अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत-बांग्लादेश संबंध और ‘लैंड बाउंड्री एग्रीमेंट’ की भूमिका
- 16 Feb 2017
- 8 min read
भूमिका
भारत-बांग्लादेश संबंध, उपमहाद्वीप में शायद सबसे जटिल संबंध है| गौरतलब है कि भारत ने बांग्लादेश को आज़ादी दिलाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, लेकिन भारत के अहम् योगदान को यह कहकर झुठला दिया जाता है कि वह पाकिस्तान के सन्दर्भ में अपने हितों का पालन कर रहा था| उल्लेखनीय है कि जल-विवाद, सीमा विवाद, न्यू मूर द्वीप की समस्या, शरणार्थी समस्या, आतंकवाद, भारत विरोधी गतिविधियाँ आदि विवादित मुद्दों के कारण दोनों देशों के मध्य तनाव की स्थिति बनी हुई है|
भारत बांग्लादेश सीमा विवाद
- दरअसल, उपमहाद्वीप में सीमा विवाद अंग्रेज़ों के जाने के साथ ही शुरू हो गए थे, भारत के प्रयासों द्वारा 1971 में इस स्वतंत्र राष्ट्र को संप्रभुता तो हासिल हुई पर साथ ही दोनों देशों के बीच सीमा विवाद ‘गले की हड्डी’ बन गई|
- लेकिन वर्ष 2015 में भारत-बांग्लादेश संबंधों में एक नया अध्याय जुड़ गया और इस अध्याय का नाम था “भूमि सीमा करार”( Land boundary agreement-LBA)| उम्मीद यह थी कि एलबीए भारत-बांग्लादेश संबंधों को नई ऊँचाईयों पर ले जाएगा|
- हालाँकि एलबीए के लगभग दो वर्षों पश्चात भी भारत-बांग्लादेश संबंधों में उम्मीद के मुताबिक प्रगति नहीं हुई है|
“भूमि सीमा करार”( Land boundary agreement-LBA)
- जैसा कि हम जानते हैं कि एक ज़माने में बांग्लादेश, भारत का ही हिस्सा रहा था और इसीलिये प्राकृतिक रूप से बने पहाड़, जंगलों, नदियों और खासकर इंसानों और उनके बस्तियों को कभी ठीक ढंग से बाँटा ही नहीं गया और लकीरें खींचने में जो तकनीकी दिक्कतें थीं, वे बांग्लादेश के बनने से लेकर वर्ष 2015 तक यथावत जस की तस बनी रहीं और इस तरह यह मामला ‘लंबित’ मामलों की श्रेणी में आ गया था|
- दरअसल, बांग्लादेश के कुछ हिस्सों में भारतीय रहते थे और वह इलाका भारत का था, ठीक उसी तरह भारत में भी कुछ ऐसे भू-भाग थे जो बांग्लादेश के थे और उस पर बांग्लादेशी निवास करते थे| इस वज़ह से जो भारतीय सीमा के उस पार रहते थे उन पर भारतीय कानून लागू नहीं हो पाता था और उन्हें भारत सरकार की सुविधाएँ और अधिकार भी नहीं प्राप्त हो पाते थे| एक और समस्या यह थी कि सीमा के सीधी और सरल नहीं होने के कारण वहाँ अवैध तरीके से आवागमन को रोकना भी सुरक्षा बलों के लिये सिर दर्द साबित होता था|
- इसी को लेकर भारत और बांग्लादेश के बीच तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के समय में लैंड बाउंडरी एग्रीमेंट (भूमि सीमा करार)1974 तैयार की गई थी जिसे वर्ष 2015 तक सदन में पारित नहीं किया गया था| हालाँकि वर्ष 2015 में तत्कालीन सरकार ने इस काम में तेजी दिखाई और मतभेदों को भुलाकर एलबीए पर एक राय बनी और सदन में इसे सर्वसम्मति से पारित भी करवा लिया गया|
- समझौते के तहत 111 सीमावर्ती एंक्लेव बांग्लादेश को मिले जबकि बदले में 51 एंक्लेव भारत का हिस्सा बने| साथ ही भारत के बाशिंदे भारतीय ज़मीन पर लौट आए और भारत ने 7,110 एकड़ भूमि का आधिपत्य भी पा लिया| इसी प्रकार भारतीय हिस्से के एंक्लेव्स में रह रहे बांग्लादेशी वहाँ चले गए और वहाँ मौजूद भारतीय एंक्लेव की भूमि जो 17,158 एकड़ है वह बांग्लादेश की हो गई|
वर्तमान चुनौतियाँ
- वर्तमान में भारत की तरफ से भारत-बांग्लादेश सीमा की काँटेदार तारों से घेराबंदी की जा रही है जो कि अंतर्राष्ट्रीय नियमों के खिलाफ़ है, दोनों देशों के बीच जल-विवाद भी सुलझने का नाम नहीं ले रहा है|
- भारत-बांग्लादेश सीमा पर कई बार निर्दोष बांग्लादेशी भारतीय सुरक्षा बलों के हाथों मारे जाते हैं, क्योंकि सुरक्षा बलों के लिये सीमापार से घुसपैठ करने की कोशिश कर रहे निर्दोष बांग्लादेशी और एक आतंकवादी में भेद करना मुश्किल हो जाता है| यही कारण है कि एलबीए के बाद भी एक आम बांग्लादेशी के मन में भारत विरुद्ध छवि बनती जा रही है।
क्या हो आगे का रास्ता?
- यह चिंतनीय है कि भारत को एक ही साथ दो मोर्चों पर आतंकवाद से दो-दो हाथ करना पड़ रहा है| कश्मीर में जहाँ आये दिन सुरक्षा बलों और आतंकवादियों के बीच मुठभेड़ हो रही हैं वहीं भारत बांग्लादेश सीमा भी लगातार अशांत बनी हुई है| यदि भारत को बांग्लादेश के साथ रिश्ते सुधारने हैं तो पहले बांग्लादेशी जनता का दिल जीतना होगा|
- तीस्ता मामले का हल न निकल पाना, बांग्लादेशी बाज़ारों में भारतीय सामानों का नहीं पहुँच पाना, कुछ ऐसी समस्याएँ हैं जो इसलिए खत्म नहीं हो पा रहीं क्योंकि बांग्लादेशी सरकार को यह लगता है कि भारत के अत्यधिक नज़दीक जाने से उनकी जनता उनसे रूठ जाएगी और अगले चुनाओं में सत्ता पाना मुश्किल हो जाएगा|
- अतः भारत को चाहिये कि एलबीए के माध्यम से बांग्लादेश ने जो भी लाभ प्राप्त कियें हैं उनकी मार्केटिंग करे और द्विपक्षीय वार्ताओं में उनका इस्तेमाल करे| भारत वहाँ की जनता को यह बताए की बांग्लादेश की आज़ादी में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला भारत, बांग्लादेश के विकास में भी अहम् भूमिका निभाने को तैयार है|
निष्कर्ष
भारत-बांग्लादेश के मध्य द्विपक्षीय व्यापार में भी हाल के वर्षों में बढ़ोतरी के प्रयास किए गए हैं| इसके अतिरिक्त भारत ने बांग्लादेश के विकास में भी अपनी साझेदारी बढ़ाई है| गौरतलब है कि भारत पड़ोसी देशों के साथ सम्पर्क तथा अन्त-क्रिया बढ़ाने व इन देशों व भारत की जनता के बीच संवाद व सांस्कृतिक आदान-प्रदान बढ़ाने पर बल दे रहा है| भारत द्वारा अपने सीमावर्ती क्षेत्रों व इन देशों के मध्य संचार व यातायात ढाँचे के विकास पर बल दिया गया है| हालाँकि इसमें कोई दो राय नहीं है कि भारत ने एलबीए का सामरिक लाभ समुचित ढ़ंग से नहीं उठाया है|