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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

अरुणाचल प्रदेश में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच झड़प

  • 14 Dec 2022
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

तवांग सेक्टर की अवस्थिति, अरुणाचल प्रदेश

मेन्स के लिये:

भारत-चीन संबंधों की चुनौतियाँ और समाधान

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर में यांग्स्ते नदी के किनारे भारत और चीन के सैनिको के बीच झड़प हुई है।

  • वर्ष 2020 में गलवान घाटी की घटना के बाद से भारतीय सैनिकों और चीनी PLA सैनिकों के बीच इस तरह की यह पहली घटना है।
  • दोनों पक्ष अपने दावे की सीमा तक क्षेत्रों में गश्त करते हैं और यह वर्ष 2006 से एक प्रवृत्ति रही है।

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पृष्ठभूमि 

  • भारतीय सेना के अनुसार, तवांग सेक्टर में वास्तविक नियंत्रण रेखा (Line of Actual Control- LAC) के साथ कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जो अलग-अलग महत्त्व के हैं।
    • LAC पश्चिमी (लद्दाख), मध्य (हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड), सिक्किम और पूर्वी (अरुणाचल प्रदेश) क्षेत्रों में विभाजित है।
  • यह घटना उत्तराखंड की पहाड़ियों में औली में भारत-अमेरिका के संयुक्त सैन्य अभ्यास ऑपरेशन युद्धभ्यास पर आपत्ति जताने के कुछ दिनों बाद हुई, जिसमें दावा किया गया कि यह वर्ष 1993 और 1996 के सीमा समझौतों का उल्लंघन है।

भारतीय/चीनी दृष्टिकोण से अरुणाचल प्रदेश का महत्त्व:

  • रणनीतिक महत्त्व: 
    • अरुणाचल प्रदेश, जिसे वर्ष 1972 तक पूर्वोत्तर सीमांत एजेंसी (NEFA) के रूप में जाना जाता था, पूर्वोत्तर में सबसे बड़ा राज्य है, जो उत्तर एवं उत्तर-पश्चिम में तिब्बत, पश्चिम में भूटान और पूर्व में म्याँमार के साथ अंतर्राष्ट्रीय सीमाएँ साझा करता है।
    • यह राज्य पूर्वोत्तर के लिये एक सुरक्षा कवच की तरह है।
    • हालाँकि चीन अरुणाचल प्रदेश को दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा बताता है।
    • इसके अलावा चीन पूरे राज्य पर दावा कर सकता है, क्योंकि उसका मुख्य हित तवांग ज़िले में है, जो अरुणाचल के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में स्थित है, यह भूटान और तिब्बत की सीमा से लगा हुआ हैं। 
  • भूटान देश से संबंधित कारक: 
    • अरुणाचल का बीजिंग के नियंत्रण में आने का अर्थ यह होगा कि भूटान की पश्चिमी और पूर्वी दोनों सीमाओं पर चीन पड़ोस में होगा।
      • भूटान के पश्चिमी हिस्से में, चीन ने रणनीतिक बिंदुओं को जोड़ने वाली मोटर वाहन योग्य सड़कों का निर्माण शुरू कर दिया है।
  • जल शक्ति: 
    • चूँकि पूर्वोत्तर क्षेत्र में भारत की जलापूर्ति पर चीन का नियंत्रण है। इसने कई बाँधों का निर्माण किया है और क्षेत्र में बाढ़ या सूखे के रूप में भारत के खिलाफ भू-रणनीतिक हथियार के रूप में जल का उपयोग कर सकता है।
    • त्सांग्पो नदी जो तिब्बत से निकलती है, भारत में ब्रह्मपुत्र नदी के नाम से  बहती है जबकि अरुणाचल प्रदेश में सियांग कहलाती है।
    • वर्ष 2000 में तिब्बत में एक बाँध टूटने के कारण बाढ़ आई जिसने पूर्वोत्तर भारत में कहर बरपाया और 30 लोगों की जान ले ली  तथा इसमें 100 से अधिक लापता हो गए।

तवांग क्षेत्र में चीन की रूचि का कारण: 

