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ध्यान दें:

डेली न्यूज़

  • 22 Mar, 2025
  • 39 min read
मुख्य परीक्षा

प्राकृतिक कृषि

स्रोत: बिज़नेस लाइन

चर्चा में क्यों?

हरित क्रांति से खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित हुई, लेकिन मृदा की गुणवत्ता का क्षरण हुआ और इनपुट लागत में वृद्धि हुई, जिससे लघु किसानों को नुकसान हुआ। इसके कारण मृदा स्वास्थ्य, किसानों की आय और पर्यावरणीय संधारणीयता में सुधार किये जाने के उद्देश्य से प्राकृतिक कृषि किये जाने का आह्वान किया जा रहा है।

प्राकृतिक कृषि क्या है?

  • परिचय: प्राकृतिक कृषि (NF) कृषि की रसायन मुक्त, पारंपरिक पद्धति है जिसमें फसलों, वृक्षों और पशुधन को कार्यात्मक जैवविविधता के साथ एकीकृत किया जाता है।
    • इसमें न्यूनतम मानवीय हस्तक्षेप पर ज़ोर दिया जाता है, जिसके कारण इसे "डू नथिंग फार्मिंग" भी कहते हैं।
    • इसमें कृषि इनपुट का उपयोग शामिल है जैसे:

Inputs

  • जैविक खेती से अलग: जैविक खेती के विपरीत, जो बाहरी जैविक आदान की अनुमति देता है, प्राकृतिक कृषि पूरी तरह से खेत पर आदान (इनपुट) पर निर्भर करती है। उदाहरण के लिये, मल्चिंग, फसल विविधता और जैव-आदान।
  • लाभ: 

Benefits

  • चुनौतियाँ: कम फसल पैदावार, कीट और बीमारी का उच्च खतरा, बाज़ार तक सीमित पहुँच, प्राकृतिक आदानों पर अत्यधिक निर्भरता, किसानों में जागरूकता और शिक्षा की कमी।

प्राकृतिक कृषि के क्या लाभ हैं?

और पढ़ें.. प्राकृतिक कृषि के लाभ

प्राकृतिक कृषि में चुनौतियाँ क्या हैं?

और पढ़ें.. प्राकृतिक कृषि में चुनौतियाँ

प्राकृतिक कृषि के लिये सरकार की पहल क्या हैं? 

  • भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति (BPKP): इसे परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY) के तहत शुरू किया गया था तथा वर्तमान में यह 9.4 लाख हेक्टेयर में प्राकृतिक कृषि करने वाले 28 लाख से अधिक किसानों को सहायता प्रदान करता है।
  • राष्ट्रीय प्राकृतिक कृषि मिशन (NMNF): NMNF कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा शुरू की गई एक केंद्र प्रायोजित योजना है जिसका उद्देश्य सतत्, जलवायु-अनुकूल कृषि और सुरक्षित खाद्य प्रथाओं को बढ़ावा देना है।
    • दो वर्षों में 1 करोड़ किसानों और 7.5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को कवर करने का लक्ष्य।
    • ज़मीनी स्तर पर किसानों की सहायता के लिये 10,000 जैव-संसाधन केंद्र स्थापित किये जाएंगे तथा 30,000 कृषि सखियों की तैनाती की जाएगी।
    • 2,000 प्राकृतिक कृषि प्रदर्शन फार्म विकसित करना।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रश्न. पर्माकल्चर कृषि पारंपरिक रासायनिक कृषि से कैसे अलग है? ( 2021)

  1. पर्माकल्चर कृषि मोनोकल्चर प्रथाओं को हतोत्साहित करती है लेकिन पारंपरिक रासायनिक खेती में मोनोकल्चर प्रथाएँ प्रमुख हैं। 
  2.  पारंपरिक रासायनिक कृषि से मृदा की लवणता में वृद्धि हो सकती है लेकिन पर्माकल्चर कृषि में ऐसी घटना नहीं देखी जाती है। 
  3.  अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों में पारंपरिक रासायनिक कृषि आसानी से संभव है लेकिन ऐसे क्षेत्रों में पर्माकल्चर कृषि इतनी आसानी से संभव नहीं है। 
  4.  पर्माकल्चर कृषि में मल्चिंग का अभ्यास बहुत महत्त्वपूर्ण है लेकिन पारंपरिक रासायनिक कृषि में ऐसा ज़रूरी नहीं है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये।

(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 1, 2 और 4
(c) केवल 4
(d) केवल 2 और 3

उत्तर: (b)


प्रश्न. निम्नलिखित कृषि पद्धतियों पर विचार कीजिये: (2012)

  1. कंटूर बंडलिंग
  2.  रिले फसल
  3.  शून्य जुताई

वैश्विक जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में उपर्युक्त में से कौन मिट्टी में कार्बन को अलग करने/भंडारण में मदद करता है?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) 1, 2 और 3
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं

उत्तर: (b)


आंतरिक सुरक्षा

आधुनिक युद्ध में UAV

प्रिलिम्स के लिये:

मानव रहित हवाई वाहन (UAV), होर्मुज जलडमरूमध्य, MQ-9 रीपर ड्रोन, इंद्रजाल, MSME, AI, रोबोटिक्स, स्वार्म टेक्नोलॉजी

मेन्स के लिये:

आधुनिक युद्ध में UAV की भूमिका, भारत के लिये UAV से संबंधित चिंताएँ और आगे की राह।

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

ओकिनावा (जापानी द्वीप) के निकट दो चीनी मानवरहित हवाई वाहनों (UAV) के देखे जाने से सैन्य और निगरानी अभियानों में UAV की बढ़ती भूमिका पर चिंता व्यक्त की गई है।

UAVs

लड़ाकू विमानों की तुलना में ड्रोन के क्या लाभ हैं?

  • लागत प्रभावशीलता: ड्रोन की खरीद और परिचालन व्यय (ईंधन, रखरखाव और रसद) कम है। 
    • एक MQ-9 रीपर ड्रोन की कीमत 32 मिलियन अमेरिकी डॉलर है, जबकि एक F-35 की कीमत 80 मिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक है।
  • कम मानवीय जोखिम: ड्रोन पायलट के जोखिम को कम करते हैं, जिससे वे शत्रुतापूर्ण वातावरण में उच्च जोखिम वाले मिशनों के लिये आदर्श बन जाते हैं। उदाहरण के लिये,
    • यूएस-ईरान 2019: ईरान ने होर्मुज जलडमरूमध्य के ऊपर एक अमेरिकी ड्रोन को मार गिराया। संघर्ष के बावजूद, अमेरिका ने जवाबी कार्रवाई नहीं की।
  • सतत् निगरानी: ड्रोन लंबे समय तक युद्ध के मैदान पर रह सकते हैं, जिससे वास्तविक समय की खुफिया जानकारी मिलती है तथा निर्णय लेने के लिये स्थितिजन्य जागरूकता में सुधार होता है।
    • AI संचालित ड्रोन स्वायत्त रूप से कार्य करते हैं, तथा कम मानवीय हस्तक्षेप के साथ लक्ष्यों की शीघ्र पहचान कर उन पर हमला करते हैं।
  • परिचालन: ड्रोन समन्वित हमलों के लिये समूह में काम कर सकते हैं, जिनका उपयोग टोही, निगरानी तथा सटीक हमलों के लिये किया जा सकता हैं।
    • नागोर्नो-करबाख संघर्ष में, UAV, विशेष रूप से तुर्की बायरकटार और अज़रबैजान के कामिकेज़ ड्रोन ने अर्मेनियाई सेना को कमज़ोर करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे आर्मेनिया की हार हुई।
  • असममित युद्ध के लिये उपयुक्तता: ड्रोन विद्रोह और आतंकवाद निरोध में अत्यधिक प्रभावी हैं, जिनके द्वारा न्यूनतम क्षति के साथ सटीक हमला किया जा सकता है। 
    • अमेरिका और तुर्की ने मध्य पूर्व और अफ्रीका में आतंकवादियों के सफाए के लिये इनका इस्तेमाल किया है।
  • निम्न सैन्य आवश्यकताएँ: ड्रोनों को एयरबेस, ईंधन भरने वाले टैंकर या पायलट सहायता प्रणाली जैसी व्यापक बुनियादी संरचना की आवश्यकता नहीं होती है।
    • उदाहरण के लिये, रूस ने यूक्रेन की सुरक्षा को कमज़ोर करने के लिये आसानी से ईरानी शाहेद-136 ड्रोन तैनात कर दिये।

UAV के उपयोग से संबंधित चिंताएँ क्या हैं?

