जैव विविधता और पर्यावरण
जलवायु समुत्थानशीलता की ओर भारत का मार्ग
- 04 Nov 2024
- 36 min read
यह संपादकीय 01/11/2024 को हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित “ Why climate adaptation can’t wait any longer” पर आधारित है। यह लेख जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ जलवायु अनुकूलन की तत्काल आवश्यकता पर ज़ोर देता है और पीएम सूर्य घर योजना जैसी नवोन्मेषी, दोहरे उद्देश्यों वाली पहलों के माध्यम से वैश्विक दक्षिण के लिये एक मॉडल बनने में भारत की अग्रणी भूमिका की क्षमता को रेखांकित करता है।
प्रिलिम्स के लिये:जलवायु अनुकूलन, पीएम सूर्य घर योजना, ग्रीनहाउस गैसें, जलवायु संबंधी नुकसान, विश्व आर्थिक मंच, विश्व प्रवास रिपोर्ट 2024, जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना, बजट 2024-25, जलवायु लचीला कृषि में राष्ट्रीय नवाचार, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, जल जीवन मिशन, अटल भूजल योजना, स्मार्ट सिटीज़ मिशन, अमृत 2.0 , नवीकरणीय ऊर्जा कार्यक्रम, सॉवरेन ग्रीन बॉण्ड। मेन्स के लिये:जलवायु अनुकूलन का महत्त्व, जलवायु अनुकूलन की दिशा में भारत की प्रगति, जलवायु अनुकूलन में भारत के लिये प्रमुख चुनौतियाँ। |
वैश्विक तापमान में वृद्धि और चरम मौसम की तीव्रता के साथ, जलवायु अनुकूलन अब शमन के समान ही महत्त्वपूर्ण है। संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि अगले 15 वर्षों में 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा पार हो सकती है, जिससे भारत जैसे देशों को जोखिमों का सामना करना पड़ सकता है। सीमित अंतर्राष्ट्रीय जलवायु वित्त के बीच, भारत अनुकूलन को शमन के साथ जोड़ने वाले समाधान विकसित कर नेतृत्व कर सकता है। जैसे-जैसे बाकू में COP नज़दीक आ रहा है, पीएम सूर्य घर योजना जैसी भारत की पहल वैश्विक दक्षिण के लिये एक मॉडल के रूप में काम कर सकती है।
जलवायु अनुकूलन और जलवायु शमन क्या है?
- जलवायु अनुकूलन: जलवायु अनुकूलन वास्तविक या अपेक्षित जलवायु और उसके प्रभावों के साथ समायोजन की प्रक्रिया को संदर्भित करता है। इसमें जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसान को कम करने के लिये सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय प्रथाओं में बदलाव करना शामिल होता है।
- जलवायु अनुकूलन के उदाहरणों में बाढ़ सुरक्षा का निर्माण, सूखा प्रतिरोधी फसलों का विकास, जल प्रबंधन प्रणालियों में सुधार और प्राकृतिक आपदाओं के लिये पूर्व चेतावनी प्रणाली लागू करना शामिल होता है।
- जलवायु शमन: जलवायु शमन में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने या रोकने के प्रयास शामिल हैं। इसका उद्देश्य ग्लोबल वार्मिंग को सीमित कर जलवायु परिवर्तन के मूल कारणों का समाधान करना है।
- जलवायु शमन रणनीतियों के उदाहरणों में सौर और पवन ऊर्जा को अपनाना, ऊर्जा-कुशल उपकरणों को बढ़ावा देना, पुनर्वनीकरण एवं जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करना शामिल है।
जलवायु अनुकूलन, जलवायु शमन जितना ही महत्त्वपूर्ण क्यों है?
