भारतीय अर्थव्यवस्था
RBI ने 2,000 रुपए के नोट को प्रचलन से हटाया
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI), विमुद्रीकरण, भ्रष्टाचार, सिक्का निर्माण अधिनियम, 2011, RBI अधिनियम, 1934, वित्त अधिनियम, 2017 मेन्स के लिये:RBI की क्लीन नोट पॉलिसी, 2,000 रुपए के नोट को प्रचलन से हटाने का प्रभाव, भारत में कानूनी निविदा के प्रकार, विमुद्रीकरण |
चर्चा में क्यों?
भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) ने 19 मई, 2023 को घोषणा की कि वह 2000 रुपए मूल्यवर्ग के नोटों को प्रचलन से वापस ले लेगा।
- हालाँकि मौजूदा नोट लीगल टेंडर बने रहेंगे। RBI ने एक उदार समय-सीमा प्रदान की है, जिससे व्यक्ति 30 सितंबर, 2023 तक नोट जमा या विनिमय कर सकते हैं।
- यह कदम RBI की क्लीन नोट पॉलिसी का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य जनता को बेहतर सुरक्षा सुविधाओं के साथ उच्च गुणवत्ता वाले करेंसी नोट एवं सिक्के प्रदान करना है
RBI का 2,000 रुपए के नोट को प्रचलन से हटाने का कारण:
- 2000 रुपए के नोट की निकासी:
- RBI के अनुसार, 2000 रुपए के नोटों को प्रचलन से हटाना उसके मुद्रा प्रबंधन कार्यों का हिस्सा है।
- विमुद्रीकरण के दौरान 500 रुपए और 1000 रुपए के नोटों को वापस लेने के बाद तत्काल मुद्रा आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु वर्ष 2016 में 2000 रुपए के नोट का प्रचलन शुरू किया गया था।
- उपलब्ध अन्य मूल्यवर्ग के नोटों की पर्याप्त आपूर्ति के साथ वर्ष 2018-19 में 2000 रुपए के नोटों की छपाई बंद कर दी गई थी, क्योंकि मुद्रा की आवश्यकता का प्रारंभिक उद्देश्य प्राप्त किया जा चुका था।
- 31 मार्च, 2023 तक प्रचलन में शामिल 2000 रुपए के नोटों का कुल मूल्य घटकर 3.62 लाख करोड़ रुपए हो गया, जो प्रचलन में कुल नोटों का केवल 10.8% है।
- अंतिम बार भारत ने नवंबर 2016 में विमुद्रीकरण किया था, जब सरकार ने जाली नोटों को चलन से हटाने के उद्देश्य से 500 और 1000 रुपए के नोट वापस ले लिये थे।
- इस कदम ने रातोंरात अर्थव्यवस्था की 86% मूल्य मुद्रा को प्रचलन से हटा दिया था।
- 2000 रुपए के नोटों को बदलना और जमा करना:
- 2000 रुपए के नोटों को बदलने और जमा करने की सीमा एक समय में 20,000 रुपए निर्धारित की गई है। गैर-खाताधारक भी इन नोटों को किसी भी बैंक शाखा में बदल सकते हैं।
- नो योर कस्टमर (KYC) अर्थात् (अपने ग्राहक को जानिये) मानदंडों और अन्य लागू नियमों के अनुपालन के अधीन बिना किसी सीमा के ये नोट बैंक खातों में जमा किये जा सकते हैं।
- प्रभाव:
- RBI गवर्नर ने कहा कि 2000 रुपए के नोटों को वापस लेने का प्रभाव अर्थव्यवस्था पर "बहुत मामूली" होगा क्योंकि प्रचलित कुल मुद्रा में इनका हिस्सा केवल 10.8 प्रतिशत है।
- इन नोटों को प्रचलन से हटाए जाने से “सामान्य जीवन या अर्थव्यवस्था” में व्यवधान उत्पन्न नहीं होगा क्योंकि अन्य मूल्यवर्गों में बैंक नोटों का पर्याप्त भंडार है।
- कुछ अर्थशास्त्रियों का कहना है कि उच्च मूल्यवर्ग के नोट वापस लेना "विमुद्रीकरण का एक उचित कदम" है और उच्च ऋण वृद्धि के समय बैंक जमा को बढ़ावा दे सकता है।
- इन नोटों को प्रचलन से हटाए जाने से जमा दर में वृद्धि पर दबाव कम हो सकता है और इसके परिणामस्वरूप अल्पकालिक ब्याज दरों में कमी आ सकती है एवं इससे काले धन और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी।
- RBI गवर्नर ने कहा कि 2000 रुपए के नोटों को वापस लेने का प्रभाव अर्थव्यवस्था पर "बहुत मामूली" होगा क्योंकि प्रचलित कुल मुद्रा में इनका हिस्सा केवल 10.8 प्रतिशत है।
RBI की क्लीन नोट पॉलिसी क्या है?
- क्लीन नोट पॉलिसी नागरिकों को मुद्रा नोट और सिक्के प्रदान करने पर केंद्रित है, जिसमें खराब, गंदे या पुराने नोटों को प्रचलन से वापस लेते समय सुरक्षा सुविधाओं को बढ़ाया जाता है।
- 'खराब नोट' का आशय ऐसे नोट से है जो सामान्य लेन-देन के कारण गंदा या क्षतिग्रस्त हो गया है और इसके अंतर्गत एक साथ चिपके हुए फटे नोट भी शामिल हैं जिसमें फटे हुए नोट के टुकड़े एक ही नोट के होते हैं और बिना किसी आवश्यक विशेषता के पूरे नोट को आकर देते हैं।
- वर्ष 2005 के बाद छपे बैंक नोटों की तुलना में कम सुरक्षा सुविधाओं के कारण वर्ष 2005 से पहले जारी किये गए सभी बैंक नोटों को RBI ने वापस ले लिया था। हालाँकि ये पुराने नोट अभी भी कानूनी निविदा हैं और अंतर्राष्ट्रीय प्रथाओं के साथ संरेखित करने के लिये वापस ले लिये गए हैं।
भारत में विमुद्रीकरण:
- परिचय:
- विमुद्रीकरण कानूनी मुद्रा के रूप में मौजूद एक मुद्रा इकाई को प्रचलन से बाहर करने का कार्य है। मुद्रा के वर्तमान रूप या रूपों को प्रचलन से वापस ले लिया जाता है और सेवानिवृत्त कर दिया जाता है, जिसे सामान्यतः नए नोटों या सिक्कों से परिवर्तित कर दिया जाता है।
- भारत में वैधता:
- भारत में विमुद्रीकरण का कानूनी आधार भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 26(2) है, जो RBI की सिफारिश पर केंद्र सरकार को आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचना द्वारा बैंक नोटों की किसी भी शृंखला को कानूनी निविदा नहीं घोषित करने का अधिकार देती है।
- भारत की विभिन्न अदालतों में दायर कई याचिकाओं में विमुद्रीकरण की वैधता को चुनौती दी गई थी।
- हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय ने विमुद्रीकरण को वैध ठहराया और कहा कि 500 रुपए तथा 1,000 रुपए के करेंसी नोटों का विमुद्रीकरण आनुपातिकता के परीक्षण को सुनिश्चित करता है।
- आनुपातिकता का परीक्षण यह दर्शाता है कि क्या विमुद्रीकरण के लाभ लागत से अधिक हैं।
- आनुपातिकता का परीक्षण सुनिश्चित करने हेतु विमुद्रीकरण के लाभ पर्याप्त रूप से महत्त्वपूर्ण होने चाहिये जो इसके कारण होने वाली लागतों और व्यवधानों को उचित ठहरा सकें।
- हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय ने विमुद्रीकरण को वैध ठहराया और कहा कि 500 रुपए तथा 1,000 रुपए के करेंसी नोटों का विमुद्रीकरण आनुपातिकता के परीक्षण को सुनिश्चित करता है।
- लाभ:
- मुद्रा का स्थिरीकरण: विमुद्रीकरण का उपयोग मुद्रा को स्थिर करने और मुद्रास्फीति से लड़ने, व्यापार को सुविधाजनक बनाने, जालसाज़ी पर अंकुश लगाने, बाज़ारों तक पहुँच बनाने तथा अनौपचारिक आर्थिक गतिविधियों को अधिक पारदर्शिता एवं काले और ग्रे बाज़ारों से दूर करने के लिये एक उपकरण के रूप में उपयोग किया गया है।
- काले धन पर अंकुश लगाना: सरकार ने तर्क दिया कि विमुद्रीकरण कर चोरी करने वालों, भ्रष्ट अधिकारियों, अपराधियों और आतंकवादियों द्वारा नकद के रूप में रखे गए काले धन या बेहिसाब आय को उजागर कर देगा।
- इससे सरकार के कर आधार और राजस्व में वृद्धि होगी और देश में भ्रष्टाचार तथा अपराध कम होंगे।
- डिजिटलीकरण को बढ़ावा देता है: यह वाणिज्यिक लेन-देन के डिजिटलीकरण को भी प्रोत्साहित करता है, अर्थव्यवस्था को औपचारिक बनाता है तथा इस प्रकार सरकार के कर राजस्व में वृद्धि करता है। यह भुगतान प्रणाली में पारदर्शिता, दक्षता के साथ ही सुविधाजनक है एवं मुद्रा की छपाई और प्रबंधन की लागत को कम करता है।
- अर्थव्यवस्था के औपचारिकीकरण का अर्थ है कंपनियों को सरकार के नियामक शासन के अंतर्गत लाने के साथ विनिर्माण और आयकर से संबंधित कानूनों के अधीन करना।
- कमियाँ:
- अस्थायी मंदी: विमुद्रीकरण के दौरान रूपांतरण प्रक्रिया आर्थिक गतिविधियों में अस्थायी मंदी का कारण बन सकती है।
