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डेली न्यूज़

  • 20 Aug, 2024
  • 56 min read
शासन व्यवस्था

सिविल सेवाओं में पार्श्व प्रवेश (लेटरल एंट्री)

प्रिलिम्स के लिये:

संघ लोक सेवा आयोग (UPSC), अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC), अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST), नीति आयोग, द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC)।

मेन्स के लिये:

नौकरशाही में लेटरल एंट्री का मुद्दा, नौकरशाही में उच्च पदों पर आरक्षण का मुद्दा, इसके निहितार्थ और आगे की राह।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) ने लेटरल एंट्री/पार्श्व प्रवेश योजना के माध्यम से सरकारी विभागों में विशेषज्ञ के रूप में 45 संयुक्त सचिवों, निदेशकों और उप सचिवों की नियुक्ति के लिये अधिसूचना जारी की है।

लेटरल एंट्री स्कीम/पार्श्व प्रवेश योजना क्या है?

  • परिचय: 
    • लेटरल एंट्री से तात्पर्य सरकार के बाहर से व्यक्तियों को सीधे मध्य-स्तर और वरिष्ठ स्तर के पदों पर नियुक्त करने की प्रक्रिया से है। 
    • यह डोमेन-विशिष्ट विशेषज्ञता और नए दृष्टिकोण लाकर शासन में सुधार लाने का प्रयास करता है।
    • इन 'लेटरल एंट्रीज़' में व्यक्तियों को 3 वर्ष के अनुबंध पर नियुक्त किया जाता है जिसे अधिकतम 5 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है।
  • उत्पत्ति और कार्यान्वयन:
    • लेटरल एंट्री की अवधारणा पहली बार वर्ष 2004-09 के दौरान पेश की गई थी और वर्ष 2005 में स्थापित द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) द्वारा इसका दृढ़ता से समर्थन किया गया था।
    • बाद में, नए कौशल और दृष्टिकोण लाने के लिये इसे वर्ष 2017 में नीति आयोग द्वारा प्रस्तावित किया गया था।
      • वर्ष 2017 में नीति आयोग ने अपने तीन वर्षीय कार्य एजेंडा तथा शासन पर सचिवों के क्षेत्रीय समूह (SGoS) द्वारा मध्यम एवं वरिष्ठ प्रबंधन स्तर पर कार्मिकों की भर्ती के संबंध में केंद्र सरकार को सिफारिश की थी। 
  • पात्रता:
    • निजी क्षेत्र, राज्य सरकारों, स्वायत्त निकायों या सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों से संबंधित क्षेत्रों में विषय विशेषज्ञता रखने वाले ऐसे व्यक्तियों जिनका ट्रैक रिकॉर्ड अच्छा रहा है, इन पदों के लिये आवेदन करने के पात्र हैं।   
    • चयन मानदंड सामान्यतः पेशेवर उपलब्धि और विषय वस्तु विशेषज्ञता पर ज़ोर देते हैं।
  • लेटरल एंट्री में आरक्षण:
    •  "13-पॉइंट रोस्टर" नीति के कारण लेटरल एंट्री को आरक्षण प्रणाली से बाहर रखा गया है।
      • "13-पॉइंट रोस्टर" नीति, किसी उम्मीदवार के समूह के कोटा प्रतिशत (SC, ST, OBC और EWS) की गणना सौ के अंश के रूप में करके नौकरी के रिक्त पदों की सूची में उसके स्थान का निर्धारण करने हेतु एक विधि स्थापित करती है।
    • चूँकि प्रत्येक लेटरल एंट्री की स्थिति को "एकल पद" माना जाता है, इसलिये इसमें आरक्षण प्रणाली लागू नहीं होता है, जिससे आरक्षण दिशानिर्देशों का पालन किये बिना ये नियुक्तियाँ की जा सकती हैं।
    • भर्ती के मौजूदा दौर में प्रत्येक विभाग के लिये अलग-अलग 45 रिक्तियों का विज्ञापन किया गया है। यदि इसे एकल समूह के रूप में माना जाए तो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग के उम्मीदवारों के लिये विशिष्ट आवंटन के साथ आरक्षण लागू होगा।
      • हालाँकि, रिक्तियों को अलग-अलग पदों के रूप में माना जाता है, इसलिये इसमें आरक्षण प्रक्रियाओं का पालन नहीं होता है, जिससे प्रभावी रूप से आरक्षित श्रेणियाँ इन पदों से बाहर हो जाती हैं।
  • अब तक हुई नियुक्तियों  की संख्या:
    • वर्ष 2018 में लेटरल एंट्री प्रक्रिया शुरू होने के बाद से कुल 63 व्यक्तियों को विभिन्न मंत्रालयों/विभागों में नियुक्त किया गया है। 
    • अगस्त 2023 तक, इनमें से 57 पार्श्व प्रवेशक वर्तमान में केंद्र सरकार के तहत विभिन्न पदों पर कार्यरत हैं।

लेटरल एंट्री स्कीम पर ARC की सिफारिशें

  • प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) (1966): इसकी स्थापना मोरारजी देसाई की अध्यक्षता में की गई थी, जिसका उद्देश्य सिविल सेवाओं के भीतर प्रशिक्षण और कार्मिक प्रबंधन को पेशेवर बनाना तथा सुधारना था।
    • यद्यपि इसमें विशेष रूप से लेटरल एंट्री का समर्थन नहीं किया गया, फिर भी इसने नौकरशाही में विशेष कौशल की आवश्यकता को संबोधित करने हेतु आधार तैयार किया।
  • द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) (2005): इसने भारतीय प्रशासनिक प्रणाली की प्रभावशीलता, पारदर्शिता और नागरिक सुलभता में सुधार के लिये सिफारिश की।
    • अपनी 10वीं रिपोर्ट में, ARC ने उच्च सरकारी पदों पर लेटरल एंट्री की आवश्यकता पर ज़ोर दिया ताकि विशिष्ट विशेषज्ञता और योग्यताएँ प्राप्त की जा सकें, जो पारंपरिक सिविल सेवा में हमेशा उपलब्ध नहीं होतीं।
    • इसने निजी क्षेत्र, शिक्षाविदों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों से पेशेवरों की भर्ती का प्रस्ताव रखा, जिससे अल्पकालिक या संविदात्मक भूमिकाओं के लिये  टैलेंट पूल का निर्माण हो सके। 
    • ARC ने पारदर्शी, योग्यता-आधारित चयन प्रक्रिया की भी सिफारिश की और सिविल सेवा की अखंडता को बनाए रखते हुए पार्श्व प्रवेशकों को एकीकृत करने पर ज़ोर दिया।

