जैव विविधता और पर्यावरण
मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र पर IUCN की रिपोर्ट
- 30 May 2024
- 21 min read
प्रिलिम्स के लिये:मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण के लिये अंतर्राष्ट्रीय दिवस, संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन, भारतीय राज्य वन रिपोर्ट 2021, सुंदरबन, रॉयल बंगाल टाइगर, इरावदी, डॉल्फिन, मिष्टी (मैंग्रोव इनिशिएटिव फॉर शोरलाइन हैबिटेट्स एंड टैंगेबल इनकम्स), सतत् झींगा पालन हेतु समुदाय-आधारित पहल (SAIME) मेन्स के लिये:मैंग्रोव का महत्त्व, भारत में मैंग्रोव से संबंधित चुनौतियाँ |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (International Union for Conservation of Nature- IUCN) ने एक नई रिपोर्ट जारी की है, जिसमें चेतावनी दी गई है कि विश्व के आधे से अधिक मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र के समक्ष पतन का खतरा बना हुआ है। यह IUCN द्वारा मैंग्रोव का पहला व्यापक वैश्विक मूल्यांकन है।
- "मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र की रेड लिस्ट (Red List of Mangrove Ecosystems)" शीर्षक वाली रिपोर्ट में अंतर्राष्ट्रीय जैवविविधता दिवस (22 मई) पर ये निष्कर्ष प्रस्तुत किये गए।
अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?
- परिचय: इस अध्ययन में विश्व के मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र को 36 विभिन्न क्षेत्रों में वर्गीकृत किया गया तथा प्रत्येक क्षेत्र में खतरों और पतन के जोखिम का आकलन किया गया।
- जाँच व परिणाम:
- विश्व के 50% से अधिक मैंग्रोव खतरे में:
- विश्व के 50% से अधिक मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र के समक्ष पतन का खतरा बना हुआ है (इसे या तो कमज़ोर, संकटग्रस्त या गंभीर रूप से संकटग्रस्त के रूप में वर्गीकृत किया गया है) तथा लगभग 5 में से 1 गंभीर खतरे की स्थिति में बनी हुई हैं।
- विश्व के मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र वाले एक-तिहाई प्रांत समुद्र के जलस्तर में वृद्धि के कारण गंभीर रूप से प्रभावित होंगे जिससे अगले 50 वर्षों में वैश्विक मैंग्रोव क्षेत्र का लगभग 25% भाग जलमग्न हो सकता है।
- दक्षिण भारतीय मैंग्रोव को अधिक खतरा:
- दक्षिण भारत में मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र, जो श्रीलंका और मालदीव के साथ साझा है, को "गंभीर रूप से संकटग्रस्त (Critically Endangered)" श्रेणी में रखा गया है।
- इसके विपरीत, बंगाल की खाड़ी क्षेत्र (बांग्लादेश के साथ साझा) और पश्चिमी तट (पाकिस्तान के साथ साझा) में मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र को "कम चिंतनीय (Least Concerned)" के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- जलवायु परिवर्तन एक बड़ा खतरा:
- एक अध्ययन में पाया गया कि वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र के लिये सबसे बड़ा खतरा है, जो लगभग 33% मैंग्रोव को प्रभावित कर रहा है।
- इसके बाद वनों की कटाई, विकास, प्रदूषण और बाँध निर्माण आता है।
- चक्रवातों, टाइफून, तूफान और उष्णकटिबंधीय तूफानों की बढ़ती आवृत्ति एवं तीव्रता कुछ समुद्र तटों पर मैंग्रोव को प्रभावित कर रही है।
- एक अध्ययन में पाया गया कि वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र के लिये सबसे बड़ा खतरा है, जो लगभग 33% मैंग्रोव को प्रभावित कर रहा है।
- वैश्विक प्रभाव:
- उत्तर-पश्चिमी अटलांटिक, उत्तरी हिंद महासागर, लाल सागर, दक्षिणी चीन सागर और अदन की खाड़ी के तटों पर इसका महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ने की आशंका है।
- संरक्षण प्रयासों के अभाव में लगभग 7,065 वर्ग किमी (5%) से अधिक मैंग्रोव नष्ट हो जाएंगे तथा वर्ष 2050 तक 23,672 वर्ग किमी मैंग्रोव (लगभग 16%) जलमग्न हो जाएंगे।
- विश्व के 50% से अधिक मैंग्रोव खतरे में:
भारत में मैंग्रोव आवरण की क्या स्थिति है?