- पुरानी मुद्रा की एकाएक वापसी और नई मुद्रा की सीमित उपलब्धता के कारण होने वाला व्यवधान व्यापार लेन-देन, उपभोक्ता खर्च और समग्र आर्थिक उत्पादकता में बाधा उत्पन्न कर सकता है।
- प्रशासनिक लागत: विमुद्रीकरण को लागू करने में पर्याप्त प्रशासनिक लागतें शामिल हैं। नए करेंसी नोटों की छपाई, ATMs की पुनर्गणना और परिवर्तनों के बारे में जानकारी का प्रसार करना महँगा हो सकता है।
- ये लागतें आमतौर पर सरकार द्वारा वहन की जाती हैं, जो सार्वजनिक वित्त को प्रभावित कर सकती हैं तथा अन्य आवश्यक क्षेत्रों या सार्वजनिक कल्याण कार्यक्रमों से संसाधनों को हटा सकती हैं।
- नकदी संचालित क्षेत्रों पर प्रभाव: खुदरा, आतिथ्य और छोटे व्यवसायों जैसे नकदी संचालित क्षेत्रों को विमुद्रीकरण के दौरान अधिक हानि हो सकती है।
- छोटे व्यवसाय, विशेष रूप से जो कम लाभ अधिशेष पर काम कर रहे हैं, नई भुगतान प्रणालियों के अनुकूल होने के लिये संघर्ष कर सकते हैं जिसके परिणामस्वरूप बिक्री कम हो सकती है, छंँटनी हो सकती है और अत्यधिक मामलों में व्यापार बंद हो सकता है।
- अस्थायी मंदी: विमुद्रीकरण के दौरान रूपांतरण प्रक्रिया आर्थिक गतिविधियों में अस्थायी मंदी का कारण बन सकती है।
भारत में कानूनी निविदा:
- परिचय:
- एक कानूनी निविदा मुद्रा का एक रूप है जिसे कानून द्वारा ऋण या दायित्वों के निर्वहन के लिये स्वीकार्य साधन के रूप में मान्यता प्राप्त है।
- RBI यह निर्धारित करने के लिये ज़िम्मेदार है कि लेन-देन के लिये मुद्रा के किस रूप को वैध माना जाए।
- इसमें सिक्का अधिनियम, 2011 की धारा 6 के तहत भारत सरकार द्वारा जारी किये गए सिक्के और RBI अधिनियम, 1934 की धारा 26 के तहत भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी किये गए बैंक नोट शामिल हैं।
- सरकार 1,000 रुपए तक के सभी सिक्के और 1 रुपए का नोट जारी करती है।
- RBI 1 रुपए के नोट के अलावा अन्य करेंसी नोट जारी करता है।
- एक कानूनी निविदा मुद्रा का एक रूप है जिसे कानून द्वारा ऋण या दायित्वों के निर्वहन के लिये स्वीकार्य साधन के रूप में मान्यता प्राप्त है।
- प्रकार:
- कानूनी निविदा प्रकृति में सीमित या असीमित हो सकती है।
- भारत में सिक्के सीमित वैध मुद्रा के रूप में कार्य करते हैं। एक रुपए के बराबर या उससे अधिक मूल्यवर्ग के सिक्कों को एक हज़ार रुपए तक की राशि के लिये कानूनी निविदा के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
- इसके अतिरिक्त पचास पैसे के सिक्कों को दस रुपए तक की राशि के लिये कानूनी निविदा के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
- बैंक नोट उन पर बताई गई किसी भी राशि के लिये असीमित कानूनी निविदा के रूप में कार्य करते हैं।
- भारत में सिक्के सीमित वैध मुद्रा के रूप में कार्य करते हैं। एक रुपए के बराबर या उससे अधिक मूल्यवर्ग के सिक्कों को एक हज़ार रुपए तक की राशि के लिये कानूनी निविदा के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
- कानूनी निविदा प्रकृति में सीमित या असीमित हो सकती है।
- हालाँकि काले धन पर अंकुश लगाने के लिये वित्त अधिनियम 2017 द्वारा किये गए उपायों के परिणामस्वरूप आयकर अधिनियम में एक नई धारा 269ST जोड़ी गई थी।
- एक नकद लेन-देन धारा 269ST द्वारा प्रतिबंधित था और प्रतिदिन केवल 2 लाख रुपए तक के मूल्य की अनुमति थी।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
डॉटेड लैंड्स
प्रिलिम्स के लिये:डॉटेड लैंड्स, स्वामित्व योजना (SVAMITVA), परिवेश पोर्टल (PARIVESH) भूमि संवाद (Bhumi Samvaad) मेन्स के लिये :भू-स्वामित्व विवादों से संबंधित मुद्दे और डॉटेड लैंड्स की अवधारणा, भूमि अभिलेखों के डिजिटलीकरण का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में आंध्र प्रदेश सरकार ने निषिद्ध सूची से "डॉटेड लैंड्स" को निर्गत करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाया है, जिससे किसानों को इन विवादित भूमि पर अपने पूर्ण अधिकार का प्रयोग करने की अनुमति प्राप्त हुई है।
- इस कदम का उद्देश्य स्वामित्व विवादों का समाधान करना और पात्र किसानों को भू-स्वामित्व के स्पष्ट दस्तावेज़ प्रदान करना है।
डॉटेड लैंड्स क्या है?
- परिचय:
- डॉटेड लैंड्स ऐसे विवादित भूमि क्षेत्र हैं जिनके कोई स्पष्ट भू-स्वामित्व दस्तावेज़ उपलब्ध नहीं हैं।
- आमतौर पर यह ऐसे विवादित भू क्षेत्र जिस पर एक या एक से अधिक व्यक्तियों के साथ-साथ सरकार का राजस्व विभाग भू-स्वामित्व का दावा करता है।
- इन भूमि क्षेत्रों को "डॉटेड लैंड्स" के रूप में जाना जाने लगा क्योंकि ब्रिटिश काल के दौरान जब भू-स्वामित्व सर्वेक्षण और भूमि अभिलेखों का आकलन किया गया था, तो स्थानीय राजस्व अधिकारियों को सरकारी स्वामित्व और निजी स्वामित्व वाली भूमि की पहचान करने का काम सौंपा गया था। वे इन अस्पष्ट भू स्वामित्व के क्षेत्रों, जिनमें एक से अधिक व्यक्ति स्वामित्व का दावा करते हैं या यदि स्वामित्व स्पष्ट रूप से स्थापित नहीं किया जा सकता है, को दर्शाने के लिये दस्तावेज़ में स्वामित्व कॉलम में डॉट या बिंदु से इंगित करते थे।
- डॉटेड लैंड्स ऐसे विवादित भूमि क्षेत्र हैं जिनके कोई स्पष्ट भू-स्वामित्व दस्तावेज़ उपलब्ध नहीं हैं।
- स्वामित्व विवाद का कारण:
- स्वामित्व विवाद सामान्यतः तब उत्पन्न होते हैं जब भू-स्वामी वसीयत के माध्यम से स्पष्ट विरासत स्थापित करने में विफल होते हैं या जब एक ही भूमि पर कई उत्तराधिकारी दावा करते हैं।
- कुछ मामलों में सरकार भूमि को राज्य के स्वामित्व के रूप में पहचानती है लेकिन उस पर निजी पार्टियों द्वारा कब्ज़ा कर लिया जाता है।
- डॉटेड लैंड के मुद्दे को हल करने हेतु सरकार की पहल:
- आंध्र प्रदेश सरकार ने 12 वर्षों से अधिक समय से डॉटेड लैंड पर खेती करने वाले किसानों को भूमि का अधिकार देने के लिये एक विधेयक पेश किया।
- भूमि रजिस्टरों से बिंदुओं और प्रविष्टियों को हटाने से लगभग 97,000 किसानों को स्पष्ट भूमि स्वामित्व दस्तावेज़ उपलब्ध होंगे।
- भू-स्वामी/किसान भूमि का उपयोग ऋण प्राप्त करने के लिये संपार्श्विक के रूप में कर सकते हैं, शहरी क्षेत्रों में, डॉटेड लैंड को अवैध रूप से बेचा गया है और घरों का निर्माण किया गया है, जिस पर कर नहीं लगाया जा सकता है। इसका उपयोग फसल एवं वित्तीय सहायता के लिये आवेदन करने, भूमि बेचने या उन्हें परिवार के सदस्यों को उपहार में देने हेतु कर सकते हैं।
- आंध्र प्रदेश सरकार की “जगन्नाथ शाश्वत भू हक्कू भू रक्षा योजना” के माध्यम से इस भूमि का डिजिटल रिकॉर्ड तैयार किया जाएगा ताकि भविष्य में कोई भी रिकॉर्ड के साथ छेड़छाड़ न कर सके।
- इस योजना के तहत आंध्र प्रदेश सरकार ने पहले चरण में 2,000 गाँवों में किसानों को 7,92,238 स्थायी शीर्षक विलेख प्रदान किये हैं।
- आंध्र प्रदेश सरकार ने 12 वर्षों से अधिक समय से डॉटेड लैंड पर खेती करने वाले किसानों को भूमि का अधिकार देने के लिये एक विधेयक पेश किया।
- सरकार की कार्यवाही के पीछे तर्क:
- लैंड सीलिंग के मुख्य आयुक्त को डॉटेड लैंड विवादों को हल करने के लिये 1 लाख से अधिक आवेदन प्राप्त हुए जो समाधान की तत्काल आवश्यकता को दर्शाता है।
- शहरी क्षेत्रों को अवैध बिक्री और डॉटेड लैंड पर निर्माण से संबंधित मुद्दों का सामना करना पड़ा जिसके परिणामरूप सरकार को कर चोरी तथा राजस्व की हानि का सामना करना पड़ा।
- 2,06,171 एकड़ का पंजीकरण मूल्य 8,000 करोड़ रुपए से अधिक है, जबकि भूमि का मूल्य 20,000 करोड़ रुपए से अधिक है।
भूमि विवादों को कम करने हेतु डिजिटल भूमि अभिलेखों के लिये भारत में क्या पहलें हैं?
