डेली न्यूज़ (19 Feb, 2024)



UAPA के तहत ज़मानत

प्रिलिम्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय, विधिविरुद्ध क्रिया-कलाप (निवारण) अधिनियम, राष्ट्रीय जाँच एजेंसी, साइबर आतंकवाद, न्यायिक समीक्षा

मेन्स के लिये:

UAPA के तहत ज़मानत प्रावधानों से संबंधित प्रमुख न्यायिक घोषणाएँ, UAPA से संबंधित चिंताएँ।

स्रोत:इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कथित खालिस्तान मॉड्यूल में शामिल एक आरोपी को यह कहते हुए ज़मानत देने से इनकार कर दिया कि 'ज़मानत नियम है, जेल अपवाद है' (Bail is Rule, Jail is Exception) का सिद्धांत विधिविरुद्ध क्रिया-कलाप (निवारण) अधिनियम (UAPA) के तहत लागू नहीं है।

UAPA के अंतर्गत ज़मानत का प्रावधान कैसे विकसित हुआ?

  • वर्ष 2008: UAPA संशोधन अधिनियम, 2008 में धारा 43 D(5) प्रस्तुत की गई, जिसके तहत न्यायालय को यह मानने के लिये उचित आधार होने पर ज़मानत देने से इनकार करना आवश्यक था कि आरोपी के खिलाफ मामला प्रथम दृष्टया सच था।
    • इसके लिये अभियुक्त को न्यायालय को यह विश्वास दिलाना आवश्यक है कि आरोपों को प्रथम दृष्टया सत्य मानना अनुचित है।
    • इस बोझ को आरोपी पर डालकर, आपराधिक कानून का मूल सिद्धांत जो दोषी साबित होने तक निर्दोष माना जाता है, UAPA के ढाँचे के भीतर बदल दिया गया है।
  • वर्ष 2016: धारा 43D (5) के सख्त प्रावधानों के बावजूद न्यायपालिका ने एंजेला हरीश सोनटक्के बनाम महाराष्ट्र राज्य मामले में ज़मानत दे दी। यह लंबी हिरासत अवधि एवं त्वरित सुनवाई की संभावना को देखते हुए किया गया था, जो आरोपी के जेल में बिताए गए समय तथा कथित अपराध के बीच संतुलन बनाने के महत्त्व को रेखांकित करता है।
  • वर्ष 2019: राष्ट्रीय जाँच एजेंसी बनाम जहूर अमहद शाह वताली फैसले ने धारा 43D (5) की एक संकीर्ण व्याख्या प्रदान की, जिसमें कहा गया कि न्यायालय को मामले की खूबियों पर ध्यान दिये बिना घटनाओं के NIA के संस्करण को स्वीकार करना चाहिये, इस प्रकार आरोपों के बाद ज़मानत को सुरक्षित करना कठिन हो जाता है। NIA द्वारा फंसाया गया है।
  • वर्ष 2021: भारत संघ बनाम के.ए. नजीब के मामलें में सर्वोच्च न्यायालय ने लंबे समय तक कारावास (कैद या हिरासत में रहने) के कारण अनुच्छेद 21 के अधिकारों के उल्लंघन के आधार पर ज़मानत देने की संभावना पर प्रकाश डाला।
    • NCT दिल्ली राज्य बनाम देवांगना कलिता मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने साक्ष्यों को NIA के निष्कर्षों से अलग कर दिया, जिसके कारण प्रथम दृष्टया मामला स्थापित करने में NIA की विफलता के आधार पर ज़मानत दे दी गई।
  • वर्ष 2023: वर्नोन गोंसाल्वेस बनाम महाराष्ट्र राज्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने ज़मानत देने के लिये "प्रथम दृष्टया सत्य" परीक्षण पर पिछले वटाली फैसले से हटते हुए साक्ष्य विश्लेषण की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।
    • हालाँकि हालिया मामले में दो-न्यायाधीशों की पीठ ने गोंसाल्वेस के फैसले को नज़रअंदाज़ करते हुए विशेष रूप से वटाली पूर्व उदाहरण का पालन करते हुए ज़मानत देने से इनकार कर दिया।
    • विभिन्न पीठों की परस्पर विरोधी व्याख्याएँ UAPA के तहत जमानत प्रावधानों की स्थिरता और अनुप्रयोग पर सवाल उठाती हैं।

UAPA क्या है?