- परिचय:
- मैंग्रोव उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाने वाला एक अद्वितीय प्रकार का तटीय पारिस्थितिकी तंत्र है। वे लवणयुक्त सहनशील salt-tolerant) वृक्षों और झाड़ियों के घने जंगल हैं जो अंतर्ज्वारीय क्षेत्रों में पनपते हैं, जहाँ भूमि समुद्र से मिलती है।
- इन पारिस्थितिकी प्रणालियों की विशेषता यह है कि ये खारे पानी, ज्वार-भाटे और कीचड़युक्त, ऑक्सीजन-रहित मिट्टी जैसी कठोर परिस्थितियों को झेलने की क्षमता रखते हैं।
- मैंग्रोव आवरण:
- विश्व का लगभग 40% मैंग्रोव क्षेत्र दक्षिण पूर्व एशिया और दक्षिण एशिया में पाया जाता है।
- दक्षिण एशिया के कुल मैंग्रोव आवरण का लगभग 3% भारत में है।
- पिछले आकलन की तुलना में भारत का मैंग्रोव आवरण 54 वर्ग किमी (1.10%) बढ़ गया है।
- भारत में वर्तमान मैंग्रोव आवरण 4,975 वर्ग किमी. है, जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 0.15% है।
- भारत के मैंग्रोव आवरण में सबसे बड़ा हिस्सा पश्चिम बंगाल (42.45%) का है, जिसके बाद गुजरात (23.66%) और अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह (12.39%) का स्थान है।
- अकेले पश्चिम बंगाल के दक्षिण 24 परगना ज़िले में देश के 41.85% मैंग्रोव आवरण हैं। इस क्षेत्र में सुंदरबन राष्ट्रीय उद्यान भी शामिल है, जो विश्व के सबसे बड़े मैंग्रोव वनों में से एक है।
- गुजरात में मैंग्रोव आवरण में सबसे अधिक 37 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि हुई है।
- विश्व का लगभग 40% मैंग्रोव क्षेत्र दक्षिण पूर्व एशिया और दक्षिण एशिया में पाया जाता है।
मैंग्रोव संरक्षण से संबंधित भारत की पहल क्या हैं?
- तटीय विनियमन क्षेत्र (Coastal Regulation Zone- CRZ) अधिसूचना (2019): पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत यह अधिसूचना आर्द्रभूमि सहित तटीय क्षेत्रों को चार श्रेणियों में वर्गीकृत करती है। यह उन गतिविधियों को प्रतिबंधित करती है जो मैंग्रोव को नुकसान पहुँचा सकती हैं, जैसे;
- अपशिष्ट का डंपिंग (औद्योगिक या अन्यथा)।
- CRZ के भीतर औद्योगिक गतिविधियाँ।
- इन क्षेत्रों में भूमि सुधार और भवन निर्माण।
- मौज़ूदा वन कानून:
- भारतीय वन अधिनियम, 1927: महाराष्ट्र जैसे राज्यों ने सरकारी भूमि पर स्थित मैंग्रोव को आरक्षित वन के रूप में नामित किया है तथा इस अधिनियम के तहत उन्हें कानूनी संरक्षण प्रदान किया गया है।
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972: कुछ मैंग्रोव क्षेत्र वन्यजीवों के लिये महत्त्वपूर्ण पर्यावास हैं और उन्हें इस अधिनियम के तहत संरक्षण प्राप्त है।
- अन्य प्रासंगिक अधिनियम:
- जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1974 तथा महाराष्ट्र वृक्ष (वनोन्मूलन) अधिनियम, 1972 (Maharashtra Tree (Felling) Act, 1972) जैसे अतिरिक्त कानून उन गतिविधियों को विनियमित करके सुरक्षा प्रदान करते हैं जो इन पारिस्थितिक तंत्रों को जो इन पारिस्थितिकी तंत्रों को प्रदूषित या क्षति पहुँचा सकते हैं।
