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जैव विविधता और पर्यावरण

विश्व मरुस्थलीकरण और सूखा रोकथाम दिवस

  • 18 Jun 2022
  • 12 min read

चर्चा में क्यों? 

प्रत्येक वर्ष 17 जून को विश्व मरुस्थलीकरण और सूखा रोकथाम दिवस (World Day to Combat Desertification and Drought) का आयोजन किया जाता है। 

  • इसी परिप्रेक्ष्य में 17 जून, 2022 को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) द्वारमरुस्थलीकरण और सूखा रोकथाम दिवस का आयोजन किया गया। 
    • इस मौके पर केंद्रीय मंत्री ने भारत के लिये वन प्रबंधन परिषद वन प्रबंधन मानक (FCI FSSAI) जारी किये। 
      • FSC विश्व स्तर पर एक मान्यता प्राप्त प्रमाणन प्रणाली है जो लकड़ी से संबंधित उत्पादों से जुड़ी कंपनियों के ऑडिट के लिये मानदंड निर्धारित करती है। 

इस विश्व दिवस की मुख्य विशेषताएंँ:  

  • परिचय: 
    • यह सभी को इस बात की याद दिलाने का एक अनूठा क्षण है कि भूमि क्षरण तटस्थता समस्या का समाधान मजबूत सामुदायिक भागीदारी और सभी स्तरों पर सहयोग के माध्यम से किया जा सकता है। 
  • वर्ष 2022 की थीम: "एक साथ सूखे से निपटना" 
    • यह मानवता और ग्रहीय पारिस्थितिक तंत्र के विनाशकारी परिणामों से बचने हेतु शीघ्र कार्रवाई की आवश्यकता पर ज़ोर देता है। 

Drought-Together

  • महत्त्व: 
    • वर्ष 1992 के रियो पृथ्वी सम्मलेन के दौरान जलवायु परिवर्तन और जैवविविधता के नुकसान के साथ मरुस्थलीकरण को सतत् विकास के लिये सबसे बड़ी चुनौतियों के रूप में पहचाना गया था। 
    • दो साल बाद वर्ष1994 में महासभा ने संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन टू कॉम्बैट डेज़र्टिफिकेशन (UNCCD) की स्थापना की, जो पर्यावरण और विकास को स्थायी भूमि प्रबंधन से जोड़ने वाला एकमात्र कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय समझौता है तथा 17 जून को "विश्व मरुस्थलीकरण एवं सूखा रोकथाम दिवस" घोषित किया गया। . 
    • बाद में वर्ष 2007 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2010-2020 को मरुस्थलीकरण के लिये संयुक्त राष्ट्र दशक और UNCCD सचिवालय के नेतृत्व में भूमि क्षरण से लड़ने हेतु वैश्विक सहयोग जुटाने को मरुस्थलीकरण के खिलाफ लड़ाई की घोषणा की। 

मरुस्थलीकरण: 

  • शुष्क, अर्द्ध-शुष्क और शुष्क उप-आर्द्र क्षेत्रों में भूमि का क्षरण होता है। यह मुख्य रूप से मानव गतिविधियों और जलवायु परिवर्तन के कारण होता है। 
  • यह मौजूदा रेगिस्तानों के विस्तार का उल्लेख नहीं करता है। ऐसा इसलिये है क्योंकि शुष्क भूमि पारिस्थितिक तंत्र जो दुनिया के एक-तिहाई से अधिक भूमि क्षेत्र को कवर करते हैं, अतिदोहन और अनुचित भूमि उपयोग के कारण बेहद संवेदनशील हैं। 
  • इसके अतिरिक्त गरीबी, राजनीतिक अस्थिरता, वनों की कटाई, अत्यधिक चराई और खराब सिंचाई प्रथाएंँ आदि सभी भूमि की उत्पादकता को कम कर सकती हैं। 

सूखा: 