  • पृष्ठभूमि:17 जून, 1966 को राष्ट्रपति ने "व्यक्तियों और संघों की गैरकानूनी गतिविधियों की अधिक प्रभावी रोकथाम प्रदान करने हेतु" विधिविरुद्ध क्रिया-कलाप (निवारण) अध्यादेश लागू किया था।
    • कड़े कदम की शुरुआत से संसद में हंगामा मच गया, जिसके परिणामस्वरूप सरकार को इसे वापस लेना पड़ा।
    • इसके बाद, विधिविरुद्ध क्रिया-कलाप (निवारण) अधिनियम 1967, जो अध्यादेश से भिन्न था, अधिनियमित किया गया था।
  • परिचय: UAPA एक कानून है जिसका उद्देश्य अवैध गतिविधियों को रोकना और आतंकवाद से निपटना है। इसे "आतंकवाद विरोधी कानून" के नाम से भी जाना जाता है।
    • गैरकानूनी गतिविधियों को भारत के किसी भी हिस्से के विलय या अलगाव का समर्थन करने या उकसाने वाली कार्रवाइयों या इसकी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता पर सवाल उठाने या अनादर (Disrespecting) करने वाली कार्रवाइयों के रूप में परिभाषित किया गया है।
  • राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (NIA) को देशभर में मामलों की जाँच करने और मुकदमा चलाने का अधिकार UAPA द्वारा दिया गया है।
  • संशोधन:
    • इसमें वर्ष 2004, 2008, 2012 और हाल ही में वर्ष 2019 में कई संशोधन हुए, जिसमें आतंकवादी वित्तपोषण, साइबर-आतंकवाद, व्यक्तिगत पदनाम तथा संपत्ति ज़ब्ती से संबंधित प्रावधानों का विस्तार किया गया।
  • संबंधित चिंता:
    • कम दोषसिद्धि दर: UAPA के तहत वर्ष 2018 और 2020 के बीच 4,690 लोगों को गिरफ्तार किया गया, लेकिन केवल 3% को दोषी ठहराया गया।
    • व्यक्तिपरक व्याख्या: अवैध गतिविधियों की व्यापक परिभाषा व्यक्तिपरक व्याख्याओं की अनुमति देती है, जिससे यह विशिष्ट समूहों या व्यक्तियों के खिलाफ उनकी पहचान या विचारधारा के आधार पर संभावित दुरुपयोग के प्रति संवेदनशील हो जाती है।
    • सीमित न्यायिक समीक्षा: वर्ष 2019 का संशोधन सरकार को बिना किसी न्यायिक समीक्षा के व्यक्तियों को आतंकवादी के रूप में नामित करने का अधिकार देता है, जिससे कानून की उचित प्रक्रिया और मनमाने ढंग से पदनाम की संभावना के बारे में चिंताएँ बढ़ जाती हैं।

आगे की राह

  • उन्नत निरीक्षण: UAPA के दुरुपयोग को रोकने के लिये मज़बूत निरीक्षण तंत्र को लागू करना, जिसमें इसके कार्यान्वयन की नियमित समीक्षा और संवैधानिक सिद्धांतों तथा मानवाधिकार मानकों का पालन सुनिश्चित करने के लिये न्यायिक जाँच को मज़बूत करना शामिल है।
  • स्पष्ट परिभाषाएँ: व्यक्तिपरकता और दुरुपयोग की संभावना को कम करने के लिये गैरकानूनी गतिविधियों की परिभाषा को परिष्कृत तथा सीमित करने की आवश्यकता है।
  • समयबद्ध जाँच और परीक्षण: लंबी हिरासत को रोकने और कुशल न्यायिक प्रक्रियाओं को सुनिश्चित करने के लिये जाँच तथा परीक्षणों हेतु स्पष्ट समय-सीमा स्थापित करें।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न. भारत सरकार ने हाल ही में विधिविरुद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम, (यू. ए.पी. ए.), 1967 और एन. आई. ए. अधिनियम के संशोधन के द्वारा आतंकवाद-रोधी कानूनों को मज़बूत कर दिया है। मानवाधिकार संगठनों द्वारा विधिविरुद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम का विरोध करने के विस्तार और कारणों पर चर्चा करते समय वर्तमान सुरक्षा परिवेश के संदर्भ में परिवर्तनों का विश्लेषण कीजिये। (2019)


जूट उद्योग का विकास और संवर्द्धन

प्रिलिम्स के लिये:

गोल्डन फाइबर, जूट उद्योग का विकास और संवर्द्धन, जूट पैकेज सामग्री (वस्तु पैकिंग अनिवार्य प्रयोग) अधिनियम 1987, जूट जियोटेक्सटाइल्स (JGT)

मेन्स के लिये:

जूट उद्योग का विकास और संवर्द्धन, देश के विभिन्न हिस्सों में प्रमुख फसलें और फसल पैटर्न

स्रोत: संसद

चर्चा में क्यों?

हाल ही में श्रम, वस्त्र और कौशल विकास पर स्थायी समिति ने 'जूट उद्योग के विकास तथा संवर्द्धन’ पर 53वीं रिपोर्ट प्रस्तुत की है।

रिपोर्ट से संबंधित प्रमुख बिंदु क्या हैं?

