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ब्रिक्स
मैप पर दर्शाए गए देश:
ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका, मिस्र, इथियोपिया, ईरान और संयुक्त अरब अमीरात
- प्रारंभिक सदस्य – ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका
- नए सदस्य (2024) – मिस्र, इथियोपिया, ईरान और यूएई
- ब्रिक्स में शामिल होने के लिये आमंत्रित देश (अभी तक सदस्य नहीं) - सऊदी अरब
केवल संदर्भ के लिये
महत्त्वपूर्ण बिंदु:
- "BRIC (ब्रिक)" → गोल्डमैन सॅक्स के अर्थशास्त्री जिम ओ'नील द्वारा गढ़ा गया था (2001)
- प्रारंभिक सदस्य (2006)→ ब्राज़ील, रूस, भारत और चीन
- दक्षिण अफ्रीका के शामिल होने के साथ BRICS (ब्रिक्स) बन गया (2010)
- जनवरी, 2024 में 4 नए सदस्य देश शामिल हुए → मिस्र, इथियोपिया, ईरान और यूएई
- प्रथम अनौपचारिक ब्रिक बैठक→ वर्ष 2006 (संयुक्त राष्ट्र महासभा के दौरान)
- प्रथम औपचारिक ब्रिक शिखर सम्मेलन→ वर्ष 2009 (रूस)
- वित्तीय संस्थान एवं तंत्र→ न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB) एवं आकस्मिक रिज़र्व व्यवस्था (Contingent Reserve Arrangement -CRA) (फोर्टालेजा घोषणा द्वारा स्थापित- 6वाँ ब्रिक्स शिखर सम्मेलन 2014)
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारतीय नागरिकता के लिये श्रीलंकाई तमिल शरणार्थियों का संघर्ष
प्रिलिम्स के लिये:श्रीलंकाई तमिल शरणार्थी, लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम, अनुच्छेद 21, रोहिंग्या शरणार्थी, भारतीय नागरिकता का अधिग्रहण, शरणार्थियों के लिये संयुक्त राष्ट्र उच्चायोग मेन्स के लिये:राज्यविहीनता और मानव अधिकारों पर इसके प्रभाव, भारत में नागरिकता, भारत में शरणार्थियों के सामने आने वाली चुनौतियाँ, श्रीलंका में जातीय हिंसा और भारत पर इसका प्रभाव। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को एक श्रीलंकाई तमिल शरणार्थी के भारतीय नागरिकता आवेदन पर विचार करने का निर्देश दिया है, जो वर्ष 1984 से भारत में रह रहा है।
- यह निर्देश भारतीय कानून के तहत श्रीलंकाई तमिल शरणार्थियों के अधिकारों पर जोर देता है।
नोट: एक श्रीलंकाई तमिल शरणार्थी, जिसका जन्म वर्ष 1975 में श्रीलंका में हुआ था, जातीय संघर्ष के कारण वर्ष 1984 में भारत आ गया। उस व्यक्ति ने नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 5(1)(a) के तहत वर्ष 2022 में भारतीय नागरिकता के लिये आवेदन किया था, लेकिन कोई कार्यवाही नहीं की गई।
- भारत में 40 वर्षों से अधिक समय तक निवास करने के बावजूद, वह व्यक्ति कानूनी मान्यता की उम्मीद में नागरिकता से वंचित रह जाता है।
- इस मान्यता से अन्य दीर्घकालिक शरणार्थियों, विशेषकर श्रीलंका में जातीय संघर्ष के दौरान पलायन करने वाले शरणार्थियों को नागरिकता मिलने में तेज़ी आ सकती है।
श्रीलंकाई तमिल शरणार्थियों की स्थिति क्या है?
- ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: भारतीय मूल के तमिलों को औपनिवेशिक काल के दौरान अंग्रेज़ों द्वारा बागानों में कार्य करने के लिये गिरमिटिया मज़दूरों के रूप में श्रीलंका लाया गया था।
- सामाजिक अलगाव: इन तमिलों को श्रीलंका के राजनीतिक और नागरिक जीवन से बड़े पैमाने पर बाहर रखा गया था, तथा उन्हें सिंहली (श्रीलंका के लोग) और मूल तमिल समुदायों दोनों से हाशिये पर रखा गया था।
- वर्ष 1948 के बाद के संघर्ष: श्रीलंका की स्वतंत्रता (1948) के बाद, बढ़ते सिंहली राष्ट्रवाद ने भारतीय मूल के तमिलों को और अधिक वंचित कर दिया, उन्हें नागरिकता के अधिकारों से वंचित कर दिया गया और राज्यविहीन कर दिया गया (किसी व्यक्ति को किसी भी देश द्वारा नागरिक के रूप में मान्यता नहीं दी जाती)।
- द्विपक्षीय समझौते: सिरीमावो-शास्त्री समझौता (1964) और सिरीमावो-इंदिरा गांधी समझौता (1974) में रेखांकित किया गया था कि छह लाख तक भारतीय मूल के तमिलों और उनके वंशजों को भारतीय नागरिकता प्रदान की जा सकती है, लेकिन श्रीलंकाई गृहयुद्ध सहित विभिन्न कारकों के कारण यह प्रक्रिया रुक गई।
- CAA 2003: वर्ष 1982 से पहले भारत लौटने वाले भारतीय मूल के तमिलों को नागरिकता प्रदान की गई, लेकिन वर्ष 1983 के बाद आने वालों को नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (CAA) 2003 के तहत 'अवैध प्रवासियों' के रूप में वर्गीकृत किया गया।
- भारतीय मूल के श्रीलंकाई तमिल शरणार्थी, जो वर्ष 1983 से वर्ष 2009 तक अलगाववादी तमिल शक्तियों (लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (LTTE)) और श्रीलंकाई सरकार के बीच लड़े गए गृहयुद्ध से बचकर आए थे, दशकों से भारत में रहने के बावजूद भारतीय नागरिकता के लिये पात्र नहीं हैं।
