जलवायु जोखिम सूचकांक
प्रिलिम्स के लिये:जलवायु परिवर्तन, जलवायु जोखिम सूचकांक 2025, बाढ़, सूखा, चक्रवात मेन्स के लिये:जलवायु जोखिम सूचकांक 2025 के मुख्य निष्कर्ष, जलवायु परिवर्तन का प्रभाव, चुनौतियाँ और शमन रणनीतियाँ |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण थिंक टैंक 'जर्मनवाच' ने जलवायु जोखिम सूचकांक (Climate Risk Index- CRI) 2025 जारी किया है।
जलवायु जोखिम सूचकांक 2025 क्या है और इसके प्रमुख निष्कर्ष क्या हैं?
- जलवायु जोखिम सूचकांक:
- परिचय: CRI के अंतर्गत चरम मौसम की घटनाओं के प्रति देशों की सुभेद्यता के आधार पर उनका श्रेणीकरण करता है, तथा जलवायु-जनित आपदाओं से होने वाली मानवीय और आर्थिक हानि का आकलन किया जाता है।
- आवृत्ति: यह वर्ष 2006 से प्रतिवर्ष जारी किया जाता है, जिसमें विगत 30 वर्षों का डेटा शामिल होता है।
- कार्यप्रणाली और मानदंड: CRI के अंतर्गत छह प्रमुख संकेतकों के आधार पर देशों पर, पूर्ण और सापेक्ष दोनों रूप में, चरम मौसम की घटनाओं के प्रभाव का आकलन किया जाता है: आर्थिक नुकसान, मृत्यु दर और प्रभावित लोग।
- जलवायु जोखिम सूचकांक 2025 के निष्कर्ष:
- वर्ष 1993 से वर्ष 2022 की अवधि में 765,000 से अधिक लोगों की मृत्यु हुई, जिसके परिणामस्वरूप 4.2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का आर्थिक नुकसान हुआ।
- बाढ़, सूखा और झंझावात वैश्विक विस्थापन के प्रमुख कारण थे।
- वर्ष 1993 से वर्ष 2022 की अवधि में, डोमिनिका, चीन और होंडुरास चरम मौसम की घटनाओं से प्रभावित शीर्ष-3 देश थे।
- म्याँमार, इटली और भारत अन्य अत्यधिक प्रभावित देशों में शामिल थे।
- पाकिस्तान, बेलीज़ और इटली 2022 में सबसे अधिक प्रभावित होने वाले शीर्ष-3 देश थे।
- सबसे अधिक प्रभावित 10 देशों में से 7 निम्न एवं मध्यम आय वाले देश (LMIC) हैं।
- वर्ष 1993 से वर्ष 2022 की अवधि में 765,000 से अधिक लोगों की मृत्यु हुई, जिसके परिणामस्वरूप 4.2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का आर्थिक नुकसान हुआ।
- भारत पर प्रभाव: भारत सर्वाधिक प्रभावित देशों में छठे स्थान (1993-2022) पर है, जहाँ चरम मौसमी घटनाओं के कारण 80,000 मौतें (विश्व की 10%) हुई हैं तथा कुल वैश्विक आर्थिक नुकसान (180 बिलियन अमेरिकी डॉलर) का 4.3% नुकसान हुआ है।
- भारत में अत्यधिक बाढ़ (वर्ष 1993, 2013, 2019), तीव्र हीट वेव्स (वर्ष 1998, 2002, 2003, 2015 में ~ 50°C) एवं हुदहुद (वर्ष 2014) तथा अम्फान (वर्ष 2020) जैसे विनाशकारी चक्रवातों की स्थिति देखी गई है।
नोट: एशियाई विकास बैंक की एशिया-प्रशांत (APAC) जलवायु रिपोर्ट 2024 में अनुमान लगाया गया है कि भारत को जलवायु परिवर्तन के कारण वर्ष 2070 तक 24.7% तक GDP में हानि हो सकती है, जिसका कारण समुद्र का बढ़ता जल स्तर तथा श्रम उत्पादकता में गिरावट होगी।
रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन शमन रणनीतियों से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
- ऐतिहासिक उत्तरदायित्व बनाम भावी उत्सर्जन: उच्च आय वाले राष्ट्र अपने ऐतिहासिक उत्सर्जन के बावजूद भारत और चीन जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं से जलवायु के प्रति अधिक उत्तरदायित्व की मांग करते हैं, जिसके कारण भार-साझाकरण एवं जलवायु वित्त प्रतिबद्धताओं के संबंध में तनाव पैदा होता है।
- वैश्विक स्तर पर निर्धारित तापमान सीमा का उल्लंघन: वर्ष 2024 में 1.5°C की तापमान सीमा का उल्लंघन हुआ, जिससे अपर्याप्त शमन प्रयासों पर प्रकाश पड़ता है।