- स्वामित्व:
- स्वामित्व पंचायती राज मंत्रालय की एक केंद्रीय क्षेत्रक योजना है जो ड्रोन तकनीक और निरंतर संचालन संदर्भ स्टेशन (CORS) का उपयोग करके ग्रामीण आबादी वाले क्षेत्रों में भूमि पार्सल का मानचित्रण करती है।
- वर्ष 2020 से 2024 तक चार वर्षों की अवधि में देश भर में चरणबद्ध तरीके से मानचित्रण किया जाएगा।
- परिवेश पोर्टल:
- परिवेश एक वेब-आधारित एप्लीकेशन है जिसे केंद्र, राज्य और ज़िला स्तर के अधिकारियों से पर्यावरण, वन, वन्यजीव एवं तटीय विनियमन क्षेत्र (CRZ) की अनुमति प्राप्त करने के लिये प्रस्तावकों द्वारा प्रस्तावों की ऑनलाइन प्रस्तुति तथा निगरानी के लिये विकसित किया गया है।
- भूमि संवाद:
- भूमि संवाद डिजिटल इंडिया भूमि रिकॉर्ड आधुनिकीकरण कार्यक्रम (DILRMP) पर एक राष्ट्रीय कार्यशाला है।
- यह देश भर में एक उपयुक्त एकीकृत भूमि सूचना प्रबंधन प्रणाली (ILIMS) विकसित करने के लिये विभिन्न राज्यों में भूमि अभिलेखों के क्षेत्र में एकरूपता लाने का प्रयास करता है, जिसमें विभिन्न राज्य राज्य-विशिष्ट आवश्यकताओं, जो कि प्रासंगिक और उपयुक्त हों, को भी जोड़ा जा सकता है।
- राष्ट्रीय सामान्य दस्तावेज़ पंजीकरण प्रणाली:
- यह मौजूदा मैनुअल पंजीकरण प्रणाली से भूमि की बिक्री-खरीद और हस्तांतरण में सभी लेन-देन के ऑनलाइन पंजीकरण के लिये एक बड़ा बदलाव है।
- यह राष्ट्रीय एकता हेतु एक बड़ा कदम है और 'वन नेशन वन सॉफ्टवेयर' की दिशा में उठाया गया है।
- अद्वितीय भूमि पार्सल पहचान संख्या:
- "भूमि के लिये आधार" के रूप में वर्णित होने के नाते विशिष्ट भूमि पार्सल पहचान संख्या एक ऐसी संख्या है जो भूमि के प्रत्येक सर्वेक्षण पार्सल की विशिष्ट रूप से पहचान करेगी और भूमि धोखाधड़ी को रोकेगी, विशेष रूप से ग्रामीण भारत के भीतरी इलाकों में जहाँ भूमि रिकॉर्ड पुराने हैं और अक्सर विवादित होते हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्नप्रश्न. स्वतंत्र भारत में भूमि सुधारों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा सही है? (2019) (a) हदबंदी कानून पारिवारिक जोत पर केंद्रित थे, न कि व्यक्तिगत जोत पर। उत्तर: (b) प्रश्न. कृषि विकास में भूमि सुधारों की भूमिका की विवेचना कीजिये। भारत में भूमि सुधारों की सफलता के लिये उत्तरदायी कारकों को चिह्नित कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2016) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
G7 सम्मेलन: जलवायु लक्ष्य, गांधी प्रतिमा और क्वाड जलवायु पहल
प्रिलिम्स के लिये:G7 सम्मेलन, क्वाड लीडर्स समिट, G7 देश, नेट-ज़ीरो लक्ष्य, हिंद-प्रशांत क्षेत्र मेन्स के लिये:वैश्विक चुनौतियों के समाधान हेतु G7 सम्मेलन की भूमिका, क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने में क्वाड का महत्त्व, भारत की विदेश नीति, जलवायु परिवर्तन और वैश्विक सुरक्षा के बीच संबंध |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में 49वें G7 सम्मेलन के दौरान सदस्य देशों ने वर्तमान में चल रहे अध्ययनों और रिपोर्टों के उत्तर में अपनी जलवायु संबंधी कार्य सूची के प्रमुख बिंदुओं को रेखांकित किया है। ये जलवायु परिवर्तन की बिगड़ती स्थिति के बारे में चेतावनी देने तथा तत्काल कार्यवाही का आग्रह करते हैं।
- इस शिखर सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री ने जापान के हिरोशिमा में महात्मा गांधी की एक प्रतिमा का अनावरण भी किया।
- इसके अतिरिक्त G7 सम्मेलन के मौके पर क्वाड लीडर्स समिट का आयोजन भी किया गया जिसमें हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिये साझा लोकतांत्रिक मूल्यों, रणनीतिक हितों और पहलों पर महत्त्वपूर्ण चर्चा की गई है।
G7 की प्रमुख जलवायु संबंधी कार्य सूची:
- वर्ष 2025 तक उत्सर्जन का वैश्विक स्तर:
- G7 ने वर्ष 2025 तक वैश्विक स्तर पर न्यूनतम उत्सर्जन की आवश्यकता पर बल दिया है।
- जबकि यह पेरिस समझौते के तहत अनिवार्य नहीं है और इसे प्राप्त करना संभव है।
- हालाँकि विकसित देशों के उत्सर्जन में गिरावट देखी जा रही है लेकिन यह कमी आवश्यक गति के साथ नहीं हो रही है, जबकि विकासशील देशों का उत्सर्जन अभी भी बढ़ रहा है।
- यदि सभी देश केवल अपनी मौजूदा प्रतिबद्धताओं को पूरा करते हैं, तो वर्ष 2030 में उत्सर्जन वर्ष 2010 के स्तर से लगभग 11 प्रतिशत अधिक होगा।
- G7 ने वर्ष 2025 तक वैश्विक स्तर पर न्यूनतम उत्सर्जन की आवश्यकता पर बल दिया है।
- जीवाश्म ईंधन के उपयोग को समाप्त करना:
- G7 जीवाश्म ईंधन के उपयोग को समाप्त करने के लिये एक विशिष्ट समय-सीमा निर्धारित नहीं करता है, लेकिन 1.5 डिग्री सेल्सियस प्रक्षेपवक्र के अनुरूप "असंतुलित जीवाश्म ईंधन" की चरणवार समाप्ति को तेज़ करने के लिये प्रतिबद्ध है।
- इनका लक्ष्य "अपर्याप्त सब्सिडी" की परिभाषा निर्दिष्ट किये बिना वर्ष 2025 या उससे पहले "अपर्याप्त जीवाश्म ईंधन सब्सिडी" को समाप्त करना है।
- G7 देशों का दावा है कि उन्होंने सीमित परिस्थितियों को छोड़कर नई जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा परियोजनाओं का वित्तपोषण करना बंद कर दिया है।
- नेट-ज़ीरो लक्ष्य:
- G-7 ने वर्ष 2050 तक नेट-ज़ीरो स्थिति प्राप्त करने की अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया और अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं से भी ऐसा करने का आग्रह किया।
- 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को पूरा करने के लिये सदी के मध्य तक संपूर्ण विश्व को नेट-ज़ीरो स्थिति प्राप्त कर लेनी चाहिये।
- चीन का लक्ष्य वर्ष 2060 तक नेट-ज़ीरो स्थिति प्राप्त करना है, जबकि भारत ने वर्ष 2070 को अपने लक्ष्य के रूप में निर्धारित किया है।
- प्रमुख विकासशील देश वर्ष 2050 के बाद विकसित प्रौद्योगिकियों और स्वच्छ ऊर्जा को अपनाने की दिशा अपने लक्ष्यों में परिवर्तन कर सकते है।
G-7 जलवायु कार्य-सूची को लागू करने में क्या चुनौतियाँ हैं?