- औपचारिक शरणार्थी कानून के अभाव के कारण शरणार्थियों को कानूनी अनिश्चितता का सामना करना पड़ता है, तथा उनके पास नागरिकता या स्थायी दर्जा पाने का कोई स्पष्ट रास्ता नहीं होता।
- भारतीय मूल के श्रीलंकाई तमिल शरणार्थी, जो वर्ष 1983 से वर्ष 2009 तक अलगाववादी तमिल शक्तियों (लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (LTTE)) और श्रीलंकाई सरकार के बीच लड़े गए गृहयुद्ध से बचकर आए थे, दशकों से भारत में रहने के बावजूद भारतीय नागरिकता के लिये पात्र नहीं हैं।
- न्यायालय के निर्णय: पी. उलगानाथन बनाम भारत सरकार, 2019 मामले में मद्रास उच्च न्यायालय ने इस तथ्य पर ज़ोर दिया कि शरणार्थियों का बहिष्कार प्राण और दैहिक स्वतंत्रता के अधिकार (संविधान का अनुच्छेद 21) का उल्लंघन है, जिससे इस मामले का तत्काल समाधान किया जाना आवश्यक हुआ।
- अबिरामी एस बनाम भारत संघ (2022) मामले में, मद्रास उच्च न्यायालय ने नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (CAA) 2019 के सिद्धांतों का समर्थन करते हुए भारतीय मूल के तमिलों को नागरिकता देने के लिये मानवीय दृष्टिकोण का आह्वान किया, जो अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से हिंदुओं के लिये नागरिकता की शर्तों को आसान बनाता है।
भारत में शरणार्थी
- शरणार्थी वे व्यक्ति हैं जो अपने जीवन, सुरक्षा या स्वतंत्रता के लिये गंभीर खतरों के कारण अपना देश छोड़ देते हैं, जिन्हें उत्पीड़न, सशस्त्र संघर्ष, हिंसा या सार्वजनिक अशांति से अंतर्राष्ट्रीय संरक्षण की आवश्यकता है।
- भारत में शरणार्थियों को आश्रय देने का इतिहास: भारत ने ऐतिहासिक रूप से विभिन्न शरणार्थी समूहों को आश्रय दिया है, जिनमें चीनी कब्जे से भागे तिब्बती, 1971 के युद्ध के बाद के बांग्लादेशी शरणार्थी, श्रीलंकाई तमिल और रोहिंग्या शरणार्थी (म्याँमार) शामिल हैं।
- शरणार्थियों के प्रबंधन में भारत की चुनौतियाँ:
- विधिक ढाँचे का अभाव: भारत 1951 के शरणार्थी अभिसमय का हस्ताक्षरकर्त्ता नहीं है, जिसके कारण शरणार्थियों की कोई स्पष्ट विधिक परिभाषा नहीं है, जिससे आर्थिक प्रवासियों और वास्तविक शरणार्थियों के बीच अंतर करना मुश्किल हो जाता है।
- भारतीय विधि के अंतर्गत किसी भी अवैध आप्रवासी को शरणार्थी की मान्यता नहीं दी जाती है तथा शरणार्थियों से सम्प्रभुता को खतरा तथा संभावित सुरक्षा जोखिम के संबंध में चिंता व्यक्त की गई है।
- सरंध्र सीमाएँ: भारत की सरंध्र/छिद्रिल सीमाओं के कारण शरणार्थियों के प्रवेश को नियंत्रित करना कठिन हो जाता है, जिसके कारण विशेष रूप से असम और पश्चिम बंगाल में शरणार्थियों का आगमन बढ़ जाता है तथा स्थानीय संसाधन और बुनियादी ढाँचे पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
- सीमित संसाधन: भारत के सीमित संसाधन और बुनियादी ढाँचे के कारण शरणार्थियों की सहायता करने और उन्हें एकीकृत करने की उसकी क्षमता में बाधा उत्पन्न होती है, जिससे शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और रोज़गार जैसी बुनियादी सेवाओं तक उनकी पहुँच सीमित हो जाती है।
- विधिक ढाँचे का अभाव: भारत 1951 के शरणार्थी अभिसमय का हस्ताक्षरकर्त्ता नहीं है, जिसके कारण शरणार्थियों की कोई स्पष्ट विधिक परिभाषा नहीं है, जिससे आर्थिक प्रवासियों और वास्तविक शरणार्थियों के बीच अंतर करना मुश्किल हो जाता है।
नागरिकताहीन व्यक्तियों के समक्ष कौन-सी चुनौतियाँ हैं?
- मूल अधिकारों का अभाव: नागरिकताहीन व्यक्तियों को प्रायः शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और सामाजिक सेवाओं जैसे मूल अधिकारों से वंचित रखा जाता है, क्योंकि वे मान्यता प्राप्त नागरिक नहीं होते हैं।
- सीमित विधिक संरक्षण: विधिक मान्यता के बिना, नागरिकताहीन शरणार्थी शोषण के प्रति संवेदनशील होते हैं, जिसमें बलात् श्रम, मानव तस्करी और अन्य प्रकार के दुर्व्यवहार शामिल हैं, क्योंकि उनके पास राष्ट्रीयता और विधिक मान्यता द्वारा प्रदत्त सुरक्षा का अभाव होता है।
- आर्थिक बहिष्कार: वे प्रायः विधिक रूप से कार्य नहीं कर पाते, बैंक खाते नहीं खोल पाते, या सार्वजनिक कल्याण कार्यक्रमों का लाभ नहीं उठा पाते, जिसके कारण आर्थिक असुरक्षा की स्थिति उत्पन्न होती है।
- सामाजिक हाशियाकरण: नागरिकताहीन व्यक्तियों को राज्य प्राधिकारियों और समाज दोनों से सामाजिक बहिष्कार और भेदभाव का सामना करना पड़ता है, जिसके परिणामस्वरूप अलगाव और एकीकरण की कमी होती है।
- अंतर-पीढ़ीगत प्रभाव: नागरिकताहीनता पीढ़ियों तक जारी रह सकती है, जिसके परिणामस्वरूप वंचना और अधिकारहीनता का चक्र चलता रहता है।
- नागरिकताहीन बच्चों को संपत्ति विरासत, माता-पिता के समर्थन और विधिक सुरक्षा की कमी हो सकती है। यह अनिश्चितता चिंता और अवसाद जैसी मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म दे सकती है।
भारतीय नागरिकता प्राप्त करने की प्रक्रिया क्या है?