- राष्ट्रीय स्तर पर अभिनिर्धारित योगदान (NDC) जैसी महत्त्वाकांक्षा के पालन के बिना विश्व, वर्ष 2100 तक 2.6-3.1 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि की ओर अग्रसर है।
- जलवायु परिवर्तन के प्रति कमज़ोर प्रतिबद्धताएँ: कई देश अपने राष्ट्रीय स्तर पर अभिनिर्धारित योगदान (NDC) को अपडेट नहीं कर रहे हैं, जिससे इस दिशा में कार्रवाई में बाधा आ रही है। अतार्किक नीति कार्यान्वयन से शमन प्रयास और भी कमज़ोर हो रहे हैं।
- अपर्याप्त जलवायु वित्त: विकासशील देशों के लिये 300 बिलियन अमेरिकी डॉलर का वार्षिक वित्तपोषण अपर्याप्त है तथा हानि एवं क्षति कोष के संचालन में देरी से जलवायु के प्रति संवेदनशील देशों को सहायता मिलने में बाधा उत्पन्न हुई है।
और पढ़ें:
रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु प्रमुख सुझाव क्या हैं?
- उन्नत जलवायु वित्त: जलवायु-जनित हानियों और क्षतियों के अनुकूलन और प्रबंधन के लिये कमज़ोर देशों को अधिक वित्तीय एवं तकनीकी सहायता की आवश्यकता है।
- शमन प्रयासों को मज़बूत करना: वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5°C या उससे कम तक सीमित रखने के लिये राष्ट्रों को अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) को बढ़ाना होगा।
- उच्च आय-उच्च उत्सर्जन वाले देशों की जवाबदेही: विकसित देशों को बढ़ती मानवीय और आर्थिक लागतों पर अंकुश लगाने के लिये शमन कार्यों में तेज़ी लानी चाहिये।
- जलवायु परिवर्तन पर तत्काल कार्रवाई का आह्वान: भविष्य में जलवायु परिवर्तन से संबंधित नुकसानों को बढ़ने से रोकने के लिये अनुकूलन और शमन हेतु समय पर कार्रवाई आवश्यक है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: जलवायु परिवर्तन के आर्थिक प्रभावों और वैश्विक भू-आर्थिक परिदृश्य पर उनके प्रभाव पर चर्चा कीजिये। |
जलवायु जोखिम सूचकांक 2025 | जलवायु परिवर्तन | चरम मौसम
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रारंभिकप्रश्न 1. जलवायु-अनुकूल कृषि (क्लाइमेट-स्मार्ट एग्रीकल्चर) के लिये भारत की तैयारी के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये-
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर:(d) प्रश्न 2. निम्नलिखित में से कौन-सा भारत सरकार के 'हरित भारत मिशन' के उद्देश्य का सबसे अच्छा वर्णन करता है? (2016)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (c) प्रश्न.3 'वैश्विक जलवायु परिवर्तन गठबंधन' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन (यू.एन.एफ.सी.सी.सी.) के सी.ओ.पी. के 26वें सत्र के प्रमुख परिणामों का वर्णन कीजिये। इस सम्मेलन में भारत द्वारा की गई वचनबद्धताएँ क्या हैं? (2021) प्रश्न. 'जलवायु परिवर्तन' एक वैश्विक समस्या है। जलवायु परिवर्तन से भारत कैसे प्रभावित होगा? भारत के हिमालयी और तटीय राज्य जलवायु परिवर्तन से कैसे प्रभावित होंगे? (2017) |
विश्व सामाजिक न्याय दिवस 2025
प्रिलिम्स के लिये:विश्व सामाजिक न्याय दिवस, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO), विमुक्त और खानाबदोश जनजातियाँ (DNTs), मौलिक अधिकार, असमानता, पीएम-अजय, श्रेष्ठ, नमस्ते, स्माइल, पीएम-दक्ष योजना। मेन्स के लिये:विश्व सामाजिक न्याय दिवस और इसका महत्त्व, भारत में सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के लिये उठाए गए कदम। |
स्रोत: पी.आई.बी
चर्चा में क्यों?
