भूगोल
UNCCD का ड्रॉट एटलस
- 11 Dec 2024
- 11 min read
प्रिलिम्स के लिये:UNCCD COP16, मरुस्थलीकरण से निपटने हेतु संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (UNCCD), शीतकालीन मानसून। मेन्स के लिये:मरुस्थलीकरण और भूमि क्षरण का मुद्दा और इस मुद्दे से निपटने के लिये कदम। |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
रियाद में आयोजित UNCCD COP16 में मरुस्थलीकरण से निपटने के लिये संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCCD) और यूरोपीय आयोग के संयुक्त अनुसंधान केंद्र ने वर्ल्ड ड्रॉट एटलस जारी किया, जो सूखे के जोखिम तथा समाधान पर एक व्यापक वैश्विक प्रकाशन है।
मरुस्थलीकरण से निपटने हेतु संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (UNCCD) क्या है?
- इसे वर्ष 1994 में स्थापित किया गया था, जो पर्यावरण और विकास को स्थायी भूमि प्रबंधन से जोड़ने वाला एकमात्र कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय समझौता है।
- यह शुष्क, अर्द्ध-शुष्क और शुष्क उप-आर्द्र क्षेत्रों पर केंद्रित है, जिन्हें शुष्क भूमि के रूप में जाना जाता है, जिनमें कुछ सबसे कमज़ोर पारिस्थितिकी तंत्र और समुदाय शामिल हैं।
- सम्मेलन के 197 सदस्य देश शुष्क भूमि में जीवन की स्थिति सुधारने, भूमि और मृदा की उत्पादकता बहाल करने तथा सूखे के प्रभावों को कम करने के लिये मिलकर काम करते हैं।
- UNCCD भूमि, जलवायु और जैव विविधता के परस्पर जुड़े मुद्दों के समाधान के लिये अन्य दो रियो कन्वेंशनों के साथ सहयोग करता है:
- जैव विविधता पर कन्वेंशन (CBD)
- जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC)
UNCCD के ड्रॉट एटलस के प्रमुख निष्कर्ष क्या हैं?
- सूखे के जोखिम की प्रणालीगत प्रकृति: सूखा एक प्रणालीगत जोखिम है जो वैश्विक स्तर पर कई क्षेत्रों को प्रभावित करता है। यह अनुमान है कि यदि वर्तमान रुझान जारी रहे तो वर्ष 2050 तक विश्व की 75% आबादी (लगभग 4 में से 3 लोग) सूखे की स्थिति से प्रभावित होंगे।
- वर्ष 2022 और 2023 में 1.84 बिलियन लोग (विश्व स्तर पर लगभग 4 में से 1) सूखे से प्रभावित हुए, जिनमें से लगभग 85% निम्न और मध्यम आय वाले देशों के थे।
- आर्थिक परिणाम: सूखे से कृषि, ऊर्जा उत्पादन और व्यापार पर गंभीर असर पड़ सकता है। UNCCD का दावा है कि सूखे के कारण होने वाले नुकसान की आर्थिक लागत 2.4 गुना कम आंकी गई है, जो प्रति वर्ष 307 बिलियन अमेरिकी डॉलर है।
- भारत में सूखे की संवेदनशीलता: भारत अपनी विविध जलवायु परिस्थितियों और कृषि के लिये मानसून की वर्षा पर निर्भरता के कारण सूखे के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील है।
- एटलस इस बात पर जोर देता है कि भारत की लगभग 60% कृषि भूमि वर्षा पर निर्भर है, जिससे वर्षा के पैटर्न में उतार-चढ़ाव के प्रति यह अतिसंवेदनशील है।
- दक्षिण भारत में वर्ष 2016 का सूखा ग्रीष्म और शीत मानसून दोनों के दौरान असाधारण रूप से कम वर्षा के कारण था।
- तेज़ी से बढ़ते शहरीकरण के कारण चेन्नई जैसे शहरों में जल प्रबंधन में गड़बड़ी हो गई है, जिसके कारण पर्याप्त वर्षा के बावजूद गंभीर संकट उत्पन्न हो गया है।
- UNCCD की रिपोर्ट में सूखे और संसाधनों के ह्रास के लिये मानवीय गतिविधियों और कभी-कभी वर्षा की कमी को ज़िम्मेदार ठहराया गया है।
सूखा क्या है?