- भारत के नागरिकता कानून में 'जस सोली' और 'जस सैंग्विनिस' दोनों सिद्धांतों को शामिल किया गया है, जिससे ढाँचे में जन्मसिद्ध अधिकार और वंशानुक्रम के बीच संतुलन स्थापित होता है।
- 'jus soli' के अंतर्गत जन्मस्थान के आधार पर नागरिकता प्रदान की जाती है, जबकि 'jus sanguinis' के अंतर्गत रक्त संबंध द्वारा नागरिकता दी जाती है।
- भारतीय नागरिकता जन्म, वंश, पंजीकरण और देशीयकरण द्वारा प्राप्त की जा सकती है, जैसा कि नागरिकता अधिनियम, 1955 में उल्लिखित है।
- जन्म द्वारा: भारत में 26 जनवरी, 1950 को या उसके बाद लेकिन 1 जुलाई, 1987 से पहले जन्मा प्रत्येक व्यक्ति भारतीय नागरिक है, चाहे उसके माता-पिता की राष्ट्रीयता कुछ भी हो।
- 1 जुलाई, 1987 और 2 फरवरी, 2004 के बीच भारत में जन्मा प्रत्येक व्यक्ति भारत का नागरिक है, बशर्ते कि उसके जन्म के समय उसके माता-पिता में से कोई एक देश का नागरिक हो।
- 3 दिसंबर, 2004 को या उसके बाद भारत में जन्मा प्रत्येक व्यक्ति देश का नागरिक है, बशर्ते उसके माता-पिता दोनों भारतीय हों या जन्म के समय कम से कम एक माता या पिता भारत का नागरिक हो और दूसरा अवैध प्रवासी न हो।
- पंजीकरण द्वारा: कुछ शर्तों के तहत पंजीकरण द्वारा नागरिकता प्राप्त की जा सकती है, जैसे कि जैसे कि भारत में कम से कम 7 साल का निवास होना। (धारा 5(1)(A)) ।
- भारतीय मूल के व्यक्ति जो अविभाजित भारत के बाहर किसी देश या स्थान में सामान्यतः निवासी हैं।
- भारतीय नागरिकों के जीवन-साथी जो पंजीकरण के लिये आवेदन करने से पहले 7 वर्षों से भारत में रह रहे हों।
- भारतीय नागरिकों के नाबालिग बच्चे।
- वंशानुक्रम द्वारा : 26 जनवरी, 1950 को या उसके बाद भारत के बाहर जन्म हुआ व्यक्ति वंशानुक्रम द्वारा नागरिक है, यदि उसके पिता जन्म से भारतीय नागरिक थे।
- जिनका जन्म 10 दिसंबर, 1992 और 3 दिसंबर 2004 के बीच हुआ है, उनके माता-पिता में से कोई एक जन्म से भारतीय नागरिक होना चाहिये।
- 3 दिसंबर, 2004 के बाद, माता-पिता को यह घोषित करना होगा कि बच्चे के पास कोई दूसरा पासपोर्ट नहीं है, तथा जन्म को एक वर्ष के भीतर भारतीय वाणिज्य दूतावास में पंजीकृत कराना होगा।
- प्राकृतिककरण द्वारा: भारत में 12 वर्षों का निवास आवश्यक है, तथा नागरिकता अधिनियम की तीसरी अनुसूची में उल्लिखित सभी योग्यताएँ पूरी करनी होंगी।
- जन्म द्वारा: भारत में 26 जनवरी, 1950 को या उसके बाद लेकिन 1 जुलाई, 1987 से पहले जन्मा प्रत्येक व्यक्ति भारतीय नागरिक है, चाहे उसके माता-पिता की राष्ट्रीयता कुछ भी हो।
नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA), 2019
- CAA, 2019 नागरिकता अधिनियम, 1955 में संशोधन करता है, जो अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए कुछ अवैध प्रवासियों को भारत में नागरिकता का मार्ग प्रदान करता है।
- CAA, 2019 के तहत भारतीय नागरिकता के लिये पात्र व्यक्तियों में अफगानिस्तान, बांग्लादेश या पाकिस्तान में हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी या ईसाई समुदायों के व्यक्ति शामिल है ।
- 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले भारत में प्रवेश किया हो।
- पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920 की धारा 3(2)(c) के अंतर्गत या विदेशी विषयक अधिनियम, 1946 के प्रावधानों या उसके अंतर्गत बनाए गए किसी नियम या आदेश के आवेदन से छूट प्राप्त व्यक्ति शामिल हैं।
- ये कानून भारत में अवैध प्रवेश और निर्धारित समय से अधिक समय तक रहने पर दंड का प्रावधान करते हैं।
आगे की राह:
- विधायी कार्रवाई: भारत सरकार को भारतीय मूल के तमिलों को नागरिकता देने के लिये सुधारात्मक विधायी कार्रवाई करनी चाहिये, जिसमें वर्ष 1983 के बाद आए लोग भी शामिल हैं। इसके लिये राज्यविहीनता को प्रबंधित करने के लिये पूर्वव्यापी उपायों की आवश्यकता हो सकती है।
- संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायोग (UNHCR) के अनुसार, वर्तमान में भारत में लगभग 29,500 भारतीय मूल के तमिल रह रहे हैं, और भारत का नैतिक और कानूनी दायित्व है कि वह उन्हें नागरिकता का मार्ग प्रदान करे।
- प्राकृतिकीकरण प्रक्रिया: श्रीलंकाई तमिल शरणार्थियों के लिये निवास (प्राकृतिकीकरण) और एकीकरण के आधार पर भारतीय नागरिकता प्राप्त करने की प्रक्रिया को सरल और त्वरित बनाना।
- मानवीय दृष्टिकोण: सरकार को भारतीय मूल के तमिलों की गरिमा और अधिकारों को बहाल करने के लिये कानूनी तकनीकीताओं से परे जाकर दयालु और मानवीय रुख अपनाना चाहिये।
- शरणार्थी शिविरों में यौन और लिंग आधारित हिंसा को रोकने के लिये कमज़ोर समूहों के लिये इथियोपिया में UNHCR के "सेफ फ्रॉम द स्टार्ट" जैसे कार्यक्रमों को लागू करने की आवश्यकता है।
- सुलह: सामाजिक सामंजस्य बढ़ाने के लिये शरणार्थियों और स्थानीय समुदायों के बीच संवाद और शांति-निर्माण प्रयासों को बढ़ावा देना।
और पढ़ें: श्रीलंका में तमिलों का मुद्दा
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: भारत में श्रीलंकाई तमिल शरणार्थियों के समक्ष आने वाली कानूनी चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। उनकी राज्यविहीनता उनके बुनियादी अधिकारों और सेवाओं तक पहुँच को कैसे प्रभावित करती है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2016) कभी-कभी समाचारों में उल्लिखित समुदाय - किसके मामलों में
उपर्युक्त युग्मों में से कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (c) मेन्स:प्रश्न. अवैध सीमा पार प्रवास भारत की सुरक्षा के लिये कैसे खतरा उत्पन्न करता है? इस तरह के प्रवासन को बढ़ावा देने वाले कारकों को उजागर करते हुए इसे रोकने के लिये रणनीतियों पर चर्चा कीजिये। (2014) |