प्रतिवर्ष 20 फरवरी को संयुक्त राष्ट्र द्वारा मनाया जाने वाला विश्व सामाजिक न्याय दिवस, समाज के भीतर और उनके बीच एकजुटता, सद्भाव और अवसर की समानता को बढ़ावा देते हुए गरीबी, बहिष्कार और बेरोज़गारी को दूर करने की कार्रवाई के लिये एक वैश्विक आह्वान के रूप में कार्य करता है।
- WDSJ का 2025 का विषय, "सशक्तीकरण समावेशन: सामाजिक न्याय के अंतराल को कम करना है", समावेशी नीतियों और सामाजिक सुरक्षा पर केंद्रित है, जो "एक स्थायी भविष्य के लिये एक न्यायसंगत संक्रमण को मज़बूत करने" के महत्त्व पर प्रकाश डालता है।
विश्व सामाजिक न्याय दिवस क्या है?
- परिचय: सामाजिक न्याय, समानता, मानवाधिकार और सभी के लिये समान अवसर को बढ़ावा देना इस संयुक्त राष्ट्र परियोजना का केंद्र बिंदु है, जिसका नेतृत्व मुख्य रूप से अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) द्वारा किया जाता है।
- इसे संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 26 नवंबर, 2007 को नामित किया गया था।
- सामाजिक न्याय के स्तंभ:
- अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की भूमिका: अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने विश्व सामाजिक न्याय दिवस के उपलक्ष्य में 10 जून, 2008 को निष्पक्ष वैश्वीकरण के लिये सामाजिक न्याय घोषणा-पत्र को सर्वसम्मति से अपनाया।
- यह फिलाडेल्फिया घोषणा-पत्र 1944 और कार्यस्थल पर मौलिक सिद्धांतों और अधिकारों पर घोषणापत्र 1998 का विस्तार है।
- वर्ष 2009 में, ILO ने सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम शुरू किया जिससे निर्धनता की रोकथाम करने अथवा इसे कम करने के लिये बुनियादी सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
- भारत में सामाजिक न्याय: भारत में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय (MoSJE) सुभेद्य समुदायों के उत्थान की नोडल एजेंसी है, जिसमें शामिल हैं:
- अनुसूचित जाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और वरिष्ठ नागरिक
- मद्यव्यसन और पदार्थ दुरुपयोग के शिकार
- ट्रांसजेंडर व्यक्ति, और विमुक्त एवं खानाबदोश जनजातियाँ (DNT),
- आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग (ईबीसी) और आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग (EWS)।
- महत्त्व:
- वैश्वीकरण: घोषणापत्र में वैश्वीकरण में ILO की भूमिका को पुनः परिभाषित किया गया तथा आर्थिक नीतियों में सामाजिक न्याय का केंद्र में होना सुनिश्चित किया गया।
- संयुक्त राष्ट्र के लक्ष्यों के साथ संरेखण: यह सभ्य कार्य, निष्पक्ष वैश्वीकरण, मूल अधिकारों, सामाजिक सुरक्षा और उत्पादक सामाजिक संवाद के संयुक्त राष्ट्र के दृष्टिकोण का समर्थन करता है।
- वैश्विक स्थिरता: वैश्विक शांति और सुरक्षा की दृष्टि से सामाजिक न्याय आवश्यक है, जो श्रम असुरक्षा, असमानता और सामाजिक अनुबंध विसंगतियों के कारण खतरे में है।
- सामाजिक न्याय: सामाजिक न्याय प्राप्त करने के लिये मौलिक स्वतंत्रता, मानवाधिकार और आर्थिक स्थिरता की आवश्यकता होती है।
- चुनौतियाँ: वित्तीय संकट, असुरक्षा, निर्धनता, अपवर्जन और असमानता जैसे निरंतर बने मुद्दे वैश्विक स्तर पर सामाजिक न्याय में बाधा उत्पन्न करते हैं।
सामाजिक न्याय संबंधी भारत में कौन-से संवैधानिक प्रावधान किये गए हैं?
