नीतिशास्त्र
निष्क्रिय इच्छामृत्यु
प्रिलिम्स के लिये:निष्क्रिय इच्छामृत्यु, राष्ट्रीय स्वास्थ्य डिजिटल रिकॉर्ड, अनुच्छेद 21, लिविंग विल। मेन्स के लिये:निष्क्रिय इच्छामृत्यु के दिशा-निर्देशों में बड़े बदलाव, भारत में इच्छामृत्यु। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक बुजुर्ग दंपत्ति की उस याचिका को अस्वीकार कर दिया जिसमें उन्होंने अपने कोमाटोज (गंभीर रूप से अचेत) पुत्र, जो गिरने के कारण 11 वर्षों से बिस्तर पर है, के लिये "निष्क्रिय इच्छामृत्यु" (Passive Euthanasia) की मांग की थी।
- इस निर्णय ने भारत में इच्छामृत्यु के कानूनी और नैतिक आयामों पर चर्चा को पुनः शुरू कर दिया है।
मामले की पृष्ठभूमि क्या है?
- सर्वोच्च न्यायालय ने रोगी के माता-पिता की याचिका के विरुद्ध निर्णय सुनाते हुए कहा कि यह मामला निष्क्रिय इच्छामृत्यु के दायरे में नहीं आता क्योंकि मरीज किसी भी जीवन रक्षक प्रणाली पर नहीं है और उसे फीडिंग ट्यूब के जरिये पोषण प्राप्त हो रहा है।
- न्यायालय ने कहा कि उसके जीवन को समाप्त करने की अनुमति देना निष्क्रिय इच्छामृत्यु नहीं बल्कि सक्रिय इच्छामृत्यु होगी जो भारत में अवैध है।
निष्क्रिय इच्छामृत्यु (Passive Euthanasia) क्या है?
- इच्छामृत्यु :
- इच्छामृत्यु, रोगी की पीड़ा को सीमित करने के लिये उसके जीवन को समाप्त करने की प्रथा है।
- इच्छामृत्यु के प्रकार:
- सक्रिय इच्छामृत्यु (Active euthanasia):
- सक्रिय इच्छामृत्यु तब होती है जब चिकित्सा पेशेवर या कोई अन्य व्यक्ति जानबूझकर ऐसा कुछ करता है जिससे रोगी की मृत्यु हो जाती है, जैसे घातक इंजेक्शन देना।
- निष्क्रिय इच्छामृत्यु (Passive Euthanasia):
- निष्क्रिय इच्छामृत्यु चिकित्सा उपचार को रोकने या वापस लेने का कार्य है, जैसे कि किसी व्यक्ति को मरने की अनुमति देने के उद्देश्य से जीवन समर्थक उपकरणों को बंद कर देना या वापस लेना है।
- सक्रिय इच्छामृत्यु (Active euthanasia):
- भारत में इच्छामृत्यु:
- भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने कॉमन कॉज बनाम भारत संघ (2018) में एक ऐतिहासिक निर्णय में एक व्यक्ति के सम्मान के साथ मरने के अधिकार को मान्यता देते हुए कहा कि एक गंभीर रूप से बीमार व्यक्ति निष्क्रिय इच्छामृत्यु का विकल्प चुन सकता है और चिकित्सा उपचार से इनकार हेतु लिविंग विल निष्पादित कर सकता है।
- इसने असाध्य रूप से बीमार रोगियों द्वारा बनाई गई ‘लिविंग विल’ के लिये भी दिशा-निर्देश निर्धारित किये, जिन्हें पहले से ही पता होता है कि उनके स्थायी रूप से निश्चेत अवस्था में चले जाने की संभावना है।
- इससे पहले वर्ष 2011 में सर्वोच्च न्यायालय ने अरुणा शानबाग मामले में पहली बार निष्क्रिय इच्छामृत्यु को मान्यता दी थी।
- न्यायालय ने विशेष रूप से कहा कि "मृत्यु की प्रक्रिया में गरिमा, अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत जीवन के अधिकार का एक हिस्सा है। किसी व्यक्ति को जीवन के अंत में गरिमा से वंचित करना व्यक्ति को एक सार्थक अस्तित्व से वंचित करना है।"
- भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने कॉमन कॉज बनाम भारत संघ (2018) में एक ऐतिहासिक निर्णय में एक व्यक्ति के सम्मान के साथ मरने के अधिकार को मान्यता देते हुए कहा कि एक गंभीर रूप से बीमार व्यक्ति निष्क्रिय इच्छामृत्यु का विकल्प चुन सकता है और चिकित्सा उपचार से इनकार हेतु लिविंग विल निष्पादित कर सकता है।