- अपर्याप्त क्रियान्वयन और विसंगतियाँ:
- वैश्विक उत्सर्जन में G-7 देशों का 20% का योगदान है लेकिन इस समूह ने प्रभावी तरीके से अपने वादों को पूरा नहीं किया है।
- 1.5 डिग्री सेल्सियस और 2 डिग्री सेल्सियस तापमान लक्ष्यों के साथ संरेखित करने के लिये पर्याप्त और सुसंगत क्रियान्वयन का अभाव है।
- G-7 सदस्य देश पेरिस समझौते के लक्ष्य के अनुरूप राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDCs) को अद्यतन करने में विफल रहे है।
- अपर्याप्त जलवायु वित्त सहायता:
- G-7 देश पेरिस समझौते के लक्ष्यों से सहमत विकासशील देशों को जलवायु वित्त प्रदान करने में कठिनाई से उपलब्ध और अपर्याप्त रहे हैं।
- विकासशील देश जो जलवायु प्रभावों से असमान रूप से प्रभावित हैं, उन विकासशील देशों को अनुकूलन और लचीलेपन के समर्थन की आवश्यकता है।
- ऑक्सफैम की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2019 में विकसित देशों ने जलवायु वित्त का केवल 20% अनुकूलन के लिये आवंटित किया था जिसकी अल्प विकासशील देशों तक पहुँच थी।
- जीवाश्म ईंधन पर निरंतर निर्भरता:
- जीवाश्म ईंधन विशेष रूप से कोयले पर उनकी निरंतर निर्भरता के लिये G-7 देशों की आलोचना की गई।
- जीवाश्म ईंधन विशेष रूप से कोयला अत्यधिक कार्बन-गहन ऊर्जा स्रोत है जो जलवायु परिवर्तन को बढ़ा रहा है।
- ऑयल चेंज इंटरनेशनल इस बात पर प्रकाश डालता है कि G-7 देशों ने स्वच्छ ऊर्जा में निवेश की सीमा को पार करते हुए जीवाश्म ईंधन के लिये महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक वित्त प्रदान किया है।
- जीवाश्म ईंधन विशेष रूप से कोयले पर उनकी निरंतर निर्भरता के लिये G-7 देशों की आलोचना की गई।
भारत के प्रधानमंत्री ने हिरोशिमा में गांधी की प्रतिमा का अनावरण किया:
- महात्मा गांधी बीसवीं सदी के सबसे प्रभावशाली नेताओं में से एक थे जिन्होंने अहिंसा, शांति, न्याय और मानव गरिमा के सिद्धांतों का समर्थन किया। हिरोशिमा पीस मेमोरियल पार्क में उनकी प्रतिमा का अनावरण उनकी विरासत को श्रद्धांजलि और वर्तमान में दुनिया में उनकी प्रासंगिकता की याद दिलाने के रूप में किया गया।
- यह सांकेतिक रूप से एक और परमाणु तबाही को रोकने तथा परमाणु निरस्त्रीकरण एवं अप्रसार की दिशा में आगे बढ़ने की G-7 और उसके भागीदारों की साझा प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करता है।
- साथ ही वर्ष 1945 में हिरोशिमा (Hiroshima) और नागासाकी (Nagasaki) में हुए परमाणु बम विस्फोटों में जीवित बचे हिबाकुशा (Hibakusha) की पीड़ा को महसूस करते हुए उनके प्रति संवेदनशीलता व्यक्त करना था।
- इस प्रतिमा को वैश्विक शांति और सुरक्षा में भारत की भूमिका और योगदान के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन सहित विभिन्न मुद्दों पर जापान के साथ साझेदारी के रूप में भी देखा गया।
- अनावरण समारोह में G7 नेताओं के साथ भारत के प्रधानमंत्री ने भाग लिया, जिन्हें ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया और दक्षिण अफ्रीका के अन्य नेताओं के साथ शिखर सम्मेलन में अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था।
क्वाड लीडर्स समिट के परिणाम:
- क्वाड लीडर्स समिट को 23 मई, 2023 को G7 शिखर सम्मेलन के अवसर पर आयोजित किया गया था। इसमें भारत के प्रधानमंत्री, अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन, ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन और जापान के प्रधानमंत्री योशिहिदे सुगा शामिल हुए।
- क्वाड चार लोकतंत्रों के बीच एक अनौपचारिक रणनीतिक संवाद है जो भारत-प्रशांत क्षेत्र में समान हितों और मूल्यों को साझा करता है।
- क्वाड सदस्यों के बीच सहयोग के प्रमुख क्षेत्रों में से एक जलवायु परिवर्तन है। नेताओं ने एक संयुक्त बयान जारी किया जिसमें पेरिस समझौते और इसके पूर्ण कार्यान्वयन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि की गई।
- उन्होंने स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन, नवाचार, अनुकूलन और लचीलापन पर सहयोग बढ़ाने के लिये कई पहलों की भी घोषणा की। इनमें से कुछ पहलें हैं:
- घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय जलवायु नीतियों पर अपने प्रयासों का समन्वय करने के लिये एक नया क्वाड क्लाइमेट वर्किंग ग्रुप लॉन्च करना।
- तकनीकी सहायता, क्षमता निर्माण और वित्तपोषण तंत्र के माध्यम से हिंद-प्रशांत देशों में स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के परिनियोजन का समर्थन करने के लिये क्वाड क्लीन एनर्जी पार्टनरशिप की स्थापना करना।
- सूचना साझा करने, सर्वोत्तम प्रथाओं और मानकों के विकास के माध्यम से समुद्री परिवहन के डीकार्बोनाइज़ेशन को बढ़ावा देने हेतु क्वाड ग्रीन शिपिंग नेटवर्क का समर्थन करना।
- संयुक्त अभ्यास, प्रशिक्षण और सूचना साझा करने के माध्यम से आपदा जोखिम में कमी तथा प्रबंधन पर सहयोग का विस्तार करना।
- वनों, आर्द्रभूमियों तथा मैंग्रोव जैसे पारिस्थितिक तंत्रों के संरक्षण और बहाली के माध्यम से जलवायु शमन एवं अनुकूलन के लिये प्रकृति-आधारित समाधानों का समर्थन करना।
G7:
- यह एक अंतर-सरकारी संगठन है, जिसका गठन वर्ष 1975 में किया गया था।
- वैश्विक आर्थिक शासन, अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा और ऊर्जा नीति जैसे सामान्य हित के मुद्दों पर चर्चा करने के लिये समूह की वार्षिक बैठक होती है।
- G-7 देश यूनाइटेड किंगडम, कनाडा, फ्राँस, जर्मनी, इटली, जापान और अमेरिका हैं।
- सभी G-7 देश और भारत G20 का हिस्सा हैं।
- G-7 का कोई औपचारिक चार्टर या सचिवालय नहीं है। प्रेसीडेंसी जो प्रत्येक वर्ष सदस्य देशों के बीच आवंटित होती है, एजेंडा तय करने हेतु प्रभारी होती है। शिखर सम्मेलन से पहले शेरपा, मंत्री और दूत नीतिगत पहल करते हैं।
- 49वाँ G7 शिखर सम्मेलन जापान के हिरोशिमा में आयोजित किया गया।
क्वाड समूह:
- क्वाड- भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान का एक समूह है।
- सभी चारों राष्ट्र लोकतांत्रिक होने के कारण इनकी एक समान आधारभूमि है और निर्बाध समुद्री व्यापार एवं सुरक्षा के साझा हित का भी समर्थन करते हैं।
- इसका उद्देश्य "मुक्त, स्पष्ट और समृद्ध" इंडो-पैसिफिक क्षेत्र सुनिश्चित करना तथा उसका समर्थन करना है।
- क्वाड का विचार पहली बार वर्ष 2007 में जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने रखा था। हालाँकि यह विचार आगे विकसित नहीं हो सका, क्योंकि ऑस्ट्रेलिया पर चीन के दबाव के कारण ऑस्ट्रेलिया ने स्वयं को इससे दूर कर लिया।
- अंतत: वर्ष 2017 में भारत, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और जापान ने एक साथ आकर इस "चतुर्भुज" गठबंधन का गठन किया।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. "अभीष्ट राष्ट्रीय निर्धारित अंशदान (Intended Nationally Determined Contributions)" पद को कभी-कभी समाचारों में किस संदर्भ में देखा जाता है? (2016) (a) युद्ध-प्रभावित मध्य-पूर्व के शरणार्थियों के पुनर्वास के लिये यूरोपीय देशों द्वारा दिया गया वचन उत्तर: (b) प्रश्न. वर्ष 2015 में पेरिस में UNFCCC बैठक में हुए समझौते के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?(2016)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 3 उत्तर : b प्रश्न. निम्नलिखित में से किस समूह के सभी चार देश G20 के सदस्य हैं? (2020) (a) अर्जेंटीना, मेक्सिको, दक्षिण अफ्रीका और तुर्की उत्तर: (a) मेन्सप्रश्न. 'जलवायु परिवर्तन' एक वैश्विक समस्या है। भारत जलवायु परिवर्तन से किस प्रकार प्रभावित होगा? जलवायु परिवर्तन द्वारा भारत के हिमालयी और समुद्रतटीय राज्य किस प्रकार प्रभावित होंगे? ‘(2017) प्रश्न. संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मलेन (यू.एन.एफ.सी.सी.सी.) के सी.ओ.पी. के 26वें सत्र के प्रमुख परिणामों का वर्णन कीजिये। इस सम्मेलन में भारत द्वारा की गई वचनबद्धताएँ क्या हैं?(2021) |
स्रोत: द हिंदू
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
ह्यूमन पैनजीनोम मैप
प्रिलिम्स के लिये:ह्यूमन पैनजीनोम मैप, जीनोम, डीएनए, जीन, रेफरेंस जीनोम, जीनोम इंडिया प्रोजेक्ट मेन्स के लिये:ह्यूमन पैनजीनोम मैप और इसका महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में नेचर जर्नल में एक नया अध्ययन प्रकाशित हुआ है, जिसमें मुख्य रूप से अफ्रीका के साथ-साथ कैरिबियन, अमेरिका, पूर्वी एशिया और यूरोप के 47 गुमनाम व्यक्तियों (19 पुरुष तथा 28 महिलाएँ) के जीनोम का उपयोग करके बनाया गया पैनजीनोम रेफरेंस मैप का वर्णन किया गया है।
जीनोम:
- परिचय:
- जीनोम जीवन के लिये एक रूपरेखा या निर्देश पुस्तिका की तरह है। इसमें हमारे सभी जीन तथा जीनों के बीच का अंतर शामिल होता है जो हमारे गुणसूत्र का निर्माण करते हैं।
- हमारे गुणसूत्र डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड (Deoxyribonucleic Acid- DNA) से बने होते हैं, जो न्यूक्लियोटाइड्स या बेस (A, T, G और C) नामक चार बिल्डिंग ब्लॉक्स से बना एक लंबा तंतु है। इन बिल्डिंग ब्लॉक्स को विभिन्न संयोजनों में व्यवस्थित किया जाता है और 23 जोड़ी गुणसूत्रों को बनाने के लिये लाखों बार दोहराया जाता है।
- जीनोम हमारे जेनेटिक मेकअप के बारे में मूल्यवान जानकारी प्रदान करता है और शोधकर्त्ताओं को मानव जीव विज्ञान तथा स्वास्थ्य के विभिन्न पहलुओं का पता लगाने में मदद करता है।
- जीनोम अनुक्रमण:
- जीनोम अनुक्रमण वह विधि है जिसका उपयोग चार न्यूक्लियोटाइड्स (A, T, G और C) के सटीक क्रम के निर्धारण तथा उन्हें गुणसूत्रों में कैसे व्यवस्थित किया जाए, के लिये किया जाता है।
- अलग-अलग जीनोम का अनुक्रमण करके वैज्ञानिक मानव आनुवंशिक विविधता के बारे में जान सकते हैं और यह समझ सकते हैं कि कुछ बीमारियाँ हमें कैसे प्रभावित करती हैं।
संदर्भ जीनोम:
- परिचय:
- संदर्भ जीनोम या संदर्भ मानचित्र एक मानक मानचित्र की तरह होता है जिसका उपयोग वैज्ञानिक तब करते हैं जब वे नए जीनोम का अनुक्रम और अध्ययन करते हैं। यह नए अनुक्रमित जीनोम एवं संदर्भ जीनोम के बीच के अंतरों की तुलना करने तथा समझने हेतु’ दिशा-निर्देश के रूप में कार्य करता है।
- महत्त्व:
- वर्ष 2001 में बनाया गया पहला संदर्भ जीनोम एक महत्त्वपूर्ण वैज्ञानिक उपलब्धि थी। इसने वैज्ञानिकों को रोग-संबंधी जीन खोजने, कैंसर जैसी बीमारियों के आनुवंशिक पहलुओं को समझने एवं नए नैदानिक परीक्षण विकसित करने में मदद की। हालाँकि इसकी कमियों के कारण यह उपयोगी नहीं था।
- दोष:
- यह ज़्यादातर अफ्रीकी और यूरोपीय मिश्रित वंश के व्यक्ति के जीनोम पर आधारित था और इसमें कुछ अंतराल और कमियाँ थीं।
- जबकि नया संदर्भ जीनोम या पैन-जीनोम व्यापक और त्रुटि मुक्त है, फिर भी यह मानव आनुवंशिकी की पूर्ण विविधता का प्रतिनिधित्व नहीं करता है।
पैन जीनोम मैप:
- पैन जीनोम मैप:
- पैन जीनोम, पिछले रैखिक संदर्भ जीनोम के विपरीत एक ग्राफ के रूप में दर्शाया गया है। पैन जीनोम में प्रत्येक गुणसूत्र की नोड्स के साथ बाँस के तने के रूप में कल्पना की जा सकती है।
- ये नोड्स अनुक्रमों के विस्तार को प्रदर्शित करते हैं जो सभी 47 व्यक्तियों के बीच अनुक्रमों का खंड अभिसरण (समान) हैं। नोड्स के बीच इंटरनोड्स लंबाई में भिन्न होते हैं एवं विभिन्न वंशों के व्यक्तियों के बीच आनुवंशिक भिन्नता को प्रदर्शित करते हैं।
- पैन-जीनोम परियोजना में गुणसूत्रों के पूर्ण और निरंतर मानचित्रण के लिये शोधकर्त्ताओं ने लॉन्ग-रीड DNA अनुक्रमण नामक एक तकनीक का उपयोग किया जिसके द्वारा सटीक एवं लॉन्ग DNA स्ट्रैंड का उत्पादन कर पूर्ण और निरंतर गुणसूत्र मानचित्रण किया जा सकता है।
- पैन जीनोम मैप का महत्त्व:
- हालाँकि कोई भी दो इंसान अपने DNA का 99% से अधिक हिस्सा साझा कर सकते हैं, किंतु फिर भी किन्हीं दो व्यक्तियों के मध्य लगभग 0.4% DNA का अंतर रहता है। यह अंतर कम हो सकता है लेकिन मानव जीनोम (3.2 बिलियन न्यूक्लियोटाइड्स) के विशाल आकार को देखते हुए यह अंतर जो कि लगभग 12.8 मिलियन न्यूक्लियोटाइड्स का है, महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
- मानव जीनोम का एक पूर्ण और सटीक पैन जीनोम मैप इन अंतरों को बेहतर ढंग से समझने एवं इंसानों के मध्य विविधता की व्याख्या करने में मदद कर सकता है।
- यह आनुवंशिक विविधताओं का अध्ययन करने में भी सहायता करेगा जो अंतर्निहित स्वास्थ्य स्थितियों में योगदान करते हैं।
- हालाँकि वर्तमान मैप/मानचित्रण में भारतीयों के जीनोम शामिल नहीं हैं, फिर भी यह मौजूदा ऐक्यूरेट रेफरेंस जीनोम के सम्मुख भारतीय जीनोम की तुलना और मानचित्रण करने में सहायक होगा।
- भविष्य का पैन जीनोम मानचित्रण उच्च गुणवत्ता वाले भारतीय जीनोम सहित देश के भीतर विविध और अलग-थलग आबादी को समाहित करते हुए रोगों की व्यापकता, दुर्लभ रोगों से संबंधित नए जीनों की खोज, बेहतर नैदानिक तरीकों तथा इन रोगों के लिये उचित दवाओं के विकास में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करेंगे।
- कमियाँ:
- हालाँकि वर्तमान पैन जीनोम मैप में अफ्रीका, भारतीय उपमहाद्वीप, एशिया और ओशिनिया में स्वदेशी समूहों तथा पश्चिम एशियाई क्षेत्रों जैसी विविध आबादी के प्रतिनिधित्व का अभाव है।
भारत में जीनोम मैपिंग पहल की स्थिति:
- अप्रैल 2023 में सरकार ने घोषणा की कि उसका लक्ष्य जीनोम इंडिया प्रोजेक्ट (GIP) के तहत वर्ष 2023 के अंत तक 10,000 जीनोम का अनुक्रम करना है।
- GIP का उद्देश्य भारतीय जीनोम का एक डेटाबेस बनाना है, शोधकर्त्ता इन अद्वितीय आनुवंशिक रूपों के बारे में जान सकते हैं और दवाओं के निर्माण एवं उपचार के लिये व्यक्तिगत जानकारी का उपयोग कर सकते हैं।
- यूनाइटेड किंगडम, चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका उन देशों में से हैं जिनके पास अपने जीनोम के कम-से-कम 1,00,000 अनुक्रमों के लिये कार्यक्रम हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. भारत में कृषि के संदर्भ में प्रायः समाचारों में आने वाले ' जीनोम अनुक्रमण (जीनोम सीक्वेंसिंग)' की तकनीक का आसन्न भविष्य में किस प्रकार उपयोग किया जा सकता है? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (d)
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स्रोत: द हिंदू
भारतीय राजनीति
एल्डरमैन
प्रिलिम्स के लिये:एल्डरमैन, लेफ्टिनेंट-गवर्नर, MCD, दिल्ली नगर निगम अधिनियम-1957, संविधान का अनुच्छेद 239AA, कार्य संचालन नियम 1961 मेन्स के लिये:दिल्ली में एल्डरमैन की नियुक्ति का मुद्दा |
चर्चा में क्यों?
सर्वोच्च न्यायालय ने उपराज्यपाल द्वारा एल्डरमैन की नियुक्ति के खिलाफ दिल्ली सरकार द्वारा दायर की गई याचिका पर विचार करते हुए कहा कि उपराज्यपाल का सदस्यों को नामित करने का अधिकार निर्वाचित दिल्ली नगर निगम को अस्थिर कर सकता है।
एल्डरमैन:
- परिचय:
- व्युत्पन्न रूप से यह शब्द "एल्डर" और "मैन" के संयोजन से बना है जिसका अर्थ है वृद्ध व्यक्ति या अनुभवी व्यक्ति है।
- यह शब्द मूल रूप से एक कबीले या जनजाति के बुजुर्गों के लिये संदर्भित था, हालाँकि जल्द ही यह उम्र पर विचार किये बिना राजा के वायसराय के लिये एक शब्द बन गया। साथ ही इसने नागरिक और सैन्य दोनों कर्तव्यों वाले एक अधिक विशिष्ट शीर्षक- "एक काउंटी के मुख्य मजिस्ट्रेट" को निरूपित किया।
- 12वीं सदी CE में जैसे-जैसे संघ नगरपालिका सरकारों के साथ तीव्रता से जुड़ते गए, इस शब्द का प्रयोग नगर निकायों के अधिकारियों के लिये किया जाने लगा। यही वह अर्थ है जिसको आज तक प्रयोग किया जाता है।
- दिल्ली के संदर्भ में:
- दिल्ली नगर निगम अधिनियम, 1957 के अनुसार, 25 वर्ष से अधिक आयु के दस लोगों को उपराज्यपाल (LG) द्वारा निगम में नामित किया जा सकता है।
- इन लोगों से नगरपालिका प्रशासन में विशेष ज्ञान या अनुभव की अपेक्षा की जाती है।
- वे सार्वजनिक महत्त्व के निर्णय लेने में सदन की सहायता करते हैं।
एल्डरमैन की नियुक्ति से संबंधित चिंताएँ
- पहली चिंता नामित व्यक्तियों की उपयुक्तता से संबंधित है। उपराज्यपाल को सिफारिशें सौंपे जाने के बाद यह पता चला कि 10 नामांकित व्यक्तियों में से दो को तकनीकी रूप से पद के अनुपयुक्त माना गया था। यह नामांकन प्रक्रिया की संपूर्णता और पारदर्शिता पर सवाल उठाता है क्योंकि ऐसे व्यक्ति जो इस भूमिका के लिये योग्य या उपयुक्त नहीं हैं, उन्हें नियुक्त नहीं किया जाना चाहिये।
- दूसरी चिंता इस धारणा के इर्द-गिर्द घूमती है कि उपराज्यपाल द्वारा एल्डरमैन की नियुक्ति दिल्ली नगर निगम (Municipal Corporation of Delhi- MCD) के भीतर चुनाव में पराजित दल के नियंत्रण और प्रभाव को बनाए रखने का एक प्रयास है। यह दिल्ली नगर निगम के भीतर प्रतिनिधित्व के लोकतांत्रिक सिद्धांतों तथा शक्तियों की गतिशीलता की निष्पक्षता के संबंध में चिंता को दर्शाता है।
सर्वोच्च न्यायालय का पक्ष:
- उपराज्यपाल का प्रतिनिधित्व करने वाले अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने तर्क दिया कि संविधान के अनुच्छेद 239AA के तहत उपराज्यपाल की शक्तियों और राष्ट्रीय राजधानी के प्रशासक के रूप में उनकी भूमिका के बीच अंतर है। उन्होंने दावा किया कि कानून के आधार पर एल्डरमैन के नामांकन में उपराज्यपाल की सक्रिय भूमिका है।
- हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि उपराज्यपाल को शक्ति देकर यह लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित MCD को संभावित रूप से अस्थिर कर सकता है क्योंकि उनके पास मतदान की शक्ति होगी।
- सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि उपराज्यपाल के पास राष्ट्रीय राजधानी में व्यापक कार्यकारी शक्तियाँ नहीं हैं, जो शासन के अद्वितीय "असममित संघीय मॉडल" के तहत संचालित होती हैं।
- यह शब्द "असममित संघीय मॉडल" शासन की एक प्रणाली को संदर्भित करता है जिसमें एक संघ के भीतर विभिन्न क्षेत्रों या घटकों के पास स्वायत्तता एवं शक्तियों का अलग-अलग क्षेत्राधिकार होता है।
- न्यायालय ने स्पष्ट किया कि उपराज्यपाल अनुच्छेद 239AA(3)(A) के तहत केवल तीन विशिष्ट क्षेत्रों में अपने विवेक से कार्यकारी शक्ति का प्रयोग कर सकता है:
- सार्वजनिक व्यवस्था
- पुलिस
- दिल्ली में भूमि
- न्यायालय ने यह भी कहा कि यदि उपराज्यपाल राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार के मंत्रिपरिषद से असहमत है, तो उसे लेन-देन के कार्य (Transaction of Business- ToB) नियम 1961 में उल्लिखित प्रक्रिया का पालन करना चाहिये।
- लेन-देन के कार्य (Transaction of Business- ToB) नियम संविधान के अनुच्छेद 77(3) का भाग हैं, जो सरकार के विभिन्न विभागों और मंत्रालयों के मध्य कार्य एवं ज़िम्मेदारियों के आवंटन के लिये एक रूपरेखा प्रदान करये हैं। ये नियम सरकारी नीतियों के निर्माण, निर्णयों और कार्यों, अनुमोदन और कार्यान्वयन के लिये प्रक्रियाओं की रूपरेखा तैयार करने में सहायक होते हैं।
दिल्ली सरकार और केंद्र के बीच क्या मतभेद है?
