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भारतीय अर्थव्यवस्था

नोटबंदी पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय

  • 04 Jan 2023
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय, संविधान पीठ, RBI, RBI अधिनियम की धारा 26(2)।

मेन्स के लिये:

नोटबंदी पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय।

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने पाँच न्यायाधीशों की संविधान पीठ द्वारा 4-1 के बहुमत से 500 रुपए और 1,000 रुपए के करेंसी नोटों की नोटबंदी पर फैसला सुनाया।

Not-Relevant

आधिकारिक निर्णय: 

  • बहुमत: 
    • बहुमत के अनुसार, केंद्र की 8 नवंबर, 2016 की अधिसूचना वैध है और आनुपातिकता की कसौटी पर खरी उतरती है।
    • भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 26 (2) के तहत जारी 8 नवंबर की अधिसूचना से छह महीने पहले RBI और केंद्र ने एक-दूसरे के साथ इस संबंध में परामर्श किया था।
    • RBI अधिनियम की धारा 26 (2) के तहत वैधानिक प्रक्रिया का उल्लंघन केवल इसलिये नहीं किया गया क्योंकि केंद्र ने केंद्रीय बोर्ड को विमुद्रीकरण की सिफारिश करने पर विचार करने हेतु ‘सलाह’ देने की पहल की थी।
    • इस प्रावधान के तहत सरकार को बैंक नोटों की "सभी शृंखलाओं" को विमुद्रीकृत करने का अधिकार दिया गया था।
    • जल्दबाज़ी में लिये गए फैसले पर न्यायालय ने कहा कि इस तरह के कदम निर्विवाद रूप से अत्यंत गोपनीयता और तेज़ी से लिये जाते है। यदि इस तरह के कदम की खबर लीक हो जाती है, तो यह कल्पना करना मुश्किल है कि इसके परिणाम कितने विनाशकारी हो सकते हैं।
    • जाली मुद्रा, काले धन और आतंक के वित्तपोषण को खत्म करने के "उचित उद्देश्यों" के लिये विमुद्रीकरण किया गया था।
  • अल्पमत निर्णय:
    • सरकार आरबीआई अधिनियम की धारा 26 (2) के तहत एक अधिसूचना तभी जारी कर सकती थी जब आरबीआई ने सिफारिश के माध्यम से नोटबंदी का प्रस्ताव दिया होता।
    • इसलिये आरबीआई अधिनियम की धारा 26(2) के तहत जारी सरकार की अधिसूचना गैरकानूनी थी।
    • जिन मामलों में सरकार नोटबंदी की पहल करती है, उनमें आरबीआई की राय लेनी चाहिये। बोर्ड की राय "स्वतंत्र और स्पष्ट" होनी चाहिये।
    • यदि बोर्ड की राय नकारात्मक थी, तो केंद्र केवल एक अध्यादेश की घोषणा करके या एक संसदीय कानून बनाकर भी विमुद्रीकरण की राह पर आगे बढ़ सकता था।
    • संसद को "लघु राष्ट्र" के रूप में वर्णित किया जाता तथा "संसद की अनुपस्थिति में, लोकतंत्र की स्थापना और सफलता अनिश्चित है"।

आनुपातिकता का परीक्षण: 

  • आमतौर पर संवैधानिक अदालतें, उन मामलों को तय करने के लिये है जहां दो या दो से अधिक वैध अधिकार टकराते हैं, आनुपातिकता का परीक्षण दुनिया भर की अदालतों द्वारा उपयोग की जाने वाली एक सामान्य रूप से नियोजित कानूनी पद्धति है।
  • जब इस तरह के मामलों का फैसला किया जाता है, तो आमतौर पर एक प्रकार के न्याय पर दूसरे न्याय को प्रभावी घोषित किया जाता है और न्यायालय इस प्रकार विभिन्न प्रकार के न्यायों के मध्य संतुलन स्थापित करता है।
  • आनुपातिकता का सिद्धांत यह आदेश देता है कि वांछित परिणाम प्राप्त करने के लिये प्रशासनिक उपाय आवश्यकता से अधिक कठोर नहीं होने चाहिये।

नोटबंदी/विमुद्रीकरण: 