  • जूट उद्योग की संभावनाएँ:
    • भारत की राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में जूट उद्योग का एक महत्त्वपूर्ण योगदान है। यह पूर्वी क्षेत्र, विशेषकर पश्चिम बंगाल में प्रमुख उद्योगों में से एक है।
    • जूट, 'गोल्डन फाइबर', एक प्राकृतिक, नवीकरणीय, बायोडिग्रेडेबल और पर्यावरण-अनुकूल उत्पाद होने के कारण 'सुरक्षित' पैकेजिंग के सभी मानकों को पूरा करता है।
  • विश्व में जूट उत्पादन में भारत की प्रमुख हिस्सेदारी:
    • जूट के वैश्विक उत्पादन में भारत का एक प्रमुख हिस्सेदारी है, यह विश्व के कुल जूट उत्पादन में 70% का योगदान देता है।
    • जूट उद्योग प्रत्यक्ष तौर पर लगभग 3.7 लाख श्रमिकों को रोज़गार प्रदान करता है और लगभग 90% उत्पादन की खपत घरेलू स्तर की की जाती है।
    • लगभग 73% जूट उद्योग का केंद्र पश्चिम बंगाल है (कुल 108 जूट मिलों में से 79 पश्चिम बंगाल में स्थित हैं)।
  • उत्पादन और निर्यात डेटा (2022-23):
    • वित्तीय वर्ष 2022-23 में जूट से निर्मित वस्तुओं के उत्पादन में कुल 1,246,500 मीट्रिक टन (MT) के साथ महत्त्वपूर्ण वृद्धि हुई।
    • जूट से निर्मित वस्तुओं का निर्यात बढ़कर 177,270 मीट्रिक टन हो गया, जो कुल उत्पादन का लगभग 14% है। यह वर्ष 2019-20 के निर्यात के आँकड़ों की तुलना में 56% की उल्लेखनीय वृद्धि दर्शाता है।
      • जूट से निर्मित वस्तुओं के निर्यात में वृद्धि के कई कारण थे जिसमें प्रमुख कारण विश्व भर में पर्यावरण के अनुकूल और सतत् उत्पादों की बढ़ती मांग है।
    • इसी अवधि में भारत ने 121.26 हज़ार मीट्रिक टन कच्चे जूट का आयात किया।
      • उच्च गुणवत्ता वाले जूट की मांग के कारण बांग्लादेश से जूट का आयात किया गया जिसका उपयोग मूल्यवर्द्धित उत्पादों के निर्माण में किया जाता है।
    • जूट से निर्मित वस्तुओं के शीर्ष निर्यात बाज़ारों में संयुक्त राज्य अमेरिका, फ्राँस, घाना, यूके, नीदरलैंड, जर्मनी, बेल्जियम, कोटे डी आइवर, ऑस्ट्रेलिया और स्पेन जैसे विविध देश शामिल हैं।
  • जूट उद्योग के सम्मुख प्रमुख चुनौतियाँ:
    • खरीद की उच्च दर: मिलें कच्चे जूट को प्रसंस्करण के बाद जिस कीमत पर विक्रय कर रही हैं, उससे अधिक कीमत पर उनका क्रय कर रही हैं।
      • बिचौलियों अथवा व्यापारियों से जुड़ी जटिल खरीद प्रक्रिया के कारण यह समस्या और बढ़ गई है जिससे अंततः लागत में और वृद्धि हुई है।
    • अपर्याप्त कच्चा माल: जूट की कृषि को बढ़ावा देने के प्रयासों के बावजूद भारत अभी भी अपर्याप्त कच्चे माल की आपूर्ति का सामना रहा है जिससे खरीद संबंधी समस्याएँ बढ़ रही हैं और उत्पादन क्षमता प्रभावित हो रही है।
    • अप्रचलित मिलें और मशीनरी: जूट उद्योग अप्रचलित मिलों और मशीनरी की समस्या का सामना कर रहा है जिससे दक्षता तथा प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने के लिये तकनीकी उन्नयन की आवश्यकता है।
    • सिंथेटिक सामग्रियों से कड़ी प्रतिस्पर्द्धा: जूट को सिंथेटिक सामग्रियों से कड़ी प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ता है जो वहनीय पैकेजिंग समाधान प्रदान करते हैं जिससे जूट उत्पादों की मांग पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
      • इसके अतिरिक्त मेस्टा जैसे वैकल्पिक फाइबर की उपलब्धता के कारण जूट से निर्मित वस्तुओं की मांग में कमी देखी गई है जिससे जूट उत्पादों का बाज़ार प्रभावित हुआ है।
    • श्रम संबंधी मुद्दे और बुनियादी ढाँचा बाधाएँ: श्रम संबंधी मुद्दे उद्योग के संचालन को बाधित करते हैं, विशेष रूप से पश्चिम बंगाल में, निरंतर हड़तालों, तालाबंदी और विवादों के कारण परिचालन बाधित होता है तथा अस्थिरता बढ़ती है।
      • अपर्याप्त विद्युत आपूर्ति, परिवहन चुनौतियाँ और पूंजी तक सीमित पहुँच जैसी बुनियादी ढाँचागत बाधाएँ उद्योग के स्थिरता प्रयासों में बाधा डालती हैं तथा साथ ही विकास एवं आधुनिकीकरण पहल को प्रभावित करती हैं।

जूट से संबंधित प्रमुख बिंदु क्या हैं?

  • जूट की कृषि के लिये अनुकूल परिस्थितियाँ:
    • तापमान: 25-35°C के बीच
    • वर्षा: लगभग 150-250 सेमी.
    • मृदा प्रकार: अच्छी जल निकास वाली जलोढ़ मिट्टी
  • उत्पादन:
    • भारत जूट का सबसे बड़ा उत्पादक है, इसके बाद बांग्लादेश और चीन का स्थान है।
      • हालाँकि रकबा और व्यापार के मामले में बांग्लादेश भारत के 7% की तुलना में वैश्विक जूट निर्यात में तीन-चौथाई का योगदान देता है।
    • जूट की कृषि तीन राज्यों, पश्चिम बंगाल, असम और बिहार में केंद्रित है, जो उत्पादन का 99% हिस्सा है।
    • इसका उत्पादन मुख्य रूप से पूर्वी भारत में गंगा-ब्रह्मपुत्र डेल्टा की समृद्ध जलोढ़ मिट्टी पर केंद्रित है।
  • उपयोग:
    • इसे गोल्डन फाइबर के रूप में जाना जाता है। इसका उपयोग जूट की थैली, चटाई, रस्सी, सूत, कालीन और अन्य कलाकृतियों को बनाने में किया जाता है।

स्थायी समिति की प्रमुख सिफारिशें क्या हैं?