- इच्छामृत्यु वाले विभिन्न देश:
- नीदरलैंड, लक्ज़मबर्ग, बेल्जियम किसी भी ऐसे व्यक्ति, जो "असहनीय पीड़ा" का सामना करता है और जिसके स्वास्थ्य में सुधार की कोई संभावना नहीं है, को इच्छामृत्यु एवं सहायता प्राप्त आत्महत्या दोनों की अनुमति देते हैं।
- स्विट्ज़रलैंड में इच्छामृत्यु प्रतिबंधित है लेकिन किसी डॉक्टर या चिकित्सीय पेशेवर की उपस्थिति तथा सहायता से मृत्यु प्राप्त करने की अनुमति है।
- वर्ष 1942 से, स्विट्ज़रलैंड ने सहायता प्राप्त आत्महत्या की अनुमति दी है, जिसमें व्यक्तिगत पसंद और मरने की प्रक्रिया पर नियंत्रण पर ध्यान केंद्रित किया गया है। कानून के अनुसार व्यक्तियों का मस्तिष्क स्वस्थ होना चाहिये और उनका निर्णय स्वार्थपूर्ण उद्देश्यों से प्रेरित नहीं होना चाहिये।
- ऑस्ट्रेलिया ने भी दोनों प्रकार की इच्छामृत्यु को वैध कर दिया है। यह उन वयस्कों पर लागू होता है जिनमें पूर्ण निर्णय लेने की क्षमता है तथा वे ऐसी लाइलाज बीमारी से ग्रस्त हैं जिनकी छह या बारह महीनों के भीतर मृत्यु होने की संभावना है।
- नीदरलैंड में इच्छामृत्यु के लिये एक सुस्थापित विधिक ढाँचा है, जिसे वर्ष 2001 के "अनुरोध पर जीवन की समाप्ति और सहायता प्राप्त आत्महत्या (समीक्षा प्रक्रिया) अधिनियम" द्वारा विनियमित किया जाता है।
निष्क्रिय इच्छामृत्यु पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिशानिर्देशों में हाल ही में क्या परिवर्तन किये गए?
- वर्ष 2023 में, सर्वोच्च न्यायालय ने 2018 के इच्छामृत्यु दिशानिर्देशों को संशोधित कर दिया, ताकि गंभीर रूप से बीमार रोगियों के लिये निष्क्रिय इच्छामृत्यु प्रदान करने की प्रक्रिया को आसान बनाया जा सके।
- वर्ष 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने सम्मान के साथ मृत्यु के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी तथा इस अधिकार को लागू करने के लिये असाध्य रूप से बीमार रोगियों के लिये दिशानिर्देश निर्धारित किये।
- सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देशों में संशोधन:
- लिविंग विल का सत्यापन: न्यायालय ने लिविंग विल (एक दस्तावेज़ जिसमें कोई व्यक्ति यह बताता है कि वह भविष्य में गंभीर बीमारी की हालत में किस तरह का इलाज कराना चाहता है) पर न्यायिक मजिस्ट्रेट के सत्यापन की आवश्यकता को हटा दिया है। अब, नोटरी या राजपत्रित अधिकारी द्वारा सत्यापन ही पर्याप्त है, जिससे व्यक्तियों के लिये अपने जीवन को समाप्त करने के विकल्प को व्यक्त करने की प्रक्रिया सरल हो गई है।
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य डिजिटल रिकॉर्ड के साथ एकीकरण: पहले, लिविंग विल को ज़िला न्यायालय द्वारा रखा जाता था। संशोधित दिशा-निर्देशों में यह अनिवार्य किया गया है कि यह दस्तावेज़ राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य रिकॉर्ड का हिस्सा हों। इससे देश भर के अस्पतालों और डॉक्टरों के लिये सरल पहुँच सुनिश्चित होती है, जिससे समय पर निर्णय लेने में सुविधा होती है।
- इच्छामृत्यु से इनकार के लिये अपील प्रक्रिया: यदि किसी अस्पताल का मेडिकल बोर्ड जीवन रक्षक प्रणाली हटाने की अनुमति देने से इनकार करता है, तो रोगी/मरीज़ का परिवार संबंधित उच्च न्यायालय में अपील कर सकता है। इसके बाद न्यायालय मामले का पुनर्मूल्यांकन करने हेतु एक नया मेडिकल बोर्ड गठित करेगा, ताकि मामले की गहन और न्यायपूर्ण समीक्षा सुनिश्चित की जा सके।
इच्छामृत्यु से जुड़े नैतिक पहलू क्या हैं?