- निकटवर्ती प्रभावों की अपरिहार्यता: पृथ्वी पहले ही 1.1°C तक गर्म हो चुकी है और यहाँ तक कि उत्सर्जन में तत्कालिक कटौती भी आने वाले दशकों में होने वाले कुछ जलवायु प्रभावों को रोक नहीं सकती है।
- इन गंभीर परिवर्तनों से बचने के लिये कमज़ोर समुदायों को तत्काल अनुकूलन रणनीतियों की आवश्यकता है।
- वर्ष 2023 में रिकॉर्ड उच्च तापमान के कारण वर्ष 2030 तक 32 मिलियन से 132 मिलियन लोगों के लिये गरीबी का खतरा बढ़ जाएगा तथा वर्ष 2022 में जलवायु से संबंधित नुकसान कुल 260 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच जाएगा।
- निष्क्रियता की आर्थिक लागत: अनुकूलन में देरी से आपदा प्रतिक्रिया, बुनियादी ढाँचे और आर्थिक स्थिरता की लागत बढ़ जाती है, विशेष रूप से विकासशील देशों के लिये।
- इसके विपरीत, जलवायु अनुकूलन उपायों, जैसे कि पूर्व चेतावनी प्रणाली, जलवायु-संवेदनशील बुनियादी ढाँचे, उन्नत कृषि, तटीय मैंग्रोव संरक्षण और लचीले जल संसाधनों में 1.8 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का वैश्विक निवेश, लागत में कमी तथा विभिन्न सामाजिक एवं पर्यावरणीय लाभों के माध्यम से 7.1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का रिटर्न उत्पन्न कर सकता है।
- खाद्य एवं जल सुरक्षा संकट: जलवायु परिवर्तन कृषि पद्धति, जल उपलब्धता और खाद्य उत्पादन को प्रभावित कर रहा है, जिसके परिणामस्वरूप, इन क्षेत्रों में ‘अनुकूलन’ वैश्विक खाद्य सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण हो गया है।
- IPCC के उच्चतम तापमान परिदृश्य का उपयोग करते हुए हाल ही में किये गए एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि प्रमुख फसलों - मोटे अनाज, तिलहन, गेहूं और चावल - की पैदावार में 17% वैश्विक गिरावट आएगी, जो स्थिर जलवायु परिदृश्य की तुलना में वर्ष 2050 तक वैश्विक कृषि क्षेत्र के लगभग 70% को प्रभावित करेगी।
- शहरी भेद्यता: विश्व की आधी से अधिक जनसंख्या शहरों में रहती है, जिसके कारण शहरी क्षेत्रों को बाढ़, गर्म लहरों जैसे अद्वितीय जलवायु जोखिमों का सामना करना पड़ता है, जिसके कारण बुनियादी ढाँचे, आवास और सार्वजनिक सेवाओं के लिये तत्काल अनुकूलन आवश्यक हो जाता है।
- विकासशील देशों में शहरी विस्तार का अधिकांश हिस्सा जोखिम-प्रवण क्षेत्रों में है, जहाँ वर्ष 2050 तक अनुकूलन लागत सालाना 295 बिलियन अमेरिकी डॉलर होने का अनुमान है।
- पारिस्थितिकी तंत्र और जैवविविधता संरक्षण: केवल शमन उपायों के माध्यम से जलवायु परिवर्तन से संकटग्रस्त पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा नहीं की जा सकती; जैवविविधता को संरक्षित करने और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं को बनाए रखने के लिये अनुकूलन रणनीतियाँ भी आवश्यक हैं।
- IPBES ग्लोबल असेसमेंट ने अनुमान लगाया है कि 1 मिलियन पशु और वनस्पति प्रजातियाँ विलुप्त होने के खतरे में हैं और विश्व आर्थिक मंच ने बताया है कि 44 ट्रिलियन डॉलर का आर्थिक मूल्य प्रकृति की सेवाओं पर निर्भर करता है।
- स्वास्थ्य प्रणाली लचीलापन: जलवायु परिवर्तन नई स्वास्थ्य चुनौतियों को उत्पन्न करता है और मौजूदा समस्याओं को गंभीर बनाता है, जिसके कारण स्वास्थ्य प्रणालियों और बुनियादी ढाँचे के अनुकूलन की आवश्यकता होती है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि जलवायु परिवर्तन के कारण मलेरिया और तटीय बाढ़ जैसी बीमारियों के कारण वर्ष 2030 तक प्रतिवर्ष 250,000 अतिरिक्त मृत्यु होंगी।
- इसके अतिरिक्त, जलवायु प्रभाव असुरक्षित आबादी को गंभीर नुकसान पहुँचाते हैं, जिससे सामाजिक समानता के लिये अनुकूलन की आवश्यक बढ़ जाती है।
- विश्व प्रवासन रिपोर्ट, 2024 के अनुसार, जलवायु प्रभाव के कारण वर्ष 2050 तक 216 मिलियन लोगों को अपने देशों के अंदर ही स्थानांतरित होने के लिये मजबूर होना पड़ेगा।
जलवायु अनुकूलन की दिशा में भारत कैसे प्रगति कर रहा है?
