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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

चीन-ताइवान संघर्ष

  • 12 Apr 2023
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये:

चीन-ताइवान संघर्ष, दक्षिण चीन सागर, ताइवान संबंध अधिनियम, वन चाइना पॉलिसी।

मेन्स के लिये:

ताइवान का महत्त्व, ताइवान मुद्दे पर भारत का रुख, भारत की एक्ट ईस्ट फॉरेन पॉलिसी।

चर्चा में क्यों? 

चीन ने घोषणा की है कि वह ताइवान की स्वतंत्रता प्राप्त करने के किसी भी प्रयास या किसी विदेशी हस्तक्षेप के खिलाफ लड़ने के लिये तैयार है।

  • संयुक्त राज्य अमेरिका में ताइवान के राष्ट्रपति की यात्रा के जवाब में चीन ने ताइवान के "सील ऑफ" का अनुकरण करते हुए सैन्य अभ्यास किया।
  • बड़े पैमाने पर अन्य देशों द्वारा मान्यता प्राप्त ताइवान खुद को एक संप्रभु देश के रूप में देखता है। हालाँकि चीन इसे एक अलग राज्य मानता है और द्वीप को अपने नियंत्रण में लाने के लिये दृढ़ संकल्पित है।

विवाद का बिंदु:

  • पृष्ठभूमि: 
    • चिंग राजवंश (Qing Dynasty) के दौरान ताइवान चीन के नियंत्रण में आ गया था, लेकिन वर्ष 1895 में चीन-जापान के पहले युद्ध में चीन की हार के बाद इसे जापान को दे दिया गया था। 
    • वर्ष 1945 में जापान के द्वितीय विश्व युद्ध हारने के बाद चीन ने ताइवान पर नियंत्रण कर लिया, लेकिन राष्ट्रवादियों और कम्युनिस्टों के बीच गृहयुद्ध के कारण राष्ट्रवादियों को 1949 में ताइवान से पलायन करना पड़ा।
    • चियांग काई-शेक के नेतृत्व में कुओमिन्तांग पार्टी ने कई वर्षों तक ताइवान पर शासन किया था और यह यहाँ अभी भी एक प्रमुख राजनीतिक दल है। चीन, ताइवान पर एक चीनी प्रांत के रूप में दावा करता है लेकिन ताइवान का तर्क है कि यह कभी भी पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (PRC) का हिस्सा नहीं था।
    • वर्तमान में चीन के राजनयिक दबाव के कारण केवल 13 देशों ने ही ताइवान को एक संप्रभु देश के रूप में मान्यता दी है।
      • अमेरिका, ताइवान की स्वतंत्रता का समर्थन करता है और ताइपे के साथ संबंध बनाए रखने के साथ उसे हथियार भी बेचता है लेकिन आधिकारिक तौर पर इसने PRC’s की "वन चाइना पॉलिसी" का समर्थन किया है। 
  • विवाद की पृष्ठभूमि: 
    • 1950 के दशक में PRC ने ताइवान के नियंत्रण वाले द्वीपों पर बमबारी की, जिससे अमेरिका ने ताइवान के क्षेत्रों की रक्षा के लिये फॉर्मोसा (ताइवान का पुराना नाम) संकल्प पारित किया था।
    • 1995-96 में चीन द्वारा ताइवान के आसपास के समुद्र में मिसाइलों का परीक्षण किया जाना, वियतनाम युद्ध के बाद इस क्षेत्र में अमेरिका की सक्रियता का प्रमुख कारण बना था। 
  • अद्यतन विकास: 
    • राष्ट्रपति त्साई के वर्ष 2016 में निर्वाचन के साथ ही ताइवान में स्वतंत्रता के तीव्र समर्थन के चरण की शुरुआत हुई जिसे वर्ष 2020 में इनके पुनः निर्वाचन के साथ और भी बल मिला।
    • स्वतंत्रता-समर्थक समूहों को चिंता है कि इनकी आर्थिक निर्भरता इनके लक्ष्यों में बाधा बन सकती है जबकि ताइवान और साथ ही चीन के कुछ समूहों को उम्मीद है कि लोगों से लोगों के बीच संपर्क बढ़ने से अंततः स्वतंत्रता-समर्थक समूहों का प्रभाव कमज़ोर होगा। 
    • पारिस्थितियों में असंतुलन के बावजूद भी ताइवान अपनी स्वतंत्रता को बरकरार रखने में सक्षम रहा है। जैसे-जैसे ताइवान आर्थिक रूप से विकसित होता जा रहा है, ऐसे में संभव है कि चीन और ताइवान के बीच तनाव बढ़ेगा ही, जिस कारण इस क्षेत्र में परिस्थितियों की सूक्ष्म निगरानी करना महत्त्वपूर्ण हो जाएगा। 

ताइवान का सामरिक महत्त्व: 