- स्वायत्तता और सूचित सहमति: इच्छामृत्यु में व्यक्तिगत स्वायत्तता का सम्मान करना शामिल है, जिसका अर्थ है कि लोगों को अपने जीवन के बारे में निर्णय लेने का अधिकार होना चाहिये, विशेष रूप से यदि वे मानसिक रूप से सक्षम हैं तो पीड़ा को समाप्त करने का अधिकार होना चाहिये।
- इसके लिये सूचित सहमति की भी आवश्यकता होती है, जिसमें व्यक्ति को अपनी स्थिति, इच्छामृत्यु की प्रक्रिया और इसके परिणामों को पूरी तरह से समझना चाहिये, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उस पर दबाव नहीं डाला जा रहा है या उसके साथ किसी भी प्रकार का छल-कपट नहीं किया जा रहा है।
- जीवन की गुणवत्ता बनाम जीवन की शुचिता: इच्छामृत्यु पर विमर्श प्रायः जीवन की गुणवत्ता बनाम जीवन की शुचिता पर केंद्रित होता है। जीवन की गुणवत्ता में यह तर्क दिया जाता है कि कि पीड़ा को समाप्त करना और गंभीर बीमारी के दौरान अपनी गरिमा को संरक्षित करना नैतिक हो सकता है जबकि जीवन की शुचिता या पवित्रता अक्सर धार्मिक या दार्शनिक मान्यताओं को दर्शाती है जिसके तहत यह माना जाता है कि जीवन आंतरिक रूप से मूल्यवान है और इसे समय से पहले समाप्त नहीं किया जाना चाहिये।
- विधिक और सामाजिक निहितार्थ: इच्छामृत्यु से संबंधित विधिक रूपरेखा क्षेत्राधिकार के आधार पर भिन्न-भिन्न होती है, जो जीवन के अंत से जुड़े मुद्दों पर विभिन्न सांस्कृतिक दृष्टिकोणों और नैतिक विमर्शों को दर्शाती है।
- इसके सामाजिक प्रभाव में चिकित्सा पेशेवरों की भूमिका, सामाजिक उत्तरदायित्व तथा इच्छामृत्यु की मांग के अंतर्निहित कारणों को संबोधित करने के लिये उपशामक देखभाल तथा मनोवैज्ञानिक सहायता तक समान पहुँच की आवश्यकता से संबंधित प्रश्न शामिल हैं।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: सक्रिय इच्छामृत्यु क्या है? इस प्रथा के नैतिक निहितार्थ क्या हैं? |
जैव विविधता और पर्यावरण
राष्ट्रीय हिमनद झील विस्फोट बाढ़ जोखिम न्यूनीकरण कार्यक्रम
प्रिलिम्स के लिये:तवांग, दिबांग घाटी, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA), ग्लेशियल झील विस्फोट बाढ़ (GLOF), दक्षिण ल्होनक झील, उन्नत कंप्यूटिंग विकास केंद्र (सी-डैक), भारतीय मौसम विभाग, भूस्खलन, यारलुंग जांग्बो नदी, ग्राउंड ट्रुथिंग, थ्येनबो ग्लेशियल झील, अचानक बाढ़, अंतर्राष्ट्रीय एकीकृत पर्वतीय विकास केंद्र (ICIMOD), हिंदू कुश हिमालय। मेन्स के लिये:ग्लेशियल झीलों पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव और उनके परिणाम। |
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (National Disaster Management Authority- NDMA) ने ग्लेशियल झील विस्फोट बाढ़ (Glacial Lake Outburst Flood- GLOF) के प्रति उनकी संवेदनशीलता का पता लगाने के लिये 4500 मीटर और उससे अधिक ऊँचाई वाले ग्लेशियरों पर अभियान शुरू किया है।
- भारतीय हिमालय में लगभग 7,500 हिमनद झीलों में से NDMA ने 189 उच्च जोखिम वाली झीलों को अंतिम रूप दिया है, जिनके लिये शमन उपायों की आवश्यकता है।
राष्ट्रीय हिमनद झील विस्फोट बाढ़ जोखिम शमन कार्यक्रम (NGRMP) क्या है?