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
ग्लोबल साइबरसिक्योरिटी आउटलुक 2025
प्रिलिम्स के लिये:विश्व आर्थिक मंच (WEF), ग्लोबल साइबरसिक्योरिटी आउटलुक 2025, साइबर अपराध, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000, डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2022, भारतीय कंप्यूटर आपातकालीन प्रतिक्रिया दल, राष्ट्रीय महत्त्वपूर्ण सूचना अवसंरचना संरक्षण केंद्र (NCIIPC), भारत राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा अभ्यास 2024, दूरसंचार (महत्त्वपूर्ण दूरसंचार अवसंरचना) नियम, 2024 , बुडापेस्ट साइबर अपराध अभिसमय मेन्स के लिये:ग्लोबल साइबरसिक्यूरिटी आउटलुक 2025 रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएँ, साइबर सुरक्षा के लिये वर्तमान रूपरेखा, प्रमुख उभरते साइबर खतरे, आगे की राह |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विश्व आर्थिक मंच (WEF) ने ग्लोबल साइबरसिक्योरिटी आउटलुक 2025 रिपोर्ट जारी की।
- इस रिपोर्ट में भू-राजनीतिक तनाव, अप्रचलित प्रणालियों और साइबर सुरक्षा कौशल के अभाव के कारण महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे के लिये बढ़ते साइबर खतरों पर प्रकाश डाला गया है और सुरक्षा बढ़ाए जाने और लचीलेपन की आवश्यकता पर बल दिया गया है।
विश्व आर्थिक मंच (WEF)
- परिचय: विश्व आर्थिक मंच (WEF) सार्वजनिक-निजी सहयोग के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है। इस फोरम/मंच में वैश्विक, क्षेत्रीय और उद्योग एजेंडा को आयाम देने के लिये समाज के अग्रणी राजनीतिक, व्यावसायिक, सांस्कृतिक और अन्य अभिकर्त्ता शामिल होते हैं।
- मुख्यालय: जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड
- स्थापना: इसकी स्थापना वर्ष 1971 में जर्मन प्रोफेसर क्लॉस श्वाब द्वारा की गई थी। इसका मूल नाम यूरोपीय प्रबंधन मंच था।
टिप्पणी:
- ग्लोबल साइबरसिक्यूरिटी इंडेक्स (GCI) नामक यह सूचकांक अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ (ITU) द्वारा जारी किया जाता है तथा इसके अंतर्गत साइबर सुरक्षा के प्रति देशों की प्रतिबद्धता के आधार पर उनका मूल्यांकन और श्रेणीकरण किया जाता है।
- भारत ने GCI 2024 के 5वें संस्करण में टियर 1 का दर्जा प्राप्त कर साइबर सुरक्षा में एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है।
रिपोर्ट में उजागर किये गए प्रमुख मुद्दे कौन-से हैं?
- महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे की सुभेद्यता: जल, जैव सुरक्षा, संचार, ऊर्जा और जलवायु जैसे महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे क्षेत्र पुरानी प्रौद्योगिकियों और परपस्पर संबद्ध प्रणालियों के कारण साइबर हमलों के प्रति सुभेद्य हैं।
- साइबर अपराधी और राज्य अभिकर्त्ता अधोसमुद्री केबलों सहित परिचालन प्रौद्योगिकी को लक्षित करते हैं, जिससे वैश्विक डेटा प्रवाह के लिये खतरे उत्पन्न होते हैं।
- वर्ष 2024 में फिशिंग और सोशल इंजीनियरिंग हमलों में एकाएक बढ़ोतरी हुई, जिसमें 42% संगठनों ने ऐसी घटनाओं की रिपोर्ट की।
- उदाहरण: वर्ष 2024 में एक अमेरिकी जल यूटिलिटी कंपनी पर हुए साइबर हमले से परिचालन बाधित हुआ, जिससे जल उपचार सुविधाओं की सुभेद्यता उजागर हुईं।
- भू-राजनीतिक तनाव: रूस-यूक्रेन युद्ध जैसे भू-राजनीतिक संघर्षों ने ऊर्जा, दूरसंचार और जल जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों पर साइबर और भौतिक हमलों को बढ़ा दिया है।
- लगभग 60% संगठनों का कहना है कि भू-राजनीतिक तनावों ने उनकी साइबर सुरक्षा रणनीति को प्रभावित किया है।
- जैव सुरक्षा संबंधी खतरे: कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), आनुवंशिक इंजीनियरिंग और जैव प्रौद्योगिकी में प्रगति ने जैव सुरक्षा जोखिमों को बढ़ा दिया है, जैव प्रयोगशालाओं पर साइबर हमलों से अनुसंधान और सुरक्षा प्रोटोकॉल को खतरा हो रहा है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने इन जोखिमों के बारे में चेतावनी जारी की है। जैसा कि वर्ष 2024 में दक्षिण अफ्रीका और ब्रिटेन में प्रयोगशालाओं पर होने वाले हमलों से स्पष्ट है।
- साइबर सुरक्षा कौशल अंतराल (Cybersecurity Skills Gap): रिपोर्ट में एक महत्त्वपूर्ण साइबर सुरक्षा कौशल अंतराल पर प्रकाश डाला गया है। विश्व में 4.8 मिलियन पेशेवरों में आवश्यक योग्यताओं का अभाव है।
- दो-तिहाई संगठनों को उल्लेखनीय कौशल अंतराल का सामना करना पड़ रहा है, जिनमें से केवल 14% के पास वर्तमान साइबर परिदृश्य के लिये आवश्यक कुशल कार्मिक हैं।
- साइबर के अनुकूल: 35% छोटे संगठनों का मानना है कि उनकी साइबर अनुकूलता अपर्याप्त है।
- सार्वजनिक क्षेत्र के संगठनों को अधिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिनमें से 38% ने कम लचीलेपन की रिपोर्ट दी है और 49% में साइबर सुरक्षा प्रतिभा की कमी है, जो 2024 की तुलना में 33% की वृद्धि है।
- क्षेत्रीय साइबर सुरक्षा असमानताएँ:
- रिपोर्ट में वैश्विक साइबर सुरक्षा असमानताओं पर प्रकाश डाला गया है, जिसमें घटना प्रतिक्रिया में विश्वसनीय यूरोप/उत्तरी अमेरिका में 15% से बढ़कर अफ्रीका में 36% और लैटिन अमेरिका में 42% हो गया है।
- साइबर अपराध के कारण नुकसान: साइबर अपराध के कारण नुकसान: कम परिचालन व्यय और उच्च रिटर्न की संभावना के साथ, साइबर अपराध एक बहुत ही आकर्षक व्यवसाय बन गया है।