- 'मैंग्रोव और प्रवाल भित्तियों के संरक्षण एवं प्रबंधन' पर केंद्रीय क्षेत्र की योजना:
- यह मैंग्रोव संरक्षण के लिये विशिष्ट कार्य योजनाओं को लागू करने हेतु तटीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को वित्तीय सहायता प्रदान करता है। इन योजनाओं में सर्वेक्षण, स्थानीय समुदायों के लिये वैकल्पिक आजीविका, जागरूकता अभियान आदि शामिल हो सकते हैं।
- तटीय आवास और मूर्त आय हेतु मैंग्रोव की नई पहल (MISHTI) (Mangrove Initiative for Shoreline Habitats & Tangible Incomes- MISHTI), मैंग्रोव को बढ़ावा देने और संरक्षण हेतु एक समर्पित पहल है। इसका उद्देश्य है:
- निम्नीकृत भूमि पर समुद्र तटरेखा के साथ-साथ मैंग्रोव कवर बढ़ावा देना।
- सतत् विकास का समर्थन करना और कोमल तटीय क्षेत्रों की संरक्षण करना।
मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र कितना महत्त्वपूर्ण है?
- जैवविविधता संरक्षण: मैंग्रोव विभिन्न प्रकार के पौधों एवं पशुओं की प्रजातियों के लिये एक अद्वितीय आवास प्रदान करते हैं, जो कई समुद्री और स्थलीय जीवों के लिये प्रजनन, नर्सरी तथा चारागाह के रूप में कार्य करते हैं।
- उदाहरण के लिये, सुंदरबन रॉयल बंगाल टाइगर, इरावदी डॉल्फिन, रीसस मकाॅक,तेंदुआ, छोटे भारतीय कस्तूरी बिलाव (Small Indian Civet) की मेज़बानी करता है।
- तटीय संरक्षण: मैंग्रोव तटीय क्षरण, तूफानी लहरें और सुनामी के विरुद्ध प्राकृतिक बफर के रूप में कार्य करते हैं।
- उनकी सघन जड़ प्रणालियाँ और स्तम्भ मूल का जाल तटरेखाओं को स्थिर करता है और लहरों तथा धाराओं के प्रभाव को कम करता है।
- तूफान और चक्रवातों के दौरान, मैंग्रोव ऊर्जा की एक महत्त्वपूर्ण मात्रा को अवशोषित तथा नष्ट कर अंतर्देशीय क्षेत्रों एवं मानव बस्तियों को विनाशकारी क्षति से बचा सकते हैं।
- कार्बन पृथक्करण: मैंग्रोव अत्यधिक कुशल कार्बन पृथक्करण हैं, जो वायुमंडल से बड़ी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड को एकत्रित करते हैं तथा इसे अपने जैवभार व तलछट में संग्रहीत करते हैं।
- मत्स्यन एवं आजीविका: मैंग्रोव मछली और शंख के लिये नर्सरी क्षेत्र उपलब्ध कराकर मत्स्य पालन को बढ़ावा देते हैं, जिससे मत्स्य उत्पादकता बढ़ती है और आजीविका तथा स्थानीय खाद्य सुरक्षा में योगदान मिलता है।
- जल गुणवत्ता में सुधार: प्रदूषकों और अतिरिक्त पोषक तत्त्वों के समुद्र में प्रवेश करने से पहले, मैंग्रोव तटीय जलमार्गों में प्राकृतिक फिल्टर के रूप में कार्य करते हैं, उन्हें एकत्र करते हैं और हटा देते हैं।
- जल को शुद्ध करने में उनकी भूमिका समुद्री पारिस्थितिक तंत्र के स्वास्थ्य में योगदान देती है और कोमल तटीय पारिस्थितिक तंत्र के संतुलन को बनाए रखने में सहायता करती है।
- पर्यटन एवं मनोरंजन: मैंग्रोव इको-टूरिज़्म, बर्डवाचिंग (Birdwatching), कयाकिंग (Kayaking) तथा प्रकृति-आधारित गतिविधियों के माध्यम से मनोरंजक अवसर प्रदान करते हैं, जो स्थानीय समुदायों के लिये सतत् आर्थिक विकास को बढ़ावा दे सकते हैं।
मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं?