- परिचय: यह GLOF द्वारा उत्पन्न जोखिमों से निपटने के लिये भारत सरकार द्वारा शुरू की गई एक पहल है।
- अभियान के लिये 16 टीमें गई थीं, जिनमें से 15 टीमों ने अपना अभियान पूरा कर लिया है। अन्य सात अभियान अभी चल रहे हैं।
- पूरे किये गए 15 अभियानों में से 6 सिक्किम में, 6 लद्दाख में, 1 हिमाचल प्रदेश में तथा 2 जम्मू-कश्मीर में थे।
- अभियान पर जाने वाली टीमें हिमनद झीलों की संरचनात्मक स्थिरता और संभावित उल्लंघन बिंदुओं का आकलन करती हैं, प्रासंगिक जल विज्ञान तथा भू-वैज्ञानिक नमूने एवं डेटा एकत्र करती हैं, पानी की गुणवत्ता व प्रवाह दरों को मापती हैं, जोखिम वाले क्षेत्रों की पहचान करती हैं और निचले इलाकों के समुदायों को जागरूक करती हैं।
- अभियान के लिये 16 टीमें गई थीं, जिनमें से 15 टीमों ने अपना अभियान पूरा कर लिया है। अन्य सात अभियान अभी चल रहे हैं।
- उद्देश्य:
- खतरों का आकलन करना, स्वचालित निगरानी और पूर्व चेतावनी प्रणालियाँ स्थापित करना, तथा हिमनद झील विस्फोट बाढ़ (GLOF) के जोखिम को कम करने के लिये झील-कम करने के उपायों को लागू करना।
- झील-कम करने के उपाय वे तकनीकें हैं जिनका उपयोग ग्लेशियल झील में पानी की मात्रा को कम करने के लिये किया जाता है ताकि GLOF के जोखिम को कम किया जा सके।
- NDMA चयनित 189 “उच्च जोखिम वाली” हिमनद झीलों की ग्राउंड-ट्रूथिंग पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।
- ग्राउंड-ट्रूथिंग, रिमोट सेंसिंग या अन्य अप्रत्यक्ष तरीकों से एकत्रित आँकड़ों को साइट पर किये गए प्रत्यक्ष अवलोकनों के साथ तुलना करके सत्यापित करने की प्रक्रिया है।
- खतरों का आकलन करना, स्वचालित निगरानी और पूर्व चेतावनी प्रणालियाँ स्थापित करना, तथा हिमनद झील विस्फोट बाढ़ (GLOF) के जोखिम को कम करने के लिये झील-कम करने के उपायों को लागू करना।
- GLOF को रोकने की कार्यप्रणाली: तीन गतिविधियों को एक साथ क्रियान्वित करने की योजना बनाई गई है।
- स्वचालित मौसम और जल स्तर निगरानी स्टेशनों तथा पूर्व चेतावनी प्रणालियों की स्थापना।
- डिजिटल उन्नयन मॉडलिंग और बैथिमेट्री।
- झील के खतरे को कम करने के सर्वोत्तम साधनों का आकलन करना, जिसमें झील को कम करना भी शामिल है।
- अध्ययन की आवश्यकता:
- ICIMOD निष्कर्ष: अंतर्राष्ट्रीय एकीकृत पर्वतीय विकास केंद्र (ICIMOD) के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण हिंदू कुश हिमालय में तेज़ी से, अनुत्क्रमणीय परिवर्तन हो रहे हैं, जिससे बाढ़ और भूस्खलन का खतरा बढ़ रहा है।
- जलवायु परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन के कारण, भारत को वर्षा की अत्यधिक परिवर्तित आवृत्ति, अवधि और तीव्रता (FDI) तथा अत्यधिक गर्मी जैसे खतरों का सामना करना पड़ रहा है। इससे फ्लैश फ्लड की आवृत्ति में वृद्धि हो सकती है।
- GLOF की विगत घटनाएँ:
- नेपाल की घटना: हाल ही में नेपाल के खुंबू क्षेत्र के एक गाँव थामे में आकस्मिक बाढ़ आ गई, जो थ्यनबो ग्लेशियल झील से आई बाढ़ के कारण आई थी।
- सिक्किम में फ्लैश फ्लड: अक्तूबर 2023 में सिक्किम के दक्षिण ल्होनक झील में GLOF की भयावह घटना हुई।
- उत्तराखंड में फ्लैश फ्लड: ऋषि गंगा घाटी में फरवरी 2021 में हिमनद-विच्छेद से प्रेरित बाढ़ के कारण 200 से अधिक लोगों की मौत हो गई और जलविद्युत संयंत्रों तथा रैनी गाँव को काफी नुकसान हुआ।
ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF)
- यह ऐसी बाढ़ को संदर्भित करता है जिसमें ग्लेशियर/हिमनद या मोराइन/हिमोढ़ (ग्लेशियर की सतह पर गिरी धूल और मिट्टी का जमाव) में संचित जल का अचानक आवेग के साथ बहाव होने लगता है।
- जब ग्लेशियर पिघलते हैं, तो इन हिमनद झीलों का जल बर्फ, रेत, कंकड़ और बर्फ के अवशेषों से बने प्राकृतिक रूप से बने दुर्बल 'हिमोढ़ बाँधों' के पीछे संचित हो जाता है।
- मिट्टी के बाँधों के विपरीत, मोराइन/हिमोढ़ बाँध की कमज़ोर संरचना के कारण ग्लेशियल झील के ऊपर हिमोढ़ बाँध, जिसमें जल की एक विशाल मात्रा होती है, अचानक टूट जाता है।
- बाँध के विनाशकारी रूप से टूटने से विशाल मात्रा में संचित यह जल तीव्र आवेग के साथ मिनटों में कई दिनों तक की अवधि के लिये प्रवाहित हो सकता है, जिससे नीचे के क्षेत्रों में अत्यधिक बाढ़ आ सकती है।
हाल ही में NGRMP में क्या प्रगति हुई है?