- अमेरिकी संघीय जांच ब्यूरो (FBI) का अनुमान है कि वर्ष 2023 में साइबर अपराध से होने वाला नुकसान 12.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक हो जाएगा।
आगे की राह:
- साइबर सुरक्षा में रणनीतिक निवेश: वैश्विक साइबर सुरक्षा परिदृश्य 2025 में साइबर सुरक्षा में रणनीतिक निवेश का आह्वान किया गया है, तथा सरकारों से पुरानी प्रणालियों का आधुनिकीकरण करने, परिचालन प्रौद्योगिकियों को उन्नत करने तथा जल, ऊर्जा और जैव सुरक्षा जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों को बढ़ते खतरों से बचाने का आग्रह किया गया है।
- कोस्टा रिका पर वर्ष 2022 के साइबर हमलों ने साइबर सुरक्षा को भविष्य के लिये एक महत्त्वपूर्ण निवेश के रूप में देखने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला है, न कि केवल एक व्यय के रूप में।
- प्रतिस्पर्द्धा व्यावसायिक प्राथमिकताओं के साथ साइबर सुरक्षा में निवेश को संतुलित करना महत्त्वपूर्ण है।
- सार्वजनिक-निजी सहयोग: खतरे की खुफिया जानकारी साझा करने, सुरक्षित प्रौद्योगिकियों को विकसित करने तथा साइबर सुरक्षा अनुकूलता बढ़ाने के लिये सार्वजनिक-निजी सहयोग महत्त्वपूर्ण है।
- इसके अलावा, लघु और मध्यम उद्यमों (SME) को मज़बूत सरकारी प्रोत्साहन के बिना साइबर सुरक्षा में निवेश करना चुनौतीपूर्ण लग सकता है।
- साइबर सुरक्षा कौशल में निवेश: उभरते साइबर खतरों का मुकाबला करने के लिये कुशल प्रतिभा पूल बनाने हेतु विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रमों का विस्तार करने, प्रमाणपत्र प्रदान करने और कार्यबल विकास को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है ।
- रोकथाम की बजाय लचीलेपन पर ध्यान केंद्रित करना: उभरते साइबर खतरों के मद्देनजर, राष्ट्रों को त्वरित प्रतिक्रिया तंत्र को बढ़ाकर, संकट प्रबंधन ढाँचे की स्थापना करके, तथा हमलों के दौरान आवश्यक सेवाओं की निरंतरता सुनिश्चित करके लचीलेपन को प्राथमिकता देनी चाहिये।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: सीमाहीन साइबर खतरों से निपटने के लिये, राष्ट्रों को साइबर सुरक्षा मानकों को स्थापित करने के लिये संयुक्त राष्ट्र (UN) और G-20 जैसे मंचों के माध्यम से सहयोग करना चाहिये, जबकि विकसित देशों को उभरती अर्थव्यवस्थाओं को उनके साइबर सुरक्षा ढाँचे को मज़बूत करने और साइबर हमलों के खिलाफ लचीलापन बढ़ाने में सहायता करनी चाहिये।
भारत में साइबर सुरक्षा के लिये वर्तमान रूपरेखा क्या है?
- विधायी उपाय:
- संस्थागत ढाँचा:
- रणनीतिक पहल:
- भारत राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा अभ्यास 2024
- राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति, 2013: साइबरस्पेस को सुरक्षित करने और महत्त्वपूर्ण सूचना अवसंरचना की रक्षा के लिये दृष्टिकोण और रणनीति प्रदान करती है।
- क्षेत्र-विशिष्ट विनियम:
- सेबी विनियमित संस्थाओं के लिये साइबर सुरक्षा ढाँचा: प्रतिभूति बाज़ारों के लिये साइबर सुरक्षा नीतियों को अनिवार्य बनाता है।
- दूरसंचार (महत्त्वपूर्ण दूरसंचार अवसंरचना) नियम, 2024
निष्कर्ष
ग्लोबल साइबरसिक्यूरिटी आउटलुक 2025 में महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे के लिये बढ़ते साइबर खतरों पर प्रकाश डाला गया है, तथा रणनीतिक निवेश, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और मज़बूत साइबर सुरक्षा ढाँचे की आवश्यकता पर बल दिया गया है। जैसे-जैसे साइबर खतरे विकसित होते हैं, राष्ट्रों को राष्ट्रीय सुरक्षा, सार्वजनिक सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे की सुरक्षा को प्राथमिकता देनी चाहिये।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: डिजिटल युग में भारत के सामने आने वाली प्रमुख साइबर सुरक्षा चुनौतियों पर चर्चा कीजिये और महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे की सुरक्षा के लिये अपने साइबर सुरक्षा ढाँचे को बढ़ाने के उपायों का सुझाव दीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्सप्रश्न. भारत में, किसी व्यक्ति के साइबर बीमा कराने पर, निधि की हानि की भरपाई एवं अन्य लाभों के अतिरिक्त निम्नलिखित में से कौन-कौन से लाभ दिये जाते हैं? (2020)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2 और 4 उत्तर: (b) प्रश्न. भारत में साइबर सुरक्षा घटनाओं पर रिपोर्ट करना निम्नलिखित में से किसके/किनके लिये विधितः अधिदेशात्मक है? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (d) मेन्सप्रश्न. साइबर सुरक्षा के विभिन्न तत्त्व क्या हैं? साइबर सुरक्षा की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए समीक्षा कीजिये कि भारत ने किस हद तक व्यापक राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा रणनीति सफलतापूर्वक विकसित की है। (2022) |
भारतीय इतिहास
सुभाष चंद्र बोस की विरासत
प्रिलिम्स के लिये:पराक्रम दिवस, रासबिहारी बोस, इंडियन नेशनल आर्मी, सुभाष चंद्र बोस, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, परमवीर चक्र, प्रेसीडेंसी कॉलेज, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, आनंद मठ, महात्मा गांधी, भारतीय महासंघ, राजेंद्र प्रसाद, फॉरवर्ड ब्लॉक, ब्लैक होल त्रासदी, आज़ाद हिंद रेडियो, अलीपुर बम केस, गदर आंदोलन, वीर सावरकर, इंडियन इंडिपेंडेंस लीग (IIL)। मेन्स के लिये:भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सुभाष चंद्र बोस और रास बिहारी बोस का योगदान। |
स्रोत: पी.आई.बी
चर्चा में क्यों?
