डेली न्यूज़ (24 May, 2024)



राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC)

National Human Rights Commission

और पढ़ें: राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC)


वैश्विक जल संकट पर विश्व बैंक की रिपोर्ट

प्रिलिम्स के लिये:

वर्ल्ड वाटर फोरम, स्वच्छ भारत मिशन, जल जीवन मिशन, जल क्रांति अभियान, विश्व बैंक, अटल भूजल योजना

मेन्स के लिये:

वैश्विक जल कमी के मुद्दे, चुनौतियों से निपटने के लिये उठाए गए कदम।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

चर्चा में क्यों? 

इंडोनेशिया के बाली में हुए 10वें वर्ल्ड वाटर फोरम में जारी विश्व बैंक की नई रिपोर्ट, "वाटर फॉर शेयर्ड प्रॉस्पेरिटी" चिंताजनक वैश्विक जल संकट तथा विश्व भर में मानव और आर्थिक विकास पर इसके प्रभाव को उजागर करती है।

रिपोर्ट की प्रमुख बिंदु क्या हैं?

  • जल की कमी के चिंताजनक आँकड़े:
    • विश्व स्तर पर जल और स्वच्छता सेवाओं तक पहुँच में महत्त्वपूर्ण अंतर मौज़ूद हैं। वर्ष 2022 तक, विश्व भर में 2.2 बिलियन लोगों के पास सुरक्षित रूप से प्रबंधित पेयजल सेवाओं तथा 3.5 बिलियन लोगों के पास सुरक्षित रूप से प्रबंधित स्वच्छता तक पहुँच नहीं है। बुनियादी पेयजल और स्वच्छता सेवाओं से वंचित दस में से आठ लोग ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करते हैं।
  • जल तक पहुँच में क्षेत्रीय असमानताएँ:
    • ताज़े जल (Freshwater) के वितरण में असमानता: वैश्विक जनसंख्या के 36% के साथ चीन और भारत के पास विश्व का केवल 11% ताज़ा जल है, जबकि 5% जनसंख्या के साथ उत्तरी अमेरिका के पास 52% ताज़ा जल है।
    • अफ्रीका और एशिया: कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य के पास अफ्रीका के आधे से अधिक जल संसाधन हैं, फिर भी साहेल, दक्षिणपूर्वी अफ्रीका तथा दक्षिण एवं मध्य एशिया जैसे क्षेत्र में जल-संकट बना हुआ हैं।
    • निम्न आय वाले देश: इन देशों में सुरक्षित पेयजल तक पहुँच में कमी देखी गई है, वर्ष 2000 के बाद से अतिरिक्त 197 मिलियन लोगों तक इसकी पहुँच नहीं है।
    • अधिकारहीन समूह: पहुँच में असमानताएँ लिंग, स्थान, जातीयता, नस्ल और अन्य सामाजिक पहचान के आधार पर हाशिये पर रहने वाले समूहों को भी प्रभावित करती हैं।
  • जलवायु परिवर्तन का प्रभाव:
    • जलवायु परिवर्तन से जल-संबंधी जोखिम बढ़ गए हैं, जिससे विकासशील देशों को अधिक गंभीर और लंबे समय तक सूखे तथा बाढ़ जैसी स्थितियों का सामना करना पड़ रहा है।
      • 800 मिलियन से अधिक लोग ऐसे क्षेत्रों में रहते हैं जहाँ सूखा पड़ने का जोखिम काफी अधिक है और इससे दोगुने लोग बाढ़-प्रवण क्षेत्रों में निवास करते हैं।
    • वर्ष 2100 तक मौसम संबंधी सूखे का वैश्विक भूमि क्षेत्र के 15% अधिक भाग को प्रभावित करने का अनुमान है, जो तापमान प्रभावों पर विचार करने पर लगभग 50% तक बढ़ जाता है।
      • मध्य यूरोप, एशिया, हॉर्न ऑफ अफ्रीका, भारत, उत्तरी अमेरिका, अमेज़ोनिया और मध्य ऑस्ट्रेलिया ऐसे क्षेत्र हैं जो इससे सर्वाधिक प्रभावित होंगे।
    • निर्धन जनसंख्या जल से संबंधित जोखिमों के प्रति अधिक संवेदनशील होती है और उनके पास अनुकूलन की सीमित क्षमता होती है, जिससे निर्धनता चक्र कायम रहता है।

Hotspots_For_Poverty_&_Droughts

  • मानव पूंजी एवं आर्थिक विकास:
    • शैक्षिक प्राप्ति तथा समग्र मानव पूंजी विकास हेतु जल और स्वच्छता सेवाओं तक पहुँच महत्त्वपूर्ण है।
      • कम आय वाले देशों में 56% रोज़गार मुख्य रूप से जल-गहन क्षेत्रों में मौज़ूद हैं, जो जल की उपलब्धता के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हैं।
    • उप-सहारा अफ्रीका में 62% नौकरियाँ पानी पर निर्भर हैं, और कम वर्षा से सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि बहुत प्रभावित होती है।
  • सामाजिक सामंजस्य एवं संघर्ष:
    • प्रभावी एवं न्यायसंगत जल प्रबंधन सामुदायिक विश्वास और सहयोग को बढ़ावा देता है, जबकि कुप्रबंधन संघर्षों को बढ़ा सकता है।
    • बेहतर जल संसाधन प्रबंधन समावेशिता को बढ़ावा देकर तथा तनाव को कम करके शांति एवं सामाजिक सामंजस्य में योगदान देता है।
  • सतत् जल प्रबंधन हेतु अनुशंसित हस्तक्षेप:
    • सर्वाधिक निर्धन जनसंख्या के लिये जल-जलवायु जोखिमों (hydro-climatic risks) के प्रति समुत्थानशीलता को बढ़ावा देना आवश्यक है।
      • इसके लिये जल संसाधनों का बेहतर विकास, प्रबंधन एवं आवंटन ज़रूरी है।
    • निर्धनता कम करने और साझा समृद्धि (Shared Prosperity) बढ़ाने के लिये जल सेवाओं की न्यायसंगत व समावेशी की पहुँच को बढ़ावा देना आवश्यक है।

वर्ल्ड वाटर फोरम, 2024:

  • 10वाँ वर्ल्ड वाटर फोरम, 2024 (10th World Water Forum- WWF) वाटर फॉर शेयर्ड प्रोस्पेरिटी (Water for Shared Prosperity) की थीम के साथ, इंडोनेशिया गणराज्य की सरकार विश्व जल परिषद द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गयाI 
  • इसका लक्ष्य ग्रह के सतत् एवं न्यायसंगत विकास हेतु राजनीतिक प्राथमिकता के रूप में जल का संरक्षण करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को एकत्रित करना है।
  • विश्व जल परिषद, वर्ष 1996 में स्थापित और मार्सिले में स्थित एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जिसमें भारत सहित 52 देशों के 260 सदस्य संगठन हैं।
  • यह विश्व का सबसे बड़ा कार्यक्रम है और वर्ष 1997 के बाद से प्रत्येक तीन वर्ष में एक पृथक देश इसकी मेज़बानी करता ह
  • यह जल समुदाय और प्रमुख निर्णय निर्माताओं को सभी के लिये स्वच्छ एवं उपयुक्त जल उपलब्ध कराने के लिये वैश्विक जल चुनौतियों पर सहयोग करने तथा दीर्घकालिक प्रगति प्रतिबद्धताएँ पूर्ण करने के लिये  एक बेहतर मंच प्रदान करता है।

भारत में जल की कमी का विस्तार क्या है?

  • भारत का जल संकट: नीति आयोग (नेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया) की "समग्र जल प्रबंधन सूचकांक" रिपोर्ट के अनुसार, भारत सर्वाधिक जल संकट का सामना कर रहा है, जिसमें लगभग 600 मिलियन लोग अत्यधिक जल तनाव का सामना कर रहे हैं।
    • इसके अतिरिक्त, भारत के शहरी क्षेत्रों में 14 वर्ष से कम उम्र के लगभग 8 मिलियन बच्चों के समक्ष दूषित जल आपूर्ति के कारण स्वास्थ्य जोखिम बना हुआ है।
    • रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि जल गुणवत्ता सूचकांक में भारत 122 देशों में से 120वें स्थान पर है, जहाँ लगभग 70% जल दूषित है।
  • असंगत जल संसाधन: वैश्विक जनसंख्या का 18% होने के बावजूद, भारत के पास विश्व के स्वच्छ जल संसाधनों का केवल 4% है। यह असंतुलन उपलब्ध जल पर अत्यधिक दबाव का कारण बनता है।
  • जल की तनावग्रस्त उपलब्धता:
    • भूजल स्तर में गिरावट: जल शक्ति मंत्रालय द्वारा आयोजित 5वीं लघु सिंचाई जनगणना से पता चलता है कि देश में लगभग 20.52 मिलियन कुएँ हैं, जिनमें खोदे गए कुएँ, कम गहराई वाले ट्यूबवेल, मध्यम गहराई वाले ट्यूबवेल और गहरे ट्यूबवेल शामिल हैं।
    • shallow tube wells, medium tube wells, and deep tube wells.
      • भारत भूजल स्तर पर अत्यधिक रूप से निर्भर है, लेकिन यहाँ पर भूजल के निष्कर्षण की दर पुनःपूर्ति से काफी अधिक है, जिस कारण भूजल स्तर में तेज़ी से गिरावट आ रही है, जिससे भविष्य में जल की उपलब्धता को लेकर चिंताएँ बढ़ गई हैं।
      • वर्ष 2019 की केंद्रीय भूजल बोर्ड की रिपोर्ट देश के कई क्षेत्रों में गंभीर या अत्यधिक दोहन वाले भूजल स्तरों का संकेत देती है।
    • सूखती नदियाँ और जलाशय: जलवायु परिवर्तन और जल के असंवहनीय उपयोग के कारण नदियाँ तथा जलाशय खासकर मानसून आने से पहले सूख जाते हैं।
      • यह विशेष रूप से गर्मियों के समय में जल के प्रवाह और पहुँच को बाधित करता है।
  • कृषि और खाद्य सुरक्षा को खतरा:
    • उच्च जल खपत: भारत के जल उपयोग का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा कृषिगत कार्यों में प्रयुक्त होता है। वर्तमान में जल की कमी से खाद्य सुरक्षा और कृषि उत्पादकता को अत्यधिक खतरा है।
    • अपेक्षित माँग-आपूर्ति अंतर: अकेले कृषि क्षेत्र में वर्ष 2030 तक मांग-आपूर्ति का अंतर 570 बिलियन क्यूबिक मीटर तक होने की संभावना है। इस अंतर से भोजन की कमी के कारण उसकी कीमतों में वृद्धि हो सकती है।
      • विश्व बैंक की वर्ष 2019 की एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि भारत में जल संसाधनों की कमी के कारण वर्ष 2050 तक कृषि उत्पादकता में 50% की गिरावट आ सकती है।
  • आर्थिक परिणामः नीति आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार, जल संसाधनों की कमी से भारत को वर्ष 2050 तक अपने सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 6% तक नुकसान हो सकता है।
  • जल की कमी पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव:
    • मानसून वर्षा: भारतीय मानसून तेज़ी से अनियमित होता जा रहा है। भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (Indian Institute of Tropical Meteorology- IITM) के अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि 1950 के दशक के बाद से औसत मानसून वर्षा में 10% की कमी दर्ज़ की गई है।
    • वाष्पीकरण दर: जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते वैश्विक तापमान से वाष्पीकरण दर में वृद्धि होती है।
      • नेचर पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, भारत की प्राकृतिक झीलों और जलाशयों (कृत्रिम झीलों) में जल की कमी (वाष्पीकरण की मात्रा) वर्ष 1985 से 2018 के दौरान प्रति दशक 5.9% की दर से बढ़ी है।
      • वाष्पीकरण बढ़ने से सतही जल की उपलब्धता कम हो जाती है, नदियाँ और झीलें सूख जाती हैं तथा मृदा में नमी की मात्रा कम हो जाती है, जो कृषि के लिये आवश्यक है।
    • ग्लेशियर का पिघलना: गंगा और सिंधु जैसी प्रमुख नदियों के स्रोत हिमालय में तेज़ी से ग्लेशियर पिघल रहे है। हालाँकि प्रारंभिक अवस्था में ग्लेशियरों का पिघलना मानव उपभोग के लिये उपयोगी लग सकता है, लेकिन यह प्राकृतिक जल प्रवाह पैटर्न को बाधित करता है।
    • दक्षिणी भारत में जल संकट: कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना सहित भारत के दक्षिणी राज्यों में प्रमुख जलाशयों में जलस्तर बहुत कम होने के कारण गंभीर जल संकट देखा गया।
      • इन राज्यों में अधिकांश जलाशय अपनी क्षमता का केवल 25% या उससे भी कम भरे हुए हैं, जबकि कुछ बाँध तो 5% या उससे भी कम भरे हुए हैं।
      • यह मुख्य रूप से अल-नीनो की घटनाओं के कारण प्रभावित वर्षा के कारण होता है, जिससे लंबे समय तक सूखे जैसी स्थिति बनी रहती है।
      • इसके अतिरिक्त, देरी से आने वाले मानसून और मानसून के बाद की वर्षा की कमी ने भी जल स्तर में होने वाले गिरावट में योगदान दिया है।