  • सूखे को दीर्घ अवधि में वर्षा/वर्षा में कमी के रूप में माना जाता है, आमतौर पर एक मौसम या उससे अधिक, जिसके परिणामस्वरूप जल की कमी होती है, का वनस्पति, जानवरों और/या लोगों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। 
  • वनाग्नि के कारण भी सूखा पड़ सकता है, जिससे मिट्टी खेती के लिये अनुपयुक्त हो जाती है और मृदा में जल की कमी हो जाती है। 
  • जलवायु परिवर्तन के अलावा भूमि क्षरण के परिणामस्वरूप सूखे में वृद्धि होती है। 

मरुस्थलीकरण और सूखे की स्थिति: 

  • पिछले दो दशकों (विश्व मौसम विज्ञान संगठन 2021) की तुलना में वर्ष 2000 से सूखे की घटनाओं और अवधि में 29% की वृद्धि हुई है। 
  • 55 मिलियन आबादी हर साल सूखे के कारण प्रभावित होती है और वर्ष 2050 तक तीन-चौथाई आबादी के प्रभावित होने की आशंका है। 
  • 2.3 अरब लोग पहले से ही जल संकट का सामना कर रहे हैं। हम में से अधिक से अधिक लोग जल की अत्यधिक कमी वाले क्षेत्रों में रह रहे होंगे, जिसमें वर्ष 2040 तक अनुमानित चार बच्चों में से एक (संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय बाल आपातकालीन कोष) शामिल होगा। इस प्रकार कोई भी देश सूखे से सुरक्षित नहीं है (यूएन-वाटर 2021)। 

उपाय

  • त्वरित वनीकरण और वृक्षारोपण की आवश्यकता। 
  • जल प्रबंधन- उपचारित जल की बचत, पुन: उपयोग, वर्षा जल संचयन, विलवणीकरण या लवणीय पौधों के लिये समुद्री जल का प्रत्यक्ष उपयोग। 
  • रेत की बाड़, हवा के झोंकों आदि से होने वाले मृदा क्षरण को रोकना।  
  • मिट्टी के समृद्ध और अति उर्वरीकरण की आवश्यकता।  
  • फार्मर मैने नेचुरल रीजेनरेशन (FMNR),  टहनियों की चयनात्मक छँटाई के माध्यम से अंकुरित वृक्षों की वृद्धि को सक्षम बनाता है। पेड़ों की छँटाई से उपलब्ध अवशेषों का उपयोग खेतों को मल्चिंग प्रदान करने के लिये किया जा सकता है जिससे मिट्टी में पानी की अवधारण क्षमता बढ़ जाती है और वाष्पीकरण कम हो जाता है। 

संयुक्‍त राष्‍ट्र मरुस्‍थलीकरण रोकथाम कन्‍वेंशन (UNCCD): 