- प्रष्ठभूमि:
- अनुच्छेद 239 और 239AA के सह-अस्तित्त्व के कारण NCT की सरकार और केंद्र सरकार तथा उसके प्रतिनिधि के रूप में उपराज्यपाल के मध्य एक न्यायिक संघर्ष की स्थिति रही है।
- केंद्र सरकार का मानना है कि नई दिल्ली एक केंद्रशासित प्रदेश है एवं अनुच्छेद 239 उपराज्यपाल को यहाँ की मंत्रिपरिषद से स्वतंत्र रूप से कार्य करने का अधिकार देता है।
- जबकि दिल्ली की राज्य सरकार का मानना है कि संविधान का अनुच्छेद 239AA दिल्ली में विधायी रूप से निर्वाचित सरकार होने का विशेष दर्जा देता है।
- यह दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के उपराज्यपाल और राज्य सरकार की प्रशासनिक शक्तियों के मध्य विवाद की स्थिति को पैदा करता है।
- केंद्र और राज्य सरकारों के तर्क:
- केंद्र सरकार का मानना है कि क्योंकि दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी है और देश का प्रतिनिधित्व करती है, इसलिये नियुक्तियों एवं तबादलों सहित प्रशासनिक सेवाओं पर केंद्र का अधिकार होना चाहिये।
- हालाँकि दिल्ली सरकार का तर्क है कि संघवाद की भावना में निर्वाचित प्रतिनिधियों के पास स्थानांतरण और नियुक्ति पर निर्णय लेने की शक्ति होनी चाहिये।
- कानूनी मुद्दे :
- फरवरी 2019 में दो न्यायाधीशों की खंडपीठ द्वारा दिल्ली सरकार और केंद्र के बीच शक्तियों के आवंटन पर निर्णय लेते समय यह मुद्दा सामने आया था।
- उन्होंने प्रशासनिक सेवा नियंत्रण के सवाल को बड़ी बेंच द्वारा तय किये जाने के लिये छोड़ दिया था।
- केंद्र सरकार की याचिका पर मई 2022 में तीन जजों की बेंच ने इस मामले को बड़ी बेंच को रेफर कर दिया था।
- तीन न्यायाधीशों की खंडपीठ ने निर्णय लिया था कि प्रशासनिक सेवाओं पर नियंत्रण के प्रश्न को "पुनः समीक्षा" की आवश्यकता है।
- दूसरे मुद्दे में संसद द्वारा पारित राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) अधिनियम, 2021 शामिल है।
- अधिनियम में कहा गया है कि दिल्ली विधानसभा द्वारा बनाए गए किसी भी कानून में उल्लिखित "सरकार" शब्द उपराज्यपाल को संदर्भित करेगा।
स्रोत: द हिंदू
कृषि
विश्व मधुमक्खी दिवस
प्रिलिम्स के लिये:विश्व मधुमक्खी दिवस, संयुक्त राष्ट्र महासभा, राष्ट्रीय मधुमक्खी बोर्ड, पश्चिमी घाट, भारतीय काली मधुमक्खी, मीठी क्रांति मेन्स के लिये:मधुमक्खियों का महत्त्व, मधुमक्खियों से संबंधित खतरे और चुनौतियाँ, भारत में मधुमक्खी पालन की स्थिति, मीठी क्रांति |
चर्चा में क्यों?
कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय (MoA&FW) ने 20 मई, 2023 को मध्य प्रदेश के बालाघाट में विश्व मधुमक्खी दिवस मनाया।
- इस कार्यक्रम का उद्देश्य आत्मनिर्भर भारत पहल के तहत राष्ट्रीय मधुमक्खी पालन और शहद मिशन (National Beekeeping & Honey Mission- NBHM) के माध्यम से देश भर में मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देना एवं लोकप्रिय बनाना है।
- वर्ष 2023 की थीम “परागण-अनुकूल कृषि उत्पादन में शामिल मधुमक्खी (Bee engaged in pollinator-friendly agricultural production)” है।
विश्व मधुमक्खी दिवस और इसका महत्त्व:
- परिचय:
- विश्व मधुमक्खी दिवस एक वार्षिक कार्यक्रम है जो 20 मई को पर्यावरण, खाद्य सुरक्षा और जैवविविधता हेतु मधुमक्खियों एवं अन्य परागणकों के महत्त्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये मनाया जाता है।
- स्लोवेनिया के आधुनिक मधुमक्खी पालन के अग्रदूत एंटोन जानसा के जन्मदिन के उपलक्ष्य में इस तारीख को चुना गया था।
- स्लोवेनिया के एक प्रस्ताव और 115 देशों के समर्थन के बाद संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2017 में विश्व मधुमक्खी दिवस घोषित किया।
नोट: पोलिनेटर/परागणक ऐसे एजेंट होते हैं जो परागण की प्रक्रिया में सहायता करते हैं। परागण एक फूल के नर प्रजनन अंगों (एन्थर्स) से उसी या एक अलग फूल के मादा प्रजनन अंगों (स्टिग्मा) में पराग कणों का स्थानांतरण है, जिससे निषेचन एवं बीजों का उत्पादन होता है।
मधुमक्खियों की प्रासंगिकता:
- परागण में सहायक:
- मधुमक्खियाँ कई पौधों और जंतुओं के अस्तित्त्व के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, क्योंकि ये विश्व की लगभग एक-तिहाई फसलों और 90% वन्य पुष्पीय पौधों को परागित करती हैं।
- ये शहद, मोम, प्रोपोलिस और अन्य मूल्यवान उत्पादों का भी उत्पादन करती हैं जिनके पोषणीय, औषधीय और आर्थिक लाभ हैं।
- जलवायु परिवर्तन से निपटने में सहायक:
- मधुमक्खियाँ पौधों को तेज़ी से एवं स्वस्थ रूप से बढ़ने में मदद करती हैं, जिससे उनके कार्बन ग्रहण और भंडारण क्षमता में वृद्धि होती है। मधुमक्खियाँ रासायनिक उर्वरकों तथा कीटनाशकों की आवश्यकता को भी कम करती हैं, जो कि वातावरण में हानिकारक गैसों का उत्सर्जन करते हैं।
- ये पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य की संकेतक भी हैं, क्योंकि ये पर्यावरणीय परिवर्तनों, जैसे कि जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण, आवास हानि तथा कीटनाशकों के प्रति प्रतिक्रिया देती हैं।
- मधुमक्खियाँ पौधों को तेज़ी से एवं स्वस्थ रूप से बढ़ने में मदद करती हैं, जिससे उनके कार्बन ग्रहण और भंडारण क्षमता में वृद्धि होती है। मधुमक्खियाँ रासायनिक उर्वरकों तथा कीटनाशकों की आवश्यकता को भी कम करती हैं, जो कि वातावरण में हानिकारक गैसों का उत्सर्जन करते हैं।
- फसल उत्पादकता की वृद्धि में सहायक:
- ये विभिन्न फसलों जैसे फलों, सब्जियों, तिलहन, दालों आदि में परागण के द्वारा इनकी उत्पादकता और गुणवत्ता बढ़ाने में सहायक होती हैं।
- यह अनुमान लगाया गया है कि मधुमक्खी परागण से फसल की पैदावार औसतन 20-30% तक बढ़ सकती है।
- रोज़गार के अवसरों को सृजित करने में सहायक:
- यह शहद और अन्य मधुमक्खी उत्पाद जैसे मोम, प्रोपोलिस आदि का उत्पादन करके ग्रामीण परिवारों के लिये आय और रोज़गार के अवसर सृजित करने में सहायक है।
- शहद एक उच्च मूल्य वाला उत्पाद है जिसकी घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में अत्यधिक मांग है। यह उपभोक्ताओं के लिये पोषण तथा स्वास्थ्य का स्रोत भी है।
- यह महिलाओं और युवाओं को मधुमक्खी पालन गतिविधियों में उद्यमियों या स्वयं सहायता समूहों के रूप में शामिल करके उनके सशक्तीकरण में भी मदद कर सकता है।
- यह शहद और अन्य मधुमक्खी उत्पाद जैसे मोम, प्रोपोलिस आदि का उत्पादन करके ग्रामीण परिवारों के लिये आय और रोज़गार के अवसर सृजित करने में सहायक है।
- खतरे और चुनौतियाँ:
- शहरीकरण, कृषि और वनों की कटाई के कारण प्राकृतिक आवासों का नुकसान और विखंडन।
- सघन और मोनोकल्चर खेती के तरीके जो फूलों की विविधता को कम करते हैं और मधुमक्खियों को कीटनाशकों और शाकनाशियों के संपर्क में लाते हैं।
- रोग, कीट और आक्रामक प्रजातियाँ जो मधुमक्खी के स्वास्थ्य और उत्पादकता को प्रभावित करती हैं।
- जलवायु परिवर्तन जो फूलों के मौसम, वितरण और पौधों की उपलब्धता को बदल देता है।
- किसानों और उपभोक्ताओं के बीच मधुमक्खी पालन के लिये जागरूकता, ज्ञान और समर्थन की कमी।
भारत में मधुमक्खी पालन की स्थिति:
- उत्पादन सांख्यिकी:
- भारत विश्व में 1.2 लाख मीट्रिक टन के अनुमानित वार्षिक उत्पादन के साथ शहद के सबसे बड़े उत्पादकों और उपभोक्ताओं में से एक है। भारत में मधुमक्खी पालन की एक समृद्ध परंपरा और संस्कृति है, जो प्राचीन काल से चली आ रही है।
- वर्तमान में, लगभग 12,699 मधुमक्खी पालक और 19.34 लाख मधुमक्खियों की कॉलोनियाँ राष्ट्रीय मधुमक्खी बोर्ड के साथ पंजीकृत हैं और भारत लगभग 1,33,200 मीट्रिक टन शहद (वर्ष 2021-22 अनुमान) का उत्पादन कर रहा है।
- नवंबर 2022 में 200 से अधिक वर्षों के अंतराल के बाद पश्चिमी घाटों में भारतीय काली मधुमक्खी (एपिस करिंजोडियन) नामक स्थानिक मधुमक्खी की एक नई प्रजाति की खोज की गई।
- निर्यात:
- भारत विश्व के प्रमुख शहद निर्यातक देशों में से एक है और उसने वर्ष 2021-22 के दौरान 74,413 मीट्रिक टन शहद का निर्यात किया है।
- भारत में शहद उत्पादन का 50 प्रतिशत से अधिक अन्य देशों को निर्यात किया जा रहा है।
- भारत लगभग 83 देशों को शहद निर्यात करता है। भारतीय शहद के प्रमुख बाज़ार अमेरिका, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, बांग्लादेश, कनाडा आदि हैं।
- शहद उत्पादक राज्य :
- राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड (NHB) के अनुसार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, पंजाब, बिहार, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और कर्नाटक वर्ष 2021-22 में शीर्ष दस शहद उत्पादक राज्य थे।
राष्ट्रीय मधुमक्खी पालन और शहद मिशन (NBHM) क्या है?