  • संघर्ष को बढ़ावा देना: ड्रोन युद्ध के जोखिम और लागत को कम करते हैं, जिससे राज्यों के लिये सैनिकों को तैनात किये बिना सैन्य कार्यवाहियों में शामिल होना आसान हो जाता है। उदाहरण के लिये, यूक्रेन युद्ध में अमेरिकी ड्रोन का उपयोग।
  • गैर-राज्य अभिकर्त्ताओं का सशक्तिकरण: ड्रोन गैर-राज्य अभिकर्त्ताओं को राज्य की सेनाओं के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने में सक्षम बनाते हैं। उदाहरणार्थ, 
    • हूती विद्रोहियों ने सऊदी तेल संयंत्रों पर ड्रोन से हमला किया, जबकि ISIL ने युद्धक्षेत्र में निगरानी के लिये वाणिज्यिक ड्रोन का इस्तेमाल किया।
  • क्षेत्रीय तनाव में वृद्धि: चीन, तुर्की और इज़रायल के नेतृत्व में बढ़ता ड्रोन बाज़ार, हथियारों की दौड़ और संघर्ष को बढ़ावा दे रहा है। 
    • उदाहरण के लिये, पाकिस्तानी क्षेत्र से अफगानिस्तान में अमेरिकी ड्रोन हमलों का बदला लेने के परिणामस्वरूप पाकिस्तान में आतंकवाद बढ़ गया है।
  • अस्वीकार्यता और छद्म युद्ध: ड्रोन राष्ट्रों को बिना किसी प्रत्यक्ष आरोप के हमले करने की अनुमति देते हैं, जिससे संभावित अस्वीकार्यता बनी रहती है। 
    • यह सहयोगियों या विद्रोही समूहों को ड्रोन की आपूर्ति करके संघर्षों में अप्रत्यक्ष भागीदारी को सक्षम बनाता है , जिससे छद्म युद्धों को बढ़ावा मिलता है ।
  • दीर्घकालीन युद्ध: मध्य पूर्व में अमेरिकी अभियानों जैसे ड्रोन हमलों से नागरिकों की मौत ने सार्वजनिक आक्रोश और कट्टरपंथ को बढ़ावा दिया है, जिससे हिंसा का चक्र जारी है।

भारत के विरुद्ध प्रतिद्वंद्वियों द्वारा UAV का उपयोग करने के क्या प्रभाव हैं?

  • सुरक्षा संबंधी खतरे में वृद्धि: पाकिस्तान और चीन के साथ भारत की सीमाओं पर बढ़ते ड्रोन हमले, हथियारों और मादक पदार्थों की तस्करी  के कारण सैन्य और आंतरिक सुरक्षा के लिये खतरा पैदा करते हैं।
    • AI संचालित ड्रोन कश्मीर में पाकिस्तान और लद्दाख में चीन के लिये निगरानी बढ़ा रहे हैं, जिससे भारत की सामरिक गोपनीयता को चुनौती मिल रही है।
  • सैन्य विषमता: चीन कृत्रिम बुद्धि (AI) आधारित निगरानी और हमलों के साथ ड्रोन युद्ध में अग्रणी है, जबकि पाकिस्तान बेहतर टोही और युद्ध के लिये चीनी UAV का उपयोग करता है।
    • भारत द्वारा इंद्रजाल (AI-संचालित एंटी-ड्रोन सिस्टम) विकसित करने के बावजूद, यह चीन की तुलना में काउंटर-ड्रोन क्षमताओं में पीछे है।
  • साइबर सुरक्षा जोखिम: सीमा के पास भारतीय ड्रोन हैकिंग की घटनाएँ साइबर सुरक्षा जोखिमों पर प्रकाश डालती हैं। इलेक्ट्रॉनिक युद्ध को मज़बूत बनाना एक चुनौती बनी हुई है।
  • विदेशी ड्रोन पर निर्भरता: MQ-9B जैसे आयातित ड्रोन पर भारत की निर्भरता से आपूर्ति शृंखला में व्यवधान उत्पन्न होने का खतरा है तथा सैन्य आत्मनिर्भरता सीमित हो जाती है।

भारत अपनी UAV क्षमताओं का सुदृढ़ीकरण किस प्रकार कर सकता है?

  • ड्रोन-रोधी उपाय: खतरों का पता लगाने और उन्हें बेअसर करने के लिये इंद्रजाल जैसी प्रणालियों को सुदृढ़ बनाने तथा जैमिंग और हैकिंग प्रतिउपायों में निवेश करने की आवश्यकता है।
    • सीमा पार खतरों का निवारण करने के लिये हिमालय की विषम जलवायु परिस्थितियों में ड्रोन बैटरी की दक्षता और स्थिरता में सुधार किया जाना चाहिये।
    • दुश्मन के ड्रोन को रोकने के लिये रक्षा बलों द्वारा ईगल प्रशिक्षण का विस्तार किया जाना चाहिये।
  • देशज रूप से ड्रोन का विकास: घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने, सार्वजनिक-निजी भागीदारी को सुदृढ़ बनाने और वित्त पोषण एवं प्रोत्साहन के साथ ड्रोन स्टार्टअप और MSME का समर्थन करने की आवश्यकता है।
    • ड्रोन रोटर्स को बीच उड़ान में उलझाने, प्रणोदन को अक्षम करने और उन्हें नीचे लाने के लिये ड्रोन जाल के विकास को बढ़ावा देना चाहिये।
  • अनुसंधान एवं विकास निवेश: कृत्रिम बुद्धिमत्ता, रोबोटिक्स, पायलट प्रशिक्षण, और स्वायत्त ड्रोन, स्वार्म प्रौद्योगिकी और उच्च उन्नतांश वाले UAV पर अनुसंधान में निवेश करने की आवश्यकता है।