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आगे की राह

  • सूक्ष्म-सिंचाई तकनीक: ड्रिप (टपक) सिंचाई और स्प्रिंकलर आधारित कृषि के माध्यम से जल के उपयोग को नियंत्रित किया जा सकता है, जो एक प्रमुख जल उपभोक्ता है।
  • वर्षा जल संचयन: टैंकों और अन्य संरचनाओं में वर्षा जल का भंडारण घरों तथा समुदायों के लिये एक स्थायी जल स्रोत प्रदान कर सकता है।
  • विलवणीकरण: दैनिक उपयोग के लिये समुद्री जल का प्रयोग करके तटीय क्षेत्रों में एक विश्वसनीय जल स्रोत स्थापित किया जा सकता है, हालाँकि इसके लिये ऊर्जा खपत पर विशेष ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है।
    • सिंचाई या अन्य गैर-पीने योग्य उपयोगों के लिये अपशिष्ट जल का प्रयोग करने से स्वच्छ जल के स्रोतों पर दबाव कम हो जाता है।
  • प्रकृति-आधारित समाधान: आर्द्रभूमि और प्राकृतिक जल निकायों को बहाल करने में निवेश करना। स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र स्वाभाविक रूप से जल को शुद्ध करते हैं और भूजल भंडार को बहाल करते हैं।
  • "वाटर ATM" विकसित करना: वंचित क्षेत्रों में अंतर्राष्ट्रीय गुणवत्ता वाला जल प्रदान करने और भुगतान-प्रति-उपयोग प्रणाली के माध्यम से सही तरीके से जल के उपयोग को प्रोत्साहित करने के लिये प्रीपेड कार्ड के माध्यम से संचालित, जल प्रदान करने वाली वेंडिंग मशीनें (वाटर ATM) लगाना।
  • जलवायु-स्मार्ट कृषि: ऐसी कृषि पद्धतियों को अपनाना, जो जलवायु परिवर्तन के प्रति अधिक समुत्थानशील हों, जैसे कि सूखा प्रतिरोधी फसलें उगाना, इससे अभावग्रस्त क्षेत्रों में जल की कमी के प्रभावों को कम किया जा सकता है।
  • जन जागरूकता अभियान: लोगों को जल संरक्षण के बारे में शिक्षित करना और सही तरीके से जल के उपयोग के व्यवहार को बढ़ावा देना, दीर्घकालिक समाधान के लिये महत्त्वपूर्ण है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. जल संसाधनों तक पहुँच में क्षेत्रीय असमानताओं और विशेष रूप से विकासशील देशों में जल संबंधी जोखिमों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का विश्लेषण कीजिये। इन चुनौतियों से निपटने के लिये उपाय सुझाएँ।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. 'वॉटरक्रेडिट' के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)

  1. यह जल एवं स्वच्छता क्षेत्र में कार्य के लिये सूक्ष्म वित्त साधनों (माइक्रोफाइनेंस टूल्स) को लागू करता है।
  2. यह एक वैश्विक पहल है जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन और विश्व बैंक के तत्त्वावधान में प्रारंभ किया गया है।
  3. इसका उद्देश्य निर्धन व्यक्तियों को सहायिकी के बिना अपनी जल-संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये समर्थ बनाना है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?   

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1,2 और 3

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. रिक्तीकरण परिदृश्य में विवेकी जल उपयोग के लिये जल भंडारण और सिंचाई प्रणाली में सुधार के उपायों को सुझाइए। (2020)


इज़रायल और हमास नेताओं के विरुद्ध गिरफ्तारी वारंट

प्रिलिम्स के लिये:

अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC), इज़रायल और हमास, 'रोम संविधि (द रोम स्टैच्यूट)', संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC), अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय, जिनेवा कन्वेंशन (1949)

मेन्स के लिये:

अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय के बारे में, युद्ध अपराध और संबंधित सम्मेलन

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (International Criminal Court- ICC) के अभियोजक ने फिलिस्तीन में युद्ध अपराधों के लिये हमास के नेताओं और इज़रायल के प्रधानमंत्री तथा रक्षा मंत्री के विरुद्ध गिरफ्तारी वारंट का अनुरोध किया है।

नोट: 

  • इज़रायल ICC का सदस्य नहीं है, इसलिये यदि गिरफ्तारी वारंट जारी किया जाता है, तो भी संबंधित नेताओं पर मुकदमा चलाने का तत्काल कोई जोखिम नहीं होता है। हालाँकि, अगर गिरफ्तारी का खतरा बढ़ा तो इज़रायल का अलगाव, इज़रायली नेताओं के लिये विदेश यात्रा करना कठिन बना देगा।
  • ICC ने वर्ष 2015 में "द स्टेट ऑफ फिलिस्तीन" को सदस्य के रूप में स्वीकार किया।

अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय क्या है?