- राष्ट्रीय मधुमक्खी बोर्ड के माध्यम से लागू किया गया NBHM छोटे और सीमांत किसानों के बीच वैज्ञानिक मधुमक्खी पालन और उद्यमशीलता को बढ़ावा देने पर केंद्रित है।
- इसमें कटाई के बाद के प्रबंधन, अनुसंधान और विकास के समर्थन से संबंधित बुनियादी ढाँचे के विकास को शामिल किया गया है और इसका उद्देश्य "मीठी क्रांति" के लक्ष्य को प्राप्त करना है।
- यह योजना आत्मनिर्भर भारत पहल के अनुरूप है और किसानों की आय तथा कृषि उत्पादकता बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
आगे की राह
- किसानों को जागरूक करना: बड़े पैमाने पर मीडिया अभियान, प्रदर्शनों, क्षेत्र का दौरा आदि के माध्यम से मधुमक्खी पालन के लाभों के बारे में किसानों को जागरूक करने की आवश्यकता है।
- साथ ही प्रोत्साहन, पुरस्कार आदि के माध्यम से किसानों को मधुमक्खी पालन को अपनी फसल प्रणाली के अभिन्न अंग के रूप में अपनाने के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये।
- आपूर्ति शृंखला को मजबूत बनाना: सार्वजनिक-निजी भागीदारी, सहकारी समितियों आदि के माध्यम से इनपुट्स आपूर्ति शृंखला जैसे- मधुमक्खी कालोनियों, छत्तों आदि को मज़बूत करने की आवश्यकता है। मानकीकरण और प्रमाणीकरण तंत्र जैसे BIS मानक आदि के माध्यम से इनपुट का गुणवत्ता नियंत्रण सुनिश्चित करना। सब्सिडी या वाउचर आदि के माध्यम से किसानों को वहन करने योग्य इनपुट प्रदान करना।
- बाज़ारों के मध्य जुड़ाव: राष्ट्रीय कृषि बाज़ार (National Agriculture Market- e-NAM), कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (Agricultural & Processed Food Products Export Development Authority- APEDA) आदि जैसे प्लेटफाॅर्मों के माध्यम से शहद या अन्य मधुमक्खी उत्पादों के लिये बाज़ार जुड़ाव को मज़बूत करने की आवश्यकता है।
- साथ ही प्रसंस्करण इकाइयों जैसे हनी पार्क आदि के माध्यम से शहद या अन्य मधुमक्खी उत्पादों के मूल्यवर्द्धन को भी बढ़ावा दिया जा सकता है।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. जीवों के निम्नलिखित प्रकारों पर विचार कीजिये: (2012)
उपर्युक्त में से कौन-सा/से परागणकारी है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न. बागवानी फार्मों के उत्पादन, उनकी उत्पादकता एवं आय की वृद्धि में राष्ट्रीय बागवानी मिशन (एन.एच.एम.) की भूमिका का आकलन कीजिये। यह किसानों की आय बढ़ाने में कहाँ तक सफल हुआ है? (2018) |
स्रोत: पी.आई.बी.
जैव विविधता और पर्यावरण
वायु प्रदूषण
प्रिलिम्स के लिये:वायु प्रदूषण, सेंटिनल‑5P उपग्रह, गूगल अर्थ इंजन, AQI, कोविड-19, NCAP, SAFAR मेन्स के लिये:वायु प्रदूषण |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में जर्नल नेचर में एक शोध प्रकाशित हुआ है जिसका शीर्षक है "मशीन लर्निंग-बेस्ड कंट्री-लेवल एनुअल एयर पॉल्यूटेंट्स एक्सप्लोरेशन यूज़िंग सेंटिनल-5P और गूगल अर्थ इंजन" जिसमें बताया गया है कि वर्ष 2018-2021 के दौरान भारत में मानव-प्रेरित वायु प्रदूषण का अधिकतम स्तर देखा गया।
शोधकर्त्ताओं द्वारा उपयोग की गई पद्धति:
- शोधकर्त्ताओं ने सेंटिनल-5P उपग्रह और गूगल अर्थ इंजन (GEE) का उपयोग करके मशीन लर्निंग-आधारित देश-स्तरीय वार्षिक वायु प्रदूषण निगरानी की।
- सेंटिनल-5P उपग्रह एक यूरोपीय उपग्रह है जो विश्व भर में वायु प्रदूषकों के स्तर पर नज़र रखता है।
- जबकि सेंटिनल-5P ने वायुमंडलीय वायु प्रदूषकों और रासायनिक स्थितियों (वर्ष 2018-21 से) की निगरानी की तथा क्लाउड कंप्यूटिंग-आधारित GEE प्लेटफॉर्म का उपयोग दो कारकों का विश्लेषण करने के लिये किया गया था।
अध्ययन के परिणाम:
- वायु गुणवत्ता सूचकांक :
- वर्ष 2020 और वर्ष 2021 में वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) में अत्यधिक परिवर्तन देखा गया, जबकि वर्ष 2018 और वर्ष 2019 में पूरे वर्ष निम्न AQI देखा गया।
- AQI को आठ प्रदूषकों के लिये विकसित किया गया है। PM2.5, PM10, अमोनिया, लेड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, ओज़ोन और कार्बन मोनोऑक्साइड।
- अध्ययन की अवधि में दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, पुणे और चेन्नई में वायु प्रदूषण के संदर्भ में अत्यधिक उतार-चढ़ाव दर्ज किया गया।
- कोलकाता के सात AQI निगरानी स्टेशनों में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के उच्च स्तर देखे गए: वर्ष 2018 में 102, वर्ष 2019 में 48, वर्ष 2020 में 26 और वर्ष 2021 में 98।
- दिल्ली में भी उच्च NO2 विविधताएँ दर्ज की गईं; वर्ष 2018 में 99, वर्ष 2019 में 49, वर्ष 2020 में 37 तथा वर्ष 2021 में 107 आदि।
- वर्ष 2020 और वर्ष 2021 में वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) में अत्यधिक परिवर्तन देखा गया, जबकि वर्ष 2018 और वर्ष 2019 में पूरे वर्ष निम्न AQI देखा गया।
- कारण:
- इस अवधि में कोविड-19 महामारी के तीन चरणों (महामारी के पहले, महामारी के दौरान और महामारी के बाद) में परिवहन, औद्योगिक बिजली संयंत्रों, ग्रीन स्पेस डायनामिक्स और देश में अनियोजित शहरीकरण के विकास के कारण वायु प्रदूषण में वृद्धि देखी गई।
- जलवायु परिस्थितियों और वायुमंडलीय परिवर्तनों के लिये मानवजनित क्रियाएँ सबसे प्रमुख कारण हैं तथा भारत ऐसी गतिविधियों से सबसे अधिक प्रभावित होने वाला देश है।
- ग्रामीण वायु प्रदूषण के संदर्भ में कृषि अपशिष्ट जलाना भी मुख्य कारण है।
- आशय:
- भारत में मानवजनित गतिविधियाँ स्वास्थ्य समस्याओं और प्रदूषण से संबंधित बीमारियों जैसे अस्थमा, श्वसन रोग, फेफड़ों के कैंसर तथा त्वचा संबंधी बीमारियों में वृद्धि का कारण है। चिंता के मुख्य प्रदूषक NO2, कार्बन मोनोऑक्साइड, ओज़ोन, सल्फर डाइऑक्साइड तथा मीथेन हैं।
- वायु प्रदूषण और मौसम की चरम स्थितियाँ आपस में जुड़ी हुई हैं। मीथेन, ओज़ोन और एरोसोल जैसे वायु प्रदूषक सूर्य के प्रकाश को प्रभावित करते हैं।
- उच्च वोल्टेज विद्युत के निर्वहन ने ऑक्सीजन को ओज़ोन में परिवर्तित कर दिया है, जिसके परिणामस्वरूप ओज़ोन परत के क्षरण से पराबैंगनी किरणों का प्रवेश बढ़ गया है।
- अनुशंसाएँ:
- पर्यावरण की रक्षा हेतु जागरूकता और योजना की आवश्यकता है।
- उचित योजना, प्रबंधन और विकास रणनीतियाँ पर्यावरण की रक्षा में मदद कर सकती हैं।
वायु प्रदूषण से निपटने हेतु सरकार की पहल:
- ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (दिल्ली)
- प्रदूषण भुगतान सिद्धांत
- स्मॉग टॉवर
- सबसे ऊँचा वायु शोधक
- राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP)
- बीएस-VI वाहन
- वायु गुणवत्ता प्रबंधन हेतु नवीन आयोग
- टर्बो हैप्पी सीडर (THS)
- ‘वायु गुणवत्ता और मौसम पूर्वानुमान तथा अनुसंधान प्रणाली’- सफर (SAFAR) पोर्टल
- वायु गुणवत्ता की निगरानी के लिये डैशबोर्ड
- वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI)
- वायु (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1981
- प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (PMUY)
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. हमारे देश के शहरों में वायु गुणवत्ता सूचकांक (Air Quality Index) के परिकलन करने में साधारणतया निम्नलिखित वायुमंडलीय गैसों में से किनको विचार में लिया जाता है? (2016)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2 और 3 उत्तर: (b) मेन्सप्रश्न. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ.) द्वारा हाल ही में जारी किये गए संशोधित वैश्विक वायु गुणवत्ता दिशानिर्देशों (ए.क्यू.जी.) के मुख्य बिंदुओं का वर्णन कीजिये। विगत 2005 के अद्यतन से, ये कैसे भिन्न हैं? इन संशोधित मानकों को प्राप्त करने के लिये, भारत के राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम में किन परिवर्तनों की आवश्यकता है? (2021) |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