निष्कर्ष:

सैन्य और निगरानी अभियानों में UAV का बढ़ता उपयोग से रणनीतिक लाभ और साथ ही सुरक्षा खतरे प्रस्तुत होते हैं। हालाँकि भारत को विरोधियों की ओर से ड्रोन के बढ़ते हमलों का सामना करना पड़ रहा है किंतु काउंटर-ड्रोन सिस्टम का सुदृढ़ीकरण करना, स्वदेशी विकास को बढ़ावा देना और एआई-संचालित ड्रोन तकनीक में निवेश करना राष्ट्रीय सुरक्षा को बढ़ाने और सैन्य प्रतिस्पर्द्धा को बनाए रखने के लिये महत्त्वपूर्ण है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: सीमा पार खतरों के निवारण हेतु भारत अपनी ड्रोन-रोधी क्षमताओं का सुदृढ़ीकरण किस कर सकता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित गतिविधियों पर विचार कीजिये: (2020) 

  1. खेत में फसल पर पीड़कनाशी का छिड़काव  
  2. सक्रिय ज्वालामुखियों के क्रेटरों का निरीक्षण  
  3. डीएनए विश्लेषण के लिये उत्क्षेपण करती हुई व्हेलों के श्वास के नमूने एकत्र करना 

तकनीक के वर्तमान स्तर पर उपर्युक्त गतिविधियों में से किसे ड्रोन के प्रयोग से सफलतापूर्वक संपन्न किया जा सकता है? 

(a) केवल 1 और 2 
(b) केवल 2 और 3 
(c) केवल 1 और 3 
(d) 1, 2 और 3 

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न. दुर्गम क्षेत्र एवं कुछ देशों के साथ शत्रुतापूर्ण संबंधों के कारण सीमा प्रबंधन एक कठिन कार्य है। प्रभावशाली सीमा प्रबंधन की चुनौतियों एवं रणनीतियों पर प्रकाश डालिये। (2016)


जैव विविधता और पर्यावरण

अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस 2025

प्रिलिम्स के लिये:

अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस, खाद्य और कृषि संगठन (FAO), कार्बन पृथक्करण, राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986, प्रतिपूरक वनीकरण निधि प्रबंधन और योजना प्राधिकरण (CAMPA)

मेन्स के लिये:

भारत के लिये वनों का महत्त्व, भारत में वनों से जुड़े मुद्दे।

स्रोत: पी.आई.बी.

चर्चा में क्यों?

अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस, जिसे विश्व वन दिवस (WFD) के रूप में भी जाना जाता है, मानवता और ग्रह के अस्तित्व के लिये वनों और वृक्षों के महत्त्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये प्रत्येक वर्ष 21 मार्च को मनाया जाता है।

  • वर्ष 2025 WFD का विषय "वन और भोजन" है।

अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस

  • अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस की शुरुआत वर्ष 1971 में खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) द्वारा स्थापित "विश्व वानिकी दिवस" ​​से हुई।
  • इसे संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा वर्ष 2012 में औपचारिक रूप से मान्यता दी गई। 
  • इसका उद्देश्य वन संरक्षण और सतत् प्रबंधन के बारे में जागरूकता बढ़ाना है।

नोट

  • भारत में वन की परिभाषा: टी.एन. गोदावर्मन थिरुमुलपाद बनाम भारत संघ 1996 मामले में , सर्वोच्च न्यायालय ने व्याख्या की कि "वन" शब्द को इसके "शब्दकोश अर्थ" के अनुसार समझा जाना चाहिये।
    • यह विवरण सभी वैधानिक रूप से मान्यता प्राप्त वनों को कवर करता है, चाहे वे आरक्षित, संरक्षित या अवर्गीकृत हों।

वनों का महत्त्व क्या है?