  • प्रौद्योगिकी का आधुनिकीकरण और उन्नयन:
    • उत्पादकता बढ़ाने और उत्पाद मानकों को उन्नत करने के लिये जूट मिलों को अत्याधुनिक मशीनरी तथा प्रौद्योगिकी में निवेश करने हेतु प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।
    • नवाचार और प्रगति को बढ़ावा देने के लिये अनुसंधान संस्थानों के साथ साझेदारी को बढ़ावा देना।
  • कुशल कच्चे माल की खरीद:
    • खर्चों को कम करने के लिये कच्चे जूट प्राप्त करने की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करें। जूट की कृषि को बढ़ावा देने हेतु अनुबंध खेती की पहल को बढ़ावा देना और किसानों को प्रोत्साहन प्रदान करना।
  • उन्नत गुणवत्ता नियंत्रण और मानकीकरण:
    • जूट उत्पादों में एक समान उत्कृष्टता बनाए रखने के लिये गुणवत्ता नियंत्रण प्रोटोकॉल को सुदृढ़ करें। जूट वस्तुओं हेतु कड़े मानक स्थापित करना और लागू करना।
  • कौशल संवर्द्धन और प्रशिक्षण:
    • जूट श्रमिकों को उनकी विशेषज्ञता निखारने के लिये व्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रमों के साथ सशक्त बनाना।
    • बुनाई, रंगाई और मूल्यवर्द्धित प्रक्रियाओं में कौशल निखारने पर ज़ोर दें।
  • बाज़ार विस्तार:
    • जूट उत्पादों के लिये अप्रयुक्त वैश्विक बाज़ारों में अग्रणी अन्वेषण की आवश्यकता है।
    • बाज़ार तक पहुँच बढ़ाने के लिये जूट आधारित हस्तशिल्प और जीवन शैली की वस्तुओं को बढ़ावा देना।
  • अनुसंधान एवं विकास संवर्द्धन:
    • जूट से संबंधित नवाचारों को आगे बढ़ाने पर केंद्रित अनुसंधान प्रयासों के लिये संसाधन आवंटित करें।
    • उद्योग के अभिकर्त्ताओं और अनुसंधान संस्थाओं के बीच सहयोगात्मक प्रयासों को प्रोत्साहित करें।
  • जूट उत्पादों को बढ़ावा देना:
    • जूट की पर्यावरण-अनुकूल विशेषताओं और स्थिरता पर प्रकाश डालते हुए जागरूकता अभियान शुरू करें।
    • जूट उत्पादों को चुनने के गुणों के बारे में उपभोक्ताओं को शिक्षित करें।
  • नीति समर्थन:
    • ऐसी नीतियाँ बनाएँ जो जूट की कृषि और मूल्य संवर्द्धन को प्रोत्साहित करें।
    • अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों को अपनाने के लिये जूट मिलों को वित्तीय सहायता प्रदान करना।

जूट उद्योग से संबंधित सरकारी योजनाएँ क्या हैं?

  • निर्यात बाज़ार विकास सहायता (EMDA) योजना:
    • राष्ट्रीय जूट बोर्ड (NJB) द्वारा शुरू किया गया EMDA कार्यक्रम, जूट उत्पादों के निर्माताओं और निर्यातकों को विश्व भर में अंतर्राष्ट्रीय मेलों में भाग लेने के लिये प्रोत्साहित करता है। इसका उद्देश्य जीवनशैली और अन्य जूट विविध उत्पादों (JDP) के निर्यात को बढ़ावा देना है।
  • जूट पैकेजिंग सामग्री (वस्तुओं की पैकिंग में अनिवार्य उपयोग) अधिनियम 1987:
    • यह अधिनियम कुछ वस्तुओं की आपूर्ति और वितरण में जूट पैकेजिंग सामग्री के अनिवार्य उपयोग को सुनिश्चित करने के लिये अधिनियमित किया गया था।
      • आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति ने जूट वर्ष 2023-24 के लिये विविध जूट बैग में 100% खाद्यान्न और 20% चीनी की अनिवार्य पैकेजिंग को बढ़ा दिया है।
  • जूट जियो-टेक्सटाइल्स (JGT):
  • जूट हेतु न्यूनतम समर्थन मूल्य:
    • भारतीय जूट निगम (Jute Corporation of India- JCI) सरकार की मूल्य समर्थन एजेंसी है। जूट के लिये भारत सरकार द्वारा समय-समय पर निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के तहत कच्चे जूट की खरीद के माध्यम से जूट उत्पादकों के हितों की रक्षा करना और साथ ही जूट किसानों तथा समग्र रूप से जूट अर्थव्यवस्था के लाभ हेतु कच्चे जूट बाज़ार को स्थिर करना है।
  • जूट और मेस्टा पर गोल्डन फाइबर क्रांति और प्रौद्योगिकी मिशन:
    • वे भारत में जूट उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये सरकार की दो पहल हैं।
    • इसकी उच्च लागत के कारण, यह सिंथेटिक फाइबर और पैकिंग सामग्री, विशेष रूप से नायलॉन के लिये बाज़ार समाप्त हो रहा है।
  • स्मार्ट जूट :
    • यह एक ई-गवर्नेंस पहल है जिसे जूट क्षेत्र में पारदर्शिता को बढ़ावा देने के लिये दिसंबर 2016 में शुरू किया गया था।
    • यह सरकारी एजेंसियों द्वारा जूट की खरीद के लिये एक एकीकृत मंच प्रदान करता है।

