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डेली न्यूज़

  • 22 Aug, 2023
  • 50 min read
जैव विविधता और पर्यावरण

मीथेन का बढ़ता स्तर और जलवायु स्थिरता के लिये खतरा

प्रिलिम्स के लिये:

टर्मिनेशन लेवल ट्रांज़िशन (पृथ्वी की जलवायु में एक स्थिति से दूसरी स्थिति में महत्त्वपूर्ण और तीव्र बदलाव), मीथेन, ग्रीनहाउस गैस

मेन्स के लिये:

ग्लोबल वार्मिंग पर मीथेन उत्सर्जन का प्रभाव, टर्मिनेशन लेवल ट्रांज़िशन में हाइड्रोकार्बन की भूमिका

चर्चा में क्यों? 

पृथ्वी के वायुमंडल में मीथेन के स्तर में वृद्धि के कारण पृथ्वी पर होने वाले जलवायु परिवर्तन को लेकर चिंता और  अधिक बढ़ गई है।

  • मीथेन, जो कि एक प्रमुख ग्रीनहाउस गैस है, की निरंतर वृद्धि को देखते हुए सवाल उठता है कि क्या पृथ्वी पिछले जलवायु परिवर्तनों के समान 'टर्मिनेशन लेवल ट्रांज़िशन (पृथ्वी की जलवायु में एक स्थिति से दूसरी स्थिति में महत्त्वपूर्ण और तीव्र बदलाव अथवा समाप्ति-स्तर का संक्रमण)' का सामना कर रही है।

टर्मिनेशन लेवल ट्रांज़िशन:

  • "समाप्ति-स्तर का संक्रमण" की अवधारणा से आशय पृथ्वी की जलवायु में एक स्थिति से दूसरी स्थिति  में एक महत्त्वपूर्ण और अचानक बदलाव से है।
  • विभिन्न जलवायवीय कारकों में तीव्र और पर्याप्त परिवर्तन इन संक्रमणों की पहचान है, इन परिवर्तनों के पृथ्वी के पारिस्थितिक तंत्र, मौसम के पैटर्न तथा समग्र पर्यावरणीय स्थिरता पर दूरगामी परिणाम हो सकते हैं।
  • अपने संपूर्ण इतिहास में पृथ्वी की जलवायु ने विभिन्न समाप्ति-स्तर के संक्रमणों का सामना किया है।
  • समुद्री धाराओं में परिवर्तन एवं वायुमंडलीय संरचना सहित विभिन्न कारक इस समाप्ति-स्तर के संक्रमण को और अधिक गति प्रदान कर सकते हैं।
    • वैश्विक शीतलन अथवा हिमयुग की सबसे हालिया घटनाएँ प्लेइस्टोसिन काल के दौरान हुईं, जो लगभग 2.6 मिलियन से 11,700 वर्ष पहले तक देखी गई थीं। ये अक्सर हिमयुग के अंत तथा उसके बाद ऊष्म अंतर-हिमनद काल (Interglacial Periods) में संक्रमण से संबंधित हैं।

ग्लोबल वार्मिंग पर मीथेन का खतरा:

  • ग्रीनहाउस गैस के रूप में मीथेन:
    • मीथेन गैस कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) की तुलना में ऊष्मा को रोके रखने में अधिक सक्षम है।
    • CO₂ के दीर्घकालिक जीवनकाल की तुलना में इसका वायुमंडलीय जीवनकाल एक दशक से भी कम होता है।
    • हालाँकि मात्रा के संदर्भ में मीथेन CO₂ की तुलना में कम है, लेकिन मीथेन की ताप-धारण क्षमता CO2 से लगभग 28-36 गुना अधिक है।
    • मनुष्यों द्वारा जीवाश्म ईंधन जलाए जाने की शुरुआत से पूर्व हवा में मीथेन लगभग 0.7 ppm था। वर्तमान में यह मान 1.9 ppm से अधिक है और तेज़ी से बढ़ता जा रहा है।
      • मीथेन की यह बढ़ी हुई वार्मिंग क्षमता ग्रीनहाउस प्रभाव को तीव्रता प्रदान करती है।
  • ग्लोबल वार्मिंग को सीमित करने में चुनौतियाँ:
    • मीथेन के स्तर में तेज़ी से वृद्धि ग्लोबल वार्मिंग को सुरक्षित स्तर तक सीमित करने के प्रयासों को जटिल बनाती है।
    • बढ़ी हुई मीथेन सांद्रता समग्र ग्रीनहाउस गैस प्रभाव में योगदान करती है, जिससे तापमान में वृद्धि होती है।
    • मीथेन का बढ़ता स्तर ग्रह को खतरनाक तापमान सीमा के करीब पहुँचा सकता है।
    • मीथेन के कारण उत्पन्न होने वाली गर्मी से पर्माफ्रॉस्ट (Permafrost) के पिघलने तथा आर्कटिक सागर की बर्फ के पिघलने से और अधिक मीथेन रिलीज़ हो सकती है, जिससे इसका तापन प्रभाव (Warming Effects) बढ़ सकता है।
  • पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव:
    • बढ़ी हुई मीथेन सांद्रता पारिस्थितिक तंत्र को प्रभावित करने के साथ ही प्राकृतिक प्रक्रियाओं को बाधित कर सकती है तथा जैवविविधता को प्रभावित कर सकती है।
    • कमज़ोर पारिस्थितिकी तंत्र, जैसे- आर्द्रभूमि, मीथेन से संबंधित परिवर्तनों के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील हैं।
  • समुद्र-स्तर में वृद्धि के निहितार्थ:
    • मीथेन का बढ़ा हुआ स्तर ध्रुवीय बर्फ तथा ग्लेशियरों के पिघलने की गति बढ़ाकर समुद्र-स्तर में वृद्धि में योगदान कर सकता है।
    • समुद्र-स्तर में वृद्धि से तटीय समुदायों (Coastal Communities) के लिये खतरा उत्पन्न हो सकता है और यह वृद्धि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को भी बढ़ा सकती है।

मीथेन:

  • मीथेन सबसे सरल हाइड्रोकार्बन (Hydrocarbon) है, जिसमें एक कार्बन परमाणु तथा चार हाइड्रोजन परमाणु (CH4) होते हैं।
  • यह ज्वलनशील है तथा इसे पूरे विश्व में ईंधन के रूप में उपयोग किया जाता है।
  • मीथेन एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस (Greenhouse Gas) है।
  • वायुमंडल में अपने जीवन काल के पहले 20 वर्षों में मीथेन की गर्म करने की क्षमता कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में 80 गुना अधिक है।
  • मीथेन उत्सर्जन का लगभग 60 फीसदी हिस्सा जीवाश्म ईंधन के उपयोग, खेती, लैंडफिल और अपशिष्ट से आता है। शेष प्राकृतिक स्रोतों, विशेष रूप से उष्णकटिबंधीय तथा उत्तरी आर्द्रभूमि में सड़ने वाली वनस्पति से है।

मीथेन उत्सर्जन से निपटने हेतु पहल:

  • भारतीय:
    • 'हरित धारा' (Harit Dhara- HD): भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (Indian Council of Agricultural Research- ICAR) ने एक एंटी-मेथेनोजेनिक फीड सप्लीमेंट 'हरित धारा' (HD) विकसित किया है, जो मवेशियों के मीथेन उत्सर्जन को 17-20% तक कम कर सकता है तथा इससे दूध का उत्पादन भी अधिक हो सकता है।
    • भारत ग्रीनहाउस गैस (GHG) कार्यक्रम: WRI इंडिया (गैर-लाभकारी संगठन), भारतीय उद्योग परिसंघ (Confederation of Indian Industry- CII) और द एनर्जी एंड रिसोर्सेज़ इंस्टीट्यूट (The Energy and Resources Institute- TERI) के नेतृत्व में भारत GHG कार्यक्रम, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को मापने तथा उसके प्रबंधन के लिये एक उद्योग-आधारित स्वैच्छिक ढाँचा है। 
      • यह कार्यक्रम उत्सर्जन को कम करने और भारत में अधिक लाभदायक, प्रतिस्पर्द्धी एवं टिकाऊ व्यवसायों तथा संस्थानों के संचालन के लिये व्यापक मापन और प्रबंधन रणनीतियों का निर्माण करता है।
    • जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC): NAPCC को वर्ष 2008 में शुरू किया गया था, इसका उद्देश्य जन-प्रतिनिधियों, सरकार की विभिन्न एजेंसियों, वैज्ञानिकों, उद्योग और समुदायों के बीच जलवायु परिवर्तन के खतरों के बारे में जागरूकता पैदा करना और समाधान के लिये कदम उठाना है।
    • Bharat Stage-VI Norms:India shifted from Bharat Stage-IV (BS-IV) to Bharat Stage-VI (BS-VI) emission norms.
    • भारत स्टेज-VI मानदंड: भारत, भारत स्टेज-IV (BS-IV) से भारत स्टेज-VI (BS-VI) उत्सर्जन मानदंडों में स्थानांतरित हो गया है।
  • वैश्विक:
    • मीथेन अलर्ट और रिस्पांस सिस्टम (MARS): MARS बड़ी संख्या में मौजूदा और भविष्य के उपग्रहों से डेटा को एकीकृत करेगा जो दुनिया में कहीं भी मीथेन उत्सर्जन की घटनाओं का पता लगाने की क्षमता रखता है तथा संबंधित हितधारकों को इस पर कार्य करने के लिये सूचनाएँ भेजता है।
    • वैश्विक मीथेन प्रतिज्ञा: वर्ष 2021 में ग्लासगो जलवायु सम्मेलन (UNFCCC COP 26) में लगभग 100 देशों ने वर्ष 2020 के स्तर से वर्ष 2030 तक मीथेन उत्सर्जन में कम-से-कम 30% की कटौती करने के लिये एक स्वैच्छिक प्रतिज्ञा की, जिसे वैश्विक मीथेन प्रतिज्ञा कहा जाता है।
      • इस वैश्विक मीथेन प्रतिज्ञा का भारत हिस्सा नहीं है।
    • वैश्विक मीथेन पहल (GMI): यह एक अंतर्राष्ट्रीय सार्वजनिक-निजी साझेदारी है जो स्वच्छ ऊर्जा स्रोत के रूप में मीथेन की पुनर्प्राप्ति और उपयोग में आने वाली बाधाओं के समाधान पर केंद्रित है।

      UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

    प्रश्न. ‘मीथेन हाइड्रेट’ के निक्षेपों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-से सही हैं?  (2019)

    1. भूमंडलीय तापन के कारण इन निक्षेपों से मीथेन गैस का निर्मुक्त होना प्रेरित हो सकता है।  
    2. ‘मीथेन हाइड्रेट’ के विशाल निक्षेप उत्तरी ध्रुवीय टुंड्रा में तथा समुद्र अधस्तल के नीचे पाए जाते हैं।  
    3. वायुमंडल में मीथेन एक या दो दशक के बाद कार्बन डाइऑक्साइड में ऑक्सीकृत हो जाती है। 

    नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: 

    (a) केवल 1 और 2 
    (b) केवल 2 और 3 
    (c) केवल 1 और 3 
    (d) 1, 2 और 3 

    उत्तर: (d)

    व्याख्या:

    • ‘मीथेन हाइड्रेट’ बर्फ की एक जालीनुमा पिंजड़े जैसी संरचना है, जिसमें मीथेन अणु बंद होते हैं। यह एक ऐसी "बर्फ" है जो स्वाभाविक रूप से उपसतह पर जमा होती है जहाँ तापमान और दबाव की स्थिति इसके गठन के लिये अनुकूल होती है।
    • आर्कटिक पर्माफ्रॉस्ट के नीचे मीथेन हाइड्रेट तलछट और तलछटी चट्टान इकाइयों के निर्माण तथा स्थिरता के लिये उपयुक्त तापमान एवं दबाव की स्थिति वाले क्षेत्रों में महाद्वीपीय मार्जिन के साथ तलछटी जमा; अंतर्देशीय झीलों और समुद्र के गहरे पानी के तलछट व अंटार्कटिक बर्फ आदि शामिल हैं। अत: कथन 2 सही है।
    • मीथेन हाइड्रेट्स जो एक संवेदनशील तलछट है, तापमान में वृद्धि या दबाव में कमी के साथ तेज़ी से पृथक हो सकती है। इस पृथक्करण से मुक्त मीथेन और पानी को प्राप्त किया जाता है जिसे ग्लोबल वार्मिंग द्वारा रोका जा सकता है। अत: कथन 1 सही है।
    • मीथेन वायुमंडल से लगभग 9 से 12 वर्ष की अवधि में ऑक्सीकृत हो जाती है जहाँ यह कार्बन डाइऑक्साइड में परिवर्तित होती है। अत: कथन 3 सही है।
    • अतः विकल्प (D) सही उत्तर है।

    प्रश्न. निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2019)

    1. कार्बन मोनोऑक्साइड 
    2. मीथेन 
    3. ओज़ोन  
    4. सल्फर  डाइऑक्साइड 

    उपर्युक्त में से कौन-से फसल/बायोमास अवशेषों को जलाने के कारण वातावरण में छोड़े जाते हैं?

    (a) केवल 1 और 2 
    (b) केवल 2, 3 और 4 
    (c) केवल 1 और 4 
    (d) 1, 2, 3 और 4 

    उत्तर: (d)

    स्रोत: डाउन टू अर्थ


    जैव विविधता और पर्यावरण

    कैलिफोर्निया के अतीत के सहारे वर्तमान जलवायवीय चुनौतियों पर प्रकाश

    प्रिलिम्स के लिये:

    वनाग्नि, प्लेइस्टोसिन/अत्यंत नूतन युग, ला ब्रे टार पिट्स, होलोसीन/अभिनव युग, भू-वैज्ञानिक काल मापक्रम, मैमथ, विशाल भालू, भयानक भेड़िये, ऊँट

    मेन्स के लिये:

    भविष्य में बड़े पैमाने पर विलुप्ति को रोकने की प्राथमिकता

    चर्चा में क्यों? 

    मानव-जनित जलवायु परिवर्तन और विघटनकारी भूमि प्रबंधन प्रथाओं के कारण घातक वनाग्नि की घटनाओं की व्यापकता बढ़ गई है। हाल ही में किया गया एक नवीन अध्ययन प्लेइस्टोसिन युग के दौरान कैलिफोर्निया के इतिहास पर प्रकाश डालता है, पृथ्वी 60 मिलियन से अधिक वर्षों में वर्तमान में सबसे बड़ी विलुप्ति की आपदा के साथ-साथ गंभीर जलवायु परिवर्तन का भी सामना कर रही है।

    प्लेइस्टोसिन युग:

    • यह भू-वैज्ञानिक युग है जिसकी कालावधि लगभग 2,580,000 से 11,700 वर्ष पूर्व तक है, इसमें पृथ्वी पर हिमनदीकरण की सबसे हालिया अवधि शामिल है।
      • प्लेइस्टोसिन युग के दौरान वैश्विक शीतलन या हिमयुग की सबसे हालिया घटनाएँ घटित हुईं।
    • इस युग में हिमयुग के विशाल जीव शामिल थे, जैसे- वूली मैमथ (मैमथस प्रिमिजेनियस), विशाल भालू, भयानक भेड़िये और ऊँट, इनमें से कई प्लेइस्टोसिन युग के अंत में विलुप्त हो गए।
      • इसके परिणामस्वरूप काफी नुकसान हुआ, उत्तरी अमेरिका में 97 पाउंड से अधिक वज़न वाले 70% से अधिक, दक्षिण अमेरिका में 80% से अधिक और ऑस्ट्रेलिया में लगभग 90% स्तनधारी विलुप्त हो गए।
    • प्लेइस्टोसिन युग का अंत होलोसीन युग की शुरुआत का भी प्रतीक है, यह वर्तमान युग है जिसमें हम रह रहे हैं।

    अध्ययन की प्रमुख विशेषताएँ:

    • ला ब्रे टार पिट्स से प्राप्त जानकारी: ला ब्रे टार पिट्स लॉस एंजिल्स, अमेरिका में एक विपुल हिमयुग जीवाश्म स्थल है जहाँ डामर के रिसाव में फँसे हज़ारों बड़े स्तनधारियों के संरक्षित अवशेष हैं।
      • जीवाश्मों से प्राप्त प्रोटीन के अध्ययन से लंबे समय तक सूखे और तीव्र मानव जनसंख्या वृद्धि के कारण गर्म जलवायु के एक घातक संयोजन का पता चलता है।
        • इन कारकों ने दक्षिणी कैलिफोर्निया के पारिस्थितिकी तंत्र को चरम बिंदु पर धकेल दिया, जिससे वनस्पति और मेगा-स्तनपायी आबादी में काफी परिवर्तन हुए।
        • पिछले हिमयुग के बाद जैसे-जैसे कैलिफोर्निया गर्म होता गया, परिदृश्य शुष्क होता गया और जंगल कम होते गए।
          • ला ब्रे में संभवतः मानव शिकार और निवास स्थान के नुकसान के संयोजन से शाकाहारी आबादी में भी गिरावट आई। पेड़ों से जुड़ी प्रजातियाँ, जैसे ऊँट, पूरी तरह से लुप्त हो गईं।
    • एक नया प्रतिमान- आग की भूमिका: यह अध्ययन इस बात पर प्रकाश डालता है कि आग दक्षिणी कैलिफोर्निया में अपेक्षाकृत हाल की घटना है, आग लगने की घटना अक्सर मानव आगमन के बाद ही होती है।
      • तटीय कैलिफोर्निया में 90% से अधिक आग की घटनाओं का कारण मानवीय गतिविधियाँ जैसे- बिजली लाइन का गिरना और कैम्प फायर है। 
      • प्लेइस्टोसिन में विलुप्तियों और समकालीन संकटों के बीच समानता जैसे मिश्रित तनाव पारिस्थितिक तंत्र की भेद्यता को रेखांकित करते हैं।
    • जलवायु और जैवविविधता संकट की प्रासंगिकता: वर्तमान में जलवायु परिवर्तन, मानव जनसंख्या का विस्तार, जैवविविधता हानि तथा मानव-जनित आग की घटनाएँ अतीत को प्रतिबिंबित करती हैं।
      • वर्तमान में तापमान वृद्धि की दर, मुख्य रूप से जीवाश्म ईंधन के जलने से प्रेरित, हिमयुग के अंत से कहीं अधिक है।
      • अध्ययन ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने, आग की घटनाओं को रोकने और मेगाफौना की सुरक्षा के प्रयासों को तेज़ करने की आवश्यकता पर ज़ोर देता है।

    भू-वैज्ञानिक काल मापक्रम: 

    • भू-वैज्ञानिक काल मापक्रम एक विशाल समयरेखा की तरह है जो हमें अपने ग्रह के इतिहास को समझने में मदद करता है।
      • जिस प्रकार एक कैलेंडर वर्षों, महीनों और दिनों को विभाजित करता है, उसी प्रकार भू-वैज्ञानिक काल मापक्रम पृथ्वी के इतिहास को ईयान (Eon), महाकल्प (Era), कल्प (Period), युग (Epoch) और आयु (Age) समय क्रमों में विभाजित करता है।
    • ईयान को महाकल्पों में, महाकल्पों को कल्पों में, कल्पों को युगों में और युगों को आयु में विभाजित किया गया है। 

    भविष्य में व्यापक विलुप्तिकरण को रोकने के लिये हमारी प्राथमिकताएँ: 

    • समग्र पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली और संरक्षण:
      • अभिनव पारिस्थितिकी तंत्र मानचित्रण: पारिस्थितिकी तंत्र की अवस्था का आकलन करने और बहाली के लिये महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों की पहचान करने हेतु उन्नत मानचित्रण प्रौद्योगिकियों का विकास करना।
      • जैव-गलियारा निर्माण: खंडित आवासों को जोड़ने के लिये पारिस्थितिक गलियारे स्थापित करना, ताकि प्रजातियों को विविध वातावरणों में स्थानांतरित और विकसित होने में सक्षम बनाया जा सके।
      • निवारक संरक्षण: दीर्घकालिक पारिस्थितिकी तंत्र लचीलेपन के लिये महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने हेतु प्रमुख प्रजातियों के संरक्षण को प्राथमिकता देना।
    • प्रजातियों के लचीलेपन के लिए संश्लेषित जीवविज्ञान का उपयोग:
      • आनुवंशिक वृद्धि: सुभेद्य प्रजातियों के भीतर आनुवंशिक विविधता को बढ़ाने, बदलती परिस्थितियों के प्रति उनकी अनुकूलन क्षमता में वृद्धि हेतु संश्लेषित जीवविज्ञान तकनीकों का प्रयोग करना।
      • विकास हेतु समर्थन: प्रजातियों के अनुकूलन के लिये नियंत्रित हस्तक्षेपों के माध्यम से पर्यावरणीय बदलावों के प्रति प्रतिक्रिया को तेज़ करना।
      • नैतिक विमर्श: संरक्षण प्रयासों में संश्लेषित जीवविज्ञान के उत्तरदायित्वपूर्ण उपयोग के लिये एक वैश्विक नीति ढाँचा तैयार करना।
    • संसाधनों के सतत् उपयोग के लिये हरित नवाचार: 
      • चक्रीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा: संसाधनों की कमी और बर्बादी को कम करने के लिये चक्रीय अर्थव्यवस्थाओं (Circular Economies) को बढ़ावा देना, ताकि पारिस्थितिकी तंत्र पर दबाव को कम किया जा सके।
      • बायोमिमिक्री और सस्टेनेबल डिज़ाइन: उद्योगों के पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव को कम करने के लिये पर्यावरण-अनुकूल उत्पाद विकसित करना।
      • हरित अवसंरचना: टिकाऊ बुनियादी ढाँचे में निवेश करना, जो वन्यजीवों के आवास (Habitat Destruction) को कम क्षति पहुँचाता हो, जैसे वन्यजीव-अनुकूल सड़क मार्ग के निर्माण के माध्यम से धारणीय विकास को बढ़ावा देना।
    • डेटा-संचालित संरक्षण प्रबंधन:
      • पूर्वानुमानित विश्लेषण: पारिस्थितिकी तंत्र की गतिशीलता को बनाए रखने के लिये मशीन लर्निंग और कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग करना, ताकि व्यवधानों को रोकने के लिये समय पर हस्तक्षेप किया जा सके।
      • वास्तविक समय निगरानी: पारिस्थितिकी तंत्र की वास्तविक समय निगरानी और दबावकारी कारकों का शीघ्र पता लगाने के लिये रिमोट सेंसर तथा उपग्रह प्रौद्योगिकी का उपयोग करना।
        • सीमाओं के पार सहयोगात्मक संरक्षण प्रयासों को सुविधाजनक बनाने के लिये इंटरकनेक्टेड डेटा-शेयरिंग नेटवर्क स्थापित किये जाने की आवश्यकता है।
    • युवाओं और समुदायों का सशक्तीकरण: 
      • पर्यावरण शिक्षा में सुधार: जैवविविधता के महत्त्व की गहरी समझ को बढ़ावा देने तथा कम आयु से ही नेतृत्व की भावना जागृत करने के लिये शैक्षिक पाठ्यक्रम में सुधार करना।
      • युवा-प्रेरित पहल: नीतियों के निर्माण में उनके प्रभाव तथा भागीदारी को बढ़ाने के लिये युवाओं के नेतृत्व वाली संरक्षण परियोजनाओं और प्लेटफॉर्मों को प्रोत्साहित करना।
      • सांस्कृतिक एकीकरण: सामुदायिक स्वामित्व और टिकाऊ प्रथाओं को बढ़ावा देते हुए स्वदेशी एवं स्थानीय ज्ञान प्रणालियों की संरक्षण रणनीतियों में एकीकृत करना।

    स्रोत: डाउन टू अर्थ


    भारतीय अर्थव्यवस्था

    ऋण सुलभता के लिये सार्वजनिक तकनीकी मंच

    प्रिलिम्स के लिये:

    ऋण सुलभता के लिये सार्वजनिक तकनीकी मंच, भारतीय रिज़र्व बैंक, क्रेडिट मूल्यांकन, मौद्रिक नीति समिति, बाधा रहित ऋण, रिज़र्व बैंक इनोवेशन हब, अकाउंट एग्रीगेटर्स

    मेन्स के लिये:

    ऋण सुलभता के लिये सार्वजनिक तकनीकी मंच, इसका महत्त्व

    चर्चा में क्यों?

    भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने एक पायलट कार्यक्रम शुरू किया है जिसका उद्देश्य 'ऋण सुलभता के लिये सार्वजनिक तकनीकी मंच' की व्यवहार्यता के मूल्यांकन के साथ ही ऋणदाताओं द्वारा निर्बाध और कुशल ऋण वितरण की सुविधा प्रदान करने की प्रक्रिया का मूल्यांकन करना है तथा भारत में वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देना है। 

    • यह पहल RBI की विकासात्मक और नियामक नीतियों के हिस्से के रूप में है तथा इसे अगस्त 2023 में मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक के बाद पेश किया गया था।

    नोट: बाधा रहित ऋण उधार लेने का एक दृष्टिकोण है जो उपभोक्ताओं के लिये ऋण देने की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करना चाहता है। पारंपरिक क्रेडिट प्रणालियों, जहाँ व्यक्तियों को व्यापक कागज़ी कार्रवाई, क्रेडिट जाँच और लंबी अनुमोदन प्रक्रियाओं से गुज़रना पड़ता है, के विपरीत यह बाधा रहित क्रेडिट हेतु एक सहज तथा तीव्र भुगतान का आश्वासन देता है।

    बाधा रहित ऋण के लिये सार्वजनिक तकनीकी मंच:

    • परिचय:
      • रिज़र्व बैंक इनोवेशन हब (Reserve Bank Innovation Hub- RBIH) द्वारा विकसित यह एक एंड-टू-एंड डिजिटल प्लेटफॉर्म है जिसमें एक ओपन आर्किटेक्चर, ओपन एप्लीकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस (Application Programming Interface- API) और मानक होंगे एवं  सभी बैंक इस "प्लग एंड प्ले (Plug and Play)" मॉडल से जुड़ सकते हैं।
      • सार्वजनिक तकनीकी मंच क्रेडिट की सुविधा के लिये सभी आवश्यक जानकारी एक ही स्थान पर प्रदान कर इस प्रक्रिया को बाधा रहित बनाना चाहता है।
    • प्रक्रिया:
      • डिजिटल माध्यम से ऋण वितरित करने की इस प्रक्रिया में क्रेडिट मूल्यांकन (Credit Appraisal) शामिल है, जो उधारकर्त्ता की ऋण चुकाने तथा क्रेडिट समझौते का पालन करने की क्षमता का मूल्यांकन करता है।
      • यह प्रक्रिया तीन स्तंभों पर निर्भर है:
        • प्रतिकूल चयन (उधारकर्ताओं और उधारदाताओं के बीच सूचना विषमता)
        • एक्सपोज़र रिस्क मेज़रमेंट
        • डिफॉल्ट रिस्क असेसमेंट 
    • प्रमुख डेटा स्रोत: 
      • यह प्लेटफॉर्म केंद्र और राज्य सरकारों, अकाउंट एग्रीगेटर्स (Account Aggregators- AA), बैंकों, क्रेडिट इनफॉर्मेशन कंपनी तथा डिजिटल पहचान प्राधिकरणों के डेटा को एकीकृत करेगा।
      • एकीकरण से बाधाओं को दूर करने में मदद मिलेगी तथा यह नियम-आधारित ऋण प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करेगा।
    • सीमा एवं कार्यक्षेत्र:
      • विविध ऋण प्रकार: प्लेटफॉर्म के दायरे में किसान क्रेडिट कार्ड (Kisan Credit Card- KCC) से परे डिजिटल ऋण शामिल हैं, जिनमें डेयरी ऋण, बिना संपार्श्विक के MSME ऋण, व्यक्तिगत ऋण और गृह ऋण शामिल हैं।
      • डेटा एकीकरण: यह आधार ई-केवाईसी, आधार ई-हस्ताक्षर, भूमि रिकॉर्ड, उपग्रह डेटा, पैन सत्यापन, लिप्यंतरण (Transliteration), अकाउंट एग्रीगेटर्स (Account Aggregator- AA) द्वारा खातों को एकीकृत करने आदि जैसी विभिन्न सेवाओं से जुड़ा होगा।

    इसके लाभ और परिणाम:

    • उन्नत ऋण पोर्टफोलियो प्रबंधन:
      • यह प्लेटफाॅर्म डेटा समेकन के माध्यम से बेहतर ऋण जोखिम मूल्यांकन और कुशल ऋण पोर्टफोलियो प्रबंधन सुनिश्चित करेगा।
    • ऋण तक पहुँच में वृद्धि:
      • सटीक जानकारी तक पहुँच से सूचित और त्वरित ऋण मूल्यांकन में सहायक मिलती है। ऋण उपलब्धता के विस्तार से पूंजी तक पहुँच की लागत कम होगी तथा उधारकर्ताओं को इसका लाभ मिलेगा।
    • परिचालन लागत में कमी:
      • यह  प्लेटफाॅर्म परिचालन संबंधी चुनौतियों जैसे- बार बार बैंक का चक्कर लगाने और दस्तावेज़ संबंधी मांगों को संबोधित करता है, जिससे ऋणदाताओं और उधारकर्ताओं दोनों के लिये लागत में कमी आती है।
        • भरतीय रिज़र्व बैंक के सर्वेक्षण से पता चलता है कि कृषि ऋण की प्रोसेसिंग (स्वीकृति प्रदान करने में लगने वाला समय) में दो से चार सप्ताह का समय लगता है तथा इसकी फीस ऋण के कुल मूल्य का लगभग 6% होती है।
    • दक्षता और मापनीयता/स्केलेबिलिटी: 
      • इस प्लेटफाॅर्म की त्वरित संवितरण और स्केलेबिलिटी जैसी सुव्यवस्थित प्रक्रियाओं की वजह से एक अधिक कुशल ऋण पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण होता है।

    आर्थिक विकास में वित्तीय समावेशन और ऋण तक पहुँच का महत्त्व:

    • आय असमानता में कमी: 
      • वित्तीय समावेशन कम आय वाले व्यक्तियों और निम्न स्थिति में रहने वाले समूहों सहित समाज के सभी वर्गों की आवश्यक वित्तीय सेवाओं तक पहुँच सुनिश्चित करता है।
      • यह उन्हें बचत करने, निवेश करने और ऋण तक पहुँच प्राप्त करने, आय असमानताओं को कम करने तथा न्यायसंगत आर्थिक विकास को बढ़ावा देने में मदद करता है।
    • उद्यमिता और नवाचार: 
      • ऋण तक पहुँच इच्छुक उद्यमियों को व्यवसाय शुरू करने और विस्तार करने में सक्षम बनाती है।
      • इससे रोज़गार सृजन, नवाचार और आर्थिक विविधीकरण में वृद्धि होती है, ये सभी उच्च सकल घरेलू उत्पाद विकास तथा समग्र समृद्धि में योगदान देते हैं।
    • गरीबी उन्मूलन: 
      • आर्थिक रूप से बहिष्कृत व्यक्तियों को अक्सर आर्थिक प्रगति में अनेक बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
      • ऋण तक पहुँच होने से उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और आय-सृजन गतिविधियों में निवेश करने, गरीबी से निकलने तथा समग्र विकास में मदद मिलती है।
    • अवसंरचनात्मक विकास: 
      • बड़े पैमाने पर बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिये पर्याप्त ऋण तक पहुँच होना आवश्यक है। परिवहन, ऊर्जा और संचार नेटवर्क क्षेत्र की ये परियोजनाएँ निरंतर आर्थिक विकास की रीढ़ हैं।
    • ग्रामीण विकास:
      • कृषि अर्थव्यवस्थाओं में ऋण तक पहुँच किसानों को आधुनिक कृषि पद्धतियों में निवेश करने में सक्षम बना सकती है, जिससे उत्पादकता और ग्रामीण विकास में वृद्धि होगी। यह बदले में समग्र आर्थिक विकास का समर्थन करता है।
    • वित्तीय स्थिरता:
      • एक अच्छी तरह से काम करने वाला क्रेडिट बाज़ार व्यक्तियों और व्यवसायों के लिये फंडिंग स्रोतों में विविधता लाकर वित्तीय स्थिरता में योगदान देता है। यह अनौपचारिक उधार पर निर्भरता को कम करता है, जो अधिक अस्थिर और जोखिम भरा हो सकता है।

      UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

    मेन्स:

    प्रश्न. प्रधानमंत्री जन-धन योजना (पी.एम.ज़े.डी.वाई.) बैंक रहितों को संस्थागत वित्त में लाने के लिये आवश्यक है। क्या आप सहमत हैं कि भारतीय समाज के गरीब तबके के लोगों का वित्तीय समावेश होगा? अपने मत की पुष्टि के लिये तर्क प्रस्तुत कीजिये। (2016)

    स्रोत: द हिंदू


    अंतर्राष्ट्रीय संबंध

    रूस के साथ प्रमुख रक्षा समझौतों में चुनौतियाँ

    प्रिलिम्स के लिये:

    रूस के साथ प्रमुख रक्षा समझौतों में चुनौतियाँ, S-400 डील, यूक्रेन में युद्ध, काउंटरिंग अमेरिकाज़ एडवर्सरीज़ थ्रू सेंक्शंस एक्ट (CAATSA), रुपया-रूबल व्यवस्था, सोसायटी फॉर वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फाइनेंशियल टेलीकम्युनिकेशन (SWIFT)

    मेन्स के लिये:

    रूस के साथ प्रमुख रक्षा समझौतों में चुनौतियाँ

    चर्चा में क्यों?

    भारत और रूस के बीच प्रमुख रक्षा समझौते, विशेषकर S-400 डील, को यूक्रेन में चल रहे युद्ध और भुगतान चुनौतियों सहित विभिन्न कारकों के कारण अनिश्चितताओं का सामना करना पड़ रहा है।

    • S-400 डील में रूस से उन्नत वायु रक्षा प्रणालियों (Advanced Air Defense Systems) की खरीद शामिल है। अनुबंधित पाँच S-400 मिसाइल प्रणाली में से तीन को वर्ष 2018 में हस्ताक्षरित समझौते के हिस्से के रूप में भारत लाया गया है।

    रक्षा समझौते के समक्ष चुनौतियाँ:

    • S-400 डील की जटिलताएँ: 
      • S-400 डील को जटिलताओं का सामना करना पड़ा है, जिसमें अमेरिकी प्रतिबंधों, काउंटरिंग अमेरिकाज़ एडवर्सरीज़ थ्रू सैंक्शंस एक्ट (Countering America’s Adversaries Through Sanctions Act- CAATSA) और चरणबद्ध भुगतान में विलंब की चिंताएँ शामिल हैं।
        • यूक्रेन में युद्ध के कारण समझौते को क्रियान्वित करने में चुनौतियाँ बढ़ गई हैं।
    • भुगतान संकट:
      • भुगतान चुनौतियों के कारण वर्तमान में अनुमानित 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर का भुगतान बकाया है। व्यापार असंतुलन के कारण रुपया-रूबल व्यवस्था (Rupee-Rouble Arrangement) के माध्यम से इस संकट को हल करने के प्रयास सफल नहीं हुए हैं।
      • हालाँकि छोटे भुगतान फिर से शुरू हो गए हैं, लेकिन बड़े भुगतान अटके हुए हैं, जिससे जारी और भविष्य के सौदों को पूरा करने में चुनौतियाँ पैदा हो रही हैं।
    • S-400 डिलीवरी और फ्रिगेट्स में विलंब:
      • जबकि तीन मिसाइल प्रणालियों की डिलीवरी हो चुकी है, शेष दो मिसाइल प्रणालियों की डिलीवरी में देरी हो रही है। भुगतान संबंधी मुद्दे हल न होने के कारण संशोधित कार्यक्रमों की स्थिति अनिश्चित बनी हुई  है।

    भारत और रूस के बीच रक्षा व्यापार की गतिशीलता: 

    •  संयुक्त अनुसंधान के लिये क्रेता-विक्रेता रूपरेखा:
      • भारत-रूस सैन्य-तकनीकी सहयोग क्रेता-विक्रेता ढाँचे से विकसित होकर उन्नत रक्षा प्रौद्योगिकियों और प्रणालियों के संयुक्त अनुसंधान, विकास एवं उत्पादन तक विस्तृत हो गया है।
    • संयुक्त सैन्य कार्यक्रम:
      • ब्रह्मोस क्रूज़ मिसाइल कार्यक्रम
      • 5वीं पीढ़ी का लड़ाकू जेट कार्यक्रम
      • सुखोई Su-30MKI कार्यक्रम
      • इलुशिन/HAL सामरिक परिवहन विमान
      • KA-226T जुड़वाँ इंजन उपयोगिता हेलीकॉप्टर
      • कुछ फ्रिगेट्स 
    • सैन्य हार्डवेयर:
    • पनडुब्बी कार्यक्रम:
      • रूस अपने पनडुब्बी कार्यक्रमों द्वारा भारतीय नौसेना की सहायता करने में भी बहुत महत्तवपूर्ण भूमिका निभाता है:
        • भारतीय नौसेना की पहली पनडुब्बी 'फॉक्सट्रॉट क्लास' रूस से प्राप्त हुई थी।
        • भारत द्वारा संचालित एकमात्र विमान वाहक पोत INS विक्रमादित्य रूसी मूल का है।
        • भारत रूस से प्राप्त 14 पारंपरिक पनडुब्बियों में से 9 का संचालन करता है।
    • हाल में हुई प्रगति:
      • वर्ष 2018 और 2021 के बीच भारत एवं रूस के मध्य रक्षा व्यापार लगभग 15 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था, जिसमें S-400, फ्रिगेट्स, AK-203 असॉल्ट राइफल और आपातकालीन खरीद सहित महत्तवपूर्ण सौदे शामिल थे।
      • रक्षा व्यापार संबंध भू-राजनीतिक गतिशीलता से प्रभावित हुआ है, जिसमें वर्ष 2019 में बालाकोट हवाई हमला और वर्ष 2020 में पूर्वी लद्दाख में चीन के साथ गतिरोध शामिल है।

    S-400 सौदा:

    • परिचय:
      • S-400 ट्रायम्फ रूस द्वारा डिज़ाइन की गई एक गतिशील (Mobile) और सतह से हवा में मार करने वाली (Surface-to-Air Missile System- SAM) मिसाइल प्रणाली है, S-400 सौदे से आशय भारत द्वारा S-400 की खरीद से है।
      • अमेरिका की आपत्तियों और काउंटरिंग अमेरिकाज़ एडवर्सरीज़ थ्रू सैंक्शंस एक्ट (CAATSA) के तहत प्रतिबंधों की धमकी के बावजूद S-400 ट्रायम्फ मिसाइल प्रणाली के लिये अक्तूबर 2018 में भारत ने रूस के साथ 5.43 बिलियन अमेरिकी डॉलर के सौदे पर हस्ताक्षर किये
    • विशेषता:
      • यह 30 किमी. तक की ऊँचाई पर 400 किमी. के दायरे में विमान, मानव रहित हवाई वाहन और बैलिस्टिक तथा क्रूज़ मिसाइलों सहित सभी प्रकार के हवाई लक्ष्यों को निशाना बना सकती है।
      • यह प्रणाली एक साथ 100 हवाई लक्ष्यों को ट्रैक कर सकती है और उनमें से छह को एक साथ लक्षित कर सकती है।

    आगे की राह

    • विभिन्न प्रकार के प्रतिबंधों के कारण कंपनियों और व्यापारियों के बीच बाधा उत्पन्न होने की आशंका है। इन आशंकाओं को दूर करने तथा द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा देने के लिये भारतीय रिज़र्व बैंक का हस्तक्षेप आवश्यक है।
    • अधिकारियों को यह समझने की आवश्यकता है कि भुगतान की समस्या हल करने के लिये एक समग्र रणनीति की ज़रूरत है, क्योंकि इस दिशा में उठाया जाने वाला एकमात्र कदम पर्याप्त नहीं हो सकता है।
    • भुगतान चुनौतियों को कम करने और व्यापार विकल्पों का विस्तार करने के लिये युआन के उपयोग सहित मुद्रा विविधीकरण का उपयोग किया जा सकता है।
    • उन्नत रक्षा प्रणालियों की समय पर डिलीवरी सुनिश्चित करने, राष्ट्रीय सुरक्षा को मज़बूत करने और भारतीय सशस्त्र बलों की क्षमताओं में वृद्धि के लिये भुगतान के मुद्दों को हल करना तथा प्रमुख रक्षा सौदों को क्रियान्वित करने हेतु संबंधित तंत्र को सुव्यवस्थित करना अहम है।

    स्रोत: द हिंदू


    विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

    लूनर लैंडिंग मिशन में चुनौतियाँ

    प्रिलिम्स के लिये:

    लूनर लैंडिंग मिशन में चुनौतियाँ, रूस का लूना-25, सोवियत संघ, भारत का चंद्रयान-3, चंद्र दक्षिणी ध्रुव, अंतर्राष्ट्रीय चंद्र अनुसंधान स्टेशन, इसरो का चंद्रयान-2

    मेन्स के लिये:

    चंद्र लैंडिंग मिशन में चुनौतियाँ

    चर्चा में क्यों?

    हाल ही में  रूस का लूना-25 चंद्रमा की सतह पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया, जिससे पूर्व सोवियत संघ द्वारा आखिरी लैंडिंग के 47 साल बाद चंद्रमा की सतह पर भेजा गया उसका पहला मिशन समाप्त हो गया।

    • भारत का चंद्रयान-3 चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास उतरने वाला पहला अंतरिक्ष यान बनने की राह पर है।
    • रूस का लूना-25 चंद्र अन्वेषण में स्पर्द्धा एवं दिलचस्पी दोनों दर्शाता है जिस कारण उसने लूना शृंखला को जारी रखने की योजना बनाई।

    लूना-25 मिशन:

    • परिचय:
      • लूना 25 मिशन, जिसे मूल रूप से लूना-ग्लोब (Luna-Glob) नाम दिया गया था, 1976 में शुरू की गई ऐतिहासिक लूना शृंखला में शामिल होने से पहले इसके विकास में दो दशकों से अधिक का समय लगा।
      • इस मिशन का उद्देश्य अंतरिक्ष अन्वेषण और भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता में इसके महत्त्व को देखते हुए चंद्रमा की सतह तक रूस की पहुँच को सुरक्षित करना था।
    • असफलता:
      • लूना-25 अंतरिक्ष यान को अपनी परिचालन सीमा को पार करते हुए एक तकनीकी खराबी का सामना करना पड़ा।
      • यह विफलता इसकी वृत्ताकार कक्षा को लैंडिंग-पूर्व निचली कक्षा में स्थानांतरित करने के प्रयास से जुड़ी हुई प्रतीत होती है।
      • इस मैन्यूवर (Maneuver) के दौरान अत्यधिक प्रणोद (Thrust) और दिशा में विचलन के कारण यान चंद्रमा की सतह पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया।
        • इस घटना के दौरान राॅसकाॅसमाॅस का संपर्क टूट गया।
      • रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण रूस ने दुनिया के विभिन्न हिस्सों में देशों द्वारा संचालित उपग्रह ट्रैकिंग सिस्टम का उपयोग करने के अपने विशेषाधिकार खो दिये। राॅसकाॅसमाॅस केवल तीन स्टेशनों (दो रूस में और एक रूस द्वारा अधिकृत क्रीमिया में) पर लूना-25 से संपर्क कर सकता था तथा अंतरिक्ष यान से सिग्नल प्राप्त कर सकता था।

    सफल चंद्र लैंडिंग में जटिलताएँ:

    • चंद्रमा पर लैंडिंग में जटिलता:
      • चंद्र लैंडिंग में चंद्र कक्षा से चंद्रमा की सतह तक एक चुनौतीपूर्ण अवरोह शामिल होता है, जिसे अक्सर "15 मिनट्स ऑफ टेरर" कहा जाता है।
      • इस महत्तवपूर्ण चरण के दौरान अंतरिक्ष यान की गति, प्रक्षेपवक्र और ऊँचाई पर सटीक रूप से नियंत्रण की आवश्यकता के चलते जटिलता की स्थिति उत्पन्न होती है।
    • ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य:
      • मानव दल द्वारा छह सफल लैंडिंग सहित 20 से अधिक सफल लैंडिंग के बावजूद भी यह  तकनीकी त्रुटि हुई।
        • सबसे सफल चंद्र लैंडिंग 1966 से 1976 के बीच एक दशक के भीतर हुई, अपवाद के रूप में पिछले दशक में तीन चीनी लैंडिंग हुई।
        • 1960 और 1970 के दशक के दौरान 42 प्रयासों में 50% सफलता दर के साथ चंद्र लैंडिंग तकनीक उतनी उन्नत नहीं थी। 
      • समकालीन चंद्र मिशन सुरक्षित, लागत-कुशल और ईंधन-कुशल प्रौद्योगिकियों से तैनात किये जाते  हैं लेकिन परीक्षण और सत्यापन की आवश्यकता होती है।
    • जटिल प्रणोदन:
      • चंद्र लैंडिंग में अवरोह से लेकर अंततः उतरने तक नियंत्रित मैन्यूवर (Maneuver)  का एक क्रम शामिल होता है। गति और ऊँचाई को सटीक रूप से प्रबंधित करने के लिये सटीक प्रणोदन प्रणाली को नियोजित करना आवश्यक होता है।
    • तापीय चुनौतियाँ: 
      • चंद्रमा पर तापमान में अत्यधिक परिवर्तन, चिलचिलाती गर्मी से लेकर जमा देने वाली ठंड अंतरिक्ष यान प्रणालियों के लिये चुनौतियाँ पैदा करते हैं। ऐसे में उपकरण के व्यवस्थित संचालन हेतु तापीय सुरक्षा तथा इन्सुलेशन महत्त्वपूर्ण हैं।

    चंद्र लैंडिंग प्रयासों में हालिया विफलताएँ और सफलताएँ:

    • विफलताएँ :
      • भारत, इज़रायल, जापान और रूस के सभी मिशनों को लैंडिंग प्रक्रिया के दौरान चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप चंद्रमा की सतह पर कई दुर्घटनाएँ हुईं।
        • इसरो का चंद्रयान-2: यह यान किसी खराबी के कारण वांछित गति हासिल नहीं कर सका और मिशन असफल रहा।
        • बेरेशीट (इज़रायल), हकुतो-आर (जापान): इन मिशनों में विभिन्न प्रकार की खराबी के कारण लैंडिंग योजनाएँ बाधित हुई।
    • सफलताएँ:
      • चीन के चांग'ई-3, चांग'ई-4 और चांग'ई-5 मिशनों ने चंद्रमा पर सफल लैंडिंग की।

    आगे की राह

    • चंद्रयान-2 के विफल होने के बाद भारत द्वारा चंद्रयान-3 लॉन्च किया जाना अपनी असफलताओं से सीखने के महत्त्व का सबसे नवीनतम उदाहरण है।
    • हालिया विफलताएँ चंद्रमा पर सॉफ्ट-लैंडिंग की जटिलता को दर्शाती हैं, साथ ही यह इस क्षेत्र में निरंतर प्रगति तथा चंद्र अन्वेषण के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिये अंतरिक्ष एजेंसियों के दृढ़ संकल्प को भी दर्शाती हैं।
    • इन प्रयासों से लिये गए सबक भविष्य में अधिक विश्वसनीय और सफल चंद्र लैंडिंग प्रौद्योगिकियों के विकास में निश्चय ही योगदान देंगे।

    स्रोत: द हिंदू


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