डेली न्यूज़ (23 Jan, 2024)



मछुआरों के लिये आपदा चेतावनी प्रेषित्र

प्रिलिम्स के लिये:

समुद्री बचाव समन्वय केंद्र (MRCC), भारतीय तटरक्षक बल (ICG), भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO), संभावित मछली पकड़ने के क्षेत्र (PFZ)

मेन्स के लिये:

मछुआरों के लिये आपदा चेतावनी प्रेषित्र, आपदा और आपदा प्रबंधन 

स्रोत: इकॉनोमिक टाइम्स 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation- ISRO) ने दूसरी पीढ़ी का आपदा चेतावनी प्रेषित्र (Second-Generation Distress Alert Transmitter, DAT-SG) विकसित किया है जो समुद्र में मछुआरों के लिये मछली पकड़ने की नौकाओं से आपातकालीन संदेश भेजने के लिये एक स्वदेशी तकनीकी समाधान है।

  • आपदा की स्थिति का सामना करने पर मछुआरे आपातकालीन संदेश भेजने के लिये DAT का उपयोग कर सकते हैं। इन संदेशों में आम तौर पर मछली पकड़ने की नौका की पहचान, स्थान तथा आपातकाल की प्रकृति से संबंधित जानकारी होती है।

आपदा चेतावनी प्रेषित्र (DAT) क्या है?

  • परिचय:
    • DAT के प्रथम संस्करण का परिचालन वर्ष 2010 से शुरू है जिसके उपयोग से संदेश एक संचार उपग्रह के माध्यम से भेजे जाते हैं तथा एक केंद्रीय नियंत्रण स्टेशन (INMCC: भारतीय मिशन नियंत्रण केंद्र) में प्राप्त होते हैं जहाँ मछली पकड़ने की नौका की पहचान व स्थान के लिये चेतावनी संकेतों को डिकोड किया जाता है।
    • प्राप्त जानकारी को फिर भारतीय तटरक्षक बल (Indian Coast Guard- ICG) के तहत समुद्री बचाव समन्वय केंद्रों (Maritime Rescue Coordination Centre- MRCC) को अग्रेषित किया जाता है।
    • इस जानकारी का उपयोग करते हुए, MRCC संकट में मछुआरों को बचाने के लिये खोज तथा बचाव अभियान शुरू करने के लिये समन्वय करता है।
      • वर्तमान में 20,000 से अधिक DAT का उपयोग किया जा रहा है।

दूसरी पीढ़ी का आपदा चेतावनी प्रेषित्र (DAT-SG) क्या है?

  •  DAT-SG:
    • दूसरी पीढ़ी का आपदा चेतावनी प्रेषित्र (DAT-SG) मूल आपदा चेतावनी प्रेषित्र (Distress Alert Transmitter- DAT) पर आधारित है तथा समुद्री सुरक्षा एवं संचार को बढ़ाने के लिये इसमें उन्नत क्षमताओं व सुविधाओं को शामिल किया गया है।
    • DAT-SG में समुद्र से संकट की चेतावनी सक्रिय करने वाले मछुआरों को वापस सूचना की पुष्टि भेजने की सुविधा है।
    • ISRO द्वारा DAT-SG का विकास किया गया है जो कि NavIC (भारतीय नक्षत्र में नौवहन) रिसीवर मॉड्यूल पर आधारित एक अल्ट्रा हाई फ्रीक्वेंसी (UHF) प्रेषित्र/ट्रांसमीटर है।
      • यह NavIC रिसीवर मॉड्यूल स्थिति निर्धारण के साथ-साथ प्रसारण संदेश पुष्टि का समर्थन करता है जिसे NavIC मैसेजिंग सेवा कहा जाता है।
  • विशेषताएँ:
    • ब्लूटूथ इंटरफेस: DAT-SG को ब्लूटूथ इंटरफेस का उपयोग करके मोबाइल फोन से जोड़ा जा सकता है। इससे मछुआरों को अपने मोबाइल उपकरणों पर संदेश प्राप्त करने की सुविधा मिलती है। इसके अतिरिक्त, मोबाइल फोन पर एक ऐप का उपयोग मूल भाषा में संदेशों को पढ़ने के लिये किया जा सकता है, जिससे पहुँच बढ़ जाती है।
    • मोबाइल फोन के साथ एकीकरण: DAT-SG को मोबाइल फोन के साथ एकीकृत किया जा सकता है, जो संचार के लिये एक सुविधाजनक और व्यापक रूप से उपयोग किया जाने वाला मंच प्रदान करता है।
    • वेब-आधारित नेटवर्क प्रबंधन प्रणाली (SAGARMITRA): केंद्रीय नियंत्रण केंद्र (INMCC) "सागरमित्र" नामक वेब-आधारित नेटवर्क प्रबंधन प्रणाली का उपयोग करता है। 
      • यह प्रणाली पंजीकृत DAT-SG का डेटाबेस बनाए रखती है और संकट में नौकाओं के बारे में वास्तविक समय की जानकारी तक पहुँचने में समुद्री बचाव समन्वय केंद्रों (Maritime Rescue Coordination Centres - MRCCs) की सहायता करती है। यह सुविधा भारतीय तटरक्षक बल को तुरंत खोज एवं बचाव अभियान चलाने में मदद करती है।
    • आमने सामने का संचार: DAT-SG नियंत्रण केंद्र से संदेश प्राप्त करने की क्षमता से सुसज्जित है। यह केंद्रीय नियंत्रण स्टेशन को खराब मौसम, चक्रवात, सुनामी या अन्य आपात स्थितियों जैसी घटनाओं के मामले में मछुआरों को अग्रिम चेतावनी संदेश भेजने में सक्षम बनाता है। 
    • संभावित मत्स्य पालन क्षेत्र: DAT-SG नियमित अंतराल पर समुद्र में मछुआरों को संभावित मछली पकड़ने के क्षेत्रों के बारे में जानकारी प्रसारित कर सकता है। यह सुविधा मछुआरों को उच्च किस्म की मछलियाँ पकड़ने की अधिक संभावना वाले क्षेत्रों का पता लगाने में सहायता करती है, जिससे मछली पकड़ने के संचालन में दक्षता बढ़ती है और समय तथा ईंधन की बचत होती है।
    • ऑपरेशनल 24/7: DAT-SG की सेवाएँ 24x7 आधार पर प्रारंभ की गई हैं, जिससे संकट में फँसे मछुआरों को निरंतर सहायता सुनिश्चित की जा रही है।

NavIC क्या है?

  • परिचय:
    • NavIC या भारतीय क्षेत्रीय नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (IRNSS) को 7 उपग्रहों के समूह और 24×7 संचालित ग्राउंड स्टेशनों के नेटवर्क के साथ डिज़ाइन किया गया है।
      • इसमें कुल आठ उपग्रह हैं लेकिन अभी केवल सात ही सक्रिय हैं।
      • भूस्थैतिक कक्षा में तीन उपग्रह तथा भूतुल्यकालिक कक्षा में चार उपग्रह हैं।
    • तारामंडल का पहला उपग्रह (IRNSS-1A) 1 जुलाई, 2013 को लॉन्च किया गया था और आठवाँ उपग्रह IRNSS-1I अप्रैल, 2018 में लॉन्च किया गया था।
      • तारामंडल के उपग्रह (IRNSS-1G) के सातवें प्रक्षेपण के साथ वर्ष 2016 में भारत के प्रधानमंत्री द्वारा IRNSS का नाम बदलकर NaVIC कर दिया गया।
    • इसे अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO) द्वारा वर्ष 2020 में हिंद महासागर क्षेत्र में संचालन के लिये वर्ल्ड-वाइड रेडियो नेविगेशन सिस्टम (WWRNS) के एक भाग के रूप में मान्यता दी गई थी।
  • संभावित उपयोग:
    • स्थलीय, हवाई और समुद्री नेविगेशन;
    • आपदा प्रबंधन;
    • वाहन ट्रैकिंग और बेड़ा प्रबंधन (विशेष रूप से खनन और परिवहन क्षेत्र के लिये);
    • मोबाइल फोन के साथ एकीकरण;
    • सटीक समय (ATM और पावर ग्रिड के लिये);
    • मैपिंग और जियोडेटिक डेटा कैप्चर।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारतीय क्षेत्रीय- संचालन उपग्रह प्रणाली (IRNSS) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. IRNSS के तुल्यकाली (जियोस्टेशनरी) कक्षाओं में तीन उपग्रह हैं और भूतुल्यकाली (जियोसिंक्रोनस) कक्षाओं में चार उपग्रह हैं।  
  2. IRNSS की व्याप्ति संपूर्ण भारत पर और इसकी सीमाओं से लगभग 5500 वर्ग किमी.  बाहर तक है।  
  3. वर्ष 2019 के मध्य तक भारत की, पूर्ण वैश्विक व्याप्ति के साथ अपनी उपग्रह संचालन प्रणाली होगी।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 2 और 3
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं

उत्तर: (a)


मेन्स:

प्रश्न. भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली (IRNSS) की आवश्यकता क्यों है? यह नेविगेशन में कैसे मदद करती है? (2018)

प्रश्न. अंतरिक्ष विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियों पर चर्चा कीजिये। इस प्रौद्योगिकी का प्रयोग भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में किस प्रकार सहायक हुआ है? (2016)


19वाँ ​​NAM शिखर सम्मेलन और भारत-युगांडा संबंध

प्रिलिम्स के लिये:

गुटनिरपेक्ष आंदोलन, NAM का 19वाँ शिखर सम्मेलन, दोहरा कराधान अपवंचन समझौता

मेन्स के लिये:

भारत-युगांडा संबंध, गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM), NAM के साथ चुनौतियाँ

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में कंपाला में गुटनिरपेक्ष आंदोलन (Non Aligned Movement-NAM) के 19वें शिखर सम्मेलन की मेज़बानी करने वाले युगांडा के राष्ट्रपति योवेरी मुसेवेनी ने 1970 के दशक में ईदी अमीन द्वारा भारतीयों के निष्कासन पर खेद व्यक्त किया।

  • मैंने युगांडा में भारतीय प्रवासियों की उपलब्धियों की प्रशंसा की है और वैश्विक दक्षिण में भारत की भूमिका की सराहना की है।

गुटनिरपेक्ष आंदोलन के 19वें शिखर सम्मेलन की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

    • NAM का 19वाँ शिखर सम्मेलन "साझा वैश्विक समृद्धि के लिये सहयोग को गहरा करना" विषय पर कंपाला, युगांडा में आयोजित किया गया था।
      • अज़रबैजान के बाद युगांडा ने वर्ष 2027 तक के लिये इसकी अध्यक्षता ग्रहण की है।
    • शिखर सम्मेलन ने कंपाला घोषणा को अपनाया, जिसमें इज़रायली सैन्य आक्रामकता की निंदा की गई और घिरे गाज़ा पट्टी में मानवीय सहायता की अनुमति देने के लिये संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव को लागू करने का आह्वान किया गया।
    • भारत के विदेश मंत्री ने 19वें NAMशिखर सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्त्व किया, जिसमें गाजा संकट के स्थायी समाधान का मार्ग प्रशस्त किया गया। उन्होंने मानवीय संकट में तत्काल राहत की आवश्यकता पर बल दिया और पश्चिम एशियाई क्षेत्र में संघर्ष के प्रसार को रोकने का आग्रह किया।
    • NAM की स्थापना वर्ष 1961 में नव स्वतंत्र देशों के पाँच नेताओं– यूगोस्लाविया के जोसिप ब्रोज़ टीटो, मिस्र के गमाल अब्देल नासिर, भारत के जवाहरलाल नेहरू, इंडोनेशिया के सुकर्णो और घाना के क्वामे नक्रुमाह- की पहल के माध्यम से बेलग्रेड, यूगोस्लाविया में की गई थी।
      • इसका गठन शीत युद्ध के दौरान उन राज्यों के एक संगठन के रूप में किया गया था जो औपचारिक रूप से खुद को संयुक्त राज्य अमेरिका या सोवियत संघ के साथ जोड़ना नहीं चाहते थे बल्कि स्वतंत्र या तटस्थ रहना चाहते थे।
      • वर्तमान में आंदोलन में 120 सदस्य देश, 17 पर्यवेक्षक देश और 10 पर्यवेक्षक संगठन हैं।
      • NAM के पास कोई स्थायी सचिवालय या औपचारिक संस्थापक चार्टर, अधिनियम या संधि नहीं है।
      • यह शिखर सम्मेलन आमतौर पर हर तीन साल में होता है।

    ईदी अमीन के शासनकाल में युगांडा में भारतीयों का क्या हुआ?

    • अगस्त 1972 में, युगांडा के तानाशाह ईदी अमीन ने युगांडा में रहने और काम करने वाले भारतीयों तथा अन्य एशियाई लोगों को निष्कासित करने का आदेश दिया।
      • लगभग 80,000 भारतीयों को अपनी संपत्ति और व्यवसाय छोड़कर, 90 दिनों के भीतर देश छोड़ने के लिये मजबूर होना पड़ा।
    • इस निष्कासन का युगांडा की अर्थव्यवस्था पर विनाशकारी प्रभाव पड़ा, जिसे कुशल श्रमिकों, उद्यमियों और निवेशकों की हानि का सामना करना पड़ा।

    भारत-युगांडा संबंध कैसे रहे हैं?

    • राजनीतिक संबंध:
      • भारत और युगांडा के बीच एक शताब्दी से अधिक पुराने ऐतिहासिक संबंध हैं। भारतीय पहली बार 20वीं सदी की शुरुआत में युगांडा आए थे।
        • भारत के स्वतंत्रता संग्राम ने युगांडा के शुरुआती कार्यकर्त्ताओं को उपनिवेशवाद से लड़ने के लिये प्रेरित किया और अंततः युगांडा ने वर्ष 1962 में स्वतंत्रता हासिल की।
      • भारत ने वर्ष 1965 में युगांडा में अपनी राजनयिक उपस्थिति स्थापित की। 1970 के दशक की शुरुआत में राष्ट्रपति अमीन के शासनकाल के दौरान, लगभग 60,000 भारतीयों/पीआईओ को निष्कासित कर दिया गया था। हालाँकि, वर्ष 1979 में अमीन को सत्ता से बेदखल करने के बाद, युगांडा की सफल सरकारों ने निष्कासित भारतीयों को वापस लौटने और अपनी संपत्तियों तथा नागरिकता को पुनः प्राप्त करने के लिये आमंत्रित किया।
    • भारतीय प्रवासी:
      • भारतीय समुदाय युगांडा के साथ सबसे मज़बूत और सबसे टिकाऊ आर्थिक तथा सांस्कृतिक संबंध प्रस्तुत करता है।
      • बैंक ऑफ युगांडा और युगांडा राजस्व प्राधिकरण के आँकड़ों के अनुसार, भारतीय नागरिक/पीआईओ, जो युगांडा की आबादी का 0.1% से कम हैं, युगांडा के प्रत्यक्ष करों में लगभग 70% का योगदान करते हैं।
      • 'इंडिया डे', एक वार्षिक समारोह है, जो भारतीय संस्कृति को प्रदर्शित करता है और हज़ारों आगंतुकों को आकर्षित करता है। यह आयोजन भारतीय और युगांडा समुदायों को एक साथ लाने का काम करता है।
    • रक्षा:
      • भारत युगांडा के रक्षा कर्मियों के लिये प्रशिक्षण पाठ्यक्रम आयोजित करता है।
    • वाणिज्यिक संबंध:
      • युगांडा अल्प विकसित देशों (Least Developed Countries- LDC) के लिये भारत की शुल्क मुक्त प्रशुल्क वरीयता (Duty Free Tariff Preference- DFTP) योजना का लाभार्थी रहा है।
        • युगांडा को भारतीय निर्यात की प्रमुख वस्तुओं में भेषजीय उत्पाद, वाहन, प्लास्टिक, कागज़ व पेपरबोर्ड, कार्बनिक रसायन इत्यादि शामिल हैं।
        • युगांडा से भारत में आयात की जाने वाली प्रमुख वस्तुओं में सब्ज़ियाँ तथा कुछ जड़ें व कंद, कॉफी, चाय, मेट एवं मसाले और कोको व कोको उत्पादन हेतु विधि शामिल हैं।
        • भारत तथा युगांडा के बीच दोहरा कराधान परिहार समझौता (Double Taxation Avoidance Agreement) वर्ष 2004 से प्रभावी है।
          • DTAA दो अथवा दो से अधिक देशों के बीच हस्ताक्षरित एक कर संधि है। इसका मुख्य उद्देश्य संबद्ध देशों में करदाता की एक ही आय पर दो बार कर लगाने से बचाना है।
            • DTAA उन मामलों में कार्यान्वित होता है जहाँ करदाता एक देश में निवास करता है तथा दूसरे देश में आय अर्जित करता है।
    • छात्रवृत्तियाँ और क्षमता निर्माण प्रशिक्षण कार्यक्रम:
      • भारत सरकार युगांडावासियों को सरकारी तथा निजी क्षेत्र से छात्रवृत्ति एवं फेलोशिप प्रदान करती है ताकि वे भारत में स्नातक, स्नातकोत्तर तथा अनुसंधान पाठ्यक्रम करने में सक्षम हो सकें।

      UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

    प्रिलिम्स:

    प्रश्न. भारत के निम्नलिखित राष्ट्रपतियों में से कौन कुछ समय के लिये गुटनिरपेक्ष आंदोलन के महासचिव भी थे? (2009)

    (a) डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन
    (b) वराहगिरी वेंकटगिरी
    (c) ज्ञानी जैल सिंह
    (d) डॉ. शंकर दयाल शर्मा

    उत्तर: (c)


    मेन्स: 

    प्रश्न. ‘उभरती हुई वैश्विक व्यवस्था में भारत द्वारा प्राप्त नव-भूमिका के कारण उत्पीड़ित एवं उपेक्षित राष्ट्रों के मुखिया के रूप में दीर्घकाल से संपोषित भारत की पहचान लुप्त हो गई है’। विस्तार से समझाइये। (2019)


    राम मंदिर

    प्रिलिम्स के लिये:

    लिब्रहान आयोग, सर्वोच्च न्यायालय, गिरमिटिया प्रवासन, राम मंदिर की 200 वर्ष की यात्रा, मंदिर वास्तुकला की नागर शैली

    मेन्स के लिये:

    राम मंदिर की 200 वर्ष की यात्रा।

    स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

    चर्चा में क्यों?

    22 जनवरी, 2024 को अयोध्या में राम मंदिर का उद्घाटन किया गया, जो 200 वर्ष की पुरानी गाथा के पूरा होने का प्रतीक था जिसने भारत के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य पर गहरा प्रभाव डाला।

    • राम मंदिर को मंदिर वास्तुकला की नागर शैली में डिज़ाइन किया गया है।
    • राम की कहानी एशिया में लाओस, कंबोडिया और थाईलैंड से लेकर दक्षिण अमेरिका में गुयाना तथा अफ्रीका में मॉरीशस तक लोकप्रिय है, जिससे रामायण भारत के बाहर भी लोकप्रिय हो गई है।

    राम जन्म भूमि आंदोलन की समय-सीमा क्या है?

    • उत्पत्ति:
      • वर्ष 1751 में शुरू हुआ जब मराठों ने अयोध्या, काशी और मथुरा पर नियंत्रण के लिये संकेत दिया, 19वीं शताब्दी में इस आंदोलन ने तब गति पकड़ी जब वर्ष 1822 के न्यायिक रिकॉर्ड में भगवान राम के जन्मस्थान पर एक मस्जिद का उल्लेख किया गया था।
    • बाबरी मस्जिद के पास टकराव:
      • वर्ष 1855 में बाबरी मस्जिद के पास हिंदुओं और मुसलमानों के बीच एक हिंसक झड़प के साथ तनाव और बढ़ गया, जिसके कारण हिंदुओं ने जन्मस्थान पर कब्ज़ा कर लिया।
    • रामलला की मूर्ति की स्थापना:
      • वर्ष 1949 में मस्जिद में राम लला की मूर्ति रखे जाने से एक भव्य मंदिर की मांग उठने लगी।
    • कानूनी लड़ाई:
      • 1980 के दशक में विश्व हिंदू परिषद (VHP) ने राम जन्मभूमि, कृष्ण जन्मभूमि और विश्वनाथ मंदिर की 'मुक्ति' के लिये एक आंदोलन शुरू किया। 
      • कानूनी लड़ाई समाप्त हुई और वर्ष 1986 में बाबरी मस्जिद के ताले खोल दिये गए, जिससे हिंदुओं को प्रार्थना करने की अनुमति मिल गई।
      • वर्ष 1986 के अगले वर्षों में ही महत्त्वपूर्ण घटनाएँ हुईं, जिनमें वर्ष 1989 में शिलान्यास समारोह और वर्ष 1990 में लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में रथ यात्रा शामिल थी, जिसके कारण व्यापक दंगे हुए।
    • बाबरी मस्जिद का विध्वंस:
      • 6 दिसंबर, 1992 को एक भीड़ ने बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया, जिसके कारण राजनीतिक परिणाम और कानूनी कार्यवाही हुई।
      • वर्ष 1993 में संसद ने अयोध्या में निश्चित क्षेत्र का अधिग्रहण अधिनियम पारित किया, जिससे सरकार को विवादित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि का अधिग्रहण करने की अनुमति मिल गई।
      • वर्ष 2009 में लिब्रहान आयोग ने वर्ष 1992 की घटनाओं की पूर्व नियोजित प्रकृति पर प्रकाश डाला।
    • इलाहाबाद उच्च न्यायालय का फैसला:
      • वर्ष 2010 में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय की एक विशेष पीठ ने अपने अयोध्या शीर्षक मुकदमे के फैसले में भूमि को 2:1 के अनुपात में विभाजित किया, जिसमें 2.77 एकड़ का दो-तिहाई हिस्सा, जिसमें जिस जगह पर रामलला की मूर्ति है, उसे रामलला न्यास को दे दिया जाए और राम चबूतरा वाली जगह निर्मोही अखाड़े को दे दी जाए।
      • ज़मीन का एक-तिहाई हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दे दिया जाए।
    • सर्वोच्च न्यायालय का फैसला:
      • कानूनी कार्यवाही जारी रही और वर्ष 2019 में सर्वोच्च न्यायालय ने पूरी विवादित ज़मीन राम मंदिर के लिये हिंदू याचिकाकर्त्ताओं को दे दी तथा मस्जिद हेतु कहीं और ज़मीन आवंटित कर दी।
    • समापन:
      • इस ऐतिहासिक यात्रा का समापन 5 अगस्त, 2020 को हुआ, जब भारत के  प्रधानमंत्री ने श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की स्थापना करते हुए राम मंदिर का शिलान्यास किया।
      • 22 जनवरी, 2024 को, अयोध्या में नागर शैली में निर्मित राम मंदिर का उद्घाटन किया गया, जो 200 वर्ष पुरानी गाथा के पूरा होने का प्रतीक था जिसने भारत के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य पर गहरा प्रभाव डाला।

    मंदिर वास्तुकला की नागर शैली क्या है?

    • परिचय:
      • पाँचवीं शताब्दी ईस्वी के आसपास उत्तरी भारत में गुप्त काल के अंत में मंदिर वास्तुकला की नागर शैली का उदय हुआ।
      • इसकी तुलना द्रविड़ शैली से की जाती है जिसकी उत्पत्ति भी उसी समय दक्षिणी भारत में हुई थी।
    • ऊँचे शिखर द्वारा प्रतिष्ठित:
      • नागर शैली में निर्मित मंदिर एक ऊँचे चबूतरे पर बनाए जाते हैं, जिसमें गर्भ गृह (देवता की प्रतिमा का विश्राम स्थल) मौजूद होता है जो मंदिर का सबसे पवित्रतम स्थल होता है।
      • गर्भ गृह के ऊपर शिखर (शाब्दिक रूप से 'पर्वत शिखर') होता है जो नागर शैली के मंदिरों का सबसे विशिष्ट पहलू है।
        • शिखर, जैसा कि उनके नाम से पता चलता है, प्राकृतिक और ब्रह्माण्ड संबंधी व्यवस्था का मानव निर्मित चित्रण है जैसा कि हिंदू परंपरा में कल्पना की गई है।
      • एक विशिष्ट नागर शैली के मंदिर में गर्भगृह के चारों ओर एक प्रदक्षिणा पथ तथा उसके समान धुरी पर एक अथवा अधिक मंडप (हॉल) भी शामिल होते हैं। इसकी दीवारों पर विस्तृत भित्ति चित्र तथा नक्काशी इसकी विशेषता है।