  • ICC का परिचय:
    • यह विश्व का पहला स्थायी अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय है, जो 'रोम संविधि' नामक अंतर्राष्ट्रीय संधि द्वारा शासित होता है।
      • वर्ष 1998 में अधिक न्यायसंगत विश्व बनाने की दिशा में 120 राज्यों द्वारा रोम संविधि को अपनाया गया था।
    • वर्ष 2002 में 60 राज्यों द्वारा अनुसमर्थन के बाद रोम संविधि प्रभावी हुई और आधिकारिक तौर पर ICC की स्थापना हुई। चूँकि, इसका कोई पूर्वव्यापी क्षेत्राधिकार नहीं है, इसलिये ICC इस तिथि से या उसके बाद हुए अपराधों से निपटता है।
      • भारत, अमेरिका और चीन तीनों रोम संविधि के पक्षकार नहीं है।
      • 124 राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय के रोम संविधि के सदस्य देश हैं, जिसमें मलेशिया शामिल होने वाला अंतिम देश है।
  • क्षेत्राधिकार एवं कार्य:
    • यह जाँच करता है और जहाँ भी आवश्यक हो, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिये सबसे गंभीर चिंताजनक अपराधोंः नरसंहार, युद्ध अपराध, मानवता के खिलाफ अपराध और आक्रामकता के अपराधों के आरोप में व्यक्तियों पर मुकदमा चलाता है। इसके अलावा:
      • यदि अपराध किसी राष्ट्रीय पार्टी द्वारा, किसी राज्य पार्टी के क्षेत्र में अथवा किसी ऐसे राज्य में किये जाते हैं जिसने न्यायालय के अधिकार क्षेत्र को स्वीकार कर लिया है।
      • संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अध्याय VII के तहत अपनाए गए एक प्रस्ताव के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (United Nations Security Council- UNSC) द्वारा अपराधों को अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय के अभियोजक के पास भेजा जाता है।
    • ICC का लक्ष्य राष्ट्रीय आपराधिक न्याय प्रणालियों का समर्थन करना है, न कि उनका स्थान लेना है।
      • यह केवल उन मामलों पर मुकदमा चलाता है जब राज्य वास्तव में ऐसा करने के लिये अनिच्छुक या असमर्थ होते हैं।
      • ICC संयुक्त राष्ट्र का संगठन नहीं है लेकिन इसका संयुक्त राष्ट्र के साथ सहयोगात्मक समझौता है।
    • जब कोई स्थिति किसी न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में नहीं होती है, तो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (United Nations Security Council- UNSC) उस स्थिति को अधिकार क्षेत्र प्रदान करते हुए अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय को संदर्भित कर सकता है।
      • अमेरिका, चीन, रूस, इज़रायल और अन्य राष्ट्र युद्ध अपराध, नरसंहार तथा अन्य अपराधों से जुड़े मामलों की सुनवाई के लिये न्यायालय के अधिकार को अस्वीकार करते हैं।
  • ICC और ICJ के बीच अंतर:

युद्ध अपराध (War Crime) क्या है?

  • परिचय: 
    • युद्ध अपराधों को संघर्ष के दौरान मानवीय कानूनों के गंभीर उल्लंघन के रूप में परिभाषित किया गया है; जिसमें किसी व्यक्ति को बंधक बनाना, इरादतन हत्याएँ करना, युद्धबंदियों पर अत्याचार या उनके साथ अमानवीय व्यवहार करना और बच्चों को लड़ने के लिये विवश करना, इसके कुछ अधिक स्पष्ट उदाहरण हैं।
      • यह इस विचार पर आधारित है कि किसी राज्य या उसकी सेना के कार्यों के लिये व्यक्तियों को ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है।
  • युद्ध अपराध बनाम मानवता के विरुद्ध अपराध:
    • नरसंहार रोकथाम और सुरक्षा ज़िम्मेदारी (या जेनोसाइड कन्वेंशन) पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय युद्ध अपराधों को नरसंहार व मानवता के विरुद्ध अपराधों से पृथक करता है।
      • युद्ध अपराधों को घरेलू संघर्ष या दो राज्यों के बीच युद्ध के घटित होने के रूप में परिभाषित किया गया है।
      • जबकि नरसंहार और मानवता के खिलाफ अपराध शांतिकाल में या निहत्थे लोगों के समूह के प्रति सेना की एकपक्षीय आक्रामकता के दौरान हो सकते हैं।
  • युद्ध अपराध पर जिनेवा कन्वेंशन (Geneva Conventions):
    • जिनेवा कन्वेंशन (1949) और उनके अन्य प्रोटोकॉल ऐसी अंतर्राष्ट्रीय संधियाँ हैं जिनके अंतर्गत युद्ध की बर्बरता को सीमित करने वाले सबसे महत्त्वपूर्ण नियम शामिल किये गए हैं।
    • ये नियम उन लोगों की रक्षा करते हैं जो युद्ध में भाग नहीं लेते हैं (नागरिक, चिकित्सा, सहायता कर्मी) या फिर ऐसे लोग जो अब युद्ध नहीं लड़ सकते हैं (घायल, बीमार लोग, सैनिक और युद्ध के कैदी)।
      • पहला जिनेवा कन्वेंशन युद्ध के दौरान ज़मीन पर घायल और बीमार सैनिकों की रक्षा करता है।
      • दूसरा जिनेवा कन्वेंशन, युद्ध के दौरान समुद्र में घायल, बीमार एवं जहाज़ पर मौज़ूद सैन्य कर्मियों की सुरक्षा प्रदान करता है।
      • तीसरा जिनेवा कन्वेंशन, युद्ध के दौरान बंदी बनाए गए लोगों पर लागू होता है।
    • चौथा जिनेवा कन्वेंशन, कब्ज़े वाले क्षेत्र सहित नागरिकों को संरक्षण प्रदान करता है।
    • भारत सभी चार जिनेवा कन्वेंशन का एक पक्षकार है।

  सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न 1. दक्षिण-पश्चिम एशिया का निम्नलिखित में से कौन-सा देश भूमध्य सागर तक फैला नहीं है? (2015)

सीरिया

जॉर्डन

लेबनान

इज़रायल

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न 1. 'आवश्यकता से कम नकदी, अत्यधिक राजनीति ने यूनेस्को को जीवन-रक्षण की स्थिति में पहुँचा दिया है।' अमेरिका द्वारा सदस्यता परित्याग करने और सांस्कृतिक संस्था पर 'इज़रायल विरोधी पूर्वाग्रह' होने का दोषारोपण करने के प्रकाश में इस कथन की विवेचना कीजिये। (2019)

प्रश्न 2. "भारत के इज़रायल के साथ संबंधों ने हाल में एक ऐसी गहराई एवं विविधता प्राप्त कर ली है, जिसकी पुनर्वापसी नहीं की जा सकती है।" चर्चा कीजिये। (2018)


राजनीतिक दल का पंजीकरण रद्द करने की ECI की शक्ति

प्रिलिम्स के लिये:

भारत निर्वाचन आयोग (ECI), आदर्श आचार संहिता (MCC), स्टार प्रचारक, राजनीतिक दल, भारतीय संविधान, लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951, राष्ट्रीय पार्टी, राज्य पार्टी, चुनाव चिह्न (आरक्षण एवं आवंटन) आदेश, 1968, आयकर अधिनियम, 1961, सर्वोच्च न्यायालय

मेन्स के लिये:

मनी लॉन्ड्रिंग, MCC उल्लंघन, चुनाव सुधार, विधि आयोग, राजनीतिक दल के पंजीकरण रद्द करने में मुद्दे

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत निर्वाचन आयोग (Election Commission of India- ECI) ने आदर्श आचार संहिता (Model Code of Conduct- MCC) के प्रवर्तन पर रिपोर्ट जारी की, जिसमें इस बात पर ज़ोर दिया गया कि स्टार प्रचारकों से उदाहरण के साथ नेतृत्व करने और सामाजिक सद्भाव को बाधित न करने की उम्मीद की जाती है।

  • इस बयान ने पार्टियों का पंजीकरण रद्द करने की क्षमता सहित MCC उल्लंघनों को संबोधित करने के ECI के अधिकार के बारे में बहस छेड़ दी है।

राजनीतिक दलों की मान्यता को रद्द करने का क्या तात्पर्य है?