कुछ अन्य संबद्ध फाइबर:

  • सनहेम्प: सनहेम्प विभिन्न अनुप्रयोगों वाली एक बहुमुखी फलीदार फसल है। यह विशेष कागज़, रस्सियाँ, सुतली, मछली पकड़ने के जाल एवं कैनवास के उत्पादन के लिये उपयुक्त है। इसके अतिरिक्त, सेना रक्षा उद्देश्यों के लिये छलावरण जाल बनाने हेतु सनहेम्प का उपयोग करती है।
  • रेमी: रेमी विशेष क्षमता वाला एक प्राकृतिक फाइबर है। यह अपनी मज़बूती, टिकाऊपन एवं फफूंदी तथा बैक्टीरिया के प्रति प्रतिरोध के लिये जाना जाता है। रेमी फाइबर का उपयोग कपड़ा, कागज़ निर्माण तथा औद्योगिक अनुप्रयोगों में किया जाता है।
  • सिसल: सिसल फाइबर एगेव पौधे से आते हैं। वे मज़बूत, टिकाऊ होते हैं, साथ ही आमतौर पर रस्सियाँ, सुतली एवं अन्य डोरियाँ बनाने के लिये उपयोग किये जाते हैं।
  • सन: सन फाइबर, सन के पौधे से प्राप्त होते हैं। इनका उपयोग लिनन वस्त्र, कागज़ एवं अन्य उत्पाद बनाने के लिये किया जाता है.
  • नेटल फाइबर: स्टिंगिंग नेटल फाइबर पौधे के रेशे से प्राप्त किया जाता है। पीढ़ियों से लोग कपड़ा बनाने के लिये इनका उपयोग करते आए हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

Q.1 हाल ही में हमारे देश में हिमालयी बिच्छू-बूटी (जिरार्डीनिया डाइवर्सीफोलिया) के महत्त्व के बारे में बढ़ती हुई जागरूकता थी, क्योंकि यह पाया गया है कि (2019)

(a) यह प्रति-मलेरिया औषध का संधारणीय स्रोत है
(b) यह जैव डीज़ल का संधारणीय स्रोत है
(c) यह कागज़ उद्योग के लिये लुगदी का संधारणीय स्रोत है
(d) यह वस्त्रतंतु का संधारणीय स्रोत है

उत्तर: (d)


प्रश्न.2 ‘‘यह फसल उपोष्ण प्रकृति की है। उसके लिये कठोर पाला हानिकारक है। इसके विकास के लिये कम-से-कम 210 पाला-रहित दिवसाें और 50-100 सेंटीमीटर वर्षा की आवश्यकता पड़ती है। हल्की सुअपवाहित मृदा जिसमें नमी धारण करने की क्षमता है इसकी खेती के लिये आदर्श रूप से अनुकूल है।’’ यह फसल निम्नलिखित में से कौन-सी है? (2020)

(a) कपास
(b) जूट
(c) गन्ना
(d) चाय

उत्तर : (a)


प्रश्न 3. निचले गंगा के मैदान में वर्ष भर उच्च तापमान के साथ आर्द्र जलवायु होती है। निम्नलिखित फसलों के युग्मों में से कौन-सा एक इस क्षेत्र के लिये सबसे उपयुक्त है? (2011)

(a) धान और कपास
(b) गेहूँ और जूट
(c) धान और जूट
(d) गेहूँ और कपास

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. भारत में स्वतंत्रता के बाद कृषि क्षेत्र में हुई विभिन्न प्रकार की क्रांतियों की व्याख्या करें। इन क्रांतियों ने भारत में गरीबी उन्मूलन और खाद्य सुरक्षा में किस प्रकार मदद की है? (2017)


द्विपक्षीय निवेश संधियाँ

प्रिलिम्स के लिये:

द्विपक्षीय निवेश संधियाँ (BITs), केंद्रीय बजट 2024-25, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI)

मेन्स के लिये:

द्विपक्षीय निवेश संधियाँ, भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये FDI का महत्त्व।

स्रोत:इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

अंतरिम केंद्रीय बजट 2024-25 प्रस्तुत करते हुए, भारतीय वित्त मंत्री ने कहा कि भारत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign direct investment- FDI) के प्रवाह को बढ़ावा देने के लिये अपने व्यापरिक भागीदारों के साथ द्विपक्षीय निवेश संधियों (Bilateral Investment Treaty- BITs) पर बातचीत करेगा।

  • विशेष रूप से वर्ष 2016 में BIT मॉडल को अपनाने के बाद से भारत की द्विपक्षीय संधियाँ समाप्त हो गई हैं।

द्विपक्षीय निवेश संधियाँ (BITs) क्या हैं?