  • पारिस्थितिक महत्त्व:
    • कार्बन पृथक्करण: वन प्रतिवर्ष वैश्विक CO₂ उत्सर्जन (जीवाश्म ईंधन से) का लगभग 30% अवशोषित करते हैं (FAO, 2020) और 861 गीगाटन कार्बन संग्रहित करते हैं, जो उन्हें जलवायु परिवर्तन शमन के लिये महत्त्वपूर्ण बनाता है।
    • जैवविविधता संरक्षण: वन स्थलीय जैवविविधता का 80% हिस्सा रखते हैं (UNEP, 2021)। 
    • भारत के वन एवं वृक्षावरण (कुल क्षेत्रफल का 25.17%) बाघों (3,167, NTCA 2022) और एशियाई हाथियों (~30,000, MoEFCC 2023) जैसी प्रजातियों को आश्रय देते हैं।
    • जल सुरक्षा: वन जल विज्ञान चक्र को नियंत्रित करते हैं, भूजल को पुनर्भरित करते हैं और बाढ़ को कम करते हैं। 
      • 85% से ज़्यादा बड़े शहर स्वच्छ जल के लिये वनाच्छादित जलक्षेत्रों पर निर्भर हैं। संकट के समय, वन ग्रामीण परिवारों की आय का 20% तक प्रदान करते हैं और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं। 
      • भारत में पश्चिमी घाट नदियों को पोषित करते हैं जो 245 मिलियन लोगों को जलापूर्ति करती हैं।
  • आर्थिक एवं आजीविका मूल्य:
    • वैश्विक निर्भरता: 1.6 बिलियन लोग (70 मिलियन स्वदेशी समुदायों सहित) भोजन, ईंधन और दवा के लिये वनों पर निर्भर हैं (विश्व बैंक, 2022)।
    • रोज़गार: भारत में 30 मिलियन से अधिक लोग अपनी आजीविका के लिये वानिकी गतिविधियों पर निर्भर हैं, तथा मनरेगा वनरोपण परियोजनाओं एवं ग्रामीण आजीविका को सहायता प्रदान करता है।
    • पशुधन सहायता: वन 30-40 मिलियन चरवाहों का निर्वाह स्रोत हैं और 4 बिलियन पशुओं के लिये चारा स्रोत हैं। वृक्ष छाया और सुरक्षा प्रदान कर चरागाहों का वर्द्धन करते हैं, जिससे पशुधन उत्पादकता में सुधार होता है।
  • सांस्कृतिक महत्त्व: वनों को पुनर्जनन, स्वास्थ्य और दीर्घायु के लिये सांस्कृतिक रूप से पूजनीय माना जाता है। 
    • भारत में 100,000 से अधिक पवित्र उपवन हैं (जैसे, केरल में कावस, मेघालय में लॉ लिंगदोह), जो जैवविविधता और Myristica malabarica (कर्नाटक) जैसी दुर्लभ वनस्पतियों को संरक्षित करते हैं।
  • आनुवंशिक विविधता: वन फसलों के वन्य प्रजातियों (जैसे, असम में वन्य चावल) को सुरक्षा प्रदान करते हैं, जो जलवायु-लचीली किस्मों के जनन के लिये आवश्यक है।

भारत में वनों की स्थिति क्या है?

  • भारत वन स्थिति रिपोर्ट (ISFR)-2023 के अनुसार, वन एवं वृक्ष आवरण इसके भौगोलिक क्षेत्र (GA) का 25.17% है, जिसमें वन आवरण 21.76% और वृक्ष आवरण 3.41% है।
  • देश के वन एवं वृक्ष आवरण में वर्ष 2021 की तुलना में 1,445.81 वर्ग किमी. की वृद्धि हुई है।
  • रिपोर्ट के अनुसार 19 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों का 33 प्रतिशत से अधिक भौगोलिक क्षेत्र वन आच्छादित है। 
  • भारत का वन कार्बन स्टॉक अनुमानित रूप से 7,285.5 मिलियन टन है, जो वर्ष 2021 की तुलना में 81.5 मिलियन टन अधिक है। 
  • भारत का मैंग्रोव आवरण 4,991.68 वर्ग किमी. (GA का 0.15%) है, जिसमें वर्ष 2021 से 7.43 वर्ग किमी. की कमी हुई है।
  • सर्वाधिक वन क्षेत्र (क्षेत्रवार): मध्य प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़।
  • वन आवरण का उच्चतम प्रतिशत: लक्षद्वीप (91.33%), मिज़ोरम (85.34%), अंडमान और निकोबार (81.62%)।

वैश्विक वन क्षेत्र (FAO 2020)

Global_Forest_Area

वन संरक्षण संबंधी कौन-सी पहलें की गई हैं?