  • ताइवान चीन, जापान और फिलीपींस के निकट पश्चिमी प्रशांत महासागर में सामरिक रूप से एक महत्त्वपूर्ण स्थान पर स्थित है। इसका स्थान दक्षिणपूर्व एशिया और दक्षिण चीन सागर के लिये एक प्राकृतिक प्रवेश द्वार है जो वैश्विक व्यापार तथा सुरक्षा हेतु आवश्यक हैं।
  • ताइवान अर्द्धचालक सहित उच्च तकनीकी इलेक्ट्रॉनिक्स का एक प्रमुख उत्पादक है और यहाँ विश्व की कुछ सबसे बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियाँ भी स्थित है।
  • ताइवान विश्व के 60% से अधिक अर्द्धचालक और इसके सबसे उन्नत किस्म के 90% का उत्पादन करता है।
  • ताइवान के पास एक अत्याधुनिक और सक्षम सेना है जिसका उद्देश्य अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करना है।
  • एशिया-प्रशांत क्षेत्र और उससे आगे शक्ति संतुलन को प्रभावित करने की क्षमता के साथ ताइवान क्षेत्रीय और वैश्विक भू-राजनीति का एक प्रमुख केंद्र है।

ताइवान में अमेरिका का निहितार्थ: 

  • ताइवान का कई द्वीपों पर नियंत्रण है, जो अमेरिका के लिये अनुकूल क्षेत्र है और अमेरिका चीन की विस्तारवादी योजनाओं के खिलाफ लाभ उठाने के रूप में इसका उपयोग करना चाहता है।
  • अमेरिका का ताइवान के साथ आधिकारिक राजनयिक संबंध नहीं हैं, लेकिन द्वीप की रक्षा करने के साधन प्रदान करने हेतु अमेरिकी कानून (ताइवान संबंध अधिनियम, 1979) से बाध्य है। 
  • यह ताइवान के लिये अब तक की सबसे बड़ी हथियार डील है तथा एक 'सामरिक अस्पष्टता' नीति का पालन करता है। 

ताइवान मुद्दे पर भारत का रुख:

  • भारत-ताइवान संबंध:
    • भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ विदेश नीति के एक अंग के रूप में भारत ने ताइवान के साथ व्यापार और निवेश के साथ-साथ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, पर्यावरणीय मुद्दों और लोगों के पारस्परिक संपर्क के क्षेत्र में गहन सहयोग विकसित करने का प्रयास किया है।
    • औपचारिक राजनयिक संबंध नहीं होने के बावजूद भारत एवं ताइवान ने वर्ष 1995 से एक दूसरे की राजधानियों में प्रतिनिधि कार्यालय बनाए हुए हैं जो वास्तविक दूतावासों के रूप में कार्य करते हैं। इन कार्यालयों ने उच्चस्तरीय यात्राओं की सुविधा प्रदान की है तथा दोनों देशों के बीच आर्थिक और सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ाने में मदद की है। 
  •  वन चाइना पॉलिसी: 
    • भारत वन चाइना पॉलिसी का पालन करता है जो ताइवान को चीन के हिस्से के रूप में मान्यता देता है।
    • हालाँकि भारत को यह भी उम्मीद है कि चीन जम्मू और कश्मीर जैसे क्षेत्रों पर भारत की संप्रभुता को मान्यता देगा
    • भारत ने हाल ही में वन चाइना पॉलिसी के पालन का ज़िक्र करना बंद कर दिया है। यद्यपि ताइवान के साथ भारत के संबंध चीन के साथ अपने संबंधों के कारण प्रतिबंधित हैं, वह ताइवान को एक महत्त्वपूर्ण आर्थिक भागीदार तथा सामरिक सहयोगी के रूप में देखता है।
    • ताइवान के साथ भारत के बढ़ते संबंधों को क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने के कदम के रूप में देखा जा रहा है।

आगे की राह

  • रूस की अर्थव्यवस्था की तुलना में, चीनी अर्थव्यवस्था विश्व अर्थव्यवस्था में कहीं अधिक एकीकृत है। इसलिये, यदि चीन ताइवान पर आक्रमण करने की योजना बना रहा है, तो विशेष रूप से निकटतम यूक्रेन संकट को ध्यान में रखते हुए चीन बहुत सावधान रहेगा। 
  • चाहे कुछ भी हो, ताइवान पर चीन के आक्रमण के पश्चात एशिया की अलग तरीके से पहचान होगी, इसलिये ताइवान का मुद्दा सिर्फ नैतिकता से अधिक और एक सफल लोकतंत्र का विनाश करने के बारे में है।
  • इसके अतिरिक्त, जिस तरह चीन अपनी महत्त्वाकांक्षी परियोजना चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) के माध्यम से पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर (PoK) में अपनी भागीदारी बढ़ा रहा है, उसी तरह भारत वन चाइना पॉलिसी पर पुनर्विचार कर सकता है और ताइवान के साथ अपने संबंधों को चीन की मुख्य भूमि से अलग मान सकता है।    

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. "चीन अपने आर्थिक संबंधों और सकारात्मक व्यापार अधिशेष को एशिया में संभाव्य सैनिक शक्ति हैसियत को विकसित करने के लिये उपकरणों के रूप में इस्तेमाल कर रहा है"। इस कथन के प्रकाश में उसके पड़ोसी के रूप में भारत पर इसके प्रभाव की चर्चा कीजिये। (2017) 

स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस

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