  • रणनीतिक महत्त्व:
    • तवांग में चीन की रूचि सामरिक कारणों से हो सकती है क्योंकि यह भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में रणनीतिक प्रवेश प्रदान करता है।
      • तवांग तिब्बत और ब्रह्मपुत्र घाटी के बीच गलियारे(कॉरिडोर) का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है।
  • तवांग मठ: 
    • तवांग, जो भूटान की सीमा से भी जुड़ा हुआ है, तिब्बती बौद्ध धर्म के दुनिया के दूसरे सबसे बड़े मठ गलदन नमग्ये ल्हात्से की मेज़बानी करता है और यह ल्हासा में सबसे बड़ा पोताला महल है।
      • पाँचवे दलाई लामा के सम्मान में वर्ष 1680-81 में मेराग लोद्रो ग्यामत्सो द्वारा मठ की स्थापना की गई थी।
      • चीन का दावा है कि मठ इस बात का प्रमाण है कि यह ज़िला कभी तिब्बत का था। चीन अरुणाचल पर अपने दावे के समर्थन में तवांग मठ और तिब्बत में ल्हासा मठ के बीच ऐतिहासिक संबंधों का हवाला देता है।
  • सांस्कृतिक संबंध और चीन की चिंताएँ: 
    • तवांग तिब्बती बौद्ध धर्म का एक महत्त्वपूर्ण केंद्र है और ऊपरी अरुणाचल क्षेत्र में कुछ जनजातियाँ ऐसी हैं जिनका तिब्बत के लोगों से सांस्कृतिक संबंध है।
      • मोनपा जनजाति तिब्बती बौद्ध धर्म का पालन करती है और तिब्बत के कुछ क्षेत्रों में भी पाई जाती है।
    • कुछ विशेषज्ञों के अनुसार, चीन को भय है कि अरुणाचल में इन जातीय समूहों की उपस्थिति किसी भी समय बीजिंग के खिलाफ लोकतंत्र समर्थक तिब्बती आंदोलन को जन्म दे सकती है।
  • राजनीतिक महत्त्व:
    • जब दलाई लामा 1959 में चीन के दमनकाल के दौरान तिब्बत से बच निकल भागे फिर उन्होंने तवांग के रास्ते से भारत में प्रवेश किया और कुछ समय के लिये तवांग मठ में रहे।

आगे की राह: 

  • भारत को अपने हितों की कुशलता से रक्षा करने के लिये अपनी सीमा के पास चीन द्वारा किसी नए निर्माण के संबंध में सतर्क रहने की आवश्यकता है। 
  • इसके अलावा इसे कुशल तरीके से कर्मियों और अन्य रसद आपूर्ति की आवाजाही सुनिश्चित करने हेतु अपने दुर्गम सीमा क्षेत्रों में मज़बूत बुनियादी ढाँचे का निर्माण करने की आवश्यकता है।
  •  दोनों पक्षों के सीमा सैनिकों को संवाद जारी रखना चाहिये, साथ ही उन्हें शीघ्र ही पीछे हटना चाहिये और तनाव कम करना चाहिये।
  • दोनों पक्षों को भारत-चीन सीमा मामलों पर सभी मौजूदा समझौतों और प्रोटोकॉल का पालन करते हुए सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति तथा  स्थिरता बनाए रखने की आवश्यकता है। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. "संयुक्त राज्य अमेरिका चीन के रूप में एक ऐसे अस्तित्त्व के खतरे का सामना कर रहा है जो तत्कालीन सोवियत संघ की तुलना में कहीं अधिक चुनौतीपूर्ण है।" विवेचना कीजिये। (2021)

प्रश्न. "चीन अपने आर्थिक संबंधों और सकारात्मक व्यापार अधिशेष को, एशिया में संभाव्य सैनिक शक्ति हैसियत को विकसित करने के लिये उपकरणों के रूप में इस्तेमाल कर रहा है"। इस कथन के प्रकाश में उसके पड़ोसी के रूप में भारत पर इसके प्रभाव की विवेचना कीजिये। (2017)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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