  • वर्ष 1994 में स्थापित यह पर्यावरण और विकास को स्थायी भूमि प्रबंधन से जोड़ने वाला एकमात्र कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय समझौता है। 
  • यह विशेष रूप से उन शुष्क, अर्द्ध-शुष्क और शुष्क उप-आर्द्र क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करता है, जिन्हें शुष्क भूमि के रूप में जाना जाता है, इन स्थानों पर सबसे कमज़ोर पारिस्थितिक तंत्र पाए जाते हैं।  
  • कन्वेंशन की 197 पार्टियाँ शुष्क भूमि में लोगों के रहने की स्थिति में सुधार, भूमि और मिट्टी की उत्पादकता को बनाए रखने एवं बहाल करने तथा सूखे के प्रभाव को कम करने के लिये मिलकर काम करती हैं। 
  • यह विशेष रूप से अधोस्तरीय दृष्टिकोण के लिये प्रतिबद्ध है, जो मरुस्थलीकरण और भूमि क्षरण से निपटने में स्थानीय लोगों की भागीदारी को प्रोत्साहित करता है। UNCCD सचिवालय विकसित और विकासशील देशों के बीच सहयोग की सुविधा प्रदान करता है, विशेष रूप से स्थायी भूमि प्रबंधन के लिये ज्ञान एवं प्रौद्योगिकी हस्तांतरण हेतु। 
  • एक एकीकृत दृष्टिकोण और प्राकृतिक संसाधनों के सर्वोत्तम संभव उपयोग के साथ इन जटिल चुनौतियों का सामना करने के लिये भूमि, जलवायु  जैव विविधता की गतिशीलता घनिष्ठ रूप से जुड़ी हुई है। UNCCD अन्य दो रियो सम्मेलनों के साथ मिलकर सहयोग करता है: 
    • जैविक विविधता पर कन्वेंशन (CBD) 
    • जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) 
  • यूएनसीसीडी 2018-2030 सामरिक फ्रेमवर्क: 
    • यह भूमि क्षरण तटस्थता प्राप्त करने के लिये सबसे व्यापक वैश्विक प्रतिबद्धता है, ताकि निम्नीकृत भूमि के विशाल विस्तार की उत्पादकता को बहाल किया जा सके, 1.3 बिलियन से अधिक लोगों की आजीविका में सुधार किया जा सके और कमज़ोर आबादी पर सूखे के प्रभाव को कम किया जा सके। 
  • यूएनसीसीडी और सतत् विकास: 
    • सतत् विकास लक्ष्यों (SDG), 2030 का लक्ष्य 15 घोषित करता है कि "हम ग्रह को क्षरण से बचाने हेतु दृढ़ संकल्पित हैं, जिसमें स्थायी खपत और उत्पादन, इसके प्राकृतिक संसाधनों का सतत् प्रबंधन तथा जलवायु परिवर्तन पर तत्काल कार्रवाई करना शामिल है, ताकि वर्तमान एवं भविष्य की पीढ़ियों की ज़रूरतों को पूरा किया जा सके’’। 

अन्य संबंधित पहलें: 

  • राष्ट्रीय पहल: 
    • एकीकृत वाटरशेड प्रबंधन कार्यक्रम: 
      • इसका उद्देश्य ग्रामीण रोज़गार के सृजन के साथ प्राकृतिक संसाधनों का दोहन, संरक्षण और विकास कर पारिस्थितिक संतुलन को बहाल करना है। अब इसे प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के अंतर्गत सम्मिलित किया गया है जिसे नीति आयोग द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।
    • मरुस्थल विकास कार्यक्रम: 
      • इसे वर्ष 1995 में सूखे के प्रतिकूल प्रभाव को कम करने और पहचाने गए रेगिस्तानी क्षेत्रों के प्राकृतिक संसाधन आधार को फिर से जीवंत करने हेतु शुरू किया गया था। 
    • हरित भारत के लिये राष्ट्रीय मिशन: 
      • इसे वर्ष 2014 में 10 वर्ष की समय-सीमा के साथ भारत के घटते वन आवरण की रक्षा, पुनर्स्थापना और वनों के विस्तार के उद्देश्य से अनुमोदित किया गया था। 
  • वैश्विक पहल: 
    • बॉन चुनौती (Bonn Challenge) 
      • बॉन चुनौती एक वैश्विक प्रयास है। इसके तहत दुनिया की 150 मिलियन हेक्टेयर गैर-वनीकृत एवं बंजर भूमि पर वर्ष 2020 तक और 350 मिलियन हेक्टेयर भूमि पर वर्ष 2030 तक वनस्पतियाँ उगाई जाएंगी। 
      • पेरिस में आयोजित संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन, 2015 में भारत ने स्वैच्छिक रूप से बॉन चुनौती पर स्वीकृति दी थी। 
        • वर्तमान में 26 लाख हेक्टेयर खराब पड़ी भूमि को बहाल करने का लक्ष्य संशोधित किया गया है   

स्रोत: पी.आई.बी.  

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