- नीतिगत ढाँचा और योजना: भारत ने जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC) के तहत व्यापक अनुकूलन रणनीतियाँ स्थापित की हैं, जो जलवायु समुत्थानशीलता के लिये एक सुव्यवस्थित दृष्टिकोण को दर्शाती है।
- इस ढाँचे में आठ राष्ट्रीय मिशन शामिल हैं और इसे COP27 में प्रस्तुत दीर्घकालिक निम्न कार्बन विकास रणनीति (LT-LEDS) द्वारा सुदृढ़ किया गया है।
- 30 अनुकूलन परियोजनाओं को मंज़ूरी दी गई है, जिनकी कुल लागत 8,470 मिलियन रुपए है (जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन की तीसरी द्विवार्षिक अद्यतन रिपोर्ट)।
- सरकार ने बजट 2024-25 में जलवायु कार्रवाई के लिये 3,030 करोड़ रुपए आवंटित किये।
- कृषि अनुकूलन: भारत जलवायु अनुकूल कृषि में राष्ट्रीय नवाचार (NICRA) और प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY) के माध्यम से जलवायु अनुकूल कृषि को आगे बढ़ा रहा है, जिसमें सूखा प्रतिरोधी फसलों और कुशल सिंचाई पर ज़ोर दिया जा रहा है।
- 151 संवेदनशील ज़िलों/क्लस्टरों (2021-22 तक) के 446 जलवायु लचीले गाँवों (CRV) में विभिन्न तनावों के प्रति सहनशील 200 से अधिक फसलों की किस्मों का प्रदर्शन किया गया है।
- पीएम-किसान योजना जलवायु अनुकूलन प्रथाओं पर ध्यान केंद्रित करते हुए 11.3 करोड़ किसानों को सहायता प्रदान करती है। (अप्रैल-जुलाई 2022-23 चक्र तक)
- जल संसाधन प्रबंधन: जल शक्ति मंत्रालय की पहल, विशेष रूप से जल जीवन मिशन और अटल भूजल योजना, जल संसाधन प्रबंधन तथा अनुकूलन रणनीतियों में बदलाव ला रही हैं, जबकि संरक्षण और भूजल पुनर्भरण पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं।
- अक्तूबर, 2024 तक, जल जीवन मिशन ने 11.95 करोड़ अतिरिक्त ग्रामीण परिवारों को सफलतापूर्वक नल जल कनेक्शन प्रदान किये हैं, जिससे कुल कवरेज 15.19 करोड़ से अधिक परिवारों तक पहुँच गई है।
- शहरी अनुकूलन: भारत के शहरी अनुकूलन को स्मार्ट सिटी मिशन और अमृत 2.0 जैसे अभियानों के माध्यम से सुसंगत बनाया गया है, जो शहरी नियोजन में जलवायु अनुकूलन को समाहित करते हैं।
- जुलाई 2024 तक, 100 शहरों ने स्मार्ट सिटी मिशन के एक भाग के रूप में 7,188 परियोजनाएँ ( कुल परियोजनाओं का 90%) पूरी कर ली हैं।
- तटीय अनुकूलन: राष्ट्रीय तटीय मिशन योजना और राज्य पहल, मैंग्रोव पुनरुद्धार, समुद्री दीवार निर्माण तथा पूर्व चेतावनी प्रणालियों के माध्यम से तटीय अनुकूलन को बढ़ाती हैं।
- भारत ने पिछले दशक में अपने मैंग्रोव कवर को 364 वर्ग किमी. तक बढ़ा दिया है (आर्थिक सर्वेक्षण 2022-2023), जबकि भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र (INCOIS) कई तटीय गाँवों को प्रारंभिक चेतावनी प्रदान कर रहा है।