आयु-आधारित नियुक्ति से लेकर निश्चित कार्यकाल प्रणाली तक नौकरशाही में सामाजिक न्याय सुनिश्चित करना

  • वर्तमान में, शीर्ष नौकरशाही पदों (संयुक्त सचिव, निदेशक और उप सचिव आदि) में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के अधिकारी केवल 4% और 4.9% हैं।
  • आयु-आधारित सेवानिवृत्ति के स्थान पर एक निश्चित कार्यकाल प्रणाली लागू करने का प्रस्ताव रखा गया है, जिससे सभी अधिकारियों को वरिष्ठ पदों तक पहुँचने के समान अवसर मिल सकें।
    • निश्चित कार्यकाल प्रणाली का अर्थ है सभी सिविल सेवकों (अनारक्षित, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग) के लिये 35 वर्ष की निश्चित कार्यकाल प्रणाली होना, चाहे प्रवेश की आयु कुछ भी हो, ताकि समान अवसर सुनिश्चित हो और आयु के बजाय योग्यता पर ध्यान दिया जा सके।
      • सिविल सेवा परीक्षा के लिये मौजूदा आयु-आधारित पात्रता मानदंड अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति और दिव्यांग आवेदकों के लिये प्रतिकूल हैं, जो देरी से प्रवेश तथा अनिवार्य सेवानिवृत्ति के कारण शीर्ष रैंक प्राप्त करने में असमर्थ हैं।
  • पक्ष में तर्क:
    • प्रतिनिधित्व में वृद्धि: निश्चित कार्यकाल से SC/ST और OBC अधिकारियों को वरिष्ठ पदों तक पहुँचने में सहायता मिल सकती है, जिससे उनका प्रतिनिधित्व बढ़ सकता है।
    • योग्यता पर ध्यान: प्रवेश के समय आयु की तुलना में योग्यता को प्राथमिकता देना सुनिश्चित करता है कि कुशल व्यक्ति आगे बढ़ सकें।
    • सामाजिक न्याय को बढ़ावा देना: अधिक समावेशी नौकरशाही के लक्ष्यों के साथ संरेखित करता है।
    • व्यवहार्यता: बढ़ती जीवन प्रत्याशा और नियमित फिटनेस जाँच के साथ विस्तारित कार्य वर्ष व्यवहार्य हैं।
  • विपक्ष में तर्क:
    • आयु संबंधी चिंताएँ: कार्यकाल बढ़ाने से सत्तर वर्ष की आयु तक सेवारत अधिकारियों को संभावित रूप से 67 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्ति सुनिश्चित करने के लिये आयु सीमा कम करने की आवश्यकता हो सकती है।
    • परिवर्तन का प्रतिरोध: पारंपरिक वरिष्ठता-आधारित प्रणाली बहुत मज़बूत है और परिवर्तनों को कड़े विरोध का सामना करना पड़ सकता है।
    • राजनीतिक मुद्दे: निश्चित कार्यकाल को योग्यता-आधारित पदोन्नति को कम करने के रूप में देखा जा सकता है और इससे आयु, अनुभव एवं प्रदर्शन पर बहस छिड़ सकती है।

सिविल सेवाओं में लेटरल एंट्री स्कीम के पक्ष में तर्क क्या हैं?

  • विशिष्ट कौशल और विशेषज्ञता: लेटरल एंट्री सरकार को प्रौद्योगिकी, प्रबंधन और वित्त जैसे क्षेत्रों में विशेषज्ञता रखने वाले विशेषज्ञों की भर्ती करने की अनुमति देता है, जिससे इन क्षेत्रों, विशेषज्ञता संबंधी अभावो को संबोधित किया जा सकता है, जो विशेषज्ञता सामान्य रूप से भर्ती किये जाने वाले सिविल सेवकों के पास नहीं होती है, यह शासन की जटिलताओं को अनुकूलित करने हेतु एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
  • नवाचार और सुधार: पार्श्व भर्तियाँ के माध्यम से निजी क्षेत्र, गैर सरकारी संगठनों या अन्य संगठनों से मूल्यवान अनुभव को समाविष्ट किया जा सकता है, जो प्रशासनिक प्रक्रियाओं और शासन व्यवस्था को सुधारने तथा उन्हें सुदृढ़ करने में सहायक हो सकता है।
  • अंतराल को भरना: कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग के आँकड़ों के अनुसार लगभग 1500 IAS अधिकारियों की कमी है। लेटरल एंट्री इस कमी को पूरा करने में सहायता कर सकती है।
  • कार्य संस्कृति में बदलाव लाना: यह सरकारी क्षेत्र की कार्यस्थल संस्कृति, जिसकी नियम-पुस्तिका नौकरशाही, यथास्थिति और लालफीताशाही के लिये निंदा की जाती है, में बदलाव लाने में सहायता करेगा।
  • सहभागी शासन: आज की शासन व्यवस्था एक बहु-अभिकर्त्ता, अधिक सहभागिता वाले उद्यम के रूप में विकसित हो रही है जो लेटरल एंट्री निजी क्षेत्र एवं गैर-लाभकारी संस्थाओं जैसे हितधारकों को शासन प्रक्रिया में भाग लेने का अवसर प्रदान करती है।

सिविल सेवाओं में लेटरल एंट्री स्कीम की आलोचनाएँ क्या हैं?