- परिचय: अरुणाचल प्रदेश राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (APSDMA) अरुणाचल प्रदेश के तवांग और दिबांग घाटी ज़िलों में उच्च जोखिम वाली हिमनद झीलों का सर्वेक्षण करेगा।
- यह देश में सभी हिमनद झीलों का मानचित्रण करने के लिये राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के बड़े राष्ट्रीय हिमनद झील के फटने से उत्पन्न बाढ़ (GLOF) मिशन का हिस्सा है।
- अरुणाचल प्रदेश में उच्च जोखिम वाली हिमनद झीलों की पहचान की गई:
- कुल उच्च जोखिम वाली झीलें: अरुणाचल प्रदेश के पाँच ज़िलों में 27 उच्च जोखिम वाली हिमनद झीलों की पहचान की गई है।
- ये झीलें तवांग (6 झीलें), कुरुंग कुमे (1), शि योमी (1), दिबांग घाटी (16) और अंजॉ (3) में स्थित हैं।
- वर्तमान अभियान दल तवांग और दिबांग घाटी ज़िलों में से प्रत्येक में तीन उच्च जोखिम वाली झीलों पर ध्यान केंद्रित करेंगे।
- कुल उच्च जोखिम वाली झीलें: अरुणाचल प्रदेश के पाँच ज़िलों में 27 उच्च जोखिम वाली हिमनद झीलों की पहचान की गई है।
- अध्ययन के उद्देश्य: टीम GLOF के जोखिम वाली झीलों की पहुँच, स्थान, आकार, ऊँचाई, निकटवर्ती बस्तियों और भूमि उपयोग का अध्ययन करेगी।
- इससे सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ एडवांस्ड कंप्यूटिंग (C-DAC) और भारतीय मौसम विज्ञान विभाग को एक स्वचालित पूर्व चेतावनी प्रणाली तथा एक स्वचालित मौसम स्टेशन स्थापित करने में मदद मिलेगी।
- अध्ययन का महत्त्व:
- रणनीतिक स्थिति: तवांग और दिबांग घाटी दोनों ज़िले चीन के साथ सीमा साझा करते हैं। इसकी रणनीतिक स्थिति को देखते हुए इस पर कड़ी नज़र रखी जाएगी।
- सुभेद्य हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र: हिमालयी भू-विज्ञान और नदी प्रणालियों के साथ चीन द्वारा छेड़छाड़ के कारण भूस्खलन की घटनाएँ सीमा के भारतीय हिस्से में भी हो सकती हैं।
- बाढ़ का खतरा: वर्ष 2018 में, चीन द्वारा यारलुंग ज़ांगबो नदी पर भूस्खलन की रुकावट की सूचना देने के बाद अरुणाचल और असम सरकारों ने बाढ़ की चेतावनी जारी की थी।
- भारी बुनियादी अवसंरचना: अंतर्राष्ट्रीय सीमा के निकट मेडोग में यारलुंग त्सांगपो नदी पर चीन की विशाल परियोजना अरुणाचल प्रदेश से लेकर असम तक के निवासियों के लिये चिंता का विषय रही है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. हिमालय और ग्लेशियल झीलें जलवायु परिवर्तन के प्रति किस तरह से संवेदनशील होती जा रही हैं? ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF) जैसे जोखिमों को कम करने के लिये क्या कदम उठाए जा रहे हैं? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. सियाचिन ग्लेशियर स्थित है: (2020) (a) अक्साई चिन के पूर्व में उत्तर: (d) प्रश्न. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2019) ग्लेशियर नदी