- नवीकरणीय ऊर्जा और अनुकूलन: भारत का नवीकरणीय ऊर्जा कार्यक्रम, विशेष रूप से पीएम-कुसुम और पीएम सूर्य घर योजना, कमज़ोर समुदायों के लिये अनुकूलन लाभों के साथ शमन को जोड़ती है।
- अक्तूबर 2024 तक, अक्षय ऊर्जा आधारित बिजली उत्पादन क्षमता 201.45 गीगावाट है, जो देश की कुल स्थापित क्षमता का 46.3 प्रतिशत है। यह भारत के ऊर्जा परिदृश्य में एक बड़ा बदलाव दर्शाता है, जो स्वच्छ, गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा स्रोतों पर देश की बढ़ती निर्भरता को दर्शाता है।
- स्वास्थ्य क्षेत्र अनुकूलन: जलवायु परिवर्तन और मानव स्वास्थ्य के लिये राष्ट्रीय कार्य योजना जलवायु संबंधी प्रभावों से निपटने हेतु स्वास्थ्य बुनियादी ढाँचे को मज़बूत कर रही है।
- वर्ष 2023 तक, भारत ने आयुष्मान भारत के तहत 1.6 लाख स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र स्थापित किये हैं। इसके अतिरिक्त, भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य मानकों (IPHS), 2022 के तहत हरित और जलवायु अनुकूल अस्पतालों के सिद्धांतों को शामिल किया गया है।
- वित्तीय तंत्र: भारत हरित बाॅण्ड, जलवायु बजट और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से अनुकूलन के लिये वित्तीय तंत्र का नवाचार कर रहा है।
- वित्त वर्ष 2022-23 में सरकार ने सॉवरेन ग्रीन बॉण्ड (SGRB) के तहत 16,000 करोड़ रुपए का सफलतापूर्वक निवेश जुटाया।
- राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) जलवायु परिवर्तन के लिये राष्ट्रीय अनुकूलन कोष (NAFCC) की राष्ट्रीय कार्यान्वयन इकाई (NIE) के रूप में कार्य कर रहा है। परियोजनाओं के प्रदर्शन और NAFCC दिशा-निर्देशों के आधार पर, परियोजना निधि नाबार्ड को किस्तों में प्रदान की जाती है।
जलवायु अनुकूलन में भारत के लिये प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
- वित्तीय बाधाएँ: भारत को अनुकूलन आवश्यकताओं और उपलब्ध वित्तीय संसाधनों के बीच एक महत्त्वपूर्ण अंतर का सामना करना पड़ रहा है, सीमित घरेलू राजकोषीय क्षमता और अपर्याप्त अंतर्राष्ट्रीय समर्थन महत्त्वपूर्ण अनुकूलन परियोजनाओं के कार्यान्वयन में बाधाएँ उत्पन्न कर रहे हैं।
- यह चुनौती प्रतिस्पर्द्धी विकासात्मक प्राथमिकताओं और अनुकूलन अवसंरचना की उच्च प्रारंभिक लागतों के कारण और भी जटिल हो जाती है।
- भारत को अपने विभिन्न उद्योगों को जलवायु परिवर्तन मानदंडों के अनुरूप बनाने के लिये वर्ष 2030 तक अनुमानतः 85.6 ट्रिलियन रुपए (1.05 ट्रिलियन डॉलर) खर्च करने की आवश्यकता होगी।