  • परिचय:
    • मान्यता रद्द करने का तात्पर्य ECI द्वारा किसी राजनीतिक दल की मान्यता वापस लेने से है।
    • ऐसी पार्टियों को सीधे तौर पर पंजीकृत-गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल घोषित कर दिया जाता है।
      • ये पार्टियाँ चुनाव लड़ने के लिये पात्र होती हैं लेकिन मान्यता प्राप्त पार्टी के विशेषाधिकार खो देती है।
    • यदि कोई राजनीतिक दल भारतीय संविधान या लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के प्रावधानों का उल्लंघन करता है तो ECI के पास उसकी मान्यता रद्द करने की शक्ति है।
  • मान्यता प्राप्त पार्टी:
    • एक पंजीकृत दल को पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल (Registered Unrecognised Political Party- RUPP) कहा जाता है।
    • ECI द्वारा चुनाव प्रतीक (आरक्षण और आवंटन) आदेश, 1968 (प्रतीक आदेश) के प्रावधानों के तहत राजनीतिक दलों को 'राष्ट्रीय' या राज्यस्तरीय दल के रूप में मान्यता दी जाती है।
    • 'राष्ट्रीय' या 'राज्य' स्तर पर मान्यता के मानदंड में लोकसभा या राज्य विधानसभा के आम चुनाव में अपेक्षित संख्या में सीटें जीतना और/या मत का आवश्यक प्रतिशत प्राप्त करना शामिल है।
    • ECI के अनुसार, वर्तमान में भारत में 2,790 सक्रिय पंजीकृत राजनीतिक दल हैं।
      • इन मान्यता प्राप्त दलों को चुनाव के दौरान आरक्षित चुनाव चिह्न और चालीस 'स्टार प्रचारक' रखने की अतिरिक्त रियायतें मिलती हैं।
      • 1998 के लोकसभा चुनावों के बाद से उन्हें चुनावों के दौरान राज्य के स्वामित्व वाले टेलीविज़न और रेडियो का स्वतंत्र रूप से उपयोग करने की भी अनुमति प्राप्त है।
  • किसी राजनीतिक दल की राष्ट्रीय दल के रूप में मान्यता रद्द करने का आधार:
    • यदि पार्टी लोकसभा या संबंधित राज्य की विधानसभा के आम चुनाव में डाले गए कुल वोटों का कम से कम 6% वोट प्राप्त करने में विफल रहती है और यदि वह पिछले लोकसभा चुनावों में कम से कम 4 सांसद निर्वाचित कराने में विफल रहती है (तो भी वह उसी राज्य से लोकसभा में एक भी सीट नहीं जीतती।); या
    • यदि उसने कम से कम 3 राज्यों से लोकसभा की कुल सीटों में से कम से कम 2% सीटें जीती हैं।
    • यदि यह राज्य से लोकसभा के आम चुनाव में या राज्य से विधानसभा में राज्य में डाले गए कुल वैध वोटों का 8% प्राप्त करने में विफल रहता है।
    • यदि पार्टी अपने अंकेक्षित खाते समय पर भारत निर्वाचन आयोग को प्रस्तुत करने में विफल रहती है।
    • यदि पार्टी अपने संगठनात्मक चुनाव (आंतरिक पार्टी चुनाव) समय पर कराने में विफल रहती है।

POLITICAL_PARTY_SYSTEM

नोट: 

  • प्रतीक आदेश (Symbols Order), 1968 के पैराग्राफ 16A के तहत, भारत निर्वाचन आयोग के पास  MCC का पालन करने या आयोग के वैध निर्देशों का पालन करने में विफलता के लिये किसी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल की मान्यता को निलंबित करने या वापस लेने की शक्ति है।

राजनीतिक दल के पंजीकरण रद्द करने से क्या तात्पर्य है?

  • परिचय:
    • पंजीकरण रद्द करने का तात्पर्य किसी राजनीतिक दल के पंजीकरण को रद्द करने से है।
      • हालाँकि, ECI को दलों का पंजीकरण रद्द करने का अधिकार नहीं है।
    • एक बार जब कोई राजनीतिक दल अपंजीकृत हो जाता है, तो वह चुनाव नहीं लड़ सकता है।
  • पंजीकृत दल:
    • जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (Representation of the People Act- RP Act) की धारा 29A ECI के साथ एक राजनीतिक दल के पंजीकरण के लिये आवश्यकताओं को निर्धारित करती है।
    • जो भी राजनीतिक दल ECI में अपना पंजीकरण चाहता है उसे अपने दल के संविधान की एक प्रति जमा करनी होगी।
      • ऐसे दस्तावेज़ में यह घोषणा होनी चाहिये कि राजनितिक दल भारत के संविधान के प्रति सच्ची आस्था और निष्ठा का पालन करेगाI 
      • इसे समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र के सिद्धांतों के प्रति भी निष्ठा रखनी चाहिये तथा भारत की संप्रभुता, एकता एवं अखंडता को बनाए रखना चाहिये।
    • पंजीकृत राजनीतिक दल निम्नलिखित कानूनी लाभ प्राप्त करते हैं:
      • आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 13A के तहत प्राप्त दान राशि पर कर में छूट।
      • लोकसभा या राज्य विधानसभाओं के आम चुनाव लड़ने के लिये सामान्य चुनाव चिन्हI 
      • चुनाव प्रचार के दौरान 20 'स्टार प्रचारकों' को अनुमति
  • राजनीतिक दल का पंजीकरण रद्द करने के आधार:
    • किसी पार्टी का पंजीकरण तभी रद्द किया जा सकता है, जब:
      • इसका पंजीकरण धोखाधड़ी से प्राप्त किया गया हो,
      • इसे केंद्र सरकार द्वारा अवैध घोषित किया गया है,
      • एक दल अपने आंतरिक संविधान को संशोधित करता है और भारतीय संविधान का पालन करने से इनकार करता है।
  • ECI की शक्तियाँ: जन प्रतिनिधित्व अधिनियम ECI को चुनाव नहीं लड़ने, दल के आंतरिक चुनाव कराने या आवश्यक रिटर्न जमा नहीं करने पर किसी राजनीतिक दल का पंजीकरण रद्द करने का अधिकार नहीं देता है।
    • भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस बनाम समाज कल्याण संस्थान, 2002 में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि ECI के पास जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत किसी भी राजनीतिक दल का पंजीकरण रद्द करने की शक्ति नहीं है।