उपर्युक्त में से कौन-से युग्म सही सुमेलित हैं? (a) 1, 2 और 4 उत्तर: (a) प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2010)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के दिशा-निर्देशों के संदर्भ में उत्तराखंड के कई स्थानों पर हाल ही में बादल फटने की घटनाओं के प्रभाव को कम करने के लिये अपनाए जाने वाले उपायों पर चर्चा कीजिये। (2016) |
भारतीय अर्थव्यवस्था
CBDT द्वारा आयकर अधिनियम, 1961 में संशोधन
प्रिलिम्स के लिये:प्रत्यक्ष कर, केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड, आयकर अधिनियम, 1961, विवाद से विश्वास, एंजल टैक्स, पूंजीगत लाभ मेन्स के लिये:भारत में कराधान प्रणाली में सुधार, मुद्दे, भारतीय अर्थव्यवस्था और नीतियों से संबंधित मुद्दे, कर व्यवस्था में परिवर्तन |
स्रोत: इकॉनोमिक टाइम्स
चर्चा में क्यों?
आयकर विभाग एक नवगठित आंतरिक समिति के माध्यम से आयकर अधिनियम, 1961 में महत्त्वपूर्ण बदलाव कर रहा है।
- केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) के अध्यक्ष द्वारा घोषित यह कदम केंद्र सरकार द्वारा संचालित पहल का हिस्सा है जिसका उद्देश्य भारत के प्रत्यक्ष कर कानूनों को सरल और आधुनिक बनाना है।
आयकर अधिनियम की समीक्षा क्यों की जा रही है?
- ऐतिहासिक जटिलता: आयकर अधिनियम, 1961 की इसकी जटिलता और पुराने प्रावधानों के कारण आलोचना की जाती रही है।
- अधिनियम को सरल बनाने के लिये किये गए विगत प्रयासों (जैसे: 1958 में विधि आयोग द्वारा 1922 के आयकर अधिनियम पर किये गए कार्य) ने प्रदर्शित किया कि वास्तविक सरलीकरण के लिये कर ढाँचे में पूर्ण संशोधन आवश्यक है।
- आधुनिकीकरण की आवश्यकता: अधिनियम की जटिलता के कारण सरकार एवं करदाताओं के मध्य विवाद और भ्रम की स्थिति उत्पन्न हुई है। समीक्षा का उद्देश्य वर्तमान आर्थिक वास्तविकताओं और वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं को प्रतिबिंबित करने के लिये कानून को अद्यतन करना है, जिससे इसे अधिक पारदर्शी और नेविगेट करना आसान हो सके।
- अनुपालन में सुधार: कर कानून को सरल बनाने से अस्पष्टता कम होने और फाइलिंग प्रक्रिया को अधिक सरल बनाने से करदाता अनुपालन में वृद्धि होने की उम्मीद है।
- यह समीक्षा कर प्रणाली को अधिक कुशल तथा वैश्विक मानकों के अनुरूप बनाने के व्यापक प्रयास का हिस्सा है।
- विवाद समाधान: लंबे समय से चले आ रहे विवादों को निपटाने के लिये विवाद से विश्वास योजना लागू की गई है।
- समीक्षा में पुनर्मूल्यांकन अवधि को छोटा करने तथा करदाताओं और कर विभाग के मध्य टकराव को कम करने के लिये उच्च मौद्रिक सीमा निर्धारित करने पर भी विचार किया जाएगा।
आयकर अधिनियम, 1961 के मुख्य पहलू क्या हैं?