पराक्रम दिवस 2025 के अवसर पर, संस्कृति मंत्रालय नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जन्मस्थली कटक में बाराबती किले में 23 जनवरी से 25 जनवरी 2025 तक एक भव्य समारोह का आयोजन कर रहा है।
- 21 जनवरी को इंडियन नेशनल आर्मी के संस्थापक नेता रास बिहारी बोस की 80 वीं पुण्यतिथि थी, जिनके साथ सुभाष चंद्र बोस जुड़े थे।
पराक्रम दिवस क्या है?
- परिचय: पराक्रम दिवस भारत के महानतम स्वतंत्रता सेनानियों में से एक नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती के उपलक्ष्य में 23 जनवरी को प्रतिवर्ष मनाया जाता है।
- पराक्रम दिवस 2025 सुभाष चंद्र बोस (SC बोस) की 128 वीं जयंती पर मनाया जा रहा है।
- विगत समारोह:
- वर्ष 2021: पहला पराक्रम दिवस कोलकाता के विक्टोरिया मेमोरियल में आयोजित किया गया।
- वर्ष 2022: इंडिया गेट, नई दिल्ली पर नेताजी की होलोग्राम प्रतिमा का अनावरण किया गया।
- वर्ष 2023: अंडमान और निकोबार के 21 द्वीपों का नाम मेजर सोमनाथ शर्मा, नायक जदुनाथ सिंह आदि परमवीर चक्र पुरस्कार विजेताओं के नाम पर रखा गया।
- वर्ष 2024: इस कार्यक्रम का उद्घाटन दिल्ली के लाल किले में किया गया, जो INA का ट्रायल स्थल था।
- महत्त्व: यह दिन नेताजी सुभाष चंद्र बोस के साहस, वीरता और देशभक्ति का प्रतीक है, जिन्होंने इंडियन नेशनल आर्मी (INA) का नेतृत्व किया और पूर्ण स्वतंत्रता की वकालत की।
- यह नेताजी के प्रसिद्ध नारे, "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा" की भी याद दिलाता है, जिसने भारत की आजादी की लड़ाई में लाखों लोगों को प्रेरित किया था।
SC बोस के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?
- प्रारंभिक जीवन: वर्ष 1897 में कटक (अब ओडिशा में, तब बंगाल में ) में जानकीनाथ और प्रभावती बोस के घर जन्मे नेताजी का पालन-पोषण एक ऐसे परिवार में हुआ, जो अंग्रेज़ी शिक्षा और हिंदू रीति-रिवाजों को महत्त्व देता था।
- उन्होंने रेवेनशॉ कॉलेजिएट स्कूल में शिक्षा प्राप्त की और बाद में कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में अध्ययन किया, जहाँ वे ब्रिटिश विरोधी सक्रियता में शामिल हो गये।
- वैचारिक आधार: वह रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं के साथ-साथ बंकिम चंद्र चटर्जी के आनंद मठ के विषयों से भी प्रेरित थे।
- उन्होंने पश्चिमी और भारतीय संस्कृतियों का एक अनूठा संश्लेषण विकसित किया, जो भारत की स्वतंत्रता और पुनरुत्थान पर केंद्रित था।
- प्रारंभिक राजनीतिक भागीदारी: एस.सी. बोस ने वर्ष 1920 में भारतीय सिविल सेवा परीक्षा उत्तीर्ण की, लेकिन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिये उन्होंने वर्ष 1921 में इस्तीफा दे दिया।
- वर्ष 1921 में नेताजी ने बम्बई में महात्मा गांधी से मुलाकात की लेकिन स्वतंत्रता के प्रति उनके दृष्टिकोण (विशेषकर उनके धैर्य एवं अहिंसा के प्रति प्रतिबद्धता) से वह असहमत थे।
- कॉन्ग्रेस से मतभेद: वर्ष 1938 में नेताजी हरिपुरा अधिवेशन में कॉन्ग्रेस अध्यक्ष चुने गए और उन्होंने स्वराज की वकालत की तथा भारत सरकार अधिनियम, 1935 के तहत भारतीय संघ का विरोध किया।
- वर्ष 1939 में नेताजी त्रिपुरी अधिवेशन में गांधी समर्थित डॉ पट्टाभि सीतारमैया को हराकर कॉन्ग्रेस अध्यक्ष के रूप में फिर से चुने गए। गांधी ने इसे व्यक्तिगत हार के रूप में देखा जिसके कारण जेएल नेहरू, पटेल और राजेंद्र प्रसाद सहित कार्यकारिणी समिति के 15 सदस्यों में से 12 ने इस्तीफा दे दिया।
- बोस ने एक नई कार्यसमिति बनाने का प्रयास किया लेकिन वह असफल रहे , जिसके कारण उन्हें इस्तीफा देना पड़ा और उनके स्थान पर राजेंद्र प्रसाद को नियुक्त किया गया।
- बोस ने 29 अप्रैल 1939 को पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया और स्वतंत्रता के बाद साम्राज्यवाद-विरोध एवं समाजवाद पर आधारित वैकल्पिक नेतृत्व की पेशकश करते हुए उग्र-वामपंथी कॉन्ग्रेस सदस्यों को एकजुट करने के लिये फॉरवर्ड ब्लॉक का प्रस्ताव रखा।
- वर्ष 1939 में नेताजी त्रिपुरी अधिवेशन में गांधी समर्थित डॉ पट्टाभि सीतारमैया को हराकर कॉन्ग्रेस अध्यक्ष के रूप में फिर से चुने गए। गांधी ने इसे व्यक्तिगत हार के रूप में देखा जिसके कारण जेएल नेहरू, पटेल और राजेंद्र प्रसाद सहित कार्यकारिणी समिति के 15 सदस्यों में से 12 ने इस्तीफा दे दिया।
- मृत्यु: द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हिरोशिमा एवं नागासाकी पर परमाणु बम गिराए जाने के बाद, 16 अगस्त 1945 को जापानियों ने आत्मसमर्पण कर दिया और बोस ने जापानी विमान से दक्षिण पूर्व एशिया छोड़कर चीन की ओर प्रस्थान किया। हालांकि, विमान कथित तौर पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया और एससी बोस बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए, लेकिन कुछ विवरणों के अनुसार वे अभी भी जीवित हैं।
- विरासत: बोस के नेतृत्व, विचारधारा और पूर्ण स्वतंत्रता के आह्वान ने उन्हें भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सबसे प्रभावशाली व्यक्तियों में से एक बना दिया।
भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में एस.सी बोस की भूमिका क्या थी?
- क्रांतिकारी भूमिका: बोस को वर्ष 1940 में गिरफ्तार कर लिया गया, इससे पहले कि वे कलकत्ता में ब्लैक होल त्रासदी को समर्पित स्मारक को हटाने के लिये अभियान चला पाते, जहाँ 20 जून 1756 (प्लासी के युद्ध से एक वर्ष पूर्व) को 123 यूरोपीय मारे गए थे।
- वर्ष 1941 में पहचान बदलकर भारत से भागना, स्वतंत्रता के लिये उनके अथक प्रयास को दर्शाता है।
- अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन: यूरोप पहुँचने के बाद बोस ने नाजी जर्मनी, सोवियत संघ और बाद में एशिया में इंपीरियल जापान से समर्थन मांगा, यह देश द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटेन को हराने में रुचि रखते थे।
- बोस को आज़ाद हिंद रेडियो शुरू करने की अनुमति दी गई और उन्हें द्वितीय विश्व युद्ध में धुरी राष्ट्रों द्वारा पकड़े गए कुछ हज़ार भारतीय युद्ध बंदी भी दिये गए।
- दक्षिण पूर्व एशिया की यात्रा: फरवरी 1943 में बोस और उनके सहयोगी आबिद हसन एक पनडुब्बी में जर्मनी से चले और अटलांटिक महासागर, केप ऑफ गुड होप तथा हिंद महासागर को पार करते हुए टोक्यो पहुँचे। इस दौरान उन्होंने 90 दिनों की दुर्गम यात्रा पूरी की।
- आजाद हिंद फौज (INA): INA का गठन वर्ष 1942 में हुआ था। इसमें जापान द्वारा कैदी बनाए गए कई भारतीय युद्ध बंदी शामिल थे तथा उन्हें जापानी सैनिकों का समर्थन प्राप्त था।
- चलो दिल्ली अभियान के तहत, बोस के नेतृत्व में INA ने भारत-बर्मा सीमा पार की और मार्च 1944 में इम्फाल और कोहिमा की ओर कूच किया। हालाँकि, जापान की हार के साथ यह इम्फाल में समाप्त हो गया।
- प्रारंभ में, कैप्टन मोहन सिंह को आई.एन.ए. का कमांडर नियुक्त किया गया था।
- आज़ाद हिंद सरकार: अक्तूबर 1943 में बोस ने सिंगापुर में आज़ाद हिंद की अंतः कालीन सरकार की स्थापना की। जनवरी 1944 में इसका मुख्यालय रंगून में स्थानांतरित कर दिया गया।
- इसे 9 देशों अर्थात् जापान, जर्मनी, इटली, क्रोएशिया, बर्मा, थाईलैंड, फिलीपींस, मंचूरिया और चीन गणराज्य (वांग जिंगवेई के अधीन) द्वारा मान्यता दी गई।
- INA महिला रेजिमेंट: बोस ने झाँसी की रानी रेजिमेंट का भी गठन किया, जिसमें महिलाएँ शामिल थी, जिन्होंने स्वतंत्रता के संघर्ष में पुरुषों के साथ मिलकर लड़ाई लड़ी थी।
- आज़ाद हिंद फौज पर अभियोग: शाह नवाज़ खान, प्रेम कुमार सहगल और गुरबख्श सिंह ढिल्लों पर किये गए अभियोग के दौरान लोगों की राष्ट्रवादी भावना अपने चरम पर थी, जिससे यह ब्रिटिश राज के खिलाफ हिंसक टकराव में परिणत हुआ।
- INA अभियोग, 1945 से 46 में ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार द्वारा आयोजित सैन्य अधिकरणों की एक शृंखला थी, जिसमें आज़ाद हिंद फौज के अधिकारियों और सैनिकों पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया था।
गांधी जी और बोस के बीच क्या वैचारिक मतभेद थे?