- डेटा और निगरानी चुनौतियाँ: भारत अपर्याप्त जलवायु डेटा अवसंरचना, सीमित स्थानीय स्तर की भेद्यता आकलन और अनुकूलन परियोजनाओं के लिये कमज़ोर निगरानी प्रणालियों की चुनौतियों का सामना कर रहा है, जिससे साक्ष्य-आधारित योजना और कार्यान्वयन प्रभावित हो रहा है।
- भारत की 80% से ज़्यादा आबादी ऐसे ज़िलों में रहती है जो अत्यधिक जल-मौसम आपदाओं के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हैं। साथ ही, भारत के केवल 0.86% ज़िलों में ही उच्च अनुकूलन क्षमता है। (ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद )
- शहरीकरण और बुनियादी ढाँचे पर दबाव: तेज़ी से हो रहे शहरीकरण के कारण मौजूदा बुनियादी ढाँचे पर दबाव बढ़ रहा है और नई कमज़ोरियाँ उत्पन्न हो रही हैं, जबकि शहरों में अनुकूलन की आवश्यकताएँ तेज़ी से बढ़ रही हैं।
- भारत की शहरी आबादी वर्ष 2036 तक 600 मिलियन तक पहुँचने की उम्मीद है। राष्ट्रीय अवसंरचना विकास यूनिट (NIU) के अनुसार, वर्ष 2030 तक आवश्यक 70% शहरी बुनियादी ढाँचे का निर्माण अभी भी किया जाना बाकि है, जिसके लिये जलवायु-लचीली योजना की आवश्यकता है।
- कृषि संबंधी भेद्यता: छोटे और सीमांत किसान, जो भारतीय किसानों का 86% हिस्सा हैं, सीमित संसाधनों और ज्ञान तक पहुँच के कारण जलवायु-अनुकूल पद्धतियों को अपनाने में गंभीर चुनौतियों का सामना करते हैं।
- जलवायु परिवर्तनशीलता के कारण वर्ष 2100 तक कृषि उत्पादकता 10-40% तक कम हो सकती है।
- जल तनाव प्रबंधन: अनियमित मानसून, भूजल की कमी और प्रतिस्पर्द्धी मांगों के कारण अनुकूलन के लिये जल संसाधनों का प्रबंधन करना चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है।
- नीति आयोग के समग्र जल प्रबंधन सूचकांक के अनुसार, 600 मिलियन भारतीय उच्च से लेकर अत्यधिक जल तनाव का सामना कर रहे हैं।
- संयुक्त राष्ट्र की एक नई रिपोर्ट के अनुसार, भारत के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में वर्ष 2025 तक भूजल की उपलब्धता बहुत कम हो जाने का अनुमान है।
- तटीय संवेदनशीलता: भारत की 7,500 किलोमीटर लंबी तटरेखा समुद्र-स्तर में वृद्धि, चक्रवातों और तटीय कटाव के कारण बढ़ती अनुकूलन चुनौतियों का सामना कर रही है, जिससे लाखों तटीय निवासी प्रभावित हो रहे हैं।
- भारत की एक तिहाई तटरेखा क्षरण के प्रति संवेदनशील है, जिसका प्रभाव तटीय समुदायों पर पड़ रहा है।
- जलवायु-प्रेरित प्रवासन: जलवायु-प्रेरित प्रवासन का प्रबंधन करना और प्रभावित समुदायों को अनुकूलन सहायता प्रदान करना एक गंभीर चुनौती है।
- वर्ष 2050 तक भारत में बड़े पैमाने पर पलायन हो सकता है तथा अनुमान है कि जलवायु परिवर्तन के कारण 45 मिलियन लोग विस्थापित हो सकते हैं।
जलवायु अनुकूलन में तेज़ी लाने हेतु भारत क्या उपाय अपना सकता है?