- परिचय: आयकर अधिनियम, 1961 भारत में आयकर को नियंत्रित करने वाला एक मूलभूत कानून है। एक व्यापक तंत्र के रूप में, यह तय करता है कि व्यक्तियों और निगमों से आयकर किस प्रकार लगाया, प्रशासित एवं एकत्र किया जाए।
- इसमें 298 धाराएँ, 23 अध्याय और कई महत्त्वपूर्ण प्रावधान हैं, जिनमें भारत में कराधान के सभी पहलू शामिल हैं।
- आयकर एक प्रत्यक्ष कर है जिसे व्यक्तियों को वहन करना होता है, इसे हस्तांतरित करने का विकल्प नहीं होता।
- उद्देश्य:
- आर्थिक स्थिरता: अधिनियम का उद्देश्य निजी व्यय को विनियमित करके और प्रगतिशील कराधान सुनिश्चित करके आर्थिक स्थिरता बनाए रखना है।
- प्रगतिशील कराधान: इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि व्यक्ति अपनी आय के स्तर के अनुसार करों में योगदान दें, जिससे कर प्रणाली में निष्पक्षता और समानता को बढ़ावा मिले।
- राजस्व संग्रह: विभिन्न स्रोतों से आय पर कर लगाने के लिये स्पष्ट नियमों की रूपरेखा बनाकर, अधिनियम कुशल राजस्व संग्रह और प्रबंधन में मदद करता है।
- मुख्य प्रावधान:
- कर स्लैब: आय वर्ग और व्यक्तियों तथा व्यवसायों पर लागू संबंधित कर दरों को परिभाषित करता है।
- कटौतियाँ: वार्षिक सीमा के अधीन, 80C (निवेश), 80D (चिकित्सा बीमा प्रीमियम) और 80G (दान) जैसी धाराओं के अंतर्गत कटौती की अनुमति देता है।
- मूल्यांकन: कर योग्य आय का आकलन करने, रिटर्न दाखिल करने और ऑडिट करने की प्रक्रियाओं का विवरण देता है।
- स्रोत पर कर कटौती (TDS): कुछ भुगतानों के लिये स्रोत पर कर कटौती की आवश्यकता होती है, जिससे कर संग्रह प्रक्रिया सरल हो जाती है।
- पूंजीगत लाभ: अल्पकालिक और दीर्घकालिक लाभ के प्रावधानों सहित परिसंपत्तियों की बिक्री से होने वाले मुनाफे पर कराधान को विनियमित करता है।
- दंड और अपील: गैर-अनुपालन के लिये दंड और अपील के माध्यम से विवादों को हल करने की प्रक्रियाओं की रूपरेखा तैयार करता है।
- हाल के प्रमुख सुधार:
- कॉर्पोरेट कर दरें: हाल के सुधारों में कॉर्पोरेट कर दरों को कम करना और कुछ प्रोत्साहनों को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना शामिल है।
- कॉर्पोरेट करदाताओं के लिये प्रभावी कर दर सत्र 2017-18 में 29.49% से घटकर सत्र 2021-22 में 23.26% हो गई। विदेशी कंपनियों के लिये कॉर्पोरेट कर की दर भी घटाकर 35% कर दी गई है और एंजेल टैक्स को समाप्त कर दिया गया है।
- व्यक्तिगत आयकर स्लैब: कम आय वाले समूहों के लिये कम आयकर स्लैब और कम दरों से बड़ी संख्या में व्यक्तिगत करदाताओं को लाभ होने की उम्मीद है।
- कर स्लैब के सरलीकरण से करदाताओं की संख्या में वृद्धि हुई है, जो सत्र 2019-20 और सत्र 2022-23 के दौरान 89.8 मिलियन से बढ़कर 93.7 मिलियन हो गई है।
- कॉर्पोरेट कर दरें: हाल के सुधारों में कॉर्पोरेट कर दरों को कम करना और कुछ प्रोत्साहनों को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना शामिल है।
आयकर अधिनियम, 1961 में किये गए संशोधन से क्या अपेक्षित लाभ होंगे?