  • परिचय:
    • BITs दो देशों के बीच एक-दूसरे के क्षेत्रों में विदेशी निजी निवेश को बढ़ावा देने एवं उसकी सुरक्षा करने के लिये पारस्परिक समझौते हैं।
    • 90 के दशक के मध्य से भारत सरकार ने विदेशी निवेशकों एवं निवेशों को अनुकूल परिस्थितियों के साथ संधि-आधारित सुरक्षा प्रदान करने के लिये BIT की शुरुआत की।
  • न्यूनतम गारंटी:
    • BIT विदेशी निवेश व्यवहार के संबंध में दोनों देशों के बीच न्यूनतम गारंटी स्थापित करते हैं, जैसे,
      • राष्ट्रीय व्यवहार (विदेशी निवेशकों के साथ घरेलू कंपनियों के समान व्यवहार करना)
      • निष्पक्ष एवं न्यायसंगत व्यवहार (अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार)
      • ज़ब्ती से सुरक्षा (प्रत्येक देश की अपने क्षेत्र में विदेशी निवेश प्राप्त करने की क्षमता को सीमित करना)।
  • BITs के अंतर्गत मध्यस्थता:
    • BITs सामान्य रूप से निवेशकों एवं निवेश करने वाले देश के बीच विवादों को निपटाने के लिये एक तंत्र प्रदान करते हैं।
    • ऐसे विवादों को निपटाने के लिये सर्वाधिक चुना जाने वाला तरीका मध्यस्थता है, जहाँ पक्ष न्यायालय में जाने के स्थान पर अपने विवाद का निर्णय किसी तटस्थ व्यक्ति (मध्यस्थ) द्वार कराये जाने पर सहमती व्यक्त करते हैं।
  • इतिहास:
    • भारत द्वारा पहला BITs, वर्ष 1994 में UK के साथ हस्ताक्षरित किया गया था।
    • वर्ष 2010 में भारत के खिलाफ दायर पहली निवेशक संधि दावे के निपटान के साथ BITs संधि ने ध्यान आकर्षित किया।
    • वर्ष 2011 में भारत को ऑस्ट्रेलिया-भारत BITs (व्हाइट इंडस्ट्रीज़ बनाम रिपब्लिक ऑफ इंडिया) से उत्पन्न विवाद में अपना पहला प्रतिकूल भुगतान करना पड़ा, जहाँ भारत सरकार को इंटरनेशनल चैंबर ऑफ कॉमर्स द्वारा 4.1 मिलियन अमरीकी डाॅलर का भुगतान करने का आदेश दिया गया था।
    • वर्ष 2015 तक भारत को 17 ज्ञात BITs दावों का सामना करना पड़ा, जिसमें ब्रिटिश तेल और गैस कंपनी केयर्न एनर्जी Plc का दावा भी शामिल था, जिसके परिणामस्वरूप भारत सरकार को 1.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर का पुरस्कार मिला।
    • सरकारी खजाने पर बढ़ रहे बोझ को देखते हुए, सरकार वर्ष 1993, BIT मॉडल पर फिर से विचार करने के लिये विवश हुई। इसके परिणामस्वरूप वर्ष 2016 मॉडल BIT को अपनाया गया, जिसके परिणामस्वरूप सरकार ने संशोधित पाठ के आधार पर शर्तों पर पुनर्विचार करने के अनुरोध के साथ वर्ष 2015 तक निष्पादित 74 संधियों में से 68 को समाप्त कर दिया।
      • वर्ष 2016, BIT मॉडल को अपनाने को विदेशी निवेश को प्रोत्साहित करने के लिये एक सूक्ष्म तथा कैलिब्रेटेड (अंशांकित) दृष्टिकोण के स्थान पर एक तत्काल संरक्षणवादी उपाय के रूप में देखा गया था।

वर्ष 2016 मॉडल BIT के साथ क्या चुनौतियाँ रही हैं?

  • निवेश की संक्षिप्त परिभाषा:
    • BIT मॉडल द्वारा BIT सुरक्षा के लिये अर्हता प्राप्त करने के लिये आवश्यक निवेश की परिभाषा को सीमित कर दिया। BIT मॉडल इंगित करता है कि भारत निवेश के लिये एक संकीर्ण 'उद्यम-आधारित' परिभाषा को प्रस्तावित करता है, जिसके तहत संधि के तहत केवल प्रत्यक्ष निवेश को संरक्षित किया जाता है।
    • इसमें एक नकारात्मक सूची भी शामिल है, जो निवेश की परिभाषा से पोर्टफोलियो निवेश, ऋण-प्रतिभूतियों में ब्याज, अमूर्त अधिकार इत्यादि को अलग करती है।
    • इस प्रकार नई परिभाषा वैश्वीकरण एवं उदारीकरण के आधुनिक युग में विदेशी निवेश के बढ़ते दायरे को ध्यान में नहीं रखती है।
  • घरेलू उपचार खण्ड की समाप्ति:
    • BIT मॉडल में अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता कार्यवाही शुरू करने से पूर्व घरेलू उपचार की समाप्ति को अनिवार्य करने वाला एक खंड शामिल है।
    • वर्ष 2016, BIT मॉडल में प्रावधान किया गया है कि एक निवेशक को अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता का सहारा लेने से पूर्व स्थानीय व्यवहार का उपयोग करना होगा।
    • यह निश्चित रूप से विदेशी निवेशकों में विश्वास बढ़ाने के लिये बहुत कम है।
  • FDI पर प्रभाव:
    • अन्य देशों के साथ शर्तों पर पुनः बातचीत करने में आने वाली कठिनाइयों ने भी FDI को आकर्षित करने में चुनौतियों में योगदान दिया है।
    • अप्रैल-सितंबर 2023 में भारत में FDI इक्विटी प्रवाह 24% घटकर 20.48 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया।
      • कुल FDI- जिसमें इक्विटी प्रवाह, पुनर्निवेश आय तथा अन्य पूंजी शामिल है, अप्रैल-जून 2022 में 38.94 बिलियन अमरीकी डॉलर के मुकाबले समीक्षाधीन अवधि के दौरान 15.5% घटकर 32.9 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गई।
  • मेज़बान राज्य को व्यापक विवेकाधीन शक्तियाँ:
    • संधि में निवेश के उचित व्यवहार को सुनिश्चित करने वाला एक खंड शामिल था, जो दोनों पक्षों को ऐसे उपायों को लागू करने से रोकता है जो स्पष्ट रूप से अपमानजनक हैं या उचित प्रक्रिया का उल्लंघन करते हैं।
    • हालाँकि, "उचित प्रक्रिया" के उल्लंघन के मूल्यांकन का पैमाना क्या है, यह परिभाषित नहीं किया गया है।
    • इसके अतिरिक्त BIT मॉडल में कहा गया है कि यदि मेज़बान राज्य यह निर्णय लेता है कि BIT के तहत कथित उल्लंघन किसी भी समय कराधान का विषय है, तो मेज़बान राज्य का निर्णय गैर-न्यायसंगत होगा और साथ ही मध्यस्थ न्यायाधिकरण द्वारा समीक्षा से छूट दी जाएगी।
      • मॉडल BIT मानता है कि एक विदेशी निवेशक को घरेलू न्यायिक व्याख्याओं एवं तंत्रों पर पूर्ण विश्वास होगा।
      • यह संभावित रूप से मेज़बान राज्य को किसी भी विवाद को न्यायाधिकरण के अधिकार क्षेत्र से एकतरफा बाहर करने का व्यापक अधिकार दे सकता है, केवल इस आधार पर कि प्रश्न में आचरण कराधान से संबंधित है।