  • अल्पावधि: केंद्र सरकार ने संयुक्त सचिवों के लिये कार्यकाल 3 वर्ष निर्धारित किया है, जो नए लोगों के लिये जटिल शासन प्रणालियों को पूरी तरह से अपनाने और सार्थक योगदान देने हेतु अपर्याप्त है।
  • निष्पक्षता और तटस्थता बनाए रखना: विभिन्न पृष्ठभूमि से व्यक्तियों को लाना संभावित हितों के टकराव और निष्पक्षता संबंधी चिंताओं के कारण वस्तुनिष्ठता एवं तटस्थता को चुनौती दे सकता है, विशेषकर अगर भर्ती किये गए लोगों का निजी कंपनियों या हित समूहों से पहले से संबंध रहा हो।
  • स्थायी अधिकारियों के मनोबल पर प्रभाव: पार्श्व प्रवेशकों की बढ़ती संख्या उनके और स्थायी अधिकारियों के बीच विभाजन उत्पन्न कर सकती है, जो संभावित रूप से पेशेवर नौकरशाहों के मनोबल को प्रभावित करती है। 
  • योग्यता-आधारित नियुक्ति में संभावित कमी: सिविल सेवाओं की योग्यता-आधारित भर्ती प्रक्रिया लेटरल एंट्री से कमज़ोर हो सकती है। यदि पारदर्शी तरीके से नहीं किया जाता है तो यह चयन प्रक्रिया में पक्षपात या भाई-भतीजावाद की धारणाओं को जन्म दे सकता है। 
  • बाह्य सिंड्रोम: परंपरागत नौकरशाही में पदानुक्रम और व्यवधान की चिंता के कारण पार्श्व प्रवेशकों का विरोध हो सकता है, उन्हें बाहरी व्यक्ति के रूप में देखा जाता है और उनके प्रवेश के प्रति विरोध व्यक्त किया जा सकता है।
  • वरिष्ठ पदों के लिये अनुभव की आवश्यकता: स्थायी प्रणाली में, IAS अधिकारियों को 17 वर्ष की सेवा के बाद संयुक्त सचिव स्तर पर पदोन्नत किया जाता है, सामान्यतः लगभग 45 वर्ष की आयु में तथा वे दस वर्षों तक उस स्तर पर बने रहते हैं।
    • यदि पार्श्व प्रवेशकों पर भी समान अनुभव प्रतिबंध लगाए गए, तो सर्वश्रेष्ठ आवेदक प्रवेश से हतोत्साहित हो सकते हैं, क्योंकि वे प्रायः उस आयु तक निजी क्षेत्र में अपने कॅरियर के शिखर पर पहुँच जाते हैं।

आगे की राह

  • पारदर्शिता सुनिश्चित करना: पार्श्व प्रविष्टियों के लिये पारदर्शी, योग्यता-आधारित चयन प्रक्रिया बनाए रखना जो प्रासंगिक विशेषज्ञता, अनुभव और कौशल पर केंद्रित हो तथा पक्षपात या पूर्वाग्रह की धारणा से बचना।
    • ब्रिटेन में UK सिविल सर्विस फास्ट स्ट्रीम कार्यक्रम कई स्तरों पर सिविल सेवा में सीधे अभियर्थियों की भर्ती करता है तथा विशेष कौशल और विशेषज्ञता वाले अभ्यर्थी पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • पार्श्व प्रवेशकों का प्रशिक्षण: निजी क्षेत्र से सिविल सेवाओं में प्रवेशकों के लिये एक गहन प्रशिक्षण कार्यक्रम तैयार किये जाने की आवश्यकता है, जिससे उन्हें सरकारी कार्यों की जटिल प्रकृति को समझने में मदद मिल सके।
  • स्पष्ट अपेक्षाएँ और भूमिका की परिभाषा: भूमिकाओं, ज़िम्मेदारियों तथा अपेक्षाओं को स्पष्ट रूप से परिभाषित करना एवं योगदान को संगठनात्मक लक्ष्यों के साथ संरेखित करने के लिये विशिष्ट प्रदर्शन संकेतक व उद्देश्य स्थापित करना।
  • आयु संबंधी सीमाओं को अनुकूलित करने की आवश्यकता: शीर्ष प्रतिभाओं को आकर्षित करने के लिये संयुक्त सचिव पदों के लिये आयु संबंधी आवश्यकताओं में ढील दी जानी चाहिये ताकि 35 वर्ष तक की आयु वाले उम्मीदवारों को भी इसमें शामिल किया जा सके।
    • अतीत में मोंटेक सिंह अहलूवालिया और बिमल जालान जैसे अर्थशास्त्री कम उम्र में ही वरिष्ठ पदों पर पहुँच गए थे

निष्कर्ष

किसी भी क्षेत्र में प्रतियोगिता की तरह पार्श्व प्रवेश भी लाभकारी हो सकता है, लेकिन इसके लिये प्रवेश मानदंड, नौकरी की भूमिका कर्मियों की संख्या और प्रशिक्षण पर सावधानीपूर्वक विचार करने की आवश्यकता होती है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि यह सकारात्मक बदलाव लाए। इसके अतिरिक्त व्यापक प्रशासनिक सुधारों हेतु पारंपरिक वरिष्ठता-आधारित प्रणाली में सुधार आवश्यक हैं।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

सिविल सेवाओं के संबंध में सरकार की लेटरल एंट्री योजना क्या है? इसके गुण-दोष और निहितार्थों की चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रश्न: “आर्थिक प्रदर्शन के लिये संस्थागत गुणवत्ता एक निर्णायक चालक है”। इस संदर्भ में लोकतंत्र को सुदृढ़ करने के लिये सिविल सेवा में सुधारों का सुझाव दीजिये। (2020)


जैव विविधता और पर्यावरण

पनामा नहर पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

प्रिलिम्स के लिये:

पनामा नहर, गैटुन झील, GDP, पनामा स्थलसंधि, टेक्टॉनिक/विवर्तनिक प्लेट्स, वाष्पीकरण, आर्द्रता, वर्षा, शैवाल ब्लूम, महासागरीय धाराएँ, मैंग्रोव, ड्रिप सिंचाई

मेन्स के लिये:

जल संसाधनों और शमन रणनीतियों पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों?

एक महत्त्वपूर्ण वैश्विक शिपिंग मार्गपनामा नहर, जलवायु परिवर्तन एवं दीर्घकालीन अनावृष्टि की स्थिति के कारण चुनौतियों का सामना कर रही है।

  • इस स्थिति के कारण गैटुन झील में जल स्तर कम हो गया है, जिससे पनामा नहर के संचालन को बनाए रखने के लिये दीर्घकालिक समाधानों के बारे में चर्चाएँ शुरू हो गई हैं।

पनामा नहर पर जलवायु परिवर्तन का क्या प्रभाव है?