- प्रस्तावना: यह सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय सुनिश्चित करता है, स्थिति और अवसर की समानता की गारंटी देता है और वैयक्तिक गरिमा और राष्ट्रीय एकता को बनाए रखने के लिये बंधुत्व को बढ़ावा देता है।
- मूल अधिकार:
- अनुच्छेद 23: इसके अंतर्गत मानव तस्करी और बलात्श्रम पर प्रतिबंध लगाया गया है तथा ऐसी प्रथाओं को विधि द्वारा दंडनीय बनाया गया है।
- अनुच्छेद 24: इसके अंतर्गत परिसंकटमय व्यवसायों में बालकों के नियोजन को प्रतिबंधित किया गया है तथा बालकों के सुरक्षा और शिक्षा के अधिकारों की रक्षा प्रदान की गई है।
- राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत:
- अनुच्छेद 38: यह राज्य को सामाजिक और आर्थिक असमानताओं को कम करने का निर्देश देता है।
- अनुच्छेद 39: यह समान आजीविका, उचित वेतन और शोषण से सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
- अनुच्छेद 39A: यह वंचित लोगों के लिये निःशुल्क कानूनी सहायता की गारंटी देता है।
- अनुच्छेद 46: यह अनुसूचित जातियों (SC), अनुसूचित जनजातियों (ST) और कमज़ोर वर्गों के लिये विशेष शैक्षिक और आर्थिक संवर्द्धन को अनिवार्य करता है, ताकि भेदभाव को रोका जा सके।
भारत में सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के लिये क्या पहल हैं?
- PM-अजय: प्रधानमंत्री अनुसूचित जाति अभ्युदय योजना (PM-अजय) कौशल विकास, आय सृजन और ग्रामीण बुनियादी ढाँचे के माध्यम से अनुसूचित जाति (SC) के समुदायों को सहायता प्रदान करती है।
- इसके तीन घटक हैं, अर्थात् आदर्श ग्राम विकास, सामाजिक-आर्थिक परियोजनाओं के लिये अनुदान सहायता, तथा उच्च शिक्षा संस्थानों में छात्रावास निर्माण।
- श्रेष्ठ: लक्षित क्षेत्रों में हाईस्कूल के छात्रों के लिये आवासीय शिक्षा योजना (SHRESHTA) कक्षा 9-12 में अनुसूचित जाति के विद्यार्थियों के लिये शीर्ष CBSE/राज्य बोर्ड के विद्यालयों को वित्तपोषित करती है तथा आवासीय और गैर-आवासीय विद्यालयों एवं छात्रावासों को चलाने के लिये गैर सरकारी संगठनों को सहायता प्रदान करती है।
- पर्पल फेस्ट (समावेशन उत्सव): यह दिव्यांगजन के लिये समावेशन, गरिमा और समान अवसरों को बढ़ावा देता है, जिससे एकजुटता और पारस्परिक सम्मान को प्रोत्साहन मिलता है।
- नमस्ते: राष्ट्रीय यांत्रिक स्वच्छता इकोसिस्टम कार्य योजना (नमस्ते) शहरी भारत में सफाई कर्मचारियों की सुरक्षा, सम्मान और स्थायी आजीविका सुनिश्चित करने के लिये एक केंद्रीय योजना है।
- वित्त वर्ष 2024-25 का लक्ष्य समूह के रूप में कचरा बीनने वालों को शामिल करने के लिये इसका विस्तार किया गया।
- स्माइल: आजीविका और उद्यम के लिये हाशिये पर पड़े व्यक्तियों के लिये सहायता (स्माइल) योजना का उद्देश्य ट्रांसजेंडर व्यक्तियों और भीख मांगने में लगे लोगों का पुनर्वास करना है ताकि भिक्षावृत्ति मुक्त भारत बनाया जा सके।
- वर्तमान में इसे 81 शहरों में क्रियान्वित किया जा रहा है और नवंबर 2024 तक 7,660 भिखारियों की पहचान की गई तथा 970 का पुनर्वास किया गया।
- PM-दक्ष योजना: प्रधानमंत्री दक्ष और कुशलता संपन्न हितग्राही (PM-दक्ष) योजना आर्थिक सशक्तीकरण के लिये SC, OBC, EBC, DNT और सफाई कर्मचारियों को मुफ्त कौशल प्रशिक्षण प्रदान करती है।
- नशा मुक्त भारत अभियान (NMBA): इसका उद्देश्य आपूर्ति नियंत्रण (नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो), जागरूकता बढ़ाने और मांग में कमी (MoSJE) और उपचार (स्वास्थ्य मंत्रालय) के माध्यम से 272 उच्च जोखिम वाले ज़िलों को लक्षित करके नशा मुक्त भारत का निर्माण करना है।
