प्रारंभिक परीक्षा
प्राकृतिक कृषि के विज्ञान पर कार्यक्रम
- 23 Jul 2024
- 9 min read
स्रोत: पी.आई.बी
चर्चा में क्यों?
हाल ही में "प्राकृतिक कृषि के विज्ञान पर क्षेत्रीय परामर्श कार्यक्रम" में संधारणीय कृषि पद्धति के रूप में प्राकृतिक कृषि अर्थात् रसायन मुक्त कृषि के महत्त्व पर बल दिया गया।
- यह घोषणा की गई कि जो किसान अपनी भूमि के एक हिस्से पर तीन वर्षों तक प्राकृतिक कृषि करेंगे, वे सरकारी सब्सिडी के लिये पात्र होंगे।
प्राकृतिक कृषि क्या है?
- परिचय:
- प्राकृतिक कृषि एक ऐसी कृषि पद्धति है जिसमें फसलों की कृषि के लिये न्यूनतम हस्तक्षेप (कृषि विज्ञान अनुसंधान के क्षेत्र में मृदा परीक्षण, पोषक तत्त्व प्रबंधन, सिंचाई, जुताई और कीट प्रबंधन सहित कई तरह की तकनीकें) के साथ प्राकृतिक संसाधनों के ही उपयोग पर बल दिया जाता है।
- इसका उद्देश्य कृत्रिम उर्वरकों, कीटनाशकों या शाकनाशियों पर निर्भर हुए बिना मृदा स्वास्थ्य, जैवविविधता और पारिस्थितिकी तंत्र संतुलन को बढ़ाना है।
- यह मुख्य रूप से बायोमास पुनर्चक्रण पर आधारित है, जिसमें बायोमास मल्चिंग, खेत में गाय के गोबर-मूत्र के फॉर्मूलेशन का उपयोग, मृदा में वायु संचार बनाए रखने के साथ सभी कृत्रिम रासायनिक आदानों/इनपुट का त्याग करना शामिल है।
- लक्ष्य और उद्देश्य:
- प्राकृतिक वनस्पतियों और जीवों का संरक्षण करना।
- मृदा के स्वास्थ्य और उर्वरता को बनाए करना।
- फसल उत्पादन में विविधता बनाए रखना।
- भूमि और प्राकृतिक संसाधनों का कुशल उपयोग करना।
- प्राकृतिक लाभकारी कीटों, जंतुओं और सूक्ष्म जीवों को बढ़ावा देना।
- पशुधन एकीकरण के लिये स्थानीय नस्लों को बढ़ावा देना।
- प्राकृतिक/स्थानीय संसाधन-आधारित आदानों/इनपुट का उपयोग करना।
- कृषि उत्पादन की इनपुट लागत कम करना।
- किसानों की अर्थव्यवस्था में सुधार करना।
- प्राकृतिक कृषि के तत्त्व:
- वर्तमान परिदृश्य:
- आंध्र प्रदेश, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, ओडिशा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु सहित कई राज्यों ने प्राकृतिक कृषि को बढ़ावा देने के लिये कार्यक्रम शुरू किये हैं।
- वर्तमान में भारत में 10 लाख हेक्टेयर से अधिक भूमि का उपयोग प्राकृतिक कृषि के लिये किया जा रहा है।
- सरकारी योजनाएँ:
- भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति (BPKP): यह परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY) के तहत एक उप-मिशन है, जो राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन (NMSA) के अंतर्गत आता है।
- राष्ट्रीय प्राकृतिक कृषि मिशन
तालिका 1: जैविक और प्राकृतिक कृषि के बीच अंतर |
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जैविक कृषि |
प्राकृतिक कृषि |
जैविक उर्वरक और खाद जैसे कृषि आदान, बाह्य स्रोतों से प्राप्त वर्मी-कम्पोस्ट और गोबर की खाद का उपयोग किया जाता है। |
प्राकृतिक कृषि में मृदा में न तो रासायनिक और न ही जैविक खाद डाली जाती है। वास्तव में मृदा में कोई बाह्य तौर पर या अतिरिक्त पोषक तत्त्व नहीं मिलाया जाता है। |
जैविक कृषि अभी भी महंगी है क्योंकि इसमें वृहत मात्रा में खाद की आवश्यकता होती है और इसका पारिस्थितिकी पर प्रभाव पड़ता है। |
यह कम लागत वाली कृषि पद्धति है, जो स्थानीय जैवविविधता के साथ पूरी तरह से संतुलन स्थापित करती है। |
जैविक कृषि में खाद और कम्पोस्ट को मृदा में मिलाया जाता है ताकि इनका अच्छी तरह अपघटन हो सके जिसके लिये अधिक प्रयास और लागत की आवश्यकता होती है। |
प्राकृतिक कृषि में सूक्ष्मजीवों और केंचुओं द्वारा कार्बनिक पदार्थों के अपघटन की प्रक्रिया मृदा की सतह पर ही की जाती है, जिससे धीरे-धीरे मृदा में पोषक तत्त्वों की वृद्धि होती जाती है। |
जैविक कृषि द्वारा निकटवर्ती परिवेश/पर्यावरण पर कुछ हद तक प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है क्योंकि इसके तहत प्राकृतिक प्रक्रियाओं में हस्तक्षेप करने की आवश्यकता होती है। |
प्राकृतिक कृषि द्वारा निकटवर्ती परिवेश/पर्यावरण पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है और यह जैवविविधता की स्थानीय प्रक्रियाओं के अनुरूप होती है। |
इसमें प्रमाणन के उद्देश्य से दिशानिर्देशों और विनियमों का पालन किये जाने की भी आवश्यकता होती है। |
यह कम विनियमित होती है। |
और पढ़ें: खेत से थाली तक: प्राकृतिक कृषि का प्रसार, प्राकृतिक कृषि
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