    नोट: प्रारंभिक ग्रंथों में वर्णित बीस प्रकार के मंदिरों में से मेरु, मंदरा और कैलाश पहले तीन नाम हैं। ये तीनों पर्वत के नाम हैं जो विश्व धुरी को प्रदर्शित करते हैं।

    नागर वास्तुकला के पाँच प्रकार:

    • वल्लभी:
      • यह विधा बैरल-छत वाली लकड़ी की संरचना की चिनाई के रूप में शुरू होती है या तो गलियारे के बिना या उनके साथ, जो अमूमन चैत्य हॉल (प्रार्थना कक्ष, जो आमतौर पर बौद्ध मठों से संबंधित होते हैं) में पाए जाते हैं। इसमें कई स्तंभ मौजूद होते हैं जो अमूमन स्लैब के माध्यम से निर्मित किये जाते थे।

    • फमसाना:
      • फमसाना में विशिष्ट प्रकार का शिखर होता है और साथ ही कई स्तंभों के समूह होते हैं जो कई स्लैब के माध्यम से निर्मित होते हैं। यह प्रारंभिक नागर शैली से संबंधित है तथा वल्लभी शैली में प्रगति को दर्शाता है।

    • लैटिना या रेखा-प्रासाद:
      • लैटिना एक शिखर है जो एक एकल, वर्गाकार स्तंभ होता है जिसकी चार भुजाएँ समान लंबाई की होती हैं। यह गुप्त काल में अस्तित्व में आया जिसमें सातवीं शताब्दी की शुरुआत तक दीवारों को अंदर की ओर वक्रित करने की विशिष्टता शामिल की गई। यह संपूर्ण उत्तरी भारत में फैल गया। तीन शताब्दियों तक इसे नागर मंदिर वास्तुकला का शिखर माना जाता था।

    • शेखरी:
      • इसमें शेखरी प्रकार का एक शिखर होता है जिसमें एक मुख्य शिखर तथा किनारों एवं कोनों पर उप-शिखर शामिल हैं। ये उप-शिखर शिखर के अधिकांश भाग तक पहुँच सकते हैं तथा एक से अधिक आकार के हो सकते हैं।

    • भूमिजा:
      • भूमिजा शैली में क्षैतिज तथा ऊर्ध्वाधर पंक्तियों में व्यवस्थित लघु शिखर शामिल होते हैं, जो शिखर के समक्ष एक ग्रिड के रूप में कार्य करते हैं। वास्तविक शिखर अमूमन पिरामिड आकार का होता है, जिसमें लैटिना का वक्र कम प्रदर्शित होता है। दसवीं शताब्दी के बाद मिश्रित लैटिना से यह शैली उत्पन्न हुई।

    श्री राम और रामायण भारत के बाहर कैसे लोकप्रिय हो गए हैं?

    • व्यापार मार्ग और सांस्कृतिक विनिमय:
      • रामायण भूमि और समुद्र दोनों, व्यापार मार्गों से फैली। भारतीय व्यापारी, वाणिज्य के लिये यात्रा करते हुए, अपने साथ न केवल सामान बल्कि धार्मिक कहानियों सहित सांस्कृतिक तत्त्व भी ले जाते थे।
      • भूमि मार्ग, जैसे कि पंजाब और कश्मीर के माध्यम से उत्तरी मार्ग और बंगाल के माध्यम से पूर्वी मार्ग, ने रामायण को चीन, तिब्बत, बर्मा, थाईलैंड तथा लाओस जैसे क्षेत्रों में प्रसारित करने की सुविधा प्रदान की।
      • समुद्री मार्ग, विशेष रूप से गुजरात और दक्षिण भारत से दक्षिणी मार्ग, जावा, सुमात्रा तथा मलाया जैसे स्थानों में महाकाव्य के प्रसार का कारण बने।
    • भारतीय समुदायों द्वारा सांस्कृतिक प्रसारण:
      • भारतीय व्यापारियों ने, ब्राह्मण पुजारियों, बौद्ध भिक्षुओं, विद्वानों और साहसी लोगों के साथ, भारतीय संस्कृति, परंपराओं तथा दर्शन को दक्षिण पूर्व एशिया के लोगों तक पहुँचाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
      • समय के साथ, कला, वास्तुकला और धार्मिक प्रथाओं को प्रभावित करते हुए, रामायण कई दक्षिण पूर्व एशियाई देशों की संस्कृति का एक अभिन्न अंग बन गई।
    • स्थानीय संस्कृति में एकीकरण:
      • रामायण विभिन्न तरीकों से स्थानीय संस्कृतियों के साथ एकीकृत हुई। उदाहरण के लिये, थाईलैंड में, अयुत्थ्या साम्राज्य को रामायण की अयोध्या पर आधारित माना जाता है।
      • कंबोडिया में, अंगकोरवाट मंदिर परिसर, जो मूल रूप से विष्णु को समर्पित है, में रामायण के दृश्यों को चित्रित करने वाले भित्ति चित्र हैं।
    • महाकाव्य का विकास:
      • रामायण ने विभिन्न क्षेत्रों में स्थानीय स्वादों और विविधताओं को ग्रहण किया। उदाहरण के लिये, थाईलैंड में रामकियेन, तमिल महाकाव्य कंबन रामायण से प्रभावित होकर, थाईलैंड का राष्ट्रीय महाकाव्य बन गया।
      • विभिन्न देशों में विभिन्न रूपांतरणों में अद्वितीय तत्त्वों को शामिल किया गया, जैसे थाई रामकियेन में तमिल नामों वाले पात्रों का चित्रण।
    • गिरमिटिया श्रम प्रवासन के माध्यम से प्रसार:
      • 19वीं शताब्दी में, गिरमिटिया प्रवासन के परिणामस्वरूप रामायण का प्रसार फिजी, मॉरीशस, त्रिनिदाद और टोबैगो, गुयाना और सूरीनाम जैसे क्षेत्रों में हुआ।
      • गिरमिटिया श्रमिक रामचरितमानस सहित अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक प्रथाओं को अपने साथ अपने स्थान पर ले गए।
    • स्थायी विषयवस्तु और सार्वभौमिकता:
      • रामायण ने अपनी मातृभूमि से दूर रहने वाले भारतीय समुदायों के लिये सांस्कृतिक पहचान और पुरानी यादों के स्रोत के रूप में कार्य किया। इसने उनकी जड़ों से जुड़ाव और विदेशी भूमि में अपनेपन की भावना प्रदान की।
      • रामायण के विषय, जैसे– बुराई पर अच्छाई की विजय, धर्म की अवधारणा, वनवास एवं वापसी का वृत्तांत, सार्वभौमिक रूप से गूँजते हैं, जो महाकाव्य को विविध संस्कृतियों से संबंधित बनाते हैं।
    • सतत् सांस्कृतिक प्रथाएँ:
      • आज भी, रामायण कई दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में सांस्कृतिक ताने-बाने का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा बनी हुई है। इसे नाटकों, नृत्य नाटकों, कठपुतली प्रदर्शन और धार्मिक समारोहों सहित विभिन्न कला रूपों के माध्यम से जीवित रखा गया है।

      UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

    प्रिलिम्स:

    प्रश्न. नागर, द्रविड़ और वेसर हैं– (2012)

    (a) भारतीय उपमहाद्वीप के तीन मुख्य जातीय समूह
    (b) तीन मुख्य भाषा वर्ग, जिनमें भारत की भाषाओं को विभक्त किया जा सकता है
    (c) भारतीय मंदिर वास्तु की तीन मुख्य शैलियाँ
    (d) भारत में प्रचलित तीन मुख्य संगीत घराने

    उत्तर: C


    मेन्स: 

    प्रश्न. मंदिर वास्तुकला के विकास में चोल वास्तुकला का उच्च स्थान है। विवेचना कीजिये। (2013)

    प्रश्न. भारतीय दर्शन और परंपरा ने भारत में स्मारकों की कल्पना तथा आकार देने एवं उनकी कला में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। विवेचना कीजिये। (2020)


    सामाजिक अंकेक्षण सलाहकार निकाय

    प्रिलिम्स के लिये:

    सामाजिक अंकेक्षण सलाहकार निकाय, भारत में सामाजिक अंकेक्षण से संबद्ध फ्रेमवर्क, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम, ग्राम सभा, सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005, सामाजिक अंकेक्षण के लिये राष्ट्रीय संसाधन कक्ष।

    मेन्स के लिये:

    सामाजिक अंकेक्षण की मुख्य विशेषताएँ, भारत में सामाजिक अंकेक्षण से संबंधित चुनौतियाँ।

    स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

    चर्चा में क्यों? 