  • परिचय: 
    • 8 नवंबर, 2016 को सरकार ने घोषणा की कि उच्च मूल्य वर्ग के 500 रुपए एवं 1000 रुपए के नोट लीगल टेंडर (वैद्य मुद्रा) नहीं रहेंगे अर्थात् सीमित अवधि में सीमित सेवाओं के साथ इनकी वैधता समाप्त हो जाएगी। 
    • यह वैध मुद्रा या फिएट मनी के रूप में अपनी स्थिति की एक मुद्रा इकाई को चलन से बाहर करने का कार्य है।
    • यह कार्य तब किया जाता है जब राष्ट्रीय मुद्रा में परिवर्तन होता है और मुद्रा के वर्तमान रूप या रूपों को चलन से बाहर कर दिया जाता है, जिसे अक्सर नए नोटों या सिक्कों से प्रतिस्थापित किया जाता है।
  • विमुद्रीकरण का उद्देश्य:
    • अवैध लेन-देन के लिये उच्च मूल्यवर्ग के नोटों के उपयोग को हतोत्साहित करना और इस प्रकार काले धन के व्यापक उपयोग पर अंकुश लगाना।
    • वाणिज्यिक लेन-देन के लिये डिजिटलीकरण को प्रोत्साहित करना, अर्थव्यवस्था को औपचारिक बनाना और सरकारी कर राजस्व को बढ़ावा देना।
      • अर्थव्यवस्था के औपचारिकरण का अर्थ है, कंपनियों को सरकार की नियामक व्यवस्था के अंतर्गत लाना तथा विनिर्माण एवं आयकर से संबंधित कानूनों के अधीन करना
  • ऑपरेशन क्लीन मनी:
    • इसे आयकर विभाग (CBDT) द्वारा 9 नवंबर से 30 दिसंबर, 2016 की अवधि के दौरान किये गए बड़े नकद जमा के ई-सत्यापन के लिये लॉन्च किया गया था।
    • यह कार्यक्रम 31 जनवरी, 2017 को शुरू किया गया था और मई 2017 में इसने दूसरे चरण में प्रवेश किया।
    • इसका उद्देश्य नोटबंदी की अवधि के दौरान करदाताओं के नकद लेन-देन की स्थिति (प्रतिबंधित नोटों की विनिमय/बचत) को सत्यापित करना और यदि लेन-देन कर की स्थिति से मेल नहीं खाते हैं तो कर प्रवर्तन कार्रवाई करना है।
  • नोटबंदी का प्रभाव: 
    • 4 नवंबर, 2016 को जनता के पास प्रचलन मुद्रा 17.97 लाख करोड़ रुपए थी और नोटबंदी के बाद जनवरी 2017 में घटकर 7.8 लाख करोड़ रुपए रह गई।
    • इसके कारण मांग गिर गई, उद्यमों को संकट का सामना करना पड़ा और सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product- GDP) की वृद्धि धीमी हो गई, जिसके परिणामस्वरूप कई छोटे व्यवसाय और दुकान बंद हो गए, साथ ही नकदी/तरलता की समस्या भी उत्पन्न हो गई।
    • तरलता की कमी या संकट तब उत्पन्न होता है जब वित्तीय संस्थान और औद्योगिक कंपनियाँ के लिये अपनी सबसे ज़रूरी आवश्यकताओं या अपनी सबसे मूल्यवान परियोजनाओं को पूरा करने के लिये आवश्यक नकदी की कमी हो जाती हैं।

आगे की राह 

  • नोटबंदी काले धन और समानांतर अर्थव्यवस्था (अवैध अर्थव्यवस्था, जैसे मनी लॉन्ड्रिंग, तस्करी आदि) के खतरे का साहसपूर्वक मुकाबला करने के लिये त्वरित कदम था, जिसका प्रभाव वैश्विक अर्थव्यवस्था के संदर्भ में सरकार की नीतियों के माध्यम से प्रदर्शित होता है।
  • सरकार के इस कदम ने विश्व स्तर पर भारत को अधिक महत्त्व प्रदान किया क्योंकि इसमें एक ऐसे मुद्दे से निपटने में साहस दिखाया गया जिसे इस पीढ़ी के विकास की सफलता की राह में सबसे बड़ी समस्या माना जा सकता है। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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