- अपने शुभारंभ (15 अगस्त 2020) के बाद से NMBA के तहत 13.57 करोड़ लोगों को लाभ दिया गया है, जिसमें 4.42 करोड़ युवा शामिल हैं तथा इसमें 3.85 लाख शैक्षणिक संस्थान भाग ले रहे हैं।
निष्कर्ष
सामाजिक न्याय के प्रति भारत के प्रयास संवैधानिक प्रावधानों एवं सामाजिक-आर्थिक विषमताओं को संबोधित करने वाली लक्षित योजनाओं में निहित हैं। समावेशी नीतियों, कौशल विकास और पुनर्वास कार्यक्रमों को बढ़ावा देने के माध्यम से सरकार का लक्ष्य हाशिये पर स्थित समुदायों का उत्थान करना एवं सम्मान तथा समानता के साथ स्थायी आजीविका सुनिश्चित करना है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: भारत में संवैधानिक प्रावधान सामाजिक न्याय में किस प्रकार भूमिका निभाते हैं? प्रमुख सरकारी पहलों के उदाहरणों के साथ चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न: मूल अधिकारों के अतिरिक्त भारत के संविधान का निम्नलिखित में से कौन-सा/से भाग मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा, 1948 (Universal Declaration of Human Rights,1948) के सिद्धांतों एवं प्रावधानों को प्रतिबिंबित करता/करते है/हैं? (2020)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और उत्तर: (d) प्रश्न. भारत लाखों दिव्यांग व्यक्तियों का घर है। कानून के अंतर्गत उन्हें क्या लाभ उपलब्ध हैं? (2011)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: d मेन्स:प्रश्न: क्या दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 समाज में इच्छित लाभार्थियों के सशक्तीकरण और समावेशन हेतु प्रभावी तंत्र सुनिश्चित करता है? चर्चा कीजिये। (2017) |
भारत के अंतर्देशीय जलमार्ग
प्रिलिम्स के लिये:PM गति शक्ति, राष्ट्रीय जलमार्ग, भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण, मल्टी-मॉडल लॉजिस्टिक्स पार्क, PM मित्र पार्क, मेगा फूड पार्क मेन्स के लिये:भारत के परिवहन नेटवर्क में अंतर्देशीय जलमार्गों की भूमिका, बुनियादी ढाँचा और विकास |
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने असम के जोगीघोपा में अंतर्देशीय जलमार्ग परिवहन (IWT) टर्मिनल के उद्घाटन की सराहना की तथा वस्तु परिवहन के लिये भारत के विशाल अंतर्देशीय जलमार्गों (लगभग 14,500 किमी नौगम्य जलमार्ग) की क्षमता पर प्रकाश डाला।
जोगीघोपा के अंतर्देशीय जलमार्ग परिवहन टर्मिनल के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?
- IWT टर्मिनल: यह असम में ब्रह्मपुत्र नदी (राष्ट्रीय जलमार्ग-2) पर स्थित है।
- राष्ट्रीय जलमार्ग अधिनियम, 1988 के अंतर्गत बांग्लादेश सीमा (धुबरी) से असम में ब्रह्मपुत्र नदी के सदिया (891 किमी) को राष्ट्रीय जलमार्ग-2 घोषित किया गया।
- महत्त्व: जोगीघोपा IWT टर्मिनल PM गति शक्ति के अनुरूप होने के साथ आर्थिक विकास के क्रम में अंतर्देशीय जलमार्गों को बढ़ावा देने पर केंद्रित है।
- यह भूटान और बांग्लादेश के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय बंदरगाह के रूप में कार्य करता है, जो जोगीघोपा में मल्टी-मॉडल लॉजिस्टिक्स पार्क (MMLP) से जुड़ता है, जिससे असम और पूर्वोत्तर में वस्तुओं की आवाजाही तथा रसद को बढ़ावा मिलता है।
- इससे पड़ोसी देशों के साथ व्यापार और वाणिज्य को बढ़ावा मिलता है। परिवहन लागत और पारगमन समय कम होता है।
- भारत की एक्ट ईस्ट नीति को मज़बूत करता है। सड़क, रेल और जलमार्गों को एकीकृत करके मल्टी-मॉडल कनेक्टिविटी में सुधार करता है। भूटान के लिये सीधे जलमार्ग पहुँच प्रदान करता है, जिससे सड़क नेटवर्क पर निर्भरता कम होती है।
अंतर्देशीय जलमार्ग परिवहन क्या है?