- पर्यावास विनाश एवं विखंडन: मैंग्रोव को प्राय: विभिन्न उद्देश्यों के लिये साफ किया जाता है, जिनमें कृषि, शहरीकरण, जलीय कृषि और बुनियादी ढाँचे का विकास शामिल है।
- इस तरह की गतिविधियों से मैंग्रोव पर्यावासों का विखंडन एवं विनाश होता है, जिससे उनके पारिस्थितिकी तंत्र की कार्यप्रणाली तथा जैवविविधता बाधित होती है।
- मैंग्रोव का झींगा फार्मों और अन्य वाणिज्यिक उपयोगों में रूपांतरण एक महत्त्वपूर्ण चिंता का विषय बना हुआ है।
- जलवायु परिवर्तन और समुद्र के स्तर में वृद्धि: जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र के जल स्तर में वृद्धि मैंग्रोव के लिये एक बड़ा खतरा बन गई है।
- जलवायु परिवर्तन के कारण चक्रवात और तूफान जैसी चरम मौसमी घटनाएँ भी उत्पन्न होती हैं, जिनसे मैंग्रोव वनों को गंभीर क्षति हो सकती है।
- प्रदूषण और संदूषण: कृषि अपवाह, औद्योगिक उत्सर्जन और अनुचित अपशिष्ट निपटान से होने वाला प्रदूषण मैंग्रोवों को दूषित करता है।
- भारी धातुएँ, प्लास्टिक और अन्य प्रदूषक मैंग्रोव पारिस्थितिक तंत्र के वनस्पतियों एवं जीव-जंतुओं पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं।
- एकीकृत प्रबंधन का अभाव: आमतौर पर मैंग्रोव वनों के प्रवाल भित्तियों और समुद्री घास जैसी समीपवर्ती पारिस्थितिकी प्रणालियों के साथ उनके अंतर्संबंध पर ध्यान नहीं दिया जाता है। प्रत्येक पारिस्थितिकी तंत्र की अपनी विशिष्ट प्रबंधन प्रक्रिया होती है, लेकिन इनका प्रभाव एक-दूसरे पर भी पड़ता है। इसलिये, इनके समग्र संरक्षण और प्रबंधन के लिये इनके बीच के अंतर्संबंधों को समझना और ध्यान में रखना आवश्यक है।
- प्रभावी संरक्षण के लिये व्यापक तटीय पारिस्थितिकी तंत्र पर विचार करने वाले एकीकृत प्रबंधन दृष्टिकोण आवश्यक हैं।
- अत्यधिक मत्स्यन और गैर-संवहनीय दोहन: अत्यधिक मत्स्यन और मैंग्रोव संसाधनों, जैसे केकड़े व लकड़ी का गैर-संवहनीय दोहन, उनके पारिस्थितिक एवं आर्थिक मूल्य को कम कर सकता है।
- आक्रामक प्रजातियाँ: आक्रामक प्रजातियाँ, जैसे कि गैर-देशीय लाल मैंग्रोव, देशीय प्रजातियों को प्रभावित कर सकती हैं तथा मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र की संरचना और कार्य को बदल सकती हैं।
- जागरूकता और संरक्षण का अभाव: मैंग्रोव की उपयोगिता को अक्सर कम करके आकलित किया जाता है तथा उनको पर्याप्त कानूनी संरक्षण प्राप्त नहीं होता है, जिसके कारण विनाश के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं।
मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा के लिये क्या किया जा सकता है?