आगे की राह

  • विदेशी निवेशकों और घरेलू अर्थव्यवस्था दोनों के हितों को संतुलित करते हुए यह सुनिश्चित करने के लिये कि यह वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं के साथ संरेखित हो, भारत अपनी BIT व्यवस्था पर फिर से विचार कर सकता है। इसमें निष्पक्ष एवं न्यायसंगत व्यवहार, सर्वाधिक पसंदीदा राष्ट्र का दर्जा एवं मज़बूत विवाद समाधान तंत्र के प्रावधान शामिल हो सकते हैं।
  • विवादों के समय पर निपटान की सुविधा के साथ निवेशक राज्य विवादों में प्रभावी प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिये वर्ष 2021 में विदेशी मामलों पर संसदीय स्थायी समिति द्वारा की गई सिफारिशें, जैसे मध्यस्थता पूर्व परामर्श एवं बातचीत को बढ़ावा देने के साथ लागू करना।
  • भारत को निवेशक राज्य विवादों को प्रभावी ढंग से संभालने की अपनी क्षमता बढ़ाने के लिये निवेश मध्यस्थता के क्षेत्र में स्थानीय विशेषज्ञता विकसित करने में निवेश करना चाहिये। इसमें प्रशिक्षण पेशेवरों एवं कानूनी विशेषज्ञों को शामिल किया जा सकता है, साथ ही निवेश मध्यस्थता के लिये विशेष संस्थान भी बनाए जा सकते हैं।
  • भारत को BIT के लिये एक प्रगतिशील दृष्टिकोण अपनाना चाहिये जो नियामक संप्रभुता की अनिवार्यता के साथ निवेशक सुरक्षा की आवश्यकता को संतुलित करता है। इसमें निवेशकों के अधिकारों के साथ-साथ सतत् विकास, पर्यावरण संरक्षण तथा सामाजिक कल्याण को बढ़ावा देने वाले प्रावधानों को भी शामिल किया जा सकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न  

प्रश्न: निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2021)

  1. विदेशी मुद्रा परिवर्तनीय
  2. कुछ शर्तों के साथ विदेशी संस्थागत निवेश
  3. वैश्विक डिपॉज़िटरी रसीदें
  4. अनिवासी बाहरी जमा

उपर्युक्त में से किसको प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में शामिल किया जा सकता है?

(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 3
(c) केवल 2 और 4
(d) केवल 1 और 4

उत्तर: (a)


भारत का अक्षय ऊर्जा विज़न: IREDA

प्रिलिम्स के लिये:

पेरिस समझौता, भारत का अक्षय ऊर्जा विज़न: IREDA, विश्व बैंक (WB), जलवायु परिवर्तन

मेन्स के लिये:

भारत का अक्षय ऊर्जा विज़न: IREDA, विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप एवं उनकी रूपरेखा तथा कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे

स्रोत: पी.आई.बी

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय अक्षय ऊर्जा विकास संस्था लिमिटेड (IREDA) ने विश्व बैंक (WB) द्वारा आयोजित एक अंतर्राष्ट्रीय वेबिनार को संबोधित किया जिसमें भारत के अक्षय ऊर्जा परिदृश्य और ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए जलवायु परिवर्तन से निपटने के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्यों पर प्रकाश डाला गया।

वेबिनार में IREDA के संबोधन से संबंधित प्रमुख बिंदु क्या हैं?