- परिचय: इसका तात्पर्य नदियों, नहरों, झीलों और अन्य अंतर्देशीय जल निकायों जैसे नौगम्य जलमार्गों पर लोगों और वस्तुओं की आवाजाही से है।
- विधायी ढाँचा:
- भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण अधिनियम, 1985: वर्ष 1986 में भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (IWAI) के गठन का मार्ग प्रशस्त हुआ।
- IWAI एक स्वायत्त संगठन है, जो राष्ट्रीय जलमार्गों के विकास, रखरखाव और विनियमन के लिये ज़िम्मेदार है।
- राष्ट्रीय जलमार्ग अधिनियम, 2016: उन्नत नौवहन और नौवहन के लिये 111 अंतर्देशीय जलमार्गों को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया गया।
- अंतर्देशीय पोत अधिनियम, 2021: अंतर्देशीय पोत अधिनियम, 1917 को प्रतिस्थापित किया गया, अंतर्देशीय पोतों के लिये एक समान नियम पेश किये गए, जिससे पूरे भारत में सुरक्षा, नेविगेशन और अनुपालन सुनिश्चित हुआ।
- राष्ट्रीय जलमार्ग होने के मानदंड: किसी जलमार्ग को राष्ट्रीय जलमार्ग माने जाने के लिये उसकी लंबाई 50 कि.मी. होनी चाहिये तथा उस पर शक्तिशाली जहाज़ों का आवागमन हो सके (शहरी क्षेत्रों और अंतर-बंदरगाह यातायात को छोड़कर)।
- इसे एकाधिक राज्यों की सेवा करनी चाहिये या समृद्ध आंतरिक क्षेत्रों या प्रमुख बंदरगाहों को जोड़ना चाहिये या राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये रणनीतिक नौवहन का समर्थन करना चाहिये या ऐसे क्षेत्रों को जोड़ना चाहिये जहाँ अन्य परिवहन साधनों की कमी हो।
- भारत में अंतर्देशीय जलमार्गों की वृद्धि: वर्ष 2014 के बाद से संचालित राष्ट्रीय जलमार्गों में 767% की वृद्धि और माल ढुलाई में 635% की वृद्धि हुई है।
- कार्गो यातायात 18 मिलियन टन से बढ़कर 133 मिलियन टन (वित्त वर्ष 2023-24) हो गया, जिसमें 22% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) रही।
- सरकारी पहल: समुद्री भारत विज़न 2030, सागरमाला कार्यक्रम, और नदियों को जोड़ने के लिये राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना।
- भारत में प्रमुख राष्ट्रीय जलमार्ग:
राष्ट्रीय जलमार्ग (NW) संख्या |
स्थान |
NW-1: गंगा-भागीरथी-हुगली नदी तंत्र (हल्दिया-इलाहाबाद) |
उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल |
NW-3: वेस्ट कोस्ट नहर (कोट्टापुरम-कोल्लम), चंपकारा और उद्योगमंडल नहरें |
केरल |
NW-4: कृष्णा नदी (मुक्तियाला - विजयवाड़ा) |
आंध्र प्रदेश |
NW-10: अंबा नदी |
महाराष्ट्र |
NW-68: मांडवी नदी (उसगाँव ब्रिज से अरब सागर तक) |
गोवा |
NW-73: नर्मदा नदी |
गुजरात, महाराष्ट्र |
NW-100: तापी नदी |
गुजरात, महाराष्ट्र |
NW-97: सुंदरबन जलमार्ग |
पश्चिम बंगाल (भारत-बाँग्लादेश प्रोटोकॉल मार्ग के माध्यम से) |
भारत में अंतर्देशीय जल परिवहन (IWT) विकसित करने के लाभ और चुनौतियाँ क्या हैं?