राजनीतिक दलों का पंजीकरण रद्द करने की क्या आवश्यकता है? 

  • एक तिहाई से भी कम पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल (Registered Unrecognized Political Parties- RUPP) चुनावों में भाग लेते हैं।
    • यह आयकर में मिलने वाली छूट के संभावित दुरुपयोग और एकत्र किये गए धन का उपयोग धन शोधन (Money Laundering) के लिये किये जाने पर चिंता व्यक्त करता है।
  • मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल अक्सर आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन करते हैं, लेकिन निर्वाचन आयोग केवल नेताओं को एक संक्षिप्त अवधि के लिये प्रचार करने से रोक सकता है।
    • आदर्श आचार संहिता वोटों के लिये जाति और सांप्रदायिक भावनाओं का शोषण करने के साथ-साथ मतदाताओं को रिश्वत देने तथा डराने-धमकाने से रोकता है।
  • पंजीकरण तंत्र निष्क्रिय संस्थाओं को हटाकर चुनावी अखंडता और जवाबदेही सुनिश्चित करता है, जिससे पारदर्शिता एवं निष्पक्षता बढ़ती है।
  • पंजीकृत लेकिन निष्क्रिय राजनीतिक दलों का प्रसार वास्तविक भागीदारी की कमी के कारण चुनावी प्रक्रिया को क्षतिग्रस्त करके लोकतंत्र को कमज़ोर करता है।

आगे की राह

  • चुनाव सुधारों के लिये अपने ज्ञापन (वर्ष 2016) में ECI ने कानून में संशोधन का सुझाव दिया है, जो ECI को किसी दल का पंजीकरण रद्द करने का अधिकार देगा।
  • विधि आयोग ने 'चुनावी सुधार' पर अपनी 255वीं रिपोर्ट (वर्ष 2015) में किसी राजनीतिक दल के लगातार 10 वर्षों तक चुनाव लड़ने में विफल रहने पर उसका पंजीकरण रद्द करने के लिये संशोधन की भी सिफारिश की है।
  • वर्ष 2016 में आयोग ने पंजीकृत, गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों की पहचान करने का प्रयास शुरू किया, जिन्होंने वर्ष 2005 से वर्ष 2015 तक किसी भी चुनाव में अपने उम्मीदवार नहीं उतारे थे, जिसका उद्देश्य केवल कर छूट लाभ के लिये बने कागज़ी राजनीतिक दलों के गठन को हतोत्साहित करना था।
    • निष्क्रिय दलों को बाहर करने के लिये इसी तरह की प्रक्रिया नियमित आधार पर की जा सकती है।
  • पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टी.एस. कृष्णमूर्ति ने निष्क्रिय राजनीतिक दलों को हतोत्साहित करने के लिये सभी दानदाताओं से योगदान की अनुमति देने और चुनाव परिणामों के आधार पर दलों को धन वितरित करने के लिये राष्ट्रीय निर्वाचन कोष को राज्य वित्तपोषण के एक संभावित विकल्प के रूप में प्रस्तावित किया।
  • 170वें विधि आयोग की रिपोर्ट में RPA में धारा 78A शामिल करने की सिफारिश की गई और खातों के रखरखाव में चूक करने वाले राजनीतिक दलों के लिये दंड का प्रस्ताव किया गया।
    • इसे जारी रखते हुए और अधिक पारदर्शिता के लिये ECI को राजनीतिक दलों के खातों का ऑडिट करने की शक्ति दी जानी चाहिये।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों के आचरण को विनियमित करने में निर्वाचन आयोग के समक्ष आने वाली चुनौतियों का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये और चुनावी अखंडता बनाए रखने में इसकी प्रभावशीलता बढ़ाने के लिये सुधारों का सुझाव दीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

मेन्स:

प्रश्न. "लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के अंतर्गत भ्रष्ट आचरण के दोषी व्यक्तियों को अयोग्य ठहराने की प्रक्रिया के सरलीकरण की आवश्यकता है"। टिप्पणी कीजिये। (2020)


नगा विद्रोह

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA), नगा शांति प्रक्रिया, नगा हिल्स, सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) अधिनियम (AFSPA), 1975 का शिलांग समझौता, ब्रू समझौता 2020, बोडो शांति समझौता 2020, कार्बी आंगलोंग समझौता 2021, मिज़ो शांति समझौता 1986, नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019, राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC)

मेन्स के लिये:

नगा शांति प्रक्रिया, मुक्त आवाजाही व्यवस्था (FMR)

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (National Investigation Agency- NIA) ने गुवाहाटी न्यायालय में एक आरोप पत्र दायर किया, जिसमें नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड-इसाक मुइवा (NSCN-IM) के "चीन-म्याँमार मॉड्यूल" पर, भारत में घुसपैठ के लिये दो प्रतिबंधित मैतेई संगठनों के कैडरों का समर्थन करने का आरोप लगाया गया। 

  • NIA का आरोप है कि NSCN-IM की कार्रवाइयों का उद्देश्य मणिपुर में जातीय अशांति का लाभ उठाना, राज्य को अस्थिर करना और भारत सरकार के खिलाफ युद्ध की शुरुआत करना था।

नगा विद्रोह और संबंधित मुद्दे क्या है?