- संक्षिप्तता और स्पष्टता: संशोधित अधिनियम अधिक संक्षिप्त होगा, जिससे इसे समझना और नेविगेट करना आसान हो जाएगा।
- अनावश्यक और पुराने प्रावधानों को समाप्त करने से अधिनियम कम बोझिल होगा, जिससे करदाताओं एवं कर अधिकारियों पर प्रशासनिक बोझ कम हो जाएगा।
- बेहतर करदाता अनुभव: अधिक सरल कर कानून अस्पष्टता को कम करेगा और करदाताओं के लिये सिस्टम को नेविगेट करना आसान बना देगा, जिससे विश्वास एवं अनुपालन को बढ़ावा मिलेगा।
- पूंजीगत लाभ कर सुधार: सरकार वैश्विक रुझानों के साथ तालमेल बैठाते हुए पूंजीगत लाभ व्यवस्था में सुधार करने की योजना बना रही है।
- इसमें इक्विटी पूंजीगत लाभ पर कर बढ़ाना और वायदा एवं विकल्पों पर प्रतिभूति लेन-देन कर बढ़ाना शामिल है। सुधार का उद्देश्य विभिन्न परिसंपत्ति वर्गों और आय समूहों के बीच कर के बोझ को संतुलित करना है।
- व्यापक कर आधार: सरलीकृत अनुपालन प्रक्रियाएँ और स्पष्ट विनियमन उच्च कर अनुपालन एवं कर आधार को व्यापक बना सकते हैं।
- बेहतर प्रवर्तन और कम खामियों के साथ, सरकार को कर दरों या छूटों में संभावित कटौती के बावजूद राजस्व संग्रह को बढ़ावा देने की उम्मीद है।
- बेहतर कारोबारी माहौल: अधिक पारदर्शी और पूर्वानुमानित कर व्यवस्था भारत को विदेशी एवं घरेलू निवेशकों के लिये अधिक आकर्षक गंतव्य बनाएगी।
- निवेश और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिये कॉर्पोरेट और पूंजीगत लाभ कर दरों में समायोजन किया जा सकता है।
- दीर्घकालिक आर्थिक लाभ: आधुनिक कर प्रणाली आर्थिक विकास और स्थिरता का समर्थन करेगी, जो वर्ष 2047 तक विकसित देश का दर्जा प्राप्त करने के भारत के लक्ष्य में योगदान देगी।
- सुव्यवस्थित प्रक्रियाएँ और स्पष्ट विनियमन कर प्रशासन की समग्र दक्षता को बढ़ाएँगे तथा अनुपालन की लागत को कम करेंगे।
केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड के संदर्भ में मुख्य तथ्य क्या हैं?
- ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: CBDT की उत्पत्ति केंद्रीय राजस्व बोर्ड अधिनियम, 1924 से हुई, जिसने शुरू में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों करों के लिये ज़िम्मेदार केंद्रीय राजस्व बोर्ड की स्थापना की।
- प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों करों के प्रबंधन के प्रशासनिक बोझ के कारण वर्ष 1964 में बोर्ड का विभाजन हो गया।
- इस विभाजन से दो अलग-अलग निकाय बने: प्रत्यक्ष करों के लिये केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) और अप्रत्यक्ष करों के लिये केंद्रीय उत्पाद शुल्क एवं सीमा शुल्क बोर्ड।
- इस पुनर्गठन को केंद्रीय राजस्व बोर्ड अधिनियम, 1963 के तहत औपचारिक रूप दिया गया था।
- यह वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग का एक हिस्सा है, CBDT भारत में प्रत्यक्ष करों के प्रबंधन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- संरचना: CBDT का नेतृत्व एक अध्यक्ष करता है, जो बोर्ड के कार्यों का समन्वय करता है।
- बोर्ड में छह सदस्य होते हैं, जिनमें से प्रत्येक भारत सरकार के पदेन विशेष सचिव का पद धारण करता है।
- चयन: अध्यक्ष और सदस्यों का चयन भारतीय राजस्व सेवा (IRS) से किया जाता है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनका नेतृत्व कर प्रशासन एवं नीति में निपुण हो।
- कार्यप्रणाली: CBDT आयकर और निगम कर सहित प्रत्यक्ष करों से संबंधित नीतियों को तैयार करने के लिये ज़िम्मेदार है।
- बोर्ड पूरे आयकर विभाग के कामकाज की देखरेख करता है, जिससे कर कानूनों का कुशल प्रशासन और प्रवर्तन सुनिश्चित होता है।
- CBDT सरकार की नीतियों के अनुरूप प्रत्यक्ष कर कानूनों और दरों में बदलाव का प्रस्ताव करता है। यह कर प्रणाली को बढ़ाने के लिये विधायी संशोधनों का भी सुझाव देता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. आयकर अधिनियम, 1961 की जटिलता और वर्तमान आर्थिक वास्तविकताओं तथा वैश्विक प्रथाओं के साथ तालमेल बैठाने के लिये आधुनिकीकरण की आवश्यकता का विश्लेषण कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारत में काले धन के सृजन के निम्नलिखित प्रभावों में से कौन-सा भारत सरकार की चिंता का प्रमुख कारण है? (a) स्थावर संपदा के व्रय और विलासितायुक्त आवास में निवेश के लिये संसाधनों का अपयोजन उत्तर:(d) मेन्स:प्रश्न. 'कर व्यय' शब्द का क्या अर्थ है? आवास क्षेत्र को उदाहरण के रूप में लेते हुए, चर्चा कीजिये कि यह सरकार की बजटीय नीतियों को कैसे प्रभावित करता है। (2013) |