वैश्विक पहलें

  • REDD+ (वनोन्मूलन और वन क्षरण से उत्सर्जन में कमी): यह UNFCCC की पहल है जिसके अंतर्गत विकासशील देशों को वनोन्मूलन में कमी करने और वन कार्बन स्टॉक को बढ़ाने के लिये प्रोत्साहित किया जाता है।
  • बॉन चैलेंज (2011): यह जर्मनी और IUCN द्वारा शुरू किया गया था तथा इसके अंतर्गत वर्ष 2020 तक 150 मिलियन हेक्टेयर और वर्ष 2030 तक 350 मिलियन हेक्टेयर भूमि पुनर्स्थापित करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था।
  • वनों पर न्यूयॉर्क घोषणा (2014): यह एक अबंधक प्रतिबद्धता है जिसके अंतर्गत वर्ष 2020 तक वनोन्मूलन में 50% कमी करने और वर्ष 2030 तक इसे पूर्ण रूप से समाप्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था।
  • पेरिस समझौता (अनुच्छेद 5): यह जलवायु परिवर्तन का शमन करने के लिये वनों सहित GHG सिंक और जलाशयों के संरक्षण और संवर्द्धन पर ज़ोर देता है।
  • FAO का वैश्विक वन संसाधन आकलन (FRA): वैश्विक स्तर पर वन संसाधनों, प्रवृत्तियों और संरक्षण प्रयासों पर व्यापक डेटा प्रदान करता है।
  • जैवविविधता पर अभिसमय (CBD): CBD वन संरक्षण के लिये एक प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय समझौता है, जिसका उद्देश्य जैवविविधता का संरक्षण करना, इसके घटकों का सतत् उपयोग करना और आनुवंशिक संसाधनों से लाभ साझा करना है।

भारत की पहलें

  • वन संरक्षण अधिनियम, 1980
  • राष्ट्रीय वनरोपण कार्यक्रम
  • पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986
  • प्रतिपूरक वनरोपण निधि प्रबंधन एवं नियोजन प्राधिकरण (CAMPA): वनरोपण के लिये वन भूमि परियोजनाओं से प्राप्त निधियों के समुपयोग पर आधारित।
    • ग्रीन इंडिया मिशन (GIM): यह राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन कार्य योजना (NAPCC) का हिस्सा है, जिसे वर्ष 2015-16 में जैवविविधता, जल संसाधन और कार्बन पृथक्करण पर ध्यान केंद्रित करते हुए शुरू किया गया था।
      • इसका उद्देश्य 10 मिलियन हेक्टेयर वन/वृक्ष क्षेत्र का विस्तार और सुधार तथा वन-आधारित आय के माध्यम से 3 मिलियन परिवारों की आजीविका को बढ़ावा देना है।
      • उप-मिशन: वन क्षेत्र में वृद्धि, शहरी हरियाली तथा कृषि वानिकी एवं सामाजिक वानिकी।
  • राष्ट्रीय कृषि वानिकी नीति: इसे जलवायु अनुकूलता, पर्यावरण संरक्षण और आर्थिक लाभ के लिये कृषि वानिकी को बढ़ावा देने के लिये वर्ष 2014 में शुरू किया गया था।
    • यह नर्सरी और ऊतक संवर्द्धन के माध्यम से गुणवत्तापूर्ण रोपण सामग्री (QPM) पर केंद्रित है।
    • ICAR-केंद्रीय कृषि वानिकी अनुसंधान संस्थान (CAFRI) नोडल एजेंसी है, जिसे राज्य कृषि विश्वविद्यालयों से सहयोग मिलता है।
  • वन अग्नि निवारण एवं प्रबंधन योजना: यह एक केंद्र प्रायोजित योजना है, जो वन अग्नि की रोकथाम एवं नियंत्रण में राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों को सहायता प्रदान करती है। 
    • विश्व बैंक, NDMA और राज्य वन विभागों के साथ मिलकर वन अग्नि पर राष्ट्रीय कार्य योजना (2018) विकसित की गई।
    • भारतीय वन सर्वेक्षण (FSI) वास्तविक समय में वनाग्नि की चेतावनी के लिये रिमोट सेंसिंग, GPS, GIS और उपग्रह आधारित निगरानी प्रणाली का उपयोग करता है।
  • पीएम वन धन योजना (PMVDY): कौशल प्रशिक्षण, बुनियादी ढाँचे और बाज़ार संपर्कों के माध्यम से लघु वन उपज (MFP) में मूल्य संवर्द्धन करके जनजातीय आजीविका को बढ़ाना।
    • वन धन विकास केंद्र (VDVK): लघु वनोपजों के प्रसंस्करण और विपणन के लिये प्रति केंद्र 15 स्वयं सहायता समूहों से 300 सदस्य।

वन संरक्षण में चुनौतियाँ क्या हैं?

और पढ़ें.. वन संरक्षण में चुनौतियाँ

भारत में वन संरक्षण को बढ़ाने के लिये क्या उपाय अपनाए जा सकते हैं?

और पढ़ें..: वन संरक्षण बढ़ाने के उपाय

निष्कर्ष

ग्रीन इंडिया मिशन, वन धन योजना और वन अग्नि प्रबंधन जैसी पहलों के माध्यम से भारत के वन संरक्षण प्रयास पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली, जलवायु अनुकूल और आजीविका वृद्धि को बढ़ावा देते हैं। अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस 2025 पर, सतत् नीतियों और समुदाय-संचालित संरक्षण के प्रति प्रतिबद्धता की पुष्टि करना एक हरित और समृद्ध भविष्य के लिये महत्त्वपूर्ण है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

भारत में वन संरक्षण की चुनौतियों की जाँच करना तथा जलवायु परिवर्तन एवं विकास के संदर्भ में सतत् प्रबंधन के लिये रणनीति प्रस्तावित करना।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स:

प्रश्न. राष्ट्रीय स्तर पर अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये कौन सा मंत्रालय नोडल एजेंसी है?