  • नगा:
    • नगा भारत के उत्तरपूर्वी भाग और म्याँमार के पड़ोसी क्षेत्रों में रहने वाला एक स्वदेशी समुदाय है।
      • ऐसा व्यापक रूप से माना जाता है कि वे इंडो-मंगोलॉयड हैं जो 10वीं शताब्दी ईसा पूर्व के आसपास भारत में चले आए थे।
  • नगाओं का इतिहास:
    • ब्रिटिश शासन के अधीन नगा: नगा पहली बार विदेशी शासन के अधीन आए जब 19वीं शताब्दी में अंग्रेज़ों ने उनकी भूमि पर कब्ज़ा कर लिया।
    • द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान नगा: द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, नागाओं ने ब्रिटिश सेना की सहायता की।
    • नगा नेशनल काउंसिल (Naga National Council- NNC) की स्थापना वर्ष 1946 में हुई थी और उसने असम के राज्यपाल के साथ 9-सूत्री समझौते (Nine-Point Agreement) पर हस्ताक्षर किये जिससे नगाओं को उनके क्षेत्र पर नियंत्रण मिल गया।
      • 14 अगस्त, 1947 को नगा स्वतंत्रता की घोषणा की गई।
    • 1950 के दशक में NNC ने नगा की संप्रभुता पर हथियार उठाए और हिंसा का सहारा लिया।
      • NNC ने वर्ष 1952 में भूमिगत नगा संघीय सरकार (Naga Federal Government- NFG) और इसकी सैन्य शाखा, नगा संघीय सेना (Naga Federal Army- NFA) का गठन किया।
    • शिलांग समझौते (1975) के बाद NNC, NSCN में विभाजित हो गया, जो वर्ष 1988 में पुनः NSCN (IM) और NSCN (खापलांग) में विभाजित हो गया।
  • नगा का मुद्दा:
    • नगा समूह मुख्य रूप से ग्रेटर नगालिम की मांग कर रहे हैं, जिसमें पूर्वोत्तर के सभी नगा-बसे हुए क्षेत्रों को एक प्रशासनिक अधिकार क्षेत्र के तहत एकजुट करने के लिये सीमाओं को फिर से तैयार करना शामिल है, जिसका लक्ष्य अंततः संप्रभु राज्य का दर्ज़ा प्राप्त करना है।
      • इसमें अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, असम और म्याँमार के विभिन्न क्षेत्र भी शामिल हैं।
      • इस मांग में पृथक नगा येज़ाबो (नगाओं का संविधान) और नगा राष्ट्रीय ध्वज भी शामिल है।
  • शांति की पहल:
    • शिलांग समझौता (1975): शिलांग में हस्ताक्षरित एक शांति समझौते में NNC नेतृत्व निरस्त्रीकरण के लिये सहमत हुआ, लेकिन नेताओं के बीच असहमति के कारण संगठन में आंतरिक विभाजन हो गया।
    • युद्धविराम समझौता (1997): NSCN-IM ने भारतीय सशस्त्र बलों पर हमलों को रोकने के लिये सरकार के साथ युद्धविराम समझौते पर हस्ताक्षर किये। बदले में सरकार द्वारा सभी उग्रवाद विरोधी आक्रामक अभियानों को नियंत्रित  किया गया था।
    • NSCN-IM के साथ फ्रेमवर्क समझौता (2015): इस समझौते में भारत सरकार ने नगाओं के अद्वितीय इतिहास, संस्कृति और स्थिति तथा उनकी भावनाओं व आकांक्षाओं को मान्यता दी

नगालैंड और मणिपुर में संघर्ष की स्थिति क्या है?

  • मणिपुर में संघर्ष का इतिहास:
    • मणिपुर में 16 ज़िले हैं, लेकिन इस राज्य को आमतौर पर 'घाटी' और 'पहाड़ी' ज़िलों में विभाजित माना जाता है।
      • राज्य के घाटी क्षेत्र में अधिकतर मैतेई समुदाय का वर्चस्व है।
    • मणिपुर घाटी निचली पहाड़ियों से घिरी हुई है और 15 नगा जनजातियों तथा चिन-कुकी-मिज़ो-ज़ोमी समूह (Chin-Kuki-Mizo-Zomi group) का निवास है, जिसमें कुकी (Kuki), थाडौ (Thadou), हमार (Hmar), पाइट (Paite), वैफेई (Vaiphei) और ज़ाउ (Zou) समुदाय के लोग शामिल हैं।
    • ब्रिटिश सरकार द्वारा संरक्षित मणिपुर के कांगलेइपक साम्राज्य (Kangleipak kingdom) पर उत्तरी पहाड़ियों से आए नगा जनजातियों ने हमला कर दिया था। ब्रिटिश राजनीतिक एजेंट मैतेई और नगाओं के बीच एक बफर के रूप में कार्य करके घाटी को लूट से बचाने के लिये बर्मा की कुकी-चिन पहाड़ियों से कुकी-ज़ोमी लोगों को लाए थे।
    • कुकी, नगाओं जैसे खतरनाक शीर्ष-शिकारी योद्धा को नीचे इंफाल घाटी के लिये ढाल के रूप में कार्य करने के लिये चोटियों के किनारे ज़मीन दी गई थी।
  • कुकी-मैतेई विभाजन: पहाड़ी समुदायों (नगा और कुकी) और मैतेई (घाटी) में साम्राज्य काल से ही जातीय तनाव रहा है। 1950 के दशक में स्वतंत्रता के लिये नगा आंदोलन ने मैतेई और कुकी-ज़ोमी के बीच विद्रोह को जन्म दिया।
    • कुकी-ज़ोमी समूहों ने 1990 के दशक में भारत के भीतर 'कुकीलैंड' (भारत के भीतर एक राज्य) नामक एक राज्य की मांग के लिये सैन्यीकरण किया। इसने उन्हें मैतेई लोगों से अलग कर दिया, जिनका उन्होंने पहले बचाव किया था।
      • जबकि मैतेई लोग अपनी जनजातीय स्थिति को बहाल करने की मांग कर रहे हैं, जैसा कि मणिपुर के वर्ष 1949 में भारत में विलय से पहले मान्यता प्राप्त थी।
  • हालिया संघर्ष का कारण:
    • परिसीमन प्रक्रिया में मुद्दे: वर्ष 2020 में, वर्ष 1973 के बाद से राज्य में पहली परिसीमन प्रक्रिया के दौरान, मैतेई समुदाय ने दावा किया कि उपयोग किये गए जनगणना के आँकड़े गलत थे, जबकि आदिवासी समूहों (कुकी और नगा) ने तर्क दिया कि 40% जनसंख्या होने के बावजूद विधानसभा में उनका प्रतिनिधित्व कम है।
    • पड़ोसी क्षेत्र से प्रवासियों की घुसपैठ: फरवरी 2021 में म्याँमार के तख्तापलट ने भारत के पूर्वोत्तर में शरणार्थी संकट उत्पन्न कर दिया है, मैतेई नेताओं ने चुराचांदपुर ज़िले के गाँवों में प्रवासियों की अचानक वृद्धि का दावा किया है।
    • हिंसा को बढ़ावा देना: प्रारंभिक हिंसक विरोध एक कुकी गाँव को बेदखल करने से उत्पन्न हुआ, जिसमें चूड़ाचंदपुर-खोपुम संरक्षित वन क्षेत्र के 38 गाँवों को कथित रूप से अनुच्छेद 371 C का उल्लंघन करते हुए "अवैध बस्तियाँ" करार दिया गया।
  • उग्रवादियों के हितों का अभिसरण (Convergence of Interest of Militants): हाल ही में दाखिल किया गया आरोप पत्र (Charge Sheet) मौज़ूदा जातीय संकट के दौरान नगालैंड स्थित NSCN-IM और इम्फाल घाटी स्थित विद्रोही समूहों के बीच संबंधों को प्रदर्शित करता है।
    • गिरफ्तार किये गए व्यक्तियों में से एक पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) का प्रशिक्षित कैडर है, जो उन आठ मैतेई विद्रोही समूहों में से एक है, जिन्हें "सशस्त्र संघर्ष के माध्यम से भारत से मणिपुर को अलग करने की वकालत करने" के लिये गृह मंत्रालय (Ministry Of Home Affairs- MHA) द्वारा प्रतिबंधित किया गया है। ”
    • PLA का गठन वर्ष 1978 में हुआ था और यह पूर्वोत्तर में सबसे हिंसक आतंकवादी संगठनों में से एक बना हुआ है तथा वर्तमान में इसका नेतृत्व एम.एम. नगौबा कर रहे हैं। 

पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में संघर्ष की स्थिति: 

  • मिज़ोरम: वर्ष 1987 में राज्य का दर्ज़ा प्राप्त करने से पूर्व मिज़ोरम असम का हिस्सा था और "मौतम अकाल (Mautam famine)" के दौरान सहायता के अनुरोध पर केंद्र सरकार की अपर्याप्त प्रतिक्रिया के कारण उग्रवाद का सामना करना पड़ा था, वर्ष 1966 में लालडेंगा के नेतृत्व में मिज़ो नेशनल फ्रंट ने स्वतंत्रता की मांग की थी।
  • त्रिपुरा: ब्रिटिश शासित पूर्वी बंगाल से हिंदुओं की बहुतायत जनसंख्या के कारण स्वदेशी आदिवासी लोगों की संख्या घटकर अल्पसंख्यक हो गई, जिससे हिंसक प्रतिक्रिया हुई और आदिवासी अधिकारों की बहाली की मांग करने वाले उग्रवादी समूहों का उदय हुआ।
  • असम: अवैध प्रवासियों को निर्वासित करने के आह्वान के कारण वर्ष 1979 में यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (United Liberation Front of Assam- ULFA) जैसे उग्रवादी समूहों के साथ-साथ बोडो लिबरेशन टाइगर्स और नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (National Democratic Front of Bodoland- NDFB) जैसे अन्य उग्रवादी समूहों का उदय हुआ।
  • मेघालय: असम से मेघालय के निर्माण का उद्देश्य गारो, जैंतिया और खासी सहित प्रमुख जनजातियों की विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करना था, लेकिन आदिवासी स्वायत्तता की आकांक्षाओं के कारण GNLA और HNLC जैसे विद्रोही आंदोलनों को भी बढ़ावा मिला।
  • अरुणाचल प्रदेश: अरुणाचल प्रदेश ऐतिहासिक रूप से एक शांतिपूर्ण राज्य रहा है, लेकिन म्याँमार और नगालैंड से निकटता के कारण, हाल ही में उग्रवाद में वृद्धि हुई है। इस क्षेत्र में एकमात्र स्वदेशी विद्रोह आंदोलन अरुणाचल ड्रैगन फोर्स (Arunachal Dragon Force- ADF) है, जिसने 2001 में इसका नाम बदलकर ईस्ट इंडिया लिबरेशन फ्रंट (East India Liberation Front- EALF) कर दिया।

आगे की राह

  • लोकुर समिति (1965) और भूरिया आयोग (2002-2004) जैसी विभिन्न समितियों की सिफारिशों के अनुसार अनुसूचित जनजाति (ST) स्थिति (मैतेई के लिये) के मानदंडों का आकलन करने की आवश्यकता है।
  • म्याँमार से प्रवासियों की घुसपैठ को रोकने के लिये सीमावर्ती क्षेत्रों में निगरानी को बढ़ाया जाना चाहिये।
  • पड़ोसी देशों के साथ आर्थिक और राजनयिक संबंधों में सुधार क्षेत्रीय स्थिरता एवं सुरक्षा को मज़बूत करने में योगदान दे सकता है।
  • सीमावर्ती क्षेत्र के समुदायों की पहचान को सुरक्षित रखने तथा स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये विद्रोही समूहों के साथ शांति समझौतों पर बातचीत करनी चाहियेI 
  • विश्वास-निर्माण उपायों को लागू करने के साथ-साथ AFSPA की नियमित समीक्षा करना आवश्यक है।
    • सरकार को स्वामित्व और जुड़ाव की भावना उत्पन्न करने के लिये निर्णय लेने में स्थानीय जनसंख्या की भागीदारी को प्रोत्साहित करना चाहिये।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत के उत्तर पूर्वी क्षेत्र में प्रचलित आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। इन चुनौतियों से निपटने में सरकारी उपायों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

मेन्स: 

प्रश्न. दक्षिण एशिया के अधिकतर देशों तथा म्यांँमार से लगी विशेषकर लंबी छिद्रिल सीमाओं की दृष्टि से भारत की आंतरिक सुरक्षा की चुनौतियाँ सीमा प्रबंधन से कैसे जुड़ी हैं? (2013)

प्रश्न. भारत की सुरक्षा को गैर-कानूनी सीमापार प्रवसन किस प्रकार एक खतरा प्रस्तुत करता है? इसे बढ़ावा देने के कारणों को उजागर करते हुए ऐसे प्रवसन को रोकने की रणनीतियों का वर्णन कीजिये। (2014)