    हाल ही में सामाजिक अंकेक्षण सलाहकार निकाय (Social Audit Advisory Body - SAAB) की उद्घाटन बैठक नई दिल्ली के डॉ. अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर में हुई।

    • इस अग्रणी सलाहकार निकाय का उद्देश्य सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय (Ministry of Social Justice & Empowerment -MoSJE) को उसकी विविध योजनाओं में सामाजिक अंकेक्षण को संस्थागत बनाने में मार्गदर्शन करना है।

    सामाजिक अंकेक्षण क्या है? 

    • परिचय: 
      • सामाजिक अंकेक्षण एक संगठन के सामाजिक और नैतिक प्रदर्शन को मापने, समझने, प्रेषित करने तथा अंततः सुधारने का एक तरीका है।
      • यह दक्षता और प्रभावशीलता, लक्ष्य तथा वास्तविकता के मध्य उत्पन्न अंतराल को कम करने में सहायक है। 
      • यह आकलन करता है कि उनकी गतिविधियाँ और नीतियाँ उनके घोषित मूल्यों तथा लक्ष्यों, विशेष रूप से समुदायों, कर्मचारियों एवं पर्यावरण पर उनके प्रभाव के साथ कितनी सुसंगत हैं।
        • हॉवर्ड बोवेन ने वर्ष 1953 में लिखी गई अपनी पुस्तक सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटीज ऑफ द बिजनेसमैन में "सोशल ऑडिट" शब्द का प्रस्ताव रखा।
    • सामाजिक अंकेक्षण की मुख्य विशेषताएँ: 
      • तथ्यों की खोज, ग़लतियों की खोज नहीं।
      • विभिन्न स्तरों के हितधारकों के बीच बातचीत के लिये स्थान और मंच सुनिश्चित करना।
      • समय पर शिकायत निवारण।
      • लोकतांत्रिक प्रक्रिया और संस्थाओं को मज़बूत करना।
      • कार्यक्रमों के बेहतर कार्यान्वयन के लिये लोगों का दबाव बनाना।
    • सामाजिक अंकेक्षण के प्रकार:
      • संगठनात्मक: किसी कंपनी के समग्र सामाजिक उत्तरदायित्व प्रयासों का मूल्यांकन करना।
      •  विशिष्ट कार्यक्रम: किसी विशेष कार्यक्रम के प्रभाव और प्रभावशीलता पर ध्यान केंद्रित करना।
      • वित्तीय: वित्तीय निर्णयों के सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभावों की समीक्षा करना।
      • हितधारक प्रेरित: सामाजिक अंकेक्षण प्रक्रिया में विभिन्न हितधारकों को शामिल करना।

    नोट: भारत में टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी लिमिटेड (TISCO), जमशेदपुर, वर्ष 1979 में अपने सामाजिक प्रदर्शन को मापने के लिये सामाजिक ऑडिट करने वाली पहली कंपनी थी। मज़दूर किसान शक्ति संगठन (MKSS) ने 1990 के दशक की शुरुआत में सार्वजनिक कार्यों में भ्रष्टाचार से लड़ते हुए सामाजिक लेखा परीक्षा की अवधारणा शुरू की।

    • भारत में सामाजिक लेखापरीक्षा से संबद्ध रूपरेखा:
      • महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) 2005: अधिनियम की धारा 17 में कहा गया है कि ग्राम सभा कार्य निष्पादन की निगरानी के लिये ज़िम्मेदार है।
        • प्रत्येक राज्य में स्वतंत्र सामाजिक लेखापरीक्षा इकाइयों को कार्यक्रम कार्यान्वयन के समुदाय-संचालित सत्यापन पर ज़ोर देते हुए कार्यान्वयन अधिकारियों से स्वतंत्र रूप से काम करना अनिवार्य है।
      • मेघालय सामुदायिक भागीदारी और लोक सेवा सामाजिक लेखापरीक्षा अधिनियम, 2017: यह राज्य-स्तरीय कानून भारत में अपनी तरह का पहला कानून है, जो सामाजिक लेखापरीक्षा को एक अनिवार्य अभ्यास बनाता है।
      • BOCW अधिनियम के कार्यान्वयन पर सामाजिक लेखापरीक्षा के लिये रूपरेखा: श्रम और रोज़गार मंत्रालय ने भवन तथा अन्य निर्माण श्रमिक (रोज़गार और सेवा की शर्तों का विनियमन) अधिनियम, 2013 के तहत सामाजिक लेखा परीक्षा आयोजित करने हेतु एक रूपरेखा जारी की है।
      • सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005: इसने भारत में सामाजिक लेखा परीक्षा प्रणाली का समर्थन करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह पारदर्शिता और सूचना तक पहुँच को बढ़ाता है, जो प्रासंगिक दस्तावेज़ों तथा डेटा तक पहुँच प्रदान करके सामाजिक ऑडिट की प्रभावशीलता को रेखांकित करता है।
      • सामाजिक लेखापरीक्षा के लिये राष्ट्रीय संसाधन कक्ष (NRCSA): सामाजिक न्याय और अधिकारिता विभाग ने NRCSA की स्थापना की है। यह इकाई राज्य स्तर पर समर्पित सामाजिक लेखापरीक्षा इकाइयों के माध्यम से सामाजिक लेखापरीक्षा सुनिश्चित करती है।
    • भारत में सामाजिक लेखापरीक्षा से संबंधित चुनौतियाँ:
      • मानकीकरण का अभाव: सामाजिक लेखापरीक्षा के लिये मानकीकृत प्रक्रियाओं की अनुपस्थिति के कारण कार्यप्रणाली और रिपोर्टिंग में भिन्नताएँ होती हैं। एकरूपता की कमी के कारण विभिन्न परियोजनाओं तथा क्षेत्रों के परिणामों की तुलना करना मुश्किल हो जाता है।
      • जागरूकता तथा क्षमता का अभाव: स्थानीय समुदायों सहित हितधारकों के बीच सामाजिक अंकेक्षण प्रक्रियाओं की सीमित जागरूकता एवं समझ इसके प्रभावी कार्यान्वयन में बाधा बन सकती है।
        • सामाजिक अंकेक्षण प्रक्रिया में हाशियाई अथवा कमज़ोर समूहों की सीमित भागीदारी के कारण अपूर्ण अथवा पक्षपाती मूल्यांकन होता है।
      • राजनीतिक हस्तक्षेप: सामाजिक अंकेक्षण को राजनीतिक हस्तक्षेप का सामना करना पड़ता है जिससे अंकेक्षण प्रक्रिया की स्वतंत्रता एवं निष्पक्षता प्रभावित होती है। स्थानीय अधिकारियों अथवा राजनीतिक हस्तियों का दबाव अंकेक्षण निष्कर्षों की अखंडता को प्राभावित करता है।
      • संसाधन का अभाव: सामाजिक अंकेक्षण के लिये वित्तीय तथा मानव दोनों तरह के संसाधनों की आवश्यकता होती है। कई स्थानीय निकायों के पास व्यापक सामाजिक अंकेक्षण करने के लिये आवश्यक धन व विशेषज्ञता का अभाव है, जिससे उनकी प्रभावशीलता सीमित हो जाती है।
      • सीमित क्षमता तथा प्रशिक्षण: सामाजिक अंकेक्षण इकाइयाँ, जिनका उद्देश्य कदाचार से संबंधित सभी मामलों का पता लगाना है, निधि एवं प्रशिक्षित पेशेवरों की कमी का सामना करती हैं।

    आगे की राह

    • पारदर्शिता के लिये ब्लॉकचेन: सामाजिक अंकेक्षण में पारदर्शिता तथा अखंडता बढ़ाने के लिये ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी का उपयोग करना। ब्लॉकचेन अंकेक्षण संबंधी जानकारी संग्रहीत करने, डेटा की प्रामाणिकता सुनिश्चित करने के लिये एक सुरक्षित एवं हस्तक्षेप-रोधी मंच प्रदान कर सकता है।
    • पहुँच और प्रतिनिधित्व: अंकेक्षण प्रक्रियाओं का सरलीकरण करना तथा जानकारी की स्थानीय भाषाओं एवं प्रारूपों में उपलब्धता सुनिश्चित करना।
      • लक्षित प्रोत्साहनों के माध्यम से हाशियाई समूहों, महिलाओं एवं युवाओं की विविध भागीदारी सुनिश्चित करना।
    • मानकीकरण तथा व्हिसलब्लोअर संरक्षण: विभिन्न कार्यक्रमों तथा राज्यों में सामाजिक अंकेक्षण करने के लिये स्पष्ट एवं समान दिशानिर्देश विकसित करना।
      • अनियमितताओं की रिपोर्ट करने वाले व्यक्तियों की सुरक्षा के लिये सुदृढ़ विधिक सुरक्षा उपाय कार्यान्वित करना।

      UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

    प्रिलिम्स:

    प्रश्न. न्यायपालिका सहित सार्वजनिक सेवा के हर क्षेत्र में निष्पादन, जवाबदेही और नैतिक आचरण सुनिश्चित करने के लिये एक स्वतंत्र तथा सशक्त सामाजिक अंकेक्षण तंत्र परम आवश्यक है। सविस्तार समझाइये। (2021)


    भारत-बांग्लादेश संबंध

    प्रिलिम्स के लिये:

    भारत-बांग्लादेश संबंध, बांग्लादेश मुक्ति युद्ध, रूस-यूक्रेन युद्ध, व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौता (CEPA), गंगा जल संधि

    मेन्स के लिये:

    भारत-बांग्लादेश संबंध, द्विपक्षीय, भारत से जुड़े और/या भारत के हितों को प्रभावित करने वाले समझौते, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह 

    स्रोत: द हिंदू 

    चर्चा में क्यों?

    हाल ही में बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने निरंतर चौथे ऐतिहासिक कार्यकाल के लिये बांग्लादेश की सत्ता पुनः ग्रहण की। अन्य देशों सहित भारत ने भी बांग्लादेश को बधाई दी जो दोनों देशों के बीच घनिष्ठ द्विपक्षीय संबंधों को दर्शाता है।

    भारत-बांग्लादेश के बीच संबंध कैसे विकसित हुए हैं?

    • ऐतिहासिक संबंध:
      • बांग्लादेश के साथ भारत के संबंधों की नींव वर्ष 1971 के बांग्लादेश मुक्ति युद्ध से स्थापित हुई थी। भारत ने पाकिस्तान से आज़ादी के युद्ध में बांग्लादेश की सहायता के लिये महत्त्वपूर्ण सैन्य तथा सामग्री सहायता प्रदान की।
      • इसके बावजूद बांग्लादेश पर सैन्य शासन का नियंत्रण होने से कुछ ही वर्षों में दोनों देशों के संबंध प्रभावित हुए। 1970 के दशक के मध्य में सीमा विवाद एवं विद्रोह सहित जल बँटवारे के मुद्दों के परिणामस्वरूप बांग्लादेश की भारत विरोधी भावना में वृद्धि हुई।
      • वर्ष 1996 में शेख हसीना के सत्ता में आने तथा गंगा जल बँटवारे पर एक संधि के साथ द्विपक्षीय संबंधों की प्रगति में एक नई दिशा मिली।
      • वर्तमान में भारत और बांग्लादेश ने व्यापार, ऊर्जा, आधारभूत अवसंरचना, कनेक्टिविटी तथा रक्षा क्षेत्र में सहयोग की दिशा में मिलकर प्रगति की है।
    • आर्थिक सहयोग:
      • विगत दशक में भारत और बांग्लादेश के बीच हुए द्विपक्षीय व्यापार में निरंतर वृद्धि हुई है।
      • बांग्लादेश दक्षिण एशिया में भारत के सबसे बड़े व्यापार भागीदार के रूप में उभरा है। दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2020-21 में 10.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2021-2022 में 18 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया हालाँकि वर्ष 2022-23 में कोविड-19 महामारी एवं रूस-यूक्रेन युद्ध के व्यापार में गिरावट आई।
      • भारत भी बांग्लादेश का दूसरा सबसे बड़ा व्यापार भागीदार है जिसका भारतीय बाज़ारों में निर्यात 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर है।
      • वर्ष 2022 में दोनों देशों ने व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौते (CEPA) पर एक संयुक्त व्यवहार्यता अध्ययन संपन्न किया। CEPA को अतिरिक्त महत्त्व मिलता है क्योंकि बांग्लादेश वर्ष 2026 के बाद अपना अल्प विकसित देश (LDC) का दर्जा खोने के लिये तैयार है, जिससे भारत में उसकी शुल्क-मुक्त और कोटा-मुक्त बाज़ार पहुँच खो जाएगी।
      • बांग्लादेश भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौते (FTA) को अंतिम रूप देने और चीन समर्थित क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (RCEP) को आगे बढ़ाने हेतु उत्सुक होगा। यह दोहरा रवैया भारत के लिये चिंताएँ बढ़ाता है।
    • अवसंरचना:
      • वर्ष 2010 के बाद से भारत ने बांग्लादेश को 7 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक की ऋण सहायता प्रदान की है।
      • भारत और बांग्लादेश ने वर्ष 2015 में भूमि सीमा समझौते/लैंड बाउंड्री एग्रीमेंट (LBA) तथा क्षेत्रीय जल पर समुद्री विवाद जैसे लंबे समय से लंबित मुद्दों को सफलतापूर्वक हल किया है।
      • भारत और बांग्लादेश ने वर्ष 2023 में अखौरा-अगरतला रेल लिंक का उद्घाटन किया जो बांग्लादेश तथा पूर्वोत्तर को त्रिपुरा के माध्यम से जोड़ता है।
      • इस लिंक ने भारत को माल की आवाजाही के लिये बांग्लादेश में चट्टोग्राम और मोंगला बंदरगाहों तक पहुँच प्रदान की है।
        • इससे असम और त्रिपुरा में लघु उद्योगों तथा विकास को बढ़ावा मिलने की संभावना है।
      • परिवहन कनेक्टिविटी के लिये बिम्सटेक (BIMSTEC) मास्टर प्लान भारत, बांग्लादेश, म्याँमार और थाईलैंड में प्रमुख परिवहन परियोजनाओं को जोड़ने पर केंद्रित है, जिससे एक शिपिंग नेटवर्क स्थापित किया जा सके।
        • भारत का ध्यान त्रिपुरा से 100 किमी. दूर बांग्लादेश द्वारा बनाए जा रहे मटरबारी बंदरगाह पर रहेगा। यह बंदरगाह ढाका और पूर्वोत्तर भारत को जोड़ने वाला एक महत्त्वपूर्ण औद्योगिक गलियारा बनाएगा
    • ऊर्जा:
      • ऊर्जा क्षेत्र में, बांग्लादेश भारत से लगभग 2,000 मेगावाट (मेगावाट) बिजली आयात करता है।
      • वर्ष 2018 में रूस, बांग्लादेश और भारत ने बांग्लादेश के पहले परमाणु ऊर्जा रिएक्टर, रूपपुर परमाणु ऊर्जा संयंत्र परियोजना के कार्यान्वयन में सहयोग पर एक ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये।
    • रक्षा सहयोग:
      • भारत और बांग्लादेश 4096.7 किमी. लंबी सीमा साझा करते हैं, यह भारत द्वारा अपने किसी भी पड़ोसी देश के साथ साझा की जाने वाली सबसे लंबी भूमि सीमा है।
        • असम, पश्चिम बंगाल, मिज़ोरम, मेघालय और त्रिपुरा की सीमा बांग्लादेश से लगती है।
      • दोनों संयुक्त अभ्यास भी आयोजित करते हैं- सेना (अभ्यास संप्रीति) और नौसेना (अभ्यास बोंगो सागर)
    • बहुपक्षीय सहयोग:

    भारत और बांग्लादेश के बीच तनाव के प्रमुख मुद्दे क्या हैं?

    • सीमा पार नदी जल का बँटवारा: : 
      • सीमा पार नदी जल का बँटवारा: भारत और बांग्लादेश 54 नदियाँ साझा करते हैं, लेकिन अब तक केवल दो संधियों (गंगा जल संधि और कुशियारा नदी संधि) पर हस्ताक्षर किये गए हैं।
        • अन्य प्रमुख नदियाँ, जैसे- तीस्ता और फेनी मुद्दे पर अभी भी समझौता वार्ता चल रही है।
    • अवैध प्रवास: 
      • बांग्लादेश से भारत में अवैध प्रवास, जिसमें शरणार्थी और प्रवासी शामिल हैं, एक गंभीर मुद्दा बना हुआ है।
      • यह अंतर्वाह भारतीय सीमावर्ती राज्यों पर दबाव डालता है, जिससे संसाधनों एवं सुरक्षा पर असर पड़ता है। रोहिंग्या शरणार्थियों के बांग्लादेश के रास्ते भारत में प्रवेश करने से समस्या और बढ़ गई है।
      • इस तरह के प्रवासन को रोकने के उद्देश्य से बने राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (National Register of Citizens- NRC) ने बांग्लादेश की चिंता बढ़ा दी है।
        • बांग्लादेश म्याँमार को उन रोहिंग्याओं को वापस लेने के लिये मनाने में भारत का समर्थन चाहता है जिन्हें बांग्लादेश में शरण लेने के लिये मजबूर किया गया था।
    • मादक पदार्थों की तस्करी: 
      • सीमा पार से मादक पदार्थों की तस्करी की कई घटनाएँ हुई हैं। इन सीमाओं के माध्यम से मानव (विशेषकर बच्चों एवं महिलाओं) तस्करी की जाती है तथा विभिन्न जानवरों और पक्षियों की प्रजातियों का अवैध शिकार किया जाता है।
    • बांग्लादेश में बढ़ता चीनी प्रभाव: 
      • वर्तमान में बांग्लादेश बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (Belt and Road Initiative- BRI) में एक सक्रिय भागीदार है (भारत BRI का हिस्सा नहीं है)।
        • बांग्लादेश के साथ चीन की बढ़ती भागीदारी संभावित रूप से भारत की क्षेत्रीय स्थिति को कमज़ोर कर सकती है तथा इसकी रणनीतिक आकांक्षाओं में बाधा डाल सकती है।

    आगे की राह

    • सीमा पार से मादक पदार्थों की तस्करी और मानव तस्करी से प्रभावी ढंग से निपटने हेतु दोनों देशों की कानून प्रवर्तन एजेंसियों को शामिल करते हुए संयुक्त कार्य बल स्थापित करने की आवश्यकता है। 
    • साझा खुफिया जानकारी तथा समन्वित संचालन से अवैध नेटवर्क बाधित हो सकते हैं।
    • कृत्रिम बुद्धिमत्ता और डेटा विश्लेषण का उपयोग करने वाले स्मार्ट सीमा प्रबंधन समाधानों को लागू करना सुरक्षा एवं दक्षता सुनिश्चित करते हुए सीमा पार आंदोलनों को सुव्यवस्थित कर सकता है।
    • डिजिटल कनेक्टिविटी कॉरिडोर: दोनों देशों के बीच हाई-स्पीड इंटरनेट कनेक्टिविटी, डिजिटल सेवाओं और ई-कॉमर्स पर ध्यान केंद्रित करते हुए एक डिजिटल कनेक्टिविटी कॉरिडोर स्थापित करने की आवश्यकता है। इससे व्यापार, सहयोग एवं तकनीकी आदान-प्रदान के नए मार्ग का निर्माण होगा।

      UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

    प्रिलिम्स:

    प्रश्न. तीस्ता नदी के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)

    1- तीस्ता नदी का उद्गम वही है जो ब्रह्मपुत्र का है लेकिन यह सिक्किम से होकर बहती है।
    2- रंगीत नदी की उत्पत्ति सिक्किम में होती है और यह तीस्ता नदी की एक सहायक नदी है।
    3- तीस्ता नदी, भारत एवं बांग्लादेश की सीमा पर बंगाल की खाड़ी में जा मिलती है।

    उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

    (a) केवल 1 और 3
    (b) केवल 2
    (c) केवल 2 और 3
    (d) 1, 2 और 3

    उत्तर: (b)


    मेन्स

    प्रश्न. आंतरिक सुरक्षा खतरों तथा नियंत्रण रेखा सहित म्याँमार, बांग्लादेश और पाकिस्तान सीमाओं पर सीमा-पार अपराधों का विश्लेषण कीजिये। विभिन्न सुरक्षा बलों द्वारा इस संदर्भ में निभाई गई भूमिका की विवेचना भी कीजिये। (2020)


    स्टार्ट-अप्स पर फंडिंग विंटर प्रभाव

    प्रिलिम्स के लिये:

    फंडिंग विंटर, स्टैंड-अप इंडिया योजना, प्रधानमंत्री मुद्रा योजना, स्टार्टअप इंडिया एक्शन प्लान

    मेन्स के लिये:

    भारतीय स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र, स्टार्टअप्स के लिये सरकार की पहल

    स्रोत: द हिंदू

    चर्चा में क्यों?

    बंगलुरु, जिसे अक्सर भारत की सिलिकॉन वैली कहा जाता है, को वैश्विक घटनाओं के कारण वित्तपोषण की कमी के फलस्वरूप स्टार्ट-अप पारिस्थितिकी तंत्र में संकट का सामना करना पड़ा है। फंडिंग विंटर के बाद कई क्षेत्रीय स्टार्ट-अप को छँटनी से लेकर सतर्क निवेशक भावना के अभाव से जूझना पड़ा है।

    फंडिंग विंटर क्या है?

    • परिचय:
      • ‘फंडिंग विंटर’ एक शब्द है जिसका उपयोग स्टार्टअप्स के लिये कम पूंजी प्रवाह की अवधि का वर्णन करने के लिये किया जाता है।
      • फंडिंग विंटर के दौरान निवेशक और ऋणदाता वित्तीय सहायता प्रदान करने में अधिक सतर्क (cautious) तथा चयनात्मक (selective) हो जाते हैं, जिससे बाज़ार में उपलब्ध कुल वित्तपोषण में कमी आती है।
      • फंडिंग विंटर व्यवसायों और उद्यमियों को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकती है, विशेष रूप से उन लोगों पर जो विकास के शुरुआती चरण में हैं या जो अपने परिचालन का विस्तार करना चाहते हैं।
    • भारत में फंडिंग विंटर के कारण:
      • भारतीय स्टार्ट-अप फंडिंग में उतार-चढ़ाव:
        • वर्ष 2021 में भारतीय स्टार्ट-अप फंडिंग बढ़कर रिकॉर्ड 42 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गई, जिससे देशभर में 42 नए यूनिकॉर्न बने। हालाँकि वर्ष 2022 में फंडिंग में 40% की गिरावट देखी गई, जो महामारी से प्रेरित आशावाद में बदलाव का प्रतीक है।
        • प्रारंभिक वृद्धि को कोविड-19 महामारी के दौरान डिजिटल उद्यमों में बड़े पैमाने पर हुए निवेश से बढ़ावा मिला।
        • ऐसी धारणा थी कि डिजिटल प्रवृत्ति उसी गति से जारी रहेगी, लेकिन जैसे ही विश्व की  परिस्थितियाँ सामान्य हुईं, निवेश का पुनर्मूल्यांकन हुआ।
        • आँकड़ों के अनुसार, भारत में तकनीकी कंपनियों को वर्ष 2023 में 8.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर की फंडिंग मिली, जो वर्ष 2022 से 67% कम है।
    • वैश्विक व्यापक आर्थिक कारक: 
    • निवेश प्रतिफल (Return on Investments) पर फोकस :
      • निवेशकों ने स्टार्ट-अप की दीर्घकालिक व्यवहार्यता और लाभप्रदता पर सवाल उठाना शुरू कर दिया, जिससे बाज़ार में गिरावट आई
      • निवेशकों को यूनिकॉर्न और उत्तरवर्ती-चरण के स्टार्ट-अप पर कम भरोसा है जो लाभप्रदता से ऊपर विकास को प्राथमिकता देते हैं।
      • निवेशकों की रुचि और गतिविधि ने विवेकशीलता एवं राजस्व मॉडल पर ध्यान केंद्रित करते हुए आरंभिक चरण के स्टार्ट-अप की ओर रुख किया है।
      • विलय और अधिग्रहण की अनुपस्थिति, सूचीबद्ध स्टार्ट-अप के खराब प्रदर्शन के साथ, निवेशकों को व्यवहार्य निकास विकल्पों के बिना छोड़ दिया गया।
        • निकास के विकल्पों की कमी ने निवेशकों और अंतिम चरण के स्टार्ट-अप दोनों के लिये एक चुनौतीपूर्ण वातावरण तैयार करने में योगदान दिया।
    • घरेलू पूंजी का अभाव:
      • भारतीय स्टार्ट-अप इकोसिस्टम में घरेलू पूंजी की कमी से वित्तपोषण संकट और प्रभावित हुआ है।
      • घरेलू पेंशन निधि के तहत प्रौद्योगिकी, उद्यम और स्टार्ट-अप में निवेश नहीं किया जा रहा है जिससे मौजूदा अवसर व्यर्थ हो रहे हैं।
      • केंद्रीय वित्त मंत्रालय तथा नियामक प्रणाली स्टार्ट-अप के कर संबंधी मुद्दों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं।
    • व्यष्टि तथा समष्टि अर्थशास्त्र संबंधी चुनौतियाँ:
      • समष्टि (Macro) अर्थशास्त्र स्थितियों तथा कुछ स्टार्ट-अप संस्थापकों की मूल व्यावसायिक सिद्धांतों का अनुपालन करने में विफलता ने वित्तपोषण को प्रभावित किया।
      • यह संकट मात्र बाह्य कारकों का परिणाम नहीं था अपितु स्टार्ट-अप पारिस्थितिकी तंत्र के भीतर आंतरिक निर्णयों एवं रणनीतियों का भी परिणाम था।