  • जलवायु लक्ष्यों की पूर्ति हेतु भारी निवेश:
    • वर्ष 2030 के लिये भारत के राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) अथवा पेरिस समझौते के तहत इसकी जलवायु संबंधी प्रतिज्ञाओं की पूर्ति के लिये 30 लाख करोड़ रुपए के निवेश की आवश्यकता होगी।
      • भारत के NDC लक्ष्यों के अनुसार भारत वर्ष 2005 के स्तर से वर्ष 2030 तक अपने सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की उत्सर्जन तीव्रता को 45% तक कम करने और वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन-आधारित ऊर्जा स्रोतों से विद्युत उत्पादन की लगभग 50% संचयी स्थापित क्षमता हासिल करने के लिये प्रतिबद्ध है।
    • सौर ऊर्जा, इलेक्ट्रोलाइज़र, पवन और बैटरी स्पेस, पावर ट्रांसमिशन, ग्रीन हाइड्रोजन, हाइड्रो पावर तथा अपशिष्ट-से-ऊर्जा क्षेत्रों में विनिर्माण एवं क्षमता विस्तार के लिये निवेश की आवश्यकता है।
  • रूफ टॉप सोलर क्षेत्र का उन्नयन:
    • IREDA ने वेबिनार में रूफ टॉप सोलर योजना "PM सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना" के महत्त्व पर प्रकाश डाला।
    • उक्त दूरदर्शी परियोजना में 75,000 करोड़ रुपए से अधिक का निवेश किया गया है। जिसका लक्ष्य प्रत्येक माह 300 यूनिट तक मुफ्त बिजली प्रदान करके 1 करोड़ घरों को सौर ऊर्जा से लैस करना है।
      • यह योजना लोगों को न केवल पर्याप्त लाभ प्रदान करती है अपितु अक्षय ऊर्जा के बारे में उनकी जागरूकता भी बढ़ाती है जो वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन और वर्ष 2047 तक ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने के भारत के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य में योगदान देती है।
  • ऊर्जा मांग में वृद्धि:
    • IREDA के अनुसार देश के लिये सरकार की महत्त्वाकांक्षी योजनाओं के कारण भारत की ऊर्जा मांग में महत्त्वपूर्ण वृद्धि होगी तथा अधिकतम ऊर्जा मांग की पूर्ति अक्षय/नवीकरणीय स्रोतों के माध्यम से की जाएगी।
    • ऊर्जा मांग के लगभग 90% की पूर्ति नवीकरणीय स्रोतों से की जाएगी।
      • नवीकरणीय ऊर्जा के लिये पर्याप्त ऊर्जा भंडारण का प्रयास जारी है किंतु इसकी प्राप्ति तक थर्मल ऊर्जा का भी विकास किया जाएगा।

IREDA क्या है?

  • भारतीय अक्षय ऊर्जा विकास संस्था लिमिटेड (IREDA) नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) के प्रशासनिक नियंत्रण के अधीन भारत सरकार का एक मिनी रत्न प्रतिष्ठान है।
  • इसकी स्थापना वर्ष 1987 में नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र के लिये एक विशेष गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थान के रूप में की गई थी।
  • IREDA नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से संबंधित परियोजनाओं के वित्तपोषण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है जो वित्तीय संस्थानों/बैंकों को इस क्षेत्र में ऋण प्रदान करने का विश्वास दिलाता है।

अक्षय ऊर्जा से संबंधित सरकारी पहल क्या हैं?

और पढ़ें…IEA की इलेक्ट्रिसिटी 2024 रिपोर्ट, इंडियन ऑयल मार्केट आउटलुक 2030: IEA

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत में सौर ऊर्जा उत्पादन के संदर्भ में नीचे दिये गए कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. भारत प्रकाश- वोल्टीय इकाइयों में प्रयोग में आने वाले सिलिकॉन वेफर्स का दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है।
  2. सौर ऊर्जा शुल्क का निर्धारण भारतीय सौर ऊर्जा निगम के द्वारा किया जाता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (d)

व्याख्या:

  • सिलिकॉन वेफर्स अर्द्धचालक के पतले स्लाइस होते हैं, जैसे- क्रिस्टलीय सिलिकॉन (c-Si), एकीकृत/इंटीग्रेटेड सर्किट का निर्माण और प्रकाश- वोल्टीय सेल के निर्माण के लिये उपयोग किया जाता है। चीन अब तक सिलिकॉन का दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक है, इसके बाद रूस, संयुक्त राज्य अमेरिका और ब्राज़ील का स्थान है। भारत सिलिकॉन एवं सिलिकॉन वेफर्स के शीर्ष पांँच उत्पादकों में शामिल नहीं है। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • सौर ऊर्जा शुल्क का निर्धारण केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग द्वारा किया जाता है, न कि भारतीय सौर ऊर्जा निगम द्वारा। अतः कथन 2 सही नहीं है।

अत: विकल्प (d) सही उत्तर है।


प्रश्न. कभी-कभी समाचारों में 'नेट मीटरिंग' (Net metering) निम्नलिखित में से किसको प्रोत्साहित करने के संदर्भ में देखा जाता है। (2016)

(a) परिवारों/उपभोक्ताओं द्वारा सौर ऊर्जा का उत्पादन और उपयोग
(b) घरों की रसोईघरों में पाइप प्राकृतिक गैस का उपयोग
(c) मोटरगाड़ियों में CNG किट लगवाना
(d) शहरी घरों में पानी के मीटर लगवाना

उत्तर: (a)


मेन्स:

प्रश्न. भारत में सौर ऊर्जा की प्रचुर संभावनाएँ हैं, हालाँकि इसके विकास में क्षेत्रीय भिन्नताएँँ हैं। विस्तृत वर्णन कीजिये। (2020)