पहलू |
महात्मा गांधी |
सुभाष चंद्र बोस |
विचारधारा |
गांधी के अनुसार स्वतंत्रता प्राप्ति के साधन के रूप में अहिंसा और सत्याग्रह आवश्यक हैं। |
बोस उग्रवादी प्रतिरोध के समर्थक थे तथा इनके अनुसार हिंसक प्रतिरोध से ही भारत स्वतंत्र हो सकता था। |
साधन और साध्य |
गांधी ने वांछनीय उद्देश्यों के लिये अनैतिक तरीकों का उपयोग करने के विचार को अस्वीकार करते हुए नैतिक साधनों पर ज़ोर दिया। |
कार्रवाई के परिणाम पर ध्यान केंद्रित किया और इसके अतिरिक्त भारत की स्वतंत्रता के लिये धुरी शक्तियों (जर्मनी और जापान) के साथ गठबंधन भी किया। |
सरकार की संरचना |
आत्मनिर्भर ग्राम गणराज्यों के साथ विकेंद्रीकरण की मांग की और साथ ही राज्य के न्यूनतम नियंत्रण का समर्थन किया। |
समाजवादी योजना के साथ एक सुदृढ़ केंद्रीय सरकार का समर्थन किया और इनके अनुसार प्रारंभ में एक सत्तावादी प्रणाली आवश्यक थी। |
आर्थिक दृष्टि |
औद्योगीकरण और वृहद स्तर के मशीनीकरण का विरोध किया और एक आत्मनिर्भर, ग्राम-आधारित अर्थव्यवस्था की वकालत की। |
आर्थिक विकास और सामाजिक उत्थान के लिये आधुनिकीकरण, औद्योगीकरण और वैज्ञानिक विकास का समर्थन किया। |
जाति और अस्पृश्यता |
उन्होंने अस्पृश्यता का विरोध किया, लेकिन सामाजिक समरसता के लिये वर्ण व्यवस्था का समर्थन किया और जाति-आधारित कर्तव्यों की वकालत की। |
जाति व्यवस्था का पूर्ण रूप से बहिष्कार किया और जातिविहीन, समतावादी समाज और अंतर्जातीय विवाह की वकालत की। |
सैनिक शासन |
सैन्यवाद का विरोध किया और न्यूनतम रक्षात्मक बल में विश्वास किया तथा शांति एवं अहिंसा पर ज़ोर दिया। |
सैन्य अनुशासन की प्रशंसा की; ब्रिटिश शासन से लड़ने के लिये इंडियन नेशनल आर्मी की स्थापना की। |
शिक्षा |
बुनियादी शिक्षा (नई तालीम) का समर्थन किया, जिसमें नैतिकता, आत्मनिर्भरता और स्थानीय शिल्प में व्यावसायिक प्रशिक्षण पर ध्यान केंद्रित किया गया। |
औद्योगिक और राष्ट्रीय विकास के लिये तकनीकी और वैज्ञानिक क्षेत्रों में उच्च शिक्षा पर ज़ोर दिया गया। |
ब्रिटिश शासन के प्रति दृष्टिकोण |
ब्रिटिशों के साथ सहयोग को अस्वीकार कर दिया, विशेष रूप से द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, और फासीवादी शक्तियों के साथ गठबंधन का विरोध किया। |
ब्रिटिश पाखंड की आलोचना की और भारत की स्वतंत्रता के लिये उनकी कमज़ोरियों का फायदा उठाने के लिये धुरी शक्तियों के साथ गठबंधन की मांग की। |
स्वतंत्रता के लिये विजन |
शासन के प्रति नैतिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण के साथ अहिंसक सविनय अवज्ञा के माध्यम से स्वराज का समर्थन किया। |
क्रांतिकारी कार्रवाई के माध्यम से तत्काल स्वतंत्रता और स्वतंत्रता के बाद पुनर्निर्माण के लिये समाजवादी मॉडल की मांग की। |
सुभाष चंद्र बोस आपदा प्रबंधन पुरस्कार
- भारत में आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में व्यक्तियों और संगठनों द्वारा दिये गए अमूल्य योगदान और निस्वार्थ सेवा को मान्यता देने और सम्मानित करने के लिये वर्ष 2018 में वार्षिक सुभाष चंद्र बोस आपदा प्रबंधन पुरस्कार की स्थापना की गई है।
- इस पुरस्कार की घोषणा प्रत्येक वर्ष 23 जनवरी को की जाती है।
- इसमें संस्थान के लिये 51 लाख रुपए का नकद पुरस्कार और प्रमाण पत्र तथा व्यक्तिगत पुरस्कार के लिये 5 लाख रुपए और प्रमाण पत्र दिया जाता है।
रास बिहारी बोस के बारे में मुख्य बिंदु क्या हैं?
- बंगाल में जन्मे रास बिहारी बोस युवावस्था से ही क्रांतिकारी आदर्शों से प्रेरित थे और 16 वर्ष की उम्र में स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गए।
- क्रांतिकारी गतिविधियाँ: अलीपुर बम कांड (1908) के दौरान उन्हें प्रसिद्धि मिली, तथा वर्ष 1912 में वायसराय चार्ल्स हार्डिंग की हत्या की साजिश में उन्होंने भाग लिया।
- वर्ष 1913 में रास बिहारी बोस की मुलाकात जतिन मुखर्जी (बाघा जतिन) से हुई, जिनके मार्गदर्शन में बोस भारत की स्वतंत्रता के लिये लड़ने के लिये और अधिक दृढ़ हो गए।
- वह गदर आंदोलन में एक प्रमुख व्यक्ति के रूप मे उभरकर सामने आए, जो ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकने के लिये भारतीय प्रवासियों द्वारा स्थापित एक अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक आंदोलन था।
- वर्ष 1924 में जापान में रास बिहारी बोस की मुलाकात सुभाष चंद्र बोस से हुई, जिसमें वीर सावरकर ने सहयोग किया।
- जापान पलायन: ब्रिटिश खुफिया एजेंसी से बचकर, उन्होंने वर्ष 1915 में भारत छोड़ दिया और अंततः जापान में शरण ली।
- वर्ष 1924 में, उन्होंने जापान में भारतीय स्वतंत्रता लीग (आईआईएल) की स्थापना की, जिसका लक्ष्य ब्रिटिश शासन के विरुद्ध संघर्ष के लिये भारतीयों को संगठित करना तथा लामबंद करना था।
- आज़ाद हिंद फौज: वर्ष 1942 में रासबिहारी बोस ने भारत की आज़ादी के लिये लड़ने के लिये आज़ाद हिंद फौज का गठन किया।
- उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व करने की उनकी क्षमता को पहचानते हुए, आई.एन.ए. का नेतृत्व सुभाष चंद्र बोस को सौंप दिया।
निष्कर्ष:
सुभाष चंद्र बोस और रास बिहारी बोस दोनों की विरासत भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को प्रेरित करती रही है। सुभाष बोस ने आज़ाद हिंद फौज का नेतृत्व किया, जबकि रास बिहारी बोस ने इसकी नींव रखी तथा भारत के स्वतंत्रता संग्राम के लिये क्रांतिकारियों को एकजुट करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसने इतिहास में एक अमिट छाप छोड़ी।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: भारत की स्वतंत्रता के लिये सुभाष चंद्र बोस का दृष्टिकोण महात्मा गांधी के दृष्टिकोण से किस प्रकार भिन्न था? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्स:प्रश्न. औपनिवेशिक भारत के संदर्भ में शाह नवाज खान, प्रेम कुमार सहगल और गुरबख्श सिंह ढिल्लों किस रूप में याद किये जाते हैं? (2021) (a) स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन के नेता के रूप में उत्तर: (d) प्रश्न . भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान निम्नलिखित में से किसने 'फ्री इंडियन लीजन' नामक सेना स्थापित की थी? (2008) (a) लाला हरदयाल उत्तर: c |