐसे तरीके से जो मानवीय त्रुटि पर निर्भर न हो। तात्कालिकता (Urgency) को बढ़ा-चढ़ाकर (Overstate) नहीं पेश किया जा सकता है।
  • असंवैधानिक कानूनों को लागू करना जनता के पैसे की बर्बादी है।
  • इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि जब तक इस बुनियादी दोष को दूर नहीं किया जाता है, तब तक कुछ व्यक्ति अपने जीवन के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित रहेंगे।
  • ये गरीबी और अज्ञानता तथा अपने अधिकारों की मांग करने में असमर्थता के अलावा किसी अन्य कारण से कानून विहीन गिरफ्तारी एवं नज़रबंदी का अपमान सहेंगे।

स्रोत: द हिंदू

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