  • अनावृष्टि और जहाज़ों का कम आवागमन: पनामा नहर में लंबे समय से अनावृष्टि की स्थिति बनी हुई है, जो वर्ष 2023 के प्रारंभ में शुरू हुई थी।
    • अक्तूबर 2023 में बारिश औसत से 43% कम रही, जिससे यह 1950 के दशक के बाद, सबसे शुष्क महीने के रूप में दर्ज हुआ।
    • गैटुन झील में कम जल स्तर के कारण दिसंबर 2023 में नहर के माध्यम से नौवहन सामान्य प्रतिदिन 36 - 38 जहाज़ों से घटकर 22 जहाज़ों तक रह गया।
  • जहाज़ों के आकार पर प्रतिबंध: कम जल स्तर के कारण नहर से गुजरने वाले जहाज़ों के आकार को सीमित करन पड़ता है क्योंकि बड़े, भारी जहाज़ों के उथले जल में फँसने का अधिक जोखिम होता है।
    • बड़े जहाज़ों के लिये झील/जल निकाय में अधिक जल की आवश्यकता होती है।
  • वैश्विक व्यापार पर प्रभाव: वैश्विक शिपिंग का 5% हिस्सा पनामा नहर से होता है, इसलिये यहाँ होने वाले व्यवधान विश्व भर की आपूर्ति शृंखला को प्रभावित करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप शिपमेंट में विलंब एवं ईंधन का अधिक प्रयोग होने के साथ GDP को नुकसान होता है।
    • जहाज़ों को लंबा मार्ग तय करने के लिये मजबूर होना पड़ता है, अर्थात् दक्षिण अमेरिका के दक्षिणी छोर तक यात्रा करनी पड़ती है।

पनामा नहर के संदर्भ में मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • पनामा नहर:
    • यह पनामा में 82 किलोमीटर लंबा एक कृत्रिम जलमार्ग है जो अटलांटिक महासागर को प्रशांत महासागर से जोड़ता है।
      •  यह समुद्री व्यापार के लिये एक मार्ग है।
    • इससे न्यूयॉर्क और सैन फ्राँसिस्को के बीच की यात्रा में लगभग 12,600 किलोमीटर की कमी आती है।
    • पहला जहाज़ 15 अगस्त 1914 को पनामा नहर से गुजरा था।
  • पनामा नहर का कार्य:
    • यह एक परिष्कृत, उच्च-इंजीनियरिंग प्रणाली है जो जहाज़ों को एक छोर से दूसरे छोर तक ले जाने के लिये लॉक एंड एलीवेटर प्रणाली का उपयोग करती है।
      • ऐसा इसलिये आवश्यक है क्योंकि पनामा नहर जिन दो महासागरों को जोड़ती है वे समान ऊँचाई पर स्थित नहीं हैं तथा प्रशांत महासागर अटलांटिक महासागर से थोड़ा ऊँचा है।
    • अटलांटिक से नहर में प्रवेश करने वाले जहाज़ को प्रशांत महासागर की ओर जाते समय ऊँचाई हासिल करनी होती है। यह लॉक सिस्टम का उपयोग करके पूरा किया जाता है जो नहर के प्रत्येक छोर पर जहाज़ों को आवश्यक समुद्र स्तर तक ऊपर और नीचे करता है।
    • लॉक्स में या तो जल भर दिया जाता है (ऊँचाई बढ़ाने के लिये) या जल निकाल दिया जाता है (ऊँचाई कम करने के लिये) जो उत्थापक/एलीवेटर का कार्य करते हैं।
      • कुल मिलाकर इस प्रणाली में 12 लॉक्स शामिल हैं, जिनकी देखभाल कृत्रिम झीलों और चैनलों के माध्यम से की जाती है।

पनामा स्थलसंधि

  • स्थलसंधि भूमि की एक संकरी पट्टी होती है जो दो बड़े भू-भागों को जोड़ने के साथ दो जल निकायों को अलग करती है।
    • ये स्थलीय और जलीय व्यापार मार्गों को जोड़ने वाले बंदरगाहों एवं नहरों के लिये प्राकृतिक स्थल हैं।
  • पनामा स्थलसंधि उत्तर और दक्षिण अमेरिकी महाद्वीपों को जोड़ती है और प्रशांत तथा अटलांटिक महासागरों को अलग करती है।
  • कैरेबियन टेक्टोनिक प्लेट के उत्तर एवं दक्षिण अमेरिकी प्लेटों के बीच क्षेपण से इसका निर्माण हुआ। इस प्रक्रिया की परिणामी टेक्टोनिक गतिविधियों से सागर नितल में उभार आया।

नोट:

  • जलडमरूमध्य, दो भू-भागों के बीच का एक संकीर्ण जलमार्ग है जिसके माध्यम से दो बड़े जल निकाय जुड़ते हैं। जैसे, जिब्राल्टर जलडमरूमध्य द्वारा भूमध्य सागर एवं अटलांटिक महासागर को जोड़ा गया है। 
  • जलडमरूमध्य महत्त्वपूर्ण परिवहन मार्ग होते हैं क्योंकि ये जहाज़ो को एक जल निकाय से दूसरे जल निकाय में जाने की सुविधा प्रदान करते हैं।

विश्व की अन्य महत्त्वपूर्ण नहरें (Canals) कौन-सी हैं?

  • स्वेज नहर: यह नहर स्वेज की खाड़ी एवं भूमध्य सागर को जोड़ने के साथ एशिया को अफ्रीका से अलग करती है। यह उत्तर में सईद पोर्ट तथा दक्षिण में स्वेज तक विस्तारित है। 
    • यह एशिया को अफ्रीकी महाद्वीप से अलग करने के साथ यूरोप एवं हिंद महासागर तथा पश्चिमी प्रशांत महासागर के आसपास के क्षेत्रों के बीच सबसे छोटा समुद्री मार्ग प्रदान करती है। 
  • कील नहर: यह बाल्टिक सागर को उत्तरी सागर से जोड़ती है। वर्ष 1895 में खोली गई 98 किलोमीटर लंबी कील नहर जहाज़ो को डेनमार्क (जटलैंड प्रायद्वीप) से होकर जाने वाले लंबे मार्ग को बायपास करने में मदद करती है। 
  • कोरिंथ नहर: ग्रीस की कोरिंथ नहर को विश्व की सबसे संकरी नहर माना जाता है। यह आयोनियन सागर की कोरिंथियन खाड़ी एवं एजियन सागर की सारोनिक खाड़ी को जोड़ती है।
  • क्रा इस्थमस नहर (थाई नहर): यह एक प्रस्तावित नहर है जो दक्षिणी थाईलैंड में क्रा इस्थमस (Kra Isthmus) के पार अंडमान सागर को थाईलैंड की खाड़ी से जोड़ेगी। 
  • ग्रेट लेक्स सीवे नेविगेशन सिस्टम: संयुक्त राज्य अमेरिका में पाँच ग्रेट लेक्स, उनके कनेक्टिंग चैनल और सेंट लॉरेंस नदी (St. Lawrence River) विश्व की सबसे लंबी नेविगेशन प्रणालियों में से एक है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न

प्रश्न. जलमार्गों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव पर चर्चा कीजिये? वैश्विक व्यापार के सुचारू प्रवाह के लिये नहरें किस प्रकार अपरिहार्य हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रश्न. निम्नलिखित में से किसके द्वारा भारत और पूर्वी एशिया के बीच नौ संचालन समय (नेविगेशन टाइम) और दूरी अत्यधिक कम किये जा सकते हैं? (2011)

  1. मलेशिया और इंडोनेशिया के बीच मलक्का जलडमरूमध्य को अधिक गहरा बना कर।
  2. सियाम खाड़ी और अंडमान सागर के बीच क्रा भू संधि जलडमरूमध्य के पार नई नहर खोल कर।

उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?