जैव विविधता और पर्यावरण
अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस
प्रिलिम्स के लिये:जैवविविधता दिवस, UNFCCC कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़- 15, कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैवविविधता फ्रेमवर्क मेन्स के लिये:कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैवविविधता फ्रेमवर्क, कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़- 15 के परिणाम, पर्यावरण प्रदूषण और गिरावट, सतत् विकास में हरित वित्त का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
22 मई को मनाया जाने वाला अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस (International Day for Biological Diversity- IDB), पृथ्वी पर जीवन को बनाए रखने के लिये जैवविविधता के महत्त्व के बारे में जागरूकता बढ़ाता है।
- जैवविविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं पर वैश्विक मूल्यांकन रिपोर्ट लगभग दस लाख प्रजातियों के विलुप्त होने के जोखिम पर प्रकाश डालती है।
- जैवविविधता संकट को दूर करने के लिये कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैवविविधता फ्रेमवर्क को जैविक विविधता अभिसमय के पार्टियों के 15वें सम्मेलन (COP- 15) में अपनाया गया था।
- यह फ्रेमवर्क वर्ष 2030 के लिये महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित करता है और जैवविविधता के संरक्षण, बहाली तथा सतत् उपयोग के लिये एक रोडमैप प्रदान करता है।
जैवविविधता के लिये अंतर्राष्ट्रीय दिवस
- परिचय:
- वर्ष 1993 में संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations General Assembly- UNGA) ने जैवविविधता के मुद्दों पर समझ और जागरूकता बढ़ाने हेतु 22 मई को अंतर्राष्ट्रीय जैवविविधता दिवस (IDB) के रूप में घोषित किया।
- वर्ष 2011-2020 की अवधि को UNGA द्वारा संयुक्त राष्ट्र (United Nations-UN) के जैवविविधता दशक के रूप में घोषित किया गया ताकि जैवविविधता पर एक रणनीतिक योजना के कार्यान्वयन को बढ़ावा दिया जा सके, साथ ही प्रकृति के साथ सद्भाव से रहने के समग्र दृष्टि को बढ़ावा दिया जा सके।
- वर्ष 2021-2030 को संयुक्त राष्ट्र द्वारा सतत् विकास हेतु महासागर विज्ञान दशक' (Decade of Ocean Science for Sustainable Development) और पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली पर संयुक्त राष्ट्र दशक (UN Decade on Ecosystem Restoration) के रूप में घोषित किया गया।
- वर्ष 1993 में संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations General Assembly- UNGA) ने जैवविविधता के मुद्दों पर समझ और जागरूकता बढ़ाने हेतु 22 मई को अंतर्राष्ट्रीय जैवविविधता दिवस (IDB) के रूप में घोषित किया।
- थीम:
- वर्ष 2023 की थीम "समझौते से कार्रवाई तक: जैवविविधता का पुनर्निर्माण (From Agreement to Action: Build Back Biodiversity)" है, जो प्रतिबद्धताओं से परे और जैवविविधता को पुनर्स्थापित करने एवं सुरक्षा के उद्देश्य से महत्त्वपूर्ण कार्यों में परिवर्तित करने हेतु दबाव की आवश्यकता को दर्शाता है।
कुनमिंग-मॉन्ट्रियल ग्लोबल बायोडायवर्सिटी फ्रेमवर्क:
- परिचय:
- यह वैश्विक अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में जैवविविधता के विचारों को प्रतिबिंबित करने हेतु तत्काल और एकीकृत कार्रवाई का आह्वान करता है, लेकिन गंभीर मुद्दों- जैसे गरीब देशों में धन संरक्षण एवं जैवविविधता के अनुकूल आपूर्ति शृंखलाओं की चर्चा नहीं करता।
- यह एक बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय समझौता नहीं है।
- यह पक्षकारों को निर्णय लेने में जैवविविधता संरक्षण को मुख्यधारा में लाने और मानव स्वास्थ्य की रक्षा में संरक्षण के महत्त्व को पहचानने का आह्वान करता है।
- इस घोषणा का विषय है "इकोलॉजिकल सिविलाइज़ेशन: बिल्डिंग ए शेयर्ड फ्यूचर फॉर आल लाइफ ऑन अर्थ"।
- इसे अपनाकर राष्ट्रों ने जैव सुरक्षा पर कार्टाजेना प्रोटोकॉल के लिये एक प्रभावी पोस्ट-2020 कार्यान्वयन योजना, क्षमता निर्माण कार्ययोजना के विकास, गोद लेने एवं कार्यान्वयन का समर्थन करने के लिये स्वयं को प्रतिबद्ध किया है।
- यह प्रोटोकॉल आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी से उत्पन्न संशोधित जीवों द्वारा संभावित उत्पन्न जोखिमों से जैवविविधता की रक्षा करना चाहता है।
- इस घोषणा के अनुसार, हस्ताक्षरकर्त्ता राष्ट्र यह सुनिश्चित करेंगे कि महामारी के बाद की रिकवरी नीतियाँ, कार्यक्रम और योजनाएँ जैवविविधता के संरक्षण और सतत् उपयोग में योगदान और सतत् एवं समावेशी विकास को बढ़ावा भी दें।
- यह वैश्विक अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में जैवविविधता के विचारों को प्रतिबिंबित करने हेतु तत्काल और एकीकृत कार्रवाई का आह्वान करता है, लेकिन गंभीर मुद्दों- जैसे गरीब देशों में धन संरक्षण एवं जैवविविधता के अनुकूल आपूर्ति शृंखलाओं की चर्चा नहीं करता।
- 30 by 30 लक्ष्य:
- इस घोषणा ने '30 by 30' लक्ष्य का संदर्भ दिया है जो कि COP15 में बहस का एक प्रमुख प्रस्ताव है। यह वर्ष 2030 तक पृथ्वी की 30 प्रतिशत भूमि और महासागरों को संरक्षित करेगा।
- मुख्य लक्ष्य:
- इस ढाँचे में वर्ष 2030 के लिये चार उद्देश्य और 23 लक्ष्य शामिल हैं।
- ये चार लक्ष्य हैं:
- जैवविविधता का संरक्षण और पुनर्स्थापन।
- जैवविविधता का सतत् उपयोग सुनिश्चित करना।
- लाभों को उचित और समान रूप से साझा करना।
- परिवर्तनकारी परिवर्तन सक्षम करना।
- 23 लक्ष्य हैं:
- कार्यान्वयन के साथ चुनौतियाँ:
- सीमित समय-सीमा और अधिक आवश्यकता:
- GBF लक्ष्यों को पूरा करने के लिये सिर्फ सात वर्ष शेष होने की वजह से लगभग एक मिलियन जीवों और पौधों की प्रजातियों के विलुप्त होने की गंभीर स्थिति के कारण तत्काल कार्रवाई करना अनिवार्य है।
- जैवविविधता के नुकसान को तत्काल दूर करनेके लिये त्वरित प्रयासों और व्यापक कार्यान्वयन रणनीतियों की आवश्यकता है।
- निधि संचय में व्यवधान:
- हस्ताक्षरओं का लक्ष्य सार्वजनिक और निजी स्रोतों के संरक्षण पहलों के लिये प्रतिवर्ष 200 बिलियन अमेरीकी डॉलर सुनिश्चित करना है। वर्ष 2025 तक विकसित देशों से विकासशील देशों में अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रवाह को कम-से-कम 30 बिलियन अमेरिकी डॉलर प्रतिवर्ष और 2030 तक कम-से-कम 30 बिलियन अमेरिकी डॉलर प्रतिवर्ष तक बढ़ाना लेकिन यह निधि अभी तक प्राप्त नहीं हुई है।
- जैवविविधता के लिये विशिष्ट वित्तपोषण प्रतिबद्धताओं की कमी, जैसा कि G-7 के हाल के बयानों में देखा गया है, प्रभावी कार्यान्वयन के लिये आवश्यक वित्तीय सहायता में बाधा डालती है।
- राष्ट्रीय जैवविविधता रणनीति और कार्ययोजना (NBSAP):
- सदस्य देश अपने NBSAP को GBF के साथ फिर से जोड़ने पर सहमत हुए लेकिन संशोधित योजनाओं को प्रस्तुत करने की प्रगति धीमी रही है
- स्पेन एकमात्र ऐसा देश है जिसने अब तक अपना पुनर्गठित NBSAP प्रस्तुत किया है तथा दूसरे देशों के विकास के लिये वर्ष 2024 में COP16 से पहले CBD सचिवालय को अपनी योजना प्रस्तुत करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला है।
- सदस्य देश अपने NBSAP को GBF के साथ फिर से जोड़ने पर सहमत हुए लेकिन संशोधित योजनाओं को प्रस्तुत करने की प्रगति धीमी रही है
- संतुलन, संरक्षण और स्वदेशी अधिकार:
- 30% भूमि और जल की रक्षा के लक्ष्य ने स्वदेशी समुदायों के अधिकारों के संभावित उल्लंघन के बारे में चिंताएँ बढ़ा दी हैं।
- इसके सफल कार्यान्वयन के लिये संरक्षण प्रयासों और स्वदेशी लोगों के अधिकारों तथा पारंपरिक ज्ञान के बीच संतुलन बनाना आवश्यक है।
- सीमित समय-सीमा और अधिक आवश्यकता: