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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

भारत का चंद्रयान-3 और रूस का लूना 25 मिशन

  • 17 Aug 2023
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

चंद्रयान-3, लूना 25, ग्लोनास नेविगेशन सिस्टम, आर्यभट्ट मिशन, गगनयान, सोयुज़ रॉकेट, USSR का इंटर-काॅसमाॅस कार्यक्रम

मेन्स के लिये:

लूना 25 और चंद्रयान 3 मिशन में अंतर

चर्चा में क्यों? 

रूस का लूना 25 मिशन, जिसे 10 अगस्त, 2023 को सोयुज़ रॉकेट पर लॉन्च किया गया, का लक्ष्य भारत के चंद्रयान-3 से कुछ दिन पहले चंद्र दक्षिणी ध्रुव (Lunar South Pole) के करीब सॉफ्ट-लैंडिंग करना है।

  • रूसी अंतरिक्ष एजेंसी राॅसकाॅसमाॅस ने घोषणा की है कि लूना 25 की लैंडिंग से चंद्रयान-3 पर कोई असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि दोनों के लैंडिंग क्षेत्र अलग-अलग हैं।

चंद्रयान-3 से पहले लूना 25 की चंद्रमा पर पहुँच:

  • प्रत्यक्ष प्रक्षेप पथ का लाभ: चंद्रयान-3 की तुलना में लगभग एक महीने बाद लॉन्च होने के बावजूद लूना 25 अपने अधिक प्रत्यक्ष प्रक्षेप पथ (Direct Trajectory) के कारण चंद्रमा पर पहले पहुँचने में सक्षम है।
  • पेलोड और ईंधन भंडारण: लूना 25 का 1,750 किलोग्राम का लिफ्ट-ऑफ द्रव्यमान चंद्रयान-3 के 3,900 किलोग्राम की तुलना में काफी हल्का है, जो तेज़ गति से यात्रा करने हेतु महत्त्वपूर्ण है।
  • चंद्रयान-3 का घुमावदार मार्ग: चंद्रयान-3 ने कम ईंधन भंडार की भरपाई के लिये चंद्रमा की ओर उड़ान भरने से पहले वेग उत्पन्न करने के लिये एक दीर्घ मार्ग अपनाया, जिसमें वेग उत्पन्न करने हेतु युक्तियाँ शामिल थीं।
  • लूनर डाउन टाइमिंग (Lunar Dawn Timing): अपने लैंडिंग स्थल पर चंद्रोदय से पहले लैंड करने के कारण लूना 25 के पेलोड को पूरे चंद्र दिवस (पृथ्वी के 14 दिनों के बराबर) के दौरान सौर पैनल के माध्यम से पूर्ण ऊर्जा प्राप्त होगी।

नोट: इतिहास में केवल तीन देश ही चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग करने में सफल रहे हैं: संयुक्त राज्य अमेरिका, सोवियत संघ और चीन।

लूना 25 और चंद्रयान-3 के मध्य अन्य अंतर:

  • परिचय: लूना 25, 47 वर्षों के बाद रूस की चंद्र अन्वेषण में वापसी का प्रतीक है, जिसका लक्ष्य अंतरिक्ष अन्वेषण में अपनी प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त करना है।
    • चंद्रयान-3 भारत का तीसरा चंद्र मिशन और चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग का दूसरा प्रयास है।
  • पेलोड अंतर: लूना 25 हल्का है और इसमें रोवर का अभाव है, जो मिट्टी की संरचना, धूल के कणों का अध्ययन करने और सतह के पानी का पता लगाने पर ध्यान केंद्रित करता है।
    • चंद्रयान-3 में एक रोवर है जो 500 मीटर तक चलने में सक्षम है, इसका लक्ष्य चंद्रमा पर मिट्टी का अध्ययन करना है और इसमें चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास छाया वाले गड्ढों में पानी-बर्फ का पता लगाने के लिये उपकरण हैं।
  • जीवनकाल: लूना 25 को एक साल के मिशन के लिये डिज़ाइन किया गया है, जो हीटिंग तंत्र और एक गैर-सौर ऊर्जा स्रोत से सुसज्जित है।
    • इसके विपरीत चंद्र रात के दौरान हीटिंग की कमी के कारण चंद्रयान-3 को एक चंद्र दिवस के लिये बनाया गया है।
  • मिशन का उद्देश्य: रूसी लैंडर के पास मुख्य रूप से आठ पेलोड हैं, जिनका मुख्य उद्देश्य मिट्टी की संरचना, ध्रुवीय बाह्यमंडल में धूल के कणों का अध्ययन करना और सबसे महत्त्वपूर्ण रूप से सतह पर पानी का पता लगाना है। 
    • भारतीय मिशन में चंद्रमा पर मिट्टी के साथ-साथ पानी-बर्फ का अध्ययन करने के लिये वैज्ञानिक उपकरण भी हैं। दक्षिणी ध्रुव के पास का स्थान इसलिये चुना गया क्योंकि वहाँ स्थायी छाया में रहने वाले गड्ढे उपस्थित होते हैं, जिससे पानी-बर्फ मिलने की संभावना बढ़ जाती है।
      • यह लैंडर RAMBHAChaSTEILSA और लेज़र रेट्रोरेफ्लेक्टर ऐरे की सहायता से चंद्रमा की सतह पर प्रयोग/अध्ययन करेगा।
      • रोवर दो वैज्ञानिक तकनीकों से लैस है: 
        • लेज़र एंड्यूस्ड ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोप (LIBS)।
        • अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (APXS)।

भारत और रूस के बीच अंतरिक्ष क्षेत्र में सहयोग की स्थिति: 

  • भारत के पहले उपग्रह, आर्यभट्ट को वर्ष 1975 में सोवियत संघ द्वारा लॉन्च/प्रक्षेपित किया गया था।
  • USSR के इंटर-काॅसमाॅस कार्यक्रम के हिस्से के रूप में वर्ष 1984 में सैल्यूट 7 अंतरिक्ष स्टेशन के लिये सोयुज़ रॉकेट ने उड़ान भरी थी। राकेश शर्मा इस राॅकेट से अंतरिक्ष में जाने वाले एकलौते भारतीय नागरिक हैं।
  • वर्ष 2004 में दोनों देशों ने अंतरिक्ष क्षेत्र में सहयोग को बढ़ावा देने के लिये एक प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किये। इसमें ग्लोनास नेविगेशन प्रणाली का विकास और भारतीय रॉकेटों द्वारा रूसी ग्लोनास उपग्रहों का प्रक्षेपण शामिल था।
  • शुरू में ऐसा माना जा रहा था कि चंद्रयान-2 मिशन को भारत और रूस के संयुक्त सहयोग से पूरा किया जाएगा।
    • हालाँकि रूस द्वारा चंद्रयान-2 के लिये लैंडर-रोवर को डिज़ाइन करने से मना किये जाने  पर भारत को इसे स्वतंत्र रूप से विकसित करना पड़ा।
  • इसके अतिरिक्त भारत के पहले मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन: गगनयान का हिस्सा बनने वाले चार अंतरिक्ष यात्रियों को रूसी अनुसंधान केंद्रों में प्रशिक्षित किया गया है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न

प्रश्न. अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियों पर चर्चा कीजिये। इस प्रौद्योगिकी का प्रयोग भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में किस प्रकार सहायक हुआ है? (2016)

स्रोत: द हिंदू

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