- उन्नत वित्तीय तंत्र: जलवायु अनुकूलन के लिये वित्तीय सहायता बढ़ाने हेतु, राष्ट्रीय जलवायु अनुकूलन कोष का पुनर्गठन करना आवश्यक है। इसे कार्बन करों, उपकरों, और पर्यावरण, सामाजिक और शासन (ESG) पहलों के योगदान के संयोजन के माध्यम से वित्तपोषित किया जाएगा।
- यह निधि अनुकूलन परियोजनाओं के लिये लक्षित संसाधन उपलब्ध कराएगी। इसके अतिरिक्त, अनुकूलन पहलों के लिये विशेष रूप से डिज़ाइन किये गए राज्य-स्तरीय ग्रीन बॉण्ड राज्य सरकारों को आवश्यक धन एकत्र करने में मदद करेंगे।
- समग्र वित्तीय क्षमता बढ़ाने के लिये सार्वजनिक निधियों को निजी निवेश के साथ मिलाकर मिश्रित वित्त तंत्र भी बनाया जाना चाहिये।
- इसके अतिरिक्त, जलवायु अनुकूलन परियोजनाओं को लक्षित करने वाले नवीन वित्तीय उत्पाद निवेश आकर्षित करेंगे तथा राज्य स्तर पर विशेष प्रयोजन वाहन (SPV) अनुकूलन निधियों का कुशल प्रबंधन और आवंटन सुनिश्चित करेंगे।
- स्थानीय अनुकूलन योजना: समुदाय स्तर पर जलवायु प्रभावों का प्रभावी ढंग से समाधान करने के लिये स्थानीय अनुकूलन योजना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
- प्रत्येक ज़िले को स्थानीय कमज़ोरियों का आकलन करने और उनके अनुरूप समाधान विकसित करने के लिये तकनीकी विशेषज्ञों से युक्त जलवायु अनुकूलन प्रकोष्ठों की स्थापना करनी चाहिये।
- पारंपरिक ज्ञान को वैज्ञानिक आँकड़ों के साथ एकीकृत करके, ये कोशिकाएँ प्रभावी, स्थान-विशिष्ट अनुकूलन रणनीतियाँ बना सकती हैं।
- प्रौद्योगिकी-संचालित निगरानी: जलवायु निगरानी के लिये प्रौद्योगिकी-संचालित दृष्टिकोण को लागू करने से तैयारी और प्रतिक्रिया क्षमताओं में काफी वृद्धि हो सकती है।
- वास्तविक समय जलवायु डेटा को एकीकृत करने के लिये एक राष्ट्रीय डिजिटल प्लेटफॉर्म विकसित किया जाना चाहिये, जिससे निर्णयकर्त्ताओं और समुदायों को सटीक और सुलभ जानकारी उपलब्ध हो सके।
- इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) सेंसर और उपग्रह निगरानी प्रणालियों की तैनाती से जलवायु संबंधी घटनाओं के बारे में पूर्व चेतावनी देना संभव हो सकेगा।
- सामुदायिक स्तर पर निगरानी के लिये मोबाइल एप्लीकेशन बनाने से नागरिकों को डेटा संग्रहण और रिपोर्टिंग में भाग लेने में और अधिक सशक्त बनाया जा सकेगा।
- कृषि और जल अनुकूलन: जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होने के लिये कृषि और जल प्रबंधन में अनुकूलन उत्पन्न करना आवश्यक है।
- प्रोत्साहन तंत्रों के माध्यम से जलवायु-स्मार्ट कृषि को बढ़ावा देने से टिकाऊ पद्धतियों को अपनाने को प्रोत्साहन मिलेगा, जिससे उत्पादकता बढ़ेगी और पर्यावरणीय प्रभाव न्यूनतम होंगे।
- सूखा-प्रतिरोधी फसल किस्मों को बढ़ावा देने से किसानों को जल की कमी के प्रभावों को कम करने में मदद मिलेगी, जबकि कुशल सिंचाई प्रणालियों के विकास से कृषि प्रयोजनों के लिये जल का अनुकूलतम उपयोग हो सकेगा।
- शहरी जलवायु अनुकूलन: यह सुनिश्चित करने के लिये कि शहरी क्षेत्र जलवायु प्रभावों के लिये तैयार हैं, जलवायु-अनुकूलन भवन कोड को लागू करना महत्त्वपूर्ण है जो नए निर्माणों हेतु मानकों को अनिवार्य बनाता है।