(a) पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय
(b) पंचायती राज मंत्रालय
(c) ग्रामीण विकास मंत्रालय
(d) जनजातीय मामलों का मंत्रालय

उत्तर: (d)


प्रश्न . भारत का एक विशेष राज्य निम्नलिखित विशेषताओं से युक्त हैः (2012)

1- यह उसी अक्षांश पर स्थित है, जो उत्तरी राजस्थान से होकर जाता है
2- इसका 80% से अधिक क्षेत्र वन आवरणन्तर्गत है।
3- 12% से अधिक वनाच्छादित क्षेत्र इस राज्य के रक्षित क्षेत्र नेटवर्क के रूप में है।

निम्नलिखित राज्यों में से कौन-सा ऊपर दी गई सभी विशेषताओं से युक्त है?

(a) अरूणाचल प्रदेश
(b) असम
(c) हिमाचल प्रदेश
(d) उत्तराखंड

उत्तर: (a)


मेन्स:

प्रश्न. “भारत में आधुनिक कानून की सबसे महत्त्वपूर्ण उपलब्धि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पर्यावरणीय समस्याओं का संविधानीकरण है।” सुसंगत वाद विधियों की सहायता से इस कथन की विवेचना कीजिये। (2022)


सामाजिक न्याय

फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट

प्रिलिम्स के लिये :

फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट (FTSC), FTSC योजना, यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पोक्सो) अधिनियम  2012, निर्भया फंड

मेन्स के लिये :

फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट (FTSC) योजना और यौन हिंसा से निपटने में इसकी भूमिका।

स्रोत: पी.आई.बी.

चर्चा में क्यों?

फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट (FTSC) योजना को मार्च 2026 तक बढ़ाने का निर्णय लिया गया है। इसका उद्देश्य बलात्कार तथा यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012 के तहत मामलों में त्वरित और समयबद्ध न्याय सुनिश्चित करना है।

फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट योजना क्या है?

  • परिचय: यह विधि एवं न्याय मंत्रालय के तहत एक केंद्र प्रायोजित योजना है, जिसका उद्देश्य निर्भया कोष के तहत फास्ट ट्रैक कोर्ट स्थापित करना है।
  • शुरुआत: वर्ष 2019 में, सर्वोच्च न्यायालय ने POCSO मामलों के त्वरित निपटान का आदेश दिया, जिसके परिणामस्वरूप 2 अक्तूबर, 2019 को FTSC योजना शुरू की गई।
  • लागत साझाकरण:
    • केंद्र 60% और राज्य 40% का योगदान देते हैं।
    • पूर्वोत्तर, सिक्किम और पहाड़ी राज्यों में यह अनुपात 90:10 है।
    • जिन केंद्रशासित प्रदेशों में विधानसभा है, वहां 60:40 का अनुपात लागू होता है।
    • जिन केंद्रशासित प्रदेशों में विधानसभा नहीं है, उन्हें 100% केंद्र सरकार से वित्तीय सहायता मिलती है।
  • FTSCs की आवश्यकता:
    • लंबित मामलों की संख्या: भारतीय न्यायालयों में POCSO और बलात्कार के मामलों की संख्या लगातार बढ़ रही है— वर्ष 2020 में लंबित मामलों की संख्या 2,81,049 थी जो कि वर्ष 2022 में बढ़कर 4,17,673 हो गयी।
    • समयबद्ध न्याय:  POCSO अधिनियम, 2012 के तहत विशेष न्यायालयों को एक वर्ष के भीतर मुकदमे की सुनवाई पूरी करने का प्रावधान है।
    • निवारण (Deterrence): कठोर दंड अपराधों को रोकने में सहायक होते हैं, लेकिन इनका प्रभाव समय पर सुनवाई और पीड़ितों को शीघ्र न्याय मिलने पर निर्भर करता है।
  • प्रदर्शन: दिसंबर 2024 तक, 30 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में 700 से अधिक FTSC कार्यरत हैं। इनमें से 406 न्यायालय विशेष रूप से POCSO (ePOCSO) मामलों के लिये समर्पित हैं
    • वर्ष 2024 में, FTSCs की मामलों के निपटान दर 96.28% रही है और अब तक 3 लाख से अधिक मामलों का सफलतापूर्वक निपटारा किया जा चुका है।

फास्ट ट्रैक विशेष न्यायालयों के समक्ष कौन-सी चुनौतियाँ हैं?