- हानिकारक गतिविधियों पर प्रतिबंध: प्रदूषण, वनों की कटाई और तटीय क्षेत्रों में असंवहनीय विकास को नियंत्रित करने के लिये कड़े कानूनों लागू किया जाना चाहिये।
- मैंग्रोव गोद लेने का कार्यक्रम: एक सार्वजनिक कार्यक्रम शुरू करना, जिसके तहत व्यक्तियों, निगमों और संस्थाओं को मैंग्रोव के कुछ हिस्सों को "गोद लेने" की अनुमति दी जाएगी।
- प्रतिभागी अपने गोद लिये गए क्षेत्रों के रखरखाव, संरक्षण और पुनरुद्धार की ज़िम्मेदारी लेंगे, जिससे स्वामित्व एवं सामूहिक ज़िम्मेदारी की भावना को बढ़ावा मिलेगा।
- मैंग्रोव अनुसंधान और विकास: मैंग्रोव के नवीन अनुप्रयोगों की खोज के लिये अनुसंधान में निवेश करने की आवश्यकता है, जैसे प्रदूषित जल को साफ करने के लिये फाइटोरिमेडिएशन के लिये उनका उपयोग करना या मैंग्रोव पौधे के अर्क से नई दवाइयाँ विकसित करना।
- इससे सतत् विकास के लिये मैंग्रोव के अद्वितीय गुणों का लाभ उठाने के लिये नवीन तरीके खोजे जा सकेंगे।
- स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाना: संरक्षण प्रयासों में स्थानीय समुदायों को शामिल किया जाना चाहिये, जिन्हें प्रायः मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र की व्यापक समझ होती है।
- मैंग्रोव की सुरक्षा से जुड़े स्थायी आजीविका के अवसरों का सृजन करना तथा उनके कल्याण के लिये साझा ज़िम्मेदारी को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
- जैव-पुनर्स्थापन तकनीक: क्षीण हो चुके मैंग्रोव क्षेत्रों को पुनर्जीवित करने के लिये जैव-पुनर्स्थापन तकनीकों का उपयोग किया जाना चाहिये, जिससे मूल जैवविविधता को बनाए रखने में सहायता मिल सके।
- प्राकृतिक पुनर्जनन की तुलना में पारिस्थितिक पुनर्स्थापन मैंग्रोव की पुनर्प्राप्ति को तीव्र कर सकता है।
- पुनर्स्थापन प्रयासों में विविध प्रजातियाँ: यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि पुनर्स्थापन प्रयासों में एकल-कृषि के बजाय विविध मैंग्रोव प्रजातियाँ शामिल हों।
- इस दृष्टिकोण से ऐसे वनों का निर्माण हो सकेगा, जो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति अधिक लचीले होंगे।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न.भारत की तटीय पारिस्थितिकी और अर्थव्यवस्था के लिये मैंग्रोव संरक्षण के महत्त्व पर चर्चा कीजिये। प्रभावी मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र प्रबंधन के लिये बहुआयामी दृष्टिकोण का सुझाव दीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारत के निम्नलिखित क्षेत्रों में से किस एक में, मैंग्रोव वन, सदापर्णी वन और पर्णपाती वनों का संयोजन है? (2015) (a) उत्तर तटीय आंध्र प्रदेश उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न.मैंग्रोवों के रिक्तीकरण के कारणों पर चर्चा कीजिये और तटीय पारिस्थितिकी का अनुरक्षण करने में इनके महत्त्व को स्पष्ट कीजिये। (2019) |