- परिचय:
- सूखा जल की उपलब्धता में उल्लेखनीय कमी की अवधि है, जिससे जल की आपूर्ति, गुणवत्ता और मांग में असंतुलन उत्पन्न होता है। यह अवधि संक्षिप्त या वर्षों तक चल सकती है, जिससे पौधों की वृद्धि प्रभावित होती है और भूजल स्तर कम हो जाता है।
- वे कम वर्षा जैसे जलवायु कारकों के साथ-साथ जल निकासी, उपयोग और भूमि प्रबंधन जैसी मानवीय गतिविधियों से उत्पन्न होते हैं।
- मौसम के पैटर्न के कारण सूखा स्वाभाविक रूप से हो सकता है, लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण इसकी आवृत्ति और गंभीरता बढ़ रही है।
- सूखा जल की उपलब्धता में उल्लेखनीय कमी की अवधि है, जिससे जल की आपूर्ति, गुणवत्ता और मांग में असंतुलन उत्पन्न होता है। यह अवधि संक्षिप्त या वर्षों तक चल सकती है, जिससे पौधों की वृद्धि प्रभावित होती है और भूजल स्तर कम हो जाता है।
- भारत में सूखे की स्थिति:
- भारतीय सूखा एटलस (1901-2020) के अनुसार, भारत का लगभग दो-तिहाई हिस्सा सूखे की चपेट में है। 1.4 बिलियन लोगों वाले कृषि-आधारित राष्ट्र में सूखे से कृषि उत्पादकता पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है।
- वर्ष 1901 से 2020 के बीच भारत के लगभग 56% क्षेत्र में मध्यम से लेकर असाधारण सूखे की स्थिति रही, जिससे 300 मिलियन लोग और 150 मिलियन मवेशी प्रभावित हुए।
- इसके अतिरिक्त फसल क्षति (1901 और 2020 के बीच) से लगभग 8.7 बिलियन अमरीकी डॉलर का अनुमानित आर्थिक नुकसान हुआ, जिससे कृषि GDP में 3.1% की कमी आई।
- भारतीय सूखा एटलस (1901-2020) के अनुसार, भारत का लगभग दो-तिहाई हिस्सा सूखे की चपेट में है। 1.4 बिलियन लोगों वाले कृषि-आधारित राष्ट्र में सूखे से कृषि उत्पादकता पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है।
- सूखे से निपटने के लिये उठाए गए कदम:
- एकीकृत सूखा प्रबंधन कार्यक्रम वैश्विक जल साझेदारी (Global Water Partnership- GWP) और विश्व जल संगठन के बीच एक संयुक्त पहल है।
- यह कार्यक्रम नीतिगत, तकनीकी और प्रबंधन मार्गदर्शन प्रदान करके तथा वैज्ञानिक ज्ञान एवं सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करके सूखा प्रबंधन के कार्यान्वयन में सरकारों व हितधारकों की सहायता करता है।
- UNCCD की सूखा पहल सूखा की तैयारी प्रणालियों की स्थापना पर जोर देती है।
- प्रतिवर्ष 17 जून को विश्व मरुस्थलीकरण एवं सूखा रोकथाम दिवस (World Day to Combat Desertification and Drought- WDCDD) के रूप में मनाया जाता है।
- एकीकृत सूखा प्रबंधन कार्यक्रम वैश्विक जल साझेदारी (Global Water Partnership- GWP) और विश्व जल संगठन के बीच एक संयुक्त पहल है।
- UNCCD की सूखा सहनशीलता, अनुकूलन और प्रबंधन नीति (DRAMP) रूपरेखा, सूखा जोखिमों को समझने, आँकड़े एकत्र करने, समान समाधान तैयार करने हेतु सतत् विज्ञान-नीति सहयोग का समर्थन करती है, ताकि अर्थव्यवस्थाओं, समाजों तथा पारिस्थितिकी प्रणालियों के लिये लचीलापन सुनिश्चित किया जा सके।
वर्ल्ड डेजर्ट एटलस की प्रमुख सिफारिशें क्या हैं?
- शासन:
- देशों को सूखे की घटनाओं के विरुद्ध तैयारी और लचीलेपन को बढ़ाने के लिये व्यापक राष्ट्रीय सूखा योजनाएँ विकसित तथा क्रियान्वित करनी चाहिये।
- सीमाओं के पार सूखे के जोखिम को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिये ज्ञान, संसाधनों और सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने हेतु अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को मज़बूत करना आवश्यक है।
- छोटे किसानों के लिये सूक्ष्म बीमा जैसे वित्तीय तंत्र विकसित करने से सूखे से प्रभावित कमज़ोर आबादी को सुरक्षा कवच प्रदान किया जा सकता है।
- भूमि उपयोग प्रबंधन:
- सतत् कृषि पद्धतियाँ, जैसे कि वनरोपण, मृदा संरक्षण, फसल विविधीकरण और कृषि वानिकी के माध्यम से भूमि पुनरुद्धार, सूखे के विरुद्ध लचीलापन बनाने के लिये आवश्यक हैं।
- ये उपाय अपवाह को कम करते हैं और तूफानी जल प्रतिधारण को बढ़ाते हैं, मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार करते हैं, पशुओं के लिये छाया प्रदान करते हैं और वाष्पोत्सर्जन को कम करते हैं, जिससे वनस्पतियों की सूखे के प्रति लचीलापन मज़बूत होता है।
- जल आपूर्ति एवं उपयोग का प्रबंधन:
- बुनियादी ढाँचे में निवेश: जल आपूर्ति और प्रबंधन हेतु बुनियादी ढाँचे में निवेश बढ़ाना, जैसे अपशिष्ट जल का पुनः उपयोग तथा भूजल पुनर्भरण प्रणाली, सूखे के दौरान जल सुरक्षा बढ़ाने के लिये आवश्यक है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: चर्चा कीजिये कि सामाजिक-आर्थिक कारक भारत में सूखा सहनशीलता को किस प्रकार प्रभावित करते हैं तथा भविष्य में सूखे के विरुद्ध तैयारी में सुधार के लिये कार्यान्वयन योग्य रणनीति सुझाइये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQ)मेन्स:प्रश्न: सूखे को उसके स्थानिक विस्तार, कालिक अवधि, मंथर प्रारंभ और कमज़ोर वर्गों पर स्थायी प्रभावों की दृष्टि से आपदा के रूप में मान्यता दी गई है। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एन.डी.एम.ए.) के सितंबर 2010 मार्गदर्शी सिद्धातों पर ध्यान केंद्रित करते हुए भारत में एल नीनो और ला नीना के सम्भावित दुष्प्रभावों से निपटने के लिये तैयारी की कार्यविधियों पर चर्चा कीजिये। (2014) |