(a) केवल 1
(c) केवल 2
(b) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (b)


मेन्स

प्रश्न. जल प्रतिबल (वाटर स्ट्रेस) का क्या आशय है? भारत में यह किस प्रकार और किस कारण प्रादेशिकतः भिन्न-भिन्न है? (2019)

प्रश्न. “भारत में अपक्षयी (डिप्लीटिंग) भौम जल संसाधनों का आदर्श समाधान जल संरक्षण प्रणाली है”। शहरी क्षेत्रों में इसको किस प्रकार प्रभावी बनाया जा सकता है? (2018)

प्रश्न. भारत के सूखा प्रवण एंव अर्द्धशुष्क प्रदेशों में लघु जलसंभर विकास परियोजनाएँ किस प्रकार जल संरक्षण में सहायक हैं?  (2014)


सामाजिक न्याय

भारत में महिलाओं के विरुद्ध क्रमिक हिंसा

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय चिकित्सा संघ, पंद्रहवाँ वित्त आयोग, समवर्ती सूची, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो, प्रथम सूचना रिपोर्ट, PoSH अधिनियम, विशाखा दिशा-निर्देश, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना, उज्ज्वला योजना, निर्भया फंड

मेन्स के लिये:

भारत में महिला सुरक्षा और कानूनी सुधार, महिलाओं से संबंधित मुद्दे, सामाजिक मानदंडों की भूमिका और महिला सशक्तीकरण

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कोलकाता में एक प्रशिक्षु डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या की घटना ने महिला सुरक्षा को लेकर देश भर में चिंताएँ पैदा कर दी हैं और इससे स्वास्थ्य कर्मियों का विरोध प्रदर्शन तेज़ हो गया है, और यह अब अपनी सुरक्षा के लिये एक केंद्रीय कानून की मांग कर रहे हैं।

  • कड़े कानूनों के बावजूद महिलाओं के विरुद्ध अपराध जारी हैं, जिससे व्यापक सुधारों की तत्काल आवश्यकता रेखांकित होती है।

स्वास्थ्यकर्मियों की मांगें क्या हैं?

  • मांग:
    • केंद्रीय सुरक्षा अधिनियम: भारतीय चिकित्सा संघ (Indian Medical Association- IMA) स्वास्थ्य पेशेवरों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये एक राष्ट्रव्यापी कानून के कार्यान्वयन की वकालत कर रहा है, जो यूनाइटेड किंगडम की राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा (National Health Service- NHS) की शून्य-सहिष्णुता नीति और हमलों के लिये संयुक्त राज्य अमेरिका की गुंडागर्दी (अपराध जो दंडनीय होने हेतु पर्याप्त गंभीर है) वर्गीकरण जैसे वैश्विक उदाहरणों के समान है।
      • अमेरिका में गंभीर अपराधों को उनकी अधिकतम जेल सज़ा के आधार पर श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है।
        • सबसे गंभीर श्रेणी A के अपराधों के लिये अधिकतम आजीवन कारावास या मृत्युदंड की सज़ा का प्रावधान है, जबकि श्रेणी E के अपराधों हेतु अधिकतम 1 वर्ष से अधिक और 5 वर्ष से कम की सज़ा का प्रावधान है।
    • उन्नत सुरक्षा उपाय: अस्पतालों और चिकित्सा केंद्रों में बेहतर प्रकाश व्यवस्था, सुरक्षा गार्ड और निगरानी वाले सुरक्षा कैमरे की व्यवस्था।
      • डॉक्टरों के लिये सुरक्षित कार्य और रहने की स्थिति सुनिश्चित करना, जिसमें अच्छी रोशनी वाले गलियारे और सुरक्षित वार्ड शामिल हों।
      • स्वास्थ्य देखभाल केंद्रों में सुरक्षा प्रणालियों और आपातकालीन प्रतिक्रिया तंत्र की स्थापना।
  • वर्तमान प्रावधान:
    • राज्य की ज़िम्मेदारियाँ: स्वास्थ्य और कानून-व्यवस्था मुख्य रूप से राज्य के विषय हैं, तथा केंद्र सरकार के पास चिकित्सा पेशेवरों पर हमलों के संबंध में केंद्रीकृत आँकड़ों का अभाव है।
      • पंद्रहवें वित्त आयोग के अध्यक्ष एन.के. सिंह ने सुझाव दिया कि स्वास्थ्य को संविधान के अंतर्गत समवर्ती सूची में स्थानांतरित कर दिया जाना चाहिये, क्योंकि वर्तमान में यह राज्य सूची में है।
    • स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय का आदेश: स्वास्थ्य कर्मियों के खिलाफ किसी भी हिंसा के छह घंटे के भीतर FIR दर्ज करना अनिवार्य है।
    • राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) के निर्देश: मेडिकल कॉलेजों को सुरक्षित कार्य वातावरण और घटनाओं की समय पर रिपोर्टिंग के लिये नीतियाँ विकसित करने की आवश्यकता है।
  • मांगों पर केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया: स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि कोलकाता की घटना मौजूदा कानूनी प्रावधानों के अंतर्गत आती है और इसके लिये केंद्रीय संरक्षण अधिनियम अनावश्यक है, क्योंकि 26 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में पहले से ही स्वास्थ्य कर्मियों की सुरक्षा के लिये कानून मौजूद हैं।
    • ये कानून स्वास्थ्य कर्मियों के विरुद्ध हिंसा को संज्ञेय और गैर-ज़मानती मानते हैं, जिनमें डॉक्टर, नर्स और पैरामेडिकल स्टाफ भी शामिल हैं।

भारत में महिला सुरक्षा के बारे में अपराध के आँकड़े क्या बताते हैं?

  • बढ़ती अपराध दर: राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Records Bureau- NCRB) ने वर्ष 2022 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 445,256 मामले दर्ज किये।

  • लगातार बढ़ते बलात्कार के मामले: वर्ष 2020 में कोविड-19 महामारी के दौरान गिरावट के अपवाद को छोड़कर, रिपोर्ट किये गए बलात्कारों की संख्या उच्च बनी हुई हैं।
    • वर्ष 2016 में हमले लगभग 39,000 तक पहुँच गए थे। वर्ष 2018 तक, देश भर में हर 15 मिनट में महिला बलात्कार की एक रिपोर्ट दर्ज की गई, जो इन अपराधों की चिंताजनक आवृत्ति को उजागर करती है।
    • वर्ष 2022 में 31,000 से अधिक बलात्कार के मामले दर्ज किये गए, जो इस मुद्दे की व्याप्त गंभीरता को दर्शाता है।
    • सख्त कानूनों के बावजूद, बलात्कार के लिये सजा की दर कम रही है, जिसमें वर्ष 2018 से 2022 तक दर में 27%-28% के बीच उतार-चढ़ाव होता रहा है।
  • महामारी का प्रभाव: कोविड-19 महामारी के कारण महिलाओं के प्रति हिंसा में वृद्धि हुई है, वर्ष 2020 में अपराध दर प्रति 100,000 महिलाओं पर 56.5 से बढ़कर वर्ष 2021 में 64.5 हो गई है। आर्थिक तनाव, सामाजिक अलगाव और रिवर्स माइग्रेशन जैसे कारकों से इसमें वृद्धि हुई है।
  • कार्यस्थल पर उत्पीड़न: यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण: POSH) अधिनियम, 2013 से महिलाओं के संरक्षण के अधिनियमन के बावजूद, कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न एक चिंता का विषय बना हुआ है, जिसके मामले वर्ष 2018 के 402 से बढ़कर वर्ष 2022 में 422 हो गए हैं।
    • हालाँकि, संभावित रूप से सामाजिक पूर्वाग्रहों और नतीजों के डर के कारण इन संख्याओं की कम रिपोर्टिंग हुई है।
  • महिला सुरक्षा सूचकांक: जॉर्जटाउन इंस्टीट्यूट के महिला शांति और सुरक्षा सूचकांक- 2023 के अनुसार, भारत ने 1 में से 0.595 अंक प्राप्त किये जिससे महिलाओं के समावेश, न्याय और सुरक्षा के मामले में 177 देशों में भारत की रैंकिंग 128वें स्थान पर आ गई।
    • सूचकांक में यह भी कहा गया है कि वर्ष 2022 में महिलाओं को निशाना बनाकर की जाने वाली राजनीतिक हिंसा के मामले में भारत शीर्ष 10 सबसे खराब देशों में शामिल है।

महिला सुरक्षा से संबंधित भारत की पहल क्या हैं?

  • कानून:
    • अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय: वर्ष 1993 में महिलाओं के विरूद्ध सभी स्‍वरूपों के भेदभाव के निवारण संबंधी अभिसमय (CEDAW) सहित प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय अभिसमयों को भारत द्वारा अनुमोदित किया गया।
      • भारत ने मेक्सिको कार्य योजना (1975) का भी समर्थन किया, जिसका उद्देश्य लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के साथ लैंगिक भेदभाव को पूर्णतः समाप्त करना है।
    • अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम, 1956: यह वेश्यावृत्ति के लिये वाणिज्यिक सेक्स वर्कर और मानव तस्करी पर प्रतिबंध लगाता है।
    • महिलाओं का अभद्र चित्रण अधिनियम, 1986: यह विज्ञापनों और प्रकाशनों में महिलाओं के अभद्र चित्रण पर प्रतिबंध लगाता है।
    • महिलाओं के सशक्तीकरण के लिये राष्ट्रीय नीति (2001): इसका उद्देश्य महिलाओं की उन्नति और सशक्तीकरण, महिलाओं के प्रति हिंसा का निवारण एवं रोकथाम, सहायता और कार्रवाई के लिये तंत्र प्रदान करना है।
    • ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना (वर्ष 2007-2012): महिलाओं के प्रति हिंसा (VAW) को एक प्रमुख मुद्दे के रूप में स्वीकार किया गया, जिसमें घरेलू हिंसा और बलात्कार पर ध्यान केंद्रित किया गया।
    • घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005: घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं के लिये अनिवार्य सुरक्षा अधिकारियों के साथ आश्रय और चिकित्सा सुविधाओं सहित सहायता प्रदान की जाती है।
    • कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) (POSH) अधिनियम, 2013: POSH अधिनियम कार्यस्थल पर महिलाओं द्वारा सामना किये जाने वाले यौन उत्पीड़न पर कार्रवाई करता है, जिसका उद्देश्य सुरक्षित कार्य वातावरण सुनिश्चित करना है।
      • यह यौन उत्पीड़न को अवांछित शारीरिक संपर्क या उसकी कोशिश, यौन संबधी मांगें या प्रस्ताव, यौन संबंधी टिप्पणी, अश्लील चित्र या पोर्नोग्राफी दिखाना, किसी और प्रकार का अवांछनीय यौन या कामुक भाव से किया गया शारीरिक, मौखिक,अमौखिक आचरण के रूप में परिभाषित करता है।
      • यह अधिनियम विशाखा और अन्य बनाम राजस्थान राज्य मामले, 1997 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्थापित विशाखा दिशानिर्देशों पर आधारित है, जो कार्यस्थल पर उत्पीड़न पर कार्रवाई करता है।
    • आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2013: यौन अपराधों के खिलाफ प्रभावी कानूनी रोकथाम के लिये अधिनियमित।
      • इसके अलावा आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2018 को 12 वर्ष से कम उम्र की बालिका के साथ बलात्कार के मामले में मृत्युदंड सहित और भी अधिक कठोर दंड प्रावधानों को निर्धारित करने के लिये अधिनियमित किया गया था।
    • जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन (JNNURM): महिलाओं की सुरक्षा बढ़ाने के लिये शहरी विकास में लैंगिक विचारों को शामिल करने की सिफारिश करता है।
    • लैंगिक अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012: बच्चों को यौन अपराधों से बचाता है, उनकी सुरक्षा के लिये कानूनी ढाँचा प्रदान करता है और अपराधियों के लिये सख्त दंड सुनिश्चित करता है।
  • रणनीतियाँ और उपाय:
    • बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना: यह योजना लैंगिक भेदभाव को रोकने के साथ बालिकाओं के अस्तित्व की सुरक्षा एवं शिक्षा को सुनिश्चित करने पर केंद्रित है।
    • उज्जवला योजना: इसका उद्देश्य बाल तस्करी को रोकने के साथ व्यावसायिक यौन शोषण की पीड़ितों को बचाना और उनका पुनर्वास करना है।
    • निर्भया फंड: इसका उद्देश्य महिलाओं की सुरक्षा हेतु पहलों का समर्थन करना है, जिसमें आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रणाली स्थापित करना तथा सार्वजनिक बुनियादी ढाँचे में सुधार करना शामिल है।
    • महिला और बाल विकास मंत्रालय की पहल: स्वाधार गृह योजना जैसी योजनाओं का उद्देश्य कठिन परिस्थितियों में महिलाओं के लिए अल्पावधि आवास प्रदान करना तथा उनके लिये जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करना है।
    • ट्रेनों में महिला सुरक्षा: 182 सुरक्षा हेल्पलाइन, महिला डिब्बों में सीसीटीवी कैमरे तथा आपात स्थिति हेतु 'आर-मित्र' मोबाइल ऐप की शुरुआत करना।
    • महिला पर्यटकों की सुरक्षा: इन उपायों में 'अतुल्य भारत हेल्पलाइन', सुरक्षित पर्यटन हेतु आचार संहिता तथा पर्यटकों के लिए सुरक्षित वातावरण सुनिश्चित करने के क्रम में राज्य सरकारों को निर्देश देना शामिल हैं।
    • मेट्रो में महिलाओं की सुरक्षा: दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन (DMRC) ने महिलाओं के लिये विशेष कोच एवं आरक्षित सीटों के साथ सुरक्षा हेतु समर्पित केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल के कर्मचारी रखे हैं।
    • सार्वभौमिक महिला हेल्पलाइन (फोन सहायता) योजना: यह प्रचारित हेल्पलाइन के माध्यम से 24 घंटे आपातकालीन और गैर-आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रदान करने पर केंद्रित है।
    • मोबाइल ऐप: 
      • सुरक्षा (Suraksha): इसे आपातकालीन स्थिति में महिलाओं को पुलिस से जुड़ने तथा अपनी लोकेशन भेजने के त्वरित एवं आसान तरीका प्रदान करने हेतु डिज़ाइन किया गया है।
      • अमृता व्यक्तिगत सुरक्षा प्रणाली (APSS): यह परिवार एवं पुलिस के साथ संचार बनाए रखने में प्रभावी उपकरण है।
      • विथु (VithU): यह ऐप आपातकालीन स्थिति में कांटेक्ट लिस्ट में शामिल लोगों को अलर्ट भेजता है।

महिला सुरक्षा हेतु कानून एवं नियम अपर्याप्त क्यों हैं?

  • कार्यान्वयन का अभाव: वर्ष 2012 के निर्भया मामले के बाद बनाए गए सख्त कानून (जैसे कि दंड विधि (संशोधन) अधिनियम, 2013) विभिन्न क्षेत्रों एवं पुलिस अधिकार क्षेत्रों में लागू नहीं हो पाए हैं। 
    • संबंधित संगठनों में आंतरिक शिकायत समितियों (ICC) की स्थापना जैसे विनियमों का कार्यान्वयन अपर्याप्त बना हुआ है। 
    • इसके अतिरिक्त वर्ष 2018 में भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने सूचीबद्ध कंपनियों को यौन उत्पीड़न के मामलों की सालाना रिपोर्ट देने की आवश्यकता पर बल दिया, लेकिन इसका प्रभावी कार्यान्वयन नहीं हो पाया।
  • प्रणालीगत मुद्दे: कानून प्रवर्तन प्रणालियों में भ्रष्टाचार से महिलाओं के खिलाफ अपराधों को कम करने के प्रयासों में शिथिलता आती है।
    • प्रतिशोध के भय, कानून एवं व्यवस्था में विश्वास की कमी या कानूनी प्रक्रिया के अप्रभावी होने के कारण हिंसा की कई घटनाएँ रिपोर्ट नहीं की जाती हैं।
  • सांस्कृतिक और सामाजिक मानदंड: रूढ़िवादी सामाजिक दृष्टिकोण एवं मानदंड से इनको प्राप्त विधिक सुरक्षा कमज़ोर होती है। इसके चलते कुछ समुदायों में महिलाओं के खिलाफ़ हिंसा को सामान्य माना जा सकता है या गंभीरता से नहीं लिया जा सकता है।
    • रूढ़िवादी सांस्कृतिक दृष्टिकोण एवं कलंक के डर से अपराधों की रिपोर्ट करने या मदद मांगने में महिलाएँ हतोत्साहित हो सकती हैं।
  • विधिक चुनौतियाँ: पीड़ितों को अक्सर न्याय प्राप्त करने के लिये बहुत अधिक सबूतों को देना पड़ता है, जिससे सजा की दर में कमी आ सकती है। विधिक जटिलता से पीड़ितों को न्याय मिलने में देरी होती है।
    • न्यायिक प्रक्रिया बोझिल होने से पीड़ितों को न्याय मिलने में देरी हो सकती है। इससे पीड़ित अपराधों की रिपोर्ट करने से भी हतोत्साहित हो सकते हैं।
  • आर्थिक निर्भरता: आर्थिक कारक भी इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। जो महिलाएँ दुर्व्यवहार करने वालों पर आर्थिक रूप से निर्भर हैं, उन्हें विधिक सुरक्षा के बावजूद भी रिश्ते तोड़ना मुश्किल हो सकता है।
  • परिवर्तन का प्रतिरोध: संस्थानों एवं नीति निर्माताओं द्वारा किये जाने वाले सुधार का प्रतिरोध करने से विधियों एवं विनियमों को बेहतर बनाने में बाधा आ सकती है।
    • हिंसा के उभरते रूपों या सामाजिक दृष्टिकोण में बदलाव के अनुरूप कानूनी ढाँचे पर्याप्त रूप से विकसित नहीं हो पाते हैं।
  • जागरूकता एवं शिक्षा का अभाव: महिलाओं में अक्सर अपने विधिक अधिकारों और उपलब्ध सहायता सेवाओं के बारे में सीमित जानकारी होती है। जानकारी की यह कमी न्याय और सहायता पाने में महिलाओं के लिये बाधक हो सकती है।

महिला सुरक्षा को बढ़ावा देने हेतु अंतर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण

  • प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय पहल:
    • अंतर्राष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस: महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा को रोकने के लिये प्रतिवर्ष 25 नवंबर को विश्व भर में अंतर्राष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस (International Day for the Elimination of Violence against Women) मनाया जाता है।
    • संयुक्त राष्ट्र महिला सुरक्षित शहर और महिलाओं व बालिकाओं के लिये सुरक्षित सार्वजनिक स्थान: इसका उद्देश्य महिलाओं और बालिकाओं के लिये सुरक्षित एवं समावेशी सार्वजनिक स्थान बनाना है। यह मानता है कि सार्वजनिक स्थान समाज में महिलाओं की भागीदारी के लिये आवश्यक हैं, लेकिन वे भय और उत्पीड़न के स्थान भी हो सकते हैं। 
      • इसका उद्देश्य सुरक्षा रणनीतियों में लैंगिक दृष्टिकोण को एकीकृत करना, महिलाओं के विरुद्ध हिंसा से निपटने के लिये उपकरण विकसित करना तथा शहरी नियोजन में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देना है।
    • लिंग समावेशी शहर कार्यक्रम: यह महिलाओं के विरुद्ध हिंसा को समाप्त करने के लिये कार्रवाई के समर्थन में संयुक्त राष्ट्र ट्रस्ट फंड द्वारा वित्तपोषित है।
      • इस पहल का उद्देश्य सार्वजनिक स्थानों तक समान पहुँच को बढ़ावा देकर दार-एस-सलाम, दिल्ली, रोसारियो और पेट्रोज़ावोडस्क जैसे शहरों में महिलाओं की सुरक्षा में सुधार करना है।
    • महिलाओं के लिये संयुक्त राष्ट्र विकास कोष (UNIFEM): यह लैंगिक समानता और महिला  सशक्तीकरण को बढ़ावा देने के लिये वित्तीय एवं तकनीकी सहायता प्रदान करता है।
  • राष्ट्रीय दृष्टिकोण:
    • यूनाइटेड किंगडम: लंदन अथॉरिटी की रणनीति सुरक्षित परिवहन टीमों को बढ़ावा देकर, जागरूकता अभियान चलाकर और प्रवर्तन को बढ़ाकर महिलाओं एवं बालिकाओं के खिलाफ हिंसा से निपटती है।
    • लैटिन अमेरिका: बोगोटा जैसे शहरों ने महिलाओं के लिये ही मेट्रो कार और पुलिस स्टेशन जैसी सुरक्षा रणनीतियाँ  विकसित की हैं।

आगे की राह

  • राष्ट्रव्यापी संरक्षण कानून: एक केंद्रीय संरक्षण अधिनियम का समर्थन करना जो ब्रिटेन की शून्य-सहिष्णुता नीति (हिंसा से सुरक्षा और हमलों के लिये धमकी) को प्रतिबिंबित करता है।
    • इस कानून से सभी कार्यरत पेशेवरों को समान सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिये तथा पूरे देश में सुसंगत एवं व्यापक सुरक्षा सुनिश्चित की जानी चाहिये।
    • PoSH अधिनियम, 2013 जैसे मौजूदा कानूनों के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिये निगरानी तंत्र को मज़बूत किया जाना चाहिये। प्रभावशीलता और अनुपालन पर नज़र रखने के लिये नियमित ऑडिट व रिपोर्ट अनिवार्य होनी चाहिये।
  • फास्ट-ट्रैक कोर्ट: जस्टिस वर्मा समिति की सिफारिश के अनुसार फास्ट-ट्रैक कोर्ट स्थापित करने के साथ बलात्कार जैसे गंभीर मामलों में सज़ा में वृद्धि की जानी चाहिये। न्यायपालिका में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाना चाहिये।
  • स्थानीय सुरक्षा उपाय: महिलाओं के विरुद्ध हिंसा को रोकने और उससे निपटने के लिये SHE टीम जैसी विशेष पुलिस इकाइयों का क्रियान्वयन करना चाहिये।
    • SHE टीम्स तेलंगाना पुलिस का एक प्रभाग है जो महिलाओं की सुरक्षा को बढ़ाने के लिये कार्य करता है। SHE टीम्स ने ऑनलाइन स्टॉकिंग से लेकर शारीरिक उत्पीड़न और हिंसा तक के अपराधों के लिये यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाओं की मदद करके उन्हें सफलतापूर्वक सुरक्षा तथा सहायता प्रदान की है।
  • सुरक्षित शहर डिज़ाइन: शहरी नियोजन में सुरक्षा सुविधाओं को एकीकृत करना जैसे कि बेहतर स्ट्रीट लाइटिंग और सुरक्षित सार्वजनिक स्थान।
  • सहायता प्रणाली: परामर्श सेवाओं और कानूनी सहायता सहित पीड़ितों के लिये सहायता प्रणाली को मज़बूत करना। सुनिश्चित करना कि पीड़ितों की अतिरिक्त बाधाओं के बिना संसाधनों तक पहुँच हो।
  • सार्वजनिक जागरूकता अभियान: मीडिया, शैक्षणिक संस्थानों और सामुदायिक संगठनों का उपयोग करके महिलाओं के अधिकारों, कार्यस्थल सुरक्षा एवं उपलब्ध कानूनी उपायों के विषय में जागरूकता बढ़ाने हेतु राष्ट्रव्यापी अभियान शुरू करना।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. मौजूदा कानूनी प्रावधानों के बावजूद, भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराध जारी हैं। हिंसा की उच्च दरों के कारणों का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये और इन मुद्दों को हल करने के लिये व्यापक सुधार सुझाएँ।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

मेन्स:

प्रश्न. हमें देश में महिलाओं के प्रति यौन-उत्पीड़न के बढ़ते हुए दृष्टांत दिखाई दे रहे हैं। इस कुकृत्य के विरुद्ध विद्यमान विधिक उपबन्धों के होते हुए भी, ऐसी घटनाओं की संख्या बढ़ रही है। इस संकट से निपटने के लिये कुछ नवाचारी उपाय सुझाइये। (2014)


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