- शहरी नियोजन में स्पॉन्ज सिटी अवधारणा को शामिल किया जाना चाहिये, जिससे जल प्रबंधन क्षमता में वृद्धि होगी तथा बाढ़ का खतरा कम होगा।
- शहरी वन और ताप कार्रवाई योजनाएँ बनाने की पहल से शहरी ताप प्रभावों को कम करने में मदद मिलेगी, जबकि टिकाऊ परिवहन प्रणालियाँ उत्सर्जन को कम करेंगी तथा वायु गुणवत्ता में सुधार करेंगी।
- तटीय अनुकूलन: जलवायु परिवर्तन चुनौतियों का प्रभावी ढंग से जवाब देने के लिये तटीय क्षेत्रों को एकीकृत प्रबंधन रणनीतियों की आवश्यकता है।
- एकीकृत तटीय क्षेत्र प्रबंधन के कार्यान्वयन से विकास और संरक्षण के प्रति संतुलित दृष्टिकोण सुनिश्चित होगा।
- जलवायु-अनुकूल बंदरगाह अवसंरचना का विकास करने से इन महत्त्वपूर्ण आर्थिक परिसंपत्तियों को जलवायु प्रभावों से सुरक्षित रखा जा सकेगा।
- इसके अतिरिक्त, मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र का पुनर्स्थापन करने और संरक्षित करने से कटाव और बाढ़ के खिलाफ प्राकृतिक ढाल के रूप में कार्य करेगा, जबकि तटीय पूर्व चेतावनी प्रणालियों को सुदृढ़ करने से समुदायों की तैयारियों में सुधार होगा, जिससे वे चरम मौसम की घटनाओं का बेहतर सामना कर सकेंगे।
- कौशल विकास: विभिन्न क्षेत्रों में जलवायु अनुकूलन क्षमता बढ़ाने के लिये कौशल विकास में निवेश आवश्यक है।
- प्रभावी अनुकूलन प्रथाओं में व्यक्तियों को प्रशिक्षित करने के लिये समर्पित जलवायु अनुकूलन कौशल कार्यक्रम बनाए जाएंगे।
- जलवायु शिक्षा केंद्रों की स्थापना से जलवायु मुद्दों के बारे में जन जागरूकता और समझ बढ़ेगी तथा अनुकूलन की संस्कृति को बढ़ावा मिलेगा।
- निजी क्षेत्र की सहभागिता: जलवायु अनुकूलन पहलों में निवेश बढ़ाने हेतु निजी क्षेत्र की सहभागिता अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
- अनुकूलन निवेश के लिये कर प्रोत्साहन विकसित करने से व्यवसायों को अनुकूलन-निर्माण परियोजनाओं में योगदान करने के लिये प्रोत्साहित किया जाएगा।
- जलवायु जोखिम प्रकटीकरण को अनिवार्य करने से पारदर्शिता को बढ़ावा मिलेगा और निगमों को अपने परिचालन में जलवायु प्रभावों पर विचार करने के लिये प्रोत्साहित किया जाएगा।
- जलवायु-अनुकूल व्यवसाय मॉडल का समर्थन करने से अनुकूलन प्रयासों में निजी क्षेत्र की भागीदारी को और अधिक प्रोत्साहन मिलेगा।
- अनुसंधान एवं नवाचार: प्रभावी जलवायु अनुकूलन समाधान विकसित करने के लिये अनुसंधान एवं नवाचार को बढ़ावा देना महत्त्वपूर्ण है।
- जलवायु अनुकूलन नवाचार केंद्रों की स्थापना नई रणनीतियों और प्रौद्योगिकियों के अनुसंधान एवं विकास के केंद्र के रूप में कार्य करेगी।
- अनुसंधान संघ बनाने से अनुकूलन अनुसंधान को आगे बढ़ाने के लिये शैक्षणिक संस्थानों, सरकार और उद्योग के बीच सहयोग को बढ़ावा मिलेगा।
- अंतर्राज्यीय समन्वय प्रभावी जलवायु अनुकूलन के लिये राज्यों में समन्वित प्रयासों की आवश्यकता होती है।
- क्षेत्रीय जलवायु अनुकूलन परिषदों के गठन से साझा चुनौतियों और समाधानों पर राज्यों के बीच सहयोग तथा संचार में सुविधा होगी।