    स्टार्ट-अप्स तथा कर्मचारियों से संबंधित क्या प्रभाव हैं?

    • बड़े पैमाने पर छँटनी:
      • फंडिंग विंटर के परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर छँटनी हुई है। अंतर्राष्ट्रीय layoffs.fyi (यह टेक स्टार्टअप में हुई छँटनी ट्रैक करता है) के आँकड़ों के अनुसार, तकनीकी कंपनियों ने वर्ष 2023 से जनवरी 2024 तक भारत में लगभग 17,000 कर्मचारियों की छँटनी की।
    • साइलेंट लेऑफ:
      • कंपनियाँ प्रत्यक्ष छँटनी के बजाय कर्मचारी के कार्य को कम रेटिंग देकर तथा उन्हें नौकरी छोड़ने के लिये प्रेरित कर 'साइलेंट लेऑफ' का सहारा लेती हैं।
    • पलायन दर:
      • सितंबर 2022 तथा जुलाई 2023 के बीच 111 भारतीय यूनिकॉर्न ने 4.72% की एट्रिशन/पलायन  दर (जिस दर पर कर्मचारी कोई संगठन छोड़ते हैं) का अनुभव किया जिसमें अकेले बंगलुरु में 41,208 कर्मचारियों ने अपनी कंपनियाँ छोड़ दीं।

    भारत में स्टार्टअप इकोसिस्टम:

    • 3 अक्तूबर, 2023 तक देश के 763 ज़िलों में उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (Department for Promotion of Industry and Internal Trade- DPIIT) द्वारा मान्यता प्राप्त 1 लाख से अधिक स्टार्टअप के साथ भारत ने वैश्विक स्तर पर स्टार्टअप के लिये तीसरे सबसे बड़े इकोसिस्टम के रूप में अपनी स्थिति को सशक्त किया।
    • भारत मध्यम आय वाली अर्थव्यवस्थाओं के बीच वैज्ञानिक प्रकाशनों की गुणवत्ता तथा अपने विश्वविद्यालयों की गुणवत्ता में शीर्ष स्थान के साथ नवाचार गुणवत्ता में दूसरे स्थान पर है। 
      • भारत में नवाचार केवल कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं है। इसका विस्तार 56 विविध औद्योगिक क्षेत्रों में है जिसमें 13% IT सेवाओं, 9% स्वास्थ्य सेवा एवं जीवन विज्ञान, 7% शिक्षा, 5% कृषि और 5% खाद्य व पेय पदार्थ शामिल हैं।
    • भारतीय स्टार्टअप इकोसिस्टम में विगत कुछ वर्षों (2015-2022) में तेज़ी से वृद्धि देखी गई है:
      • स्टार्टअप्स के कुल वित्तपोषण में 15 गुना की वृद्धि।
      • निवेशकों की संख्या में 9 गुना की वृद्धि।
      • इन्क्यूबेटरों की संख्या में 7 गुना की वृद्धि।
    • अक्तूबर 2023 तक, भारत में 111 यूनिकॉर्न मौजूद हैं जिनका कुल मूल्यांकन 349.67 बिलियन अमेरिकी डॉलर है। यूनिकॉर्न की कुल संख्या में से, 102.30 बिलियन अमेरिकी डॉलर के कुल मूल्यांकन वाली 45 यूनिकॉर्न की स्थापना वर्ष 2021 में हुई तथा 29.20 बिलियन अमेरिकी डॉलर के कुल मूल्यांकन के साथ 22 यूनिकॉर्न की स्थापना वर्ष 2022 में हुई।
      • वर्ष 2023 में नवीनतम तथा एकमात्र यूनिकॉर्न के रूप में ज़ेप्टो का उदय हुआ। 

    स्टार्टअप्स के लिये भारत सरकार की क्या पहल हैं?

    आगे की राह

    • पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को व्यवसाय के बुनियादी सिद्धांतों को प्राथमिकता देनी चाहिये, सही अनुपात और संतुलन बनाए रखना चाहिये तथा भविष्य के चक्रों की योजना बनानी चाहिये।
    • निरंतर विकास सुनिश्चित करने के लिये स्टार्ट-अप हेतु संपार्श्विक-मुक्त ऋण सहित वित्तपोषण में संरचनात्मक स्तर के सुधारों की आवश्यकता है।
    • कर्नाटक के ELEVATE कार्यक्रम की तरह निरंतर सरकारी समर्थन, स्टार्ट-अप विफलताओं को रोकने और एक लचीले पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
      • कर्नाटक का ELEVATE कार्यक्रम शुरुआती चरण के स्टार्ट-अप को ₹50 लाख तक का एकमुश्त अनुदान देता है। तरजीही बाज़ार पहुँच के तहत, सरकार का लक्ष्य स्टार्ट-अप से सार्वजनिक खरीद को बढ़ावा देना है।
      • सरकार को विशेष रूप से पेंशन फंड से घरेलू निवेश को प्रोत्साहित करने के लिये नीतियाँ लागू करनी चाहिये।
    • स्टार्ट-अप को मितव्ययिता, दक्षता और जैविक व्यावसायिक नेतृत्व को अपनाकर बाज़ार की गतिशीलता के अनुरूप ढलने की आवश्यकता है।

      UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

    प्रिलिम्स:

    प्रश्न. उद्यम पूंजी से क्या तात्पर्य है? (2014)

    (a) उद्योगों को उपलब्ध कराई गई अल्पकालीन पूंजी
    (b) नए उद्यमियों को उपलब्ध कराई गई दीर्घकालीन प्रारंभिक पूंजी
    (c) उद्योगों को हानि उठाते समय उपलब्ध कराई गई निधियाँ
    (d) उद्योगों के प्रतिस्थापन एवं नवीकरण के लिये उपलब्ध कराई गई निधियाँ

    उत्तर: (b)


    प्रश्न 2. स्मार्ट इंडिया हैकथॉन, 2017 के संबंध में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2017)

    1. यह एक दशक में हमारे देश के प्रत्येक शहर को स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित करने के लिये केंद्र-प्रायोजित योजना है। 
    2. यह हमारे देश के समक्ष आने वाली कई समस्याओं को हल करने के लिये नई डिजिटल प्रौद्योगिकी नवाचारों की पहचान करने की एक पहल है।
    3. इस कार्यक्रम का उद्देश्य एक दशक में हमारे देश में सभी वित्तीय लेनदेन को पूरी तरह से डिजिटल बनाना है।

    नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

    (a) केवल 1 और 3
    (b) केवल 2
    (c) केवल 3
    (d) केवल 2 और 3

    उत्तर: (b)


    मेन्स:

    प्रश्न 1: हाल के समय में भारत में आर्थिक संवृद्धि की प्रकृति का वर्णन अक्सर नौकरीहीन संवृद्धि के तौर पर किया जाता है। क्या आप इस विचार से सहमत हैं? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क प्रस्तुत कीजिये। (2015)