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भारतीय राजव्यवस्था

चुनाव चिह्न

  • 04 Oct 2021
  • 5 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारत निर्वाचन आयोग, मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल, पंजीकृत लेकिन गैर-मान्यता प्राप्त दल

मेन्स के लिये:

चुनाव चिह्न आवंटित करने संबंधी प्रक्रिया और मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत निर्वाचन आयोग (Election Commission of India-ECI) ने एक राजनीतिक दल के चुनाव चिह्न को फ्रीज़ (Freeze) करने का फैसला लिया है।

  • चुनाव चिह्न (आरक्षण और आवंटन) आदेश, 1968 चुनाव आयोग को राजनीतिक दलों को मान्यता देने और चुनाव चिह्न आवंटित करने का अधिकार देता है।

प्रमुख बिंदु

  • संदर्भ:
    • एक चुनावी/चुनाव चिन्ह किसी राजनीतिक दल को आवंटित एक मानकीकृत प्रतीक है।
    • उनका उपयोग पार्टियों द्वारा अपने प्रचार अभियान के दौरान किया जाता है और इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVMs) पर दर्शाया जाता है, जिससे मतदाता संबंधित पार्टी के लिये चिन्ह का चुनाव कर मतदान कर सकता है।
    • इन्हें निरक्षर लोगों के लिये मतदान की सुविधा हेतु प्रस्तुत किया गया था, जो मतदान करते समय पार्टी का नाम नहीं पढ़ पाते।
    • 1960 के दशक में यह प्रस्तावित किया गया था कि चुनावी प्रतीकों का विनियमन, आरक्षण और आवंटन संसद के एक कानून यानी प्रतीक आदेश के माध्यम से किया जाना चाहिये।
    • इस प्रस्ताव के जवाब में निर्वाचन आयोग ने कहा कि राजनीतिक दलों की मान्यता की निगरानी चुनाव चिह्न (आरक्षण और आवंटन) आदेश, 1968 के प्रावधानों द्वारा की जाती है और इसी के अनुसार चिह्नों का आवंटन भी होगा।
      • निर्वाचन आयोग, चुनाव के उद्देश्य से राजनीतिक दलों को पंजीकृत करता है और उनके चुनावी प्रदर्शन के आधार पर उन्हें राष्ट्रीय या राज्य पार्टियों के रूप में मान्यता देता है। अन्य पार्टियों को केवल पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त पार्टियों के रूप में घोषित किया जाता है।
      • राष्ट्रीय या राज्य पार्टियों के रूप में मान्यता कुछ विशेषाधिकारों को पार्टियों के  अधिकार के रूप में निर्धारित करती है जैसे- पार्टी प्रतीकों का आवंटन, टेलीविज़न और रेडियो स्टेशनों पर राजनीतिक प्रसारण के लिये समय का प्रावधान तथा मतदाता सूची तक पहुँच।
      • प्रत्येक राष्ट्रीय दल और राज्य स्तरीय पार्टी को क्रमशः पूरे देश तथा राज्यों में उपयोग के लिये विशेष रूप से आरक्षित एक प्रतीक चिह्न आवंटित किया जाता है।
  • चुनाव चिह्न (आरक्षण और आवंटन) आदेश, 1968:
    • आदेश के पैरा 15 के तहत चुनाव आयोग प्रतिद्वंद्वी समूहों या किसी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल के वर्गों के बीच विवादों का फैसला कर सकता है और इसके नाम तथा चुनाव चिह्न पर दावा कर सकता है।
      • आदेश के तहत विवाद या विलय के मुद्दों का फैसला करने के लिये निर्वाचन आयोग एकमात्र प्राधिकरण है। सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने वर्ष 1971 में सादिक अली और एक अन्य बनाम ECI में इसकी वैधता को बरकरार रखा।
    • यह मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय और राज्य पार्टियों के विवादों पर लागू होता है।
    • पंजीकृत लेकिन गैर-मान्यता प्राप्त पार्टियों में विभाजन के मामलों में चुनाव आयोग आमतौर पर विवाद में शामिल गुटों को अपने मतभेदों को आंतरिक रूप से हल करने या अदालत जाने की सलाह देता है।
    • चुनाव आयोग द्वारा अब तक लगभग सभी विवादों में पार्टी के प्रतिनिधियों/ पदाधिकारियों, सांसदों और विधायकों के स्पष्ट बहुमत ने एक गुट का समर्थन किया है।
    • वर्ष 1968 से पहले चुनाव आयोग ने चुनाव नियम, 1961 के संचालन के तहत अधिसूचना और कार्यकारी आदेश जारी किये।
    • जिस दल को पार्टी का चिह्न मिला था, उसके अलावा पार्टी के अलग हुए समूह को खुद को एक अलग पार्टी के रूप में पंजीकृत कराना पड़ा।
      • वे पंजीकरण के बाद राज्य या केंद्रीय चुनावों में अपने प्रदर्शन के आधार पर ही राष्ट्रीय या राज्य पार्टी की स्थिति का दावा कर सकते थे।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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