- अंतर्राज्यीय अनुकूलन परियोजनाएँ विकसित करने से क्षेत्रीय जलवायु प्रभावों से निपटने के लिये संसाधनों और विशेषज्ञता को एकत्रित करने में मदद मिलेगी।
- साझा संसाधन प्रबंधन का समन्वय पर्यावरणीय परिसंपत्तियों के सतत् उपयोग को सुनिश्चित करेगा, जबकि राज्यों में अनुकूलन नीतियों में सामंजस्य स्थापित करने से अनुकूलन के प्रयासों की समग्र प्रभावशीलता में वृद्धि होगी।
- अनुकूलन को मुख्यधारा में लाना: जलवायु अनुकूलन को विकास योजना की मुख्यधारा में लाना दीर्घकालिक अनुकूलन के लिये आवश्यक है।
- विकास नियोजन के सभी स्तरों में अनुकूलन संबंधी विचारों को एकीकृत करने से यह सुनिश्चित होगा कि जलवायु प्रभावों का सक्रियतापूर्वक समाधान किया जाएगा।
- वर्तमान बुनियादी ढाँचे का मूल्यांकन करना आवश्यक है, ताकि उसे भविष्य में संभावित जोखिमों से सुरक्षित रखने के लिये उन्नत किया जा सके।
- अंततः अनुकूलन संकेतकों के विकास से अनुकूलन पहलों की सतत् निगरानी और मूल्यांकन संभव होगा, जिससे जवाबदेही तथा निरंतर सुधार सुनिश्चित होगा।
निष्कर्ष:
भारत के सक्रिय जलवायु अनुकूलन प्रयास सराहनीय हैं, लेकिन महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ बनी हुई हैं। प्रगति में तेज़ी लाने के लिये, भारत को वित्तीय तंत्र को बढ़ाना होगा, स्थानीय अनुकूलन योजना को मज़बूत करना होगा, प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना होगा और कृषि, जल, शहरी तथा तटीय अनुकूलन को प्राथमिकता देनी होगी। इन चुनौतियों का प्रभावी ढंग से समाधान करके और व्यापक अनुकूलन रणनीतियों को लागू करके, भारत एक अनुकूल भविष्य बना सकता है और वैश्विक दक्षिण के लिये उदाहरण प्रस्तुत कर सकता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: जलवायु परिवर्तन के मद्देनज़र भारत के लिये जलवायु अनुकूलन क्यों आवश्यक है? अनुकूलन उपायों को लागू करने में आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये और उनसे निपटने के उपाय सुझाइये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न1. जलवायु-अनुकूल कृषि (क्लाइमेट-स्मार्ट एग्रीकल्चर) के लिये भारत की तैयारी के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) प्रश्न 2. निम्नलिखित में से कौन-सा/से भारत सरकार के 'हरित भारत मिशन (Green India Mission)' के उद्देश्य को सर्वोत्तम रूप से वर्णित करता है/करते हैं? (2016)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (c) प्रश्न 3. 'भूमंडलीय जलवायु परिवर्तन संधि (ग्लोबल क्लाइमेट चेंज एलाएन्स)' के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न 1. संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन (UNFCCC) के COP के 26वें सत्र के प्रमुख परिणामों का वर्णन कीजिये। इस सम्मेलन में भारत द्वारा की गई वचनबद्धताएँ क्या हैं? (2021) प्रश्न 2 'जलवायु परिवर्तन' एक वैश्विक समस्या है। भारत जलवायु परिवर्तन से किस प्रकार प्रभावित होगा ? जलवायु परिवर्तन के द्वारा भारत के हिमालयी और समुद्रतटीय राज्य किस प्रकार प्रभावित होंगे? (2017) |