भारतीय राजव्यवस्था
चुनाव चिह्न को लेकर विवाद
- 14 Jul 2022
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प्रिलिम्स के लिये :चुनाव चिह्न, निर्वाचन आयोग, ईवीएम, चुनाव चिह्न (आरक्षण और आवंटन) आदेश, 1968। मेन्स के लिये:चुनाव और संकल्प पर विवाद। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में एक राजनीतिक दल ने पार्टी के चुनाव चिह्न पर दावा करने के लिये भारत के निर्वाचन आयोग (ECI) से संपर्क किया है।
चुनाव चिह्न:
- चुनाव चिह्न किसी राजनीतिक दल को आवंटित एक मानकीकृत प्रतीक है।
- इस चिह्न का उपयोग पार्टियों द्वारा अपने प्रचार अभियान के दौरान किया जाता है और इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) पर इसे दर्शाया जाता है, जहाँ मतदाता संबंधित पार्टी के चिह्न के आधार पर अपना प्रतिनिधि चुनता है।
- इसका प्रावधान मुख्यतः निरक्षर लोगों द्वारा मतदान की सुविधा के लिये पेश किया गया था, जो वोट डालते समय पार्टी का नाम पढ़ने में अक्षम होते हैं ।
- 1960 के दशक में यह प्रस्तावित किया गया था कि चुनावी प्रतीकों का विनियमन, आरक्षण और आवंटन संसद के एक कानून यानी प्रतीक आदेश के माध्यम से किया जाना चाहिये।
- इस प्रस्ताव के जवाब में ECI ने कहा कि राजनीतिक दलों की मान्यता की निगरानी चुनाव चिह्न (आरक्षण और आवंटन) आदेश, 1968 के प्रावधानों द्वारा की जाती है और इसी तरह से प्रतीकों का आवंटन होगा।
ऐसे विवादों में चुनाव आयोग की शक्तियाँ:
- चुनाव चिह्न (आरक्षण और आवंटन) आदेश, 1968 चुनाव आयोग को राजनीतिक दलों को मान्यता देने और चुनाव चिह्न आवंटित करने का अधिकार देता है।
- आदेश के पैरा 15 के तहत यह प्रतिद्वंद्वी समूहों या किसी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल के वर्गों के बीच विवादों को अपने नाम और प्रतीक पर दावा करने का फैसला कर सकता है।
- प्रतिद्वंद्वी समूहों के बीच प्रतिनियुक्ति पर प्रतीक आदेश कहता है कि चुनाव आयोग को मामले के सभी उपलब्ध तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करने के बाद निर्णय लेने का अधिकार है कि एक प्रतिद्वंद्वी वर्ग या समूह या ऐसा कोई भी प्रतिद्वंद्वी वर्ग या समूह मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल नहीं है।
- आयोग का निर्णय ऐसे सभी प्रतिद्वंद्वी वर्गों/समूहों पर बाध्यकारी होगा।
- यह मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय और राज्य दलों के बीच विवादों पर लागू होता है।
- पंजीकृत लेकिन गैर-मान्यता प्राप्त पार्टियों में विभाजन के लिये चुनाव आयोग आमतौर पर युद्धरत गुटों को अपने मतभेदों को आंतरिक रूप से हल करने या अदालत जाने की सलाह देता है।
चुनाव आयोग द्वारा निर्धारण:
- ECI मुख्य रूप से एक राजनीतिक दल के भीतर अपने संगठनात्मक इकाई और उसके विधायी इकाई में दावेदार द्वारा प्राप्त समर्थन का पता लगाता है।
- संगठनात्मक संभाग के मामले में आयोग पार्टी के एकजुट होने की स्थिति में पार्टी के संविधान और इसके पदाधिकारियों की प्रस्तूत सूची की जाँच करता है।
- भारत निर्वाचन आयोग संगठन में शीर्ष समिति (समितियों) की पहचान करता है और पता लगाता है कि कितने पदाधिकारी, सदस्य या प्रतिनिधि प्रतिद्वंद्वी दावेदारों का समर्थन करते हैं।
- विधायी संभाग के मामले में पार्टी/दल प्रतिद्वंद्वी शिविरों में सांसदों (संसद सदस्य) और विधायकों (विधानसभा सदस्य) की संख्या का आकलन करती है। निर्वाचन आयोग इन सदस्यों द्वारा दायर किये गए हलफनामों पर विचार कर सकता है ताकि यह पता लगाया जा सके कि वे किसका समर्थन करते हैं।
- ECI एक गुट के पक्ष में विवाद का फैसला कर सकता है कि यह मान्यता प्राप्त पार्टी के नाम और प्रतीक के हकदार होने के लिये अपने संगठनात्मक तथा विधायी विंग में पर्याप्त समर्थन प्राप्त करता है।
- यह दूसरे समूह को स्वयं को एक अलग राजनीतिक दल के रूप में पंजीकृत करने की अनुमति दे सकता है।
क्या होता है जब कोई निश्चितता नहीं होती है?
- जब भी कोई राजनितिक दल या तो उर्ध्वाधर रूप से विभाजित होता है निश्चित रूप से यह कहना संभव नहीं होता है कि किस समूह के पास बहुमत है, तो ऐसी स्थिति में निर्वाचन आयोग राजनितिक दल के प्रतीक चिह्न को फ्रीज कर सकता है और समूहों को नए नामों के साथ स्वयं को पंजीकृत करने या पार्टी के मौजूदा नामों में उपसर्ग या प्रत्यय जोड़ने की अनुमति दे सकता है।
क्या होता है जब भविष्य में प्रतिद्वंद्वी गुट फिर से एकजुट हो जाते हैं?
- यदि वे फिर से एकजुट हो जाते हैं, तो दावेदार पुनः निर्वाचन आयोग से संपर्क कर सकते हैं और एक एकीकृत पार्टी के रूप में मान्यता प्राप्त करने की मांग कर सकते हैं।
- निर्वाचन आयोग के पास दलों के विलय को एक इकाई दल के रूप में मान्यता देने का भी अधिकार है। यह मूल पार्टी के प्रतीक और नाम को पुनर्स्थापित कर सकता है।