  • FTSCs की अपर्याप्त संख्या: यद्यपि 1,023 FTSCs की स्वीकृति मिली, लेकिन दिसंबर 2024 तक केवल 747 ही कार्यरत हैं।
    • लंबित मामलों को समाप्त करने के लिये भारत को कम-से-कम 1,000 अतिरिक्त FTSCs की आवश्यकता है।
  • मुकदमों का बोझ: न्यायालयों को भारी संख्या में मामलों के चलते त्वरित न्याय सुनिश्चित करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
    • महाराष्ट्र और पंजाब में मामलों की निपटान दर अधिक है, जबकि पश्चिम बंगाल में यह सबसे कम है, जिससे न्याय वितरण में असमानताएँ उत्पन्न होती हैं।
  • निर्भया फंड का कम उपयोग: वर्ष 2013 में महिलाओं की सुरक्षा के लिये स्थापित इस कोष के 1,700 करोड़ रुपए अभी भी खर्च नहीं किये गए हैं
  • विशेष सहायता का अभाव: कई FTSCs में पीड़ित-अनुकूल सुविधाओं की कमी है, जैसे कि:
    • पीड़ितों के लिये सहायक वातावरण उपलब्ध कराने के लिये संवेदनशील गवाह बयान केंद्र (Vulnerable Witness Deposition Centers - VWDCs)
    • महिला लोक अभियोजक और परामर्शदाता- पीड़ितों को विधिक प्रक्रिया में सहायता प्रदान करने के लिये।

फास्ट ट्रैक विशेष न्यायालयों को कैसे मजबूत किया जा सकता है?

  • न्यायिक मानदंडों में सुधार : राज्यों को POCSO मामलों के लिये विशेष न्यायाधीशों की नियुक्ति करनी चाहिए, संवेदीकरण प्रशिक्षण प्रदान करना चाहिए और महिला लोक अभियोजकों की उपस्थिति सुनिश्चित करनी चाहिए।
  • संवेदनशील गवाह बयान केंद्र (VWDCs): सभी ज़िलों में VWDCs स्थापित किये जाएँ, ताकि पीड़ितों की गवाही दर्ज करने और अप्रत्यक्ष तरीके से बाल-अनुकूल सुनवाई की सुविधा मिल सके।
    • पूर्व-परीक्षण और परीक्षण सहायता के लिये FTSC में बाल मनोवैज्ञानिकों की नियुक्ति की जानी चाहिये।
  • तकनीकी उन्नयन: न्यायालय कक्षों को ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग सिस्टम, LCD प्रोजेक्टर और इलेक्ट्रॉनिक केस फाइलिंग तथा डिजिटल रिकॉर्ड के लिये उन्नत IT सिस्टम से सुसज्जित किया जाए।
  • फॉरेंसिक प्रयोगशालाएँ: लंबित मामलों के शीघ्र निपटान और समय पर DNA रिपोर्ट सुनिश्चित करने के लिये फॉरेंसिक प्रयोगशालाओं की संख्या बढ़ाई जानी चाहिये और आवश्यक मानव संसाधन को प्रशिक्षित किया जाना चाहिये ताकि निष्पक्ष एवं त्वरित न्याय सुनिश्चित हो सके।

निष्कर्ष

फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट (FTSCs) ने मामलों के निपटान दर में उल्लेखनीय सुधार किया है, जिससे यौन अपराधों के पीड़ितों को शीघ्र न्याय मिल रहा है। हालाँकि, सीमित संख्या में न्यायालयों की उपलब्धता, निधियों का पूर्ण उपयोग न होना और पीड़ित-अनुकूल बुनियादी ढाँचे की कमी जैसी चुनौतियाँ अब भी बनी हुई हैं। समय पर न्याय और प्रभावी कानूनी रोकथाम सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक है कि FTSCs को अधिक न्यायालयों, आधुनिक तकनीकी संसाधनों तथा मजबूत पीड़ित सहायता तंत्र के साथ सशक्त किया जाए।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट (FTSCs) योजना क्या है? कौन-सी चुनौतियाँ उनकी प्रभावशीलता में बाधा डालती हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

मेन्स

प्रश्न. राष्ट्रीय बाल नीति के मुख्य प्रावधानों का परीक्षण कीजिये तथा इसके कार्यान्वयन की स्थिति पर प्रकाश डालिये। (2016)

प्रश्न. हमें देश में महिलाओं के प्रति यौन-उत्पीड़न के बढ़ते हुए दृष्टांत दिखाई दे रहे हैं। इस कुकृत्य के विरुद्ध विद्यमान विधिक उपबंधों के होते हुए भी ऐसी घटनाओं की संख्या बढ़ रही है। इस संकट से निपटने के लिये कुछ नवाचारी उपाय सुझाइये। (2014)


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