श्रेणी |
लाभ |
चुनौतियाँ |
लागत क्षमता |
लागत प्रभावी और ईंधन कुशल परिवहन मोड |
अधिक गाद जमाव और बालूकरण (शोल निर्माण) से रखरखाव लागत बढ़ जाती है। |
पर्यावरणीय प्रभाव |
न्यून कार्बन उत्सर्जन और पर्यावरण अनुकूल परिवहन |
मौसम में उतार-चढ़ाव (कई नदियों की गहराई उथली होती है) और ड्रेजिंग से नदी के तल, जलीय जीवन पर प्रभाव पड़ता है, तथा पारिस्थितिकीय चिंताओं के कारण सामुदायिक प्रतिरोध उत्पन्न होता है। |
यातायात में कमी |
सड़कों और रेलमार्गों पर बोझ कम होता है |
पर्याप्त नौवहन सहायता और जलमार्ग परिवहन टर्मिनलों का अभाव |
व्यापार एवं संपर्क |
घरेलू और सीमा पार व्यापार को बढ़ावा देता है (जैसे, भारत-बाँग्लादेश प्रोटोकॉल मार्ग) |
असंगत जल प्रवाह, क्योंकि इसका प्रमुख हिस्सा सिंचाई और औद्योगिक उपयोग के लिये मोड़ दिया जाता है। |
क्षेत्रीय विकास |
दूरवर्ती क्षेत्रों में आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलता है |
अपर्याप्त जेटी और बंदरगाहों सहित बुनियादी ढाँचे का अभाव |
पर्यटन संभावना |
नदी पर्यटन और क्रूज़ उद्योग को बढ़ावा मिलता है |
बड़े जलयानों अथवा जहाज़ों के लिये पुल और ऊर्ध्वाधर निकासी संबंधी मुद्दे |
निजी निवेश |
बहु-मॉडल परिवहन एकीकरण को प्रोत्साहित करता है |
निजी क्षेत्र की सीमित भागीदारी और निवेश |
आगे की राह
- कार्गो और यात्री आवागमन: कार्गो आवागमन को बढ़ावा देने के लिये पीएम मित्र पार्क और मेगा फूड पार्क जैसे आर्थिक क्षेत्रों के साथ अंतर्देशीय जलमार्गों को एकीकृत किये जाने की आवश्यकता है। क्रूज़ भारत मिशन के माध्यम से यात्री परिवहन को बढ़ाने के लिये क्रूज़ पर्यटन का विकास किया जाना चाहिये।
- प्रमुख राष्ट्रीय जलमार्गों पर प्रोत्साहन और निर्धारित अनुसूचित सेवाओं के साथ जलवाहक योजना के अंतर्गत माल के आवागमन को बढ़ावा देना चाहिये।
- वित्तीय एवं नीतिगत सहायता: अंतर्देशीय जलमार्ग के विकास हेतु निधि जुटाने, जलमार्ग संबंधी बुनियादी ढाँचे का वर्द्धन करने, नदी सामुदायिक विकास योजना के माध्यम से पारंपरिक नौवहन प्रथाओं का संरक्षण करने की आवश्यकता है।
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी: वित्तीय प्रोत्साहन और कर लाभ प्रदान कर टर्मिनल विकास, पोत निर्माण और कार्गो हैंडलिंग में निजी निवेश को आकर्षित करना चाहिये।
- सतत् विकास: हरित जहाज़ों को अपनाना, तथा सतत् ड्रेजिंग तकनीकें पर्यावरण अनुकूल अंतर्देशीय जलमार्ग विकास के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- इन उपायों से प्रदूषण कम होगा, जलीय पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा होगी तथा पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखते हुए दीर्घकालिक नौवहन सुनिश्चित होगा।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. अंतर्देशीय जलमार्ग का भारत के बहु-मॉडल परिवहन नेटवर्क में किस प्रकार योगदान हो सकता है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. भारत में अंतर्देशीय जल परिवहन की समस्याओं और संभावनाओं का उल्लेख कीजिये। (2016) |