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लिविंग विल और पैसिव यूथेनेसिया

  • 07 Jun 2024
  • 2 min read

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

हाल ही में बॉम्बे उच्च न्यायालय की गोवा पीठ में कार्यरत एक न्यायाधीश ने 'लिविंग विल' का पंजीकरण कराया है, जो उनके परिवार के लिये एक उन्नत चिकित्सा निर्देश प्रदान करता है, जब वे स्वयं निर्णय नहीं ले सकते। 

    • "लिविंग विल्स" की पृष्ठभूमि का पता कॉमन कॉज बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (Common Cause vs Union of India) (2018) मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय द्वारा लगाया जा सकता है।
      • 2018 में, सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार के रूप में सम्मान के साथ मरने के अधिकार की पुष्टि की (‘लिविंग विल’ पर निर्भर निष्क्रिय इच्छामृत्यु)।
        • इससे पहले वर्ष 2011 में सर्वोच्च न्यायालय ने अरुणा शानबाग मामले में पहली बार निष्क्रिय इच्छामृत्यु को मान्यता दी थी।
      • निष्क्रिय इच्छामृत्यु किसी व्यक्ति को जीवन-रक्षक चिकित्सा प्रक्रियाओं को सीमित या समाप्त करके मृत्यु की ओर अग्रसर होने देने की प्रथा है।
    • वर्ष 2023 में सर्वोच्च न्यायालय ने लिविंग विल के लिये कुछ मौजूदा दिशानिर्देशों में बदलाव करके निष्क्रिय इच्छामृत्यु की प्रक्रिया को सरल बना दिया।
      • दिशानिर्देशों के अनुसार, जो व्यक्ति "लिविंग विल" बनाना चाहता है, उसे दो गवाहों की उपस्थिति में संदर्भ प्रारूप के अनुसार, इसका मसौदा तैयार करना होगा। 
      • इसके बाद वसीयत को राजपत्रित अधिकारी या नोटरी द्वारा प्रमाणित किया जाना चाहिये तथा तालुका के मुख्य मामलातदार (Mamlatdar) को भेजी जानी चाहिये, जो इसे सुरक्षित अभिरक्षा के लिये ज़िला कलेक्टर द्वारा नियुक्त नोडल अधिकारी को भेज देगा।

    Euthanasia

    और पढ़ें: सर्वोच्च न्यायालय ने निष्क्रिय इच्छामृत्यु के नियमों को बनाया आसान

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